प्रश्न.1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए।
(i) प्रदेशीय नियोजन का संबंध है
(क) आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का विकास
(ख) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम
(ग) परिवहन जल तंत्र में क्षेत्रीय अंतर
(घ) ग्रामीण क्षेत्रों का विकास
सही उत्तर (ख) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम
(ii) आई.टी.डी.पी. निम्नलिखित में से किस संदर्भ में वर्णित है?
(क) समन्वित पर्यटन विकास प्रोग्राम
(ख) समन्वित यात्रा विकास प्रोग्राम
(ग) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
(घ) समन्वित परिवहन विकास प्रोग्राम
सही उत्तर (ग) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
(iii) इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास के लिए इनमें से कौन-सा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है?
(क) कृषि विकास
(ख) पारितंत्र-विकास
(ग) परिवहन विकास
(घ) भूमि उपनिवेशन
सही उत्तर (क) कृषि विकास
प्रश्न.2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।
(i) भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के सामाजिक लाभ क्या हैं?
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के लागू होने से प्राप्त सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधार तथा बाल-विवाह में कमी शामिल है। इस क्षेत्र में स्त्री साक्षरता दर 1971 में 1.88% से बढ़कर 2001 में 42.83% हो गई थी।
(ii) सतत पोषणीय विकास की संकल्पना को परिभाषित करें।
विश्व पर्यावरण और विकास आयोग (WECD) ने सतत पोषणीय विकास को 1987 ई० में अवर कॉमन फ्यूचर नामक रिपोर्ट में इस तरह परिभाषित किया था-“एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।”
(iii) इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा?
इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र के विस्तार से बोये गए क्षेत्र में विस्तार हुआ है तथा फसलों की सघनता में वृद्धि हुई है। यहाँ की पांरपरिक फसलों चना, बाजरा और ग्वार का स्थान गेहूँ, कपास,मूंगफली और चावल ने ले लिया है जोकि सघन सिंचाई का परिणाम है।
प्रश्न.3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
(i) सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। यह कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायक है?
सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम का शुभांरभ चौथी पंचवर्षीय योजना में हुआ। इसका उद्देश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना तथा सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था। किंतु बाद में इसमें सिंचाई परियोजनाओं भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास तथा आधारभूत ग्रामीण अवसंरचना जैसे-विद्युत, सड़कों, बाज़ार, ऋण सुविधाओं व सेवाओं पर जोर दिया गया है। इन क्षेत्रों का विकास करने की रणनीतियों में समन्वित जल संभर विकास कार्यक्रम अपनाना शामिल है। इसके अलावा जल, मिट्टी, पौधों, मानव तथा पशु जनसंख्या के बीच पारिस्थितिकीय संतुलन, पुन:स्थापन पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
1967 ई० में योजना आयोग ने देश में 67 जिलों की पहचान पूर्ण या आंशिक सूखा संभावी जिलों के रूप में की है। 1972 ई० में सिंचाई आयोग ने 30% सिंचित क्षेत्र का मापदंड लेकर सूखा संभावी क्षेत्रों का परिसीमन किया है। इसके अंतर्गत राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, आंध्र प्रदेश के रायलसीमा व तेलंगाना पठार, कर्नाटक पठार तथा तमिलनाडु की उच्च भूमि एवं आंतरिक भाग के शुब्क और अर्ध-शुष्क भागों में फैले हुए हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्र सिंचाई के प्रसार के कारण सूखे से बच जाते हैं।
(ii) इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए उपाय सुझाएँ।
इंदिरा गांधी नहर जिसे पहले राजस्थान नहर कहा जाता था, न केवल भारत में बल्कि विश्व के सबसे बड़े नहर तंत्रों में से एक है। 1948 ई० में कॅवर सेन द्वारा संकल्पित यह नहर परियोजना 31 मार्च 1958 ई० को प्रारंभ हुई। सतलुज एवं व्यास नदी के जल को पंजाब के हरिके नामक बाँध पर रोककर यह नहर निकाली गई है जिससे राजस्थान के थार मरुस्थल की 19.63 लाख हेक्टेयर कृषियोग्य कमान क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान कर रही है। इस नहर तंत्र की कुल लंबाई 9060 किमी है। इस नहर का निर्माण कार्य दो चरणों में पूरा किया गया है। चरण-I के कमान क्षेत्र में सिंचाई की शुरुआत 1960 के दशक में जबकि चरण-II में सिंचाई 1980 के दशक के मध्य में आरंभ हुई थी। इस नहर के कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले प्रस्तावित 7 उपायों में से पाँच उपाय पारिस्थितिकीय संतुलन को पुनः स्थापित करने पर बल देते हैं, जैसे:
(i) जल प्रबंधन नीति का कठोरता से कार्यान्वयन करना ताकि फसल रक्षण सिंचाई व चरागाह विकास की व्यवस्था की जा सके।
(ii) इस क्षेत्र में जल सघन फसलों को नहीं बोया जाना चाहिए बल्कि बागाती कृषि में खट्टे फलों की खेती करनी चाहिए।
(iii) कमान क्षेत्र में नहर के जल का समान वितरण होना चाहिए तथा मार्ग में बहते जल की क्षति को कम करने के उपाय किए जाने चाहिए; जैसे-नालों को पक्का करना, भूमि विकास तथा समतलन एवं बाड़बंदी पद्धति लागू करनी चाहिए।
(iv) जलाक्रांत (गहन सिंचाई से जलभराव) एवं लवणता से प्रभावित भूमि का पुनरुद्वार किया जाना चाहिए।
(v) वनीकरण, वृक्षों की रक्षण मेखला का विकास तथा चरागाह विकास के अलावा पारितंत्र-विकास पर जोर देना चाहिए।
(vi) इस क्षेत्र के आर्थिक रूप से कमजोर भू-आवंटियों को कृषि के लिए वित्तीय एवं संस्थागत सहायता मिलनी चाहिए।
(vii) केवल कृषि और पशुपालन के विकास से सतत पोषणीय विकास संभव नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्था के अन्य सेक्टरों का भी यहाँ विकास किया जाना चाहिए ताकि कृषि सेवा केंद्रों और विपणन केंद्रों के बीच प्रकार्यात्मक संबंध बन सकें।
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