UNSC में भारत की अध्यक्षता
चर्चा में क्यों ?
1 दिसंबर को, भारत ने वर्ष 2021-22 में परिषद के निर्वाचित सदस्य के रूप में अपने दो वर्ष के कार्यकाल में दूसरी बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अध्यक्षता संभाली है।
- भारत ने इससे पहले अगस्त 2021 में UNSC की अध्यक्षता संभाली थी।
भारत की अध्यक्षता में आगे की राह
- बहुपक्षवाद में सुधार:
- भारत सुरक्षा परिषद में "अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा हेतु: सुधारवादी बहुपक्षवाद (NORMS) हेतु नवीन अभिविन्यास (New Orientation for Reformed Multilateralism- NORMS)" पर "उच्च स्तरीय खुली चर्चा" आयोजित करेगा।
- मानदंडों में वर्तमान बहुपक्षीय संरचना में सुधारों की परिकल्पना की गई है, जिसके केंद्र में संयुक्त राष्ट्र है, ताकि इसे अधिक प्रतिनिधिक और उद्देश्य के लिये उपयुक्त बनाया जा सके।
- आतंकवाद को रोकना:
- 'आतंकवादी कृत्यों के कारण अंतर्रारास्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये खतरा: आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये वैश्विक दृष्टिकोण- चुनौतियाँ और आगे की राह विषय पर उच्च स्तरीय ब्रीफिंग की योजना बनाई गई है।
- यह ब्रीफिंग आतंकवाद के खतरे का मुकाबला करने के लिये सामूहिक और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करने का इरादा रखती है। अंतर
UNSC
- परिचय:
- सुरक्षा परिषद की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
- संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंग हैं - महासभा (UNGA), ट्रस्टीशिप काउंसिल, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और सचिवालय।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतर्रारास्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के जनादेश के साथ, वैश्विक बहुपक्षवाद का केंद्र बिंदु है।
- महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा की जाती है।
- UNSC और UNGA संयुक्त रूप से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का चुनाव करते हैं।
- संरचना:
- UNSC का गठन 15 सदस्यों (5 स्थायी और 10 गैर-स्थायी) द्वारा किया गया है।
- सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन हैं।
- गौरतलब है कि इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो वर्ष की अवधि के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है।
- पाँच सदस्य एशियाई या अफ्रीकी देशों से,
- दो दक्षिण अमेरिकी देशों से,
- एक पूर्वी यूरोप से और
- दो पश्चिमी यूरोप या अन्य
- भारत की सदस्यता:
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्य के रूप में सात बार सेवा की है और जनवरी 2021 में भारत ने आठवीं बार UNSC की अस्थायी सदस्यता ग्रहण की है।
- भारत UNSC में एक स्थायी सीट की वकालत करता रहा है।
- मतदान की शक्तियाँ:
- सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक मत होता है। सभी मामलों पर सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थायी सदस्यों सहित नौ सदस्यों के सकारात्मक मत द्वारा लिये जाते हैं, जिसमें सदस्यों की सहमति अनिवार्य है।
- पाँच स्थायी सदस्यों में से यदि कोई एक भी प्रस्ताव के विपक्ष में वोट देता है तो वह प्रस्ताव पारित नहीं होता है।
- कार्य:
- UNSC मध्यस्थता के माध्यम से पक्षकारों को एक समझौते तक पहुँचने, विशेष दूत नियुक्त करने, संयुक्त राष्ट्र मिशन भेजने या विवाद को सुलझाने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासचिव से अनुरोध करने में मदद करके शांति प्रदान करता है।
- यह जनादेश के विस्तार, संशोधन या समाप्ति के लिये भी मतदान कर सकता है।
- सुरक्षा परिषद महासचिव और परिषद सत्रों की आवधिक रिपोर्ट के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के कार्य की देखरेख करती है। यह अकेले इन कार्यों के संबंध में निर्णय ले सकती है, जिसे लागू करने के लिये सदस्य राज्य बाध्य हैं।
UNSC से संबद्ध चुनौतियाँ
- प्रासंगिकता में कमी:
- प्रासंगिकता और विश्वसनीयता खोने के लिये परिषद की आलोचना की जाती है।
- भारत के विदेश मंत्री के अनुसार, UNSC में संकीर्ण नेतृत्त्व है और एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है, इसलिये "रिफ्रेश बटन" के लिये दबाव डालने का आह्वान किया गया है।
- बहुपक्षवाद की कमी:
- सीरियाई युद्ध संकट और कोविड -19 महामारी के मद्देनजर परिषद के बहुपक्षवाद की कमी की भी आलोचना की गई है।
- प्रतिनिधित्त्व में कमी:
- 54 देशों वाले महत्त्वपूर्ण महाद्वीप- अफ्रीका की अनुपस्थिति के कारण कई वक्ताओं का दावा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कम प्रभावी है क्योंकि इसमें क्षेत्रीय प्रतिनिधित्त्व में कमी है।
- वीटो शक्ति का दुरुपयोग:
- कई विशेषज्ञों और अधिकांश राज्यों ने वीटो शक्ति की लगातार आलोचना की है, इसे "विशेषाधिकार प्राप्त लोगों का स्वयं-चुना हुआ क्लब" और अलोकतांत्रिक बताया गया है तथा कोई निर्णय P-5 में से किसी एक सदस्य देश के हित में न होने पर यह परिषद महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर भी रोक लगाती है।
- P5 सदस्य देशों के रूप में वर्तमान वैश्विक व्यवस्था को देखे तो इनमे से तीन देश- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन ऐसे देश हैं जो कुछ वैश्विक भू-राजनीतिक मुद्दों के केंद्र बिंदु हैं जैसे- ताइवान मुद्दा और रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा।
आगे की राह
- केवल P5 देशों के विशेषाधिकारों को संरक्षित करने की अपेक्षा वैश्विक स्तर के अनेक मुद्दे हैं जिन पर UNSC को ध्यान देना चाहिये।
- P5 देशों और शेष विश्व के बीच शक्ति असंतुलन संबंधी सुधार की आवश्यकता है।
- संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों में, इसके चार्टर में और वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में सुधारित बहुपक्षवाद में विश्वास बनाए रखने के लिये UNSC में मूलभूत चुनौतियों का सख्ती से विश्लेषण किया जाना चाहिये तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से निपटान किया जाना चाहिये।
वासेनार अरेंजमेंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वियना, आयरलैंड में वासेनार अरेंजमेंट की 26वीं वार्षिक पूर्ण बैठक में भारत को अध्यक्षता सौंपी गई और भारत आधिकारिक तौर पर 1 जनवरी, 2023 से इसकी अध्यक्षता ग्रहण करेगा।
वासेनार अरेंजमेंट:
- परिचय:
- वासेनार अरेंजमेंट एक स्वैच्छिक निर्यात नियंत्रण व्यवस्था है। जुलाई, 1996 में औपचारिक रूप से स्थापित इस व्यवस्था में 42 सदस्य हैं जो पारंपरिक हथियारों और दोहरे उपयोग वाले सामानों एवं प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण पर जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं।
- दोहरे उपयोग से तात्पर्य एक वस्तु या प्रौद्योगिकी की क्षमता से है जिसका उपयोग कई उद्देश्यों के लिये किया जाता है - आमतौर पर शांतिपूर्ण और सैन्य।
- वासेनार अरेंजमेंट का सचिवालय वियना, ऑस्ट्रिया में है।
- सदस्य:
- इसमें 42 सदस्य राज्य हैं जिनमें अधिकतर उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और यूरोपीय संघ के राज्य शामिल हैं।
- भाग लेने वाले राज्यों को प्रत्येक छह माह पर व्यवस्था के बाहर के गंतव्यों के लिये अपने हथियारों के हस्तांतरण और कुछ दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं एवं प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण/अस्वीकृति की रिपोर्ट करने की आवश्यकता होती है।
- भारत वर्ष 2017 में इस व्यवस्था का सदस्य बना था।
- उद्देश्य:
- समूह पारंपरिक और परमाणु-सक्षम दोनों प्रकार की प्रौद्योगिकी के संबंध में सूचनाओं का नियमित रूप से आदान-प्रदान करता है, जिसे समूह के बाहर के देशों को हस्तांतरण या अस्वीकार किया जाता है।
- यह उन रसायनों, प्रौद्योगिकियों, प्रक्रियाओं और उत्पादों की विस्तृत सूचियों के रखरखाव और अद्यतनीकरण के माध्यम से किया जाता है जिन्हें सैन्य रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता को कमज़ोर करने वाले देशों या संस्थाओं के लिये प्रौद्योगिकी, सामग्री या घटकों की आवाजाही को नियंत्रित करना है।
- वासेनार अरेंजमेंट प्लेनरी: इसके निर्णय संबंधी अधिकार होते हैं।
- इसमें प्रतिभागी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं और आम तौर पर वर्ष में एक बार, दिसंबर में इनकी बैठक होती है।
- भाग लेने वाले राज्य बारी-बारी से प्लेनरी चेयर का पद धारण करते हैं।
- वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में प्लेनरी पद क्रमशः यूनाइटेड किंगडम और ग्रीस के पास था।
- सभी प्लेनरी निर्णय सर्वसम्मति से लिये जाते हैं।
भारत के लिये अध्यक्षता का महत्त्व
- आतंकवाद विरोधी प्रयासों को बढ़ावा:
- वासेनार अरेंजमेंट अध्यक्ष के रूप में भारत की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में आतंकवाद के खिलाफ देश की स्थिति में हाल ही में सुधार हुआ है।
- भारत आतंकवादी वित्तपोषण को रोकने के लिये वैश्विक हितधारकों को भी सक्रिय रूप से शामिल कर रहा है।
- भारतीय गृह मंत्री वर्तमान में नो मनी फॉर टेररिज़्म (NMFT) मंत्रिस्तरीय पहल के अध्यक्ष हैं।
- आतंकवादियों को हथियारों के इस्तेमाल से रोकना:
- प्लेनेरी के अध्यक्ष के रूप में, भारत आतंकवादियों या आतंकवाद का समर्थन करने वाले संप्रभु राष्ट्रों को हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिये निर्यात नियंत्रण को और अधिक मज़बूत करने हेतु समूह की चर्चाओं को संचालित करने की स्थिति में होगा।
- मज़बूत प्रसार-विरोधी ढाँचा:
- भारत के पश्चिमी पड़ोसी देशों में बिगड़ते आर्थिक संकट के साथ-साथ देश के समुदायों में ऐतिहासिक रूप से उदारवादी संप्रदायों के कट्टरपंथीकरण के कारण भारत के सामने कई तरह की चुनौतिायाँ खड़ी हो गई हैं।
- वासेनार अरेंजमेंट के तहत लाइसेंसिंग और प्रवर्तन संबंधी प्रक्रियों को मज़बूत करने तथा विमान प्रौद्योगिकी एवं डिजिटल जाँच संबंधी उपकरण जैसे क्षेत्रों में नए निर्यात नियंत्रणों को अपनाने से दक्षिण एशिया के लिये एक मज़बूत प्रसार-विरोधी ढाँचे के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा।
- अंतरिक्ष और रक्षा प्रौद्योगिकियों का लोकतंत्रीकरण:
- भारत उन तकनीकों और उनसे संबंधित प्रक्रियाओं तक पहुँच के लोकतंत्रीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जो भारत में नए उभरते रक्षा एवं अंतरिक्ष निर्माण क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में कार्य कर सकते हैं।
- भारत धीरे-धीरे डब्ल्यूए की नियंत्रण सूची में कम लागत वाली विविध वस्तुओं के उत्पादक के रूप में उभर रहा है।
अन्य निर्यात नियंत्रण संबंधी व्यवस्थाएँ
- परमाणु संबंधित प्रौद्योगिकी के नियंत्रण के लिये परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG)।
- रासायनिक और जैविक प्रौद्योगिकी, जिससे हथियार बनाया जा सकता है, के नियंत्रण के लिये ऑस्ट्रेलिया समूह (AG)।
- बड़े पैमाने पर विनाशक हथियारों को वितरित करने में सक्षम रॉकेट और अन्य हवाई वाहनों के के लिये मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR)।
आगे की राह
- इनकी सदस्यता न केवल अधिक प्रौद्योगिकी और उन तक भौतिक रूप से पहुँच की अनुमति प्रदान करती है बल्कि विश्व व्यवस्था के एक ज़िम्मेदार सदस्य के रूप में एक राष्ट्र की विश्वसनीयता को बढ़ाती है।
- भारत विश्व में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये तैयार है और एक उभरती हुई शक्ति होने के प्रयास का समर्थन करना चाहिये।
भारत-जर्मनी संबंध
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विदेशमंत्री ने नई दिल्ली में जर्मनी के विदेश मंत्री से मुलाकात की।
- जर्मनी के विदेश मंत्री की यात्रा G-7 और यूरोपीय संघ (European Union- EU) के देशों द्वारा रूस से 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत सेअधिक मूल्य पर तेल खरीदने वाले देशों से शिपिंग एवं बीमा सेवाओं को वापस लेने के लिये "ऑयल प्राइस कैप" यानी तेल की कीमतों की सीमा निर्धारित करने संबंधी योजना की शुरुआत के साथ हुई।
दोनों देशों के बीच वार्ता के प्रमुख बिंदु
- भारत और जर्मनी ने व्यापक प्रवासन और गतिशीलता साझेदारी पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों में लोगों के लिये अनुसंधान, अध्ययन और काम के लिये यात्रा को आसान बनाना है।
- यह समझौते दोनों देशों के बीच सबंधों के संदर्भ में "अधिक समकालीन साझेदारी का आधार" होगा।
- दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा तथा ऊर्जा संक्रमण पर भारत को जर्मनी की सहायता के साथ-साथ दोनों देशों की हिंद-प्रशांत रणनीति जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे शामिल थे इसके अलावा चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर वार्ता हुई।
G-7 और तेल मूल्य सीमा
- परिचय:
- यह यूरोपीय संघ की G-7 और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर रूस से कच्चे तेल की खेप/शिपमेंट की कीमत सीमा तय करने की योजना है, जो अभी के लिये 60 अमेरिकी डाॅलर प्रति बैरल आंकी गई है।
- इस मूल्य सीमा का मुख्य उद्देश्य हस्ताक्षरकर्त्ता देशों में कंपनियों को रूसी कच्चे तेल के कार्गो जहाज़ों को शिपिंग, बीमा, मध्यस्थता और अन्य संबद्ध सेवाओं को विस्तारित करने से प्रतिबंधित करना है जहाँ कच्चा तेल पूर्व निर्धारित प्रति बैरल 60 अमेरिकी डॉलर से अधिक किसी भी मूल्य पर बेचा गया हो।
- चूँकि यह 5 दिसंबर, 2022 को प्रभावी हुआ था, इसलिये यह सीमा केवल उन शिपमेंट पर लागू होगी जो प्रभावी होनेके बाद जहाज़ों पर "लोड" हुए हैं और पारगमन में शिपमेंट पर लागू नहीं होगा।
- भारत का पक्ष:
- यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने न केवल जारी रखने का फैसला किया है, बल्कि "निकट भविष्य" में रूस के साथ अपने व्यापार को भी दोगुना कर दिया है।
- यूक्रेन में युद्ध के बाद से रूसी तेल की खपत बढ़ाने के सरकार के फैसले के बचाव में यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि भारत की रूसी तेल की खपत यूरोपीय खपत का केवल छठा हिस्सा थी। इसकी तुलना प्रतिकूल रूप से नहीं की जानी चाहिये।
भारत-जर्मनी संबंध
- भारत-जर्मनी संबंध:
- भारत और जर्मनी के बीच के द्विपक्षीय संबंध साझा लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित हैं। भारत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी संघीय गणराज्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।
- जर्मनी, भारत को विकास परियोजनाओं में प्रति वर्ष 3 बिलियन यूरो का सहयोग देता है, जिसमें से 90% जलवायु परिवर्तन से मुकाबले और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के साथ-साथ स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य में काम आता है।
- जर्मनी महाराष्ट्र में 125 मेगावाट क्षमता के एक विशाल सौर संयंत्र के निर्माण में भी सहयोग कर रहा है, जो 155,000 टन वार्षिक CO2 उत्सर्जन की बचत करेगा।
- दिसंबर 2021 में जर्मनी के नए चांसलर की नियुक्ति के बाद भारत और जर्मनी ने सहमति व्यक्त की है कि दुनिया के प्रमुख लोकतांत्रिक देशों तथा रणनीतिक भागीदारों के रूप में दोनों देश साझा चुनौतियों से निपटने के लिये आपसी सहयोग की वृद्धि करेंगे, जहाँ जलवायु परिवर्तन उनके एजेंडे में शीर्ष विषय के रूप में शामिल होगा।
- आर्थिक सहयोग की चुनौती:
- वर्तमान में दोनों देशों के बीच एक पृथक द्विपक्षीय निवेश संधि का अभाव है। जर्मनी का भारत के साथ यूरोपीय संघ के माध्यम से द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश समझौता (Bilateral Trade and Investment Agreement- BTIA) कार्यान्वित है जहाँ उसके पास अलग से वार्ता कर सकने का अवसर नहीं है।
- इसके अलावा जर्मनी विशेष रूप से भारत के व्यापार उदारीकरण उपायों को लेकर संदेह रखता है और अधिक उदार श्रम नियमों की अपेक्षा रखता है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व:
- हिंद-प्रशांत (जिसका केंद्र बिंदु भारत है) जर्मनी और यूरोपीय संघ की विदेश नीति में अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वैश्विक आबादी के लगभग 65% का निवास है और विश्व के 33 मेगासिटीज़ में से 20 इसी क्षेत्र में हैं।
- यह क्षेत्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 62% और वैश्विक पण्य व्यापार में 46% की हिस्सेदारी रखता है।
- यह क्षेत्र कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के आधे से अधिक भाग का उद्गम क्षेत्र भी है जो इस क्षेत्र के देशों को स्वाभाविक रूप से जलवायु परिवर्तन और संवहनीय ऊर्जा उत्पादन एवं उपभोग जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में प्रमुख भागीदार बनाता है।
- जर्मनी और हिंद-प्रशांत:
- जर्मनी नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को सशक्त करने में अपने योगदान के लिये प्रतिबद्ध है।
- जर्मनी के हिंद-प्रशांत दिशा-निर्देशों के अंतर्गत संलग्नता की वृद्धि और उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भारत का उल्लेख किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा में भारत अब एक महत्त्वपूर्ण संधि या नोड बन सकता है।
- चूँकि भारत एक समुद्री महाशक्ति है और मुक्त एवं समावेशी व्यापार का मुखर समर्थक है, वह इस मिशन में जर्मनी (अंततः यूरोपीय संघ) का एक प्राथमिक भागीदार है।
आगे की राह
- भारत-जर्मनी संबंधों को मज़बूत करना:
- जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा और अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा सहित विभिन्न वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिये जर्मनी, भारत को एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है।
- इसके साथ ही जर्मनी में सत्ता में आई नई गठबंधन सरकार भारत के लिये दोनों देशों के बीच की रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने का अवसर प्रदान कर रही है।
- जर्मनी चीन का मुकाबला करने के लिये यूरोपीय संघ के माध्यम से कनेक्टिविटी परियोजनाओं को लागू करने का इच्छुक है। यह गठबंधन ‘भारत-यूरोपीय संघ BTIA’ के संपन्न होने की इच्छा रखता है और इसे संबंधों के विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में देखता है।
- आर्थिक सहयोग का दायरा:
- भारत और जर्मनी को बौद्धिक संपदा दिशा-निर्देशों के सहकारी लक्ष्यों को साकार करना चाहिये और व्यवसायों को भी संलग्न करना चाहिये।
- जर्मन कंपनियों को भारत में विनिर्माण केंद्र स्थापित करने के लिये उदारीकृत उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना का लाभ उठाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- जर्मनी ने एक वैक्सीन उत्पादन प्रतिष्ठान के लिये अफ्रीका को 250 मिलियन यूरो का ऋण देने की प्रतिबद्धता जताई है। भारत के सहयोग से सुविधाहीन पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र में ऐसा प्रतिष्ठान स्थापित किया जा सकता है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उत्तरदायित्त्वों की साझेदारी:
- भारत की ही तरह जर्मनी भी एक व्यापारिक राष्ट्र है। जर्मन व्यापार का 20% से अधिक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संपन्न होता है।
- यही कारण है कि जर्मनी और भारत विश्व के इस हिस्से में स्थिरता, समृद्धि और स्वतंत्रता को बनाए रखने तथा उसका समर्थन करने का उत्तरदायित्व साझा करते हैं। एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत के समर्थन में भारत और यूरोप दोनों के महत्त्वपूर्ण हित निहित हैं।
भारत-मध्यम एशिया के राष्ट्रीेय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक
चर्चा में क्यों?
6 दिसंबर, 2022 को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor- NSA) ने पहली बार मध्य एशियाई देशों- कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के अपने समकक्षों के साथ एक विशेष बैठक की मेजबानी की।
- इससे पहले जनवरी 2022 में, भारत के प्रधानमंत्री ने वर्चुअल प्रारूप में प्रथम भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन (India-Central Asia Summit) की मेज़बानी की थी।
NSAs की बैठक के प्रमुख बिंदु
- 30वीं वर्षगाँठ: यह पहली बार हुआ है जब कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSAs) किसी उच्च स्तरीय सुरक्षा बैठक के लिये दिल्ली में उपस्थित हुए।
- यह बैठक भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगाँठ के अवसर पर आयोजित की गई।
- अफगानिस्तान वार्ता का केंद्र: इस बैठक में मुख्य रूप से अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति और तालिबान शासन के तहत उस देश से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद के खतरे पर चर्चा की गई।
- चाबहार पर विचार-विमर्श: बैठक में शामिल NSAs ने मध्य एशिया के माध्यम से ईरान को रूस से जोड़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (International North-South Transport Corridor- INSTC) के ढाँचे के भीतर चाबहार बंदरगाह को शामिल करने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया।
- अन्य विचार-विमर्श: "नई और उभरती प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग, हथियारों और नशीली दवाओं की तस्करी, दुष्प्रचार फैलाने के लिये साइबर स्पेस के दुरुपयोग तथा मानव रहित हवाई प्रणालियों" के खिलाफ सामूहिक एवं समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता पर विचार-विमर्श किया गया।
- प्रक्रिया को औपचारिक/संस्थागत रूप देना: बैठक के दौरान, नेताओं ने शिखर सम्मेलन की प्रक्रिया को द्विवार्षिक रूप से आयोजित करने का निर्णय लेकर इसे संस्थागत बनाने पर सहमति व्यक्त की।
- नए तंत्र/प्रक्रिया का समर्थन करने के लिये नई दिल्ली में भारत-मध्य एशिया सचिवालय (India-Central Asia Secretariat) स्थापित किया जाएगा।
मध्य एशिया के साथ भारत के संबंध
- ऐतिहासिक संबंध: मध्य एशिया निस्संदेह भारत के सभ्यतागत प्रभाव का क्षेत्र है, फरगना घाटी ‘ग्रेट सिल्क रोड’ में भारत का क्रॉसिंग-पॉइंट था।
- बौद्ध धर्म ने स्तूपों और मठों के रूप में कई मध्य एशियाई शहरों में प्रसार किया।
- अमीर खुसरो, देहलवी, अल-बरुनी आदि जैसे प्रमुख विद्वान मध्य एशिया से आए और भारत में अपना नाम स्थापित किेया।
- राजनयिक संबंध: भारत मध्य एशियाई देशों को "एशिया का दिल" मानता है और वे शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- sco) के सदस्य भी हैं।
- मध्य एशियाई देश, पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद और विभिन्न आतंकी समूहों से इसके संबंधों के बारे में "जागरूक" हैं।
- आतंकवाद का मुकाबला करने में समान विचारधारा: भारत और मध्य एशियाई देशों में आतंकवाद और कट्टरता के खतरे का मुकाबला करने के दृष्टिकोण में समानता है।
- नवीनतम बैठक में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र व्यापक सम्मेलन को शीघ्र अपनाने का आह्वान किया गया था, जिसे भारत ने पहली बार वर्ष 1996 में प्रस्तावित किया था, लेकिन आतंकवाद की परिभाषा पर मतभेदों को लेकर दशकों से लटका हुआ है।
- अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत की भूमिका: भारत और मध्य एशियाई देशों ने अफगानिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये इसके प्रभावों पर चिंताओं को साझा किया है। भारत अफगानिस्तान में फिर से शांति स्थापित करने का प्रबल समर्थक रहा है।
- नवंबर 2021 में भारत ने अफगानिस्तान की स्थिति पर एक क्षेत्रीय संवाद की मेज़बानी की थी, जिसमें रूस, ईरान, कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के NSAs ने भाग लिया था।।
- चाबहार बंदरगाह पर पक्ष: भारत ने हाल ही में चाबहार बंदरगाह के नवीनीकरण के माध्यम से महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्ज की है। यह अश्गाबात समझौते का भी सदस्य है।
- अफगानिस्तान में मानवीय संकट के दौरान अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा अफगानी लोगों को आवश्यक सामान पहुँचाने में बंदरगाह ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- काबुल पर तालिबान के आधिपत्य से पहले भारत द्वारा विकसित बंदरगाह, शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल के माध्यम से भारत ने अफगानिस्तान को 100,000 टन गेहूँ और दवाएँ वितरित किया।
भारत-मध्य एशिया संबंधों को मज़बूत बनाने के क्रम में चुनौतियाँ
- पाकिस्तान की शत्रुता और अफगानिस्तान में व्याप्त अस्थिरता मध्य एशियाई देशों के साथ भारत के भौतिक संपर्क/कनेक्टिविटी को बाधित करने वाले प्रमुख कारक हैं।
- राजनीतिक रूप से, मध्य एशियाई देश अत्यधिक कमज़ोर हैं और आतंकवाद तथा इस्लामी कट्टरवाद जैसे खतरों से ग्रस्त हैं, जो इस क्षेत्र को एक परिवर्तनशील और अस्थिर बाज़ार बनाते हैं।
- बेल्ट एंड रोड पहल के माध्यम से चीन की भागीदारी ने इस क्षेत्र में भारत के प्रभाव को काफी कम कर दिया है।
- अफीम के बढ़ते उत्पादन (गोल्डन क्रिसेंट और गोल्डन ट्रायंगल) के साथ-साथ छिद्रपूर्ण सीमा (जहाँ से आसानी से घुसपैठ की जा सकती है) और बेलगाम भ्रष्टाचार इस क्षेत्र को नशीली दवाओं एवं धन की तस्करी का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बनाते हैं।
आगे की राह
- जब अन्य देश अपने-अपने दृष्टिकोण से इस क्षेत्र के साथ जुड़ते हैं, जैसे- चीन द्वारा आर्थिक दृष्टिकोण , तुर्किये द्वारा जातीय दृष्टिकोण और इस्लामी विश्व द्वारा धार्मिक दृष्टिकोण , तब शिखर स्तरीय वार्षिक बैठक के माध्यम से इस क्षेत्र को सांस्कृतिक व ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य देना भारत के लिये उपयुक्त होगा।
- मूल्य आधारित सांस्कृतिक नीति भारत-मध्य एशिया संबंधों को मज़बूत करने में मदद कर सकती है।
- भारत की बढ़ती वैश्विक दृश्यता और SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों में महत्त्वपूर्ण योगदान ने भारत को एक पर्यवेक्षक से इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण हितधारक के रूप में बदल दिया है।
- यूरेशिया में अपने नेतृत्त्व की भूमिका को आगे बढ़ाने के लिये अपने राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों का उपयोग करने हेतु मध्य एशिया भारत को एक आदर्श मंच प्रदान करता है।
भारत एवं ग्लोबल साउथ
चर्चा में क्यों?
भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता प्राप्त करने के साथ ही, भारत के विदेश मंत्री ने "वैश्विक दक्षिणी देशों की आवाज़" के रूप में भारत की भूमिका पर बल दिया, जिसका वैश्विक मंचों पर प्रतिनिधित्त्व कम है।
ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ
- 'ग्लोबल नॉर्थ' से तात्पर्य मोटे तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों है, जबकि 'ग्लोबल साउथ' के अंतर्गत एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश शामिल हैं।
- यह वर्गीकरण अधिक सटीक है क्योंकि इन देशों में , शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के संकेतक आदि के संदर्भ में काफी समानताएँ हैं।
- भारत और चीन जैसे कुछ दक्षिणी देश पिछले कुछ दशकों में आर्थिक रूप से विकसित हुए हैं।
- कई एशियाई देशों द्वारा हासिल की गई प्रगति को इस विचार को चुनौती देने के रूप में भी देखा जाता है कि उत्तरी देश हीं आदर्श है।
ग्लोबल उत्तर और ग्लोबल दक्षिण के उद्भव का कारण
- पूर्व वर्गीकरण की गैर-व्यवहार्यता:
- शीत युद्ध के बाद के विश्व में, प्रथम विश्व/तीसरा विश्व वर्गीकरण व्यवहार्य नहीं रह गया था, क्योंकि जब वर्ष 1991 में कम्युनिस्ट सोवियत संघ का विघटन हुआ तो अधिकांश देशों के पास पूंजीवादी अमेरिका के साथ किसी स्तर पर सहयोग करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था, जो उस समय एकमात्र वैश्विक महाशक्ति थी।
- पूर्व/पश्चिम देशों को अक्सर अफ्रीकी और एशियाई देशों के विषय में रूढ़िवादी सोच बनाए रखने वालो के रूप में देखा जाता था।
- विभिन्न देशों को एक ही श्रेणी में वर्गीकृत करना अत्यधिक सरल माना जा रहा था।
- वैश्विक दक्षिण देशों में समानताएँ:
- अधिकांश वैश्विक दक्षिणी देशों का उपनिवेश बनने का इतिहास रहा है। UNSC की स्थायी सदस्यता से बहिष्करण के कारण अंतर्राष्ट्रीय मंचों में इन देशों का प्रतिनिधित्त्व बहुत ही कम रहा है।
- अधिकांश वैश्विक दक्षिणी देशों के आज भी विकासशील रहने/कम विकसित होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह बहिष्करण भी रहा है।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये की गई पहल
- वैश्विक:
- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (BRICS) मंच
- भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका (IBSA) मंच
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस:
- मूल रूप से 19 दिसंबर को दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र दिवस की तारीख को वर्ष 2011 में 12 सितंबर को स्थानांतरित कर दिया गया था।
- यह उस तारीख को याद करता है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने विकासशील देशों के बीच तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने और लागू करने के लिये वर्ष 1978 में एक कार्य योजना अपनाई थी।
भारतीय
- ट्रिप्स छूट पर प्रस्ताव (Proposal on TRIPS Waiver):
- बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) में छूट जिसे पहली बार वर्ष 2020 में भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा प्रस्तावित किया गया था, में कोविड-19 टीकों और उपचारों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPRs) की अस्थायी वैश्विक आसानी शामिल होगी, ताकि उन्हें वैश्विक स्वास्थ्य का समर्थन करने और महामारी से बाहर निकलने का रास्ता मिल सके। कोविड-19 टीकों, दवाओं, चिकित्सीय और संबंधित प्रौद्योगिकियों पर समझौता।
- वैक्सीन मैत्री अभियान:
- वर्ष 2021 में भारत ने "वैक्सीन मैत्री" पहल नामक अपना ऐतिहासिक अभियान शुरू किया जो ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neighbourhood first policy) के अनुसार है।
ग्लोबल साउथ के विकास हेतु बाधाएँ
- हरित ऊर्जा कोष जारी करना:
- वैश्विक उत्सर्जन के प्रति ग्लोबल नॉर्थ देशों के उच्च योगदान के बावजूद, वे हरित ऊर्जा के वित्तपोषण के लिये भुगतान की उपेक्षा कर रहे हैं, जिसके लिये अंतिम पीड़ित सबसे कम उत्सर्जक हैं - कम विकसित देश।
रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव
- रूस-यूक्रेन युद्ध ने सबसे कम विकसित देशों (LDCs) को गंभीर रूप से प्रभावित किया जिससे खाद्य, ऊर्जा और वित्त से संबंधित चिंताएँ बढ़ गईं तथा LDCs की विकास संभावनाओं को खतरा उत्पन्न हो गया।
- चीन का हस्तक्षेप:
- चीन बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से ग्लोबल साउथ में तेज़ी से पैठ बना रहा है।
- हालाँकि, यह अभी भी संदेहास्पद है कि क्या BRI दोनों पक्षों के लिये लाभदायक होगा या यह केवल चीन के लाभ पर ध्यान केंद्रित करेगा।
अमेरिकी आधिपत्य
- विश्व को अब कई लोगों द्वारा बहुध्रुवीय माना जाता है लेकिन यह अकेला अमेरिका है जो अन्तराष्ट्रीय मामलों पर हावी है।।
- संसाधनों तक अपर्याप्त पहुँच:
- महत्त्वपूर्ण विकासात्मक परिणामों के लिये आवश्यक संसाधनों तक पहुँच में ग्लोबल नॉर्थ- साउथ विचलन ऐतिहासिक रूप से प्रमुख अंतरालों की विशेषता रही है।
- उदाहरण के लिये, औद्योगीकरण, वर्ष 1960 के दशक की शुरुआत से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के पक्ष में झुका हुआ है और इस संबंध में वैश्विक अभिसरण का कोई बड़ा प्रमाण नहीं मिला।
- कोविड-19 का प्रभाव:
- कोविड-19 महामारी ने पहले से मौजूद अंतराल को बढ़ा दिया है।
- महामारी के शुरुआती चरणों से निपटने में न केवल देशों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, बल्कि आज जिन सामाजिक और व्यापक आर्थिक प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, वे ग्लोबल साउथ के लिये अधिक खराब रहे हैं।
- घरेलू अर्थव्यवस्थाओं की भेद्यता अब अर्जेंटीना और मिस्र से लेकर पाकिस्तान और श्रीलंका तक के देशों में कहीं अधिक स्पष्ट है।
भारत ग्लोबल साउथ कीआवाज़ कैसे बन सकता है?
- वर्तमान समय में ग्लोबल साउथ को अग्रणी बनाने के लिये विकासशील देशों के बीच निंदनीय क्षेत्रीय राजनीति पर अंकुश लगाने हेतु भारत को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
- भारत को इस तथ्य को स्वीकार करने की आवश्यकता है कि ग्लोबल साउथ एक सुसंगत समूह नहीं है और न ही इसका कोई साझा एजेंडा है। धन, शक्ति, व क्षमताओं के मामले में आज ग्लोबल साउथ में बहुत अंतर है।
- यह विकासशील देशों के विभिन्न क्षेत्रों और समूहों के अनुरूप सक्रिय भारतीय भूमिका की आवश्यकता है।
- भारत पुरानी वैचारिक लड़ाइयों पर लौटने के बजाय व्यावहारिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करके उत्तर और दक्षिण के बीच एक पुल बनने के लिये उत्सुक है।
- यदि भारत इस महत्वाकांक्षा को प्रभावी नीति में बदल सकता है, तो सार्वभौमिक और विशेष लक्ष्यों की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है।