UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12)  >  NCERT Solutions: पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior of the Earth)

पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior of the Earth) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

प्रश्न.1. बहुवैकल्पिक प्रश्न

(i) निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है:
(क) भूकंपीय तरंगें
(ख) गुरूत्वाकर्षण बल
(ग) ज्वालामुखी
(घ) पृथ्वी का चुंबकत्व

सही उत्तर (क) भूकंपीय तरंगें

(ii) दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस कराकर के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है:
(क) शील्ड
(ख) मिश्र
(ग) प्रवाह
(घ) कुंड

सही उत्तर (ग) प्रवाह

(iii) निम्नलिखित में से कौन सा स्थलमंडल को वर्णित करता है?
(क) ऊपरी व निचले मैंटल
(ख) भूपटल व क्रोड
(ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(घ) मैंटल व क्रोड

सही उत्तर (ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल

(iv) निम्न में भूकंप तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती है:
(क) ‘P’ तरंगें
(ख) ‘S’ तरंगें
(ग) धरातलीय तरंगें
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

सही उत्तर (क) ‘P’ तरंगें


प्रश्न.2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:

(i) भूगर्भीय तरंगें क्या हैं?

भूकम्प के झटकों से उत्पन्न तरंगें भूगर्भीय तरंगें या भूकम्प तरंगें कहलाती हैं। आधारभूत रूप से भूकम्पीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं-भूगर्भिक तरंगें तथा धरातलीय तरंगें। भूगर्भिक तरंगें उद्गम केन्द्र से ऊर्जा मुक्त होने के समय पैदा होती हैं और पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं। इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है। भूगर्भीय तरंगें भी दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ या प्राथमिक तरंगें तथा ‘S’ या द्वितीयक तरंगें कहा जाता है।

(ii) भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।

भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम निम्नलिखित हैं:

  • खनन: यह पृथ्वी से मूल्यवान खनिजों को निकालने की प्रक्रिया है। पृथ्वी से सबसे आसानी से उपलब्ध ठोस पदार्थ धरातलीय चट्टानें हैं, अथवा वे चट्टानें हैं, जो हम खनन क्षेत्रों से प्राप्त करते हैं।
  • प्रवेधन: संसार भर के वैज्ञानिक दो मुख्य परियोजनाओं, ‘गहरे समुद्र में प्रवेधन’ व ‘समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना’ पर काम कर रहे हैं। इन परियोजनाओं तथा बहुत सी अन्य गहरी खुदाई परियोजनाओं के अंतर्गत, विभिन्न गहराई से प्राप्त पदार्थों के विश्लेषण से हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना से संबंधित असाधारण जानकारी प्राप्त हुई है।
  • ज्वालामुखी उद्गार: यह प्रत्यक्ष जानकारी का एक अन्य स्रोत है। जब कभी भी ज्वालामुखी उद्गार से लावा पृथ्वी के धरातल पर आता है, यह प्रयोगशाला अन्वेषण के लिए उपलब्ध होता है।

(iii) भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?

भूकम्पलेखी यन्त्र पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकम्पीय तरंगों का अभिलेखन होता है। किन्तु कुछ क्षेत्र ऐसे भी होते हैं जहाँ कोई भी तरंग अभिलेखित नहीं होती है। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय छाया क्षेत्र कहते हैं। यह देखा जाता है कि भूकम्पलेखीय भूकम्प अधिकेन्द्र में 105° के अन्दर किसी भी दूरी तक ‘P’ व ‘s’ दोनों ही तरंगों का लेखन करते हैं। किन्तु अधिकेन्द्र से 145° से परे केवल ‘P’ तरंगों की पहुँचना ही अंकित होता है ‘s’ तरंगों का नहीं। अत: वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° और 145° के मध्य का क्षेत्र दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र होता है।

(iv) भूकम्पीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी सम्बन्धी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करें।

भूकम्पीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी प्रदान करने वाले अप्रत्यक्ष साधनों में पदार्थ के गुण-धर्म का विश्लेषण, खनन क्रिया या अन्य किसी प्रयोजना के अन्तर्गत पृथ्वी के अन्दर स्थित पदार्थों का ताप, दाब एवं घनत्व एवं इनके अतिरिक्त उल्काएँ और पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल वे चुम्बकीय पदार्थ उल्लेखनीय स्रोत हैं। पृथ्वी की मोटाई के आधार पर वैज्ञानिकों ने विभिन्न गहराई पर पाए पदार्थों के तापमान, दबाव एवं घनत्व के मान के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि गहराई बढ़ने पर इनमें वृद्धि होती है अतः पृथ्वी का आभ्यन्तर अधिक ताप, दाब व घनत्व वाले पदार्थों द्वारा निर्मित है। पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के साथ गुरुत्व का मान भी पदार्थ के द्रव्यमान के अनुसार बदलता है। इसके लिए पृथ्वी के भीतर पदार्थों का असमान वितरण उत्तरदायी माना जाता है, यह तथ्य चुम्बकीय सर्वेक्षण से भी सिद्ध होता है। अतः विभिन्न प्रकार के इन अप्रत्यक्ष स्रोतों के आधार पर पृथ्वी के आभ्यन्तर के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है किन्तु इन सभी में भूकम्पीय तरंगों से सर्वाधिक सही जानकारी प्राप्त होती है।


प्रश्न.3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:

(i) भूकम्पीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ जिनसे होकर यह तरंगें गुजरती हैं।

भूकंपीय तरंगें जैसे ही संचरित होती है तो शैलों में कंपन पैदा होती है। ‘P’ तरंगों से कंपन की दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर ही होती हैं। यह संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती है। इसके (दबाव) के फलस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है। अन्य तीन तरह की तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कंपन पैदा करती हैं। ‘S’ तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में, तरंगों को दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। अत: ये जिस पदार्थ से गुजरती है उसमें उभार व गर्त बनाती है। धरातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं।

(ii) अन्तर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अन्तर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।

ज्वालामुखी उद्गार से जो लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनता है। ये आकृतियाँ अंतर्वेधि आकृतियाँ कहलाती हैं।
विभिन्न अंतर्वेधि आकृतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • बैथोलिथ: यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एह गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है। ये मैग्मा भंडारों के जमे हुए भाग हैं।
  • लैकोलिथ: ये गुंबदनुमा विशाल अंतर्वेधि चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइपरुपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी गुंबद से मिलती है। अंतर केवल यह होता है कि लैकोलिथ गहराई में पाया जाता है।
  • लैपोलिथ: ऊपर उठते लावे का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है। यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी के आकार में जम जाए, तो यह लैपोलिथ कहलाता है।
  • फैकोलिथ: कई बार अंतर्वेधि आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति के ऊपर व अभिनति के ताल में लावा का जमाव पाया जाता है। ये परतनुमा/लहरनुमा चट्टानें एक निश्चित वाहक नली से मैग्मा भंडारों से जुड़ी होती हैं। यह ही फैकोलिथ कहलाते हैं।
  • सिल: अंतर्वेधि आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा हो जाना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है- कम मोटाई वाले जमाव को शीट व घने मोटाई वाले जमाव सिल कहलाते हैं।
  • डाइक: जब लावा का प्रवाह दरारों के धरातल के लगभग समकोण होता है और यह अगर इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भाँति संरचना बनाता है। यही संरचना डाइक कहलाती है।
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