1. आरंभ या प्रस्तावना: दिए गए किसी निबंध का आरंभ किसी कविता की पंक्तियों, किसी सूक्ति अथवा विषय से संबंधित किसी विचारक के कथन द्वारा किया जा सकता है। ऐसा करने से लेखक के बारे में अधिक जानकारी मिलती है अथवा सीधे भूमिका से भी आरंभ किया जा सकता है।
2. मध्य भाग: प्रत्येक निबंध के मध्य भाग में ही निबंध की संपूर्ण विवेचना की जाती है। इस भाग में निबंध की विषय-वस्तु को नीचे की ओर क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाता है।
3. अंत या उपसहार: प्रत्येक निबंध के अंत में उस विषय का सार अथवा निष्कर्ष लिखना चाहिए। यदि निबंध की समाप्ति पर विषय से संबंधित कविता की दो या चार पंक्तियाँ, सूक्ति अथवा किसी महापुरुष के कथन लिख दिए जाएँ तो निबंध में रोचकता आ जाती है।
नीचे छठी कक्षा के लिए उपयुक्त निबंध लेखन के कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं।
प्रस्तावना: हमारी धरती और आकाश में मौजूद पानी, हवा, धूप, मिट्टी, पेड़-पौधे आदि सभी को पर्यावरण कहा जाता है। शरीर के स्वच्छ रहने पर जैसे उसे रोग का संक्रमण नहीं होता है, वैसे ही पर्यावरण के स्वच्छ रहने से समस्त प्राणियों एवं प्राकृतिक परिवेश का जीवन स्वस्थ रहता है। लेकिन वर्तमान में सारे विश्व का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, यह सभी के लिए चिन्ता का विषय है।
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या: वर्तमान में जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि, बड़े उद्योगों की स्थापना तथा नगरों-कस्बों के विस्तार के कारण हरे-भरे वन एवं चरागाह उजड़ रहे हैं। यातायात के लिए सड़कें बनाई जा रही हैं। उद्योगों का गन्दा पदार्थ और पेट्रोल-डीजन का धुआँ सब ओर फैल रहा है। इस कारण नदी-तालाब, हवा, मिट्टी आदि में प्रदूषण बढ़ने से पर्यावरण की समस्या बढ़ रही है।
पर्यावरण स्वच्छता की जरूरत: पर्यावरण प्रदूषण के कारण अनेक तरह के असाध्य रोग फैल रहे हैं। हरे-भरे वनों एवं वृक्षों को काट देने से मौसम पर असर पड़ रहा है और अब संसार का तापमान लगातार बढ़ने लगा है। इन सब कुप्रभावों से बचने के लिए पर्यावरण की स्वच्छता की जरूरत है।
पर्यावरण स्वच्छता के उपाय: पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने के लिए वनों की कटाई रोकी जाए, जगह-जगह वृक्षों को रोपा जाए और हरियाली बढ़ाई जाए। कारखानों एवं गन्दे नालों से निकलने वाले दूषित पानी को स्वच्छ करने के उपाय किये जाएँ। जलाशयों एवं नदियों को स्वच्छ रखा जावे और जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाकर पर्यावरण की स्वच्छता के लिए जन-जागरण किया जाए।
उपसंहार: मानव-सभ्यता की भलाई के लिए पर्यावरण स्वच्छता जरूरी है। हम सब को पर्यावरण की रक्षा के लिए हर सम्भव प्रयास करना चाहिए।
प्रस्तावना: श्रेष्ठ विद्यालयों में पाठ्यक्रम के साथ-साथ पाठ्य सहगामी प्रवृत्तियों को भी महत्त्व दिया जाता है। विद्यालयों में होने वाले उत्सव भी इसी प्रकार पाठ्य सहगामी प्रवृत्तियों में से एक हैं। उनमें भाग लेकर छात्रों को उसके आयोजन करने, संगठन करने तथा उसको पूरा करने आदि का अनुभव होता है।
खेल-कूद का आयोजन: हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष पन्द्रह दिसम्बर को वार्षिकोत्सव मनाया जाता है। वार्षिकोत्सव के पहले खेलकूद होते हैं। विद्यालय के ज्येष्ठ और कनिष्ठ छात्रों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित कर दिया जाता है। इसमें अनेक प्रकार के खेल होते हैं। उत्सव का आयोजन-इस बार भी पन्द्रह दिसम्बर को दोपहर में विद्यालय का वार्षिक उत्सव सरस्वती वन्दना से प्रारम्भ हुआ। इसके पश्चात् स्वागत गान हुआ, मुख्य अतिथि को माला पहनाकर प्रधानाचार्यजी ने अभिनन्दन किया।
छात्रों ने मनोहर गीत गाये, हृदय को आकर्षित करने वाले हिन्दी तथा अंग्रेजी के अनेक प्रहसन हुए। छात्रों के कार्यक्रम के पश्चात् प्रधानाचार्यजी ने विद्यालय का प्रगति विवरण प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् माननीय अतिथि महोदय शिक्षा मन्त्री का अत्यन्त ही ओजस्वी और सारगर्भित भाषण हुआ। उन्होंने देश और विदेशों से प्राप्त अपने अनुभव बतलाये और छात्रों को कर्तव्य-पालन करने की प्रेरणा दी। भाषण के पश्चात् उन्होंने क्रीड़ाओं, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, बालमेले के श्रेष्ठ दुकानदारों तथा कक्षाओं में प्रथम और द्वितीय आने वाले छात्रों को पुरस्कार वितरित किये।
उपसंहार: इसी समय कुछ व्यक्तियों ने छात्रों के मिष्टान्न के लिये भी धनराशि प्रदान की। अन्त में, राष्ट्रीय गान के पश्चात् उत्सव समाप्त हो गया। उत्सव की प्रसन्नता में एक दिन का अवकाश घोषित किया गया।
प्रस्तावना: कोरोना वाइरस कई प्रकार के विषाणुओं का एक समूह है। इस वाइरस पर मुकुट जैसी संरचना पाई जाती है जिसके कारण इसको कोरोना वाइरस कहा गया
रोग का प्रारम्भ: इसका प्रारम्भ चीन के वूहान, हुबई के पशु-मांस मण्डी से हुआ। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम यह रोग चमगादड़ से मनुष्य में फैला। कारण जो भी हो। यह एक महामारी है जो संसार के कई देशों में कोविड-19 के नाम से फैली है।
प्रसारण एवं लक्षण: इसका प्रसारण मुख्य रूप से 6 फीट की सीमा के भीतर खाँसी व छींकों के माध्यम से रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में होता है। इसके सामान्य मुख्य लक्षण लार का बनना, साँस लेने में तकलीफ, गले में खराश, सिर दर्द, ठण्ड लगना, जी मिचलाना, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द आदि हैं।
रोकथाम व बचाव के उपाय:
(i) यात्रा करने से बचना चाहिए, घर में ही रहना चाहिए।
(ii) मास्क का उपयोग करना चाहिए।
(iii) हाथों को बार-बार लगभग 20 सैकण्ड तक साबुन से धोते रहना चाहिए तथा दूरी बनाकर रहना चाहिए।
(iv) बार-बार आँख, नाक, मुँह को छूने से बचना चाहिए।
रोग का उपचार-इस रोग से बचने के लिए:
(i) पूरे दिन गर्म एवं गुनगुना पानी पीना चाहिए।
(ii) 30 मिनट योगासन, प्राणायाम और ध्यान करना चाहिए।
(iii) भोजन पकाने में हल्दी, जीरा, धनिया, लहसुन, अदरक आदि का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए।
(iv) मादक पदार्थों से दूर रहना चाहिए।
(v) सुपाच्य भोजन करना चाहिए।
(vi) ठण्डी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
(vii) डॉक्टर की सलाह अनुसार दवा लेनी चाहिए।
उपसंहार: कोरोना एक महामारी है। इससे मृत्यु दर बढ़ी है। अब इसके इलाज के लिए भारत सहित संसार के अन्य देशों ने वैक्सीन की खोज कर ली है। वैक्सीन के माध्यम से अब इसका उपचार भी प्रारम्भ हो गया है।
रूपरेखा:
विज्ञान की देन (विद्युत के क्षेत्र में): विज्ञान के इस अद्भुत उपहार से कौन परिचित नहीं है जिसके कारण हम अनेक काम कर सकते हैं। रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर, वाशिंग मशीन, पंखे, कूलर, प्रिंटिग प्रेस आदि ऐसे ही छोटे-बड़े हजारों यंत्र विद्युत के द्वारा ही चलते हैं। बिजली से हमें देखने के लिए प्रकाश मिलता है और बड़े-बड़े उद्योग-धंधों में भी विद्युत को प्रयोग में लाया जाता है। विद्युत-रॉड से हम कुछ ही सेकंड में पानी को नहाने के लिए गर्म कर सकते हैं। आज जितने भी मोबाइल फोन हैं, उनकी बैटरी विद्युत से ही चार्ज की जाती हैं।
यातयात के क्षेत्र में: यातयात के क्षेत्र में विज्ञान ने तो अभूतपूर्व प्रगति की है। आज विज्ञान के कारण रेल, मोटर, वायुयान, जलयान आदि आरामदायक यातायात के साधनों का प्रयोग हो रहा है। इन साधनों के कारण महीनों की यात्रा कुछ ही घंटों में पूरी कर ली जाती है। आज की इक्कीसवीं शताब्दी में तो मनुष्य-निर्मित रॉकेट दूसरे ग्रहों तक पहुँच गए हैं। चंद्रमा पर मानव द्वारा बनाया गया रॉकेट आज से 40 वर्ष पहले उतर चुका था। वैज्ञानिक देन (चिकित्सा के क्षेत्र में)- चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान के आविष्कार मनुष्य के लिए वरदान सिद्ध हुए हैं। आज मनुष्य अपने पर किसी अन्य मनुष्य के अंग प्रत्यारोपित करा सकता है। एक्स-रे द्वारा मनुष्य के शरीर के भीतर के सभी अंगों के बारे में जाना जा सकता है। अल्ट्रासाउंड, सी.टी. स्केन के द्वारा विभिन्न रोगों का पता आसानी से लगाया जा सकता है। विज्ञान ने अनेक घातक एवं असाध्य रोगों का उपचार ढूँढ लिया है।
मनोरंजन के क्षेत्र में: विज्ञान ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना कदम रखा है। रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकार्डर, डी. जे., कम्प्यूटर गेम्स आदि ने तो बैठे-बैठे मनुष्य को अत्यंत आनंद दिया है। मोबाइल में आप चलते-चलते आराम से अकेले में घंटों तक मनोरंजन कर सकते हैं।
गणना के क्षेत्र में: अगर गणना के क्षेत्र में विज्ञान की अद्वितीय प्रगति कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। कम्प्यूटर इक्कीसवीं शताब्दी का एक मुख्य अंग बन गया है, इसके बिना किसी भी क्षेत्र में गणना नहीं की जा सकती। किताब लिखना, बैंकों में हिसाब करना, उपग्रहों संबंधी जानकारी लेना, चिकित्सा में चेक-अप करना, दुकानों में सामानों का बिल बनाना, विभिन्न खेलों के एक्शन देखना, यहाँ तक कि इंटरनेट के गूगल से बैठे-बैठे विश्व भ्रमण करना इसी से संभव हुआ है।
विज्ञान के उपहारों का दुरुपयोग: हम जानते हैं कि विकास के साथ विनाश भी समान रूप से जुड़ा है। विज्ञान से हमें केवल लाभ ही हो ऐसा संभव नहीं है। विज्ञान ने इतने भीषण अस्त्र-शस्त्रों (जैसे- परमाणु बम, मिसाइल, डायनामाइट) आदि का निर्माण किया है कि ये एक समय में सैकड़ों व्यक्तियों को मार सकते हैं, इनका प्रयोग निश्चित रूप से हमारे लिए एक अभिशाप है। ऐसा ही अणु बम अमेरिका ने विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी महानगरों पर फैंके थे जहाँ हजारों लोग मारे गए और लाखों का सामान नष्ट हो गया था।
उपसंहार: विज्ञान अपनी हानि स्वयं नहीं करता। विज्ञान के आविष्कारों का दुरुपयोग करने वाले ही इसकी हानि के जिम्मेदार हैं। यदि इन आविष्कारों का केवल मानव कल्याण हेतु सोच-समझकर प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती है।
रूपरेखा:
“शहीदों की चिताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले। वतन पर मिटने वालों का, यही बाकी निशां होगा।।”
भूमिका: कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला हमारा महान देश अपने राजाओं की आपसी फूट के कारण वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा। भारत में असंख्य विदेशी घुस आए और यहाँ का संपूर्ण बहुमूल्य सामान ले गए। धीरे-धीरे उन्होंने यहाँ अपने पाँव जमा लिए और हमारे देश में अपना शासन शुरू कर दिया। अंग्रेजों की दोहरी नीति थी। “फूट डालो और राज करो” की नीति के चलते उनके विरुद्ध सन् 1857 से 1947 तक लगभग 100 वर्षों तक लगातार देशवासी संघर्ष करते रहे। इस दौरान कई भारतवासी अंग्रेजों की गोलियों का शिकार बने और न जाने कितने देशवासियों को कठोर यातनाएँ सहनी पड़ीं। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करके कई वीर सपूत शहीद हो गए। झाँसी की रानी, मंगल पांडे, तात्या टोपे से लेकर लाला लाजपत राय, तिलक, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी जैसे अनेक देशभक्तों के अथक प्रयासों से 15 अगस्त, 1947 को हमें विदेशी शासन से मुक्ति मिली।
मनाने के कारण: 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत की राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराया था। इसी दिन से प्रत्येक वर्ष यह परंपरा चली आ रही है। मनाने का रूपः- स्वतंत्रता-दिवस वैसे तो देश के प्रत्येक कोने में उत्साह के साथ मनाया जाता है, परंतु दिल्ली में इस राष्ट्रीय पर्व को विशेष उल्लास के साथ मनाया जाता है। पूरे देश में इस दिन सरकारी इमारतों, स्कूलों, कॉलेजों, अन्य निजी कार्यालयों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। राजधानी में तथा प्रत्येक राज्य में प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं तथा देश के अमर शहीदों को उनकी समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। इस दिन देश में सार्वजनिक अवकाश रहता है। दिल्ली की ऐतिहासिक इमारत लाल किले पर ध्वजारोहण 15 अगस्त के दिन प्रतिवर्ष सुबह से ही हजारों लोग एकत्रित होने लगते हैं। ठीक प्रातः साढ़े सात बजे देश के प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर अपने देशवासियों को संदेश देते हैं जिसमें वे सरकार की विभिन्न गतिविधियों से जनता को अवगत कराते हैं। इस दिन पहले सुबह राष्ट्रगान गाया जाता है फिर तुरंत बाद देश की गरिमा के लिए इक्कीस तोपों की सलामी दी जाती है। रात्रि में देश के सभी सरकारी कार्यालयों पर प्रकाश की अच्छी व्यवस्था की जाती है।
उपसंहार: हमें अपने देश की स्वाधीनता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। इस दिन हमें एक जगह एकत्रित होकर अपने शहीदों को नमन करना चाहिए। हमें अपने देश में सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए तथा प्रत्येक व्यक्ति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए। इस प्रकार देश में शांति और भाईचारा बना रहेगा और देश प्रगति कर सकेगा।
रूपरेखा:
“जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और पाप बढ़ता जाता है,
तब-तब प्रभु यहाँ अवतार लेते हैं और विश्व सुख पाता है।”
भूमिका: समय-समय पर भारत के त्योहार आकर हमें कोई न कोई संदेश अथवा प्रेरणा देते रहते हैं। ये त्योहार हमारे प्राचीन गौरव के प्रतीक हैं। इन त्योहारों के आधार पर ही हम अपनी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़े रहते हैं। भारत के विभिन्न त्योहारों में दशहरा भी एक विशेष त्योहार है जो विजयदशमी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
त्योहार मनाने का समय- दशहरे का पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन आता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथमा से नवरात्र आरंभ होते हैं। नवरात्र नौ दिन तक चलते हैं, इन नौ दिनों में मंदिरों में दुर्गा पूजा की जाती है। नवमी के बाद दशमी को दशहरे का पर्व मनाया जाता है।
पौराणिक कथा: प्रत्येक त्योहार या पर्व को मनाने के पीछे कुछ न कुछ कारण अवश्य होता है। विजयदशमी का पवित्र दिन श्री राम कथा से जुड़ा है। इसी दिन राजा दशरथ के पुत्र श्री राम ने लंका के अत्याचारी राक्षसराज रावण का वध किया था। रावण के साथ श्री राम ने समस्त अत्याचारियों का विनाश किया और तभी से संपूर्ण देश में रामराज्य स्थापित हो गया था। इसी घटना की याद में यह त्योहार विशेष रूप से हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाल में इसे दुर्गा-पूजा के रूप में मनाया जाता है।
मनाने का रूप या ढंग: दशहरा पर्व से ठीक दस दिन पहले से उत्तर भारत में स्थान-स्थान पर श्री रामकथा (रामलीला) का आयोजन प्रारंभ हो जाता है। रामलीला रात्रि आठ बजे से शुरू की जाती है जो ग्यारह तक नियमित रूप से चलती है। रामलीला देखने गाँव-गाँव से शहर-शहर से विशाल जनसमूह उमड़ पड़ता है। इन्हीं दिनों स्थान-स्थान पर रामचरितमानस का पाठ भी दोहराया जाता है। लोग घर पर नवरात्रों के दिन व्रत रखते हैं और नौ दिन तक माँ दुर्गा की पूजा करते हैं। बंगाल में माँ दुर्गा की जिन प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की जाती है, उन्हें विजयदशमी के दिन नदी या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है। इसी दिन श्री राम, लक्ष्मण, सीता तथा समस्त वानर-दल की आकर्षक झाँकियाँ निकाली जाती हैं। एक बड़े तथा खुले मैदान में लोग रावण, मेघनाद तथा कुंभकरण के बड़े-बड़े पुतले बनाते हैं। श्रीराम के रूप में एक व्यक्ति इन पुतलों पर अग्नि बाणों की वर्षा करता है। इन पुतलों में बहुत पटाखे होने के कारण वे फट-फट की आवाज करके धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं। बच्चे इस प्रकार का दृश्य देखकर फूले नहीं समाते।
प्रेरणा: समाज के क्षत्रिय लोग इस दिन अपने अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करते हैं। व्यापारी लोग इस दिन को अत्यंत शुभ मानते हैं। विजयदशमी का त्योहार हमें प्रेरणा देता है कि धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर, अच्छाई की बुराई पर सदा जीत होती है
उपसंहार: इस दिन हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम जीवन में सत्य, धर्म और अच्छाई के मार्ग पर चलते रहेंगे और श्रीराम के आदर्शों को जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे।
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