प्रश्न.1. पौधों में उत्तरजीविता के लिए उपस्थित सभी तत्त्वों की अनिवार्यता नहीं है। टिप्पणी कीजिए।
खनिज तत्त्व जो मृदा में उपस्थित होते हैं वे पौधों में जड़ों द्वारा जल के साथ अवशोषित कर लिए जाते हैं, परन्तु सभी तत्त्व आवश्यक तत्त्व हों ऐसा नहीं है। जो तत्त्व मृदा में अधिक मात्रा में उपस्थित होते हैं उनका अवशोषण भी अधिक हो जाता है; जैसे—सिलीनियम की मात्रा अधिक होने पर पौधों द्वारा इसका अधिक अवशोषण हो जाता है जो असल में उनके लिए आवश्यक नहीं है। लगभग 60 से अधिक तत्त्व पौधों में मिलते हैं परन्तु बहुत थोड़े-से ही आवश्यक तत्त्व होते हैं। अतः आवश्यक तत्त्व वे हैं जो सीधे पादप उपापचयी क्रियाओं में सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न.2. जल संवर्धन में खनिज पोषण हेतु जल और पोषक लवणों की शुद्धता जरूरी क्यों है?
अशुद्ध जल में अनेक खनिज घुले हो सकते हैं। इसी प्रकार लवणों में भी अशुद्धता मिलती है। यदि जल संवर्धन में अशुद्ध जल व लवणों का प्रयोग होता है तो ये पौधे की वृद्धि में बाधा उत्पन्न करते हैं। अत: जल संवर्धन में शुद्ध जल तथा ज्ञात आवश्यक तत्त्वों का ही खनिज पोषण विलयन प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न.3. उदाहरण के साथ व्याख्या करें-वृहत पोषक तत्त्व, सूक्ष्म पोषक तत्त्व, हितकारी पोषक तत्त्व, आविष तत्व तथा अनिवार्य तत्त्व।
1. वृहत पोषक तत्त्व (Macro Nutrients) : वे तत्त्व जिनकी पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है वृहत पोषक तत्त्व (macro nutrient) कहलाते हैं; जैसे—N, B S, Ca, Mg आदि। पादप ऊतक में इनकी सान्द्रता 1-10 mg/L शुष्क मात्रा में होती है।
2. सूक्ष्म पोषक तत्त्व (Micro Nutrients) : वे तत्त्व जिनकी आवश्यकता पौधों को बहुत कम मात्रा में होती है, सूक्ष्म पोषक तत्त्व कहलाते हैं। जैसे—Mn, Cu, Fe, Mo, Zn, B, Cl, Ni आदि। इनकी सान्द्रता पादप ऊतक में 0.1/mg/L शुष्क मात्रा में होती है।3. हितकारी पोषक तत्त्व (Beneficial Nutrients) : वे तत्त्व जिनकी उच्च पादपों में बड़े तथा सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के अतिरिक्त आवश्यकता होती है, हितकारी पोषक तत्त्व कहलाते हैं; जैसे-Na, Si, Co, se आदि।
4. आविष तत्त्व (Toxic Elements) : वे खनिज तत्त्व जो पौधों के लिए हानिकारक होते हैं या जिस सान्द्रता में वे पादप ऊतक के शुष्क भार को 10 प्रतिशत तक घटा सकते हैं, आविष तत्त्व कहलाते हैं।
5. अनिवार्य तत्त्व (Essential Elements) : वे तत्त्व जो पौधे की उपापचयी क्रियाओं में सीधे तौर पर सम्मिलित होते हैं और उनकी कमी से पौधों में निश्चित लक्षण दिखाई देते हैं, अनिवार्य तत्त्व कहलाते हैं।
प्रश्न.4. पौधों में कम-से-कम पाँच अपर्याप्तता के लक्षण दें। उन्हें वर्णित करें और खनिजों की कमी से उनका सहसम्बन्ध बनाएँ।
1. क्लोरोसिस (Chlorosis) : क्लोरोफिल का ह्रास होता है जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं। यह N, K, S, Mg, Fe, Mn, Zn तथा Co आदि की कमी से होता है।
2. नेकरोसिस (Necrosis) : ऊतक की कोशिकाओं का क्षय होता है। इसके कारण दिखाई देने वाले लक्षण हैं-ब्लाइट, रॉट, पत्ती पर धब्बे आदि। यह लक्षण Ca, Mg, Cu, K आदि की कमी से होता है।
3. कोशिका विभाजन का निरोधी (Supression of Cell Division) : पौधे की वृद्धि कम होने से पौधे बौने रह जाते हैं। यह लक्षण N, S, K, Mo आदि की कमी से होता है।
4. विकृति (Malformation) : रंगहीनता, विभज्योतक ऊतकों के संगठन में कमी, विकृति आदि अन्त में मृत्यु का कारण बनते हैं। यह बोरोन की कमी का लक्षण है।
5. पुष्पन में देरी (Delay in Flowering) : N, S, Mo आदि के कम सान्द्रता से कुछ पौधों में पुष्पन कुछ समय के लिए टल जाता है।
प्रश्न.5. अगर एक पौधे में एक से ज्यादा तत्त्वों की कमी के लक्षण प्रकट हो रहे हैं तो प्रायोगिक तौर पर आप कैसे पता करेंगे कि अपर्याप्त खनिज तत्त्व कौन-से हैं ?
ऐसे पौधों को विभिन्न जल संवर्धन में उगाते हैं। प्रत्येक तत्त्व की कमी का लक्षण अलग-अलग पता चल जाता है जिससे तुलना करके दिए गए पौधों में पोषक तत्त्व की कमी का पता किया जा सकता है।
प्रश्न.6. कुछ निश्चित पौधों में अपर्याप्तता लक्षण सबसे पहले नवजात भाग में क्यों पैदा होता है, जबकि कुछ अन्य में परिपक्व अंगों में?
पोषक तत्त्वों की कमी से पौधों में कुछ आकारिकीय बदलाव (morphological change) आते हैं। ये परिवर्तन अपर्याप्तता को प्रदर्शित करते हैं। ये विभिन्न तत्त्वों के अनुसार अलग-अलग होते हैं। अपर्याप्तता के लक्षण पोषक तत्वों की गतिशीलता पर निर्भर करते हैं। ये लक्षण कुछ पौधों के नवजात भागों में या पुराने ऊतकों में पहले प्रकट होते हैं। पादप में जहाँ तत्त्व सक्रियता से गतिशील रहते हैं तथा तरुण विकासशील ऊतकों में नियतित होते हैं, वहाँ अपर्याप्तता के लक्षण पुराने ऊतकों में पहले प्रकट होते हैं; जैसे-N, K, Mg अपर्याप्तता के लक्षण सर्वप्रथम जीर्णमान पत्तियों में प्रकट होते हैं। पुरानी पत्तियों में ये तत्त्व विभिन्न जैव अणुओं के विखण्डित होने से उपलब्ध होते हैं और नई पत्तियों तक गतिशील होते हैं। जब तत्त्व अगतिशील होते हैं और वयस्क अंगों से बाहर अभिगमित नहीं होते तो अपर्याप्तता लक्षण नई पत्तियों में प्रकट होते हैं; जैसे-कैल्सियम, सल्फर आसानी से स्थानान्तरित नहीं होते। अपर्याप्तता लक्षणों को पहचानने के लिए पौधे के विभिन्न भागों में प्रकट होने वाले लक्षणों का अध्ययन मान्य तालिका के अनुसार करना होता है।
प्रश्न.7. पौधों के द्वारा खनिजों का अवशोषण कैसे होता है?
खनिज तत्त्वों का अवशोषण खनिज तत्त्वों का अवशोषण दो प्रकार से होता है
1.”ऐपोप्लास्ट पथ (Apoplast Pathway) : कोशिकाओं के बाह्य स्थान में तीव्र गति से आयन का अन्तर्ग्रहण, निष्क्रिय अवशोषण होता है। आयनों की निष्क्रिय गति साधारणतया आयन चैनलों के द्वारा होती है। ये ट्रांस झिल्ली प्रोटीन होते हैं और चयनात्मक छिद्रों का कार्य करते हैं।
2. सिमप्लास्ट पथ (Symplast Pathway) : कोशिकाओं के आन्तरिक स्थान में आयन धीमी गति से अन्तर्ग्रहण किए जाते हैं। आयनों के प्रवेश और निष्कासन में उपापचयी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह सक्रिय अवशोषण होता है। कोशिका में आयनों की गति को अन्तर्वाह (influx) तथा कोशिका से बाहर आयन की गति को बहिर्वाह (efflux) कहते हैं।
प्रश्न.8. राइजोबियम के द्वारा वातावरणीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के लिए क्या शर्ते हैं तथा N2 स्थिरीकरण में इनकी क्या भूमिका है?
वायुमण्डलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण की शर्ते
- नाइट्रोजिनेस एन्जाइम (Nitrogenase enzyme)
- लेग्हीमोग्लोबीन (Leghaemoglibin, Ib)
- ATP
- अनॉक्सी वातावरण।
मुख्यतया मटर कुल के पौधों की जड़ों में ग्रन्थिकाएँ पाई जाती हैं। इनमें राइजोबियम (Rhizobiure) जीवाणु पाया जाता है। ग्रन्थिकाओं में नाइट्रोजिनेस (nitrogenase) एन्जाइम एवं लेग्हीमोग्लोबीन (leghaemoglobin) आदि सभी जैव-रासायनिक संघटक पाए जाते हैं। नाइट्रोजिनेस एन्जाइम वातावरणीय नाइट्रोजन को अमोनिया में बदलने के लिए उत्प्रेरित करता है। नाइट्रोजिनेस एन्जाइम की सक्रियता के लिए अनॉक्सी वातावरण आवश्यक होता है। लेग्हीमोग्लोबीन ऑक्सीजन से नाइट्रोजिनेस एन्जाइम की सुरक्षा करता है। अमोनिया संश्लेषण के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। एक अमोनिया अणु को 8 ATP ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की आपूर्ति पोषक कोशिकाओं के ऑक्सी श्वसन से होती है। अमोनिया ऐमीनो अम्ल में ऐमीनो समूह के रूप में सम्मिलित हो जाती है।
प्रश्न.9. मूल ग्रन्थिका के निर्माण हेतु कौन-कौन से चरण भागीदार हैं?
मूल ग्रन्थिका निर्माण पोषक पौधों (सामान्यतया मटर कुल के पौधे) की जड़ एवं राइजोबियम में पारस्परिक प्रक्रिया के कारण ग्रन्थिकाओं का निर्माण निम्नलिखित चरणों में होता है
- राइजोबियम जीवाणु बहुगुणित होकर जड़ के चारों ओर एकत्र होकर मूलरोम एवं मूलीय त्वचा से जुड़ जाते हैं। जीवाणु संक्रमण के कारण जीवाणु मूलरोम से होकर वल्कुट (cortex) में पहुँच जाते हैं। वल्कुट में जीवाणुओं के कारण कोशिकाओं का विशिष्टीकरण नाइट्रोजन स्थिरीकरण कोशिकाओं के रूप में होने लगता है। इस प्रकार ग्रन्थिकाओं (nodules) का निर्माण हो जाता है। ग्रन्थिकाओं के जीवाणुओं का पोषक पादप से पोषक तत्वों के आदान-प्रदान हेतु संवहनी सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
प्रश्न.10. निम्नलिखित कथनों में कौन सही है? अगर गलत हैं तो उन्हें सही कीजिए
(क) बोरोन की अपर्याप्तता से स्थूलकाय अक्ष बनता है।
(ख) कोशिका में उपस्थित प्रत्येक खनिज तत्त्व उसके लिए अनिवार्य है।
(ग) नाइट्रोजन पोषक तत्त्व के रूप में पौधे में अत्यधिक अचल है।
(घ) सूक्ष्म पोषकों की अनिवार्यता निश्चित करना अत्यन्त ही आसान है; क्योंकि ये बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में लिए जाते हैं।
(क) सत्य कथन।
(ख) असत्य कथन। 105 खनिज तत्त्वों में से लगभग 60 तत्त्व विभिन्न पौधों में पाए गए हैं। इनमें से 17 खनिज तत्त्व ही अनिवार्य होते हैं।
(ग) असत्य कथन। नाइट्रोजन अत्यधिक गतिमान पोषक खनिज तत्त्व है।
(घ) असत्य कथन। सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की अनिवार्यता निश्चित करना अत्यन्त कठिन कार्य होता है। क्योंकि ये अति सूक्ष्म मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं। सामान्यतया पोषक लवणों में अशुद्धता के कारण इनकी. अनिवार्यता स्थापित करना कठिन होता है।
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