प्रश्न.1. निम्नलिखित में मेल बैठाएँ :
प्रश्न.2. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
(क) औरंगजेब ने _________ में एक लंबी लड़ाई लड़ी।
(ख) उमरा और जागीरदार मुगल _________ के शक्तिशाली अंग थे।
(ग) आसफ़ जाह ने हैदराबाद राज्य की स्थापना _________ में की।
(घ) अवध राज्य का संस्थापक _________ था।
(क) दक्कन
(ख) साम्राज्य
(ग) 18वीं शताब्दी
(घ) सआदत खाँ
प्रश्न.3. बताएँ सही या गलत :
(क) नादिरशाह ने बंगाल पर आक्रमण किया।
(ख) सवाई राजा जयसिंह इन्दौर का शासक था।
(ग) गुरु गोविंद सिंह सिक्खों के दसवें गुरु थे।
(घ) पुणे अठारहवीं शताब्दी में मराठों की राजधानी बना।
(क) गलत
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) सही
प्रश्न.4. सआदत ख़ान के पास कौन-कौन से पद थे ?
सआदत ख़ान के पास निम्नलिखित पद थे:
(i) सूबेदारी
(ii) फ़ौजदारी
(iii) दीवानी
प्रश्न.5. अवध और बंगाल के नवाबों ने जागीरदारी प्रथा को हटाने की कोशिश क्यों की?
अवध और बंगाल के नवाबों ने जागीरदारी प्रथा को निम्न कारणों से हटाने की कोशिश की:
(i) दोनों नवाब मुगल शासन के प्रभाव को कम करना चाहते थे।
(ii) राजस्व के पुर्ननिर्धारण के लिए।
(iii) अपने विश्वस्त लोगों की नियुक्ति के लिए।
(iv) जमींदारों द्वारा की जाने वाली धोखाधड़ी को रोकने के लिए।
प्रश्न.6. अठारहवीं शताब्दी में सिक्खों को किस प्रकार संगठित किया गया?
अठारहवीं शताब्दी में कई योग्य नेताओं के नेतृत्व में सिक्खों ने अपने-आपको पहले ‘जत्थों में और बाद में ‘मिस्लों में संगठित किया। इन जत्थों और मिस्लों की संयुक्त सेनाएँ ‘दल खालसा’ कहलाती थीं। उन दिनों दल खालसा, बैसाखी और दीवाली के पर्वो पर अमृतसर में मिलता था। इन बैठकों में वे सामूहिक निर्णय लिए जाते थे, जिन्हें गुरमत्ता (गुरु के प्रस्ताव) कहा जाता था। सिक्खों ने राखी व्यवस्था स्थापित की, जिसके अंतर्गत किसानों से उनकी उपज का 20 प्रतिशत कर के रूप में लेकर बदले में उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाता था।
प्रश्न.7. मराठा शासक दक्कन के पार विस्तार क्यों करना चाहते थे?
मराठा शासक निम्न कारणों से दक्कन के पार अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे:
(i) मराठा सरदारों को शक्तिशाली सेनाएँ खड़ी करने के लिए संसाधन मिल सके।
(ii) एक बड़े क्षेत्र पर शासन स्थापित करने के लिए।
(iii) उत्तरी मैदानी भागों के उपजाऊ क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए।
(iv) अधिक-से-अधिक क्षेत्रों से चौथ तथा सरदेशमुखी वसूल करने के लिए।
प्रश्न.8. आसफजाह ने अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए क्या-क्या नीतियाँ अपनाईं?
असाफ़जाह द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए अपनाई गई नीतियाँ:
(i) असाफ़जाह अपने लिए कुशल सैनिकों तथा प्रशासकों को उत्तरी भारत से लाया था।
(ii) उसने मनसबदार नियुक्त किए और इन्हें जागीरें प्रदान की।
(iii) हैदराबाद राज्य पश्चिम की ओर मराठों के विरुद्ध और पठारी क्षेत्र के स्वतंत्र तेलुगु सेनानायकों के साथ युद्ध करने के लिए भी कूटनीति का सहारा लिया।
प्रश्न.9. क्या आपके विचार से आज महाजन और बैंकर उसी तरह का प्रभाव रखते हैं, जैसाकिं वे अठारहवीं शताब्दी में रखा करते थे?
हमारे विचार में आज महाजन और बैंकर उस तरह का प्रभाव नहीं रखते, क्योंकि 18वीं सदी में महाजन और बैंकर निम्न तरीके से राज्य को प्रभावित करते थे:
(i) राज्य ऋण प्राप्त करने के लिए स्थानीय सेठ, साहूकारों और महाजनों पर निर्भर रहता था।
(ii) साहूकार महाजन लोग लगान वसूल करने वाले इजारेदारों को पैसा उधार देते थे, बदले में बंधक के रूप में जमीन रख लेते थे।
(iii) साहूकार महाजन जैसे कई नए सामाजिक समूह राज्य की राजस्व प्रणाली के प्रबंध को भी प्रभावित करने लगे थे।
प्रश्न.10. क्या अध्याय में उल्लिखित कोई भी राज्य आपके अपने प्रांत में विकसित हुए थे? यदि हाँ, तो आपके विचार से अठारहवीं शताब्दी का जनजीवन आगे इक्कीसवीं शताब्दी के जनजीवन से किस रूप में भिन्न था?
दिल्ली को भारतीय महाकाव्य महाभारत में प्राचीन इन्द्रप्रस्थ, की राजधानी के रूप में जाना जाता है। चंदबरदाई की रचना पृथवीराज रासो में तोमर वंश राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि उसने ही ‘लाल-कोट’ का निर्माण करवाया था और लौह-स्तंभ दिल्ली लाया था। पहले दिल्ली को अलग अलग राजाओं द्वारा शासित किया जाता था। सबको राजाओं द्वारा चलाए गए निर्णयो का ही पालन करना पड़ता था। ये सब 18वीं सदी का इतिहास रहा है लेकिन 21वीं सदी में अब बहुत अंतर आ गया है। अब सब स्वतंत्र है। सब अपना अपना काम करने में सक्षम है। कोई व्यक्ति कहीं भी रह सकता है। सबको खाने पीने, रहने, विचार प्रकट करने का मूल अधिकार है।
प्रश्न.11. अवध, बंगाल या हैदराबाद में से किसी एक की वास्तुकला और नए क्षेत्रीय दरबारों के साथ जुड़ी संस्कृति के बारे में कुछ और पता लगाएँ।
बंगाल की वास्तुकला, जिसमें बांग्लादेश के आधुनिक देश और भारतीय बंगाल के भारतीय राज्य शामिल हैं, इन में एक लंबा और समृद्ध इतिहास है, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों से प्रभाव के साथ स्वदेशी तत्वों को मिलाता है। बंगाली वास्तुकला में प्राचीन शहरी वास्तुकला, धार्मिक वास्तुकला, ग्रामीण स्थानीय वास्तुकला, औपनिवेशिक टाउनहाउस और देश के घर, और आधुनिक शहरी शैलियों शामिल हैं। बंगला शैली बंगाल का एक उल्लेखनीय वास्तुकला निर्यात है। मध्यकालीन दक्षिणपूर्व एशिया में बंगाली धार्मिक इमारतों के कोने टावरों को दोहराया गया था। उत्तरी भारत में मुगलों ने बंगाली घुमावदार छत की प्रतिलिपि बनाई थी। बंगाल इमारत के लिए अच्छे पत्थर में समृद्ध नहीं है, और पारंपरिक बंगाली वास्तुकला ज्यादातर ईंटों और लकड़ी का उपयोग करता है, जो घरों के लिए स्थानीय वास्तुकला की लकड़ी, बांस और खिंचाव शैलियों को प्रतिबिंबित करता है। टेराकोटा के सजावटी नक्काशीदार या ढाला पट्टियां (ईंट के समान सामग्री) एक विशेष विशेषता है।
प्रश्न.12. राजपूतों, जाटों, सिक्खों अथवा मराठों में से किसी एक समूह के शासकों के बारे में कुछ और कहानियों का पता लगाएँ।
सिक्खों :- नानक ने सिख धर्म में हिन्दू और इस्लाम दोनों की अच्छाइयों को शामिल किया, जबकि इनका मेल – मिलाप आज कल संभव सा भी नहीं लगता। हम गुरु नानक जी के बारे में बताएंगे:- गुरु नानक एक मौलिक आध्यात्मिक विचारक थे। गुरु नानक के जीवन के बारे में बहुत कुछ लोगों को पता नहीं है। गुरु नानक के अहम उपदेश भी हम तक जन्म सखियों के ज़रिए ही पहुंचे है। सिख परंपराओं में यह बताया जाता है कि नानक के जन्म और शुरुआती साल में कई मायनों में ख़ास रहे थे। कहा जाता है कि ईश्वर ने नानक को कुछ अलग करने के लिए प्रेरित किया था। नानक का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने जल्द ही इस्लाम और व्यापक रूप से हिन्दू धर्म का अध्ययन शुरू किया। गुरु नानक के बारे में एक प्रसिद्ध कहानी है कि वो 11 साल की उम्र में ही विद्रोही हो गए थे। इस उम्र में हिन्दू लड़के पवित्र जनेऊ पहनना शुरू करते हैं, लेकिन गुरु नानक ने इसे पहनने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि लोगों को जनेऊ पहनने के मुक़ाबले अपने व्यक्तिगत गुणों को बढ़ाना चाहिए। वो समान रूप से हिन्दू और मुसलमानों पर सवाल खड़ा कर रहे थे. नानक का ज़ोर आंतरिक बदलाव पर था. उन्हें बाहरी दिखावा बिल्कुल पसंद नहीं था। गुरु नानक ने कुछ वक़्त के लिए मुंशी के तौर पर भी काम किया था, लेकिन कम उम्र में ही ख़ुद को आध्यात्मिक विषयों के अध्ययन में लगा दिया। 1496 में नानक की शादी हुई थी। नानक ने भारत, तिब्बत और अरब से आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत की और यह यात्रा 30 सालों तक चली। इस दौरान नानक ने काफ़ी अध्ययन किया और पढ़े लिखे लोगों से बहस भी की। इसी क्रम में नानक ने सिख धर्म की राह को आकार दिया। गुरु नानक का सबसे अहम संदेश था कि ईश्वर एक है और हर इंसान ईश्वर तक सीधे पहुंच सकता है। उन्होंने इस चीज़ को प्रमुखता से स्थापित किया कि हर इंसान एक है, चाहे किसी भी जाति या लिंग का हो।
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