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The Hindi Editorial Analysis- 22nd December 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

Table of contents
चर्चा में क्यों?
कब शुरू हुआ विवाद?
महाराष्ट्र का दावा:
क्या थी केंद्र की प्रतिक्रिया?
रिपोर्ट का क्या हुआ?
कर्नाटक का दावा:
कर्नाटक के तर्क:
सर्दियों में बेलागवी में तनाव क्यों बढ़ जाता है?
क्या कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमा पर प्रबल भाषाई उग्रवाद का विस्फोट मुख्य रूप से भाषाई है?
सीमा विवाद के पीछे की राजनीति :

कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा तनाव, प्रतिस्पर्धी राजनीति का परिणाम  

चर्चा में क्यों?

  • कर्नाटक के सीमावर्ती कस्बे बेलगावी पर लंबे समय से चले आ रहे विवाद को लेकर कर्नाटक-महाराष्ट्र अंतर्राज्यीय सीमा पर एक बार फिर तनाव की स्थिति हो गई है।
  • महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देते हुए, कर्नाटक के पांच जिलों के 865 गांवों की मांग करते हुए एक याचिका दायर की है।

कब शुरू हुआ विवाद?

  • 1957 का सीमा विवाद, राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद शुरू हुआ।
  • यह अधिनियम न्यायमूर्ति फ़ज़ल अली आयोग के निष्कर्षों पर आधारित था, जिसे 1953 में नियुक्त किया गया था और दो साल बाद उसने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • 1 नवंबर, 1956 को मैसूर राज्य - जिसे बाद में कर्नाटक का नाम दिया गया - का गठन किया गया और राज्य और पड़ोसी बॉम्बे राज्य - बाद में महाराष्ट्र - के बीच मतभेद उभर आए।

महाराष्ट्र का दावा:

  • महाराष्ट्र ने बेलगावी पर अपना दावा किया, जो तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, क्योंकि यहां मराठी भाषी आबादी काफी ज्यादा है।
  • इसने 814 मराठी भाषी गांवों पर भी दावा किया, जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा हैं, जिसके कारण एक दशक लंबे हिंसक आंदोलन और महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) का गठन हुआ, जो अभी भी जिले और इसी नाम के शहर के कुछ हिस्सों में प्रभावी है। महाराष्ट्र ने 2004 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

क्या थी केंद्र की प्रतिक्रिया?

  • महाराष्ट्र के विरोध और दबाव के बीच, केंद्र सरकार ने 25 अक्टूबर, 1966 को सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति मेहरचंद महाजन के नेतृत्व में एक महाजन आयोग का गठन किया।
  • आयोग ने अगस्त 1967 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें उसने कर्नाटक के 264 कस्बों और गांवों (निप्पनी, नंदगढ़ और खानपुर सहित) को महाराष्ट्र के साथ और महाराष्ट्र के 247 गांवों (दक्षिण सोलापुर और अक्कलकोट सहित) को कर्नाटक के साथ विलय करने की सिफारिश की।

रिपोर्ट का क्या हुआ?

  • हालांकि रिपोर्ट को 1970 में संसद में पेश किया गया था, लेकिन इसे चर्चा के लिए नहीं लिया गया था। सिफारिशों के कार्यान्वयन के बिना, मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र और कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को कर्नाटक का हिस्सा बनाने की मांग बढ़ती रही।
  • इस मुद्दे ने बेलागवी के सीमावर्ती क्षेत्रों में राजनीतिक ध्रुवीकरण को जन्म दिया, जिसमें कई लोग भाषा के आधार पर पार्टियों के साथ जुड़ गए।

कर्नाटक का दावा:

  • कर्नाटक सरकार ने महाराष्ट्र में जठ तालुक पर अपना दावा किया है, जिससे कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। बाद में उन्होंने यह भी दावा किया कि महाराष्ट्र में सोलापुर और अक्कलकोट क्षेत्र कर्नाटक के हैं।

कर्नाटक के तर्क:

  • कर्नाटक का कहना है कि अधिनियम और 1967 की महाजन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भाषाई आधार पर किया गया सीमांकन अंतिम है।
  • कर्नाटक ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 का सहारा लेते हुए तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के पास राज्यों की सीमाओं को तय करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है, और केवल संसद के पास ही ऐसा करने की शक्ति है।
  • हालांकि, महाराष्ट्र ने संविधान के अनुच्छेद 131 का उल्लेख किया है, जो कहता है कि केंद्र सरकार और राज्यों के बीच विवादों से संबंधित मामलों में सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र है।

सर्दियों में बेलागवी में तनाव क्यों बढ़ जाता है?

  • 2007 में, कर्नाटक ने इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए बेलगावी में सुवर्ण विधान सौध (विधान सभा) का निर्माण शुरू किया। भवन का उद्घाटन 2012 में किया गया था, और शीतकालीन विधायिका सत्र यहां सालाना आयोजित किए जाते हैं।
  • जब भी बेलगावी में कर्नाटक विधानसभा का सत्र आयोजित होता है, सीमा संबंधी मुद्दे उभर आते हैं।

क्या कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमा पर प्रबल भाषाई उग्रवाद का विस्फोट मुख्य रूप से भाषाई है?

  • द्विभाषिकता की परंपरा क्षेत्र की संस्कृति का एक आवश्यक तत्व रही है। विवादित सीमा के दोनों ओर जातियों और समुदायों के अपने विस्तारित परिवार इसके दोनों ओर फैले हुए हैं।
  • दो भाषाओं, संस्कृतियों और राज्यों के बीच मैत्री और सांस्कृतिक उलझाव से पता चलता है कि विवाद भले ही भाषा के नाम पर है, लेकिन यह मूल रूप से भाषाई नहीं है। यह एक सीमा के नाम पर है, लेकिन सार रूप में यह क्षेत्रीय भी नहीं है।

सीमा विवाद के पीछे की राजनीति :

  • कर्नाटक में चुनाव करीब हैं और हाल के दिनों में, राज्य में बहुत से मुद्दे उभर कर सामने आए हैं।
  • इस प्रकार आर्थिक बंदी, हिजाब और लव-जिहाद को मुद्दा बनाकर बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक के खिलाफ लामबंद कर इन वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास किया जा रहा है। राजनीतिक नेताओं को असंतोष को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

सच तो यह है कि उनके लिए न तो भाषा और न ही राज्य की सीमा पर बसे लोग कोई मुद्दा हैं, जैसा कि उन्हें होना चाहिए।

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