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Moral Integrity (नैतिकता अखंडता): February 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

1. संगठन और संस्थान, भ्रष्टाचार और भेदभाव जैसी नैतिक चुनौतियों का समाधान कैसे करते हैं?

उत्तर:

परिचय:

  • नैतिक चुनौतियाँ ऐसी परिस्थितियाँ हैं जिनमें किसी व्यक्ति या संगठन को दो या दो से अधिक कार्यों के बीच चयन करने की आवश्यकता होती है जो एक दूसरे के साथ संघर्ष में हो सकते हैं या जिन्हें सही या गलत, उचित या अनुचित माना जा सकता है।
  • भ्रष्टाचार और भेदभाव दो प्रमुख नैतिक चुनौतियाँ हैं जिनका समाधान संगठनों और संस्थानों को अवश्य ही करना चाहिए इन्हें निम्नानुसार वर्णित किया जा सकता है:
  • भ्रष्टाचार: यह व्यक्तिगत लाभ के लिये शक्ति, प्रभाव या स्थिति के उपयोग को संदर्भित करता है।
  • इसमें रिश्वतखोरी और भाई-भतीजावाद सहित कई रूप शामिल हो सकते हैं। भ्रष्टाचार कई देशों में एक बड़ी समस्या है, क्योंकि यह संस्थानों की अखंडता को कमजोर करने के साथ लोगों में सार्वजनिक विश्वास को कम करता है।
  • इसके नकारात्मक आर्थिक परिणाम भी हो सकते हैं, क्योंकि यह बाजारों को विकृत कर सकता है और निवेश को हतोत्साहित कर सकता है।
  • भेदभाव: यह व्यक्तियों या समूहों के साथ उनकी नस्ल, जातीयता, लिंग, धर्म या अन्य विशेषताओं के आधार पर किये जाने वाले अनुचित व्यवहार को संदर्भित करता है।
  • यह एक बड़ी नैतिक चुनौती है क्योंकि यह सामाजिक और आर्थिक असमानता को जन्म दे सकती है और व्यक्तियों एवं समुदायों की भलाई को नुकसान पहुँचा सकती है।

मुख्य भाग:

भ्रष्टाचार और भेदभाव जैसी नैतिक चुनौतियों का समाधान करने के लिये संगठन और संस्थान निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:

  • नैतिक संहिता और आचार संहिता: इसका एक महत्त्वपूर्ण उपाय, स्पष्ट आचार संहिता और नैतिक संहिता स्थापित करना हो सकता है जो अपेक्षित व्यवहार और मूल्यों को रेखांकित करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संगठन के सभी सदस्य जागरूक हैं और उनका पालन करते हैं।
  • इसलिये किसी संगठन को अपने कार्यक्रमों, नीतियों और निर्णयों को निर्देशित करने वाले सिद्धांतों को स्थापित करके नैतिक आचार संहिता को परिभाषित करना चाहिये।
  • यह संगठन के अंदर सत्यनिष्ठा और नैतिक व्यवहार की संस्कृति स्थापित करने में मदद कर सकता है, जो भ्रष्टाचार जैसी अनैतिक प्रथाओं के लिये महत्त्वपूर्ण निवारक हो सकता है।
  • अनैतिक व्यवहार को रोकना: इसका एक अन्य दृष्टिकोण अनैतिक व्यवहार की रिपोर्टिंग और समाधान के लिये प्रणाली स्थापित करना है, जैसे हॉटलाइन या लोकपाल की व्यवस्था, जिससे कर्मचारी बिना चिंता या डर के घटनाओं की रिपोर्ट कर सकें।
  • इससे सुरक्षित और पारदर्शी वातावरण का निर्माण होगा जिसमें कर्मचारी अनैतिक प्रथाओं के बारे में सवाल उठाने में सहज महसूस करेंगे। जिससे अनैतिक प्रथाओं के होने या बढ़ने से रोकने में मदद मिल सकती है।
  • अनैतिक व्यवहार की न्यायोचित जाँच: अनैतिक व्यवहार के आरोपों की जाँच और इनका पता लगाने के लिये संगठनों के पास स्पष्ट नीतियाँ और प्रक्रियाएँ होना भी महत्त्वपूर्ण है और ऐसे व्यवहार में संलग्न लोगों को अनुशासनात्मक उपायों या अन्य दंडों के माध्यम से जवाबदेह ठहराना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • यह अनैतिक व्यवहार के लिये निवारक के रूप में काम कर सकता है और संगठन के अंदर अखंडता और जिम्मेदारी की संस्कृति बनाने में मदद कर सकता है।
  • नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देना: इसके अलावा संगठन पारदर्शिता, जवाबदेही और अखंडता की संस्कृति स्थापित करके और वरिष्ठ निर्णयकर्ताओं के कार्यों एवं निर्णयों के माध्यम से एक अच्छा उदाहरण स्थापित करके नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने की कोशिश कर सकते हैं।
  • इसमें संगठन के मूल्यों और अपेक्षाओं के बारे में कर्मचारियों के साथ नियमित रूप से संवाद करना और लिये गए निर्णयों एवं किये गए कार्यों के माध्यम से नैतिक व्यवहार के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करना शामिल हो सकता है।
  • सकारात्मक कार्य संस्कृति को बढ़ावा देना: नैतिक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये संगठनों के लिये मजबूत नेतृत्व और सकारात्मक कॉर्पोरेट संस्कृति का होना भी महत्त्वपूर्ण है जो नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देता है।
  • इसमें कर्मचारियों को समस्याओं के बारे में बोलने के लिये सशक्त बनाना और नैतिक व्यवहार प्रदर्शित करने वालों को पुरस्कृत करना शामिल हो सकता है। एक सकारात्मक और सहायक कार्य वातावरण बनाकर, संगठन कर्मचारियों को नैतिक निर्णय लेने और अनैतिक व्यवहार होने पर रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहित कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

  • भ्रष्टाचार और भेदभाव की चुनौतियों का समाधान करने के लिये संगठन और संस्थाएँ विभिन्न प्रकार के उपायों को लागू कर सकते हैं। जिनमें भ्रष्टाचार विरोधी नीतियाँ और नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं।
  • नेतृत्वकर्ताओं के लिये एक अच्छा उदाहरण स्थापित करना और अनैतिक व्यवहार के लिये व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराना भी महत्त्वपूर्ण है। इन चुनौतियों का समाधान करके, संगठन और संस्थान अधिक नैतिक और निष्पक्ष समाज का निर्माण कर सकते हैं।

प्रश्न: एक सिविल सेवक के रूप में आपको अपने ज़िले के ज़िला कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया है। एक दिन आपको एक स्थानीय एनजीओ से शिकायत मिलती है कि आपके ज़िले के एक दूरस्थ गाँव का एक सरकारी स्कूल छात्रों को उचित सुविधाएँ और बुनियादी ढाँचा प्रदान नहीं कर रहा है। इस एनजीओ ने आपको स्कूल की खराब स्थिति के सबूत के तौर पर तस्वीरें और वीडियो भी उपलब्ध कराए हैं।
जाँच करने पर आपको पता चलता है कि एनजीओ द्वारा लगाए गए आरोप सही हैं और आपके ज़िले के स्कूल वास्तव में दयनीय स्थिति में हैं। आपको यह भी पता चलता है कि उनके पास बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वच्छ पेयजल, उचित वातावरण और स्वच्छता आदि का भी अभाव है।
इस स्थिति में आप दुविधा में हैं - एक तरफ तो आप तत्काल कार्रवाई द्वारा छात्रों को बेहतर माहौल प्रदान करने के लिये अपने ज़िले के स्कूलों की स्थिति में सुधार करना चाहते हैं। दूसरी ओर आप जानते हैं कि स्कूल की सुविधाओं की सुधार प्रक्रिया में समय और धन की आवश्यकता होगी और आप यह भी सुनिश्चित नहीं हैं कि ज़िले के लिये आवंटित धन इन खर्चों को पूरा करने के लिये पर्याप्त होगा भी या नहीं।
ज़िला कलेक्टर के रूप में आप इस स्थिति में क्या करेंगे?

उत्तर:

परिचय:

  • यह मामला एक एनजीओ द्वारा की गई जाँच से संबंधित है जिसमें ज़िले के विभिन्न सरकारी स्कूलों में बुनियादी जरूरतों की कमी को उजागर किया गया है और यह इस बात से भी संबंधित है कि एक ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में मैं इस मुद्दे को हल करने के लिये क्या कार्रवाई करूँगा।

मुख्य भाग:

इसमें शामिल हितधारक:

  • ज़िला कलेक्टर के रूप में स्वयं मैं
  • स्थानीय एनजीओ, जो स्कूलों में खराब स्थिति का विवरण प्रदान करता है।
  • स्कूलों के लिये फंड से संबंधित सरकारी अधिकारी
  • जो छात्र इन स्कूलों में पढ़ रहे हैं।
  • इन छात्रों के परिवार।
  • समाज।

इसमें शामिल नैतिक मुद्दे:

  • लोगों के प्रति कर्त्तव्य: एक सिविल सेवक के रूप में मेरा कर्त्तव्य है कि मैं जनता की सेवा करने के साथ सुनिश्चित करूँ कि नागरिकों को बुनियादी सुविधाएँ और सेवाएँ प्रदान की जाएँ (खासकर उन बच्चों को जो शिक्षा के हकदार हैं)।
  • पारदर्शिता और जवाबदेहिता: मेरे लिये अपने कार्यों और निर्णयों में पारदर्शी और जवाबदेह होने के साथ यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि ज़िले के लिये आवंटित धन का कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।
  • उत्तरदायित्व का विरोधाभास: इस मामले में मैं जनता के प्रति अपने कर्त्तव्य और वरिष्ठों के प्रति अपनी वफादारी के बीच द्वंद महसूस कर सकता हूँ, जो बजट की कमी के कारण स्कूल की सुविधाओं में सुधार को प्राथमिकता नहीं दे सकते हैं।
  • व्यावसायिक नैतिकता: एक सिविल सेवक के रूप में मेरा व्यावसायिक दायित्व है कि मैं समुदाय के सर्वोत्तम हित में कार्य करूँ और यह सुनिश्चित करूँ कि शासन प्रणाली पर जनता का विश्वास बना रहे। ज़िले में स्कूलों की खराब स्थिति को दूर करने में विफल रहना, इस दायित्व का उल्लंघन होगा।
  • बच्चों के प्रति उत्तरदायित्व: सरकार द्वारा संचालित स्कूल में बच्चे उचित शिक्षा और सुरक्षित सीखने का माहौल प्राप्त करने के हकदार हैं। स्कूल की खराब स्थिति उन्हें इस अधिकार से वंचित कर रही है। एक सिविल सेवक के रूप में बुनियादी ढाँचे के रखरखाव के साथ-साथ स्कूल परिसर में बुनियादी जरूरतों को सुनिश्चित करना मेरा उत्तरदायित्व है।
  • माता-पिता की जिम्मेदारी: एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में माता-पिता को उस स्कूल के कामकाज पर नजर रखनी चाहिये जहाँ उनके छात्र पढ़ रहे हैं और इसकी संबंधित अधिकारियों से शिकायत करना चाहिये।
  • समाज के मूल्य: एक जिम्मेदार समुदाय के रूप में समाज को मानवाधिकारों का उल्लंघन और देश के भविष्य के शोषण से संबंधित इस मुद्दे के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। इसके अलावा समाज विभिन्न प्रकार के विरोध प्रदर्शन कर सरकार तक इस मुद्दे को पहुँचा सकता है।

कार्रवाई का क्रम:

  • समस्या का दस्तावेजीकरण करना: सबसे पहले मैं स्वयं इस मुद्दे का निरीक्षण कर, इस मामले की जाँच करूँगा और साथ ही एनजीओ द्वारा प्रदान किये गए साक्ष्य का दस्तावेजीकरण करूँगा क्योंकि यह मेरे कार्यों को सही ठहराने और धन को प्राप्त करने के लिये आवश्यक होगा।
  • तत्काल जरूरतों को प्राथमिकता देना: मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि यहाँ शौचालय, स्वच्छता के साथ पीने के पानी जैसी बुनियादी जरूरतों को सबसे पहले पूरा किया जाए।
  • अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस समस्या के बारे में बताना: मैं अपने वरिष्ठों को इस समस्या की रिपोर्ट कर स्कूल की सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिये अतिरिक्त धनराशि प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता हूँ। मैं उन्हें अपने अनुरोध के समर्थन में एनजीओ द्वारा एकत्र किये गए साक्ष्य भी प्रदान कर सकता हूँ।
  • बाहरी संसाधनों पर ध्यान देना: यदि ज़िले के लिये आवंटित धन अपर्याप्त है तो मैं ऐसे संगठनों या व्यक्तियों से धन की मांग करूँगा जो स्कूल की सुविधाओं में सुधार हेतु सहायता देने के लिये प्रेरित रहते हैं।
  • स्थानीय समुदाय के साथ समन्वय करना: मैं स्कूल की सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिये वैकल्पिक समाधानों की पहचान करने के क्रम में स्थानीय समुदाय की सहायता लूँगा। उदाहरण के लिये स्वयंसेवकों को इसकी मरम्मत में मदद करने के लिये कहा जा सकता है या स्थानीय व्यवसायों से सामग्री की मांग की जा सकती है।
  • परिवर्तन हेतु अन्य प्रयास करना: यदि मैं स्थानीय स्तर पर इस समस्या का समाधान करने में असमर्थ रहूँगा तो मैं इस मुद्दे को उच्च अधिकारियों या मीडिया के ध्यान में लाकर राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाश में लाऊँगा।

निष्कर्ष:

इस मामले में मेरे लिये छात्रों की भलाई को प्राथमिकता देना और यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि उनके पास उचित सुविधाओं के साथ बुनियादी ढाँचे तक पहुँच हो। मेरे लिये अपने कार्यों में पारदर्शी और जवाबदेह होना और निर्णय लेने से पहले सभी संभावित विकल्पों पर विचार करना भी महत्त्वपूर्ण है। एक सिविल सेवक के रूप में मेरा यह कर्त्तव्य है कि मैं जनता की सेवा करने के साथ उनके सर्वोत्तम हित में कार्य करूँ, भले ही इसका अर्थ यथास्थिति को चुनौती देना या तत्काल जिम्मेदारियों से परे जाना हो।

प्रश्न: एक भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी को किसी देश में भारत के राजदूत के रूप में तैनात किया जाता है। इसे भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करने और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया है। हालांकि संबंधित देश का मानवाधिकार रिकॉर्ड खराब होने के साथ यहाँ की सरकार पर जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार करने का आरोप लगाया गया है।
इन अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों ने इस IFS अधिकारी से संपर्क किया है और इस संदर्भ में इसने भारत सरकार से सहायता एवं समर्थन का अनुरोध किया है। इन प्रतिनिधियों ने अधिकारी को मानवाधिकार हनन के साक्ष्य भी उपलब्ध कराए हैं। हालांकि इस अधिकारी को विदेश मंत्रालय द्वारा संबंधित देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा संबंधित सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की सलाह दी गई है।
अगर आप IFS अधिकारी के पद पर होते तो इस स्थिति में आप क्या करते?

उत्तर:

परिचय

  • उपरोक्त मामला एक IFS अधिकारी के इर्द-गिर्द घूमता है, जो एक मेजबान देश में राजदूत के रूप में तैनात है। संबंधित देश का मानवाधिकार रिकॉर्ड खराब होने के साथ यहाँ की सरकार पर जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार करने का आरोप लगाया जाता है। सरकारी दुविधा का अनुभव तब करता है जब उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों का एक प्रतिनिधि समर्थन मांगने के लिये उसके पास आता है।
  • विदेश मंत्रालय अधिकारी को मेजबान देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने और मेजबान सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की सलाह देता है। इसलिये, अधिकारी को इस नाजुक स्थिति को नेविगेट करने और अल्पसंख्यकों की जरूरतों, भारत के हितों और मंत्रालय की सलाह को संतुलित करने वाला निर्णय लेने की आवश्यकता है।

मुख्य भाग

शामिल हितधारक

  • मैं एक IFS अधिकारी के रूप में।
  • भारत के विदेश मंत्रालय।
  • जिस देश में IFS तैनात हैं वहां के अल्पसंख्यक।
  • मानवाधिकार NGO
  • बड़े पैमाने पर मानव जाति

शामिल नैतिक मुद्दे:

  • पारदर्शिता और जवाबदेही: अधिकारी को पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों को लेकर नैतिक सवालों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि मानव अधिकारों के हनन के बारे में जानकारी सार्वजनिक हित और महत्व की हो सकती हैं, लेकिन फिर भी अधिकारी को इस जानकारी को गुप्त रखना पद सकता है तथा उसे सार्वजनिक नहीं करना होगा या अभियुक्तों की मदद करने से भी बचना होगा।
  • पेशेवर नैतिकता: मानवाधिकार के मुद्दों से निपटने के दौरान अधिकारी को व्यावसायिकता और निष्पक्षता के उच्चतम मानकों को बनाए रखने की नैतिक चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: मेजबान देश का खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड और जातीय तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित अत्याचार मानवाधिकारों की रक्षा और सम्मान की ज़िम्मेदारी के बारे में नैतिक सवाल उठाते हैं।
  • मानवाधिकार: मानवाधिकारों का सम्मान करना और उन्हें बढ़ावा देना IFS अधिकारी की नैतिक ज़िम्मेदारी है। इसमें मानवाधिकारों के हनन के संदर्भ में आँख नहीं मूंदना और उन्हें संबोधित करने के लिये उचित कार्रवाई करना शामिल है।
  • सहानुभूति: IFS अधिकारी आरोपी देश के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति महसूस करेगा।

शामिल नैतिक दुविधा:

  • भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करना बनाम अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना: अधिकारी को भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करने और मेजबान देश के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया है, लेकिन वह जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का समर्थन तथा सुरक्षा करने की नैतिक ज़िम्मेदारी भी महसूस कर सकता है जिनके पास मानवाधिकार हनन के शिकार हुए हैं।
  • मेजबान देश की संप्रभुता का सम्मान करने का कर्तव्य बनाम जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों की रक्षा करने का कर्तव्य: अधिकारी को मेजबान देश की संप्रभुता का सम्मान करने और उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा जबान सरकार द्वारा सताए जा रहे जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार की रक्षा करने के कर्तव्य के बीच दुविधा का सामना करना पड़ेगा।
  • विदेश मंत्रालय के मार्गदर्शन का पालन बनाम व्यक्तिगत निर्णय का उपयोग करना: अधिकारी विदेश मंत्रालय के मार्गदर्शन का पालन करने और स्थिति को संभालने हेतु लिये जाने वाले स्वयं के व्यक्तिगत निर्णय के बीच द्वंद्व में फँस सकता है

कार्रवाई:

  • एक IFS अधिकारी के रूप में मेरी कार्रवाई कूटनीति और सिद्धांत के संतुलन के साथ इस मुद्दे को हल करने की होगी।
  • सबसे पहले, मैं कोई भी कार्रवाई करने से पहले अधिक जानकारी एकत्र करने का प्रयास करूँगा, मेजबान देश में मानवाधिकारों की स्थिति के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करना महत्वपूर्ण है।
  • इसमें जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ अन्य स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और मानवाधिकार संगठनों के साथ बैठक शामिल हो सकती है और इन समूहों द्वारा प्रदान किये गए साक्ष्य की समीक्षा भी कर सकते हैं और इसकी विश्वसनीयता का आकलन कर सकते हैं।
  • इस बीच, मैं फिर से विदेश मंत्रालय से कहूँगा कि स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है और उन्हें नवीनतम साक्ष्य भी प्रदान करें तथा इन सबके बावजूद मंत्रालय मेरी सहायता प्रदान करने की योजना को फिर से खारिज कर देता है तो मैं विदेश से पत्र लिखूँगा और भारत सरकार के भीतर मंत्री और अन्य संबंधित अधिकारियों से मार्गदर्शन लूँगा उनके लिये मेजबान देश में मानवाधिकारों की स्थिति पर आधिकारिक रुख निर्धारित करना आसान हो जाए।
  • जैसा कि वे किसी भी कार्रवाई के संभावित प्रभाव पर भी विचार करेंगे, वे मेजबान देश के साथ भारत के संबंधों के साथ-साथ प्रभावित अल्पसंख्यकों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी विचार करेंगे।
  • इसके अलावा, मैं जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों को विभिन्न वैश्विक NGO से जोड़ने की कोशिश करूँगा क्योंकि वे उन्हें बुनियादी आवश्यकताएँ प्रदान कर सकते हैं और वैश्विक मंच पर उनकी आवाज उठाने में और मदद कर सकते हैं।
  • अगर ये NGO उनकी उपेक्षा करते हैं, तो मैं एक राजदूत के रूप में अपनी स्थिति का लाभ उठाउँगा और अपने संपर्कों का उपयोग उन्हें पीने के पानी, भोजन और कपड़े आदि जैसी बुनियादी आवश्यकताएँ प्रदान करने के लिये करूँगा ।
  • अंत में, मैं भारत में सताए गए अल्पसंख्यकों के कानूनी और त्वरित प्रवासन की सुविधा प्रदान करूँगा ।

निष्कर्ष

  • IFS अधिकारी के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों और सम्मेलनों के अनुसार कार्य करना तथा मेजबान देश की सरकार के साथ मानवाधिकारों के हनन के बारे में चिंता जताने के लिये कूटनीतिक साधनों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। 
  • इसके अलावा, अधिकारी को मेजबान सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने और भारत के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता के साथ इस ज़िम्मेदारी को संतुलित करना चाहिये।

प्रश्न: 'सही', 'गलत', 'प्रेम' और 'करुणा' जैसे प्रमुख नैतिक शब्दों का क्या अर्थ है? ये शब्द नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों की हमारी समझ से कैसे संबंधित हैं? (150 शब्द)

उत्तर:
परिचय:

नैतिकता दर्शन की एक ऐसी शाखा है जो नैतिकता के प्रश्नों या मानव आचरण में सही और गलत के निर्धारण से संबंधित है। 'सही', 'गलत', 'प्रेम' और 'करुणा' जैसे प्रमुख नैतिक शब्दों के अर्थ नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों की हमारी समझ के केंद्र में हैं और ये हमारे व्यवहार एवं निर्णय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मुख्य भाग:
प्रमुख नैतिक शब्दों का अर्थ:
सही (उचित):

यह उन कार्यों या व्यवहारों को संदर्भित करता है जिन्हें नैतिक रूप से स्वीकार्य या अच्छा माना जाता है। इसका अक्सर 'गलत' के विपरीत प्रयोग किया जाता है जो उन कार्यों या व्यवहारों को संदर्भित करता है जिन्हें नैतिक रूप से अस्वीकार्य या बुरा माना जाता है।

उदाहरण के लिये आमतौर पर दूसरों की ज़रूरत में मदद करना 'सही' माना जाता है जबकि दूसरों को नुकसान पहुँचाना 'गलत' माना जाता है।

प्रेम:

यह एक ऐसी भावना है जो अक्सर सकारात्मक भावनाओं और रिश्तों से जुड़ी होती है। इसका अक्सर नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों के बारे में चर्चा में प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसे दूसरों के साथ करुणा और सम्मान के साथ व्यवहार करने के एक महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में देखा जाता है।
प्रेम को रिश्ते का एक सकारात्मक पहलू माना जा सकता है चाहे वह परिवार, दोस्तों या किसी अन्य रिश्ते के बीच हो।

करुणा:
यह मूल्य दूसरों की देखभाल और सहानुभूति की भावना को संदर्भित करता है। इसका उपयोग अक्सर नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों के बारे में चर्चा में किया जाता है क्योंकि इसे दूसरों के साथ दया एवं समझ के साथ व्यवहार करने के एक महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में देखा जाता है। करुणा दूसरों की भावनाओं को समझने और साझा करने की क्षमता है।

नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों से संबंध:

  • हमारे मूल्यांकन में सहायक: 'सही', 'गलत', 'प्रेम' और 'करुणा' की अवधारणाएँ नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों की हमारी समझ से निकटता से संबंधित हैं। ये मूल्य हमें अपने कार्यों और व्यवहारों का मूल्यांकन करने और नैतिक रूप से सही या गलत के बारे में निर्णय लेने में मदद करते हैं।
  • निर्णय लेने में सहायक: नैतिकता के संदर्भ में 'सही' और 'गलत' की अवधारणा हमारे व्यवहार और निर्णय लेने को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • इनसे निर्धारित होता है कि क्या नैतिक रूप से स्वीकार्य है और क्या नहीं। इसी तरह, 'प्रेम' और 'करुणा' नैतिकता के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं क्योंकि ये सकारात्मक संबंधों और दूसरों की भलाई को बढ़ावा देते हैं।
  • नैतिक दुविधाओं को हल करने में सहायक: नैतिक सिद्धांतों के संदर्भ में ये अवधारणाएँ भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। दूसरों के प्रति सम्मान, निष्पक्षता और करुणा जैसे नैतिक सिद्धांत 'सही', 'गलत', 'प्रेम' और 'करुणा' की अवधारणाओं से निकटता से संबंधित हैं। ये सिद्धांत हमारे व्यवहार और निर्णय लेने का मार्गदर्शन करते हैं और नैतिक दुविधाओं को दूर करने में हमारी मदद करते हैं।

निष्कर्ष:

'सही', 'गलत', 'प्रेम' और 'करुणा' की अवधारणाएँ ऐसे प्रमुख नैतिक शब्द हैं जो नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों की हमारी समझ से निकटता से संबंधित हैं। ये मूल्य हमें अपने कार्यों और व्यवहारों का मूल्यांकन करने एवं नैतिक रूप से सही या गलत के बारे में निर्णय लेने में मदद करते हैं। ये हमारे व्यवहार और निर्णय को आकार देने एवं सकारात्मक संबंधों को बढ़ावा देने के साथ दूसरों की भलाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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