प्रश्न.1. भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?
भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण करते समय जीवन निर्वाह के लिए खाद्य आवश्यकता, कपड़ों, जूतों, ईधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं आदि पर विचार किया जाता है। इन भौतिक मात्राओं को रुपयों में उनकी कीमतों से गुणा कर दिया जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकताओं पर आधारित है। खाद्य वस्तुओं जैसे अनाज, दालें, सब्जियां, दूध, तेल, चीनी, आदि मिलकर इस आवश्यक कैलोरी की पूर्ति करती हैं। आयु, लिंग, काम करने की प्रकृति आदि के आधार पर कैलोरी आवश्यकताएं बदलती रहती हैं। भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है।
ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग अधिक शारीरिक कार्य करते हैं, अतः ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी आवश्यकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मानी गई है। अनाज आदि के रूप में इन कैलोरी आवश्यकताओं को खरीदने के लिए प्रति व्यक्ति मौद्रिक व्यय को, कीमतों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर संशोधित किया जाता है। इन परिकल्पना ओं के आधार पर वर्ष 2011-12 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्र में 816 रुपए प्रतिमाह और शहरी क्षेत्रों में 1000 रुपए प्रतिमाह किया गया था। निर्धनता रेखा का आकलन समय-समय पर समानता हर 5 वर्ष पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण के माध्यम से किया जाता है। यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन द्वारा कराए जाते हैं।
प्रश्न.2. क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?
निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही नहीं है – निर्धनता के आकलन की एक सर्वमान्य सम्मान विधि आय अथवा उपयोग स्तरों पर आधारित है। किसी व्यक्ति को निर्धन माना जाता है, यदि उसकी आय उपभोग स्तर किसी ऐसे न्यूनतम स्तर से नीचे गिर जाए जो मूल आवश्यकताओं के एक दिए हुए समूह को पूर्ण करने के लिए आवश्यक है। मूल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक वस्तुएं विभिन्न कालों में विभिन्न देशों में भिन्न है।
प्रश्न.3. भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
भारत में निर्धनता अनुपात में वर्ष 1993-94 में लगभग 45% से वर्ष 2004-05 में 37.2 प्रतिशत तक महत्वपूर्ण गिरावट आई है। वर्ष 2011-12 में निर्धनता रेखा के नीचे के निर्धनों का अनुपात और भी गिर गया गिर कर 22% पर आ गया। यदि यही प्रवृत्ति रही तो अगले कुछ वर्षों में निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों की संख्या 20% से भी नीचे आ जाएगी। यद्यपि निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत पूर्व के दो दशकों (1973-93) में गिरा है, निर्धन लोगों की संख्या वर्ष 2004-05 में 407 मिलियन से गिरकर 270 मिलियन वर्ष 2011- 12 जिस में औसतन गिरावट 2.2 प्रतिशत वर्ष 2004-05 से 2011-12 के बीच हुई है।
प्रश्न.4. भारत में निर्धनता में अंतर – राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें।
भारत में निर्धनता में अंतर – राज्य असमानताओं का विवरण प्रस्तुत में ओडिशा भारत का सबसे गरीब राज्य माना जाता है। इसकी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है और जम्मू – कश्मीर में सबसे कम लोग गरीबी रेखा के नीचे आते हैं।
प्रश्न.5. उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं।
भारत में सभी सामाजिक समूहों और आर्थिक वर्गों में एक समान नहीं है। जो सामाजिक समूह निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं, वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार हैं। इसी प्रकार, आर्थिक समूहों में सर्वाधिक असुरक्षित समूह, ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार और नगरीय अनियत मजदूर परिवार हैं। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सामाजिक रूप से सुविधा वंचित सामाजिक समूहों का भूमिहीन अनियत दिहाड़ी श्रमिक होना उसकी दोहरी असुविधा की समस्या को गंभीरता को दिखाता है। 1990 के दशक के दौरान अनुसूचित जनजाति परिवारों को छोड़कर अन्य सभी तीनों समूह (अनुसूचित जाति, ग्रामीण कृषि श्रमिक और शहरी अनियमित मजदूर परिवार) में निर्धनता में कमी आई।इन सामाजिक समूह के अतिरिक्त परिवारों में भी आय असमानता है। निर्धन परिवारों में भी सभी लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कुछ लोग दूसरों से अधिक कठिनाइयों का सामना करते हैं। कुछ संदर्भ महिलाएं ,वृद्ध लोग और बच्चियों को भी ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक बहुत से वंचित किया जाता है।
प्रश्न.6. भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के कारण बताइए।
भारत में निर्धनता का एक और पहलू या आयाम है। प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है। यद्यपि 1970 के दशक के प्रारंभ से राज्य स्तरीय निर्धनता में सुदीर्घकालिक कमी हुई है, निर्भरता कम करने में सफलता की दर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। वर्ष 2011- 12 भारत में निर्धनता अनुपात 22% है। कुछ राज्य जैसे मध्यप्रदेश, असम,उत्तर प्रदेश, बिहार एवं उड़ीसा में निर्धनता अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से ज्यादा है। बिहार और उड़ीसा 33.7 और 32.6 प्रतिशत निर्धनता औसत के साथ दो सर्वाधिक निर्धन राज्य बने हुए हैं। ओडिशा, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में ग्रामीण निर्धनता के साथ नगरीय निर्धनता भी अधिक है।
इसकी तुलना में केरल, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिम बंगाल में निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आई है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य उच्च कृषि वृद्धि दर से निर्धनता कम करने में पारंपरिक रूप से सफल रहे हैं। केरल ने मानव संसाधन विकास पर अधिक ध्यान दिया है। पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार उपायों से निर्धनता कम करने में सहायता मिली है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अनाज का सार्वजनिक वितरण इसमें सुधार का कारण हो सकता है।
प्रश्न.7. वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
विभिन्न देशों में अत्यंत आर्थिक निर्धनता (विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार प्रतिदिन $ 1.9 से कम पर जीवन निर्वाह करना) में रहने वाले लोगों का अनुपात 1990 के 36 प्रतिशत से गिरकर 2015 में 10 प्रतिशत हो गया। यद्यपि वैश्विक निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आई है, लेकिन इसमें बाह्य क्षेत्रीय भिन्नताएं पाई जाती हैं। तीव्र आर्थिक प्रगति और मानव संसाधन विकास में बाह्य निवेश के कारण चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में निर्धनता में विशेष कमी आई है। चीन में निर्धनों की संख्या 1981 के 88.3 प्रतिशत से घटकर 2008 में 14.7 प्रतिशत और वर्ष 2019 में 0.6 प्रतिशत रह गई है। दक्षिण एशिया के देशों (भारत ,पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान) में निर्धनों की संख्या में गिरावट इतनी ही तीव्र रही है और 2005 में 34 प्रतिशत से गिरकर 2014 में 15.2 प्रतिशत हो गई है। निर्धनता के प्रतिशत में गिरावट के साथ ही निर्धनों की संख्या में भी कमी आई, जो 2005 में 510.4 मिलियन से घटकर 2013 में 274.5 मिलियन रह गई है।भिन्न निर्धनता रेखा परिभाषा के कारण भारत में भी निर्धनता राष्ट्रीय अनुमान से अधिक है। सब – सहारा अफ्रीका में निर्धनता वास्तव में 2005 के 51% से घटकर 2018 में 40.2 प्रतिशत हो गई। संयुक्त राष्ट्र के नए सतत विकास के लक्ष्य को 2030 तक सभी प्रकार की गरीबी खत्म करने का प्रस्ताव है।
प्रश्न.8. निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी रणनीति की चर्चा करें।
निर्धनता उन्मूलन भारत की विकास रणनीति का एक प्रमुख उद्देश्य रहा है। सरकार की वर्तमान निर्धनता-निरोधी रणनीति मोटे तौर पर दो कारकों 1. आर्थिक समृद्धि को प्रोत्साहन और 2. लक्षित निर्धनता – निरोधी कार्यक्रमों पर निर्भर है।
अनेक योजनाएं हैं जिनको प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्धनता कम करने के लिए बनाया गया उनमें से कुछ का उल्लेख यहां करना आवश्यक है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम 2005 (मनरेगा) – का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षित करने के लिए हर घर के लिए मजदूरी रोजगार कम से कम 100 दिनों के लिए उपलब्ध कराना है।इसका उद्देश्य सतत विकास में मदद करना ताकि सूखा वन कटाई एवं मिट्टी के कटाव जैसी समस्याओं से बचा जा सके। इस प्रावधान के तहत एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए सुरक्षित किया गया है। राज्य रोजगार गारंटी कोर्स के कार्यक्रम के अंतर्गत अगर आवेदक को 45 दिन के अंदर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा।
- राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम – 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मजदूरी पर रोजगार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं।इसका परिषद केंद्रीय वित्त पोषित कार्यक्रम के रूप में किया गया है और राज्यों को खाघ्यन्न निशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। एन. आर. ई. जी.ए. लागू हो जाए तो काम के बदले अनाज एन.एस.डब्ल्यू. पी का राष्ट्रीय कार्यक्रम भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत आ जाएगा।
- प्रधानमंत्री रोजगार योजना – एक अन्य योजना है जिसे 1993 में आरंभ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। यह लघु व्यवसाय और उद्योग स्थापित करने में उनकी सहायता दी जाती है।
- ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम – 1995 में किया गया का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 2500000 नए रोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है।
- स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना – आरंभ 1999 में किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को सहायता समूह में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायक की के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।
- प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना – के अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य,प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल, और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
- अंत्योदय अन्न योजना – इन कार्यक्रमों के मिले-जुले परिणाम हुए हैं। के कम प्रभावी होने का एक मुख्य कारण उचित कार्यान्वयन और सही लक्ष्मी चित करने की कमी है इसके अतिरिक्त कुछ योजनाएं परस्पर व्यापी भी हैं। अच्छी नियत के बावजूद इन योजनाओं के लाभ उनके पात्र निर्धनों को पूरी तरह नहीं मिल पाए इसलिए हाल के वर्षों में निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों के उचित परिवीक्षण पर अधिक बल दिया गया है।
प्रश्न.9. निम्नलिखित प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर दें :
(क) मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
मानव निर्धनता का मतलब होता है उसकी आय अगर न्यूनतम स्तर से भी नीचे गिर जाए जिससे उसकी मूलभूत सुविधाएं भी उसे प्राप्त ना हो सकें, तो उसे मानव निर्धनता कहा जा सकता है। जैसे कपड़ा, भोजन, मकान आदि।
(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन हैं?
भारत में सभी सामाजिक समूहों के आय में असमानता होती है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिसमें महिलाएं ,वृद्ध लोग और बच्चियों को भी ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक बहुत से वंचित किया जाता है।और ये निर्धनों में भी सबसे निर्धन माने जाते हैं।
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम 2005 (मनरेगा) – का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षित करने के लिए हर घर के लिए मजदूरी रोजगार कम से कम 100 दिनों के लिए उपलब्ध कराना है।इसका उद्देश्य सतत विकास में मदद करना ताकि सूखा वन कटाई एवं मिट्टी के कटाव जैसी समस्याओं से बचा जा सके। इस प्रावधान के तहत एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए सुरक्षित किया गया है। इस स्कीम के अंतर्गत 4.78 करोड़ परिवार को 220 करोड़पति व्यक्ति रोजगार उपलब्ध कराया गया है। इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं का हिस्सा 23%, 17% और 53% हैं।
औसतन रोजगार वर्ष 2006- 07 में 65 रुपए से बढ़कर 132 रुपए वर्ष 2013-14 मेक कर दिया गया है। हाल ही में मार्च 2018 में विभिन्न राज्यों में अकुशल मैनुअल श्रमिकों के लिए मजदूरी दर संशोधित कर दी गई है। इन राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों में मजदूरी दर की सीमा परिसर रु 281/- प्रतिदिन हरियाणा के सैनिकों के लिए से रुपए 168/- प्रतिदिन बिहार और झारखंड के श्रमिकों के लिए तय की गई है। राज्य रोजगार गारंटी कोर्स के कार्यक्रम के अंतर्गत अगर आवेदक को 45 दिन के अंदर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा।
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