UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12)  >  NCERT Solutions: ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (Bricks, Beads & Bones)

ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (Bricks, Beads & Bones) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न. 1. हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।

शहरों में रहने वाले हड़प्पा सभ्यता के लोगों की भोजन सामग्रियाँ हैं:
(i) पेड़-पौधों के उत्पाद,
(ii) अंडे, मांस और मछली,
(iii) विभिन्न प्रकार के अनाज; जैसे-गेहूँ, जौ, चावल, सफ़ेद चना, दालें और तिलहन आदि
(iv) दूध, दही, घी एवं संभवत: शहद। पुरातत्वविदों ने हड़प्पा से प्राप्त जले हुए अनाज के दानों, बीजों और हड्डियों आदि की सहायता से वहाँ के लोगों की खान-पान की आदतों का पता लगाया है।
हड़प्पा के लोग अधिक मात्रा में पेड़-पौधों के उत्पादों और जानवरों से प्राप्त उत्पादों का सेवन करते थे तथा भेड़-बकरी, गाय, भैंस आदि को दूध के लिए पालते थे तथा मछली, हिरन, सांभर बारहसिंगा और सूअर को मांस के लिए पालते थे। पूर्व और प्रौढ़ हड़प्पाई लोगों द्वारा इसी भोजन का उपयोग किया जाता था। गुजरात के लोग दुधारू पशुओं को ज्यादातर पालते थे। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा आदि की खुदाई से कछुओं की भी हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं। सेलखड़ी की बनी नींबू की पत्ती से स्पष्ट है कि लोग नींबू, खजूर, अनार और नारियल जैसे फलों की भी जानकारी रखते थे। बड़े-बड़े घरों में अन्न के भंडार थे। अनाज के संरक्षण से पता चलता है कि हड़प्पा में अन्न का आगमन और निर्गमन शासन द्वारा नियंत्रित रहा होगा। यही नहीं, अनाज विनिमय का एक सबसे महत्त्वपूर्ण साधन रहा होगा।


प्रश्न.2. पुरातत्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौन-सी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?

पुरातत्त्वविद किसी संस्कृति विशेष के लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए अनेक विधियों का प्रयोग करते हैं। इनमें से दो प्रमुख विधियाँ हैं-शवाधानों का अध्ययन और विलासिता की वस्तुओं की खोज।
(i) शवाधानों का अध्ययन-
शवाधानों का अध्ययन सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका है। हड़प्पाई शवाधानों का अध्ययन करते हुए पुरातत्त्वविदों को अनेक भिन्नताएँ दृष्टिगोचर हुईं। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न पुरास्थलों से जो शवाधान मिले हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि मृतकों को सामान्य रूप से गर्ते अथवा गड्ढों में दफनाया जाता था। किंतु सभी शवाधान गर्तों की बनावट एक जैसी नहीं थी। अधिकांश शवाधान गर्तो की बनावट सामान्य थी, किंतु कुछ सतहों पर ईंटों की चिनाई की गई थी। गर्गों की बनावट में पाई जाने वाली विविधताओं से लगता है कि संभवतः हड़प्पाई समाज में भिन्नताएँ विद्यमान थीं। ईंटों की चिनाई वाले गर्त उच्चाधिकारी वर्ग अथवा संपन्न वर्ग के शवाधान रहे होंगे। शवाधान गर्गों में शव सामान्य रूप से उत्तर-दक्षिण दिशा में रखकर दफनाए जाते थे। कुछ कब्रों में शव मृदभांडों और आभूषणों के साथ दफनाए गए मिले हैं और कुछ में ताँबे के दर्पण, सीप और सुरमे की सलाइयाँ भी मिली हैं। कुछ शवाधानों से बहुमूल्य आभूषण एवं अन्य सामान मिले हैं, तो कुछ से बहुत ही सामान्य आभूषणों की प्राप्ति हुई है। हड़प्पा में एक कब्र में ताबूत भी मिला है।
एक शवाधान में एक पुरुष की खोपड़ी के पास से एक ऐसा आभूषण मिला है जिसे शंख के तीन छल्लों, जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न) के मनकों और सैकड़ों छोटे-छोटे मनकों से बनाया गया था। कालीबंगन में छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्ढों में राखदानियाँ तथा मिट्टी के बर्तन मिले हैं। कुछ गड्ढों में हड्डियाँ एकत्रित मिली हैं। इनसे स्पष्ट होता है कि हड़प्पाई समाज में शव का अंतिम संस्कार विभिन्न तरीकों से, कम-से-कम तीन तरीकों से, किया जाता था। शवों का सावधानीपूर्वक अंतिम संस्कार करने और आभूषण एवं प्रसाधन सामग्री उनके साथ रख देने जैसे तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हड़प्पावासी मरणोपरांत जीवन में विश्वास करते थे। उल्लेखनीय है कि संभवतः हड़प्पाई लोग शवों के साथ बहुमूल्य वस्तुएँ दफनाने में विश्वास नहीं करते थे।
(ii) विलासिता की वस्तुओं का पता लगाना-
सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं के अस्तित्व का पता लगाने की एक अन्य विधि ‘विलासिता’ की वस्तुओं का पता लगाना है। शवाधानों से उपलब्ध होने वाली पुरावस्तुओं का अध्ययन करके पुरातत्त्वविद उन्हें दो वर्गों अर्थात् उपयोगी और विलास की वस्तुओं में विभक्त कर देते हैं। प्रथम वर्ग अर्थात् उपयोगी वस्तुओं के अंतर्गत दैनिक उपयोग की वस्तुएँ; जैसे–चक्कियाँ, मृभांड, सूइयाँ, झाँवा आदि आती हैं। इन्हें पत्थर अथवा मिट्टी जैसे सामान्य पदार्थों से सरलतापूर्वक बनाया जा सकता था। इस प्रकार की वस्तुएँ सामान्यतः सभी हड़प्पाई पुरास्थलों से प्राप्त हुई हैं। विलासिता की वस्तुओं के अन्तर्गत वे महँगी अथवा दुर्लभ वस्तुएँ सम्मिलित थीं जिनका निर्माण स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों द्वारा किया जाता था।
ऐसी वस्तुएँ मुख्य रूप से हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे महत्त्वपूर्ण नगरों से ही मिली हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पाई समाज में विद्यमान विभिन्नताओं का प्रमुख आधार आर्थिक घटक ही रहे होंगे। उदाहरण के लिए, कालीबंगन में मिले साक्ष्य से पता लगता है कि पुरोहित दुर्ग के ऊपरी भाग में रहते थे और निचले भाग में स्थित अग्नि वेदिकाओं पर धार्मिक अनुष्ठान करते थे। इस प्रकार पुरातत्त्वविद हड़प्पाई समाज की सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण बातों जैसे विभिन्न लोगों की सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, नगरों अथवा छोटी बस्तियों में निवास, खान-पान एवं रहन-सहन और शवाधानों से प्राप्त होने वाली बहुमूल्य अथवा सामान्य वस्तुओं आदि पर विशेष रूप से ध्यान देते हैं।


प्रश्न.3. क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल-निकास प्रणाली, नगर-योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइए।
अथवा हड़प्पा सभ्यता की जल-निकासी प्रणाली नगर-नियोजन की ओर संकेत करती है।” इस कथन की उदाहरण सहित पुष्टि कीजिए।

हड़प्पाई नगरों को स्थापना वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित ढंग से की गई थी। हम इस कथन से पूर्णरूप से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जल निकास प्रणाली नगर-योजना की ओर संकेत करती है। अपने उत्तर की पुष्टि में हम निम्नलिखित कारण प्रस्तुत कर सकते हैं
(i) प्रत्येक घर में पकी ईंटों से बनी छोटी नालियाँ होती थीं जो स्नानघरों तथा शौचालयों से जुड़ी होती थीं। इनके द्वारा घर का | गंदा पानी पास की गली में बनी हुई मध्य आकार की निकास नालियों तक पहुँच जाता था।
(ii) मध्य आकार वाली नालियाँ बड़ी सड़कों के साथ-साथ बने हुए नालों में मिलती थीं। सामान्यतया नालियाँ लगभग 9 इंच चौड़ी और एक फुट गहरी होती थीं, किंतु कुछ इससे दुगुनी बड़ी होती थीं।
(iii) नालियाँ पकी ईंटों से बनी तथा ढकी होती थीं। उनमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हटाने वाले पत्थर लगे होते थे ताकि आवश्यकतानुसार उन्हें हटाकर नालियों की सफाई की जा सके।
(iv) ऐसा लगता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था और फिर उनके अगल-बगल घरों को बनाया गया था, क्योंकि घरों की नालियों को गलियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम-से-कम एक दीवार का गली के साथ सटा होना आवश्यक था।
(v) बड़े नाले ईंटों से अथवा तराशे गए पत्थरों से ढके हुए होते थे। कुछ स्थलों में टोडा-मेहराबदार नाले भी मिले हैं। उनमें से एक लगभग 6 फुटा गहरा है जो संपूर्ण नगर के गंदे पानी को बाहर ले जाता था।
(vi) मल-जल निकासी के मुख्य नालों पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आयताकार हौदियाँ बनी होती थीं। नालियों के मोड़ों पर तिकोनी ईंटों का प्रयोग किया जाता था।
(vii) घरों का कूड़ा-करकट नालियों में नहीं अपितु घरों के बाहर रखे गए ढके हुए कूड़ेदानों में डाला जाता था।
(viii) जल निकासी प्रणालियाँ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थीं। अनेक छोटी बस्तियों में भी इनके अस्तित्व के प्रमाण | मिले हैं। उदाहरण के लिए लोथल में निवास स्थानों का निर्माण कच्ची ईंटों से किया गया था, किंतु नालियाँ पकी ईंटों से बनाई गई थीं।


प्रश्न.4. हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

मनके बनाने के लिए कई प्रकार के पदार्थ प्रयोग में लाए जाते थे-कार्जीलियन, जैस्पर, स्फटिक, क्वाटर्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ तथा फयॉन्स और पकी मिट्टी आदि। कुछ मनके दो या दो से अधिक पत्थरों को मिलाकर भी बनाए जाते थे। कुछ मनकों पर सोने का टोप होता था। ज्यामितीय आकारों को लिए, भिन्न-भिन्न रंग-रूप देकर उन मनकों को तैयार किया जाता था। मनकों पर अलग-अलग तरह के कृतियाँ और रंगों का इस्तेमाल होता था।
तकनीकी दृष्टि से मनकों पर अलग-अलग तरीकों से कार्य किया जाता था। सेलखड़ी जैसे मुलायम पत्थर से मनके बनाने का काम आसानी से ही हो जाता था। सेलखड़ी के चूर्ण से लेप तैयार करके साँचे में डालकर विभिन्न प्रकार के मनके तैयार किए जाते थे। कठोर या ठोस पत्थरों से मनके बनाने की प्रक्रिया जटिल थी। ऐसे पत्थरों से मात्र ज्यामितीय आकारों के मनके ही बनाए जाते थे। पुरातत्त्वविदों के अनुसार अकीक का लाल रंग एक जटिल प्रक्रिया द्वारा अर्थात् पीले रंग के कच्चे माल और उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था। सर्वप्रथम बड़े पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता था। उनमें से बारीकी से शल्क निकाले जाते थे फिर मनके बनाए जाते थे। मनकों को अंतिम रूप देने के लिए घिसाई फिर पॉलिश फिर उनमें छेद किए जाते थे।


प्रश्न.5. दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है? उसके समीप कौन-सी वस्तुएँ रखी गई हैं? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?


ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (Bricks, Beads & Bones) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

इस शव को देखने से पता चलता है कि शव को उत्तर-दक्षिण दिशा में रखकर दफनाया गया है। शव के साथ कुछ दैनिक उपयोग की वस्तुएँ रखी गई हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि हड़प्पा निवासी मरणोपरांत जीवन में विश्वास करते थे। शव के पास कुछ बर्तन रखे गए हैं। इनमें से एक पानी का जग है और दूसरे ढके हुए बर्तन में संभवतः खाने की सामग्री रखी गई होगी। शव के पास ही एक छोटी-सी तिपाई दिखाई देती है। इसके ऊपर की प्लेट को देखकर लगता है कि इसे खाना परोसने के लिए रखा गया होगा।
मृत शरीर पर कुछ पुरावस्तुएँ भी दिखाई देती हैं। यद्यपि ये स्पष्ट नहीं हैं। लगता है कि मृत चित्र 1.1: एक हडप्पाई शवाधान ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ शरीर को कुछ आभूषण पहनाए गए होंगे। मृत शरीर की पुरावस्तुओं से उसके लिंग का पता लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए हार, कंगन, भुजबंद, अंगूठी आदि स्त्री-पुरुष दोनों धारणा करते थे, किंतु चूड़ियाँ, करधनी, बाली, बुंदे, नथुनी और पाजेब जैसे आभूषणों का प्रयोग केवल महिलाएँ ही करती थीं।

निन्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न.6. मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।

मोहनजोदड़ो, सिंधु के लरकाना जिले में स्थापित था। सिंधी भाषा के अनुसार मोहनजोदड़ो का अर्थ है-“मृतकों अथवा प्रेतों का टीला”। यह नाम मोहनजोदड़ो के पतन के बाद इसे दिया गया। 5000 वर्ष पहले यह एक विकसित शहर था। यह सात बार स्थापित होकर पुनः नष्ट हुआ। इस पुरास्थल की खोज हड़प्पा के बाद ही हुई थी। संभवतः हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक अनोखा पक्ष शहरी केंद्रों का विकास था। ऐसे ही केंद्रों में एक महत्त्वपूर्ण केंद्र मोहनजोदड़ो था। इसकी खुदाई से निम्नलिखित विशिष्टताएँ प्रकट हुई हैं:

सुनियोजित नगर
(i) मोहनजोदड़ो एक विशाल शहर था जो 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। यह शहर दो भागों में विभक्त था। शहर के पश्चिम में एक दुर्ग या किला था और पूर्व में नीचे एक नगर बसा हुआ था।
(ii) दुर्ग की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई थी। इसमें बड़े-बड़े भवन थे, जो संभवतः प्रशासनिक अथवा धार्मिक केंद्रों के रूप में कार्य करते थे।
(iii) दुर्ग के चारों ओर ईंटों की दीवार थी, जो दुर्ग को निचले शहर से अलग करती थी। दुर्ग में शासक और शासक वर्ग से संबंधित लोग रहते थे।
(iv) निचले शहर का क्षेत्र दुर्ग की अपेक्षा कहीं अधिक बड़ा था। इसमें रिहायशी क्षेत्र होते थे, जिनमें सामान्य जन अर्थात् शिल्पी आदि रहते थे। निचले शहर के चारों ओर भी दीवार बनाई गई थी। निचले शहर में अनेक भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था।
(v) नगर में प्रवेश करने के लिए परकोटे अर्थात् बाहरी चारदीवारी में कई बड़े-बड़े प्रवेशद्वार थे।
(vi) नगर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में प्रवेश करने के लिए आंतरिक चारदीवारी में प्रवेशद्वार थे।
(vii) नगर में अलग-अलग दिशाओं में ऊँची दीवार से घिरे हुए कई सेक्टर थे।
(viii) प्रायः सभी बड़े मकानों में रसोईघर, स्नानागार, शौचालय और कुएँ होते थे। सभी बड़े मकानों का नक्शा लगभग एक जैसा था-एक चौरस आँगन और चारों तरफ कई कमरे।
(ix) घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ प्रायः सड़क की ओर नहीं खुलते थे। बड़े घरों में सामने के दरवाजे के चारों ओर एक कमरा अर्थात् पोल बना दिया जाता था ताकि सामने के मुख्यद्वार से घर के अंदर ताक-झाँक न की जा सके।

सुव्यवस्थित सड़कें एवं नालियाँ
मोहनजोदड़ो की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ इसकी सुव्यवस्थित सड़कें एवं नालियाँ थीं।
(i) सड़कें पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की तरफ बिछी होती थीं और नगर को अनेक खंडों में विभक्त करती थीं।
(ii) सड़कों का निर्माण इस प्रकार किया जाता था कि स्वयं हवा से ही उनकी सफाई होती रहती थी।
(iii) मोहनजोदड़ो की सड़कों की चौड़ाई 13.5 फुट से 33 फुट तक थी। नालियाँ प्रायः 9 फुट से 12 फुट तक चौड़ी होती थीं।
(iv) नालियाँ पकी ईंटों से बनी तथा ढकी हुई होती थीं। उनमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हटाने वाले पत्थर लगे होते थे ताकि आवश्यकतानुसार | नालियों की सफाई की जा सके।
(v) मल-जल की निकासी के लिए मुख्य कनालों पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आयताकार हौदियाँ बनी होती थीं।
(vi) एक टोडा-मेहराबदार नाला संपूर्ण नगर के गंदे पानी को बाहर ले जाता था।

विशाल स्नानागार, अन्नागार एवं भवन
(i) मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक भवन स्नानागार है। इसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। उत्तम कोटि की पकी ईंटों से बना स्नानागार स्थापत्यकला का सुंदर उदाहरण है। इस संरचना के अनोखेपन तथा दुर्ग क्षेत्र में कई विशिष्ट संरचनाओं के साथ, इसके मिलने से ऐसा लगता है कि इसका प्रयोग धर्मानुष्ठान संबंधी स्नान के लिए किया जाता होगा, जो आज भी भारतीय जनजीवन का आवश्यक अंग है।
(ii) मोहनजोदड़ो की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता दुर्ग में मिलने वाला विएल अन्नागार है। इसमें ईंटों से बने सत्ताईस खंड (Blocks) थे, जिनमें प्रकाश के लिए आड़े-तिरछे रोशनदान बने हुए थे। अन्न भंडार के दक्षिण में ईंटों के चबूतरों की कई कतारें थीं। इन चबूतरों में से एक चबूतरे के मध्य भाग में एक बड़ी ओखली का बना निशान मिला है।
(iii) मोहनजोदड़ो के दुर्ग क्षेत्र में विशाल स्नानागार की एक तरफ एक लंबा भवन (280 x 78 फुट) मिला है। इतिहासकारों के मतानुसार यह भवन किसी बड़े उच्चाधिकारी का निवास स्थान रहा होगा। महत्त्वपूर्ण भवनों में एक सभाकक्ष भी था, जिसमें पाँच-पाँच ईंटों की ऊँचाई की चार चबूतरों की पंक्तियाँ थीं। ये ऊँचे चबूतरे ईंटों के बने थे और उन पर लकड़ी के खंभे खड़े किए गए थे। इसके पश्चिम की ओर कमरों की एक कतार में एक पुरुष की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में पाई गई है।

कुशल एवं व्यवस्थित नागरिक प्रबंध-
मोहनजोदड़ो का नागरिक प्रबंध अत्यधिक कुशल एवं व्यवस्थित था। यद्यपि यह कहना कठिन है कि हड़प्पा सभ्यता के शासक कौन थे; संभव है वे राजा रहे हों या पुरोहित अथवा व्यापारी। कांस्यकालीन सभ्यताओं में आर्थिक, धार्मिक एवं प्रशासनिक इकाइयों में कोई स्पष्ट भेद नहीं था। एक ही व्यक्ति प्रधान पुरोहित भी हो सकता था, राजा भी हो सकता था और धनी व्यापारी भी। किंतु इतना अवश्य कि मोहनजोदड़ो का नागरिक प्रबंध कुशल हाथों में था। प्रशासन अत्यधिक कुशल एवं उत्तरदायी था। सुनियोजित नगर, सफाई और जल-निकास की उत्तम व्यवस्था, अच्छी सड़कें, रात्रि के समय प्रकाश की व्यवस्था, यात्रियों की सुविधा के लिए सरायों की व्यवस्था, उन्नत व्यापार, माप-तौल के एकरूप मानक, सांस्कृतिक विकास, विकसित उद्योग-धंधे, संपन्नता आदि सभी इसके प्रबल प्रमाण हैं।


प्रश्न.7. हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइए और चर्चा कीजिए कि ये किस | प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे?

हड़प्पा सभ्यता के लोगों की शिल्प तथा उद्योग संबंधी प्रतिभा उच्चकोटि की थी। मिट्टी और धातु के बर्तन बनाना, मूर्तियाँ, औजार एवं हथियार बनाना, सूत एवं ऊन की कताई, बुनाई एवं रंगाई, आभूषण बनाना, मनके बनाना, लकड़ी का सामान विशेष रूप से कृषि संबंधी उपकरण, बैलगाड़ी तथा नौकाएँ बनाना आदि उनके महत्त्वपूर्ण व्यवसाय थे। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल, धौलावीरा, नागेश्वर बालाकोट आदि शिल्प उत्पादन के महत्त्वपूर्ण केंद्र थे। चन्हुदड़ो की छोटी-सी बस्ती (7 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत) लगभग पूरी तरह शिल्प उत्पादन में लगी हुई थी।

शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चा माल:
विभिन्न प्रकार के शिल्प उत्पादनों के लिए अनेक प्रकार के कच्चे माल की आवश्यकता थी। उदाहरण के लिए, चिकनी मिट्टी, पकी मिट्टी, ताँबा, टिन, काँसा, सोना, चाँदी, शंख, सीपियाँ, कौड़ियाँ, विभिन्न प्रकार के पत्थर; जैसे-अकीक, नीलम, स्फटिक, क्वार्ज, सेलखड़ी आदि, मिट्टी के बर्तन, सुइयाँ, फयान्स, तकलियाँ मनके, सुगंधित पदार्थ, कपास, सूत, ऊन, विभिन्न प्रकार की लकड़ियाँ, हड्डियाँ, घिसाई, पालिश और छेद करने के औजार आदि विभिन्न शिल्प उत्पादनों के लिए आवश्यक थे।

कच्चा माल प्राप्त करने के स्रोत:
विभिन्न शिल्प उत्पादों के लिए आवश्यक कच्चा माल अनेक उपायों द्वारा प्राप्त किया जाता था। कुछ कच्चा माल स्थानीय स्तर पर उपलब्ध था, किंतु कुछ जलोढ़क मैदान के बाहर से मँगवाना पड़ता था। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता के लोग शिल्प उत्पादनों के लिए उपमहाद्वीप और बाहर से कच्चा माल अनेक उपायों द्वारा प्राप्त करते थे।
(i) वस्त्र निर्माण के लिए सूत कपास से प्राप्त किया जाता था। कपास की खेती की जाती थी। ऊनी कपड़ों के निर्माण के लिए ऊन भेड़ों से प्राप्त किया जाता था।
(ii) ईंटों, मिट्टी के बर्तनों, मूर्तियों एवं खिलौनों के लिए चिकनी मिट्टी स्थानीय रूप से उपलब्ध हो जाती थी। चोलीस्तान (पाकिस्तान) और बनावली (हरियाणा) से मिलने वाले मिट्टी के हल साक्षी हैं कि वहाँ उत्तम कोटि की चिकनी मिट्टी मिलती थी।
(iii) हड्डयाँ विभिन्न पशुओं से प्राप्त की जाती थीं। मछलियों की हड्डियाँ मछुआरों से, पक्षियों की हड्डियाँ तथा जंगली पशुओं | की हड्डियों शिकारियों से अथवा स्वयं शिकार करके प्राप्त की जाती थीं।
(iv) लकड़ी के हलों, विभिन्न वस्तुओं, औज़ारों एवं उपकरणों के निर्माण के लिए लकड़ी आस-पास के जंगलों से प्राप्त की | जाती थी। बढ़िया किस्म की लकड़ी मेसोपोटासिया से मँगवाई जाती थी।
(v) सुगंधित द्रव्यों को बनाने के लिए फयान्स जैसे मूल्यवान पदार्थ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से प्राप्त किए जाते थे।
(vi) हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने उन-उन स्थानों में अपनी बस्तियाँ स्थापित कर ली थीं जिन-जिन स्थानों से आवश्यक कच्चा माल सरलतापूर्वक उपलब्ध हो सकता था। उदाहरण के लिए, इन्होंने नागेश्वर और बालाकोट में, जहाँ से शंख सरलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता था, अपनी बस्तियाँ स्थापित की थीं।
(vii) वे कार्नीलियन मनके गुजरात से, सीसा दक्षिण भारत से और लाजवर्द मणियाँ कश्मीर और अफगानिस्तान से लेते थे।
(viii) उन्होंने सुदूर अफगानिस्तान में शोर्तुघई में अपनी बस्ती स्थापित की क्योंकि यह स्थान नीले रंग के पत्थर यानी लाजवर्द मणि के सबसे अच्छे स्रोत के निकट था। इसी प्रकार लोथल जो कार्नीलियन (गुजरात में भडौंच), सेलखड़ी (दक्षिणी राजस्थान और उत्तरी गुजरात से) एवं धातु (राजस्थान से) के स्रोतों के निकट स्थित था।
(ix) सिंधु सभ्यता के लोग कच्चे माल वाले क्षेत्रों में अभियान भेजकर भी वहाँ से कच्चा माल प्राप्त करते थे। इन अभियानों का प्रमुख उद्देश्य स्थानीय लोगों के साथ संपर्क स्थापित करना होता था। वे अभियान भेजकर राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से ताँबा और दक्षिण भारत से सोना प्राप्त करते थे।
(x) हड़प्पाई लोग संभवतः अरब प्रायद्वीप के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से भी ताँबा मँगवाते थे। हड़प्पाई पुरावस्तुओं और ओमानी ताँबे दोनों में निकल के अंशों का मिलना दोनों के साझा उद्भव का परिचायक है। व्यापार संभवतः वस्तु विनिमय के आधार पर किया जाता था। वे बड़ी-बड़ी नावों एवं बैलगाड़ियों पर अपने तैयार माल को पड़ोस के इलाकों में ले जाते थे तथा उनके बदले धातुएँ तथा अन्य आवश्यक सामान ले आते थे। इन क्षेत्रों से जब-तब मिलने वाली हड़प्पाई पुरावस्तुओं से ऐसे संपर्को का संकेत मिलता है।


प्रश्न.8. चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं?

जैसा कि हम देखते हैं कि विद्वानों को हड़प्पा में पाई गई लिपियों को पढ़ने में सफलता नहीं मिली। ऐसे में पुरातत्वविदों के लिए पुरावस्तुएँ ही हड़प्पा संस्कृति के पुनर्निर्माण में सहायक रही हैं; जैसे-मिट्टी के बर्तन, औजार, आभूषण, धातु, मिट्टी और पत्थरों की घरेलू वस्तुएँ आदि। कुछ अजलनशील कपड़ा, चमड़ा, लकड़ी और रस्सी आदि लुप्त हो चुके हैं। कुछ चीजें ही बचीं हैं; जैसे–पत्थर, चिकनी मिट्टी, धातु और टेराकोटा आदि। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि शिल्पियों द्वारा कार्य करते हुए कुछ प्रस्तर पिंड और अपूर्ण वस्तुओं को उत्पादन के स्थान पर काटते या बनाते समय फेंक दिया जाता था, जिन्हें पुन: निर्मित नहीं किया जा सकता था। यही पुरावस्तुएँ हमारे लिए उपयोगी साबित हुई हैं। नहीं तो हमें संस्कृति के महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी अधूरी ही प्राप्त होती।। पुरातत्वविदों ने उन्हीं पुरावस्तुओं के आधार पर मानव जाति के क्रमिक विकास को चिहनित किया है। उनका वर्गीकरण धातु, मिट्टी, पत्थर, हड्डियों आदि में किया गया है।
पुरातत्वविदों ने दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रभाव मौसम और उन तत्कालीन कारणों को माना जो उन्हें आभूषणों और औज़ारों आदि पर दिखाई दिए। पुरातत्वविद पुरा वस्तुओं की पहचान एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया द्वारा करते हैं। जैसे किसी संस्कृति विशेष में रहने वाले लोगों के बीच क्या सामाजिक और आर्थिक भिन्नताएँ थीं। जैसे हड़प्पा सभ्यता कालीन मिस्र के पिरामिडों में कुछ राजकीय शवाधान प्राप्त हुए, जहाँ बहुत बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति दफनाई गई थी। पुरातत्वविदों ने कुछ घटनाओं को अनुमानित भी किया है। उदाहरणस्वरूप पुरातत्वविदों ने हड़प्पाई धर्म को अनुमान के आधार पर आँका है। अर्थात् कुछ विद्वान वर्तमान से अतीत की ओर बढ़ते हैं। कुछ नीतियाँ पात्रों के संबंध में और पत्थर की चक्कियों के बारे में युक्तिसंगत रही हैं तो कुछ धार्मिक प्रतीकों के संबंध में शंकाग्रस्त रहीं; जैसे-कई मुहरों पर रुद्र के चित्र अंकित हैं। पुरावस्तुओं की उपयोगिता की समझ हम आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं से उनकी समानता के आधार पर ही लगाते हैं।
उदाहरणस्वरूप कुछ हड़प्पा स्थलों पर मिले कपास के टुकड़ों के विषय में जानने के लिए हमें अप्रत्यक्ष साक्ष्यों जैसे मूर्तियों के चित्रण पर निर्भर रहना पड़ता है तथा कुछ वस्तुएँ पुरातत्वविदों को अपरिचित लगीं तो उन्होंने उन्हें धार्मिक महत्त्व की समझ ली। कुछ मुहरों पर भी अनुष्ठान के दृश्य, पेड़-पौधे अर्थात् प्रकृति की पूजा के संकेत मिलते हैं तथा पत्थर की शंक्वाकार वस्तुओं को लिंग के रूप में दर्शाया गया है। पुरातत्त्वविदों ने कोटदीजी सिंधु नदी के तट पर 39 फीट नीचे मानव जीवनवृत्ति के अवशेष प्राप्त किए हैं। कौशांबी के निकट चावल और हड़प्पाकालीन मिट्टी के बर्तन मिले हैं। लोथल से बाँट, चूड़ियाँ और पत्थर के आभूषण भी प्राप्त हुए हैं। काले और लाल रंग की मिट्टी के बर्तन, आकृतियाँ और अवशेष मिले हैं। पुरातत्वविदों ने विभिन्न वैज्ञानिकों की मदद से मोहनजोदड़ो और हड़प्पा पर कार्य किए हैं। कई अन्वेषण, व्याख्या और विश्लेषण से निष्कर्ष निकाले हैं, जिनमें कुछ असफल भी रहे।


प्रश्न.9. हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों की चर्चा कीजिए।

हडप्पा सभ्यता के राजनैतिक संगठन के विषय में निश्चयपूर्वक कुछ भी कहना कठिन है। हमें ज्ञात नहीं है कि हड़प्पा के शासक कौन थे; संभव है वे राजा रहे हों या पुरोहित अथवा व्यापारी। कांस्यकालीन सभ्यताओं में आर्थिक, धार्मिक एवं प्रशासनिक इकाइयों में कोई स्पष्ट भेद नहीं था। एक ही व्यक्ति प्रधान पुरोहित भी हो सकता था, राजा भी हो सकता था और धनी व्यापरी भी। हंटर महोदय यहाँ के शासन को जनतंत्रात्मक शासन मानते हैं किंतु, पिग्गाट और व्हीलर के मतानुसार सुमेर एवं अक्कड़ के समान हड़प्पा में भी पुरोहित राजा शासन करते थे। कुछ विद्वानों के अनुसार हड़प्पा साम्राज्य पर दो राजधानियों-हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से शासन किया जाता था।
कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार संभवत: संपूर्ण क्षेत्र अनेक राज्यों, रजवाड़ों में विभक्त था और उनमें से प्रत्येक की एक अलग राजधानी थी; जैसे-सिंधु में मोहनजोदड़ो, पंजाब में हड़प्पा, राजस्थान में कालीबंगन और गुजरात में लोथल। कुछ अन्य विद्वानों के मतानुसार हड़प्पा सभ्यता में अनेक राज्यों का अस्तित्व नहीं था अपितु यह एक राजा के नेतृत्व में एक ही राज्य था। हड़प्पा सभ्यता के शासन का स्वरूप चाहे जो भी हो, इतना तो निश्चित है कि प्रशासन अत्यधिक कुशल एवं उत्तरदायी था। हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों को किया जाता होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि शासक राज्य में शांति व्यवस्था को बनाए रखने तथा आक्रमणकारियों से अपने राज्य की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी होता था। हड़प्पा सभ्यता के सुनियोजित नगर, सफाई तथा जल निकास की उत्तम व्यवस्था, अच्छी सड़कें, उन्नत व्यापार, माप-तौल के एकरूप मानक, सांस्कृतिक विकास, विकसित उद्योग-धंधे, संपन्नता आदि सभी इस तथ्य के प्रबल प्रमाण हैं कि हड़प्पा के शासक प्रशासनिक कार्यों में विशेष रुचि लेते थे। संभवतः हड़प्पा के शहरों की योजना में भी राज्य का महत्त्वपूर्ण भाग रहा होगा।
इतिहासकारों का विचार है कि प्राचीन विश्व में जहाँ-जहाँ नियोजित वस्तुओं के प्रमाण मिलते हैं वहाँ-वहाँ इस बात का पता चलती है कि सड़कों की योजना का विकास धीरे-धीरे नहीं हुआ अपितु एक विशेष ऐतिहासिक समय में इसका निर्माण हुआ और अनेक विषयों में बस्ती को फिर से बसाने के कारण ऐसा किया गया। इतिहासकारों का विचार है कि हड़प्पा के शहरों की ईंटों का एक जैसा आकार या तो ‘कड़े प्रशासनिक नियंत्रण के कारण था या इसलिए कि लोगों को व्यापक पैमाने पर ईंट बनाने । के लिए नियुक्त किया गया होगा। इसी प्रकार, हड़प्पा के विभिन्न स्थानों पर एक ही प्रकार के ताँबे, काँसे और मिट्टी के बर्तन मिलने से भी यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है। इसी प्रकार यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि विभिन्न नगरों की योजना भी राज्य द्वारा बनाई गई होगी और विभिन्न स्थलों पर सड़कों और नालियों के निर्माण का कार्य भी राज्य ने किया होगा। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा के शहरी केंद्रों की योजना का अध्ययन करने पर वहाँ की नागरिक व्यवस्थाओं की देख-रेख और एक विशाल जल और निकास व्यवस्था का पता चलता है। निकास के लिए प्रत्येक गली में नाली बनी होती थी।
गली में बनी यह नाली पूरे शहर नियोजन का एक भाग थी। घर अपने-अपने ढंग से अलग-अलग इस कार्य को नहीं कर सकते थे। इसका स्पष्ट तात्पर्य है कि प्रशासन द्वारा स्वयं सभी कार्यों को नियंत्रित किया जाता था तथा इनकी देख-रेख का कार्य किया जाता था। ऐसा लगता है कि शिल्प उत्पादन और वितरण का कार्य भी शासकों द्वारा नियंत्रित होता था; यही कारण था कि कुछ उद्योग विशेष रूप से कम वजन वाले कच्चे माल अथवा ईंधन के स्रोत के निकट स्थित होते थे और कुछ वहाँ स्थित थे जहाँ उनकी खपत सबसे अधिक थी। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे नगरों में विशाल अन्नागारों का मिलना इसका प्रबल प्रमाण है कि हड़प्पाई शासकों को सदैव प्रजाहित की चिंता रहती थी, इसीलिए अनाजे को विशाल अन्नागारों में सुरक्षित रख लिया जाता था ताकि किसी भावी आपात स्थिति में उसका प्रयोग किया जा सके।

परियोजना कार्य

प्रश्न.1. पता कीजिए कि क्या आपके शहर में कोई संग्रहालय है? उनमें से एक को देखने जाइए, और किन्हीं दस वस्तुओं पर रिपोर्ट लिखिए और बताइए कि वे कितनी पुरानी हैं? वे कहाँ मिली थीं, और आपके अनुसार उन्हें क्यों प्रदर्शित किया गया है?

हाँ, हमारे शहर में इंडिया गेट के पास राष्ट्रीय संग्रहालय है, वहाँ हमने जिन वस्तुओं को देखी उनमें से दस वस्तुओं के बारे में रिपोर्ट निम्नलिखित हैवस्तुएँ समय/काल स्थान प्रदर्शन का कारण

ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (Bricks, Beads & Bones) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

The document ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (Bricks, Beads & Bones) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC is a part of the UPSC Course NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12).
All you need of UPSC at this link: UPSC
916 docs|393 tests

Top Courses for UPSC

916 docs|393 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

मनके तथा अस्थियाँ (Bricks

,

pdf

,

practice quizzes

,

Extra Questions

,

ईंटें

,

Summary

,

Beads & Bones) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

,

ईंटें

,

MCQs

,

Objective type Questions

,

Important questions

,

ppt

,

Sample Paper

,

past year papers

,

Free

,

video lectures

,

study material

,

shortcuts and tricks

,

Exam

,

मनके तथा अस्थियाँ (Bricks

,

Semester Notes

,

मनके तथा अस्थियाँ (Bricks

,

Beads & Bones) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Beads & Bones) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

,

Viva Questions

,

ईंटें

,

mock tests for examination

;