1. संस्कृत के उपसर्ग: संस्कृत भाषा से लिए गए उपसर्ग हिंदी में बहुतायत से प्रयोग होते हैं। इन उपसर्गों का प्रयोग करके शब्दों में विशेष अर्थों का निर्माण किया जाता है। उदाहरण के लिए, 'प्र' (प्रकाश), 'अनु' (अनुसरण), 'सु' (सुगम), आदि।
2. हिंदी के उपसर्ग: हिंदी मूल के उपसर्ग भी हिंदी भाषा में प्रयोग होते हैं और ये भी शब्दों के अर्थ में विशेष परिवर्तन लाते हैं। इनमें उपसर्ग जैसे 'दुर' (दुर्भाग्य), 'आ' (आगमन) शामिल हैं।
3. उर्दू के उपसर्ग और शब्द: उर्दू भाषा से आयातित उपसर्गों का उपयोग भी हिंदी में किया जाता है। उर्दू के उपसर्गों में 'बे' (बेघर), 'ला' (लाइलाज) आदि प्रमुख हैं।
4. संस्कृत के अव्यय: संस्कृत से लिए गए कुछ अव्यय शब्द भी हिंदी में उपसर्ग की तरह कार्य करते हैं। ये अव्यय शब्दों के अर्थ में विशेष रूप से परिवर्तन लाने में सक्षम होते हैं। उदाहरण के लिए, 'अधि' (अधिकार), 'अप' (अपशब्द) आदि।
उपसर्ग की तरह प्रयोग किए जाने वाले संस्कृत के अव्यय:
1. क्रिया प्रत्यय: क्रिया प्रत्यय क्रियाओं के अंत में जोड़े जाते हैं और वे क्रिया के तनाव, काल, पुरुष आदि को दर्शाते हैं।
उदाहरण के लिए:
2. संज्ञा प्रत्यय: संज्ञा प्रत्यय शब्दों के अंत में जोड़कर नई संज्ञाएं बनाई जाती हैं। इससे शब्द की श्रेणी संज्ञा में परिवर्तित हो जाती है।
उदाहरण के लिए:
3. विशेषण प्रत्यय: विशेषण प्रत्यय के जोड़ने से शब्द विशेषण में परिवर्तित होते हैं और वे किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं।
उदाहरण के लिए:
4. सर्वनाम प्रत्यय: ये प्रत्यय सर्वनामों के रूप में परिवर्तन करने के लिए जोड़े जाते हैं।
उदाहरण के लिए:
प्रत्ययों का महत्व इस बात में है कि वे भाषा की लचीलापन और अभिव्यक्ति की क्षमता को बढ़ाते हैं। शब्दों को नई व्याकरणिक विशेषताएँ प्रदान करने के अलावा, प्रत्यय शब्दों में सूक्ष्म नुक्तों को भी दर्शाने में सहायक होते हैं, जिससे वाक्य निर्माण में गहराई और प्रभावशालीता आती है।
प्रत्यय का प्रयोग करते समय भाषा की संरचना, अर्थ और उच्चारण पर विशेष ध्यान देना पड़ता है, जिससे कि भाषा की मानकता और शुद्धता बनी रहे।
जैसे:
कमजोर
दुर्गति
आजीवन
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