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भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ (Geographical Perspective on NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

अभ्यास

प्रश्न.1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए।

(i) निम्नलिखित में से सर्वाधिक प्रदूषित नदी कौन-सी है?
(क) ब्रह्मपुत्र
(ख) सतलुज
(ग) यमुना
(घ) गोदावरी

सही उत्तर (ग) यमुना

(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा रोग जलजन्य है?
(क) नेत्रश्लेष्मला शोथ
(ख) अतिसार
(ग) श्वसन संक्रमण
(घ) श्वासनली शोथ

सही उत्तर (ख) अतिसार

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा अम्ल वर्षा का एक कारण है?
(क) जल प्रदूषण
(ख) भूमि प्रदूषण
(ग) शोर प्रदूषण
(घ) वायु प्रदूषण

सही उत्तर (घ) वायु प्रदूषण

(iv) प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारक उत्तरदायी हैं
(क) प्रवास के लिए
(ख) भू-निम्नीकरण के लिए
(ग) गंदी बस्तियाँ
(घ) वायु प्रदूषण

सही उत्तर (क) प्रवास के लिए


प्रश्न.2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।

(i) प्रदूषण और प्रदूषकों में क्या भेद है?

प्रदूषण: मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्टों उत्पादों से प्राकृतिक घटकों, जैसे-जल, वायु व भूमि के मूलभूत गुणों का ह्रास प्रदूषण कहलाता हैं।
प्रदूषक: उन पदार्थों, उत्पादों को प्रदूषक कहते हैं जो प्राकृतिक घटकों, जैसे-जल, वायु व भूमि में घुल-मिलकर उनकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।

(ii) वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।

वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं-जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस का दहन, औद्योगिक प्रक्रमण से उत्पन्न विषाक्त धुंए वाली गैसों का उत्सर्जन, खनन कार्य आदि। ये सभी वायु में सल्फर, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, सीसा व एस्बेस्टास को वायुमंडल में निर्मुक्त करते हैं।

(iii) भारत में नगरीय अपशिष्ट से जुड़ी प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए।

भारत के नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या का अति संकुलन होने से प्रयुक्त उत्पादों के ठोस अपशिष्टों (कचरे) से गंदगी के ढेर जहाँ-तहाँ देखने को मिलते हैं। इनके निपटान की एक गंभीर समस्या है जिससे नगरीय वातावरण प्रदूषित होता है। प्लास्टिक, पोलिथिन, कंप्यूटर व अन्य इलैक्ट्रोनिक सामान के कबाड़ ने, कांच व कागज तथा मकानों की टूट-फूट/निर्माण से उत्पन्न मलबे ने इस अपशिष्ट के निपटान की समस्या को और गंभीर बना दिया है।

(iv) मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के क्या प्रभाव पड़ते हैं?

जीवाश्म ईंधन के दहन से औद्योगिक अपशिष्टों में व खनन प्रक्रियाओं से वायुमंडल में अनेक विषाक्त धुएँ वाली गैसों व लंबित धूल कणों, सीसा आदि का उत्सर्जन होता है जो वायु को प्रदूषित करते हैं। इनका मानव के स्वास्थ पर प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जाता है; जैसे-श्वसन तंत्रीय, तंत्रिका तंत्र, रक्तसंचार तंत्र संबंधी अनेक बीमारियाँ हो जाती है।


प्रश्न.3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।

(i) भारत में जल प्रदूषण की प्रकृति का वर्णन कीजिए।

बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगिक विस्तार के कारण जल के अविवेकपूर्ण उपयोग से जल की गुणवत्ता का व्यापक रूप से निम्नीकरण हुआ है। भारत की नदियों, नहरों, झीलों व तालाबों आदि का जल अनेक कारणों से उपयोग हेतु शुद्ध नहीं रह गया है। इसमें अल्पमात्रा में निलंबित कण, कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ समाहित होते हैं। जल में जब इन पदार्थों की मात्रा तय सीमा से अधिक हो जाती है तो जल प्रदूषित हो जाता है और जल में स्वतः शुद्धीकरण की क्षमता इसे शुद्ध नहीं कर पाती। ऐसा जल मानव व जीवों के उपयोग के योग्य नहीं रह जाता।

प्रदूषण के स्रोत: उत्पादन प्रक्रिया में लगे उद्योग अनेक अवांछित उत्पाद पैदा करते हैं। इनमें औद्योगिक कचरा, प्रदूषित अपशिष्ट जल, जहरीली गैसे, रासायनिक अवशेष, अनेक भारी धातुएँ, धूल कण व धुआँ शामिल होता है। अधिकतर औद्योगिक कचरे को बहते हुए जल में व झीलों आदि में विसर्जित कर दिया जाता है। इस तरह विषाक्त रासायनिक तत्व जलाशयों, नदियों व अन्य जल भंडारों तक पहुँच जाते हैं जो इन जलस्रोतों में पनपने वाली जैव प्रणाली को नष्ट कर देते हैं।

सर्वाधिक जलप्रदूषक उद्योगों में, चमड़ा, लुगदी व कागज, वस्त्र तथा रसायन उद्योग हैं। आधुनिक कृषि में विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों का उपयोग होता है जिनमें अकार्बनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार नाशक आदि भी प्रदूषण उत्पन्न करने वाले घटक हैं। ये रसायन वर्षा जल के साथ अथवी सिंचाई जल के साथ बहकर नदियों, झीलों व तालाबों में चले जाते हैं तथा धीरे-धीरे जमीन में स्रवित होकर भू-जल तक पहुँच जाते हैं। भारत में तीर्थयात्राओं, धार्मिक क्रियाकलापों, पर्यटन व सांस्कृतिक गतिविधियों से भी जल प्रदूषित होता है। भारत में धरातलीय जल के लगभग सभी स्रोत संदूषित हो चुके हैं जो मानव उपयोग के योग्य नहीं रह गए हैं।

(ii) भारत में गंदी बस्तियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।

भारतीय नगरों में एक ओर सुविकसित नगरीय संरचना है तो दूसरे सिरे पर झुग्गी-बस्तियाँ, गंदी बस्तियाँ, झोंपड़पट्टी तथा पटरियों के किनारे बने ढाँचे खड़े हैं। इनमें वे लोग रहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में आजीविका के लिए प्रवासित होने के लिए मजबूर हुए हैं और जमीन की ऊँची कीमत के कारण अथवा ऊँचे किराए के कारण अच्छे आवासों में चाहते हुए भी नहीं रह पाते हैं तथा पर्यावरणीय दृष्टि से निम्नीकृत भूमि पर कब्जा कर रहने लगते हैं। गंदी बस्तियाँ न्यूनतम वांछित आवासीय क्षेत्र होते हैं जहाँ जीर्ण-शीर्ण मकान, स्वास्थ्य की निम्न सुविधाएँ, खुली हवा का अभाव, पेयजल, प्रकाश तथा शौच जैसी मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव पाया जाता है। ये क्षेत्र अधिक भीड़भाड़ वाले, पतली-सँकरी गलियों तथा आग लगने की उच्च संभावना वाले जोखिमों से परिपूर्ण होते हैं।

गंदी बस्तियों की अधिकांश जनसंख्या नगरीय अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में कम वेतन पर अधिक जोखिमपूर्ण कार्य करती है। अतः ये लोग अल्पपोषित होते हैं। इन्हें विभिन्न रोगों और बीमारियों की संभावना बनी रहती है।

ये लोग अपने बच्चों के लिए उचित शिक्षा का खर्च भी वहन नहीं कर सकते हैं। गरीबी उन्हें नशीली दवाओं/पदार्थों को सेवन करने, अपराध, गुंडागर्दी, पलायन, उदासीनता तथा अंततः सामाजिक बहिष्कार की ओर उन्मुख करती है।

(iii) भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइए।

भू-निम्नीकरण का अभिप्राय स्थायी अथवा अस्थायी तौर पर भूमि की उत्पादकता में कमी है। भू-उर्वरता में कमी अनेक कारणों से संभव है, जैसे:
(i) प्राकृतिक कारण: इसमें अनुउत्पादक भूमियाँ आती हैं, जैसे-प्राकृतिक खंड, मरुस्थलीय व रेतीली तटीय भूमि, बंजर चट्टानी भूमि, तीव्र ढाल वाली भूमि तथा हिमानी क्षेत्र आदि।
(ii) मानवजनित कारण: भूमि का कुप्रबंधन, भूमि का अविरल उपयोग, मृदा अपरदन को प्रोत्साहन देने वाली क्रियाएँ, जलाक्रांतता, लवणता व क्षारीयता में वृद्धि आदि।
भारत में कृषिरहित बंजर निम्नीकृत भूमि इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 17.98% है जिसमें पहाड़ी क्षेत्र, पठारी क्षेत्र, खड्ड आदि के अलावा रेतीली तटीय व मरुस्थली भूमि प्राकृतिक रूप से कृषि कार्यों के योग्य नहीं है। कुछ भूमि जो मानवीय क्रियाओं के फलस्वरूप कृषियोग्य नहीं रह गयी है उसको नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से फिर से कृषियोग्य बनाया जा सकता है। रेतीली मरुस्थली व तटीय भूमि को उर्वरकों, कम्पोस्ट व सिंचाई की सुविधा प्रदान करके उपयोगी बनाया जा सकता है। जलाक्रांत भूमि व दलदली भूमि को कुशल प्रबंधन से उपजाऊ बनाया जा सकता है।

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