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Economic Development (आर्थिक विकास): February 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

चालू खाता घाटा

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में एक अमेरिकी वित्तीय सेवा कंपनी मॉर्गन स्टेनली ने भविष्यवाणी की है कि चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 2023 में पिछले 10 वर्ष में सबसे ज़्यादा सकल घरेलू उत्पाद के 3% के उच्च स्तर तक बढ़ जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • निरंतर भू-राजनीतिक तनावों के मद्देनज़र, तेल की कीमतों में वृद्धि जारी रहने की संभावना है, जिससे उच्च तेल आयात बिल से चालू खाता घाटे में गिरावट आएगी।
  • भुगतान संतुलन (BoP) सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.5-1% की सीमामें होना चाहिये क्योंकि पूंजी प्रवाह के चालू खाता घाटे से कम होने की संभावना है।
  • फंडिंग जोखिमों की भेद्यता की सीमा को बड़े विदेशी मुद्रा भंडार द्वारा संतुलित किया जाएगा, जो कि 681 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • कंपनी को उम्मीद है कि अप्रैल 2022 की नीति रिवर्स रेपो दर वृद्धि के साथ सामान्यीकरण की प्रक्रिया को चिह्नित करेगी। हालाँकि अगर आरबीआई अपनी सामान्यीकरण प्रक्रिया में देरी करता है, तो विघटनकारी नीतिगत दरों में बढ़ोतरी का जोखिम बढ़ जाएगा।
  • उच्च घाटे एवं ऋण स्तरों को देखते हुए विकास को प्रोत्साहित करने के लिये राजकोषीय नीति कम प्रबल है तथा यह देखा जाता है कि एक मामूली ईंधन कर कटौती और राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रम पर स्वचालित स्थिरता के रूप में निर्भरता की संभावना है।

चालू खाता घाटा

  • चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) तब होता है जब किसी देश द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य उसके द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मूल्य से अधिक हो जाता है।
  • वस्तुओं के निर्यात तथा आयात के संतुलन को व्यापार संतुलन कहा जाता है। व्यापार संतुलन 'चालू खाता संतुलन' का एक हिस्सा है।
  • वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, उच्च तेल आयात, उच्च स्वर्ण आयात CAD को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक हैं।

भुगतान संतुलन

परिचय:

  • भुगतान संतुलन (Balance Of Payment-BoP) का अभिप्राय ऐसे सांख्यिकी विवरण से होता है, जो एक निश्चित अवधि के दौरान किसी देश के निवासियों तथा विश्व के अन्य देशों के साथ हुए मौद्रिक लेन-देनों के लेखांकन को रिकॉर्ड करता है।

BoP की गणना का उद्देश्य:

  • किसी देश की वित्तीय और आर्थिक स्थिति का पता चलता है।
  • यह निर्धारित करने के लिये इसे एक संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है कि देश में मुद्रा के मूल्य में बढ़ोतरी हो रही है या मूल्यह्रास हो रहा है।
  • यह राजकोषीय और व्यापार नीतियों पर निर्णय लेने में सरकार की मदद करता है।
  • किसी देश के अन्य देशों के साथ आर्थिक व्यवहार का विश्लेषण और उसे समझने के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

BoP के घटक:

  • एक देश का BoP खाता तैयार करने के लिये विश्व के अन्य हिस्सों के बीच इसके आर्थिक लेन-देन को चालू खाते, पूंजी खाते, वित्तीय खाते और त्रुटियों तथा चूक के तहत वर्गीकृत किया जाता है। यह विदेशी मुद्रा भंडार  (Foreign Exchange Reserve) में परिवर्तन को भी दर्शाता है।
  • चालू खाता: यह दृश्यमान (जिसे व्यापारिक माल भी कहा जाता है - व्यापार संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है) और अदृश्यमान वस्तुओं (गैर-व्यापारिक माल भी कहा जाता है) के निर्यात तथा आयात को दर्शाता है।
  • अदृश्यमान में सेवाएँ, विप्रेषण और आय शामिल हैं।
  • पूंजी खाता: यह किसी देश के पूंजीगत व्यय और आय को दर्शाता है।
  • यह एक अर्थव्यवस्था में निजी और सार्वजनिक दोनों निवेश के शुद्ध प्रवाह का सार प्रदान करता है।
  • बाहरी वाणिज्यिक उधार (External Commercial Borrowing), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment), विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment) आदि पूंजी खाते के हिस्से हैं।
  • त्रुटियाँ और चूक: कभी-कभी भुगतान संतुलन की स्थिति न होने के कारण इस असंतुलन को BoP में त्रुटियों और चूक (Errors and Omissions) के रूप में दिखाया जाता है। यह सभी अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन को सही ढंग से रिकॉर्ड करने में देश की अक्षमता को दर्शाता है।
  • विदेशी मुद्रा भंडार में बदलाव: रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के पास उपलब्ध विदेशी मुद्रा आस्तियों में बदलाव और विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) बैलेंस में बदलाव के कारण भी होते हैं। 
  • कुल मिलाकर BoP खाते में अधिशेष या घाटा हो सकता है। यदि कोई कमी है तो विदेशी मुद्रा भंडार से पैसा निकालकर इसे पूरा किया जा सकता है।
  • यदि विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है तो इस घटना को BoP संकट के रूप में जाना जाता है।

भुगतान एग्रीगेटर

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (PSS अधिनियम) के तहत 32 फर्मों को ऑनलाइन भुगतान एग्रीगेटर्स के रूप में काम करने के लिये सैद्धांतिक मंज़ूरी प्रदान की है।

  • PSS अधिनियम, 2007 भारत में भुगतान प्रणालियों के विनियमन और पर्यवेक्षण का प्रावधान करता है और RBI को उस उद्देश्य तथा सभी संबंधित मामलों के लिये प्राधिकरण के रूप में नामित करता है।

भुगतान एग्रीगेटर्स: 

परिचय: 

  • ऑनलाइन भुगतान एग्रीगेटर वे कंपनियाँ हैं जो ग्राहक और व्यापारी के मध्य मध्यस्थ के रूप में कार्य करके ऑनलाइन भुगतान की सुविधा प्रदान करती हैं।
  • RBI ने मार्च 2020 में PA और पेमेंट गेटवे के नियमन हेतु दिशानिर्देश जारी किये है।

कार्य:  

  • वे आम तौर पर ग्राहकों को क्रेडिट और डेबिट कार्ड, बैंक हस्तांतरण और ई-वॉलेट सहित कई प्रकार के भुगतान हेतु विकल्प प्रदान करते हैं।
  • यह सुनिश्चित करते हुए कि लेन-देन सुरक्षित और विश्वसनीय हैं, भुगतान एग्रीगेटर भुगतान हेतु जानकारी एकत्र और संसाधित करते हैं। 
  • भुगतान एग्रीगेटर का उपयोग कर व्यवसाय अपने स्वयं के भुगतान प्रसंस्करण सिस्टम को स्थापित करने और प्रबंधित करने की आवश्यकता से बच सकते हैं, जो की जटिल और महंगा हो सकता है।
  • भुगतान एग्रीगेटर्स के कुछ उदाहरणों में PayPal, स्ट्राइप, स्क्वायर और अमेज़न पे शामिल हैं। 

प्रमुख विशेषताएँ: 

  • बहु भुगतान विकल्प: भुगतान एग्रीगेटर ग्राहकों को कई प्रकार के भुगतान विकल्प प्रदान करते हैं, जिससे उनके लिये वस्तुओं और सेवाओं हेतु भुगतान करना आसान हो जाता है।
  • सुरक्षित भुगतान प्रसंस्करण: भुगतान एग्रीगेटर यह सुनिश्चित करने हेतु उन्नत सुरक्षा उपायों का उपयोग करते हैं कि लेनदेन सुरक्षित है।
  • धोखाधड़ी नियंत्रण और रोकथाम: भुगतान एग्रीगेटर धोखाधड़ी का पता लगाने और उसे रोकने हेतु एल्गोरिदम तथा मशीन लर्निंग का उपयोग करते हैं, साथ ही चार्जबैक एवं अन्य भुगतान विवादों के जोखिम को कम करते हैं।
  • भुगतान ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग: भुगतान एग्रीगेटर भुगतान लेनदेन पर विस्तृत रिपोर्ट प्रदान करते हैं, जिससे व्यवसायों हेतु अपने वित्त का प्रबंधन करना और अपने खातों का मिलान करना आसान हो जाता है।
  • अन्य प्रणालियों के साथ एकीकरण: भुगतान एग्रीगेटर भुगतान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और व्यवसाय संचालन को आसान बनाने हेतु लेखांकन सॉफ्टवेयर तथा वस्तुसूची/इन्वेंट्री प्रबंधन प्रणालियों जैसी अन्य प्रणालियों की एक शृंखला के साथ एकीकृत कर सकते हैं।

प्रकार 

  • बैंक भुगतान एग्रीगेटर: 
    • इसकी उच्च सेटअप लागत है साथ ही इनको एकीकृत करना मुश्किल होता है।
    • उनके पास विस्तृत रिपोर्टिंग सुविधाओं के साथ कई लोकप्रिय भुगतान विकल्पों का अभाव है। उच्च लागत के कारण बैंक भुगतान एग्रीगेटर छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स हेतु उपयुक्त नहीं हैं।
    • उदाहरण; Razorpay और CCAvenue।
  • तृतीय-पक्ष भुगतान एग्रीगेटर: 
    • तृतीय-पक्ष भुगतान एग्रीगेटर व्यवसायों हेतु अभिनव भुगतान समाधान प्रदान करते हैं और इन दिनों अधिक लोकप्रिय हो गए हैं।
    • उनकी उपयोगकर्त्ता-अनुकूल सुविधाओं में एक विस्तृत डैशबोर्ड, आसान मर्चेंट ऑनबोर्डिंग और त्वरित ग्राहक सहायता शामिल हैं।
    • उदाहरण.; पे पल, स्ट्राइप और गूगल पे।
  • भुगतान एग्रीगेटर्स के रूप में एक इकाई को मंज़ूरी देने के लिये आरबीआई का मानदंड:
    • भुगतान एग्रीगेटर ढाँचे के तहत, केवल भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित कंपनियाँ ही व्यापारियों को भुगतान सेवाओं का अधिग्रहण और पेशकश कर सकती हैं।
    • एग्रीगेटर प्राधिकरण के लिये आवेदन करने वाली कंपनी के पास आवेदन के पहले वर्ष में न्यूनतम नेटवर्थ 15 करोड़ रुपए और दूसरे वर्ष तक कम से कम 25 करोड़ रुपए होना चाहिये।
    • इसे वैश्विक भुगतान सुरक्षा मानकों के अनुरूप भी होना आवश्यक है।

भुगतान एग्रीगेटर और भुगतान गेटवे में अंतर

  • भुगतान गेटवे एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जो एक ऑनलाइन स्टोर अथवा व्यापारियों को भुगतान प्रोसेसर से जोड़ता है, जिससे व्यापारी को ग्राहक से भुगतान स्वीकार करने की अनुमति प्राप्त होती है।
  • दूसरी ओर, भुगतान एग्रीगेटर, मध्यस्थ हैं जो कई व्यापारियों को अलग-अलग भुगतान प्रोसेसर से जोड़ने के लिये एक मंच प्रदान करते हैं।
  • भुगतान एग्रीगेटर और भुगतान गेटवे के बीच मुख्य अंतर यह है कि भुगतान एग्रीगेटर वित्त/निधि का प्रबंधन करता है जबकि भुगतान गेटवे प्रौद्योगिकी प्रदान करता है।
  • हालाँकि भुगतान एग्रीगेटर द्वारा भुगतान गेटवे प्रदान किया जा सकता है, लेकिन भुगतान गेटवे ऐसा नहीं कर सकते हैं।

भारत का पशुधन क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) द्वारा  पशु नस्ल पंजीकरण प्रमाणपत्र वितरण समारोह का आयोजन किया गया।

  • इस अवसर पर केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने अपने संबोधन में कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र को समृद्ध बनाने हेतु भारत में बड़ी संख्या में स्वदेशी पशुधन नस्लों की पहचान करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।

भारत में पशुधन क्षेत्र की स्थिति

परिचय: 

  • पशुपालन ऐतिहासिक रूप से भारत में कृषि का एक अभिन्न अंग रहा है और वर्तमान में भी प्रासंगिक है क्योंकि समाज का एक बड़ा वर्ग सक्रिय रूप से कृषि कार्य में संलग्न एवं इस पर निर्भर है।
  • भारत पशुधन जैवविविधता में समृद्ध है और इसने विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल कई विशिष्ट नस्लों को विकसित किया है। 

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन का योगदान:  

  • भारत का पशुधन क्षेत्र वर्ष 2014-15 से 2020-21 (स्थिर कीमतों पर) के दौरान 7.9% की CAGR दर से बढ़ा और कुल कृषि GVA (स्थिर कीमतों पर) में इसका योगदान वर्ष 2014-15 के 24.3% से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 30.1% हो गया।
  • पशुधन न केवल आर्थिक रूप से लाभप्रद और परिवारों के लिये भोजन एवं आय का एक विश्वसनीय स्रोत है, बल्कि यह ग्रामीण परिवारों को रोज़गार भी प्रदान करता है, जो फसल के खराब होने की स्थिति में बीमा के रूप में कार्य करता है। साथ ही एक किसान के स्वामित्त्व वाले पशुधन की संख्या समुदाय के बीच उसकी सामाजिक स्थिति को भी निर्धारित करती है।
  • भारत में दुग्ध (Dairy) सबसे बड़ा एकल कृषि उत्पाद है। इसका राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5% का योगदान है और यह 80 मिलियन डेयरी किसानों को रोज़गार प्रदान करता है।

मान्यता प्राप्त स्वदेशी पशुधन प्रजातियाँ: 

  • हाल ही में ICAR ने पशुधन प्रजातियों की 10 नई नस्लों को पंजीकृत किया है। इससे जनवरी 2023 तक देशी नस्लों की कुल संख्या 212 हो गई है।

स्वदेशी पशुधन प्रजातियों की 10 नई नस्लें निम्नलिखित हैं:

  • कथानी मवेशी (महाराष्ट्र), सांचोरी मवेशी (राजस्थान) और मासिलम मवेशी (मेघालय)।
  • पूर्णाथाड़ी भैंस (महाराष्ट्र)।
  • सोजत बकरी (राजस्थान), करौली बकरी (राजस्थान) और गुजरी बकरी (राजस्थान)।
  • बाँदा सुअर (झारखंड), मणिपुरी काला सुअर (मणिपुर) और वाक चंबिल सुअर (मेघालय)।

भारत में पशुधन से संबंधित मुद्दे:  

  • पारदर्शिता की कमी:  
    • देश के लगभग आधे पशुधन अभी भी वर्गीकृत नहीं हैं। इसके अलावा भारतीय पशुधन उत्पाद बाज़ार ज़्यादातर अविकसित, अनिश्चित, पारदर्शिता की कमी और अनौपचारिक बाज़ार मध्यस्थों के प्रभुत्त्व वाले हैं
  • पशुओं में बीमारी में वृद्धि:  
    • पशुओं में संचारी रोगों में वृद्धि हुई है। हाल ही में भारत के विभिन्न राज्यों में मवेशियों में गाँठदार त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease- LSD) के अनेक मामले देखे गए हैं।
  • सेवाओं के विस्तार का अभाव:
    • हालाँकि फसल उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हेतु सेवाओं के विस्तार को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है, लेकिन पशुधन के विस्तार पर कभी भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया एवं यह भारत में पशुधन क्षेत्र की कम उत्पादकता के प्रमुख कारणों में से एक रहा है।

पशुधन क्षेत्र से संबंधित सरकारी योजनाएँ

  • पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF): इस योजना के तहत केंद्र सरकार उधारकर्त्ता को 3% की ब्याज सहायता और कुल उधार के 25% तक क्रेडिट गारंटी प्रदान करती है। 
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM): इस योजना को वर्ष 2021-22 से 2025-26 के लिये पुनर्गठित किया गया है।  
  • यह योजना उद्यमिता विकास और चारा विकास सहित मुर्गी पालन, भेड़, बकरी और सुअर पालन में नस्ल सुधार पर केंद्रित है। 
  • पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण (LH&DC) योजना: यह टीकाकरण द्वारा आर्थिक और ज़ूनोटिक महत्त्व के पशुओं में रोगों की रोकथाम, नियंत्रण तथा इस दिशा में राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों के प्रयासों को बल प्रदान करने हेतु कार्यान्वित की जा रही है। 
  • राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP): इसे खुरपका और मुँहपका रोग एवं ब्रूसेलोसिस के खिलाफ मवेशियों, भैंस, भेड़, बकरी और सुअर की आबादी तथा ब्रुसेलोसिस के खिलाफ 4-8 माह के मादा गोजातीय बछड़ों का पूरी तरह से टीकाकरण करने हेतु लागू किया जा रहा है।

भारत अपने पशुधन क्षेत्र को कैसे बढ़ा सकता है?

  • नई नस्लों का पंजीकरण: राज्य विश्वविद्यालयों, पशुपालन विभागों, गैर-सरकारी संगठनों और अन्य के सहयोग से देश में सभी पशु आनुवंशिक संसाधनों का दस्तावेज़ीकरण करने का ICAR का मिशन इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • इसके अलावा कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) ने इन स्वदेशी नस्लों पर संप्रभुता का दावा करने हेतु वर्ष 2019 से राजपत्र में सभी पंजीकृत नस्लों को अधिसूचित करना शुरू कर दिया है।  
  • पशु चिकित्सा एम्बुलेंस सेवा और अनिवार्य पशुधन टीकाकरण: घायल पशुओं को तत्काल प्राथमिक उपचार प्रदान करने के लिये पशु चिकित्सालयों में एम्बुलेंस सेवाओं का विस्तार किया जाना चाहिये।
  • इसके अलावा पशुधन प्राथमिक टीकाकरण अनिवार्य किया जाना चाहिये और समयबद्ध तरीके से नियमित पशु चिकित्सा निगरानी की जानी चाहिये।
  • ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण: एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु लोगों, पशु-पौधों तथा उनके साझा पर्यावरण के मध्य अंतर्संबंध को समझने, अनुसंधान को प्रोत्साहित करने तथा मानव स्वास्थ्य को लेकर कई स्तरों पर ज्ञान साझा करने की आवश्यकता है। पौधे, मिट्टी, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य स्थिरता तथा ज़ूनोटिक(zoonotic) रोगों से निपटने में भी मदद कर सकते हैं।

वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक: IMF

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) ने अपनी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (WEO) रिपोर्ट जारी की है, जिसने वर्ष 2023 के लिये वैश्विक विकास के पूर्वानुमान को अद्यतन किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • वैश्विक विकास में कमी: 
    • वैश्विक विकास जो वर्ष 2022 में 3.4% अनुमानित था, अब वर्ष 2023 में 2.9% तक गिरावट के बाद वर्ष 2024 में 3.1% तक बढ़ने का अनुमान है।
    • हालाँकि IMF प्रभावी रूप से वैश्विक मंदी की संभवना को नकारता है।
  • वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) या प्रति व्यक्ति वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में नकारात्मक वृद्धि अपेक्षित नहीं है जो अक्सर वैश्विक मंदी होने पर देखी जाती है।
  • हालाँकि यह वर्ष 2024 में गति पकड़ने से पहले वर्ष 2023 में वैश्विक विकास की उम्मीद करता है। 

मुद्रास्फीति में कमी: 

  • मुद्रास्फीति-विस्फीति: 
    • वर्ष 2022 में मुद्रास्फीति चरम पर थी, जबकि अवस्फीति धीमी होगी और यह वर्ष 2023 और 2024 तक रहेगी।
  • हेडलाइन मुद्रास्फीति: 
    • लगभग 84% देशों में वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में हेडलाइन (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) मुद्रास्फीति में कमी आने की उम्मीद है। 
  • वैश्विक मुद्रास्फीति: 
    • वैश्विक मुद्रास्फीति वर्ष 2022 के 8.8% (वार्षिक औसत) से गिरकर वर्ष 2023 में 6.6% और वर्ष 2024 में 4.3% रहने की संभावना है, जो महामारी पूर्व (2017-19)  लगभग 3.5% के स्तर से ऊपर थी। 
  • मूल्य वृद्धि में कमी: 
    • मूल्य वृद्धि दो मुख्य कारणों से धीमी हो रही है,
    • पहला, विश्व भर में मौद्रिक सख्ती- उच्च ब्याज दरें वस्तुओं एवं सेवाओं की समग्र मांग को कम करती हैं और बदले में मुद्रास्फीति को धीमा कर देती हैं। 
    • दूसरा, लड़खड़ाती मांग के मद्देनज़र विभिन्न वस्तुओं- ईंधन और गैर-ईंधन दोनों की कीमतें अपने हालिया उच्च स्तर से नीचे आ गई हैं। 
    • वर्ष 2023 में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति 4.6% रहने की संभावना है, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं को 8.1% की मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ेगा। 
  • भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होगा: 
    • वर्ष 2023 और 2024 में भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होगा।
    • भारत में विकास दर वर्ष 2022 के 6.8% से घटकर वर्ष 2023 में 6.1% हो जाएगी, जो बाहरी चुनौतियों के बावजूद लचीली घरेलू मांग के साथ वर्ष 2024 में 6.8% तक बढ़ेगी। 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)

परिचय: 

  • द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद युद्ध में तबाह हुए देशों के पुनर्निर्माण में सहायता के लिये विश्व बैंक के साथ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गई।
  • अमेरिका के ब्रेटन वुड्स में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान इन दोनों संगठनों की स्थापना पर सहमति बनी। इसलिये इन्हें ब्रेटन वुड्स के जुड़वाँ संतानों यानी ब्रेटन वुड्स ट्विन्स के रूप में भी जाना जाता है।
  • IMF की स्थापना वर्ष 1944 में हुई थी, यह उन 190 देशों द्वारा शासित और उनके प्रति जवाबदेह है जो इसके वैश्विक सदस्य हैं। भारत ने 27 दिसंबर, 1945 को IMF की सदस्यता ग्रहण की।
  • IMF दिसंबर 1945 में औपचारिक रूप से अस्तित्त्व में आया।
  • IMF का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है, यह विनिमय दरों और अंतर्राष्ट्रीय भुगतान की प्रणाली है जो देशों (और उनके नागरिकों) को एक-दूसरे के साथ लेन-देन करने में सक्षम बनाती है।
  • वर्ष 2012 में एक कोष के जनादेश के अंतर्गत वैश्विक स्थिरता से संबंधित सभी व्यापक आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र के मुद्दों को शामिल करने के लिये इसको अद्यतित किया गया।

IMF द्वारा जारी रिपोर्ट: 

  • वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट 
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक:
    • यह IMF द्वारा किया जाने वाला एक सर्वेक्षण कार्यक्रम है जो आमतौर पर अप्रैल और अक्तूबर के महीनों में वर्ष में दो बार प्रकाशित किया जाता है।
    • यह निकट और मध्यम अवधि के दौरान वैश्विक आर्थिक विकास का विश्लेषण और भविष्यवाणी करता है।
    • WEO की अद्यतन रिपोर्ट जनवरी और जुलाई में प्रकाशित की जाती है, इसके अलावा दो मुख्य WEO रिपोर्ट्स आमतौर पर अप्रैल और अक्तूबर में जारी की जाती हैं, ताकि लगातार पूर्वानुमान अपडेट की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके

स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS) के तहत 477.25 करोड़ रुपए की मंज़ूरी दी है, जो स्टार्टअप इंडिया पहल के अंतर्गत एक प्रमुख योजना है।

  • सीड फंडिंग (Seed Funding) एक स्टार्टअप या नए व्यवसाय में निवेश का एक प्रारंभिक चरण है। सीड फंडिंग का लक्ष्य कंपनी को एक ऐसे बिंदु तक पहुँचाने में मदद करना है जहाँ यह अतिरिक्त वित्तपोषण को सुरक्षित कर सकता है या आत्मनिर्भर बनने के लिये राजस्व उत्पन्न कर सकता है। 

स्टार्टअप इंडिया पहल:

  • स्टार्टअप इंडिया पहल में नवाचार को बढ़ावा देने और उभरते उद्यमियों को अवसर प्रदान करने के लिये देश में एक मज़बूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की परिकल्पना की गई है।
  • इस पहल के तहत जनवरी 2016 में प्रधानमंत्री द्वारा 19 कार्य बिंदुओं की एक कार्ययोजना का अनावरण किया गया था।
  • इस कार्ययोजना ने भारत में स्टार्टअप के लिये एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण हेतु रोडमैप निर्धारित किया।
  • स्टार्टअप इंडिया पहल फ्लैगशिप योजनाओं जैसे- स्टार्टअप्स हेतु फंड ऑफ फंड्स (FFS)SISFS और स्टार्टअप्स के लिये क्रेडिट गारंटी स्कीम (CGSS) को उनके व्यापार चक्र के विभिन्न चरणों में सहायता प्रदान करती है।

स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS)

परिचय: 

  • इस योजना की घोषणा 16 जनवरी, 2021 को स्टार्टअप इंडिया इंटरनेशनल समिट में की गई थी। 
  • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने वर्ष 2021-22 से शुरू होने वाले 4 वर्षों की अवधि हेतु  945 करोड़ रुपए के परिव्यय को मंज़ूरी दी है ताकि स्टार्टअप को विचार अथवा सिद्धांत के प्रमाण, प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार प्रवेश और व्यावसायीकरण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके। 

निष्पादन और निगरानी: 

  • DPIIT द्वारा एक विशेषज्ञ सलाहकार समिति (EAC) का गठन किया गया है, जो स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम के समग्र निष्पादन और निगरानी के लिये ज़िम्मेदार होगा। 
  • EAC बीज निधियों के आवंटन के लिये इनक्यूबेटरों का मूल्यांकन और चयन करेगी, प्रगति की निगरानी करेगी तथा स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम के उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में निधियों के कुशल उपयोग हेतु सभी आवश्यक उपाय करेगी। 

पात्रता:

  • DPIIT (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) द्वारा मान्यता प्राप्त एक ऐसा स्टार्टअप जो आवेदन के समय से 2 वर्ष से अधिक पहले शामिल नहीं किया गया हो। 
  • स्टार्टअप ने केंद्रीय या राज्य सरकार की किसी अन्य योजना के तहत 10 लाख रुपए से अधिक की मौद्रिक सहायता प्राप्त नहीं की हो। 
  • सामाजिक प्रभाव, अपशिष्ट प्रबंधन, जल प्रबंधन, वित्तीय समावेशन, शिक्षा, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, जैव प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, ऊर्जा, गतिशीलता, रक्षा, अंतरिक्ष, रेलवे, तेल और गैस, वस्त्र आदि जैसे क्षेत्रों में अभिनव समाधान प्रदान करने वाले स्टार्टअप को प्राथमिकता दी जाएगी। 

अनुदान और समर्थन: 

  • यह अगले 4 वर्षों में 300 इनक्यूबेटरों के माध्यम से अनुमानतः 3,600 उद्यमियों को समर्थन देगा। 
  • समिति द्वारा चयनित पात्र इनक्यूबेटरों को 5 करोड़ रुपए तक का अनुदान प्रदान किया जाएगा। 
  • चयनित इनक्यूबेटर स्टार्टअप विचार अथवा सिद्धांत के प्रमाण या प्रोटोटाइप विकास या उत्पाद परीक्षणों के सत्यापन के लिये 20 लाख रुपए तक का अनुदान प्राप्त करेंगे। 
  • परिवर्तनीय डिबेंचर या ऋण से जुड़ी प्रतिभूतियों के माध्यम से व्यवसायों को बाज़ार में प्रवेश, व्यावसायीकरण अथवा स्केलिंग के लिये 50 लाख रुपए तक की सहायता दी जाएगी।

सीड फंड की आवश्यकता: 

  • उद्यम के विकास के प्रारंभिक चरणों में उद्यमियों के लिये पूंजी की आसान उपलब्धता की आवश्यकता होती है।
  • भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम सीड और 'प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट' विकास चरण में पूंजी की कमी से ग्रस्त है
  • पूंजी की आवश्यकता को देखते हुए कई चरणों पर अच्छे व्यावसायिक अवधारणाओं वाले स्टार्टअप अक्सर खुद को मेक-या-ब्रेक की स्थिति में पाते हैं।
  • अवधारणा के प्रमाण, प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार में प्रवेश और व्यावसायीकरण के लिये प्रारंभिक चरण में आवश्यक महत्त्वपूर्ण पूंजी की समस्या के कारण कई नवीन व्यावसायिक विचार क्रियान्वित नही हो पाते हैं।
  • स्टार्टअप के लिये पेश किया गया सीड फंड कई स्टार्टअप्स के व्यावसायिक विचारों को साकार करने में प्रभावी हो सकता है जिससे रोज़गार सृजन हो सकता है।

स्टार्टअप्स से संबंधित अन्य पहलें: 

  • स्टार्टअप नवाचार से संबंधित चुनौतियाँ: यह किसी भी स्टार्टअप के लिये अपनी नेटवर्किंग और फंड जुटाने के प्रयासों का लाभ उठाने का एक शानदार अवसर है।
  • राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार: यह उन उत्कृष्ट स्टार्टअप्स और पारिस्थितिकी तंत्र के समर्थकों को पहचानने और पुरस्कृत करने का प्रयास करता है जो नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देकर आर्थिक गतिशीलता में योगदान दे रहे हैं।
  • स्टार्टअप इकोसिस्टम के समर्थन पर राज्यों की रैंकिंग: यह संबंधित स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के व्यापक विकास के लिये राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के समर्थन को बढ़ाने हेतु डिज़ाइन किया गया एक उन्नत मूल्यांकन उपकरण है।
  • SCO स्टार्टअप फोरम: स्टार्टअप इकोसिस्टम को सामूहिक रूप से विकसित और बेहतर बनाने के लिये अक्तूबर 2020 में पहली बार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) द्वारा SCO स्टार्टअप फोरम लॉन्च किया गया था।
  • प्रारंभ: ‘प्रारंभ’ शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया भर के स्टार्टअप्स और युवा प्रतिभाओं को नए विचार, नवाचार एवं आविष्कार को बढ़ावा देने हेतु मंच प्रदान करना है।

शेयर बाज़ार विनियमन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि निवेशकों को शेयर बाज़ार की अस्थिरता से बचाने हेतु भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) तथा सरकार मौजूदा नियामक ढाँचे का निर्माण करें।

परिचय: 

  • शेयर बाज़ार सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों में इक्विटी शेयरों के व्यापार हेतु खरीदारों और विक्रेताओं को एक साथ लाते हैं।
  • शेयर बाज़ार एक मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था के घटक हैं क्योंकि वे निवेशक व्यापार और पूंजी के आदान-प्रदान हेतु लोकतांत्रिक पहुँच को सक्षम करते हैं।
  • मुक्त-बाज़ार अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें सरकारी विनियमन के हस्तक्षेप के बिना आपूर्ति तथा मांग द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
  • भारत में दो स्टॉक एक्सचेंज हैं- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange- BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (National Stock Exchange- NSE)।
  • SEBI भारत में प्रतिभूति बाज़ार का नियामक है। वह कानूनी ढाँचा निर्धारित करता है और बाज़ार संचालन में रुचि रखने वाली सभी संस्थाओं को विनियमित करता है।
  • प्रतिभूति संविदा विनियमन अधिनियम (Securities Contracts Regulation Act- SCRA) ने SEBI को भारत में स्टॉक एक्सचेंजों और फिर कमोडिटी एक्सचेंजों को मान्यता देने तथा विनियमित करने का अधिकार प्रदान किया है; यह कार्य पहले केंद्र सरकार द्वारा किया जाता था।

नियमन के लिये कानून

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (SEBI अधिनियम): 
    • यह अधिनियम SEBI को निवेशकों के हितों की रक्षा करने और इसे विनियमित करने के अलावा पूंजी/प्रतिभूति बाज़ार के विकास को प्रोत्साहित करने का अधिकार देता है।
    • यह SEBI के कार्यों और शक्तियों का निर्धारण करता है और इसकी संरचना तथा प्रबंधन सुनिश्चित करता है।
  • प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (SCRA)
    • यह कानून भारत में प्रतिभूति अनुबंधों के नियमन के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • इसमें प्रतिभूतियों की लिस्टिंग और ट्रेडिंग, स्टॉक ब्रोकर्स एवं सब-ब्रोकर्स का पंजीकरण तथा विनियमन एवं इनसाइडर ट्रेडिंग पर रोक शामिल है।
  • कंपनी अधिनियम, 2013: 
    • यह कानून भारत में कंपनियों के निगमन, प्रबंधन और शासन को नियंत्रित करता है।
    • यह कंपनियों द्वारा जारी किये जाने वाले प्रतिभूतियों और अन्य प्रतिभूतियों के हस्तांतरण के लिये नियम भी निर्धारित करता है।
  • डिपॉज़िटरी अधिनियम, 1996: 
    • यह कानून भारत में डिपॉज़िटरी के नियमन और पर्यवेक्षण का प्रावधान करता है। यह इलेक्ट्रॉनिक रूप में धारित प्रतिभूतियों के अभौतिकीकरण तथा हस्तांतरण के लिये प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है।
  • इनसाइडर ट्रेडिंग विनियमन, 2015: 
    • ये नियम भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में इनसाइडर ट्रेडिंग को प्रतिबंधित करते हैं। इस कार्य में शामिल लोगों के लिये आचार संहिता, खुलासे और उल्लंघन के लिये दंड निर्धारित करते हैं।

बाज़ार की अस्थिरता पर अंकुश लगाने में SEBI की भूमिका

  • SEBI बाज़ार की अस्थिरता को रोकने के लिये हस्तक्षेप नहीं करता है, अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिये एक्सचेंजों में दो सर्किट फिल्टर होते हैं- पहला ऊपरी या अपर सर्किट और दूसरा निचला या लोअर सर्किट।
  • लेकिन सेबी उन लोगों को निर्देश जारी कर सकता है जो बाज़ार से जुड़े हैं और स्टॉक एक्सचेंजों पर व्यापार एवं निपटान (Settlement) को विनियमित करने की शक्ति रखते हैं।
  • इन शक्तियों का उपयोग करते हुए SEBI स्टॉक एक्सचेंजों को पूरी तरह से या चुनिंदा रूप से व्यापार रोकने का निर्देश दे सकता है। 
  • यह संस्थाओं या व्यक्तियों को प्रतिभूतियों को खरीदने, बेचने या व्यवहार करने, बाज़ार से धन जुटाने और बिचौलियों या सूचीबद्ध कंपनियों से जुड़ने पर भी रोक लगा सकता है।

धोखाधड़ी के खिलाफ सुरक्षात्मक उपाय

  • दो प्रमुख प्रकार की धोखाधड़ी- बाज़ार हेर-फेर तथा इनसाइडर ट्रेडिंग को रोकने के लिये सेबी ने वर्ष 1995 में धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं का निषेध विनियम एवं वर्ष 1992 में इनसाइडर ट्रेडिंग विनियमों का निषेध जारी किया।
  • ये नियम अंदरूनी सूत्रों से प्राप्त जानकारी को धोखाधड़ी के रूप में  परिभाषित करते हैं और इस तरह की धोखाधड़ी की गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है, साथ ही गलत माध्यम से अर्जित लाभों पर दंड जैसे प्रावधान भी हैं।
  • इन नियमों का उल्लंघन विधेय अपराध हैं जिसे धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के उल्लंघन के रूप में माना जा सकता है।
  • SEBI ने शेयरों के पर्याप्त अधिग्रहण और अधिग्रहण विनियमों को अधिसूचित किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिग्रहण एवं प्रबंधन में परिवर्तन केवल सार्वजनिक शेयरधारकों को कंपनी से बाहर निकलने का अवसर देने के बाद ही किया जाए, यदि वे चाहते हैं।  
  • SEBI और स्टॉक एक्सचेंजों के आदेशों के खिलाफ तीन सदस्यीय प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT) में अपील की जा सकती है।
  • SAT से उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है
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FAQs on Economic Development (आर्थिक विकास): February 2023 UPSC Current Affairs - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. चालू खाता घाटा क्या है?
उत्तर. चालू खाता घाटा एक आर्थिक शब्द है जो व्यापारिक या वित्तीय खातों में लाभ की अवधि में होने वाली अपारतंतिकता को दर्शाता है। यह घाटा या क्षति निर्धारित करता है कि व्यवसाय कितना कारोबार कर सकता है और कितना कर्ज ले सकता है।
2. भुगतान संतुलन क्या होता है?
उत्तर. भुगतान संतुलन एक आर्थिक शब्द है जो व्यापार या वित्तीय संस्थानों में उपयोग होता है। यह दर्शाता है कि एक व्यक्ति या कंपनी अपने बकाया राशि समय पर कितनी खुदरा कर सकती है और कितनी खुदरा उपलब्ध होती है।
3. भुगतान एग्रीगेटर क्या है?
उत्तर. भुगतान एग्रीगेटर एक आर्थिक शब्द है जो व्यापारियों और उनके ग्राहकों के बीच वित्तीय लेन-देन की प्रबंधन करने वाली एक कंपनी या सेवा को दर्शाता है। इसे भुगतान प्रोसेसिंग कंपनी भी कहा जाता है और यह विभिन्न वित्तीय नेटवर्कों, बैंकों और व्यापारियों के बीच संचालित होता है।
4. भारत का पशुधन क्षेत्र क्या है?
उत्तर. भारत का पशुधन क्षेत्र विश्व में सबसे बड़ा पशु पालन क्षेत्र है और यह देश के अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां विभिन्न प्रकार के पशु, जैसे गाय, भैंस, बकरी, मुर्गा आदि पाले जाते हैं और इनका उत्पादन खाद्य, दूध, मांस और अन्य उत्पादों के लिए उपयोग होता है।
5. वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक: IMF क्या है?
उत्तर. वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (World Economic Outlook) एक वार्षिक प्रकाशन है जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रास्फीति और आर्थिक प्रगति को निर्धारित करने के लिए विश्व मानचित्र द्वारा प्रकाशित किया जाता है। यह आईएमएफ द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और विभिन्न देशों के आर्थिक विश्लेषण, प्रासंगिक आंकड़े और योजनाओं के साथ आता है।
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