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मानव विकास (Human Development) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

अभ्यास

प्रश्न.1. नीचे दिए गये चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए
(i) निम्नलिखित में से कौन-सा विकास का सर्वोत्तम वर्णन करता है?
(क) आकार में वृद्धि
(ख) गुण में धनात्मक परिवर्तन
(ग) आकार में स्थिरता
(घ) गुण में साधारण परिवर्तन

सही उत्तर (ख) गुण में धनात्मक परिवर्तन।

(ii) मानव विकास की अवधारणा निम्नलिखित में से किस विद्वान की देन है?
(क) प्रो. अमर्त्य सेन
(ख) डॉ० महबूब-उल-हक
(ग) एलन सी. सेम्पुल
(घ) रैटजेल

सही उत्तर (ख) डॉ० महबूब-उल-हक।

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा देश उच्च मानव विकास वाला नहीं है?
(क) नार्वे
(ख) अर्जेंटाइना
(ग) जापान
(घ) मिश्र

सही उत्तर (घ) मिश्र


प्रश्न.2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) मानव विकास के तीन मूलभूत क्षेत्र कौन-से हैं?

मानव विकास के तीन मूलभूत क्षेत्र हैं जिनके आधार पर विभिन्न देशों का कोटि-क्रम तैयार किया जाता है। ये हैं-

  • स्वास्थ्य,
  • शिक्षा तथा
  • संसाधनों तक पहुँच।

(ii) मानव विकास के चार प्रमुख घटकों के नाम लिखिए।

मानव विकास के चार प्रमुख घटक हैं-

  • समता,
  • सतत पोषणीयता,
  • उत्पादकता तथा
  • सशक्तीकरण।

मानव विकास का विचार इन्हीं चार संकल्पनाओं पर आधारित है।

(iii) मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है?

प्रत्येक देश अपने मूलभूत क्षेत्रों स्वास्थ्य, शिक्षा तथा संसाधनों तक पहुँच के अंतर्गत हुई प्रगति के आधार पर 0 से 1 के बीच स्कोर अर्जित करते हैं। यह स्कोर 1 के जितना निकट होगा, मानव विकास का स्तर उतना ही अधिक होगा। मानव विकास प्रतिवेदन 2005 के अनुसार 57 देशों का स्कोर 0.8 से ऊपर है जो उच्च वर्ग में आते हैं। 88 देशों का स्कोर 0.5 से 0.799 के बीच मध्यम वर्ग में तथा 32 देशों को स्कोर 0.5 से नीचे है जो निम्न संवर्ग में रखे गये हैं।


प्रश्न.3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों से अधिक में न दीजिए|
(i) मानव विकास शब्द से आपका क्या तात्पर्य है?

मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन 1990 ई० में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री डॉ० महबूब-उल-हक ने किया था। इसके मापन के लिए उन्होंने एक मानव विकास सूचकांक निर्मित किया। उनके अनुसार विकास का संबंध लोगों के विकल्पों में बढ़ोतरी से है ताकि वे आत्मसम्मान के साथ दीर्घ और स्वस्थ जीवन जी सकें। 1990 ई० से उनकी इस मानव विकास की संकल्पना पर आधारित संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने वार्षिक मानव विकास प्रतिवेदन प्रकाशित करना आरंभ किया है। इसके अंतर्गत विभिन्न देशों को उनके यहाँ मानव विकास के मूलभूत क्षेत्रों-स्वास्थ्य, शिक्षा तथा संसाधनों तक लोगों की पहुँच के आधार पर कोटिक्रम (0-1 के बीच अर्जित स्कोर) तय किया जाता है। जो उस देश के मानव विकास सूचकांक को प्रदर्शित करता है। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने विकास का मुख्य उद्देश्य लोगों की स्वतंत्रता में वृद्धि को बताया है। अर्थात परतंत्रता में कमी। इन अवधारणाओं में सभी प्रकार के विकास का केंद्र बिंदु मनुष्य है। ये विकल्प भी स्थिर नहीं हैं बल्कि परिवर्तनशील हैं। अत: विकास का मूल उद्देश्य ऐसी दशाएँ उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। सार्थक जीवन केवल दीर्घ नहीं होता बल्कि उसका कोई उद्देश्य होना भी जरूरी होता है। इसका अर्थ है लोग स्वस्थ रहें, अपने विवेक और बुद्धि का विकास कर सकें, वे समाज में प्रतिभागिता करें और अपने उद्देश्यों को पूरा करने में स्वतंत्र हों। यही जीवन की सार्थकता है। इस अवधारणा से पहले अनेक दशकों तक विकास के स्तर को केवल आर्थिक वृद्धि के संदर्भ में मापा जाता था अर्थात जिस देश की अर्थव्यवस्था जितनी बड़ी होती थी उसे उतना ही विकसित माना जाता था। चाहे उस विकास से लोगों के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ हो। विकास की नई अवधारणा ने इस पूर्व प्रचलित विचारधारा पर पुनः विचार करने पर मजबूर किया है।

(ii) मानव विकास अवधारणा के अंतर्गत समता और सतत पोषणीयता से आप क्या समझते हैं?

मानव विकास अवधारणा के चार स्तम्भ हैं-समता, सतत पोषणीयता, उत्पादकता तथा सशक्तीकरण समता को आशय प्रत्येक व्यक्ति (स्त्री अथवा पुरुष) को बिना किसी भेदभाव के उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना है। इसके गहरे अर्थ होते हैं; जैसे-किसी भी देश में यह जानना जरूरी है कि विद्यालय से विरत अधिकांश छात्र किस वर्ग से हैं। छात्रों के विरत होने के कारणों का पता लगाना चाहिए। भारत में स्त्रियाँ और सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों के व्यक्ति, बड़ी संख्या में विद्यालय से विरत होते हैं। जो इस बात का सूचक है कि शिक्षा तक पहुँच न होने से इन वर्गों के विकल्पों को सीमित कर दिया गया है। सतत पोषणीयता मानव विकास के लिए अति आवश्यक है। प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिलें, इसके लिए समस्त पर्यावरणीय, वित्तीय एवं मानव संसाधनों का उपयोग भविष्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए। इन संसाधनों में से किसी भी एक का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों को कम कर देगा। अतः सतत पोषणीय मानव विकास के लिए अवसरों की उपलब्धता में निरंतरता का होना अति आवश्यक है। उदाहरण-यदि एक समुदाय विशेष अपनी बालिकाओं को विद्यालय में पढ़ने हेतु भेजने पर जोर नहीं देता है तो युवा होने पर इन स्त्रियों के लिए रोजगार के अनेक अवसर समाप्त हो जाएँगे। इस तरह उनके जीवन के अन्य पक्षों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। अतः प्रत्येक पीढ़ी को अपनी भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों और विकल्पों की उपलब्धता तथा निरंतरता को सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए।

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