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Economic Development (आर्थिक विकास): March 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

स्थानीय मत्स्य प्रजातियों हेतु आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशु पालन और डेयरी मंत्री ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR)-CIBA कैंपस, चेन्नई में तीन राष्ट्रीय कार्यक्रमों की शुरुआत की। 

तीन राष्ट्रीय कार्यक्रम:

  • भारतीय सफेद झींगा का आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम: 
    • झींगा पालन/उत्पादन का भारत के समुद्री खाद्य निर्यात में 42000 करोड़ रुपए के साथ लगभग 70% का योगदान है, लेकिन यह ज़्यादातर प्रशांत महासागरीय सफेद झींगा प्रजातियों पेनियस वन्नामेई (Penaeus Vannamei) के एक विदेशी विशिष्ट रोगजनक-मुक्त स्टॉक पर निर्भर करता है। 
    • एक ही प्रजाति पर निर्भरता को कम कर सफेद झींगा की स्वदेशी प्रजातियों को बढ़ावा देने के लिये  ICAR-CIBA द्वारा मेक इन इंडिया फ्लैगशिप कार्यक्रम के तहत भारतीय सफेद झींगा, पेनिअस इंडिकस (Penaeus indicus) के आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में लिया गया है
  • झींगा उत्पाद बीमा:
    • ICAR-CIBA ने एक झींगा उत्पाद बीमा (Shrimp Crop Insurance) योजना प्रारंभ की है। उत्पाद प्रभार प्रीमियम किसान की स्थिति एवं आवश्‍यकताओं के आधार पर 3.7 से 7.7% उत्पादन लागत पर आधारित है तथा किसान को कुल फसल नुकसान की स्थिति में उत्पादन लागत के 80% नुकसान, अर्थात् 70% से अधिक उत्पाद नुकसान की भरपाई की जाएगी।
    • जलीय पशु रोगों के लिये राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम (NSPAAD): भारत सरकार ने किसान-आधारित रोग निगरानी प्रणाली को सशक्त करने हेतु वर्ष 2013 में NSPAAD को लागू किया। प्रथम चरण के परिणामों ने सिद्ध किया है कि रोगों के कारण होने वाले राजस्व नुकसान में कमी आई है, जिससे किसानों की आय और निर्यात में वृद्धि हुई है।
    • चरण- II: भारत सरकार ने NSPAAD चरण- II को सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना कार्यक्रम के तहत मंज़ूरी दी है। चरण- II को पूरे भारत में लागू किया जाएगा।

सोशल स्टॉक एक्सचेंज

चर्चा में क्यों?

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया को सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) स्थापित करने हेतु भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) से अंतिम मंज़ूरी मिल गई है।

सोशल स्टॉक एक्सचेंज: 

  • परिचय:  
    • SSE मौजूदा स्टॉक एक्सचेंज के भीतर एक अलग खंड के रूप में कार्य करेगा और सामाजिक उद्यमों को अपने तंत्र के माध्यम से जनता से धन जुटाने में मदद करेगा।
    • यह उद्यमों हेतु उनकी सामाजिक पहलों के लिये वित्त की व्यवस्था करने, दृश्यता हासिल करने और फंड जुटाने एवं उपयोग के बारे में बढ़ी हुई पारदर्शिता प्रदान करने हेतु एक माध्यम के रूप में काम करेगा।
    • खुदरा निवेशक केवल मुख्य बोर्ड के तहत लाभकारी सामाजिक उद्यमों (Social Enterprises- SE) द्वारा प्रस्तावित प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं।
    • अन्य सभी मामलों में केवल संस्थागत निवेशक और गैर-संस्थागत निवेशक सामाजिक उद्यमों द्वारा जारी प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं।
  • पात्रता:  
    • कोई भी गैर-लाभकारी संगठन (Non-Profit Organisation- NPO) या लाभकारी सामाजिक उद्यम (FPSEs) जो सामाजिक प्रधानता का इरादा रखता है, को सामाजिक उद्यम के रूप में मान्यता दी जाएगी, जो इसे SSE में पंजीकृत या सूचीबद्ध होने के योग्य बनाएगा।
    • सेबी के ICDR विनियम, 2018 के तहत 17 प्रशंसनीय मानदंड भूख, गरीबी और कुपोषण को खत्म करने के साथ-साथ शिक्षा, रोज़गार, समानता एवं पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने हेतु कार्य कर रहे हैं।
  • अयोग्यता:  
    • कॉर्पोरेट क्षेत्र, राजनीतिक या धार्मिक संगठन, पेशेवर या व्यापार संघ, बुनियादी निर्माण एवं आवास कंपनियों (किफायती आवास को छोड़कर) को सामाजिक उद्यम हेतु गैर-लाभकारी संगठन के रूप में पहचाना नहीं जाएगा। 
    • जो गैर-लाभकारी संगठन अपनी फंडिंग के 50% से अधिक के लिये कॉर्पोरेट पर निर्भर हैं, उन्हें अयोग्य माना जाएगा।
  • गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा धन जुटाना:  
    • गैर-लाभकारी संगठन निजी नियोजन या सार्वजनिक निर्गम से ज़ीरो कूपन ज़ीरो प्रिंसिपल (ZCZP) इंस्ट्रूमेंट जारी करके या म्यूचुअल फंड से दान के माध्यम से धन जुटा सकते हैं।  
    • ZCZP बॉण्ड पारंपरिक बॉण्ड से इस अर्थ में भिन्न होते हैं कि इसमें ज़ीरो कूपन होता है और परिपक्वता पर कोई मूल भुगतान नहीं होता है। 
    • ZCZP जारी करने के लिये न्यूनतम निर्गम आकार वर्तमान में 1 करोड़ रुपए और सदस्यता हेतु न्यूनतम आवेदन आकार 2 लाख रुपए निर्धारित किया गया है।
    • इसके अलावा डेवलपमेंट इम्पैक्ट बॉण्ड (Development Impact Bonds) परियोजना के पूरा होने पर उपलब्ध होते हैं और पूर्व-सहमत सामाजिक मेट्रिक्स पर पूर्व-सहमत लागतों/दरों पर वितरित किये जाते हैं।
  • FPSE द्वारा धन जुटाना:  
    • FPSE को सोशल स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से धन जुटाने से पूर्व SSE के साथ पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं है।
    • यह इक्विटी शेयर जारी करके अथवा सामाजिक प्रभाव कोष (Social Impact Fund) सहित किसी वैकल्पिक निवेश कोष को इक्विटी शेयर जारी करके अथवा ऋण लिखतों को जारी करके धन जुटा सकता है।

विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act -FCRA) के तहत सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के लाइसेंस पंजीकरण को रद्द कर दिया है।

  • हाल में ऑक्सफैम इंडिया और इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (IPSMF) के साथ ही CPR (गैर-लाभकारी संगठन) पर आयकर विभाग द्वारा सर्वेक्षण किया गया था। 

विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम: 

  • परिचय:  
    • विदेशी सरकारों द्वारा भारत के आंतरिक मामलों को प्रभावित करने के लिये स्वतंत्र संगठनों की सहायता से किये जाने वाले वित्तपोषण की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए FCRA को 1976 में आपातकाल के दौरान अधिनियमित किया गया था।
    • इस कानून ने व्यक्तियों और संघों को दिए जाने वाले विदेशी दान को विनियमित करने की मांग की ताकि वे "एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के मूल्यों के अनुरूप" कार्य कर सकें।
  • संशोधन:  
    • विदेशी धन के उपयोग पर "कानून को सशक्त करने" तथा "राष्ट्रीय हित में हानिकारक किसी भी गतिविधि" के लिये उसके उपयोग को "प्रतिबंधित" करने हेतु वर्ष 2010 में एक संशोधित FCRA अधिनियमित किया गया था। 
    • वर्ष 2020 में कानून में फिर से संशोधन किया गया, जिसने गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विदेशी धन की प्राप्ति और उपयोग पर नियंत्रण तथा जाँच हेतु सरकार को और मज़बूती प्रदान की। 
  • मानदंड:
    • प्रत्येक व्यक्ति या NGO जो विदेशी दान प्राप्त करना चाहता है, के लिये FCRA निम्नलिखित प्रावधान करता है:
    • अधिनियम के तहत पंजीकृत हो
    • भारतीय स्टेट बैंक, दिल्ली में विदेशी धन की प्राप्ति के लिये एक बैंक खाता खोला गया हो
    • निधियों का उपयोग केवल उसी उद्देश्यों के लिये करना जिसके लिये उन्हें प्राप्त किया गया है और अधिनियम में इनको निर्धारित किया गया है।
    • विशिष्ट सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षिक, धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रमों को करने  वाले व्यक्ति या संगठन FCRA के पंजीकरण हेतु पात्र हैं।
  • अपवाद:  
    • एफसीआरए के तहत आवेदक को फर्जी नहीं होना चाहिये और एक धर्म से दूसरे धर्म में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रलोभन या बल के माध्यम से धर्मांतरण के उद्देश्य से गतिविधियों में शामिल होने के लिए मुकदमा या दोषी नहीं ठहराया गया हो।
    • आवेदक पर सांप्रदायिक तनाव या वैमनस्य फैलाने के लिये कोई मुकदमा नहीं चलाया गया हो या किसी अपराध के लिये दोषी न ठहराया गया हो।
    • इसके अलावा वह राजद्रोह की गतिविधियों में शामिल न हो या उसके इसमें सम्मिलित होने की संभावना न हो। 
    • यह अधिनियम चुनावी उम्मीदवारों, पत्रकारों या अखबारों और मीडिया प्रसारण कंपनियों, न्यायाधीशों एवं सरकारी कर्मचारियों, विधायिका तथा राजनीतिक दलों के सदस्यों या उनके पदाधिकारियों, साथ ही राजनीतिक प्रकृति के संगठनों द्वारा विदेशी धन की प्राप्ति पर रोक लगाता है।
  • वैधता:  
    • NGOs को अपने FCRA पंजीकरण के नवीनीकरण की तिथि समाप्त होने के छह महीने के भीतर आवेदन करना आवश्यक है क्योंकि यह केवल पाँच साल के लिये  वैध होता है। 
    • सरकार किसी भी NGO का FCRA पंजीकरण भी रद्द कर सकती है यदि यह पाया जाता है कि NGO, अधिनियम का उल्लंघन कर रहा है या लगातार दो वर्षों तक समाज के लाभ के लिये अपने चुने हुए क्षेत्र में किसी भी उचित गतिविधि में शामिल नहीं हुआ है, या निष्क्रिय रहा हो। 
  • FCRA 2022 नियम:  
    • जुलाई 2022 में MHA ने FCRA नियमों में बदलाव किया जिससे अधिनियम के तहत समाशोधन/समाधेय योग्य अपराधों की संख्या 7 से बढ़कर 12 हो गई।
    • सरकार को अब विदेशों में रह रहे भारतीय (रिश्तेदारों) से 10 लाख रुपए (पहले 1 लाख रुपए से अधिक) के योगदान की अधिसूचना की आवश्यकता नहीं है और बैंक खाते खोलने के लिये अधिसूचित करने की समय-सीमा बढ़ा दी गई है

निर्यात हेतु व्यापार अवसंरचना योजना

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार के वाणिज्य विभाग ने उचित बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर निर्यात को बढ़ावा देने के लिये निर्यात हेतु व्यापार अवसंरचना योजना (Trade Infrastructure for Export Scheme- TIES) लागू की है।

निर्यात को बढ़ावा देने हेतु प्रमुख सरकारी पहलें:  

  • TIES योजना:  
    • TIES योजना केंद्र/राज्य सरकार के स्वामित्त्व वाली एजेंसियों या उनके संयुक्त उद्यमों को महत्त्वपूर्ण निर्यात संबंधी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं हेतु सहायता अनुदान प्रदान करती है।
    • बुनियादी ढाँचे में बॉर्डर हाट, भूमि सीमा शुल्क स्टेशन, गुणवत्ता परीक्षण और प्रमाणन प्रयोगशालाएँ, कोल्ड चेन, व्यापार संवर्द्धन केंद्र, निर्यात भंडारण एवं पैकेजिंग, विशेष आर्थिक क्षेत्र व बंदरगाह/हवाई अड्डे कार्गो टर्मिनस शामिल हैं।
  • PM गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान (NMP): 
    • PM गति शक्ति NMP एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो देश में बुनियादी ढाँचे से संबंधित भू-स्थानिक डेटा को एकीकृत करता है और सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों की योजनाओं का प्रारूप तैयार करता है।
    • यह डिजिटल प्रणाली देश में रसद लागत को कम करने और आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करने के उद्देश्य से बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के समकालिक कार्यान्वयन के लिये डेटा-आधारित निर्णय लेने में मदद करती है। 
  • शुल्क वापसी योजना: 
    • शुल्क वापसी योजना आयातित इनपुट पर सीमा शुल्क और निर्यातित वस्तुओं के विनिर्माण में उपयोग किये जाने वाले घरेलू इनपुट पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में छूट देती है।  
    • यह योजना सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के प्रावधानों के साथ-साथ सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क वापसी नियम, 2017 के अनुसार संचालित की जाती है है।

भारतीय निर्यात वृद्धि से संबंधित चुनौतियाँ: 

  • बढ़ता संरक्षणवाद और विवैश्वीकरण: विश्व भर के देश बाधित वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था रूस-यूक्रेन युद्ध और आपूर्ति शृंखला के रणनीतिक प्रयोग के कारण संरक्षणवादी व्यापार नीतियों की ओर बढ़ रहे हैं, इससे भारत की निर्यात क्षमता काफी प्रभावित हो रही है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत में विनिर्माण केंद्रों की अत्यधिक कमी है, विकसित देशों की तुलना में इंटरनेट सुविधाएँ और महँगा परिवहन उद्योगों के लिये एक बड़ी समस्या है।
  • चीन के अपने सकल घरेलू उत्पाद के 20% की तुलना में भारत प्रतिवर्ष अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 4.3% बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये उपयोग करता है। अवसंरचना क्षेत्र के लिये वर्ष 2023-24 के बजट में 10 लाख करोड़ रुपए (GDP का 3.3%) आवंटित किये गए थे, जो वर्ष 2019 से तीन गुना अधिक है।
  • दूसरी चुनौती निर्बाध विद्युत आपूर्ति की है।
  • अनुसंधान एवं विकास पर कम खर्च के कारण नवाचार में कमी: वर्तमान में भारत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.7% अनुसंधान और विकास कार्यों पर खर्च करता है। यह विनिर्माण क्षेत्र के विकसित होने, नवाचार करने और वृद्धि में बाधा उत्पन्न करता है।

आगे की राह

  • अवसंरचनात्मक अंतराल को भरना: मज़बूत बुनियादी ढाँचा नेटवर्क- गोदामों, बंदरगाहों, परीक्षण प्रयोगशालाओं, प्रमाणन केंद्रों आदि से भारतीय निर्यातकों को वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद मिलेगी।
  • इसे आधुनिक व्यापार पद्धतियों को अपनाने की भी आवश्यकता है जिन्हें निर्यात प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के माध्यम से लागू किया जा सकता है। इससे समय और लागत दोनों की बचत होगी।
  • संयुक्त विकास कार्यक्रमों की खोज: वैश्वीकरण की लहर और धीमी वृद्धि के बीच निर्यात विकास का एकमात्र साधन नहीं हो सकता है।
  • भारत को मध्यम अवधि की बेहतर संभावनाओं के लिये अन्य देशों के साथ अंतरिक्ष, अर्द्धचालक एवं सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में संयुक्त विकास कार्यक्रमों में साझेदारी करनी होगी।
  • MSME सेक्टर को आगे बढ़ाना: वर्तमान में MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) देश के सकल घरेलू उत्पाद में एक-तिहाई का योगदान करते हैं, निर्यात का 48% हिस्सा, इन्हें महत्त्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्यों को प्राप्त करने में अग्रणी बनाता है।
  • भारत के लिये आवश्यक है कि वह विशेष आर्थिक क्षेत्रों को MSME क्षेत्र से जोड़े और छोटे व्यवसायों को प्रोत्साहित करे

पीएम मित्र योजना और कपड़ा क्षेत्र

खबरों में क्यों?

केंद्र ने पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (पीएम मित्रा) योजना के तहत नए टेक्सटाइल पार्क स्थापित करने के लिए तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में साइटों का चयन किया है।

  • 2026-27 तक पार्कों की स्थापना की जाएगी। परियोजना के लिए कुल परिव्यय 4,445 करोड़ रुपये है, हालांकि 2023-24 के बजट में प्रारंभिक आवंटन केवल 200 करोड़ रुपये है।

पीएम मित्र योजना क्या है?

  • के बारे में:
    • पीएम मित्रा पार्क को एक विशेष प्रयोजन वाहन द्वारा विकसित किया जाएगा जिसका स्वामित्व केंद्र और राज्य सरकार के पास होगा और यह सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड में होगा।
    • प्रत्येक मित्रा पार्क में एक इन्क्यूबेशन सेंटर, कॉमन प्रोसेसिंग हाउस और एक कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट और अन्य टेक्सटाइल संबंधी सुविधाएं जैसे डिजाइन सेंटर और टेस्टिंग सेंटर होंगे।
  • कार्यान्वयन:
    • विशेष प्रयोजन वाहन: प्रत्येक पार्क के लिए केंद्र और राज्य सरकार के स्वामित्व वाली एक एसपीवी स्थापित की जाएगी जो परियोजना के कार्यान्वयन की निगरानी करेगी।
    • विकास पूंजी सहायता: कपड़ा मंत्रालय पार्क एसपीवी को प्रति पार्क 500 करोड़ रुपये तक विकास पूंजी सहायता के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
    • प्रतिस्पर्धी प्रोत्साहन सहायता (सीआईएस): पीएम मित्रा पार्क में इकाइयों को प्रति पार्क 300 करोड़ रुपये तक का सीआईएस भी तेजी से कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदान किया जाएगा।
    • अन्य योजनाओं के साथ अभिसरण: मास्टर डेवलपर और निवेशक इकाइयों को अतिरिक्त प्रोत्साहन सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार की अन्य योजनाओं के साथ अभिसरण की सुविधा भी प्रदान की जाएगी ।

योजना का महत्व क्या है?

  • रसद लागत कम करें:
    • यह रसद लागत को कम करेगा और कपड़ा क्षेत्र को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए मूल्य श्रृंखला को मजबूत करेगा ।
    • उच्च रसद लागत को भारत के कपड़ा निर्यात को बढ़ावा देने के लक्ष्य के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा माना जाता है।
  • रोज़गार:
    • इन पार्कों में 70,000 करोड़ रुपये के निवेश से करीब 20 लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है।
  • एफडीआई आकर्षित करें:
    • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने के लिए पार्क महत्वपूर्ण हैं ।
    • अप्रैल 2000 से सितंबर 2020 तक, भारत के कपड़ा क्षेत्र को 20,468.62 करोड़ रुपये का एफडीआई प्राप्त हुआ, जो कि इस अवधि के दौरान कुल एफडीआई प्रवाह का केवल 0.69% है।
  • प्रतिस्पर्धात्मकता:
    • यह क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण क्षेत्र की बढ़ती बर्बादी और रसद लागत को कम करेगा, और इस प्रकार देश के कपड़ा क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करेगा ।

भारत के कपड़ा क्षेत्र का परिदृश्य क्या है?

  • दर्जा:
    • कपड़ा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है, जो कुल सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) के 2% से अधिक और विनिर्माण क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद के 12% से अधिक के लिए जिम्मेदार है।
    • टेक्सटाइल सेक्टर में फाइबर से लेकर रेडीमेड गारमेंट्स तक फैली एक विविध मूल्य श्रृंखला है।
  • संभावना:
    • यह क्षेत्र भारत में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है।
    • यह अनुमानित 45 मिलियन लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और अन्य 60 मिलियन लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से संबद्ध गतिविधियों के माध्यम से रोजगार प्रदान करता है।
    • कपड़ा और परिधान में वैश्विक व्यापार के 4% हिस्से के साथ भारत दुनिया में कपड़ा और परिधान का छठा सबसे बड़ा निर्यातक है।
    • वित्त वर्ष 2012 में भारत का कपड़ा और परिधान निर्यात (हस्तशिल्प सहित) 44.4 बिलियन अमरीकी डालर था, जो कि 41% की वृद्धि थी।
    • भारत के कपड़ा उद्योग में देश भर में 35.22 लाख हथकरघा श्रमिकों सहित लगभग 4.5 करोड़ नियोजित कर्मचारी हैं 

चुनौतियां

  • उत्पादन में गिरावट:
    • कपड़ा के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) द्वारा मापे गए वस्त्रों के उत्पादन में मार्च 2022 से लगातार गिरावट देखी गई है।
    • सूचकांक मूल्य, जो मार्च 2022 में 118.5 था, अक्टूबर 2022 में गिरकर 102.3 हो गया है।
  • आयात में वृद्धि:
    • अप्रैल से नवंबर 2022 की अवधि में, वस्त्रों के आयात का मूल्य 433 बिलियन रुपये था, जो पिछले वर्ष के समान ही था । 313 अरब।
    • भारत ने 2006 में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (SAFTA) के तहत बांग्लादेश से रेडीमेड कपड़ों के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी , जिसके परिणामस्वरूप चीनी कपड़ों और धागों से बने परिधानों के आयात में वृद्धि हुई।
  • निर्यात पीड़ित:
    • भारत आयातक देशों द्वारा लगाए जा रहे शुल्कों के नुकसान से ग्रस्त है।
    • बांग्लादेश, श्रीलंका और अफ्रीकी देशों जैसे देशों को शुल्क मुक्त पहुंच प्राप्त होती है और भारत के वस्त्रों को अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में तुलनात्मक रूप से कम प्रतिस्पर्धी बनाते हैं।
  • इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर:
    • कपड़ा उद्योग में मानव निर्मित फाइबर (एमएमएफ) मूल्य श्रृंखला वर्तमान में एक उल्टे शुल्क संरचना का सामना कर रही है, जो कि आउटपुट पर कर है, या अंतिम उत्पाद इनपुट टैक्स क्रेडिट के उलट संचय का निर्माण करते हुए इनपुट पर कर से कम है 
    • यह आम तौर पर सरकार द्वारा वापस किया जाता है, सरकार के लिए राजस्व बहिर्वाह बनाता है, लेकिन इस बीच व्यवसायों के लिए महत्वपूर्ण कार्यशील पूंजी प्रवाह को भी रोकता है ।

आगे बढ़ने का रास्ता

  • DGTR (व्यापार उपचार महानिदेशालय) ने इंडोनेशिया से आयातित VSF पर एंटी-डंपिंग शुल्क (ADD) लगाने की सिफारिश की है। जांच से पता चला है कि डंपिंग रोधी शुल्क हटाए जाने के बाद इंडोनेशिया से आयात बढ़ा है।
  • भारत कपड़ा उद्योग के लिए मेगा परिधान पार्क और सामान्य बुनियादी ढांचा स्थापित करके इस क्षेत्र को संगठित कर सकता है। अप्रचलित मशीनरी और प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण पर ध्यान देना चाहिए
  • भारत को कपड़ा क्षेत्र के लिए एक व्यापक खाका की जरूरत है। एक बार जब यह तैयार हो जाता है, तो इसे हासिल करने के लिए देश को मिशन मोड में जाने की जरूरत है।

नेट न्यूट्रैलिटी

चर्चा में क्यों?

सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI), जो भारत में तीन प्रमुख दूरसंचार ऑपरेटर- भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और रिलायंस जियो का प्रतिनिधित्त्व करता है, ने मांग की है कि यूट्यूब तथा व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म नेटवर्क लागत को पूरा करने हेतु राजस्व का एक हिस्सा भुगतान करें।

  • इसने नेट न्यूट्रैलिटी के संदर्भ में चर्चा को फिर से शुरू कर दिया है।

इस मुद्दे के संदर्भ में तर्क और हालिया घटनाक्रम:  

  • दूरसंचार ऑपरेटर उनके नेटवर्क के व्यापक उपयोग के लिये भुगतान की मांग कर रहे हैं।
  • यूरोपीय संघ में दूरसंचार ऑपरेटर भी विषयवस्तु प्रदाताओं से समान उपयोग शुल्क की मांग कर रहे हैं।
  • विषयवस्तु प्रदाताओं का तर्क है कि सीमित संख्या में बड़े अभिकर्त्ताओं पर भी इस तरह का शुल्क लगाना, इंटरनेट के स्वरूप का विरूपण है।
  • वर्ष 2016 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में फैसला सुनाया।
  • वर्ष 2018 में दूरसंचार विभाग ने एकीकृत लाइसेंस में नेट न्यूट्रैलिटी अवधारणा को स्थापित किया, जिसकी शर्तों से सभी दूरसंचार ऑपरेटर और इंटरनेट प्रदाता बाध्य हैं। 

इंटरनेट क्षेत्र में विभिन्न हितधारक:   

  • इंटरनेट क्षेत्र में विभिन्न हितधारक हैं:  
    • किसी भी इंटरनेट सेवा के उपभोक्ता 
    • दूरसंचार सेवा प्रदाता (TSP) या इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP)। 
    • ओवर-द-टॉप (OTT) सेवा प्रदाता (जो वेबसाइट और ऐप जैसी इंटरनेट एक्सेस सेवाएँ प्रदान करते हैं)।  
    • सरकार, जो इंटरनेट कंपनियों के बीच संबंधों को विनियमित और परिभाषित कर सकती है।   
    • इसके अलावा TRAI दूरसंचार क्षेत्र में एक स्वतंत्र नियामक है, जो मुख्य रूप से TSP और उनकी लाइसेंसिंग शर्तों आदि को नियंत्रित करता है।

नेट न्यूट्रैलिटी का विनियमन:   

  • अब तक नेट न्यूट्रैलिटी को भारत में किसी भी कानून या नीति ढाँचे द्वारा प्रत्यक्ष रूप से  विनियमित नहीं किया गया है।  
  • पिछले वर्षों के दौरान नेट न्यूट्रैलिटी से संबंधित नीति निर्माण में कुछ विकास हुआ है।   
  • ट्राई डेटा सेवाओं के लिये अलग-अलग मूल्य निर्धारण के साथ-साथ ओवर-द-टॉप सेवाओं (OTT) हेतु नियामक ढाँचे पर काम कर रहा है।
  • दूरसंचार विभाग द्वारा गठित एक समिति ने भी नेट न्यूट्रैलिटी के मुद्दे की जाँच की है।
  • इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ब्राज़ील, चिली, नॉर्वे, आदि जैसे देशों में कुछ प्रकार के कानून, व्यवस्था अथवा नियामक ढाँचे हैं जो नेट न्यूट्रैलिटी को प्रभावित करते हैं।

नेट न्यूट्रैलिटी नहीं होने की स्थिति के परिणाम

  • इंटरनेट संबंधी एकाधिकार:
    • ISP इससे अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये नेट न्यूट्रैलिटी के बिना इंटरनेट ट्रैफिक को संशोधित करने में सक्षम होंगे।
    • इससे उन्हें सामान्य वेबसाइट की तुलना में अधिक बैंडविड्थ की खपत करने वाले YouTube और Netflix जैसी कंपनियों को सेवाओं के लिये चार्ज करने की शक्ति मिलेगी।
  • हतोत्साहित नवाचार:  
    • नेट न्यूट्रैलिटी की कमी वेब/इंटरनेट पर नवाचार को काफी हतोत्साहित कर सकती है।  त्वरित पहुँच के लिये भुगतान करने में सक्षम स्थापित अभिकर्त्ताओं की तुलना में स्टार्टअप अधिक नुकसान में होंगे।
    • एक खुले और विविध पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की बजाय इसका परिणाम एक ऐसे वेब के रूप में हो सकता है, जिसमें सीमित संख्या में शक्तिशाली संस्थाओं का वर्चस्व हो।
  • उपभोक्ताओं के लिये पैकेज प्लान:  
    • नेट न्यूट्रैलिटी की कमी से सुविधाओं तक निःशुल्क पहुँच के बजाय उपभोक्ताओं के लिये "पैकेज प्लान" की व्यवस्स्था हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये उपयोगकर्त्ताओं को अपने देश में स्थित वेबसाइट्स की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय वेबसाइट्स का उपयोग करने के लिये अधिक भुगतान करना पड़ सकता है। इससे एक स्तरीय इंटरनेट प्रणाली का निर्माण हो सकता है जिसमें अधिक भुगतान करने वाले उपयोगकर्त्ताओं को सामग्री तक बेहतर पहुँच प्राप्त होगी।
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FAQs on Economic Development (आर्थिक विकास): March 2023 UPSC Current Affairs - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. स्थानीय मत्स्य प्रजातियों हेतु आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम क्या है?
उत्तर: स्थानीय मत्स्य प्रजातियों हेतु आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम एक प्रयास है जिसका मुख्य उद्देश्य समुद्री और जलीय प्रजातियों के जीवाश्मों को सुरक्षित करना है और उनकी संख्या को बढ़ाना है। यह एक मार्गदर्शित और संगठित तरीके से जीवाश्मों की बियोडिवर्सिटी को सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न प्रयासों का संग्रह है।
2. सोशल स्टॉक एक्सचेंज क्या है?
उत्तर: सोशल स्टॉक एक्सचेंज एक वित्तीय बाजार है जहां आप विभिन्न कंपनियों के शेयर खरीद और बेच सकते हैं। यह बाजार साझा उद्यमिता का एक माध्यम है जिसमें व्यापारी खरीद और बेच सकते हैं और वित्तीय संस्थान और निवेशकों को अपना निवेश करने का एक माध्यम प्रदान करता है।
3. विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम क्या है?
उत्तर: विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम एक कानून है जो भारतीय कंपनियों को विदेशी उद्यमों में निवेश करने की अनुमति देता है। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी संपत्ति और प्रौद्योगिकी के अंशों के माध्यम से देश की आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है।
4. निर्यात हेतु व्यापार अवसंरचना योजना क्या है?
उत्तर: निर्यात हेतु व्यापार अवसंरचना योजना एक सरकारी योजना है जिसका उद्देश्य व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देना है और निर्यात का समर्थन करना है। इस योजना के तहत, सरकार विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों के लिए वित्तीय सहायता, निर्यात प्रशिक्षण, औद्योगिक इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य सुविधाएं प्रदान करती है।
5. पीएम मित्र योजना और कपड़ा क्षेत्र के बारे में क्या है?
उत्तर: पीएम मित्र योजना और कपड़ा क्षेत्र एक सरकारी योजना है जिसका मुख्य उद्देश्य छोटे और मध्यम आय वाले कपड़ा उद्योग को समर्थन करना है। इस योजना के तहत, सरकार व्यापारियों को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण, विपणन सहायता, अधिकृत उपकरण और तकनीकी सहायता प्रदान करती है ताकि वे अपने व्यापार को सफलतापूर्वक चला सकें।
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