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Essays (निबंध): December 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

पुलिस सुधार की ज़रूरत

संदर्भ

भारत में विधि-व्यवस्था बनाए रखने और अपराधों की जाँच करने का दायित्व राज्य पुलिस बल पर है, जबकि केंद्रीय बल उन्हें खुफिया और आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों (जैसे उपद्रव या विद्रोह) से निपटन में सहायता देते हैं। केंद्र और राज्य सरकार के बजट का लगभग 3% पुलिस व्यवस्था पर खर्च किया जाता है।

  • भारत में पुलिस कार्य का संचालन या नियंत्रण करने वाला विधिक और संस्थागत ढाँचा हमें अंग्रेज़ों से विरासत में मिला है। वर्तमान कानूनी ढाँचा, जिसमें पुलिस अधिनियम 1861 और अन्य राज्य विशिष्ट कानून शामिल हैं, एक जवाबदेह पुलिस बल स्थापित करने में अधिक सक्षम नहीं है।
  • जबकि कई सुधार प्रस्तावों को भारत सरकार और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चिह्नित किया गया है, ऐसे सुधार वांछित सीमा तक प्राप्त या कार्यान्वित नहीं किये गए हैं। इस परिदृश्य में, एक कुशल पुलिस व्यवस्था की ओर आगे बढ़ने के लिये आवश्यक है कि विधिक एवं संस्थागत ढाँचे में उपयुक्त संशोधन किया जाए।

भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में पुलिस की आदर्श भूमिका क्या है?

  • पुलिस बलों की प्राथमिक भूमिका है कानूनों को बनाए रखना एवं प्रवर्तित करना, अपराधों की जाँच करना और देश में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • भारत जैसे विशाल एवं वृहत आबादी वाले देश में पुलिस बल अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभा सकें, इसके लिये आवश्यक है कि कर्मियों, हथियार, फोरेंसिक, संचार एवं परिवहन सहायता के मामले में वे अच्छी तरह से सुसज्जित हों।
  • इसके अलावा, उनके पास अपने दायित्वों को पेशेवर रूप पूरा कर सकने के लिये परिचालनात्मक स्वतंत्रता हो, उनके लिये संतोषजनक कार्य दशा हो (जैसे विनियमित कार्य के घंटे और पदोन्नति के अवसर), जबकि खराब प्रदर्शन या शक्ति के दुरुपयोग के लिये उन्हें जवाबदेह बनाया जा सके।
  • चूँकि अपराध और राज्य विरोधी कृत्यों/विद्रोहों का स्वरूप बदलता जा रहा है और वे अधिक परिष्कृत होते जा रहे हैं, समय-समय पर पुलिस सुधार किया जाना भी आवश्यक है।

पुलिस सुधारों पर विभिन्न समितियाँ/आयोग

Essays (निबंध): December 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthlyभारत में पुलिस कार्य से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • निम्न पुलिस-जनसंख्या अनुपात: जनवरी 2016 में राज्य पुलिस बलों में 24% रिक्तियाँ (लगभग 5.5 लाख रिक्तियाँ) दर्ज की गई थीं। इस प्रकार, वर्ष 2016 में जबकि अनुमत पुलिस क्षमता प्रति लाख व्यक्ति पर 181 पुलिसकर्मी होनी चाहिये थी, इनकी वास्तविक संख्या 137 ही थी। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र (UN) ने प्रति लाख जनसंख्या पर 222 पुलिसकर्मियों की अनुशंसा की है।
  • कर्मियों की कमी के परिणामस्वरूप पुलिसकर्मियों पर कार्य का अत्यधिक बोझ होता है, जो न केवल उनकी प्रभावशीलता एवं दक्षता को कम करता है (जिसके परिणामस्वरूप जाँच कार्य ठीक से नहीं हो पाता), बल्कि इससे मनोवैज्ञानिक संकट भी उत्पन्न होता है और लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जाती है।
  • राजनीतिक दबाव: पुलिस कानूनों के अनुसार, केंद्रीय और राज्य पुलिस बल– दोनों ही राजनीतिक कार्यकारियों के नियंत्रण में रखे गए हैं। राजनीतिक नेताओं द्वारा प्रायः ही राज्य के वर्तमान राजनीतिक मिज़ाज के अनुसार पुलिस की प्राथमिकताओं के साथ छेड़छाड़ की जाती है।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने वर्ष 2007 में पाया था कि राजनेताओं द्वारा व्यक्तिगत या राजनीतिक कारणों से पुलिसकर्मियों को अनुचित रूप से प्रभावित किया जाता है।
  • औपनिवेशिक विरासत: वर्ष 1857 के विद्रोह के बाद देश के पुलिस प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के लिये अंग्रेज़ सरकार द्वारा वर्ष 1861 का पुलिस अधिनियम लाया गया था। यह अधिनियम गणतांत्रिक भारत के 75 वर्ष बीतने के साथ अब जनसंख्या की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं रह गया है।
  • जनता की धारणा: द्वितीय ARC रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में पुलिस-पब्लिक संबंध असंतोषजनक है क्योंकि आम लोग पुलिस को भ्रष्ट, अक्षम एवं गैर-जवाबदेह मानते हैं और प्रायः उनसे संपर्क करने में संकोच करते हैं।
  • अवसंरचनात्मक कमी: वर्तमान पुलिस बलों के लिये सुदृढ़ संचार सहायता, आधुनिक हथियारों और उच्च गतिशीलता की आवश्यकता है। वर्ष 2015-16 के कैग ऑडिट (CAG Audits) में पाया गया कि राज्य पुलिस बलों के पास हथियारों की कमी है।
    • इसके अतिरिक्त, ‘पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो’ ने पाया कि राज्य बलों के पास आवश्यक वाहनों के स्टॉक में 30.5% की कमी है।
  • बदलती प्रौद्योगिकी, चुनौतीपूर्ण होता पुलिस कार्य: अगले दशक में डिजिटलीकरण, हाइपरकनेक्टिविटी और डेटा की घातीय वृद्धि में तेज़ी आने का अनुमान है।
    • जैविक हथियार (Bioweapons) और साइबर हमले जैसे विभिन्न क्षेत्रों के अभिसरण से प्रभावी पुलिस कार्य के लिये खतरा उत्पन्न हुआ है।

आगे की राह

  • पुलिस बल को एक ‘स्मार्ट’ बल बनाना: भारतीय पुलिस बल को सख़्त एवं संवेदनशील (Strict and Sensitive), आधुनिक एवं गतिशील (Modern and Mobile), सतर्क एवं जवाबदेह (Alert and Accountable), विश्वसनीय एवं उत्तरदायी (Reliable and Responsive) और तकनीनी कुशल एवं प्रशिक्षित (Tech Savvy and Trained) बनाने की आवश्यकता है।
    • विभिन्न अध्ययनों से संकेत मिलता है कि जब पुलिस अधिकारी नागरिकों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करते हैं, संवाद में उन्हें बराबर की अभिव्यक्ति का अवसर देते हैं और पारदर्शिता एवं जवाबदेही के सजग विचारों से निर्देशित होते हैं तो यह लोगों द्वारा कानूनों के अनुपालन को सुदृढ़ करता है और अपराध को प्रेरित करने वाले परिदृश्यों में सुधार लाता है।
  • ‘कम्युनिटी पुलिसिंग’ को बढ़ावा देना: सामुदायिक विधि-व्यवस्था कार्य या कम्युनिटी पुलिसिंग (Community Policing) को बढ़ावा देना विवेकपूर्ण होगा, क्योंकि इसमें अपराध एवं अपराध से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिये पुलिस और समुदाय के सदस्य मिलकर कार्य करते हैं तथा यह जनता-पुलिस संबंधों में भी सुधार लाता है।
  • पुलिस शिकायत प्राधिकरण की स्थापना: सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, पुलिस कदाचार की शिकायतों की जाँच के लिये एक स्वतंत्र शिकायत प्राधिकरण की आवश्यकता है।
    • आदर्श पुलिस अधिनियम 2006 के अनुरूप, प्रत्येक राज्य को एक प्राधिकरण की स्थापना करनी चाहिये जिसमें उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, नागरिक समाज के सदस्यों, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों और दूसरे राज्य के लोक प्रशासकों को रखा जाए।
  • साइबर-अपराध का मुक़ाबला करने के लिये साइबर-पुलिसिंग को मज़बूत करना: चूँकि अपराध अधिक परिष्कृत, जटिल और अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति के होते जा रहे हैं, नए डिजिटल अन्वेषण एवं डेटा प्रबंधन क्षमताओं के साथ-साथ नवीन एआई-संवर्द्धित साधनों का होना महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण के लिये, देश भर में साइबर अपराध की स्थिति को उपयुक्त रूप से समझने के लिये संबंधित आपराधिक आँकड़ों को अद्यतन किया जाना आवश्यक है।
  • नियुक्तियों में पारदर्शिता: आपराधिक न्याय प्रणाली की संरचना को सुदृढ़ करने हेतु पुलिस सुधार महत्त्वपूर्ण है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप पुलिस अधिनियम, 1861 में संशोधन किया जाना चाहिये।
    • चूँकि पुलिस महानिदेशक (राज्य में पुलिस व्यवस्था के प्रमुख) की नियुक्ति का विषय पुलिस प्रशासन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, ऐसी नियुक्तियों के लिये एक पारदर्शी और योग्यता आधारित प्रक्रिया तैयार की जानी चाहिये।
  • महिलाओं के निम्न प्रतिनिधित्व के मुद्दे को संबोधित करना: उल्लेखनीय है कि संसदीय स्थायी समिति द्वारा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पुलिस बल में महिलाओं का 33% प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु एक रोडमैप तैयार करने की सलाह दी गई है। इसने प्रत्येक ज़िले में कम से कम एक महिला पुलिस स्टेशन स्थापित करने की भी अनुशंसा की है।

भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता का उपयोग

संदर्भ

भारत ने वर्ष 2005-06 में जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) की अवसर खिड़की में प्रवेश कर लिया था और वर्ष 2055-56 तक यह वहाँ बना रहेगा। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश वर्ष 2041 के आसपास अपने चरम पर होगा, जब कामकाजी आयु (20-59 वर्ष) की आबादी की हिस्सेदारी 59% तक पहुँचने का अनुमान है। यह भारत के आर्थिक विकास के लिये वृहत संभावनाओं के द्वार खोलता है।

  • लेकिन इन संभावनाओं का अनिवार्य अर्थ यह नहीं है कि भारत स्वतः इन्हें साकार कर लेगा। यह एक ऐसा अवसर है जिसका दोहन तभी किया जा सकता है जब परिस्थितियाँ अनुकूल हों या अनुकूल स्थितियों का सृजन किया जाए। इन अनुकूल स्थितियों में शामिल हैं—एक स्वस्थ आबादी (विशेष रूप से स्वस्थ महिलाएँ एवं बच्चे), शिक्षित युवा आबादी (विशेष रूप से शिक्षित बालिकाएँ), एक कुशल कार्यबल, एक उच्च प्रदर्शन करती अर्थव्यवस्था (जो आवश्यक उच्च गुणवत्तायुक्त नौकरियों का सृजन कर रही हो) और लाभकारी रोज़गार में लोगों की संलग्नता।
  • यह भारत के लिये अपनी आबादी की जनसांख्यिकीय क्षमता का दोहन करने और वास्तविक आर्थिक विकास हासिल करने के लिये पर्यावरण को सक्षम बनाने की ओर आगे बढ़ने का समय है।

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का क्या महत्त्व है?

  • धारणा यह है कि एक बड़ी युवा आबादी का अर्थ है अधिक मानव पूंजी, अधिक आर्थिक विकास और बेहतर जीवन स्तर।
  • कामकाजी आयु के लोगों की उच्च आबादी और कम आश्रित आबादी के कारण बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधियों से बेहतर आर्थिक विकास की स्थिति बनती है।
    • पिछले सात दशकों में कामकाजी आयु की आबादी की हिस्सेदारी 50% से बढ़कर 65% हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप निर्भरता अनुपात (कामकाजी आयु आबादी में बच्चों और वृद्ध जनों की संख्या) में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
  • विश्व जनसंख्या परिप्रेक्ष्य-2022 के अनुसार, भारत के पास विश्व स्तर पर सबसे बड़ा कार्यबल होगा।
  • अगले 25 वर्षों में प्रत्येक पाँच कामकाजी आयु वर्ग के व्यक्तियों में से एक भारत में रह रहा होगा।

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • महिला श्रम बल भागीदारी का निम्न स्तर: भारत की श्रम शक्ति कार्यबल में महिलाओं की अनुपस्थिति की बाधा से ग्रस्त है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, 2018-19 के अनुसार भारत में 15 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में 26.4% और शहरी क्षेत्रों में 20.4% तक के निम्न स्तर पर है।
  • उच्च ‘ड्रॉपआउट’ दर: जबकि भारत के 95% से अधिक बच्चे प्राथमिक स्कूल में नामांकित होते हैं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) पुष्टि करते हैं कि सरकारी स्कूलों में बदतर बुनियादी ढाँचे, प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी और बाल कुपोषण ने बदतर ‘लर्निंग आउटकम’ और ड्रॉपआउट अनुपात में वृद्धि जैसे परिणाम दिये हैं।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश खिड़की में असमानता: भारतीय जनसंख्या की विषमता के कारण विभिन्न राज्यों में जनसांख्यिकीय लाभांश की खिड़की अलग-अलग है। केरल की आबादी पहले ही वृद्ध हो रही है, जबकि बिहार के कार्यबल में वर्ष 2051 तक वृद्धि होने का अनुमान है।
  • वर्ष 2031 तक 22 प्रमुख राज्यों में से 11 में कामकाजी आयु वर्ग की आबादी कम होगी।
  • रोज़गारहीन विकास: विऔद्योगीकरण (Deindustrialization), वि-वैश्वीकरण (Deglobalization) और चतुर्थ औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution 4.0) के आलोक में इस बात की चिंता बढ़ रही है कि भविष्य का विकास रोज़गारहीनता के साथ घटित होगा।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2019 कामकाजी आयु आबादी में अनुमानित वार्षिक वृद्धि और उपलब्ध नौकरियों की संख्या के बीच के अंतराल को उजागर करता है।
  • भारत में अर्थव्यवस्था की अनौपचारिक प्रकृति भारत में जनसांख्यिकीय संक्रमण के लाभों को प्राप्त करने के मार्ग में एक और बाधा है।

आगे की राह

  • शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाना: ग्रामीण और शहरी दोनों परिवेशों में, सार्वजनिक स्कूल प्रणाली को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रत्येक बच्चा हाई स्कूल तक की शिक्षा पूरी करे और कौशल, प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक शिक्षा की ओर आगे बढ़े।
  • मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOOCS) के कार्यान्वयन के साथ-साथ स्कूल पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण और ओपन डिजिटल विश्वविद्यालयों की स्थापना भारत में योग्य कार्यबल के सृजन में आगे और योगदान कर सकेगी।
  • स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना: स्वास्थ्य के लिये सरकार के परिव्यय में वृद्धि के साथ-साथ आधुनिक तकनीकों पर आधारित स्वास्थ्य सुविधाओं का उन्नयन करने तथा अधिकार-आधारित प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • इस बात को भी चिह्नित किया जाना चाहिये कि लोगों का स्वास्थ्य पशुओं के स्वास्थ्य और हमारे साझा पर्यावरण से निकटता से संबद्ध है, इसलिये भारत को अपने लोकतांत्रिक लाभांश को यथासंभव पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकने के लिये ‘वन हेल्थ’ (One Health) के दृष्टिकोण का अनुपालन करना चाहिये।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश: अनुसंधान एवं विकास के विस्तार और क्वांटम प्रौद्योगिकी, ब्लॉकचेन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स आदि क्षेत्रों के स्टार्ट-अप्स को प्रोत्साहित करने से भारत को अपने हित में उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने और भारतीय युवाओं को वैश्विक ‘रोल मॉडल’ के रूप में उभारने हेतु अनुभव एवं कौशल प्रदान करने में मदद मिल सकती है।
  • जनसांख्यिकीय शासन के लिये संघीय दृष्टिकोण: प्रवासन, आबादी की बढ़ती आयु एवं शहरीकरण जैसे उभरते जनसंख्या संबंधी मुद्दों पर राज्यों के बीच नीति समन्वयन हेतु एक नए संघीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये शासन सुधारों के विषय को संबोधित कर सके।
    • शासन संबंधी इस व्यवस्था का एक प्रमुख तत्व रणनीतिक योजना, निवेश, निगरानी और पाठ्यक्रम सुधार जैसे विषयों अंतर-मंत्रालयी समन्वयन होना चाहिये।
  • ‘जेंडर बजटिंग’ (Gender Budgeting): लैंगिक असमानताओं की स्थिति में सुधार लाने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि महिलाओं की पुरुषों के समान सामाजिक-आर्थिक स्थिति तक पहुँच हो। लैंगिक रूप से उत्तरदायी बजट और नीतियाँ (Gender Responsive Budgets and Policies) लैंगिक समानता, मानव विकास और आर्थिक दक्षता के लक्ष्यों की प्राप्ति में योगदान कर सकती हैं।

वैश्विक ऊर्जा संकट और भारत की ऊर्जा गतिशीलता

संदर्भ

एक ऐसे समय जब दुनिया एक वैश्विक ऊर्जा संकट का सामना कर रही है, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने कहा है कि शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण वर्ष 2030 तक भारत की ऊर्जा मांग प्रतिवर्ष 3% से अधिक तक बढ़ सकती है ।

  • यद्यपि भारत नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन और दक्षता नीतियों के साथ व्यापक प्रगति भी कर रहा है। जलवायु परिवर्तन, लॉजिस्टिक्स आपूर्ति संबंधी मुद्दों, भू-राजनीतिक तनाव (रूस-यूक्रेन युद्ध), कोविड-19 से प्रेरित लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था का धीरे-धीरे पुनरुद्धार आदि का भारत में ऊर्जा गतिशीलता पर एक दूरगामी प्रभाव (Domino Effect) पड़ा है।
  • इस परिदृश्य में, ऊर्जा सुरक्षा के निरंतर जोखिमों को कम करने के लिये नवीकरणीय स्रोतों की ओर संक्रमण में तेज़ी लाना और जीवाश्म ईंधन की प्रमुखता को तेज़ी से समाप्त करना भारत की ऊर्जा सुरक्षा की कुंजी होनी चाहिये।

ऊर्जा सुरक्षा और भारत के तेल आयात की वर्तमान स्थिति

ऊर्जा सुरक्षा का अभिप्राय है उचित मूल्य पर आवश्यक मात्रा और गुणवत्ता में ऊर्जा संसाधनों एवं ईंधन तक पहुँच। ऊर्जा सुरक्षा निम्नलिखित संदर्भों में ऊर्जा संसाधनों की पर्याप्त मात्रा पर लक्षित है:

  • अभिगम्यता (Accessibility)
  • वहनीयता (Affordability)
  • उपलब्धता (Availability)
  • भारत अपनी तेल आवश्यकताओं के 80% भाग का आयात करता है और दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। इसके साथ ही, भारत की ऊर्जा खपत के अगले 25 वर्षों तक प्रत्येक वर्ष 4.5% की दर से बढ़ने का अनुमान किया जाता है।
  • हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के उच्च मूल्यों के कारण तेल आयात की उच्च लागत से चालू खाता घाटे (CAD) में वृद्धि हुई, जिससे भारत में दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता को लेकर चिंता बढ़ी है।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चिंताएँ

  • जलवायु परिवर्तन से प्रेरित मांग वृद्धि: घरेलू कोयला उत्पादन में वृद्धि के बावजूद कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों के भंडार में कमी की स्थिति उत्पन्न हुई क्योंकि देश में जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न अभूतपूर्व ग्रीष्म लहर और बिजली की मांग में तेज़ उछाल (जो अप्रैल 2022 में 201 गीगावाट तक पहुँच गया) के लिये ये प्रतिष्ठान तैयार नहीं थे।
  • साझा कोयला समुच्चय और मूल्य उछाल: रूस-यूक्रेन संघर्ष ने कोयले की पहले से ही बढ़ रही मांग को और तेज़ कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप यूरोप ने कोयले की खरीद के लिये इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका का रुख किया जो अब तक चीन और भारत के लिये प्रमुख कोयला आपूर्तिकर्ता रहे थे।
    • साझा संसाधन समुच्चय पर इस निर्भरता के कारण मार्च 2022 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कोयले की कीमत 70 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 421 डॉलर प्रति टन तक पहुँच गई।
  • स्वास्थ्य के लिये जोखिम: लकड़ी, गोबर और फसल अवशेषों जैसे विभिन्न पारंपरिक ऊर्जा ईंधनों को जलाने के कारण आंतरिक वायु प्रदूषण (Indoor Air Pollution) होता है जो मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।
  • भारत में प्रत्येक 4 में से 1 असामयिक मौत घरेलू वायु प्रदूषण (HAP) के कारण होती है।
  • उनमें से 90% महिलाएँ हैं, जो अपर्याप्त रूप से हवादार रसोई-घरों में इन ईंधनों के निकटता में कार्य करती हैं।
  • वहनीयता एवं खुदरा मुद्रास्फीति संबंधी चिंता: तेल के लिये उच्च सब्सिडी प्रदान करने के बावजूद भारत पेट्रोल और डीजल की वहनीयता के मामले में निम्न रैंकिंग रखता है।
    • पेट्रोल की कीमतें प्रत्यक्ष रूप से खुदरा मुद्रास्फीति को प्रभावित करती हैं। डीजल की कीमतें भारत की माल ढुलाई लागत के 60-70% भाग का निर्माण करती हैं। डीजल की कीमतों में वृद्धि के कारण उच्च माल ढुलाई लागत से सभी उत्पादों की कीमतें बढ़ जाती हैं।
  • आयात निर्भरता और भू-राजनीतिक व्यवधान: वर्ष 2022-23 की पहली छमाही में भारत का कच्चा तेल आयात बिल 76% बढ़कर 90.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया, जबकि कुल आयात मात्रा में 15% की वृद्धि हुई।
    • आयातित तेल पर बढ़ती निर्भरता ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को गंभीर तनाव की स्थिति में ला दिया है तथा भू-राजनीतिक व्यवधानों ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।

भारत के ऊर्जा संक्रमण को आकार दे रही प्रमुख पहलें

  • प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना/सौभाग्य (SAUBHAGYA)
  • हरित ऊर्जा गलियारा (GEC)
  • राष्ट्रीय सौर मिशन (NSM)
  • राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति और सतत् (SATAT)
  • लघु पनबिजली (SHP)
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY)
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)

आगे की राह

  • भारत के ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाना: भारत को धीरे-धीरे, लेकिन महत्त्वपूर्ण रूप से, ऊर्जा उत्पादन के अपने स्रोतों में विविधता लाने की आवश्यकता है, जिसके तहत ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों (सौर, पवन, बायोगैस आदि) को अधिकाधिक शामिल करना होगा जो अधिक स्वच्छ, हरित और संवहनीय विकल्प हैं।
    • नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग निम्न-कार्बन विकास रणनीतियों के विकास में योगदान दे सकता है और देश की कामकाजी आबादी के लिये रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है।
  • ऊर्जा असमानता पर रोक के लिये ऊर्जा योजना: बिजली की बढ़ती मांग और बारंबार कोयला संकट को देखते हुए अग्रिम योजना निर्माण की आवश्यकता है ताकि समग्र बिजली उत्पादन और आपूर्ति शृंखला को इन आघातों का सामना करने में सक्षम बनाया जा सके।
    • इसके लिये, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों को डेटा एकत्र करना चाहिये जो ऊर्जा, आय और लैंगिक असमानता के मामले में अंतर-पारिवारिक और सामूहिक अंतरों को उजागर कर सके ताकि विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच ऊर्जा अंतराल को दूर किया जा सके और किसी भी भू-राजनीतिक आघातों से उनकी रक्षा की जा सके।
  • सतत् विकास लक्ष्यों को साकार करना: शून्य भुखमरी, शून्य कुपोषण, शून्य गरीबी और सार्वभौमिक कल्याण जैसे सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये ऊर्जा सुरक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगी।
    • नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये स्थानीय स्तर पर कड़े निगरानी तंत्र के साथ एक साझा छतरी के नीचे इन मुद्दों को संबोधित करने से भारत को ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल सकती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा के साथ महिला सशक्तिकरण को संबद्ध करना: महिला सशक्तिकरण और नेतृत्व के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने से निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा की ओर संक्रमण को गति मिल सकती है।
    • ज़िम्मेदार माताओं, पत्नियों और बेटियों के रूप में महिलाएँ हरित ऊर्जा संक्रमण की सामाजिक जागरूकता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • उत्तरदायी नवीकरणीय ऊर्जा (Responsible Renewable Energy- RRE) की ओर आगे बढ़ना: RE केवल ‘रिन्यूएबल एनर्जी’ को नहीं बल्कि ‘रिस्पॉन्सिबल एनर्जी’ को भी प्रकट करे।
    • भारत में उभरते नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों को निम्नलिखित विषयों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये:
    • सहभागी शासन सिद्धांतों के लिये प्रतिबद्धता;
    • सार्वभौमिक श्रम, भूमि और मानवाधिकारों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना; और
    • प्रत्यास्थी, फलते-फूलते पारितंत्र की संरक्षा, पुनर्बहाली और संपोषण।
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