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Economic Development (आर्थिक विकास): January 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

डीप टेक स्टार्टअप्स

चर्चा में क्यों?

सरकार डीप टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिये डिजिटल इंडिया इनोवेशन फंड लॉन्च करेगी।

डीप टेक

  • परिचय: 
    • डीप टेक या डीप टेक्नोलॉजी स्टार्टअप व्यवसायों के एक वर्ग को संदर्भित करता है जो मूर्त इंजीनियरिंग नवाचार या वैज्ञानिक खोजों और अग्रिमों के आधार पर नवाचार को बढ़ावा देता है।
    • सामान्यतः ऐसे स्टार्टअप कृषि, लाइफ साइंस, रसायन विज्ञान, एयरोस्पेस और हरित ऊर्जा पर काम करते हैं, हालाँकि इन तक ही सीमित नहीं हैं। 
  • डीप टेक की विशेषताएँ: 
    • प्रभाव: डीप टेक नवाचार बहुत मौलिक हैं और मौजूदा बाज़ार को बाधित करते हैं या एक नया विकास करते हैं। डीप टेक पर आधारित नवाचार अक्सर जीवन, अर्थव्यवस्था और समाज में व्यापक परिवर्तन लाते हैं।
    • समयावधि और स्तर: प्रौद्योगिकी को विकसित करने और बाज़ार में उपलब्धता के लिये डीप टेक की आवश्यक समयावधि सतही प्रौद्योगिकी विकास (जैसे मोबाइल एप एवं वेबसाइट) से कहीं अधिक है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित होने में दशकों लग गए और यह अभी भी पूर्ण नहीं है।
    • पूंजी: डीप टेक को अक्सर अनुसंधान और विकास, प्रोटोटाइप, परिकल्पना को मान्य करने एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिये प्रारंभिक चरणों में पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है।

भारत में डीप टेक स्टार्टअप्स की स्थिति

  • वर्ष 2021 के अंत में भारत में 3,000 से अधिक डीप टेक स्टार्टअप थे, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग (Machine Learning- ML), इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स आदि जैसी नए युग की तकनीकों में काम कर रहे थे।
  • NASSCOM के अनुसार, भारत में डीप टेक स्टार्टअप्स ने वर्ष 2021 में वेंचर फंडिंग में 2.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए और अब यह देश के समग्र स्टार्टअप परितंत्र का 12% से अधिक हिस्सा है।
  • पिछले एक दशक में भारत का डीप टेक इकोसिस्टम 53% बढ़ा है और यह अमेरिका, चीन, इज़रायल एवं यूरोप जैसे विकसित बाज़ारों के बराबर है। 
  • भारत के डीप टेक स्टार्टअप्स में बंगलूरू की हिस्सेदारी 25-30% है, इसके बाद दिल्ली-एनसीआर (15-20%) और मुंबई (10-12%) का स्थान है। 
  • डीप टेक स्टार्टअप ड्रोन डिलीवरी और कोल्ड चेन प्रबंधन से लेकर जलवायु कार्रवाई एवं स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। 

डीप टेक के समक्ष चुनौतियाँ

  • डीप टेक स्टार्टअप्स के लिये वित्तपोषण सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है क्योंकि अभी तक  20% से कम स्टार्टअप्स को वित्तपोषण सुविधा प्राप्त है।
  • सरकारी वित्त का कम उपयोग किया जाता है, साथ ही ऐसे स्टार्टअप के लिये घरेलू पूंजी की कमी होती है। 
  • टैलेंट और मार्केट एक्सेस, रिसर्च गाइडेंस, डीप टेक के बारे में निवेशकों की समझ, कस्टमर एक्विज़िशन एवं लागत उनके सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

आगे की राह

  • रोडमैप का पुनर्मूल्यांकन: 
    • भारतीय स्टार्टअप परितंत्र की निरंतर वृद्धि वर्तमान युग की लगातार उभरती नई तकनीकों से प्रेरित है, विभिन्न संगठनों और सरकार को डीप टेक अपनाने के लिये अपने रोडमैप का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है  
    • भविष्य में 5Gसरल एवं सुग्राह्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, क्लाउड-नेटिव तकनीकों, साइबर सुरक्षा जाल और ग्राहक डेटा प्लेटफाॅर्म जैसी तकनीकों का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाएगा। ऐसे कई कारक हैं जो विकासशील भारतीय स्टार्टअप परितंत्र को डीप टेक के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्त्व प्रदान कर सकते हैं। 
  • CSR बजट उपयोगिता: 
    • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व की सहायता से सामाजिक क्षेत्र को पारंपरिक रूप से लाभ होता रहा है लेकिन हमें रणनीतिक तकनीकों को बनाने के लिये इस विस्तारित कोष का भी लाभ उठाने की आवश्यकता है।  
    • बड़ी फर्मों को उनके बजट के कुछ अंश का योगदान करने के लिये प्रोत्साहित करके देश की रणनीतिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। इसका उपयोग सरकार विशिष्ट रणनीतिक तकनीकी स्टार्टअप के विकास में कर सकती है।

स्टार्टअप इंडिया इनोवेशन वीक

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस (16 जनवरी) के अवसर पर स्टार्टअप इंडिया इनोवेशन वीक का समापन नेशनल स्टार्टअप अवार्ड्स 2022 के साथ हुआ।

  • वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार 2022 उन स्टार्टअप और समर्थकों को प्रदान किये गए हैं जिन्होंने भारत के विकास में क्रांति लाने हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  
  • स्टार्टअप इंडिया ने "चैंपियनिंग द बिलियन डॉलर ड्रीम” विषय पर उद्योग केंद्रित वेबिनार का आयोजन किया।

भारत में स्टार्टअप्स की स्थिति

  • परिचय: 
    • भारत, स्टार्टअप पारितंत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। 
    • बैन एंड कंपनी द्वारा प्रकाशित इंडिया वेंचर कैपिटल रिपोर्ट 2021 के अनुसार, संचयी स्टार्टअप्स की संख्या वर्ष 2012 से 17% की चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (CAGR) से बढ़ी है। 
  • विकास का चालक:  
    • बड़ा घरेलू बाज़ार: भारत में प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों और सेवाओं के लिये एक बड़ा घरेलू बाज़ार है, जो स्टार्टअप को अपने उत्पादों एवं सेवाओं को बेचने के लिये एक तैयार बाज़ार प्रदान करता है। 
    • सरकारी सहायता: भारत सरकार सक्रिय रूप से ‘आत्मनिर्भर भारत’ और डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलों के माध्यम से उद्यमिता को बढ़ावा दे रही है, जो स्टार्टअप कंपनियों को सहायता प्रदान कर रही हैं।
    • प्रौद्योगिकी तक पहुँच: प्रौद्योगिकी और इंटरनेट में प्रगति ने स्टार्टअप्स को तेज़ी से आगे बढ़ने में सक्षम बनाया है, यही कारण है कि पारिस्थितिकी तंत्र में कई यूनिकॉर्न का उदय हुआ है।
    • राइज़िग स्टार्टअप हब: भारत में प्रमुख स्टार्टअप हब बंगलूरू, मुंबई और दिल्ली-NCR  हैं, जो स्टार्टअप्स के बढ़ने एवं विकास के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं।
    • विशेष रूप से बंगलूरू शहर में स्थित बड़ी संख्या में प्रौद्योगिकी कंपनियों के कारण इसे ‘भारत की सिलिकॉन वैली’ घोषित किया गया है।
  • स्टार्टअप पारिस्थितिक तंत्र से संबंधित समस्याएँ:  
    • सख्त नियामक वातावरण: बाज़ार के कानून और नियम हमेशा स्टार्टअप्स की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं होते हैं, जिससे उनका पालन करना मुश्किल हो सकता है। यह स्टार्टअप्स कंपनियों पर गंभीर दबाव डाल सकता है।
    • सीमित बुनियादी ढाँचा और लॉजिस्टिक्स: उचित बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स की कमी स्टार्टअप्स खासकर ई-कॉमर्स क्षेत्र में काम करने वालों के लिये बड़ी चुनौती हो सकती है।
    • अपर्याप्त परिवहन, वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर स्टार्टअप्स के लिये ग्राहकों तक पहुँचना और उनके उत्पादों को समय पर डिलीवर करना मुश्किल बना सकता है। 
    • मेंटरशिप और गाइडेंस की कमी: स्टार्टअप्स में अक्सर अनुभवी मेंटर्स और गाइडेंस की कमी होती है, जिससे उनके लिये बिज़नेस लैंडस्केप को नेविगेट करना तथा निर्णय लेना मुश्किल हो सकता है।
  • स्टार्टअप परितंत्र के प्रोत्साहन के लिये हालिया सरकारी पहल:  
    • स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS): यह योजना स्टार्टअप्स को उनके वैचारिक धारणाओं को साबित करने, प्रोटोटाइप विकसित करने, उत्पादों का परीक्षण और बाज़ार तक पहुँच बनाने में मदद के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है
    • नवाचारों के विकास और दोहन के लिये राष्ट्रीय पहल (National Initiative for Developing and Harnessing Innovations- NIDHI): यह स्टार्टअप्स के लिये एक एंड-टू-एंड (End to End) योजना है जिसका लक्ष्य पाँच वर्ष की अवधि में इनक्यूबेटरों और स्टार्टअप्स की संख्या को दोगुना करना है। 
    • स्टार्टअप पारितंत्र के समर्थन स्तर पर राज्यों की रैंकिंग (Ranking of States on Support to Startup Ecosystems- RSSSE): वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) वर्ष 2018 से राज्यों द्वारा स्टार्टअप पारितंत्र को दिये जा रहे समर्थन के आधार पर उनको रैंकिंग प्रदान कर रहा है। 

आगे की राह

  • नवाचार को प्रोत्साहन: सरकार और निजी क्षेत्र को अनुसंधान एवं विकास के लिये धन तथा अन्य प्रकार का सहयोग प्रदान कर नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिये। 
  • इसके अंतर्गत शोध एवं विकास केंद्र स्थापित करना, इसमें निवेश करने वाली कंपनियों को कर संबंधी प्रोत्साहन प्रदान करना और स्टार्टअप को विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थानों से जोड़ना शामिल हो सकता है।
  • स्कूल-उद्यमिता गलियारा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 उद्योगों के साथ साझेदारी कर व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करके और स्कूल स्तर पर नवाचार को बढ़ावा देकर छात्र उद्यमियों को प्रोत्साहित करती है।
  • यदि उद्यमशीलता कौशल को शिक्षा पाठ्यक्रम के साथ एकीकृत किया जाए यो यह भारत में स्टार्टअप परितंत्र पर अनुकूल प्रभाव डाल सकता है।
    • स्टार्टअप्स की सामाजिक स्वीकार्यता: भारत के विभिन्न यूनिकॉर्न्स के साथ मिलकर सरकार को उद्यमी कॅरियर के सामाजिक स्वीकृति की दिशा में काम करने और सुलभता से कॅरियर चुनने के लिये युवाओं को सही दिशा प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • वोकल फॉर लोकल, लोकल टू ग्लोबल: भारतीय स्टार्टअप्स में न केवल भारतीय पारंपरिक समस्याओं के समाधान की क्षमता है, बल्कि विदेशी बाज़ारों के लिये ये अनुकूलित समाधान भी प्रदान करते हैं।
  • भारत को एक उद्यमशीलता और निर्यात केंद्र बनाने हेतु आत्मनिर्भर भारत पहल से जुड़े राज्यों में भी विशेष स्टार्टअप ज़ोन शुरू किये जा सकते हैं।

सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट रिपोर्ट: द इंडिया स्टोरी

चर्चा में क्यों?

ऑक्सफैम की रिपोर्ट "सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी" के अनुसार, भारत में सबसे अमीर 1% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा है, जबकि एक-साथ वर्ष 2012 और 2021 के दौरान नीचे की आधी आबादी की संपत्ति में हिस्सेदारी मात्र 3% रही। 

  • ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक के पहले दिन भारत के संदर्भ में अपनी वार्षिक असमानता रिपोर्ट भी जारी की।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के शीर्ष 10 सबसे धनी व्यक्तियों पर 5% कर लगाने से बच्चों को स्कूल में पुनः नामांकित करने के लिये पर्याप्त धन मिल सकता है।

Economic Development (आर्थिक विकास): January 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindiप्रमुख बिंदु

  • लैंगिक असमानता: 
    • रिपोर्ट में भारत में लैंगिक असमानता पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि पुरुष श्रमिकों द्वारा अर्जित प्रति 1 रुपए के मामले में महिला श्रमिकों को केवल 63 पैसे मिलते हैं। 
    • सामाजिक-आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति वाले लोगों की तुलना में वर्ष 2018 और 2019 में  अनुसूचित जाति और ग्रामीण मज़दूरों की हिस्सेदारी क्रमशः 55% और 50% ही रही।
  • सामाजिक असमानता: 
    • ऑक्सफैम इंडिया के अनुसार, सिर्फ सबसे अमीर लोगों को प्राथमिकता दिये जाने के कारण देश में हाशिये पर रहने वाले समुदाय जैसे- दलित, आदिवासी, मुस्लिम, महिलाएँ और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक पीड़ित हैं।
    • भारत में अमीरों की तुलना में गरीब असमान रूप से उच्च करों का भुगतान कर रहे हैं और आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं।
  • असमानता कम करने के लिये सुझाए गए उपाय: 
    • असमानता को कम करने और सामाजिक कार्यक्रमों के लिये राजस्व की व्यवस्था करने के लिये विरासत, संपत्ति और भूमि करों के साथ-साथ शुद्ध संपत्ति पर करों का लागू किया जाना।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में परिकल्पित वर्ष 2025 तक स्वास्थ्य क्षेत्र के बजटीय आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% तक करना।
    • शिक्षा के लिये बजटीय आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद के 6% के वैश्विक बेंचमार्क/मानदंड तक बढ़ाना।
    • ऑक्सफैम ने इन मुद्दों के हल के रूप में अमीरों पर करों में वृद्धि करने का तर्क दिया, एकमुश्त कर के कार्यान्वयन की व्यवस्था हो और एक न्यूनतम कर दर का निर्धारण भी हो।
    • ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने उन खाद्य कंपनियों का आह्वान किया है जो मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण अधिक मुनाफा कमा रही हैं, उन्हें अप्रत्याशित करों (विंडफॉल टैक्स) का सामना करना पड़ेगा।  
    • इसके पीछे विचार यह है कि इन कंपनियों को खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से लाभ हुआ है तथा उन्हें गरीबी और असमानता को दूर करने में मदद के लिये उचित योगदान देना चाहिये।
    • यह उपाय गरीबी और असमानता को कम करने में मदद करने वाले सामाजिक कार्यक्रमों का समर्थन करने हेतु सरकारों के लिये राजस्व उत्पन्न कर सकता है।
    • पुर्तगाल ने सुपरमार्केट तथा हाइपरमार्केट शृंखला सहित ऊर्जा कंपनियों एवं प्रमुख खाद्य खुदरा विक्रेताओं दोनों पर अप्रत्याशित कर पेश किये।
  • आँकड़ों के स्रोत:
    • यह रिपोर्ट देश में संपत्ति की असमानता और अरबपतियों की संपत्ति के बारे में जानकारी के लिये फोर्ब्स एवं क्रेडिट सुइस सहित कई स्रोतों के आँकड़ों पर आधारित है।
    • इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS)केंद्रीय बजट दस्तावेज़ और संसदीय प्रश्नों जैसे सरकारी स्रोतों का उपयोग पूरी रिपोर्ट में दिये गए तर्कों की पुष्टि करने के लिये किया गया है।

विंडफॉल टैक्स

  • विंडफॉल टैक्स/अप्रत्याशित कर अप्रत्याशित या असाधारण लाभ पर लगाए गए कर हैं, जो कि आर्थिक संकटयुद्ध या प्राकृतिक आपदाओं के समय प्राप्त किये गए हैं।
  • सरकारें आमतौर पर ऐसे लाभ पर कर की सामान्य दरों के अलावा पूर्वव्यापी रूप से एक बार कर लगाती हैं, जिसे विंडफॉल टैक्स कहा जाता है। 
  • एक क्षेत्र जहाँ इस तरह के करों पर नियमित रूप से चर्चा की गई है, वह तेल बाज़ार है, जहाँ मूल्यों में उतार-चढ़ाव उद्योग को अस्थिर या अनियमित मुनाफे की ओर ले जाता है। 

चीनी निर्यात

चर्चा में क्यों?  

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार, भारत में चीनी मिलों ने 55 लाख टन चीनी के निर्यात हेतु अनुबंध किया है। 

  • सरकार ने चीनी मिलों को विपणन वर्ष 2022-23 (अक्तूबर-सितंबर) में मई तक 60 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति दी है।

भारत में चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति

  • परिचय:  
    • चीनी उद्योग एक महत्त्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे कार्यरत लगभग 5 लाख श्रमिकों की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है।
    • वर्ष 2021-22 (अक्तूबर-सितंबर) में भारत विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता तथा विश्व के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक के रूप में उभरा है।
  • गन्ने की वृद्धि के लिये भौगोलिक स्थितियाँ:
    • तापमान: गर्म और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 °C के मध्य।
    • वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.।
    • मृदा का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मृदा।
    • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र> उत्तर प्रदेश> कर्नाटक।
  • चीनी उद्योग के लिये विकास उत्प्रेरक:
    • प्रभावोत्पादक चीनी अवधि (सितंबर-अक्तूबर): इस अवधि के दौरान गन्ना उत्पादन, चीनी उत्पादन, चीनी निर्यात, गन्ना खरीद, गन्ने के बकाये का भुगतान और इथेनॉल उत्पादन सभी के रिकॉर्ड बने थे।
    • उच्च निर्यात: बिना किसी वित्तीय सहायता के निर्यात लगभग 109.8 LMT था तथा वर्ष 2021-22 में लगभग 40,000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा अर्जित की।
    • भारत सरकार की नीतिगत पहल: पिछले 5 वर्षों में उचित समय पर की गई सरकारी पहलों ने उन्हें वर्ष 2018-19 में वित्तीय संकट से निकालकर वर्ष 2021-22 में आत्मनिर्भरता के स्तर पर पहुँचा दिया है।
    • इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करना: सरकार ने चीनी को इथेनॉल में परिवर्तित करने एवं अतिरिक्त चीनी का निर्यात करने के लिये चीनी मिलों को प्रोत्साहित किया है ताकि मिलों के संचालन को जारी रखने के लिये उनकी बेहतर वित्तीय स्थिति हो।
    • पेट्रोल के साथ इथेनॉल सम्मिश्रण (Ethanol Blending with Petrol) कार्यक्रम: जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति 2018, वर्ष 2025 तक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम के तहत 20% इथेनॉल मिश्रण का सांकेतिक लक्ष्य प्रदान करती है। 
    • उचित और लाभकारी मूल्य: FRP (Fair and Remunerative Price) वह न्यूनतम मूल्य है जो चीनी मिलों को गन्ने की खरीद के लिये गन्ना किसानों को भुगतान करना पड़ता है। 
    • यह कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर तथा राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के परामर्श के बाद निर्धारित किया जाता है। 
  • संबद्ध समस्याएँ:  
    • अन्य मिठास बढ़ाने वाले उत्पादों (Sweeteners) से प्रतिस्पर्द्धा: भारतीय चीनी उद्योग को उच्च फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप जैसे अन्य मिठास बढ़ाने वाले उत्पादों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो उत्पादन हेतु सस्ते है और इनकी शेल्फ लाइफ लंबी है।
    • आधुनिक प्रौद्योगिकी की कमी: भारत में कई चीनी मिलें पुरानी हैं और चीनी का कुशलतापूर्वक उत्पादन करने हेतु आवश्यक आधुनिक तकनीक की कमी से ग्रस्त हैं। इससे उद्योगों के लिये अन्य चीनी उत्पादक देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है। 
    • पर्यावरणीय प्रभाव: गन्ने की खेती के लिये बड़ी मात्रा में पानी और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त चीनी मिलें अक्सर हवा और पानी में प्रदूषक छोड़ती हैं, जो आस-पास के समुदायों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। 
    • राजनीतिक हस्तक्षेप: भारत में चीनी उद्योग राजनीति से काफी प्रभावित है, चीनी की कीमतों, उत्पादन और वितरण को निर्धारित करने में राज्य एवं केंद्र सरकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह अक्सर पारदर्शिता तथा अक्षमता की कमी की ओर ले जाता है।

आगे की राह 

  • रिमोट सेंसिंग तकनीक: भारत में जल, खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों में गन्ने के महत्त्व के बावजूद भारत में हाल के वर्षों के गन्ना उत्पादन से संबंधित कोई निश्चित भौगोलिक मानचित्र उपलब्ध नहीं है।
  • गन्ना उत्पादन क्षेत्रों के मानचित्रण के लिये रिमोट सेंसिंग तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है।  
  • विविधीकरण: भारत में चीनी उद्योग को जैव ईंधन और जैविक चीनी जैसे अन्य उत्पादों की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कार्यों में विविधता लानी चाहिये।
    • इससे चीनी की कीमतों में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।
  • अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन: फसल की पैदावार में सुधार लाने और चीनी उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये आवश्यक अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिये।
  • सतत् कार्यप्रणाली को प्रोत्साहित करना: पर्यावरण पर चीनी उत्पादन के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिये इस उद्योग को जल संरक्षणएकीकृत कीट प्रबंधन और कीटनाशकों के कम उपयोग जैसे संधारणीय अभ्यास को प्रोत्साहित करना चाहिये।

 राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2022-23 में राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा (GFDसकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3.4% रहने का अनुमान है, जो वर्ष 2020-21 में 4.1% था। 

इसका कारण व्यापक आर्थिक सुधार और राजस्व संग्रह में वृद्धि है। 

"राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन" रिपोर्ट:

  • परिचय:  
    • "राज्य वित्त: 2022-23 के बजटों का अध्ययन" शीर्षक वाली रिपोर्ट भारतीय राज्य सरकारों के वित्त की जानकारी, विश्लेषण और मूल्यांकन प्रदान करने वाला एक वार्षिक प्रकाशन है, जिसमें उनके राजस्व और व्यय में रुझान एवं चुनौतियाँ शामिल हैं।
  • रिपोर्ट की मुख्य बातें:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों का ऋण वर्ष 2020-21 में जीडीपी के 31.1% की तुलना में वर्ष 2022-23 में 29.5% तक कम होने का अनुमान है, 
    • हालाँकि रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यह अभी भी राजकोषीय उत्तरदायित्त्व और बजट प्रबंधन (FRBM) समीक्षा समिति, 2018 द्वारा अनुशंसित 20% से अधिक है।
    • राज्यों को मिलने वाले गैर-कर राजस्व की राशि, जो कि शुल्क, ज़ुर्माना और रॉयल्टी जैसी चीज़ों से आती है, में वृद्धि होने की उम्मीद है। उद्योगों एवं सामान्य सेवाओं से प्राप्त होने वाला राजस्व शायद इस वृद्धि का मुख्य चालक होगा।  
    • रिपोर्ट में बताया गया है कि विभिन्न राज्य वित्तीय वर्ष 2022-2023 में राज्य GSTउत्पाद शुल्क और बिक्री कर जैसे विभिन्न स्रोतों से राजस्व में वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।
  • रिपोर्ट में सुझाए गए उपाय:
    • ऋण समेकन (Debt Consolidation) राज्य सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिये। 
    • ऋण समेकन से तात्पर्य कई ऋणों को एक एकल, अधिक प्रबंधनीय ऋण में संयोजित करने की प्रक्रिया से है। यह समग्र ब्याज लागत को कम करनेभुगतान को आसान बनाने और कर्ज़ चुकाना आसान बना सकता है।
    • स्वास्थ्यशिक्षाबुनियादी ढाँचा और हरित ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों को अधिक संसाधन आवंटित करके राज्य आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • रिपोर्ट में प्रस्ताव किया गया है कि एक कोष स्थापित करना फायदेमंद होगा जिसका उपयोग मज़बूत राजस्व वृद्धि की अवधि के दौरान पूंजीगत व्यय को बफर करने के लिये किया जाएगा।  
    • इस कोष का उद्देश्य पूंजीगत परियोजनाओं पर खर्च का एक सुसंगत स्तर बनाए रखना होगा तथा यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक मंदी के दौरान इन परियोजनाओं पर खर्च में भारी कमी न हो। 
    • निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये राज्य सरकारों को निजी क्षेत्र के संचालन और विकास के लिये अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान देना होगा।
    • यह उन नीतियों और विनियमों को लागू करके प्राप्त किया जा सकता है जो निजी कंपनियों के लिये व्यवसाय करना आसान बनाते हैं, साथ ही निजी निवेश के लिये प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करते हैं।
    • राज्यों को देश भर में राज्य पूंजीगत व्यय के स्पिलओवर (पश्चगामी) प्रभावों का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिये उच्च अंतर-राज्य व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहित करने तथा सुविधाजनक बनाने की भी आवश्यकता है। 

सकल राजकोषीय घाटा (GFD)

  • GFD राज्य सरकार के समग्र वित्तीय स्वास्थ्य को मापता है और कुल व्यय से कुल राजस्व घटाकर इसकी गणना की जाती है।
  • GFD में कमी को आमतौर पर सकारात्मक संकेत माना जाता है क्योंकि यह इंगित करता है कि राज्य सरकार अपने राजस्व और व्यय को अधिक प्रभावी ढंग से संतुलित करने में सक्षम है। 

सरकारी घाटे के मापक

  • राजस्व घाटा: यह राजस्व प्राप्तियों पर सरकार के राजस्व व्यय की अधिकता को संदर्भित करता है।
  • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
  • राजकोषीय घाटा: यह सरकार की व्यय आवश्यकताओं और उसकी प्राप्तियों के बीच का अंतर है। यह उस धन के बराबर है जिसे सरकार को वर्ष के दौरान उधार लेने की आवश्यकता है। यदि प्राप्तियाँ व्यय से अधिक हैं तो अधिशेष उत्पन्न होता है।
    • राजकोषीय घाटा = कुल व्यय- (राजस्व प्राप्तियाँ+ गैर-ऋण सृजित पूंजीगत प्राप्तियाँ)। 
  • प्राथमिक घाटा: प्राथमिक घाटा ब्याज भुगतान- राजकोषीय घाटे के बराबर होता है। यह सरकार की व्यय आवश्यकताओं और इसकी प्राप्तियों के बीच अंतर को इंगित करता है, यह पिछले वर्षों के दौरान लिये गए ऋणों पर ब्याज भुगतान पर किये गए व्यय को ध्यान में नहीं रखता है।
    • प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान
  • प्रभावी राजस्व घाटा: यह पूंजीगत संपत्ति के निर्माण के लिये राजस्व घाटे और अनुदान के बीच का अंतर है।
  • सार्वजनिक व्यय पर रंगराजन समिति द्वारा प्रभावी राजस्व घाटे की अवधारणा का सुझाव दिया गया है।

गिग वर्कर्स राइट्

चर्चा में क्यों?  

  • 20 सितंबर, 2021 को इंडियन फेडरेशन ऑफ एप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स ने गिग वर्कर्स की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की कि केंद्र सरकार महामारी से प्रभावित श्रमिकों को सहायता प्रदान करे।
  • याचिका में 'गिग वर्कर्स' और 'प्लेटफॉर्म वर्कर्स' को 'असंगठित श्रमिक' घोषित करने की मांग की गई है ताकि वे असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के दायरे में आ सकें

गिग इकॉनमी

  • परिचय: 
    • गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें पारंपरिक पूर्णकालिक रोज़गार की बजाय अस्थायी रोज़गार का प्रचलन होता है और संगठन अल्पकालिक अनुबंधों के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
    • गिग वर्कर: गिग वर्कर को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और ऐसी गतिविधियों से आय अर्जित करता है।
  • भारत में गिग इकॉनमी के विकास चालक:
    • इंटरनेट और मोबाइल प्रौद्योगिकी का उदय: स्मार्टफोन को व्यापक रूप से अपनाने और हाई-स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता ने श्रमिकों एवं व्यवसायों के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ना आसान बना दिया है, जिससे गिग इकॉनमी के विकास में आसानी हुई है।
    • आर्थिक उदारीकरण: भारत सरकार की आर्थिक उदारीकरण नीतियों ने प्रतिस्पर्द्धा और अधिक खुले बाज़ार को बढ़ावा दिया है, जिसने गिग अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित किया है।
    • विभिन्न प्रकृति के काम की बढ़ती मांग: गिग अर्थव्यवस्था भारतीय श्रमिकों के लिये विशेष रूप से आकर्षक है, ऐसे में यह लचीली कार्य व्यवस्था की तलाश कर रहे लोगों को व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को संतुलित करने की सुविधा प्रदान करती है। 
    • जनसांख्यिकीय कारक: गिग अर्थव्यवस्था युवा, शिक्षित और महत्त्वाकांक्षी भारतीयों की बड़ी एवं बढ़ती संख्या से भी प्रेरित है, ये वो लोग हैं जो अतिरिक्त आय सृजन के साथ अपनी आजीविका में सुधार करना चाहते हैं।
  • चीन के संदर्भ में:  
    • चीन में सार्वजनिक विमर्श के बीच फूड डिलिवरी प्लेटफॉर्म को लेकर सरकार द्वारा जाँच में तेज़ी लाई गई है। यह मामला विशेष रूप से कोविड -19 महामारी का उत्पत्ति केंद्र माने जाने वाले वुहान से संबंधित था जहाँ सामाजिक विमर्श स्पष्ट रूप से डिलीवरी वर्कर्स के पक्ष में था।
    • जुलाई 2021 में चीन की सात सरकारी एजेंसियों ने संयुक्त रूप से दिशा-निर्देश पारित किये जिसमें वेतन, कार्यस्थल की सुरक्षा, कामकाज़ का माहौल और विवाद निपटान सहित क्षेत्रों में खाद्य वितरण श्रमिकों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा की मांग की गई।
  • भारत में गिग वर्कर्स से संबंधित मुद्दे:  
    • नौकरी और सामाजिक सुरक्षा का अभाव: भारत में विभिन्न गिग वर्कर्स श्रम संहिता के दायरे में नहीं आते हैं जिसके चलते उन्हें स्वास्थ्य बीमा और सेवानिवृत्ति योजनाओं जैसे लाभों तक पहुँच प्राप्त नहीं हो पाती है।
    • इसके अलावा गिग श्रमिकों को अक्सर चोट या बीमारी की स्थिति में  नियमित/पारंपरिक कर्मचारियों के समान सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है।
    • डिजिटल डिवाइड: गिग इकॉनमी काफी हद तक टेक्नोलॉजी एवं इंटरनेट एक्सेस पर निर्भर करती है, यह उन लोगों के लिये काम में बाधा उत्पन्न करती है जिनके पास इन संसाधनों की उपलब्धता नहीं है परिणामस्वरूप यह आय असमानता को और भी अधिक बढ़ा देती है।
    • आँकड़ों की अनुपलब्धता: भारत में गिग इकॉनमी संबंधी आँकड़ों एवं इस पर शोध की कमी है जिससे नीति निर्माताओं के लिये इसके आकार, दायरे तथा अर्थव्यवस्था व कार्यबल पर प्रभाव को समझना मुश्किल हो जाता है।
    • कंपनियों द्वारा शोषण: भारत में गिग वर्कर्स को अक्सर नियमित/पारंपरिक कर्मचारियों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है और उनके पास समान कानूनी सुरक्षा नहीं होती है।
    • कुछ कंपनियाँ देयता और करों का भुगतान करने से बचने के लिये गिग कर्मचारियों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में गलत वर्गीकृत करके उनका शोषण कर सकती हैं।

आगे की राह

  • सामाजिक सुरक्षा कवच: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वृद्ध श्रमिकों हेतु वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये गिग श्रमिकों की पेंशन योजनाओं एवं स्वास्थ्य बीमा जैसे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों तक पहुँच हो।
  • साथ ही गिग वर्कर्स को पारंपरिक कर्मचारियों के समान श्रम अधिकार दिये जाने चाहिये, जिसमें यूनियनों को संगठित करने एवं उनके गठन का अधिकार शामिल है।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण: सरकार को गिग वर्कर्स के कौशल में सुधार और उनकी कमाई की क्षमता बढ़ाने के लिये शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिये।
  • निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार को प्रोत्साहित करना: सरकार ऐसे नियम बनाकर निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित कर सकती है जो कंपनियों को श्रमिकों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में गलत वर्गीकृत करने से रोकते हैं और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को लागू करते हैं।
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FAQs on Economic Development (आर्थिक विकास): January 2023 UPSC Current Affairs - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. डीप टेक स्टार्टअप्स क्या हैं?
उत्तर. डीप टेक स्टार्टअप्स वे स्टार्टअप्स होते हैं जो उच्च तकनीकी योग्यता और विशेषज्ञता के साथ नवीनतम तकनीकी योग्यता का उपयोग करके नवीनतम और आविष्कारिक प्रोडक्ट या सेवाओं का निर्माण और विपणन करते हैं। इन स्टार्टअप्स का मुख्य उद्देश्य उच्च तकनीकी योग्यता वाले उद्यमियों को वित्तीय समर्थन प्रदान करना होता है।
2. स्टार्टअप इंडिया इनोवेशन वीक क्या होता है?
उत्तर. स्टार्टअप इंडिया इनोवेशन वीक एक साप्ताहिक समारोह है जिसमें स्टार्टअप्स, उद्यमियों और नई आविष्कारिक व्यवसायों को सम्मानित किया जाता है। यह वीक भारत सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य नवीनतम और आविष्कारिक व्यवसायों की प्रोत्साहना करना और उन्हें समर्थन प्रदान करना होता है।
3. 'सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट रिपोर्ट: द इंडिया स्टोरी' के बारे में बताएं।
उत्तर. 'सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट रिपोर्ट: द इंडिया स्टोरी' एक पुस्तक है जो द इंडिया स्टोरी के बारे में है। यह पुस्तक द इंडिया के आर्थिक विकास और उन्नति की कहानी को विस्तार से बताती है और यह बताती है कि आर्थिक विकास कैसे सर्वाइवल के लिए महत्वपूर्ण है।
4. चीनी निर्यात क्या होता है?
उत्तर. चीनी निर्यात एक व्यापारिक प्रक्रिया है जिसमें चीन से विभिन्न देशों में चीनी उत्पादों की निर्यात की जाती है। चीन विश्व का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है और इसलिए यह निर्यात के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5. 'राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन' क्या है?
उत्तर. 'राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन' एक रिपोर्ट है जो वर्ष 2022-23 के विभिन्न राज्यों के बजटों का विश्लेषण करती है। यह रिपोर्ट उन बजटों की विश्लेषण करती है जो राज्य सरकारों द्वारा पेश किए गए हैं और इन बजटों की महत्वपूर्ण विशेषताओं, नीतियों और योजनाओं पर प्रकाश डालती है।
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