UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): March 2023 UPSC Current Affairs

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

ऑर्गनॉइड इंटेलिजेंस एंड बायो-कंप्यूटर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक नए क्षेत्र के लिये ‘ऑर्गनॉइड इंटेलिजेंस’ नामक संभावित क्रांतिकारी या गेम चेंजर योजना की रूपरेखा तैयार की है, जिसका उद्देश्य ‘बायोमीटर’ बनाना है, जहाँ प्रयोगशाला में विकसित की जाने वाली 3D ब्रेन कल्चर/मस्तिष्क संस्कृति को वास्तविक दुनिया के सेंसर और इनपुट/आउटपुट उपकरणों से युग्मित किया जाएगा।

  • यह अनुमान है कि प्रौद्योगिकी मस्तिष्क की प्रसंस्करण शक्ति का उपयोग कर मानव अनुभूति, सीखने और अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के जैविक आधारों को समझने में मदद करेगी।

प्रौद्योगिकी

  • ये "मिनी-ब्रेन" (4 मिमी. तक के आकार के साथ) मानव स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करके बनाए गए हैं और विकासशील मानव मस्तिष्क के कई संरचनात्मक एवं कार्यात्मक विशेषताओं को शामिल करते हैं। इसका उपयोग मानव मस्तिष्क के विकास तथा दवाओं का परीक्षण एवं संबंधित प्रतिक्रिया को समझने हेतु किया जाता है।
  • हालाँकि प्रयोगशाला में विकसित मस्तिष्क के अंग पर्याप्त रूप से उन्नत नहीं होते हैं क्योंकि उनमें आवश्यक संवेदी इनपुट और रक्त परिसंचरण की कमी होती है जो मानव मस्तिष्क जैसे जटिल अंग के विकास हेतु आवश्यक हैं।
  • शोधकर्त्ताओं ने यह भी देखा कि मानव मस्तिष्क की ऑर्गनॉइड संस्कृतियों ने इसे चूहे के मस्तिष्क में प्रत्यारोपित करके कार्यात्मक गतिविधि को प्रदर्शित किया।
  • यह प्रणाली मानवीय संदर्भ में मस्तिष्क रोगों का अध्ययन करने का एक तरीका प्रदान कर सकती है।
  • ऑर्गनॉइड्स अभी भी चूहों के मस्तिष्क के वातावरण में स्थित हैं, जो मानव मस्तिष्क का सटीक प्रतिनिधित्त्व नहीं हो सकता है।

नवीन बायो-कंप्यूटर

  • शोधकर्त्ताओं ने "बायो-कंप्यूटर" बनाने के लिये मशीन लर्निंग का उपयोग करके आधुनिक कंप्यूटिंग विधियों के साथ मस्तिष्क ऑर्गनॉइड्स को संयोजित करने की योजना बनाई है।
  • वे मल्टी-इलेक्ट्रोड संरचनाओं के अंदर ऑर्गनॉइड विकसित करेंगे जो न्यूरोनल फायरिंग पैटर्न को और संवेदी उत्तेजनाओं की नकल कर सकते हैं।
  • मानवीय व्यवहार या जीव विज्ञान पर न्यूरॉन प्रतिक्रिया पैटर्न के प्रभाव की जाँच मशीन-लर्निंग के तरीकों का उपयोग करके की जाएगी।
  • मानव न्यूरॉन्स को पहले से ही एक माइक्रोइलेक्ट्रोड के रूप में सजाया गया है और टेबल टेनिस के खेल के दौरान इलेक्ट्रॉनों द्वारा उत्पादित विद्युत गतिविधि का उत्पादन करना सिखाया गया है।

'बायो-कंप्यूटर' में अवसर

  • पार्किंसंस रोग और माइक्रोसेफली जैसी बीमारियों वाले रोगियों की स्टेम कोशिकाओं के उपयोग से विकसित मस्तिष्क ऑर्गनॉइड्स इन स्थितियों के लिये दवा के विकास में सहायता कर सकते हैं।
  • ये ऑर्गनॉइड स्वस्थ और रोगी-व्युत्पन्न ऑर्गनॉइड के बीच मस्तिष्क संरचना, कनेक्शन और सिग्नलिंग पर डेटा की तुलना करके मानव संज्ञान, सीखने और स्मृति के जैविक आधार में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
  • बुनियादी अंकगणित में कंप्यूटर की तुलना में धीमी होने के बावजूद मानव मस्तिष्क, जटिल सूचनाओं को संसाधित करने में मशीनों से बेहतर प्रदर्शन करता है।

आगे की राह

  • वर्तमान समय में मानव मस्तिष्क के अंगों का व्यास 1 mm से कम है, जो वास्तविक मानव मस्तिष्क के आकार का लगभग 3 मिलियनवांँ हिस्सा है। अतएव मस्तिष्क-ऑर्गनॉइड का मापन कर इसकी कंप्यूटिंग क्षमता में सुधार करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • ‘बिग डेटा’ इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग कर प्रत्येक न्यूरॉन और संयोजन से स्नायु संबंधी सूचनाओं को बनाए रखना और उसका विश्लेषण करना आवश्यक होगा।
  • शोधकर्त्ताओं को ऑक्सीजन और पोषक तत्त्वों के परिवहन एवं अपशिष्ट उत्पादों को हटाने के लिये माइक्रोफ्लुइडिक सिस्टम भी विकसित करना होगा।
  • इस कार्य के दौरान उत्पन्न होने वाले नैतिक मुद्दों की पहचान, उन पर चर्चा और उनका विश्लेषण करने की भी आवश्यकता है।

मेघा-ट्रॉपिक्स-1 उपग्रह

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा हाल ही में सेवामुक्त किये गए मेघा-ट्रॉपिक्स-1 (MT-1) उपग्रह के नियंत्रित पुन: प्रवेश परीक्षण को सफलतापूर्वक पूरा किया गया।

  • 5°S और 14°S अक्षांश तथा 119°W और 100°W देशांतर के बीच प्रशांत महासागर के बीच एक निर्जन क्षेत्र को MT-1 के इच्छित पुन: प्रवेश क्षेत्र के रूप में चुना गया था।

नियंत्रित पुनः प्रवेश

  • लक्षित सुरक्षित क्षेत्र के भीतरी प्रभाव को सुनिश्चित करने के लिये नियंत्रित पुन: प्रवेश में बहुत कम ऊँचाई पर डी-ऑर्बिटिंग की आवश्यकता होती है।
  • आमतौर पर बड़े उपग्रहों या रॉकेट निकायों, जिनकी पुन: प्रवेश पर एयरो-थर्मल विखंडन से बचने की संभावना होती है, को ग्राउंड कैज़ुअल्टी रिस्क को सीमित करने के लिये नियंत्रित री-एंट्री से गुज़रना पड़ता है।
    • एयरो-थर्मल विखंडन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उच्च गति से पृथ्वी के वायुमंडल के माध्यम से यात्रा करने वाली कोई वस्तु अत्यधिक गर्मी और दबाव का अनुभव करती है, जिससे वह अलग हो जाती है या खंडित हो जाती है।
  • हालाँकि ऐसे सभी उपग्रहों को विशेष रूप से उनके जीवन के अंत में नियंत्रित पुन: प्रवेश प्रक्रिया से गुज़रने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

MT-1 उपग्रह के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • परिचय:
    • यह एक इंडो-फ्रेंच अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट है, जिसे उष्णकटिबंधीय मौसम और जलवायु का अध्ययन करने के लिये अक्तूबर 2011 में लॉन्च किया गया था।
    • इस मिशन का मुख्य उद्देश्य संवहन प्रणालियों के जीवन चक्र को समझना है जो उष्णकटिबंधीय मौसम और जलवायु को प्रभावित करते हैं एवं उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के वातावरण में ऊर्जा तथा नमी बजट में उनकी भूमिका को समझने में मदद करते हैं।
    • इसकी वृत्ताकार कक्षा भूमध्य रेखा से 20 डिग्री झुकी हुई है, यह जलवायु अनुसंधान हेतु एक तरह का उपग्रह है जिसने पूर्वानुमान मॉडल (Prediction Models) को परिष्कृत करने में वैज्ञानिकों की सहायता की है।
  • पेलोड:
    • माइक्रोवेव एनालिसिस एंड डिटेक्शन ऑफ रेन एंड एटमॉस्फेरिक स्ट्रक्चर्स (MADRAS), एक इमेजिंग रेडियोमीटर जिसे सेंटर नेशनल डी'एट्यूड्स स्पैटियालेस (CNES), फ्राँस और इसरो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
    • CNES से साउंडर फॉर प्रोबिंग वर्टिकल्स प्रोफाइल्स ऑफ ह्यूमिडिटी (SAPHIR)
    • CNES से स्कैनर फॉर रेडिएशन बजट (ScaRaB)
    • इटली से खरीदे गए रेडियो ऑक्यूलेशन सेंसर फॉर वर्टिकल प्रोफाइलिंग ऑफ टेम्परेचर एंड ह्यूमिडिटी (ROSA)

अंतरिक्ष के मलबे से पृथ्वी की कक्षा की रक्षा

चर्चा में क्यों?  

संयुक्त राष्ट्र द्वारा राष्ट्रीय सीमाओं से परे उच्च समुद्रों के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये एक संधि पर सहमत होने के बाद वैज्ञानिक अंतरिक्ष मलबे से पृथ्वी की कक्षा की रक्षा हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते की मांग कर रहे हैं।

  • बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति ने अंतरिक्ष मलबे को कम करने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये हैं, किंतु ऐसी कोई अंतर्राष्ट्रीय संधि नहीं है जो इसे कम करने का प्रयास करती है।  

अंतरिक्ष मलबा

  • परिचय:  
    • अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी की कक्षा में कृत्रिम वस्तुओं के संग्रह को संदर्भित करता है जो अनुपयोगी हो चुके हैं या अब उपयोग में नहीं हैं। 
    • इन वस्तुओं में गैर-कार्यात्मक अंतरिक्ष यान, परित्यक्त प्रक्षेपित वाहन, मिशन से संबंधित मलबा और विखंडित मलबा शामिल है।
  • चिंताएँ: 
    • वर्ष 2030 तक पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों की संख्या 60,000 तक पहुँचने की संभावना है, जो वर्तमान में 9,000 से अधिक हैं और अप्रतिबंधित मलबे की मात्रा चिंता का कारण है।
    • "अंतरिक्ष मलबे" के लगभग 27,000 टुकड़ों का पता नासा (NASA) द्वारा लगाया जा चुका है लेकिन पुराने उपग्रहों के 100 ट्रिलियन से अधिक अप्रतिबंधित किये गए टुकड़े ग्रह की परिक्रमा करते हैं।
    • वर्तमान में कंपनियों को कक्षाओं को साफ करने या उपग्रहों में वि-कक्षीय परिक्रमा संबंधी कार्यों को शामिल करने के लिये प्रोत्साहित नहीं किया जाता है।
    • वि-कक्षीय परिक्रमा का अर्थ अनुपयोगी उपग्रहों को वापस पृथ्वी पर लाना है। 
    • मौजूदा बाह्य अंतरिक्ष संधि हमेशा परिवर्तित भू-राजनीति, प्रौद्योगिकी और वाणिज्यिक लाभ से बाधित है। 

अंतरिक्ष मलबे पर अंकुश लगाने से संबंधित पहल

  • भारत: 
    • वर्ष 2022 में ISRO ने टकराव के खतरों वाली वस्तुओं की लगातार निगरानी करने, अंतरिक्ष मलबे के विकास की संभावनाओं का आकलन और अंतरिक्ष मलबे से उत्पन्न जोखिम को कम करने के लिये सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशंस मैनेजमेंट (IS 4 OM) की स्थापना की।
    • 'नेत्रा (NETRA) परियोजना' भारतीय उपग्रहों को कचरे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये अंतरिक्ष में स्थापित एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है।
  • वैश्विक:  
    • अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (Inter-Agency Space Debris Coordination Committee- IADC)
    • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) की स्वच्छ अंतरिक्ष पहल

अंतरिक्ष मलबे का निपटान

  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्त्व अंतरिक्ष संधि: पृथ्वी की कक्षा को अंतरिक्ष मलबे से बचाने हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता आवश्यक है।
  • संधि को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि निर्माता और उपयोगकर्त्ता अपने उपग्रहों और मलबे की ज़िम्मेदारी लें तथा देशों एवं कंपनियों को उनके कार्यों हेतु जवाबदेह बनाने के लिये ज़ुर्माने व अन्य प्रोत्साहनों के साथ सामूहिक अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करें।
  • प्रोत्साहन: पृथ्वी की कक्षा का उपयोग करने वाले देशों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ काम करने के लिये सहमत होना चाहिये और अंतरिक्ष यान की परिक्रमा करने एवं कक्षाओं की सफाई करने वाली कंपनियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिये 
  • पुनर्प्रयोज्य लॉन्च वाहन: एकल-उपयोग वाले रॉकेट के बदले पुनर्प्रयोज्य लॉन्च वाहनों का उपयोग करने से लॉन्च के कारण उत्पन्न नए मलबे की संख्या को कम करने में मदद मिल सकती है

निर्देशित ऊर्जा व हाइपरसोनिक हथियार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ने वांछित रेंज तथा सटीकता प्राप्त करने के लिये निर्देशित ऊर्जा हथियारों (Directed Energy Weapons- DEWs) और हाइपरसोनिक हथियारों के विकास को बढ़ावा देने तथा उन्हें अपने हवाई प्रणालियों में एकीकृत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

निर्देशित ऊर्जा व हाइपरसोनिक हथियार

  • परिचय:
    • आम भाषा में निर्देशित-ऊर्जा हथियार लेज़र, माइक्रोवेव अथवा कण बीम के माध्यम से केंद्रित ऊर्जा का उपयोग करके अपने लक्ष्य को नष्ट करता है।
    • उदाहरण- माइक्रोवेव हथियार, लेज़र हथियार, ड्रोन रक्षा प्रणाली आदि।
    • हाइपरसोनिक हथियार वह होता है जो ध्वनि की गति से पाँच से दस गुना (मैक 5 से मैक 10 तक) गति से अपने लक्ष्य पर वार कर सकता है।
  • पारंपरिक गोला-बारूद की तुलना में DEWs के लाभ:
    • DEWs में (विशेष रूप से लेज़र में) उच्च परिशुद्धता, प्रति भेदन कम लागत, लॉजिस्टिक लाभ और ट्रैक न किये जाने (Stealth Capacity) की अधिक क्षमता होती है।
    • यह प्रकाश की गति से घातक बल (लगभग 300,000 किलोमीटर प्रति सेकंड) संचारित करता है।
    • वायुमंडलीय कर्षण और गुरुत्वाकर्षण के संकुचित प्रभाव का इसके वेग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
    • लक्ष्यों के विरुद्ध उपयोग की गई ऊर्जा के प्रकार और तीव्रता को अलग-अलग करके उनके प्रभावों को अनुकूलित किया जा सकता है।
  • कमियाँ:
    • सीमित मारक क्षमता: अधिकांश DEWs की सीमित मारक क्षमता होती है और लक्ष्य एवं हथियार के बीच की दूरी बढ़ने पर उनकी प्रभावशीलता तेज़ी से घट जाती है
    • उच्च लागत: DEWs और हाइपरसोनिक हथियारों का विकास एवं निर्माण महँगा हो सकता है, साथ ही कुछ स्थितियों में उनकी प्रभावशीलता की तुलना में लागत को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
    • प्रत्युपाय: DEWs को चिंतनशील सामग्रियों या अन्य प्रत्युपायों (Countermeasures) का उपयोग करके प्रत्युत्तर दिया जा सकता है, जो उनकी प्रभावशीलता को कम कर सकते हैं।
    • हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा: एक देश द्वारा हाइपरसोनिक हथियारों और DEWs के विकास से हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो सकती है, क्योंकि अन्य देश प्रतिक्रिया में अपने स्वयं के हाइपरसोनिक हथियार विकसित करना चाहते हैं। इससे तनाव एवं अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • एयरोस्पेस उद्योग में इन प्रौद्योगिकियों का अनुप्रयोग युद्ध लड़ने के तरीके को बदल सकता है जिससे भारत को भविष्य के युद्ध लड़ने और जीतने के लिये आवश्यक अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म, हथियारों, सेंसर और नेटवर्क का उत्पादन करने में सक्षम बनाया जा सकता है।
    • DEWs और हाइपरसोनिक हथियार भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाकर चीन, पाकिस्तान जैसे शत्रु राष्ट्रों के खिलाफ एक निवारक के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • DEWs वाले अन्य देश:
    • रूस, फ्राँस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, इज़रायल और चीन उन देशों में से हैं जिन्होंने DEWs या लेज़र निर्देशित ऊर्जा हथियार विकसित करने का कार्यक्रम बनाया है और कई देशों की सेनाओं ने भी उन्हें नियोजित किया है।
    • इससे पहले अमेरिका ने क्यूबा पर सोनिक हमले (हवाना सिंड्रोम) का आरोप लगाया था।

भारत की DEWs और हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी परियोजनाएँ

  • 1KW लेज़र हथियार: DRDO ने 1KW लेज़र हथियार का परीक्षण किया है, जो 250 मीटर दूर लक्ष्य को भेद सकता है।
  • दिशात्मक रूप से अप्रतिबंधित रे-गन ऐरे (DURGA) II: DRDO ने एक परियोजना DURGA II शुरू की है, जो 100 किलोवाट का हल्का DEW है।
  • हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी विकास: भारत में हाइपरसोनिक तकनीक का विकास और परीक्षण DRDO एवं ISRO दोनों द्वारा किया गया है।
  • वर्ष 2021 में DRDO ने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जो ध्वनि की गति से 6 गुना अधिक गति से यात्रा करने में सक्षम था।
  • भारत अपने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल प्रोग्राम के हिस्से के रूप में एक स्वदेशी, दोहरी सक्षमता (पारंपरिक और साथ ही परमाणु) वाला हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल भी विकसित कर रहा है।

आगे की राह

  • रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की अवधारणा के लिये भारतीय रक्षा प्रोद्योगिकी का उपयोग कर स्वदेशी डिज़ाइन एवं विकास क्षमताओं को विकसित करना शामिल होना चाहिये।
  • हमारी रक्षा क्षमता को बढ़ाने के लिये रक्षा अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है।

लक्षद्वीप में हरित और स्व-संचालित विलवणीकरण संयंत्र

चर्चा में क्यों?  

राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT), जो कि केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है, लक्षद्वीप में हरित और स्व-संचालित विलवणीकरण संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रहा है।

  • राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT), कम तापमान वाली थर्मल विलवणीकरण तकनीक (Low Temperature Thermal Desalination- LTTD) का उपयोग कर लक्षद्वीप के छह द्वीपों में पीने योग्य जल उपलब्ध कराने की पहल पर काम कर रहा है। NIOT अब इस प्रक्रिया को उत्सर्जन मुक्त बनाने की कोशिश कर रहा है।
  • वर्तमान में अलवणीकरण संयंत्र, जिनमें से प्रत्येक प्रतिदिन कम-से-कम 100,000 लीटर पीने योग्य जल प्रदान करता है, डीज़ल जनरेटर सेट द्वारा संचालित होते हैं।

हरित और स्व-संचालित विलवणीकरण संयंत्र

  • परिचय: 
    • प्रस्तावित विलवणीकरण संयंत्र को शक्ति प्रदान करने के लिये सौर, पवन और तरंग ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के संयोजन का उपयोग किया जाएगा। यह संयंत्र समुद्री जल को अलवणीकृत करने और पीने योग्य जल का उत्पादन करने के लिये रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) तकनीक से लैस होगा। NIOT एक ऐसे द्वीप में संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रहा है, जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की उच्च संभावना है।
    • यह संयंत्र विश्व में अपनी तरह का पहला संयंत्र है क्योंकि यह स्वदेशी तकनीक, हरित ऊर्जा एवं पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रियाओं का उपयोग करके समुद्र से पीने के लिये जल उत्पन्न करेगा और यह स्व-संचालित है।
  • आवश्यकता: 
    • LTTD की प्रक्रिया जीवाश्म-ईंधन मुक्त नहीं है और डीज़ल की खपत भी करती है और डीज़ल जनरेटर सेट के माध्यम से काम करती है, यह द्वीपों में एक कीमती वस्तु है जिसे मुख्य भूमि से भेजा जाता है और इसे विद्युत ग्रिड द्वारा शक्ति देना एक दुरूह कार्य है।
  • निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण प्रौद्योगिकी:
    • LTTD एक अलवणीकरण तकनीक है जो समुद्री जल को पीने योग्य जल में परिवर्तित कर देती है।
    • यह पद्धति इस विचार पर आधारित है कि सतह से 1,000-2,000 फीट नीचे समुद्र का जल सतह के जल की तुलना में 4-8 डिग्री सेल्सियस अधिक ठंडा होता है। इसलिये एक टैंक का उपयोग खारे सतह के जल (बाहरी शक्ति स्रोत के माध्यम से) को इकट्ठा करने और उच्च दबाव के लिये किया जाता है।
    • दबाव से वाष्पीकृत जल कई ट्यूबों द्वारा एक कक्ष में एकत्रित होता है। इन नलियों के माध्यम से समुद्र का ठंडा जल खींचा जाता है, जहाँ वाष्प संघनित होकर ताजा जल का निर्माण करती है और जो लवण निकलता है उसे अलग कर दिया जाता है। इस प्रकार संघनित ताजा जल पीने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
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