UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi  >  Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2022 UPSC Current Affairs

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

राजनीति का अपराधीकरण

चर्चा में क्यों?
न्याय मित्र (Amicus Curiae) द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, 1 दिसंबर, 2021 तक देश भर की विभिन्न अदालतों में विधायकों से जुड़े कुल 4,984 आपराधिक मामले लंबित थे।

  • न्याय मित्र (Amicus Curiae) को सर्वोच्च न्यायालय ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की त्वरित सुनवाई हेतु विशेष अदालतें स्थापित करने में मदद के लिये नियुक्त किया था।
  • यह प्रवृत्ति राजनीति के अपराधीकरण की बढ़ती घटनाओं को उज़ागर करती है।
  • न्याय मित्र (शाब्दिक रूप से "अदालत का मित्र") वह व्यक्ति होता है जो किसी मामले में पक्षकार नहीं होता है तथा जो मामले में मुद्दों पर असर डालने वाली जानकारी, विशेषज्ञता या अंतर्दृष्टि प्रदान करके अदालत की सहायता करता है।

राजनीति का अपराधीकरण

  • इसका अर्थ राजनीति में अपराधियों की बढ़ती भागीदारी से है, जिसमें अपराधी चुनाव लड़ सकते हैं और संसद तथा राज्य विधायिका के सदस्य के रूप में चुने जा सकते हैं।
  • यह मुख्य रूप से राजनेताओं और अपराधियों के बीच साँठगाँठ के कारण होता है।

आपराधिक छवि के उम्मीदवारों की अयोग्यता का कानूनी पहलू:

  • भारतीय संविधान में संसद या विधानसभाओं के लिये चुनाव लड़ने वाले किसी आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति की अयोग्यता के विषय में उपबंध नहीं किया गया है।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में विधायिका का चुनाव लड़ने के लिये किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने के मानदंडों का उल्लेख है।
  • इस अधिनियम की धारा 8 ऐसे दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से नहीं रोकती है जिन पर केवल मुकदमा चल रहा है और दोष अभी सिद्ध नहीं हुआ है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन पर लगा आरोप कितना गंभीर है।
  • इस अधिनियम की धारा 8(1) और 8(2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई विधायिका सदस्य (सांसद अथवा विधायक) हत्या, बलात्कार, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने जैसे अपराधों में लिप्त है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा एवं 6 वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

अपराधीकरण का कारण

  • कार्यान्वयन का अभाव: राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिये बने कानूनों और निर्णयों के कार्यान्वयन की कमी के कारण इसमें बहुत मदद नहीं मिली है।
  • संकीर्ण स्वार्थ: राजनीतिक दलों द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास का प्रकाशन बहुत प्रभावी नहीं हो सकता है, क्योंकि मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा जाति या धर्म जैसे सामुदायिक हितों से प्रभावित होकर मतदान करता है।
  • बाहुबल और धन का उपयोग: गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के पास अक्सर धन और संपदा काफी अधिक मात्रा में होती है, इसलिये वे दल के चुनावी अभियान में अधिक-से-अधिक पैसा खर्च करते हैं और उनकी राजनीति में प्रवेश करने तथा जीतने की संभावना बढ़ जाती है।
  • इसके अतिरिक्त कभी-कभी तो मतदाताओं के पास कोई विकल्प नहीं होता है, क्योंकि सभी प्रतियोगी उम्मीदवार आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं।

प्रभाव

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत के विरुद्ध:
    • यह एक अच्छे उम्मीदवार का चुनाव करने के लिये मतदाताओं की पसंद को सीमित करता है।
    • यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लोकाचार के खिलाफ है जो कि लोकतंत्र का आधार है।
  • सुशासन पर प्रभाव:
    • प्रमुख समस्या यह है कि कानून तोड़ने वाले ही कानून बनाने वाले बन जाते हैं, इससे सुशासन स्थापित करने में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रभावकारिता प्रभावित होती है।
    • भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में यह प्रवृत्ति यहाँ के संस्थानों की प्रकृति तथा विधायिका के चुने हुए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता की खराब छवि को दर्शाती है।
  • लोक सेवकों के कार्य पर प्रभाव:
    • इससे चुनावों के दौरान और बाद में काले धन का प्रचलन बढ़ जाता है, जिससे समाज में भ्रष्टाचार बढ़ता है तथा लोक सेवकों के काम पर असर पड़ता है।
  • सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा:
    • यह समाज में हिंसा की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है और भावी जनप्रतिनिधियों के लिये एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है।

आगे की राह

  • चुनाव सुधार पर बनी विभिन्न समितियों (दिनेश गोस्वामी, इंद्रजीत समिति) ने राज्य द्वारा चुनावी खर्च वहन किये जाने की सिफारिश की, जिससे काफी हद तक चुनावों में काले धन के उपयोग पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी और परिणामस्वरूप राजनीति के अपराधीकरण को सीमित किया जा सकेगा।
  • एक स्वच्छ चुनावी प्रक्रिया हेतु राजनीतिक पार्टियों के मामलों को विनियमित करना आवश्यक है, जिसके लिये निर्वाचन आयोग (Election Commission) को मज़बूत करना ज़रूरी है।
  • मतदाताओं को चुनाव के दौरान धन, उपहार जैसे अन्य प्रलोभनों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है।
  • भारत के राजनीतिक दलों की राजनीति के अपराधीकरण और भारतीय लोकतंत्र पर इसके बढ़ते हानिकारक प्रभावों को रोकने के प्रति अनिच्छा को देखते हुए यहाँ के न्यायालयों को अब गंभीर आपराधिक प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने जैसे फैसले पर विचार करना चाहिये।

पूर्ववर्ती पेंशन योजना


चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा पूर्ववर्ती पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया गया।

पूर्ववर्ती पेंशन योजना

परिचय

  • यह योजना सेवानिवृत्ति के बाद आजीवन आय का आश्वासन देती है।
  • पूर्ववर्ती पेंशन योजना (OPS) के तहत कर्मचारियों को पूर्व निर्धारित फार्मूले के अनुसार पेंशन मिलती थी जो अंतिम आहरित वेतन का आधा (50%) होता है तथा उन्हें वर्ष में दो बार महँगाई राहत (Dearness Relief) में संशोधन का भी लाभ मिलता था। भुगतान निर्धारित था और वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती थी। इसके अलावा OPS के तहत सामान्य भविष्य निधि (General Provident Fund-GPF) का भी प्रावधान था।
  • GPF भारत में सभी सरकारी कर्मचारियों के लिये उपलब्ध है। मूल रूप से यह सभी सरकारी कर्मचारियों को अपने वेतन का एक निश्चित प्रतिशत GPF में योगदान करने की अनुमति देता है। साथ ही कुल राशि जो रोज़गार की अवधि के दौरान जमा होती है, सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी को भुगतान की जाती है।
  • पेंशन पर होने वाले खर्च को सरकार वहन करती है। वर्ष 2004 में इस योजना को बंद कर दिया गया था।

चुनौतियाँ

  • वित्त रहित पेंशन देयता:
    • मुख्य समस्या यह थी कि पेंशन देयता वित्तपोषित नहीं थी अर्थात् पेंशन के लिये विशेष रूप से ऐसा कोई कोष नहीं था, जो लगातार बढ़े और भुगतान के लिये उपयोग किया जा सके।
    • भारत सरकार द्वारा बजट में प्रत्येक वर्ष पेंशन का प्रावधान किया जाता है, भविष्य में साल-दर-साल भुगतान करने के तरीके पर कोई स्पष्ट योजना नहीं थी।
  • अस्थिरता:
    • OPS भी अस्थिर था। हालाँकि पेंशन देनदारियाँ बढ़ती रहेंगी क्योंकि पेंशनरों के लाभ में प्रत्येक वर्ष वृद्धि होगी, जैसे मौजूदा कर्मचारियों का वेतन, पेंशनरों को इंडेक्सेशन से प्राप्त लाभ या जिसे 'महँगाई राहत' कहा जाता है।
    • इसके अलावा बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होगी और दीर्घायु में वृद्धि का अर्थ विस्तारित भुगतान होगा।
    • इससे केंद्र और राज्य सरकारों पर पेंशन का भारी बोझ पड़ा है।

संबद्ध  चिंताओं को दूर करने के लिये बनी योजनाएँ

  • वर्ष 1998 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वृद्धावस्था सामाजिक एवं आय सुरक्षा (OASIS) परियोजना के लिये एक रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया। विशेषज्ञ समिति द्वारा इस रिपोर्ट को जनवरी 2000 में प्रस्तुत किया गया।
  • OASIS का प्राथमिक उद्देश्य उन असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर केंद्रित था जिन्हें वृद्धावस्था में आय सुरक्षा संबंधी समस्याएँ थी।
  • OASIS रिपोर्ट के अनुसार, निवेशकों को तीन अलग-अलग प्रकार के फंड में निवेश करना चाहिये, यथा: वृद्धि, संतुलित और सुरक्षित। ये फंंड छह अलग-अलग फंड प्रबंधकों द्वारा प्रस्तुत किये जाएंगे।
  • शेष राशि का निवेश कॉर्पोरेट बॉण्ड या सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाएगा। इसके लिये विशेष सेवानिवृत्ति खाते होंगे और इसमें कम-से-कम 500 रुपए प्रतिवर्ष निवेश करने की आवश्यकता होगी।
  • सेवानिवृत्ति के बाद सेवानिवृत्ति खाते से कम-से-कम 2 लाख रुपए का उपयोग बीमा खरीदने के लिये किया जाएगा।
  • एक बीमा प्रदाता इस राशि का निवेश करता है और उस व्यक्ति के शेष जीवन तक एक निश्चित मासिक आय प्रदान करता है जो कि रिपोर्ट तैयार करने के समय 1,500 रुपए थी।

नई पेंशन योजना की पेशकश के कारण

  • परिचय:
    • OASIS रिपोर्ट ही नई पेंशन योजना का आधार बनी, जिसे दिसंबर 2003 में अधिसूचित किया गया था।
    • केंद्र सरकार ने जनवरी 2004 से प्रभावी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) की शुरुआत की (सशस्त्र बलों को छोड़कर)।
    • वर्ष 2018-19 में NPS को कारगर बनाने तथा इसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल ने NPS के तहत आने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों को लाभान्वित करने हेतु योजना में बदलावों को मंज़ूरी दी।
  • पेंशन देनदारियों से छुटकारा पाने के तरीके के रूप में NPS को सरकार द्वारा लॉन्च किया गया था।
    • 2000 के दशक की शुरुआत के शोध का हवाला देते हुए एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, भारत का पेंशन ऋण नियंत्रण से परे के स्तर तक पहुँच रहा था।
    • NPS की शुरुआत के बाद केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 में संशोधन किया गया था।
    • सेवानिवृत्ति के बाद एक व्यक्ति पेंशन राशि का एक हिस्सा एकमुश्त निकाल सकता है और शेष का उपयोग नियमित आय के लिये बीमा खरीदने के लिये कर सकता है।
  • कार्यान्वयन:
    • NPS को देश में PFRDA (पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण) द्वारा कार्यान्वित एवं विनियमित किया जा रहा है।
    • PFRDA द्वारा स्थापित नेशनल पेंशन सिस्टम ट्रस्ट (NPST), NPS के तहत सभी परिसंपत्तियों का पंजीकृत मालिक है।
  • विशेषताएँ:
    • NPS का अखिल नागरिक मॉडल 18-70 वर्ष की आयु के भारत क सभी नागरिकों (NRIs सहित) को NPS में शामिल होने की अनुमति देता है।
    • यह एक भागीदारी योजना है, जहाँ कर्मचारी अपने वेतन से अपने पेंशन कोष में योगदान करते हैं, जिसमें सरकार का भी समान योगदान होता है। इसके बाद फंड को पेंशन फंड मैनेजर्स के माध्यम से निर्धारित निवेश योजनाओं में निवेश किया जाता है।
    • इस NPS में सरकार द्वारा नियोजित लोग NPS में अपने मूल वेतन का 10% योगदान करते हैं, जबकि उनके नियोक्ता 14% तक योगदान करते हैं।
    • वर्ष 2019 में वित्त मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के पास पेंशन फंड (PF) और निवेश पैटर्न का चयन करने का विकल्प है।
    • रिटायरमेंट के समय वे कॉर्पस का 60% निकाल सकते हैं, जो टैक्स-फ्री है और बाकी 40% ऐन्युइटी में निवेश किया जाता है, जिस पर टैक्स लगता है।
    • यहाँ तक कि निज़ी व्यक्ति भी इस योजना का विकल्प चुन सकते हैं।
  • NPS के साथ समस्याएँ:
    • OPS के विपरीत NPS में कर्मचारियों को महँगाई भत्ते के साथ मूल वेतन का 10% जमा करने की आवश्यकता होती है। GPF का कोई लाभ नहीं है और पेंशन की राशि तय नहीं है। इस योजना के साथ प्रमुख मुद्दा यह है कि यह बाज़ार से जुड़ा हुआ है तथा रिटर्न-आधारित है। सरल शब्दों में भुगतान अनिश्चित है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022

चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने एक संशोधित व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक जारी किया है, जिसे अब डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 कहा जाता है।

  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को वापस लेने के 3 महीने बाद यह विधेयक पेश किया गया है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 के सात सिद्धांत

  • सबसे पहल संगठनों द्वारा व्यक्तिगत डेटा का उपयोग इस तरह से किया जाना चाहिये जो संबंधित व्यक्तियों के लिये वैध, निष्पक्ष और पारदर्शी हो।
  • दूसरे, व्यक्तिगत डेटा का उपयोग केवल उन उद्देश्यों के लिये किया जाना चाहिये जिनके लिये इसे एकत्र किया गया हो।

तीसरा सिद्धांत डेटा न्यूनीकरण की बात करता है।

  • चौथा सिद्धांत संग्रह की बात आने पर डेटा सटीकता पर ज़ोर देता है।
  • पाँचवाँ सिद्धांत कहता है कि कैसे एकत्र किये गए व्यक्तिगत डेटा को "डिफाॅल्ट रूप से स्थायी तौर पर संग्रहीत नहीं किया जा सकता है" और भंडारण एक निश्चित अवधि तक सीमित होना चाहिये।
  • छठा सिद्धांत कहता है कि यह सुनिश्चित करने के लिये उचित सुरक्षा उपाय होने चाहिये कि "व्यक्तिगत डेटा का कोई अनधिकृत संग्रह या प्रसंस्करण नहीं हो"।
  • सात सिद्धांत कहता है कि "जो व्यक्ति व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों को तय करता है, उसे इस तरह के प्रसंस्करण के लिये ज़वाबदेह होना चाहिये"।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • डेटा प्रिंसिपल और डेटा न्यासी:
    • डेटा प्रिंसिपल उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जिसका डेटा एकत्र किया जा रहा है।
    • बच्चों (<18 वर्ष) के मामले में उनके माता-पिता/वैध अभिभावकों को उनके "डेटा प्रिंसिपल" माना जाएगा।
    • डेटा न्यासी इकाई (व्यक्तिगत, कंपनी, फर्म, राज्य आदि) है, जो "किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों" को तय करता है।
    • व्यक्तिगत डेटा "कोई भी ऐसा डेटा, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है"।
    • प्रसंस्करण का अर्थ है व्यक्तिगत डेटा के संबंध में पूरा होने वाला "संचालन का चक्र” ही प्रसंस्करण कहलाता है।
  • महत्त्वपूर्ण डेटा न्यासी:
    • महत्त्वपूर्ण डेटा न्यासी वे हैं जो व्यक्तिगत डेटा की उच्च मात्रा से निपटते हैं। केंद्र सरकार कई कारकों के आधार पर परिभाषित करेगी कि इस श्रेणी के तहत किसे नामित किया जाना है।
    • ऐसी इकाइयों को एक 'डेटा संरक्षण अधिकारी' और एक स्वतंत्र डेटा ऑडिटर नियुक्त करना होगा।

व्यक्तियों के अधिकार

  • जानकारी तक पहुँच:
    • विधेयक यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट भाषाओं में "बुनियादी जानकारी तक पहुँचने" में सक्षम होना चाहिये।
  • सहमति का अधिकार:
    • व्यक्तियों को उनके डेटा को संसाधित करने से पहले सहमति देने की आवश्यकता होती है और "प्रत्येक व्यक्ति को पता होना चाहिये कि व्यक्तिगत डेटा के कौन से आइटम एक डेटा फिड्यूशरी एकत्र करना चाहते हैं और इस तरह के संग्रह एवं आगे की प्रक्रिया का उद्देश्य क्या है"।
    • व्यक्तियों को डेटा फिड्यूशरी से सहमति वापस लेने का भी अधिकार है।
  • नष्ट करने का अधिकार:
    • डेटा प्रिंसिपल के पास डेटा फिड्यूशरी द्वारा एकत्र किये गए डेटा को मिटाने और सुधार की मांग करने का अधिकार होगा।
  • नामांकित करने का अधिकार:
    • डेटा प्रिंसिपल्स को किसी ऐसे व्यक्ति को नामांकित करने का भी अधिकार होगा जो अपनी मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में इन अधिकारों का प्रयोग करेगा।
  • डेटा संरक्षण बोर्ड:
    • विधेयक में विधेयक का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये डेटा संरक्षण बोर्ड के गठन का भी प्रस्ताव है।
    • डेटा फिड्यूशरी से असंतोषजनक प्रतिक्रिया के मामले में उपभोक्ता डेटा संरक्षण बोर्ड में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • सीमा पार डेटा स्थानांतरण:
    • विधेयक सीमा पार भंडारण एवं डेटा को "कुछ अधिसूचित देशों और क्षेत्रों" में स्थानांतरित करने की अनुमति देता है, बशर्ते उनके पास उपयुक्त डेटा सुरक्षा परिदृश्य हो तथा सरकार वहाँ से भारतीयों के डेटा तक पहुँच सके।

वित्तीय दंड

  • डेटा फिड्यूशरी हेतु:
    • विधेयक उन व्यवसायों पर दंड लगाने का प्रस्ताव करता है जो डेटा उल्लंघनों से गुज़रते हैं या उल्लंघन होने पर उपयोगकर्त्ताओं को सूचित करने में विफल रहते हैं।
    • जुर्माना 50 करोड़ रुपए से लेकर 500 करोड़ रुपए तक लगाया जाएगा।
  • डेटा प्रिंसिपल हेतु:
    • यदि कोई उपयोगकर्त्ता ऑनलाइन सेवा के लिये साइन-अप करते समय झूठे दस्तावेज़ प्रस्तुत करता है या तुच्छ शिकायत दर्ज करता है, तो उपयोगकर्त्ता पर 10,000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • छूट:
    • सरकार कुछ व्यवसायों को उपयोगकर्त्ताओं की संख्या और इकाई द्वारा संसाधित व्यक्तिगत डेटा की मात्रा के आधार पर विधेयक के प्रावधानों का पालन करने से छूट दे सकती है।
    • यह देश के स्टार्टअप्स को ध्यान में रखते हुए किया गया है जिन्होंने शिकायत की थी कि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 बहुत अधिक "अनुपालन गहन" था।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित छूट, पिछले (वर्ष 2019) संस्करण के समान, बरकरार रखी गई है।
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव या किसी भी संज्ञेय अपराध को रोकने के हित में केंद्र को अपनी एजेंसियों को विधेयक के प्रावधानों का पालन करने से छूट देने का अधिकार दिया गया है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक का महत्त्व

  • नया विधेयक भारत में डेटा के स्थानीय भंडारण की पिछले विधेयक की विवादास्पद आवश्यकता से हटकर, सीमा पार डेटा प्रवाह पर महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान करता है।
  • यह डेटा स्थानीयकरण आवश्यकताओं पर अपेक्षाकृत नरम रुख प्रदान करता है और वैश्विक गंतव्यों का चयन करने के लिये डेटा हस्तांतरण की अनुमति देता है इससे देश-दर-देश व्यापार समझौतों को बढ़ावा देने की संभावना है।
  • विधेयक डेटा प्रिंसिपल के पोस्टमॉर्टम प्राईवेसी (सहमति वापस लेने) के अधिकार को मान्यता देता है जो PDP विधेयक, 2019 में नहीं था लेकिन संयुक्त संसदीय समिति (JPC) द्वारा इसकी सिफारिश की गई थी।

भारत ने डेटा संरक्षण व्यवस्था को कैसे मज़बूत किया?

  • न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ 2017:
    • अगस्त 2017 में न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि भारतीयों के पास निजता का संवैधानिक रूप से संरक्षित मौलिक अधिकार है जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का एक अभिन्न अंग है।
  • बी.एन. श्रीकृष्ण समिति 2017:
    • सरकार ने अगस्त 2017 में न्यायमूर्ति बी. एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में डेटा संरक्षण के लिये विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की, जिसने डेटा संरक्षण विधेयक से संबंधित मसौदा और अपनी रिपोर्ट जुलाई 2018 में प्रस्तुत की।
    • रिपोर्ट में भारत में गोपनीयता कानून को मज़बूत करने के लिये अनेकों सिफारिशें हैं, जिनमें डेटा के प्रसंस्करण और संग्रह पर प्रतिबंध, डेटा संरक्षण प्राधिकरण, भूल जाने का अधिकार, डेटा स्थानीयकरण आदि शामिल हैं।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021
    • आईटी नियम (2021) के तहत सोशल मीडिया साइट्स को अपने द्वारा होस्ट की जाने वाली सामग्री का अधिक ध्यान रखना आवश्यक है।

अन्य देशों में डेटा संरक्षण कानून

  • यूरोपीय संघ मॉडल:
    • सामान्य डेटा संरक्षण विनियम व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के लिये व्यापक डेटा संरक्षण कानून पर केंद्रित है।
    • यूरोपीय संघ में, निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में निहित है जो किसी व्यक्ति की गरिमा और उसके द्वारा उत्पन्न डेटा पर उसके अधिकार की रक्षा करने पर लक्षित है।
  • संयुक्त राष्ट्र मॉडल:
    • अमेरिका में गोपनीयता अधिकारों या सिद्धांतों का कोई समग्र विनियम नहीं है जैसा कि EU का GDPR, जो डेटा के उपयोग, संग्रह और प्रकटीकरण को विनियमित करता है।
    • इसके बजाय यह सीमित क्षेत्र-विशिष्ट विनियमन है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के लिये डेटा सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण अलग है।
    • गोपनीयता अधिनियम, इलेक्ट्रॉनिक संचार गोपनीयता अधिनियम जैसे  व्यापक कानून के माध्यम से व्यक्तिगत जानकारी तथा सरकार की गतिविधियों और शक्तियों को अच्छी तरह से परिभाषित एवं सूचित किया गया है
    • निजी क्षेत्र के लिये कुछ क्षेत्र आधारित विशिष्ट मानदंड हैं।
    • चीन मॉडल:पिछले 12 महीनों में डेटा गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी जारी किये गए नए चीनी कानूनों में व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून (PIPL) शामिल है जो नवंबर 2021 में लागू हुआ था।
    • यह चीनी डेटा विनियामकों को नए अधिकार प्रदान करता है ताकि व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग को रोका जा सके।
    • डेटा सुरक्षा कानून (DSL), जो सितंबर 2021 में लागू हुआ, व्यावसायिक डेटा को उनके महत्त्व के स्तरों के आधार पर वर्गीकृत करने की आवश्यकता है। DSL सीमा पार हस्तांतरण पर नए प्रतिबंध आरोपित करता है

राज्यपाल को पदच्युत करना

चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक राजनीतिक दल ने तमिलनाडु के राज्यपाल को हटाने का प्रस्ताव पेश किया।

  • सरकार बनाने के लिये पार्टी का चुनाव, बहुमत साबित करने की समय-सीमा, विधेयकों को लेकर बैठकें और राज्य प्रशासन के बारे में आलोचनात्मक बयान जारी करना हाल के वर्षों में राज्यों तथा राज्यपालों के बीच की कड़वाहट के मुख्य कारण रहे हैं।
  • इसके कारण, राज्यपाल को केंद्र के एक एजेंट, कठपुतली और रबर स्टैम्प जैसे नकारात्मक शब्दों के साथ संदर्भित किया जाने लगा है।

राज्यपाल को कैसे हटाया जा सकता है?

  • संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 के तहत राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह "राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत" पद धारण करता है।
  • यदि पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने से पूर्व इस प्रसादपर्यंतता को वापस ले लिया जाता है, तो राज्यपाल को पद छोड़ना पड़ता है।
  • राष्ट्रपति चूँकि प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से काम करता है, इसलिये राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया और हटाया जा सकता है।

राज्यों और राज्यपाल के बीच असहमति के मामले में क्या होता है?

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • राज्यपाल और राज्य के बीच मतभेद होने पर इसकी भूमिका के बारे में स्पष्ट संवैधानिक प्रावधान नहीं है।
    • मतभेदों का प्रबंधन परंपरागत रूप से एक-दूसरे की सीमाओं के सम्मान द्वारा निर्देशित किया जाता है।
  • न्यायालयों के फैसले:
    • सूर्य नारायण चौधरी बनाम भारत संघ (1981): राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति की प्रसादपर्यंतता न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राज्यपाल के पास कार्यकाल की कोई सुरक्षा नहीं होती है और राष्ट्रपति द्वारा प्रसादपर्यंतता वापस लेने से उसे किसी भी समय हटाया जा सकता है।
    • बीपी सिंघल बनाम भारत संघ (2010): सर्वोच्च न्यायालय ने प्रसादपर्यंतता सिद्धांत पर विस्तार से बताया। सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा कि 'प्रसादपर्यंतता' सिद्धांत पर कोई सीमा या प्रतिबंध नहीं है", लेकिन यह "प्रसादपर्यंतता की वापसी के कारण की आवश्यकता को समाप्त नहीं करता है"।
    • बेंच ने कहा कि न्यायालय यह मानकर चलेगी कि राष्ट्रपति के पास राज्यपाल को हटाने के लिये "ठोस और वैध" कारण थे लेकिन अगर कोई बर्खास्त किया गया राज्यपाल न्यायालय में आता है, तो केंद्र को अपने फैसले को न्यायोचित ठहराना होगा।
  • विभिन्न आयोगों द्वारा की गई सिफारिशें:
    • वर्षों से कई पैनल और आयोगों ने राज्यपालों की नियुक्ति और उनके कार्य करने के तरीके में सुधारों की सिफारिश की है। हालाँकि संसद द्वारा उन्हें कभी कानून नहीं बनाया गया।
  • सरकारिया आयोग (वर्ष 1988):
    • इसने सिफारिश की कि राज्यपालों को "दुर्लभ और बाध्यकारी" परिस्थितियों को छोड़कर पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिये।
    • बर्खास्त किये जाने की प्रक्रिया में राज्यपालों को स्पष्टीकरण अथवा अपना तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिलना चाहिये और केंद्र सरकार को इस संबंध में स्पष्टीकरण पर उचित विचार करना चाहिये।
    • आगे यह सिफारिश की गई है कि राज्यपालों को उनके निष्कासन के आधारों के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
  • वेंकटचलैया आयोग (वर्ष 2002):
    • इसने सिफारिश की कि आमतौर पर राज्यपालों को अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • यदि उन्हें कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाना है तो केंद्र सरकार को मुख्यमंत्री से परामर्श के बाद ही ऐसा करना चाहिये।
  • पुंछी आयोग (वर्ष 2010):
    • इसने संविधान से "राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत" वाक्यांश को हटाने का सुझाव दिया क्योंकि केंद्र सरकार की इच्छा पर राज्यपाल को हटाया नहीं जाना चाहिये।
    • इसके बजाय उसे केवल राज्य विधायिका के प्रस्ताव द्वारा हटाया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • ंघवाद का सुदृढ़ीकरण: राज्यपाल के पद के दुरुपयोग को रोकने के लिये भारत में संघीय व्यवस्था को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • इस संबंध में अंतर-राज्य परिषद और संघवाद के विकल्प के रूप में राज्यसभा की भूमिका को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • राज्यपाल की नियुक्ति की पद्धति में सुधार: राज्यपाल की नियुक्ति राज्य विधायिका द्वारा तैयार किये गए पैनल के आधार पर की जा सकती है, वहीं वास्तविक नियुक्ति का अधिकार अंतर-राज्य परिषद को होना चाहिये, न कि केंद्र सरकार को।
  • राज्यपाल के लिये आचार संहिता: इस 'आचार संहिता' में कुछ 'मानदंड और सिद्धांत' निर्धारित किये जाने चाहिये, जो राज्यपाल के 'विवेक' एवं उसकी शक्तियों के प्रयोग हेतु मार्गदर्शन कर सकें।

ग्रेट निकोबार का विकास

चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ग्रेट निकोबार द्वीप पर 72,000 करोड़ रुपए की महत्त्वाकांक्षी विकास परियोजना के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी दी है।

  • इस परियोजना को अगले 30 वर्षों में तीन चरणों में लागू किया जाना है।

प्रस्ताव

  • इसमें ग्रीनफील्ड शहर प्रस्तावित किया गया है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल (ICTT), ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और बिजली संयंत्र शामिल हैं।
  • बंदरगाह को भारतीय नौसेना द्वारा नियंत्रित किया जाएगा, जबकि हवाई अड्डे के दोहरे सैन्य-नागरिक कार्य के साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा देगा।
  • द्वीप के दक्षिण-पूर्वी और दक्षिणी तटों के साथ-साथ कुल 166.1 वर्ग किमी. की पहचान 2 किमी. और 4 किमी. के बीच चौड़ाई वाली तटीय पट्टी के साथ परियोजना के लिये की गई है।
  • करीब 130 वर्ग किमी. के जंगलों को डायवर्ज़न के लिये मंज़ूरी दी गई है, जहाँ 9.64 लाख पेड़ों के काटे जाने की संभावना है।

द्वीप को विकसित करने का उद्देश्य

  • आर्थिक कारण:
    • ग्रेट निकोबार कोलंबो से दक्षिण-पश्चिम और पोर्ट क्लैंग एवं सिंगापुर से दक्षिण-पूर्व में समान दूरी पर है तथा पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग कॉरिडोर के करीब स्थित है, जिसके माध्यम से दुनिया के शिपिंग व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा संचालित होता है।
    • प्रस्तावित ICTT संभावित रूप से इस मार्ग पर यात्रा करने वाले मालवाहक जहाज़ों के लिये एक केंद्र बन सकता है।
    • नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रस्तावित बंदरगाह कार्गो ट्रांसशिपमेंट में एक प्रमुख खिलाड़ी बनकर ग्रेट निकोबार को क्षेत्रीय और वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था में भाग लेने की अनुमति देगा।
  • रणनीतिक कारण:
    • ग्रेट निकोबार को विकसित करने का प्रस्ताव पहली बार वर्ष 1970 के दशक में पेश किया गया था, और राष्ट्रीय सुरक्षा तथा हिंद महासागर क्षेत्र के समेकन के लिये इसके महत्त्व को बार-बार रेखांकित किया गया है।
    • बंगाल की खाड़ी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दावे ने हाल के वर्षों में इस अनिवार्यता को और बढ़ा दिया है।संबंधित चिंताएँ:
    • पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण और नाजुक क्षेत्र में प्रस्तावित बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे के विकास ने कई पर्यावरणविदों को चिंतित कर दिया है।
    • वृक्षावरण की क्षति न केवल द्वीप पर वनस्पतियों और जीवों को प्रभावित करेगा बल्कि इससे समुद्र में अपवाह और तलछट जमाव में भी वृद्धि होगी जिससे क्षेत्र में प्रवाल भित्तियाँ प्रभावित होंगी।
    • पर्यावरणविदों ने विकास परियोजना के परिणामस्वरूप द्वीप पर मैंग्रोव के नुकसान को भी चिह्नित किया है।

चिंताओं को दूर करने हेतु सरकार के कदम

  • भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (ZSI) वर्तमान में यह आकलन करने की प्रक्रिया में है कि परियोजना के लिये कितनी प्रवाल भित्ति को स्थानांतरित करना होगा।
  • भारत ने इससे पहले मन्नार की खाड़ी से कच्छ की खाड़ी में एक प्रवाल भित्ति का सफलतापूर्वक स्थानांतरण किया है।
  • लेदरबैक कछुए के लिये एक संरक्षण योजना भी बनाई जा रही है।
  • सरकार के अनुसार परियोजना स्थल कैंपबेल खाड़ी और गलाथिया राष्ट्रीय उद्यान के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों के बाहर है।

ग्रेट निकोबार द्वीप समूह

  • परिचय:
    • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सबसे दक्षिणी भाग ग्रेट निकोबार का क्षेत्रफल 910 वर्ग किमी. है।
    • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बंगाल की पूर्वी खाड़ी में लगभग 836 द्वीपों का एक समूह है, जिसके दो समूह 150 किलोमीटर चौड़े दस डिग्री चैनल द्वारा अलग किये गए हैं।
    • चैनल के उत्तर में अंडमान द्वीप और दक्षिण में निकोबार द्वीप समूह स्थित हैं
    • ग्रेट निकोबार द्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित इंदिरा पॉइंट भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु है, जो इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के सबसे उत्तरी द्वीप से 150 किमी. से भी कम दूरी पर है।
    • इसमें 1,03,870 हेक्टेयर अद्वितीय और संकटग्रस्त उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।
    • यह एक बहुत समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें एंजियोस्पर्म, फ़र्न, जिम्नोस्पर्म, ब्रायोफाइट्स की 650 प्रजातियाँ शामिल हैं।
    • जीवों के संदर्भ में यहाँ 1800 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जिनमें से कुछ इस क्षेत्र के लिये स्थानिक हैं।
  • पारिस्थितिक विशेषताएँ:  
    • ग्रेट निकोबार बायोस्फीयर रिज़र्व पारिस्थितिक तंत्र के एक विस्तृत स्पेक्ट्रम को आश्रय देता है जिसमें उष्णकटिबंधीय गीले सदाबहार वन, समुद्र तल से 642 मीटर (माउंट थुलियर) की ऊंचाई तक पहुँचने वाली पर्वत  शृंखलाएँ और तटीय मैदान शामिल हैं
    • ग्रेट निकोबार में दो राष्ट्रीय उद्यानों, एक बायोस्फीयर रिज़र्व हैं
  • राष्ट्रीय उद्यान: कैंपबेल बे नेशनल पार्क और गैलाथिया नेशनल पार्क
  • बायोस्फीयर रिज़र्व: ग्रेट निकोबार बायोस्फीयर रिज़र्व।
  • जनजाति:
    • लगभग 200 की संख्या में मंगोलॉयड शोम्पेन जनजाति, विशेष रूप से नदियों और नालों के किनारे बायोस्फीयर रिज़र्व के जंगलों में रहते हैं।
    • एक अन्य मंगोलियाई जनजाति, निकोबारी, लगभग 300 की संख्या में, पश्चिमी तट के साथ बस्तियों में रहती थी
    • वर्ष 2004 में सुनामी ने जिन पश्चिमी तट की बस्तियों  को तबाह कर दिया था, उन्हें उत्तरी तट और कैम्पबेल खाड़ी में अफरा खाड़ी क्षेत्र में पुनःस्थापित कर दिया गया था।
The document Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
184 videos|557 docs|199 tests

Top Courses for UPSC

Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Objective type Questions

,

Exam

,

Viva Questions

,

pdf

,

mock tests for examination

,

Important questions

,

video lectures

,

Semester Notes

,

Sample Paper

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

Extra Questions

,

ppt

,

Free

,

Summary

,

past year papers

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

shortcuts and tricks

,

Previous Year Questions with Solutions

,

study material

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

practice quizzes

,

MCQs

;