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नगर, व्यापारी और शिल्पिजन (Towns, Traders & Crafts Persons) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

फिर से याद करें

प्रश्न.1. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
(क) राजराजेश्वर मंदिर ___________ में बनाया गया था।
(ख) अजमेर सूफ़ी संत ___________ से संबंधित है।
(ग) हम्पी ___________ साम्राज्य की राजधानी थी।
(घ) हॉलैंडवासियों ने आंध्र प्रदेश में ___________ पर अपनी बस्ती बसाई।

(क) ग्यारहवीं सदी में
(ख) ख्वाजा मुइनुउद्दीन चिश्ती
(ग) विजयनगर
(घ) मसूलीपट्टनम।


प्रश्न.2. बताएँ क्या सही है और क्या गलत :
(क) हम राजराजेश्वर मंदिर के मूर्तिकार (स्थपति) का नाम एक शिलालेख से जानते हैं।
(ख) सौदागर लोग काफ़िलों में यात्रा करने की बजाय अकेले यात्रा करना अधिक पसंद करते थे।
(ग) काबुल हाथियों के व्यापार का मुख्य केंद्र था।
(घ) सूरत बंगाल की खाड़ी पर स्थित एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक पत्तन था।

(क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत
(घ) गलत।


प्रश्न.3. तंजावूर नगर को जल की आपूर्ति कैसे की जाती थी?

तंजावूर नगर को जल की आपूर्ति कुँओं और तालाबों द्वारा की जाती थी।


प्रश्न.4. मद्रास जैसे बड़े नगरों में स्थित ‘ब्लैक टाउन्स’ में कौन रहता था?

ब्लैक टाउन्स में भारतीय व्यापारी, शिल्पकार, औद्योगिक मजदूर एवं अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूर तथा कर्मचारी रहा करते थे।

आइए समझें

प्रश्न.5. आपके विचार से मंदिरों के आस-पास नगर क्यों विकसित हए?

मंदिरों के आस-पास नगरों के विकसित होने के कारण:
(i) मंदिर के कर्ता-धर्ता मंदिर के धन को व्यापार एवं साहूकारी में लगाते थे।
(ii) शनैः शनैः समय के साथ बड़ी संख्या में पुरोहित-पुजारी, कामगार, शिल्पी, व्यापारी आदि मंदिर तथा उसके | दर्शनार्थियों एवं तीर्थयात्रियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मंदिर के आस-पास बसते गए।
(iii) मंदिर के दर्शनार्थी भी दान दक्षिण दिया करते थे तथा राजा द्वारा भी भूमि एवं धन अनुदान में दिए जाते थे, इससे मंदिर के पुजारियों की आजीविका चलती थी।
(iv) तीर्थयात्रियों तथा पुरोहित पंडितों को मंदिर प्रशासन द्वारा भोजन कराया जाता था, जिससे मंदिर के पास साधु-संत और पुरोहित-पंडितों को आवास स्थान बन गया था।


प्रश्न.6. मंदिरों के निर्माण तथा उनके रख-रखाव के लिए शिल्पीजन कितने महत्त्वपूर्ण थे?

मंदिरों के निर्माण तथा उनके रख-रखाव के लिए शिल्पीजन निम्न कारणों से महत्त्वपूर्ण थे:
(i) मंदिरों के निर्माण के लिए शिल्पी काफ़ी महत्त्वपूर्ण थे-शिल्पियों में सुनार, कसेरे, लोहार, राजमिस्त्री और बढ़ई शामिल थे।
(ii) शिल्पकार मंदिरों को सुंदर बनाने में काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। शिल्पकार ही मंदिरों के विभिन्न भागों को निर्मित करते थे।
(iii) मंदिरों को कलात्मक रूप से सजाने का कार्य शिल्पकार ही करते थे।


प्रश्न.7. लोग दूर-दूर के देशों-प्रदेशों से सूरत क्यों आते थे?

सूरत नगर में लोगों के दूर-दूर प्रदेशों से आने के कारण
(i) सूरत अरब सागर के तट पर स्थित एक बन्दरगाह नगर था, जहाँ से पश्चिमी एशिया के देशों से व्यापार होता था।
(ii) सूरत को मक्का का प्रस्थान द्वार भी कहा जाता था, क्योंकि बहुत से हज यात्री जहाज से यहीं से रवाना होते थे।
(iii) सूरत शिल्प उद्योग का प्रमुख केन्द्र था, जिससे काफ़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ था।
(iv) सूरत एक व्यापारिक नगर था, जहाँ पर कई वस्तुओं के थोक और फुटकर बाज़ार थे।


प्रश्न.8. कलकत्ता जैसे नगरों में शिल्प उत्पादन तंजावूर जैसे नगरों के शिल्प उत्पादन से किस प्रकार भिन्न था ?

तंजावूर कलकत्ता से पहले का विकसित नगर है, इसलिए तंजावूर में शिल्प का उत्पादन कलकत्ता से पहले शुरू हो गया था। दोनों नगरों के शिल्प उत्पादन में काफ़ी भिन्नता थी|
(i) कलकत्ता में मुख्यत: शिल्प उत्पादन सूती, रेशमी व जूट उत्पादन तक सीमित था।
(ii) तंजावूर में सूती वस्त्रों के अतिरिक्त कांस्य मूर्तियों, धातु के दीपदान, मंदिरों के घंटे, आभूषणों आदि का निर्माण बड़े पैमाने पर होता था, क्योंकि तंजावूर एक मंदिर नगर था।

आइए विचार करें

प्रश्न.9. इस अध्याय में वर्णित किसी एक नगर की तुलना आप, अपने परिचित किसी कस्बे या गाँव से करें। क्या दोनों के बीच कोई समानता या अंतर हैं?

सूरत (नगर) और टेकारी (कस्बा) की तुलना
नगर, व्यापारी और शिल्पिजन (Towns, Traders & Crafts Persons) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC


प्रश्न.10. सौदागरों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था? आपके विचार से क्या वैसी कुछ समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं?

सौदागरों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
(i) व्यापारियों को अनेक राज्यों तथा जंगलों में से होकर गुजरना पड़ता था, इसलिए वे आमतौर पर काफिले बनाकर एक साथ यात्रा करते थे।
(ii) सौदागर अपने हितों की रक्षा के लिए व्यापार संघ (गिल्ड) बनाते थे।
(iii) उन्हें विभिन्न प्रकार के कर चुकाने पड़ते थे।
(iv) प्राचीन व मध्यकाल में यातायात के रूप में बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, नावें आदि प्रमुख थे। अर्थात् यातायात के साधन भी पर्याप्त मात्रा में नहीं थे।
(v) वर्तमान समय में भी सौदागरों को व्यापार संघ बनाने पड़ते हैं। उन्हें विभिन्न कर चुकाने पड़ते हैं तथा व्यापार के लिए दूर-दूर तक यात्राएँ करनी पड़ती हैं।

आइए करके देखें

प्रश्न.11. तंजावूर या हम्पी के वास्तुशिल्प के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त करें और इन नगरों के मंदिरों तथा अन्य भवनों के चित्रों की सहायता से एक स्क्रैपबुक तैयार करें।

तंजावुर का भुवनेश्वर मंदिर भारत की सबसे सुंदर वास्तुकला स्थलों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण 1010 ईस्वी में चोल वंश के शासक राजराज चोल प्रथम ने करवाया था। बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण शाही समारोहों और सम्राट की शक्ति और दृष्टि को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था। चोल वंश की कला और वास्तुकला बहुत ही शानदार थी, जो उनके मंदिरों में दिखाई देती है और जिसे द्रविड़ शैली में बनाया गया है। इसके अलावा, सभी मंदिरों को अक्षीय और सममित ज्यामिति के नियमों पर बनाया गया है, जो उस समय के इंजीनियरिंग (प्रोद्यौगिकी) के चमत्कार को प्रदर्शित करता है। लगभग सभी संरचनाओं को अक्षीय रूप से एक साथ पंक्तिबद्ध किया गया है। बृहदेश्वर मंदिर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में (ग्रेट लिविंग चोल टेपंल के तहत) सूचीबद्ध किया गया है।


प्रश्न.12. किसी वर्तमान तीर्थस्थान का पता लगाएँ। बताएँ कि लोग वहाँ क्यों जाते हैं, वहाँ क्या करते हैं, क्या उस केंद्र के आस-पास दुकानें हैं और वहाँ क्या खरीदा और बेचा जाता है?

रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु यात्रा करने आते है और ईश्‍वर का आर्शीवाद लेते है। ऐसा भी माना जाता है कि रामेश्वरम वह स्‍थान है जहां भगवान राम ने अपने सभी पापों का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। इसलिए यहाँ लोग अपने पापो का प्रायश्चित्त करने के लिए आते थे। रामेश्वरम में भारी संख्‍या में मंदिर स्थित है जो भगवान राम और भगवान शिव को समर्पित है। यहां बड़ी संख्‍या में तीर्थयात्री आते है। हर साल देश – दुनिया के कोने – कोने से हिंदू धर्म के लोग यहां मोक्ष पाने के लिए पूजा – अर्चना करते है। उनके लिए जीवन में एक बार यहां आना जरूरी होता है। माना जाता है कि इनमें डुबकी लगाकर नहाने से सारे पाप धुल जाते है। ऐसा माना जाता है कि अगर व्‍यक्ति के जीवन के सारे पाप धुल जाएं, तो उसे मोक्ष का रास्‍ता मिल जाता है। हां, रामेश्वरम के आस पास कई दुकाने भी है, जहां सामुद्रिक जीवों से निर्मित सामान अवश्य खरीदा जाता है। शंख, घोंघे और सीप के कवच के सामान बहुत ही सुन्दर और सस्ते मिलते हैं। इनसे आप घर को सजा सकते हैं और रामेश्वरम यात्रा की स्मृति के तौर पर संजो भी सकते हैं। उपहार के लिए भी ये बहुत ही उत्तम होते हैं।

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