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Notes: अनुच्छेद-लेखन | Hindi Grammar for Class 6 PDF Download

परिचय


किसी विषय के सभी बिंदुओं को अत्यंत सारगर्भित ढंग से एक ही अनुच्छेद में प्रस्तुत करने को अनुच्छेद कहा जाता है। अनुच्छेद ‘निबंध’ का संक्षिप्त रूप होता है। इसमें किसी विषय के किसी एक पक्ष पर 75 से 100 शब्दों में अपने विचार दिए जाते हैं। अनुच्छेद लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

  • अनुच्छेद की भाषा सरल होनी चाहिए।
  • अनुच्छेद को दी गई शब्द-सीमा में ही पूरा करना चाहिए।
  • विषय से संबंधित सभी बिंदुओं को अनुच्छेद में समाहित करने का प्रयास करना चाहिए।
  • अनुच्छेद में शब्द-सीमा का ध्यान रखना चाहिए। छठी कक्षा में अनुच्छेद की शब्द-सीमा 75-100 शब्द हो सकती है।
  • अनुच्छेद में भूमिका आदि के स्थान पर सीधे ही विषय पर आ जाना चाहिए।

नीचे छठी कक्षा के लिए उपयुक्त अनुच्छेदों के कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं।

1. अनुच्छेद - स्वास्थ्य और खेल

  • खेल के लिए स्वस्थ शरीर बहुत जरूरी होता है। स्वस्थ शरीर के लिए नियमित व्यायाम बहुत महत्वपूर्ण है। यह स्वस्थ शरीर के साथ-साथ अच्छी मानसिक स्थिति भी बनाए रखता है। व्यायाम करने से हमारी सेहत अच्छी रहती है और हम बीमारियों से बचे रहते हैं।
  • खेल भी अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। खेल न केवल हमारी शारीरिक बल, स्थायित्व, तेजी, एवं लचीलापन का विकास करते हैं, बल्कि हमें टीम स्पिरिट, नैतिक मूल्यों की सीख, सामूहिक भावना एवं अनुशासन जैसे गुण भी सिखाते हैं। इसलिए, स्कूलों में खेल एवं व्यायाम का अधिक महत्व दिया जाना चाहिए ताकि बच्चों को न सिर्फ शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने में मदद मिले, बल्कि उनमें नैतिक मूल्यों का विकास भी हो सके।

2. अनुच्छेद - समय का महत्व

  • समय एक बहुत महत्वपूर्ण चीज है जो हमारी जिंदगी का सबसे मूल तत्व होता है। हमें समय की कीमत का पता होना चाहिए ताकि हम इसे अच्छी तरह से उपयोग कर सकें।
  • जब हम समय का सही उपयोग करते हैं, तब हम जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं। यदि हम समय का सही उपयोग नहीं करते हैं, तो हम बहुत सी चीजों को खो देते हैं, जैसे कि मौका, धन, ज्ञान और संधि।
  • समय का महत्व हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भी होता है। अगर हम समय पर उठना और उसे सही तरीके से उपयोग करना सीख जाते हैं, तो हम न केवल अपनी जिंदगी में सफल होते हैं, बल्कि दूसरों की मदद भी कर सकते हैं।
  • समय का महत्व समझाने के लिए, हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। हमें समय को अच्छी तरह से प्रबंधित करना चाहिए और हमेशा समय की जाँच करते रहना चाहिए ताकि हम समय के साथ अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकें।

3. अनुच्छेद-  प्रार्थना
प्रार्थना का सामान्य अर्थ है-किसी के प्रति श्रद्धावान रहते हुए, सच्चे शुद्ध तथा सरल मन से उद्गार प्रकट करना। 

  • यह केवल ईश्वर का ध्यान करने के लिए ही नहीं होती, बल्कि यह हमें अनुशासन भी सिखाती है। इसके अतिरिक्त प्रार्थना’ व्यक्ति की विनयशीलता, अहंकार शून्यता तथा विनम्रता का प्रतीक है। 
  • प्रार्थना का प्रभाव प्रार्थना करने वाले तथा सुनने वाले-दोनों पर पड़ता है। प्रार्थना करने से इसे करने वाले का मन पवित्र होता है तथा इससे सुनने वाले के हृदय में सहानुभूति दया और स्नेह के भाव जाग्रत होते हैं। 
  • जब हम परमात्मा से कुछ प्रार्थना करते हैं, तो ईश्वर के प्रति आस्था के भाव जाग्रत होते हैं, कभी-कभी किसी अनुचित कार्य को करने के बाद भी उसे क्षमा कर देने तथा प्रायश्चित स्वरूप प्रार्थना की जाती है। इससे व्यक्ति का अहंकार, दंश तथा नास्तिकता की भावनाओं का अंत होता है।

4.अनुच्छेद - बस्ते का बोझ
आज के समय में शिक्षा का पूरे देश में प्रचार-प्रसार हुआ है। शहरों में ही नहीं बल्कि गाँवों में भी बच्चे विद्यालय जा रहे हैं, किंतु यह दुर्भाग्य की बात है कि कोमल के बचपन की पीठ पर भारी-भरकम बस्ते लदे हुए हैं। इस भारी-भरकम बस्तों का बोझ होते हुए बचपन को देखना वास्तव में दुखद है। 

  • पुराने जमाने में प्राइमरी कक्षाओं की पढ़ाई तो तीन-चार किताबों से ही हो जाती थी, लेकिन आज प्राइमरी कक्षाओं में एक दर्जन से भी अधिक किताबें होती हैं, जिन्हें पीठ पर ढोकर लाना बच्चों के साथ ज्यादती है। 
  • भारी होते बस्ते की परेशानी से आज बचपन दुखी है। जरूरत है कि समय रहते हम इस समस्या को समझें और समाधान खोजें क्योंकि बस्ते का यह भारी बोझ कहीं देश के नौनिहालों के मन में शिक्षा के प्रति अरुचि न पैदा कर दे।

5.अनुच्छेद - परोपकार 
‘परोपकार’ दो शब्दांशों पर + उपकार से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है-दूसरे की भलाई करना। परोपकारी मनुष्य ही सच्चे अर्थों में मनुष्य है क्योंकि वह केवल अपने लिए नहीं जीता, वह पूरे समाज का भला चाहता है। 

  • संपूर्ण संसार के कल्याण में वह अपना जीवन अर्पित कर देता है। यही कारण है कि परहित अथवा परोपकार को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। वास्तविक मनुष्य वह है जो अपने सुख से अधिक दूसरे के सुख को महत्त्व दे। मानव संस्कृति की प्राचीनता व निरंतरता का कारण परोपकार है। 
  • परोपकार प्रकृति भी करती है। नदी मानव कल्याण के लिए बहती है। वृक्ष दूसरों के लिए फल उत्पन्न करते हैं, मेघ प्राणी जगत के लिए बरसते हैं। ऋषि दधीचि, राजा शिवि, महादानी कर्ण, महात्मा बुद्ध, गांधी, लेनिन आदि ने मानव कल्याण के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। 
  • अतः परोपकार में संकोच नहीं करना चाहिए। हमें व्यक्तिगत हानि-लाभ से ऊपर उठकर जन-कल्याण की भावना से कर्म करना चाहिए।

6. अनुच्छेद - पढ़ेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया 
किसी देश की उन्नति का सबसे सही माध्यम शिक्षा ही है। देश का हर नागरिक जितना अधिक शिक्षित होगा, देश उतनी ही तेज़ी से तरक्की करेगा। 

  • सरकार ने इस बात को जान लिया है, इसी कारण देश में सभी को शिक्षित व साक्षर बनाने के लिए अनकानेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं। बच्चों के हाथों में पुस्तकें देखकर कितनी खुशी मिलती है, किंतु देश का दुर्भाग्य है कि आज भी हर बच्चों के पास पुस्तक नहीं है, पुस्तकों की जगह उनके हाथों में फावड़ा, बर्तन, कूड़े की पन्नियाँ आदि हैं। 
  • ‘बालश्रम एक अपराध है’ यह वाक्य बस कहने भर को है, सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। आज भी धनी घरों में नन्हें हाथ मजबूरी में फ र्श पर पोंछा लगाते हुए दिखाई दे जाते हैं या जूतों की पॉलिश को चमकाते हुए। अतः हम सब यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि बिना पढ़ लिखकर देश की सही उन्नति नहीं हो सकती।

7. अनुच्छेद - परिश्रम का महत्त्व 
मानव जीवन में परिश्रम का अत्यधिक महत्त्व है। यह सभी प्रकार की उपलब्धि अथवा सफ लता का आधार है। 

  • परिश्रमी मनुष्यों ने मानव-जाति के उत्थान में अतीव योगदान दिया है। हमारी वैज्ञानिक उन्नति के पीछे अथक परिश्रम का बहुत बड़ा योगदान रहा है। अपने परिश्रम के सहारे मानव सुदूर अंतरिक्ष में जा पहुँचा है। 
  • अतः परिश्रम से बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जिसे राष्ट्र के नागरिक परिश्रम को महत्त्व नहीं देते, वह राष्ट्र संसार के अन्य देशों से पिछड़ जाता है। यही कारण है कि हमारे महापुरुषों ने लोगों को परिश्रम करते रहने की सलाह दी है। 
  • कोई भी कार्य परिश्रम करने से ही पूरा होता है। केवल इच्छा करने से नहीं बल्कि किसी ध्येय की प्राप्ति के लिए परिश्रम करना अत्यावश्यक है।

8. अनुच्छेद - मीठी वाणी का महत्त्व 
‘वाणी’ ही मनुष्य को लोकप्रिय बनाती है। यदि मनुष्य मीठी वाणी बोले, तो वह सबका प्यारा बन जाता है और जिसमें अनेक गुण होते हुए भी यदि उसकी ‘बाणी’ मीठी नहीं है तो उसे कोई पसंद नहीं करता। 

  • इस उदाहरण को कोयल और कौआ के तथ्य से अच्छी तरह से समझा जा सकता है। दोनों देखने में एक समान होते हैं, परंतु कौए की कर्कश आवाज़ और कोयल की मधुर वाणी दोनों की अलग-अलग पहचान बनती है, इसलिए कौआ सबको अप्रिय और कोयल सबको प्रिय लगती है। 
  • मीठी वाणी बोलने वाले कभी क्रोध नहीं करते बल्कि प्रेम सौहार्द से समाज में मेल-जोल बढ़ाते हैं।

9. अनुच्छेद - मेरा गाँव

  • मेरा गाँव एक छोटा सा गाँव है। यह गाँव पहाड़ों के बीच में स्थित है। इस गाँव में खुशहाली की खुशबू फैली रहती है। यहाँ के लोग एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं और एकदूसरे की मदद करते हैं।
  • इस गाँव में सभी लोग सबके साथ मेल जोल बनाकर रहते हैं। यहाँ की सड़कें और घर बहुत साफ-सुथरे होते हैं। गाँव में लोग अपने खेतों में काम करते हैं और फसल उत्पादन करते हैं।मेरे गाँव में एक छोटी सी झील है जहाँ पर बच्चे बहुत खेलते हैं। झील के आसपास बहुत सारे पेड़-पौधे लगे हुए हैं जिनसे गाँव में बहुत खूबसूरती फैली हुई है।
  • मेरा गाँव एक सुकून भरा और शांतिपूर्ण स्थान है। यहाँ के लोग एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं और एकदूसरे की मदद करते हैं। मैं गाँव के इस सुखद वातावरण को कभी नहीं भूलूंगा।

10. मानव-विकास और मानव-मूल्य
मानव-विकास और मानव-मूल्य आधुनिक मानव समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरंतर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव मूल्यों का ह्रास होने से समस्या उत्तरोत्तर गूढ़ होती जा रही है। 

  • अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य विवेक और ईमानदारी को त्यागकर भौतिक स्तर से ऊँचा उठने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिंता नहीं करता। उसे तो बस साध्य को पाने की प्रबल इच्छा रहती है। 
  • वह ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नए-नए रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध वृत्ति पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। 
  • सदाचार, कर्त्तव्य-परायण, त्याग और नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना स्वप्न मात्र है।
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