UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi  >  Geography (भूगोल): March 2023 UPSC Current Affairs

Geography (भूगोल): March 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

हीलियम भंडार में दोहन

खबरों में क्यों?

शोधकर्ताओं ने कमी के मुद्दों को हल करने के लिए हीलियम भंडार में टैप करने के लिए एक नए मॉडल का प्रस्ताव दिया और हाल ही में एक नए अध्ययन से पता चलता है कि इस गैस के जलाशय, बिना कार्बन पदचिह्न के, संभवतः पृथ्वी के नीचे भूगर्भीय संरचनाओं में मौजूद हैं।

  • हीलियम उत्पादन प्रक्रिया एक उच्च कार्बन फुटप्रिंट के साथ आती है क्योंकि इसका उत्पादन ड्रिल किए गए प्राकृतिक गैस या तेल से संबंधित है।
  • हीलियम रिजर्व को टैप करने के लिए प्रस्तावित मॉडल क्या है?
  • गैस का उत्पादन किया जा सकता है और क्रिस्टलीय तहखाने की चट्टानों में जमा किया जा सकता है, घनी चट्टानें जो मेंटल से निकट-सतह या सतह तक फैली हुई हैं।
  • इन चट्टानों में स्वाभाविक रूप से यूरेनियम और थोरियम होते हैं, जो दोनों प्राकृतिक रूप से हीलियम बनाने के लिए क्षय होते हैं।
  • ये चट्टानें 30-40 किलोमीटर मोटी होती हैं। वे लाखों या अरबों वर्षों से भी मौजूद हैं, जिससे बड़ी मात्रा में हीलियम का उत्पादन और भंडारण किया जा सकता है।
  • साथ ही ये चट्टानें हाइड्रोजन का स्रोत भी हो सकती हैं। मॉडल ने दिखाया कि यूरेनियम और थोरियम के रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न ऊर्जा हाइड्रोजन बनाने के लिए पानी को विभाजित कर सकती है।

हीलियम गैस का महत्व क्या है?

  • के बारे में:
    • हीलियम एक नोबल गैस है और इसका एक बंद खोल वाला इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है, जो इसे स्थिर और अक्रियाशील बनाता है।
    • इसमें किसी भी तत्व का सबसे कम क्वथनांक और गलनांक होता है और यह चरम स्थितियों को छोड़कर केवल गैस के रूप में मौजूद होता है।
  • हीलियम की खोज:
    • हीलियम पहली बार 1868 में फ्रांसीसी खगोलशास्त्री जूल्स जानसेन और अंग्रेजी खगोलशास्त्री जोसेफ नॉर्मन लॉकयर द्वारा खोजा गया था, जिन्होंने सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य द्वारा उत्सर्जित प्रकाश में एक पीले रंग की वर्णक्रमीय रेखा देखी थी।
    • हीलियम का नाम ग्रीक शब्द "हेलिओस" से लिया गया है, जिसका अर्थ है सूर्य।
  • हीलियम के स्रोत और निष्कर्षण:
    • ब्रह्मांड में हाइड्रोजन के बाद हीलियम दूसरा सबसे प्रचुर तत्व है । हालाँकि, यह पृथ्वी पर अपेक्षाकृत दुर्लभ है, इसका अधिकांश भाग पृथ्वी की पपड़ी में रेडियोधर्मी तत्वों के क्षय द्वारा निर्मित होता है।
    • प्राकृतिक गैस पृथ्वी पर हीलियम का प्राथमिक स्रोत है।
    • हीलियम को क्रायोजेनिक आसवन नामक प्रक्रिया का उपयोग करके प्राकृतिक गैस से निकाला जाता है ।
  • भंडार और उत्पादन:
    • 2022 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका में हीलियम के भंडार में विश्व स्तर पर हीलियम का सबसे बड़ा भंडार है, इसके बाद अल्जीरिया और रूस का स्थान है।
    • झारखंड में भारत का राजमहल ज्वालामुखी बेसिन अरबों वर्षों से फंसे हीलियम का भंडार है ।
  • हीलियम का उपयोग:
    • गुब्बारे और हवाई पोत (क्योंकि यह हवा से हल्का है और अन्य तत्वों के साथ रासायनिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं करता है)।
    • औद्योगिक अनुप्रयोग, सहितअर्धचालक और फाइबर ऑप्टिक केबल के उत्पादन में वेल्डिंग, कूलिंग और सुरक्षात्मक गैस
    • चिकित्सा अनुप्रयोगों में , जैसेसुपरकंडक्टिंग मैग्नेट के लिए कूलिंग एजेंट के रूप में चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई)
    • इसका उपयोग परमाणु चुंबकीय अनुनाद (NMR) स्पेक्ट्रोस्कोपी और गैस क्रोमैटोग्राफी में वाहक गैस के रूप में भी किया जाता है।
  • हीलियम की कमी:
    • वर्तमान में दुनिया में हीलियम की कमी है मांग आपूर्ति से अधिक है।
    • कुछ हीलियम संयंत्रों के बंद होने, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में हीलियम की बढ़ती मांग और नए हीलियम स्रोतों की कमी सहित कई कारकों के कारण कमी है ।
    • हीलियम की कमी ने गुब्बारों और हवाई पोतों में इसके उपयोग के साथ-साथ चिकित्सा और औद्योगिक अनुप्रयोगों में इसके उपयोग के बारे में चिंताएँ पैदा की हैं।
  • निष्कर्ष
    • हाइड्रोजन उत्पादन के अतिरिक्त लाभ के साथ कार्बन मुक्त हीलियम भंडार में दोहन के लिए प्रस्तावित मॉडल मौजूदा हीलियम की कमी के लिए एक स्थायी और लागत प्रभावी समाधान प्रदान कर सकता है ।

हिमनद का पीछे हटना

चर्चा में क्यों?

हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों/हिमनदों के हाल के अध्ययनों के अनुसार, इस पर्वत शृंखला के विभिन्न क्षेत्रों में पीछे हटने की दर और द्रव्यमान संतुलन में व्यापक परिवर्तनशीलता का कारण मुख्य रूप से इस क्षेत्र की स्थलाकृति (Topography ) और जलवायु है।

  • हालाँकि ग्लेशियरों की परिवर्तनीय वापसी दर (Variable Retreat Rates of Glaciers) और अपर्याप्त सहायक क्षेत्र डेटा ने जलवायु परिवर्तन प्रभाव की एक सुसंगत तस्वीर विकसित करना चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

हिमनद गतिकी को प्रभावित करने वाले कारक

  • वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (उत्तराखंड) की एक टीम ने वर्ष 1971 और 2019 के बीच हिमनद परिवर्तन के तुलनात्मक अध्ययन हेतु अलग-अलग विशेषताओं वाले दो हिमनदों पेनसिलुंगपा ग्लेशियर (लद्दाख) और डुरुंग-द्रुंग ग्लेशियर (लद्दाख) का अध्ययन किया।
  • टीम ने ग्रीष्म ऋतु में हिम/बर्फ द्रव्यमान में कमी (ग्रीष्मकालीन पृथक्करण) को लेकर मलबे के आवरण के प्रभाव एवं ग्लेशियरों के टर्मिनस रिसेसन (पीछे हटने का) का मूल्यांकन किया।
  • उनके द्वारा किया गया अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि ग्लेशियर के पीछे हटने की दर जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर की स्थलाकृतिक अवस्थिति तथा आकारिकी द्वारा नियंत्रित होती है।
  • उन्होंने अपने अध्ययन में यह भी पाया कि मलबे के परत की मोटाई जलवायु के प्रति हिमनदों की प्रतिक्रिया को महत्त्वपूर्ण रूप से परिवर्तित करती है।
  • तुंड ज्यामिति, हिमनदों का आकार, ऊँचाई सीमा, प्रवणता, स्वरूप, मलबे के आवरण के साथ-साथ सुप्रा और प्रोग्लेशियल झीलों की उपस्थिति जैसे अन्य कारक भी विषम हिमनदों की गतिशीलता को प्रभावित करते हैं।

हिमनद निवर्तन क्या है?

  • परिचय:
    • हिमनदों का पीछे हटना हिम संचय में कमी या हिम विगलन में वृद्धि के कारण समय के साथ हिमनदों के सिकुड़ने या आकार में कमी की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
  • कारण:
    • यह कई कारकों के कारण हो सकता है, जिसमें बढ़ता वैश्विक तापमान, वर्षा के प्रारूप में परिवर्तन या आसपास के भू-परिदृश्य में परिवर्तन शामिल हैं।
  • प्रभाव:
    • हिमनदों के पीछे हटने के कारण यह कई गंभीर पर्यावरणीय प्रभावों को उत्पन्न कर सकता है, जिसमें जल की उपलब्धता तथा स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव एवं बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है
    • इसके अलावा हिमनद हिम क्षय समुद्र के बढ़ते जलस्तर में योगदान कर सकता है, जिसका विश्व भर के तटीय समुदायों और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

राज्यों द्वारा आकाशीय बिजली को प्राकृतिक आपदा घोषित करने की मांग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कुछ राज्यों ने मांग की है कि "आकाशीय बिजली" को "प्राकृतिक आपदा" घोषित किया जाए क्योंकि भारत में किसी अन्य आपदा की तुलना में इससे होने वाली मौतों की संख्या सबसे अधिक है।

  • वर्तमान मानदंडों के अनुसार, चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीटों का हमला, पाला और शीत लहर को आपदा माना जाता है जो राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund- SDRF) के तहत कवर किये जाते हैं, जिसके लिये केंद्र द्वारा 75% वित्तपोषण किया जाता है।

आकाशीय बिजली/तड़ित

परिचय: 

  • यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो "बादल और ज़मीन के बीच या बादलों के बीच बहुत कम अवधि एवं उच्च वोल्टेज विद्युत निर्वहन" की प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसे तीव्र चमक, तेज़ गरज व दुर्लभ अवसरों पर तड़ितझंझा (Thunderstorms) के रूप में देखा जाता है।
  • बादल और ज़मीन (Cloud-to-Ground- CG)) के बीच आकाशीय बिजली की घटना खतरनाक मानी जाती  है क्योंकि इसके उच्च विद्युत वोल्टेज और करंट के कारण लोगों की जान जा सकती है। जबकि बादल में या बादलों के बीच उत्पन्न आकाशीय बिजली दृश्यमान और सुरक्षित है।

आकाशीय बिजली की प्रक्रिया:

  • आकाशीय बिजली ऊपर और नीचे के बादलों के मध्य विद्युत आवेश में अंतर के कारण उत्पन्न होती है, जो आकाशीय बिजली का एक विशाल प्रवाह प्रदर्शित करती है।
  • जल वाष्प के संघनित होने पर बादल का निर्माण होता है, जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है और यह ऊष्मा पानी के अणुओं को तब तक ऊपर धकेलती रहती है जब तक कि वे बर्फ के क्रिस्टल नहीं बन जाते। बर्फ के क्रिस्टल के मध्य टकराव इलेक्ट्रॉनों के मुक्त होने के कारण है, जिसके परिणामस्वरूप एक शृंखला प्रतिक्रिया निर्मित होती है जो बादल के शीर्ष परत में धनात्मक आवेश और मध्य परत में ऋणात्मक आवेश का निर्माण करती है।
  • जब आवेश में अंतर काफी अधिक हो जाता है, तो परतों के मध्य बिजली का एक विशाल प्रवाह देखा जाता है, जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है एवं वायु स्तंभ का विस्तार होता है तथा गड़गड़ाहट पैदा करने वाली तरंगें निर्मित होती हैं।

आकाशीय बिजली और जलवायु परिवर्तन:

  • कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वर्ष 2015 के एक अध्ययन में विश्वविद्यालय ने आगाह किया था कि एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से बिजली गिरने की आवृत्ति में 12% की वृद्धि होगी।
  • मार्च 2021 में जियोफिज़िकल रिसर्च लेटर्स में जारी एक अन्य अध्ययन में जलवायु परिवर्तन और आर्कटिक में बिजली गिरने में वृद्धि के मध्य संबंध पाया गया।

भारत में आकाशीय बिजली: 

  • बिजली गिरने पर प्रकाशित लाइटनिंग रेज़िलिएंट इंडिया कैंपेन (LRIC) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अप्रैल 2020 और मार्च 2021 के मध्य बिजली गिरने की 1 करोड़ 85 लाख घटनाएँ देखी गईं।
  • प्रत्येक वर्ष बिजली गिरने से 2,500 से ज़्यादा भारतीयों की मौत हो जाती है।
  • दिल्ली स्थित RMSI जो भू-स्थानिक और अभियांत्रिकी समाधानों में विश्व में अग्रणी है, की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में आकाशीय बिजली गिरने के कारण सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखंड हैं।
  • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 1967 और 2019 के मध्य देश में 100,000 से अधिक लोग  आकाशीय बिजली गिरने के कारण मारे गए। जो इस अवधि के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली सभी मौतों के एक-तिहाई से अधिक है

आगे की राह   

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: भारत को नागरिकों को आँधी के आने और बिजली गिरने के प्रति सचेत करने के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली में निवेश करना चाहिये, जैसे मौसमी रडार, लाइटनिंग डिटेक्शन नेटवर्क और स्मार्टफोन एप्लीकेशन इत्यादि।
  • आकाशीय बिजली से सुरक्षा हेतु उपाय: भारत की ग्रामीण आबादी को तीव्र तथा आसान तड़ित सुरक्षा उपायों के बारे में शिक्षित करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें घरों पर तड़ित चालक स्थापित करना, तड़ितझंझा के दौरान घर के अंदर रहना एवं सुरक्षित स्थानों पर शरण लेना आदि शामिल है।
  • अनुसंधान और विकास: भारत सरकार को आकाशीय बिजली (लाइटनिंग) को बेहतर ढंग से समझने और जोखिम को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी तरीके खोजने हेतु अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करना चाहिये।

अफ्रीका की रिफ्ट वैली और एक नए महासागर बेसिन का निर्माण

चर्चा में क्यों?   

वर्ष 2020 में एक अध्ययन से पता चला है कि अफ्रीकी महाद्वीप के धीरे-धीरे अलग होने से एक नए महासागर बेसिन का निर्माण हो रहा है।

  • यह पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट घाटी के कारण है, जो 56 किलोमीटर तक फैली हुई है और वर्ष 2005 में इथियोपियाई रेगिस्तान में दिखाई दी थी

अफ्रीका की प्लेटों के खिसकने के लिये ज़िम्मेदार कारक

  • कारक:  
    • तीन प्लेटें- न्युबियन अफ्रीकी प्लेट, सोमालियाई अफ्रीकी प्लेट और अरेबियन प्लेट अलग-अलग गति से विभाजित हो रही हैं।
    • अरेबियन प्लेट प्रतिवर्ष लगभग एक इंच की दर से अफ्रीका से दूर जा रही है, जबकि दो अफ्रीकी प्लेटें प्रतिवर्ष आधा इंच से 0.2 इंच के मध्य या और भी धीमी गति से अलग हो रही हैं।
    • पिछले 30 मिलियन वर्षों में अरेबियन प्लेट धीरे-धीरे अफ्रीका से दूर हो रही है, जिसके कारण पहले से ही लाल सागर और अदन की खाड़ी का निर्माण हुआ है।
  • संभावित परिणाम:
    • चूँकि सोमाली और नूबियन टेक्टोनिक प्लेटें एक-दूसरे से अलग हो रही हैं, इसलिये इस दरार से एक छोटे महाद्वीप का निर्माण हो जाएगा, जिसमें वर्तमान सोमालिया, केन्या, इथियोपिया एवं तंजानिया के कुछ हिस्से शामिल होंगे। 
    • अदन की खाड़ी और लाल सागर अंतत: इथियोपिया के अफार क्षेत्र और पूर्वी अफ्रीकी भ्रंश घाटी में बाढ़ लाकर एक नए महासागर का निर्माण करेंगे।
    • इस नए महासागर के परिणामस्वरूप पूर्वी अफ्रीका अपनी अद्वितीय भौगोलिक और पारिस्थितिक विशेषताओं के साथ एक अलग छोटा महाद्वीप बन जाएगा।
    • सोमाली और न्युबियन विवर्तनिक प्लेटों के अलग होने से नया महासागर बेसिन बनाने में 5 से 10 मिलियन वर्ष लगेंगे।
  • वर्तमान स्थिति: 
    • हालाँकि कुछ समय से भ्रंशन की प्रक्रिया हो रही है, संभावित विखंडन वर्ष 2018 में दुनिया भर में तब चर्चा में आया जब केन्याई भ्रंश घाटी में बड़ी दरार देखी गई। 

इस भ्रंशन के अवसर और चुनौतियाँ

  • अवसर: 
    • नई तटरेखाओं के उभरने से देशों में आर्थिक विकास के असंख्य अवसर (जैसे- युगांडा और जाम्बिया जैसे लैंडलॉक देश) उपलब्ध होंगे, क्योंकि इसके कारण इन देशों की व्यापार के लिये नए बंदरगाहों तक पहुँच होगी, साथ ही मत्स्यन क्षेत्र और इंटरनेट बुनियादी ढाँचा भी उपलब्ध हो पाएगा। 
  • चुनौतियाँ :  
    • विस्थापन और पर्यावास का नुकसान: समुदायों का विस्थापन, बस्तियों और विभिन्न वनस्पतियों एवं जीवों के निवास स्थान का नुकसान जैसी पर्यावरणीय क्षति का सामना करना पड़ेगा।
    • लोगों की निकासी और जीवन की संभावित हानि इस प्राकृतिक घटना का एक अनपेक्षित परिणाम होगा।
    • विस्थापन और पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 तक अफ्रीका में 15 मिलियन से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए थे।  
    • प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव: तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और बस्तियों में वृद्धि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डालती हैं जिससे जल, ऊर्जा और भोजन की उपलब्धता की समस्या उत्पन्न होती है।  
    • अनियंत्रित अपशिष्ट निपटान भी एक गंभीर चिंता का विषय है।
    • नए फाॅल्ट लाइन्स: न्युबियन और सोमाली प्लेटों के अलग होने से नए फाॅल्ट लाइन्स, दरारें बन सकती हैं अथवा पहले से मौजूद फाॅल्ट लाइनें पुनर्सक्रिय हो सकती हैं, जिससे भूकंपीय गतिविधियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

ग्रेट रिफ्ट वैली

  • द ग्रेट रिफ्ट वैली एक विशाल भूवैज्ञानिक संरचना है जो उत्तरी सीरिया से लेकर पूर्वी अफ्रीका के मध्य मोज़ाम्बिक तक लगभग 6,400 किलोमीटर तक विस्तृत है।
  • जॉर्डन नदी इस घाटी से निकलती है और अंततः इज़रायल तथा जॉर्डन के बीच की सीमा पर मृत सागर में मिल जाती है
  • अदन की खाड़ी दरार की पूर्व की ओर निरंतरता में है और इस बिंदु से दरार दक्षिण-पूर्व की ओर हिंद महासागर के मध्य-महासागरीय रिज के हिस्से के रूप में फैली हुई है।
  • पूर्वी अफ्रीका में घाटी पूर्वी दरार और पश्चिमी दरार में विभाजित होती है। पश्चिमी दरार, जिसे अल्बर्टीन दरार के रूप में भी जाना जाता है, में दुनिया की कुछ सबसे गहरी झीलें हैं।

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में अवैध रेत खनन

चर्चा में क्यों?  

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का क्षेत्र अवैध रेत खनन गतिविधियों के कारण खतरे में है जो पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा रहा है तथा इस क्षेत्र की वनस्पतियों और जीवों को खतरे में डाल रहा है।

इस समस्या से निपटने के लिये जयपुर में एक उच्च स्तरीय बैठकआयोजित की गई जिसमें संबंधित तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों ने अभयारण्य की रक्षा के लिये समन्वित प्रयासों पर चर्चा की।  

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का महत्त्व 

  • राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के त्रि-जंक्शन पर स्थित है। 
  • यह एक दुर्बल सरित्जीवी (Lotic) पारिस्थितिकी तंत्र है, जो घड़ियालोंमछली खाने वाले मगरमच्छों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल है। 
  • यह अभयारण्य वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है और इसे 'महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैवविविधता क्षेत्र' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • अभयारण्य एक प्रस्तावित रामसर स्थल भी है जिसमें स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की 320 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं

भारत में रेत खनन की स्थिति

  • परिचय:  
    • खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत रेत को "गौण खनिज" के रूप में वर्गीकृत किया गया है और गौण खनिजों पर प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकारों के पास है। 
    • दियाँ और तटीय क्षेत्र रेत के मुख्य स्रोत हैं तथा देश में निर्माण एवं बुनियादी ढाँचे के विकास में वृद्धि के कारण हाल के वर्षों में इसकी मांग में काफी वृद्धि हुई है। 
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वैज्ञानिक रेत खनन और पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये "सतत् रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश 2016" जारी किया है।
  • भारत में रेत खनन से संबंधित मुद्दे:
    • जल की कमी: रेत खनन से भूजल भंडार में कमी आ सकती है और आसपास के क्षेत्रों में जल की कमी हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये हरियाणा के यमुना नगर ज़िले में यमुना नदी में यांत्रिक गतिविधि, अस्थिर पत्थर एवं रेत खनन से गंभीर खतरे का सामना कर रही है।
    • बाढ़: अत्यधिक रेत खनन से नदी के तल उथले हो सकते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है। 
    • उदाहरण के लिये बिहार राज्य में बालू खनन से कोसी नदी में बाढ़ की बारंबारता बढ़ गई है, जिससे फसलों और संपत्ति को नुकसान होता है।  
    • संबद्ध अवैध गतिविधियाँ: अनियंत्रित रेत खनन में अवैध गतिविधियाँ भी शामिल हैं, जैसे कि सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण, भ्रष्टाचार और कर की चोरी।

निष्कर्ष

  • तीन राज्यों द्वारा की गई संयुक्त कार्रवाई अभयारण्य की वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण, पर्यावरण की रक्षा एवं आने वाली पीढ़ियों हेतु हमारी प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

बदलते पश्चिमी विक्षोभ

चर्चा में क्यों?

हालिया अध्ययनों के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ की बदलती प्रकृति भारत में सर्दियों के असामान्य मौसम का प्राथमिक कारण हो सकती है।

  • भारत में पिछले तीन वर्षों में सामान्य सर्दी का मौसम नहीं रहा है। देश में मानसून के बाद दूसरा सबसे नम रहने वाला मौसम असामान्य रूप से शुष्क और गर्म रहा है।

पश्चिमी विक्षोभ का भारत में सर्दी के मौसम पर हालिया प्रभाव

  • क्रमशः दिसंबर 2022 और फरवरी 2023 में भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र, जहाँ वर्ष भर में होने वाली वर्षा में से 30% सर्दियों के दौरान होती है, में 83% और 76% की कमी देखी गई है।
  • पश्चिमी विक्षोभ की अनुपस्थिति के कारण उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में दिसंबर 2022 और अधिकांश जनवरी 2023 में हिमालय से बहने वाली ठंडी उत्तरी हवाओं के कारण शीत लहर और ठंडे दिनों का अनुभव किया गया।
  • पश्चिमी विक्षोभ ओलावृष्टि के लिये भी उत्तरदायी है जो खड़ी फसलों को नुकसान पहुँचाती है, जो कोहरे के कारण वायु, रेल और सड़क सेवाओं को बाधित करता है और बादल फटने से आकस्मिक बाढ़ (Flash Floods) की समस्या उत्पन्न करता है

पश्चिमी विक्षोभ

  • परिचय:
    • पश्चिमी विक्षोभ चक्रवाती तूफानों की एक शृंखला है जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं, ये 9,000 किमी. से अधिक की दूरी तय करके भारत में पहुँचते हैं। यह उत्तर-पश्चिम भारत में शीत ऋतु में वर्षा के लिये उत्तरदायी है।
    • पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर, काला सागर और कैस्पियन सागर से आर्द्रता एकत्र करता है और पश्चिमी हिमालय पर्वत से टकराने से पहले ईरान और अफगानिस्तान के ऊपर से गुज़रता है।
    • जबकि तूफान प्रणाली पूरे वर्ष में मौजूद होती है, वे मुख्य रूप से दिसंबर और अप्रैल के बीच भारत को प्रभावित करते हैं क्योंकि उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम का प्रक्षेपवक्र शीत ऋतु के महीनों के दौरान हिमालय क्षेत्र में स्थानांतरित हो जाता है।
    • जेट स्ट्रीम हिमालय के ऊपर से पूरे वर्ष तिब्बत के पठार और चीन की ओर प्रवाहित होती है। इसका प्रक्षेपवक्र सूर्य की स्थिति से प्रभावित होता है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • पश्चिमी विक्षोभ हिमपात का प्राथमिक स्रोत है जो शीत ऋतु के दौरान हिमालय के ग्लेशियरों में वृद्धि करता है।
    • ये ग्लेशियर गंगा, सिंधु और यमुना जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों के साथ-साथ असंख्य पर्वतीय झरनों और नदियों का पोषण करते हैं।
    • ये कम दबाव वाली तूफान प्रणालियाँ भारत में किसानों को रबी फसल उगाने में मदद करती हैं।
  • समस्याएँ:
    • पश्चिमी विक्षोभ हमेशा अच्छे मौसम के अग्रदूत नहीं होते हैं। कभी-कभी पश्चिमी विक्षोभ बाढ़, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, धूल भरी आँधी, ओलावृष्टि और शीतलहर जैसी चरम मौसम की घटनाओं का कारण बन सकते हैं, बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर सकते हैं साथ ही जीवन तथा आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं।

अन्य जलवायु परिघटनाओं का पश्चिमी विक्षोभ पर प्रभाव

  • ला नीना घटना:
    • पिछले तीन वर्षों से दुनिया ला नीना के प्रभाव में है, जो प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान के ठंडा होने को संदर्भित करता है।
    • यह पश्चिमी विक्षोभ के निर्माण के लिये तापमान प्रवणता को कमज़ोर करता है क्योंकि यह गर्म उष्णकटिबंधीय वायु के तापमान को कम करता है।
  • उत्तरी अटलांटिक दोलन:
    • पश्चिमी विक्षोभ उत्तरी अटलांटिक दोलन से भी प्रभावित होते हैं, मध्य उत्तरी अटलांटिक में अज़ोरेस द्वीप समूह के ऊपर एक उच्च दाब क्षेत्र और आइसलैंड पर निम्न दाब वाले क्षेत्र के कारण उत्तरी अटलांटिक महासागर पर वायु के दाब में एक यादृच्छिक परिवर्तन होता है।
    • इसके कारण वर्तमान में मौसम प्रणाली एक ऋणात्मक चरण में है, क्योंकि निम्न और उच्च दाब दोनों प्रणालियाँ कमज़ोर हैं तथा यह पश्चिमी विक्षोभ को धनात्मक चरण की तुलना में 20% कम निरंतर और 7% कम तीव्र बनाता है।
  • उपोष्णकटिबंधीय जेट प्रवाह:
    • उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट प्रवाह के उत्तर की ओर खिसकने से न केवल भारत में पश्चिमी विक्षोभ के आने की संभावना कम हो जाती है, बल्कि तिब्बती पठार या यहाँ तक कि चीन और रूस जैसे उच्च अक्षांशों को प्रभावित करने की संभावना भी बढ़ जाती है।
    • यह अप्रत्यक्ष रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रभावित कर सकता है, जो भारत की वार्षिक वर्षा का 80% हिस्सा है।
  • दक्षिण पश्चिम मानसून के साथ अंतःक्रिया:
    • आर्कटिक क्षेत्र के गर्म होने से यह ध्रुवीय जेट को तरंगदार बनाता है, जिससे पश्चिमी विक्षोभ गर्मियों के दौरान भारत में अधिक बार आते हैं।
    • ग्रीष्म एवं मानसून के दौरान तथा मानसून के बाद के मौसम में पश्चिमी विक्षोभ के दक्षिण-पश्चिम मानसून और अन्य संबद्ध स्थानीय संवहन प्रणालियों, जैसे कि उष्णकटिबंधीय अवसाद जो बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उत्तर की ओर यात्रा करते हैं, के साथ अंतःक्रिया की अधिक संभावना होती है।
    • इस तरह की अंतःक्रिया विनाशकारी मौसम आपदाओं का कारण बन सकती है।
    • उदाहरण के लिये मई 2021 में अत्यधिक गंभीर चक्रवात ताउते, जिसके कारण गुजरात तट पर भूस्खलन हुआ, साथ ही इसने पश्चिमी विक्षोभ के साथ अंतःक्रिया कर दिल्ली एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में भारी वर्षा की।
The document Geography (भूगोल): March 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
55 videos|460 docs|193 tests

Top Courses for UPSC

55 videos|460 docs|193 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

MCQs

,

Viva Questions

,

Free

,

Geography (भूगोल): March 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

ppt

,

mock tests for examination

,

pdf

,

past year papers

,

Sample Paper

,

shortcuts and tricks

,

study material

,

Geography (भूगोल): March 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

Semester Notes

,

video lectures

,

Important questions

,

Geography (भूगोल): March 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

Extra Questions

,

Summary

,

Previous Year Questions with Solutions

,

practice quizzes

,

Exam

,

Objective type Questions

;