समास किसे कहते हैं?
जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक संक्षिप्त शब्द का निर्माण करते हैं तो यह क्रिया समास कहलाती है। “समास” शब्द का अर्थ ही है पास रखना, छोटा करना। भाषा के प्रयोग में सामासिक शब्दों के प्रयोग से संक्षिप्तता और शैली में उत्कृष्टता एवं सटीकता आती है।
उदाहरण के लिए: “राजा का महल” कहने के स्थान पर “राजमहल” कहना अधिक उपयुक्त है। इससे स्पष्ट है कि दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने पर ही सामासिक शब्द का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में दो या दो से अधिक पद साथ आ जाते हैं।
समास-रचना में प्रायः दो पद होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। समास से बने पद को समस्तपद कहते हैं। समस्तपद के अंगों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को समास विग्रह कहते हैं। कुछ समास ऐसे भी होते हैं, जिनमें किसी भी पद की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है।
समास के भेद
इस आधार पर समास के निम्नलिखित भेद हैं:
- अव्ययीभाव
- तत्पुरुष
- कर्मधारय
- द्विगु
- द्वंद
- बहुव्रीहि
अव्ययीभाव समास
- जहाँ समस्तपद के दो खंडों में पहला अव्यय हो तथा संपूर्ण सामासिक पद भी प्रायः क्रियाविशेषण या अव्यय हो, वहाँ अव्ययीभाव समास होता है।
- अव्ययीभाव का शाब्दिक अर्थ है “अव्यय हो जाना”। इस समास में पहले शब्द की प्रधानता रहती है और संपूर्णपद प्रायः क्रिया विशेषण या अव्यय के रूप में प्रयुक्त होता है।
जैसे:

बिना संदेह पुनरुक्ति से बनने वाले समस्तपद भी अव्ययीभाव समास होते हैं, जैसे- घर-घर, गली-गली आदि।
तत्पुरुष समास
जहाँ समस्त पद के दो खंडों के बीच से परसर्ग (न, को, के लिए आदि) का लोप हो जाता है, वहाँ तत्पुरुष समास होता है।
तत्पुरुष का शाब्दिक अर्थ है- “उसका आदमी” जैसे राजकुमार (राजा का कुमार)। यहाँ “कुमार” प्रधान है। इस समास में दूसरा शब्द प्रधान होता है। इसकी बनावट में दो शब्दों के मध्य के कारक चिह्न “का / के / को / के / लिए / की / से/ में/पर” का लोप हो जाता है। इसके निम्नलिखित छह भेद होते हैं-
1. कर्म तत्पुरुष: इसमें कर्म की विभक्ति “को” का लोप हो जाता है।
जैसे:

2. करण तत्पुरुष: इसमें करण कारक की विभक्ति “से” का लोप हो जाता है।
जैसे:

3. संप्रदान तत्पुरुष: इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति “के लिए” का लोप हो जाता है।
जैसे:

4. अपादान तत्पुरुष: इसमें अपादान कारक की विभक्ति “से” का लोप हो जाता है।
जैसे:

5. संबंध तत्पुरुष: इसमें संबंध कारक की विभक्ति “का/ के / की” का लोप हो जाता है।
जैसे:

6. अधिकरण तत्पुरुष: इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति “में / पर” का लोप हो जाता है।
जैसे:

कर्मधारय समास
इस समास में पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेषण का विशेष्य होता है। जैसे- सद्गुण में दो पद हैं, सद् तथा गुण। चूंकि इसका पहला पद विशेषण है और दूसरा उसका विशेष्य है, अतः यहाँ कर्मधारय समास है। अत: जहाँ सामासिक पद के दोनों खंडों में विशेषण- विशेष्य या उपमान-उपमेय संबंध हो, वहाँ कर्मधारय समास होता है।
विशेषण – विशेषण बताने वाले पद। “सद्गुण” में “सद्” शब्द विशेषण है।
विशेष्य – जिसकी विशेषता बताई जाए। सद्गुण में “गुण” विशेष्य है।
उपमान – जिससे किसी की उपमा / तुलना की जाए। कमल नयन (कमल सरीखे नयन) में “कमल” उपमान है।
उपमेय – जिसकी उपमा / तुलना की जाए / कमलनयन (कमल सरीखे नयन) में “नयन” उपमेय है। कर्मधारय में पहला पद विशेषण या उपमावाचक होता है।
जैसे:
1. विशेषणवाचक

2. उपमावाचक

द्विगु समास
जिस सामासिक पद का पहला पद संख्यावाचक होता है और समूह का बोध कराता है, उसे द्विगु समास कहते हैं।
जैसे- त्रिभुवन। इसमें पहला पद संख्यावाचक और दूसरा पद प्रधान है, अतः यहाँ द्विगु समास है।

द्वंद समास
- इस समास में पहला और दूसरा दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों को मिलाते समय “और” शब्द का लोप कर दिया जाता है।
- जिस समास में दोनों पद प्रधान हों तथा विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच “और / तथा / एव / या” आदि का प्रयोग हो तो उसे द्वंद समास कहते हैं।
जैसे:

बहुव्रीहि समास
इस समास में कोई पद प्रधान नहीं होता है। वह अपने पदों से अलग किसी अन्य संज्ञा का विशेषण होता है जैसे- लंबोदर का अर्थ है-“गणेश” इस शब्द में “लंबा” और “उदर” दोनों पद अप्रधान हो गए हैं और अन्य शब्द “गणेश” की प्रधानता हो गई है। इसी प्रकार अन्य उदाहरण हैं

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