प्रश्न.1. बाज़ार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।
बाजार में नागरिक की सुरक्षा के लिए नियम एवं नियंत्रण की आवश्यकता होती है क्योंकि जब उपभोक्ताओं का शोषण होता है तो उपभोक्ता प्राय: स्वयं को कमजोर स्थिति में पाते हैं। खरीदी गई वस्तु या सेवा के बारे में जब भी कोई शिकायत होती है तो विक्रेता सारे उत्तरदायित्व क्रेता पर डालने का प्रयास करता है। विक्रेता कई तरीकों से उपभोक्ता का शोषण कर सकता है। ऐसी स्थिति से उपभोक्ता को बचाने के लिए उपभोक्ता आंदोलन चलाए गए जिससे बाजार में सुरक्षा मिले। बाज़ार में शोषण कई रूपों में होता है, जैसे—कभी-कभी व्यापारी अनुचित व्यापार करने लग जाते हैं, कम तौलने लगते हैं। या मिलावटी वस्तुएँ बेचने लगते हैं। उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए समय-समय पर मीडिया और अन्य स्रोतों से गलत सूचना देते हैं। अतः उपभोक्ताओं की सुरक्षा निश्चित करने के लिए नियम और नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
प्रश्न.2. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाएँ।
उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुई क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यवसायों में शामिल होते थे। बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। यह माना जाता था कि एक उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह एक वस्तु या सेवा को खरीदते समय सावधानी बरते । संस्थाओं को लोगों में जागरूकता लाने में भारत और पूरे विश्व में कई वर्ष लग गए। इन्होंने वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर भी डाल दी।
भारत में सामाजिक बल के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के फलस्वरूप हुआ। अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ। 1970 तक उपभोक्ता संस्थाएँ बड़े पैमाने पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शन का आयोजन करने लगीं। इसके लिए उपभोक्ता दल बनाए गए। भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई ।
इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप यह आंदोलन वृहत्त स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यवसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ।
प्रश्न.3. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का वर्णन करें।
उपभोक्ता जागरूकता की कई कारणों से आवश्यकता है:
- उपभोक्ता जागरूकता इसलिए आवश्यक है क्योंकि अपने स्वार्थों से प्रेरित होकर दोनों-उत्पादक और व्यापारी कोई भी गलत काम कर सकते हैं। जैसे—वे खराब वस्तु दे सकते हैं, कम तौल सकते हैं, अपनी सेवाओं के अधिक मूल्य ले सकते हैं, आदि। धन के लालच के कारण ही समय-समय पर जरूरी वस्तुओं के दाम बहुत बढ़ जाते हैं।
- उपभोक्ता जागरूकता की इसलिए भी जरूरत है क्योंकि बेईमान व्यापारी अपने थोड़े से फायदे के लिए जनसाधारण के जीवन से खेलना शुरू कर देते हैं। जैसे विभिन्न खाद्य पदार्थों—दूध, घी, तेल, मक्खन, खोया और मसालों आदि में मिलावट करते हैं जिससे आम व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस कारण उपभोक्ता जागरूकता आवश्यक है जिससे व्यापारी हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ न कर सकें।
प्रश्न.4. कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
व्यापारी, दुकानदार और उत्पादक कई तरीकों से उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं:
- घटिया सामान: कुछ बेईमान उत्पादक जल्दी धन एकत्र करने के उद्देश्य से घटिया किस्म का माल बाजार में बेचने लगते हैं। दुकानदार भी ग्राहक को घटिया माल दे देता है क्योंकि ऐसा करने से उसे अधिक लाभ होता है।
- कम तौलना या मापना: बहुत से चालाक व लालची दुकानदार ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की चीजें कम तोलकर | या कम मापकर उनको ठगने का प्रयत्न करते हैं।
- अधिक मूल्य: जिन चीजों के ऊपर विक्रय मूल्य नहीं लिखा होता, वहाँ कुछ दुकानदारों का यह प्रयत्न होता है कि ऊँचे दामों पर चीजों को बेचकर अपने लाभ को बढ़ा लें।
- मिलावट करना: लालची उत्पादक अपने लाभ को बढ़ाने के लिए खाने-पीने की चीजों, जैसे-घी, तेल, मक्खन, | मसालों आदि में मिलावट करने से बाज नहीं आते। ऐसे में उपभोक्ताओं का दोहरा नुकसान होता है। एक तो उन्हें घटिया माल की अधिक कीमत देनी पड़ती है दूसरे उनके स्वास्थ्य को भी नुकसान होता है।
- सुरक्षा उपायों की अवहेलना: कुछ उत्पादक विभिन्न वस्तुओं को बनाते समय सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते। बहुत-सी चीजें हैं जिन्हें सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है, जैसे प्रेशर कुकर में खराब सेफ्टी वॉल्व के होने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है। ऐसे में उत्पादक थोड़े से लालच के कारण जानलेवा उपकरणों को बेचते हैं।
- अधूरी या गलत जानकारी: बहुत से उत्पादक अपने सामान की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर पैकेट के ऊपर लिख देते हैं जिससे उपभोक्ता धोखा खाते हैं। जब वे ऐसी चीजों का प्रयोग करते हैं तो उल्टा ही पाते हैं और अपने-आप को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
- असंतोषजनक सेवा: बहुत-सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें खरीदने के बाद एक लंबे समय तक सेवाओं की आवश्यकता होती है, जैसे- कूलर, फ्रिज, वाशिंग मशीन, स्कूटर और कार आदि। परंतु खरीदते समय जो वादे उपभोक्ता से किए जाते हैं, वे खरीदने के बाद पूरे नहीं किए जाते। विक्रेता और उत्पादक एक-दूसरे पर इसकी जिम्मेदारी डालकर उपभोक्ताओं को परेशान करते हैं।
- कृत्रिम अभाव: लालच में आकर विक्रेता बहुत-सी चीजें होने पर भी उन्हें दबा लेते हैं। इसकी वजह से बाजार में वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा हो जाता है। बाद में इसी सामान को ऊँचे दामों पर बेचकर दुकानदार लाभ कमाते हैं। इस प्रकार विभिन्न तरीकों द्वारा उत्पादक, विक्रेता और व्यापारी उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं।
प्रश्न.5. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की जरूरत क्यों पड़ी?
बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लंबे समय तक उपभोक्ताओं का शोषण उत्पादकों तथा विक्रेताओं के द्वारा किया जाता रहा। इस शोषण से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकार पर उपभोक्ता आंदोलनों के द्वारा दबाव डाला गया। यह वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 कानून का बनना था, जो कोपरा (COPRA) के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न.6. अपने क्षेत्र के बाज़ार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कुछ कर्तव्यों का वर्णन करें।
एक उपभोक्ता के रूप में यदि हम अपने अधिकारों को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो हमें कुछ कर्तव्यों को भी पूरा करना होगा।
ऐसे कुछ मुख्य कर्तव्य निम्नलिखित हैं:
- उपभोक्ता के रूप में हमारा यह कर्तव्य है कि बाज़ार से सामान खरीदते समय उसकी गुणवत्ता अवश्य देखें और गारंटी लेना न भूलें।
- हमें वही माल खरीदना चाहिए जिन पर आई०एस०आई० या एगमार्क का निशान लगा हो।
- जब भी कोई सामान खरीदें, सामान व सेवा की रसीद अवश्य लें।
- एक उपभोक्ता के रूप में हमारा कर्तव्य है कि जब कोई उत्पादक, व्यापारी या दुकानदार किसी भी प्रकार से ठगने की | कोशिश करे तो हमें उपभोक्ता अदालत में शिकायत करनी चाहिए।
- उपभोक्ताओं को अपने संगठन बनाने चाहिए ताकि एक साथ मिलकर सरकार के सामने उपभोक्ता संरक्षण संबंधी | माँगें रख सकें।
- उपभोक्ताओं का यह कर्तव्य है कि वे अपने अधिकारों की जानकारी रखें और अवसर आने पर उनको प्रयोग करें। संक्षेप में कहा जा सकता है कि उपभोक्ताओं को बेईमान उत्पादकों अथवा दुकानदारों के शोषण से तभी बचाया जा सकता है, जब उपभोक्ताओं को अधिकारों का ज्ञान हो तथा वे अपने कर्तव्यों का पालन करें।
प्रश्न.7. मान लीजिए, आप शहद की एक बोतल और बिस्किट का एक पैकेट खरीदते हैं। खरीदते समय आप कौन-सा लोगो या शब्द चिह्न देखेंगे और क्यों?
शहद की बोतल और बिस्किट का पैकेट खरीदते समय हमें उस पर एगमार्क का चिह्न देखना होगा । एगमार्क कृषि उत्पादनों का मानक चिह्न है। खाद्य पदार्थों की खरीद के समय इसे देखना जरूरी है क्योंकि ये चिह्न अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। उपभोक्ता संगठनों द्वारा नियंत्रित और जारी किए जानेवाले इन प्रमाण चिह्नों के इस्तेमाल की अनुमति उत्पादकों को तभी दी जाती है जब वे निश्चित गुणवत्ता मानकों का पालन करते हैं।
प्रश्न.8. भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मापदंडों को लागू करना चाहिए?
भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा कानूनी मापदंडों को लागू किया जाना चाहिए। 1986 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम द्वारा उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए। राष्ट्रीय, राज्य तथा जिला स्तर पर तीन स्तरीय उपभोक्ता अदालतों का निर्माण किया गया। सरकार के लिए जरूरी है कि वह इन अदालतों में आए मुकदमों की शीघ्र सुनवाई करे और दोषी उत्पादक या व्यापारी के खिलाफ कार्रवाई करे। पीड़ित उपभोक्ता को उचित मुआवजा दिलवाया जाए। उपभोक्ताओं की शिकायतों का शीघ्र निपटारा करवाने के लिए इन कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना जरूरी है। सरकार कोशिश करे कि भारत में बननेवाली विभिन्न चीजों की गुणवत्ता की जाँच की जाए और उन्हें आई०एस०आई० या एगमार्क की मोहर लगाकर ही बाजार में बिकने के लिए भेजा जाए। सरकार बाजार में बिकनेवाली विभिन्न चीजों की जाँच करे कि वे सुरक्षा के मापदंड पूरे करती हैं या नहीं। ऐसी चीजों की बिक्री पर रोक लगा दी जाए जो सुरक्षा के मापदंड पूरे न करती हों। सरकार को कानून बनाकर जमाखोरी, कालाबाजारी आदि पर रोक लगाकर उपभोक्ताओं को शोषण से बचाना होगा। गरीब वर्ग के लोगों को कम कीमत पर आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इन विभिन्न कानूनी मापदंडों का प्रयोग करके सरकार उपभोक्ताओं को अधिकारों को प्राप्त कराने में समर्थ बना सकती है।
प्रश्न.9. उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
उपभोक्ताओं के अधिकारों का वर्णन 1986 के उपभोक्ता सुरक्षा कानून में तथा 1997 और 1993 के संशोधनों में किया गया है।
उपभोक्ताओं के मुख्य अधिकार निम्नलिखित हैं:
- सुरक्षा का अधिकार: उपभोक्ताओं को यह अधिकार दिया गया है कि वे ऐसी सभी वस्तुओं की बिक्री से अपना बचाव कर सकें, जो उनके जीवन और संपत्ति के लिए हानिकारक हो सकती हैं।
- सूचना का अधिकार: उपभोक्ता को यह अधिकार दिया गया है कि वह हर खरीदी जानेवाली वस्तु की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता और मूल्य आदि के विषय में हर सूचना प्राप्त कर सके ताकि वह अपने-आप को शोषण से बचा सके।
- चुनाव का अधिकार: हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह देख-परखकर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं में से अपनी इच्छानुसार चीजों का चुनाव कर सकें और सही मूल्य भी चुकाए।
- सुनवाई का अधिकार: उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी और शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार है। यदि एक उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई जाती है तो क्षति की मात्रा के आधार पर उसे क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूरा करने के लिए सुनवाई का अधिकार सभी उपभोक्ताओं को दिया गया है।
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार: हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि उसके अधिकारों के प्रति सजग रखने के लिए सरकार प्रयत्न करती रहे। उसे बाजार में मिलनेवाली विभिन्न वस्तुओं के गुण-दोषों की जानकारी होनी चाहिए जिससे वह वस्तुओं को खरीदने से पहले उस जानकारी का प्रयोग कर सके।
- प्रस्तुतीकरण का अधिकार: हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों के सामने अपनी समस्याओं को प्रस्तुत कर सके तथा ये संगठन उसे उसकी समस्याओं के समाधान में मदद कर सकें।
प्रश्न.10. उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?
उपभोक्ताओं को अपनी एकता को बनाने के लिए तथा उसका प्रदर्शन करने के लिए उपभोक्ताओं के संगठनों के निर्माण को प्रेरित किया गया है जिन्हें सामान्यतः उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता सुरक्षा परिषद के नाम से जाना जाता है। ये संस्थाएँ उपभोक्ताओं को बताती हैं कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज किया जाए। बहुत से अवसरों पर ये उपभोक्ता अदालत में उपभोक्ता का प्रतिनिधित्व भी करती हैं। ये संगठन जागरूकता पैदा करने के लिए सरकार से वित्तीय सहयोग भी प्राप्त करते हैं। भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने संगठित समूहों की संख्या और कार्यविधि में तरक्की की है।
प्रश्न.11. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के फलस्वरूप हुआ। अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ। 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों का लेखन और प्रदर्शनियों को आयोजन करने लगी थीं। यह आंदोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ।
प्रश्न.12. निम्नलिखित को सुमेलित करें–
प्रश्न.13. सही या गलत बताएँ।
(क) कोपरा केवल सामानों पर लागू होता है।
(ख) भारत विश्व के उन देशों में से एक है, जिसके पास उपभोक्ताओं की समस्याओं के निवारण के लिए विशिष्ट अदालते हैं।
(ग) जब उपभोक्ता को ऐसा लगे कि उसका शोषण हुआ है, तो उसे जिला उपभोक्ता अदालत में निश्चित रूप से मुकदमा दायर करना चाहिए।
(घ) जब अधिक मूल्य का नुकसान हो, तभी उपभोक्ता अदालत में जाना लाभप्रद होता है।
(ङ) हॉलमार्क, आभूषणों की गुणवत्ता बनाए रखनेवाला प्रमाण-पत्र है।
(च) उपभोक्ता समस्याओं के निवारण की प्रक्रिया अत्यंत सरल और शीघ्र होती है।
(छ) उपभोक्ता को मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करती है।
(क) गलत
(ख) सही
(ग) सही
(घ) गलत
(ङ) सही
(च) सही
(छ) सही
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