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History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): April 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन और विरासत

चर्चा में क्यों?

देश भर में 14 अप्रैल, 2023 को डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती मनाई गई।

डॉ. भीमराव अंबेडकर

परिचय

  • डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर एक प्रमुख भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे।
  • उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 में मध्य प्रदेश के महू में हुआ था।
  • उनके पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल पढ़े-लिखे व्यक्ति और संत कबीर के अनुयायी थे।

शिक्षा

  • अंबेडकर ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और आगे की पढ़ाई न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय एवं लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में की।

योगदान

  • वर्ष 1924 में उन्होंने दलित वर्गों के कल्याण हेतु एक संगठन की शुरुआत की और वर्ष 1927 में दलित वर्गों की स्थिति को उजागर करने के लिये बहिष्कृत भारत समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया।
  • उन्होंने मार्च 1927 में महाड सत्याग्रह का भी नेतृत्त्व किया।
  • उन्होंने तीनों गोलमेज़ सम्मेलनों में भाग लिया।
  • वर्ष 1932 में डॉ. अंबेडकर ने महात्मा गांधी के साथ पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किये जिसमें दलित वर्गों (कम्युनल अवार्ड) हेतु अलग निर्वाचक मंडल के विचार को त्याग दिया गया।
  • वर्ष 1936 में उन्होंने दलित वर्गों के हितों की रक्षा हेतु इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी का गठन किया।
  • वर्ष 1942 में डॉ. अंबेडकर को भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया और वर्ष 1946 में बंगाल से संविधान सभा हेतु चुना गया।
  • वह प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे और उन्हें भारतीय संविधान के जनक के रूप में याद किया जाता है। 
  • डॉ. अंबेडकर वर्ष 1947 में स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बने।
  • हिंदू कोड बिल पर मतभेदों को लेकर उन्होंने वर्ष 1951 में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। 
  • अतिरिक्त विवरण:  
  • उन्होंने बाद में बौद्ध धर्म को अपना लिया। 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया, जिसे महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • चैत्य भूमि, मुंबई में डॉ. भीमराव अंबेडकर का स्मारक है।  
  • उन्हें वर्ष 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था

महत्त्वपूर्ण कार्य

  • पत्रिकाएँ:
    • मूकनायक (1920)
    • बहिष्कृत भारत (1927)
    • समता (1929)
    • जनता (1930)
  • पुस्तकें:
    • एनीहिलेशन ऑफ कास्ट 
    • बुद्ध और कार्ल मार्क्स
    • द अनटचेबल: हू आर दे एंड व्हाय दे हैव बिकम अनटचेबल्स
    • बुद्ध एंड हिज़ धम्म
    • द राइज़ एंड फॉल ऑफ हिंदू वुमेन
  • संगठन:
    • बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1923)
    • इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (1936)
    • अनुसूचित जाति संघ (1942) 
  • वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता: 
    • उनके विचार एवं योगदान विशेष रूप से जाति-आधारित भेदभाव के विरुद्ध लड़ाई तथा सामाजिक न्याय के लिये संघर्ष में भारत के वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में भी प्रासंगिक बने हुए हैं। 
    • एक समावेशी और समतावादी समाज का उनका दृष्टिकोण, जैसा कि भारतीय संविधान में निहित है, देश के भविष्य के विकास के लिये एक मार्गदर्शक सिद्धांत बना हुआ है। 
    • इसके अतिरिक्त सशक्तीकरण के साधन के रूप में शिक्षा पर उनका ध्यान वर्तमान समय में विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि भारत एक वैश्विक नेता के रूप में अपनी पूरी क्षमता हासिल करना चाहता है।
    • डॉ. अंबेडकर की विरासत भारत की राष्ट्रीय पहचान का एक अभिन्न अंग है और उनके विचार भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

विश्व धरोहर दिवस

प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थलों और धरोहरों के संरक्षण हेतु जागरूकता पैदा करने के लिये ‘अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल दिवस’ (International Day for Monuments and Sites) अथवा ‘विश्व धरोहर दिवस’ (World Heritage Day) का आयोजन किया जाता है।

  • वर्ष 2022 के लिये विश्व धरोहर दिवस की थीम “धरोहर और पर्यावरण” (Heritage and Climate) है। 

परिचय

  • इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स एंड साइट्स (ICOMOS) ने वर्ष 1982 में ‘विश्व धरोहर दिवस’ की स्थापना की  थी और वर्ष 1983 में इसे ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन' (UNESCO) की मंज़ूरी प्राप्त हुई थी।
  • इस दिवस का उद्देश्य विभिन्न समुदायों के बीच सांस्कृतिक-ऐतिहासिक विरासत के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल

  • विश्व धरोहर/विरासत स्थल का आशय एक ऐसे स्थान से है, जिसे यूनेस्को द्वारा उसके विशिष्ट सांस्कृतिक अथवा भौतिक महत्त्व के कारण सूचीबद्ध किया गया है।
  • विश्व धरोहर स्थलों की सूची को ‘विश्व धरोहर कार्यक्रम’ द्वारा तैयार किया जाता है, यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर समिति’ द्वारा इस कार्यक्रम को प्रशासित किया जाता है। 
  • यह सूची यूनेस्को द्वारा वर्ष 1972 में अपनाई गई ‘विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण से संबंधित कन्वेंशन’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि में सन्निहित है।

भारत में विश्व धरोहर स्थल

  • वर्तमान में भारत में कुल 38 विश्व धरोहर स्थल मौजूद हैं।
  • इनमें से 30 ’सांस्कृतिक’ श्रेणी में हैं, जैसे कि अजंता की गुफाएँ, फतेहपुर सीकरी और हम्पी स्मारक आदि, जबकि 7 ‘प्राकृतिक’ श्रेणी में हैं, जिनमें काजीरंगा, मानस और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं।
  • गुजरात के हड़प्पाकालीन शहर धोलावीरा को भारत के 40वें विश्व धरोहर स्थल का दर्ज़ा दिया गया है।
  • रामप्पा मंदिर (तेलंगाना) भारत का 39वाँ विश्व धरोहर स्थल था।
  • सिक्किम का कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान "मिश्रित विश्व विरासत स्थल" के रूप में नामित भारत का पहला और एकमात्र स्थल है।
  • वर्ष 2022 में, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने वर्ष 2022-2023 के लिये विश्व धरोहर स्थल के रूप में विचार करने हेतु होयसल मंदिरों के पवित्र समागम को नामित किया है।

वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन 2023

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) के साथ साझेदारी में संस्कृति मंत्रालय ने प्रथम वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन 2023 का आयोजन किया है, जिसका उद्देश्य अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक और राजनयिक संबंधों को बढ़ाना है। 

वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन 2023

परिचय: 

दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में विभिन्न देशों के बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया।  

  • सम्मेलन में विश्व भर के प्रतिष्ठित विद्वानों, परिसंघ के नेताओं और बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने भाग लिया।  
  • इसमें 173 अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागी शामिल हैं जिनमें 84 संघ सदस्य और 151 भारतीय प्रतिनिधि शामिल हैं इनमें 46 संघ सदस्य, 40 भिक्षुणी और दिल्ली के बाहर के 65 लोकधर्मी शामिल हैं।  

विषय: समकालीन चुनौतियों के प्रति प्रतिक्रिया: दर्शनशास्त्र से अमल तक।

  • उप विषय:
    • बुद्ध धम्म और शांति
    • बुद्ध धम्म: पर्यावरणीय संकट, स्वास्थ्य और स्थिरता
    • नालंदा बौद्ध परंपरा का संरक्षण
    • बुद्ध धम्म तीर्थयात्रा, लिविंग हेरिटेज और बुद्ध अवशेष: दक्षिणी, दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया के देशों के लिये भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंधों हेतु एक सुनम्य आधार।
  • उद्देश्य:
    • इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य प्रासंगिक वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करना और सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित बुद्ध धम्म में इसका हल तलाशना है।
    • इसका उद्देश्य बौद्ध विद्वानों और धर्म गुरुओं के लिये एक मंच प्रदान करना है।
    • धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुसार सार्वभौमिक शांति और सद्भाव की दिशा में काम करने के लिये इसका उद्देश्य बुद्ध के शांति, करुणा और सद्भाव के संदेश का विश्लेषण करना है। साथ ही वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संचालन के लिये एक उपकरण के रूप में उपयोग हेतु इसकी व्यवहार्यता की परख के लिये आने वाले समय में अकादमिक शोध हेतु एक दस्तावेज़ तैयार करना है। 
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • यह वैश्विक शिखर सम्मेलन बौद्ध धर्म के विकास और विस्तार में भारत के महत्त्व को चिह्नित करेगा क्योंकि बौद्ध धर्म का उदय भारत में हुआ था।
    • यह शिखर सम्मेलन अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक और राजनयिक संबंधों को बेहतर बनाने का एक माध्यम होगा, विशेषकर उन देशों के साथ जो बौद्ध लोकाचार को अपनाते हैं।

यूनेस्को 

  • यूनेस्को को वर्ष 1945 में स्थायी शांति के निर्माण के साधन के रूप में ‘मानव जाति में बौद्धिक और नैतिक एकजुटता’ विकसित करने हेतु स्थापित किया गया था। 
  • यह पेरिस, फ्रांँस में स्थित है।
  • यूनेस्को की प्रमुख पहलें
  • मानव व जीवमंडल कार्यक्रम
  • विश्व विरासत कार्यक्रम
  • यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क नेटवर्क
  • यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क
  • एटलस ऑफ द वर्ल्ड्स लैंग्वेजेज़ इन डेंजर

इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स एंड साइट्स (ICOMOS) 

  • यह यूनेस्को से संबद्ध एक वैश्विक गैर-सरकारी संगठन है। यह भी पेरिस, फ्रांँस में स्थित है।
  • इसका प्राथमिक मिशन स्मारकों, परिसरों और स्थलों के निर्माण, संरक्षण, उपयोग और बढ़ोतरी को प्रोत्साहन देना है।
  • यह यूनेस्को के विश्व धरोहर सम्मेलन के कार्यान्वयन हेतु विश्व धरोहर समिति के एक सलाहकार निकाय के रूप में भी कार्य करता है।
  • इस रूप में यह सांस्कृतिक विश्व विरासतों के नामांकन की समीक्षा करता है और उनकी संरक्षण स्थिति सुनिश्चित करता है।
  • वर्ष 1965 में इसकी स्थापना वास्तुकारों, इतिहासकारों और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के बीच शुरू हुई वार्ता का तार्किक परिणाम है, जो बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में शुरू हुई और वर्ष 1964 में ‘वेनिस चार्टर’ के रूप में संपन्न हुई।  

नमक का सीमित सेवन

चर्चा में क्यों? 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) वयस्कों के लिये 5 ग्राम से कम नमक के दैनिक उपभोग की सिफारिश करता है किंतु एक औसत भारतीय की सोडियम खपत इस मात्रा के दोगुनी से भी अधिक है।

  • WHO ने सदस्य राज्यों के लिये वर्ष 2025 तक जनसंख्या द्वारा सोडियम सेवन को 30% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है किंतु प्रगति धीमी रही है। भारत का 4 में से 2 का सोडियम स्कोर इस स्वास्थ्य चिंता को दूर करने के लिये अधिक कठोर प्रयासों की आवश्यकता को इंगित करता है। 
  • WHO ने हाल ही में 'सोडियम उपभोग कटौती पर वैश्विक रिपोर्ट' (Global Report on Sodium Intake Reduction) प्रकाशित की, जिसमें वर्ष 2025 तक जनसंख्या द्वारा सोडियम उपभोग को 30% कम करने की दिशा में अपने 194 सदस्य राज्यों की प्रगति पर प्रकाश डाला गया है।

नमक का सीमित सेवन करने की आवश्यकता

  • अत्यधिक नमक के सेवन के उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसे खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।
  • सोडियम का सेवन कम करना आवश्यक है क्योंकि यह निम्न रक्तचाप के साथ दृढ़ता से सहसंबद्ध है, जिससे हृदय रोगों में कमी आ सकती है।
  • हृदय रोग विश्व भर में मृत्यु दर का प्रमुख कारण है तथा भारत जैसे निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (LMIC) पर महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव के लिये ज़िम्मेदार है।
  • भारत में कई कारकों के कारण हृदय रोग और उच्च रक्तचाप की गंभीर चुनौती है, जिनमें बढ़ती मृत्यु दर सहित पुरुषों में उच्च प्रबलता, विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों में पूर्व-उच्च रक्तचाप वाली एक बड़ी आबादी शामिल है। 
  • मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज़ ऑफ डेथ (MCCD) 2020 रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में सभी प्रलेखित मौतों में से 32.1% के लिये संचारी रोग ज़िम्मेदार हैं, जिसमें उच्च रक्तचाप एक प्रमुख जोखिम कारक है। 
  • विश्व आर्थिक मंच का अनुमान है कि हृदय रोग के कारण वर्ष 2012 से 2030 के बीच अकेले भारतीय अर्थव्यवस्था को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक की क्षति होगी। 

संबंधित पहलें

  • ईट राइट इंडिया अभियान: 
    • इसे भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) द्वारा लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य भारतीय खाद्य प्रणाली में बदलाव लाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि सभी के पास सुरक्षित, पौष्टिक एवं संपोषणीय भोजन उपलब्ध हो। 
  • ‘आज से थोड़ा कम’ अभियान: 
    • FSSAI ने 'आज से थोड़ा कम' सोशल मीडिया अभियान शुरू किया है। इन प्रयासों के बावजूद भारतीयों की औसत सोडियम खपत अत्यधिक स्तर पर बनी हुई है। अध्ययनों में पाया गया है कि भारत में सोडियम की सामान्य दैनिक खपत लगभग 11 ग्राम है, जो प्रतिदिन 5 ग्राम की अनुशंसित मात्रा से बहुत अधिक है।
  • चुनौतियों का समाधान: 
    • नमक की खपत को कम करने के लिये भारत को उपभोक्ताओं, उद्योग और सरकार को शामिल करने वाले बहु-आयामी दृष्टिकोण के साथ एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति का निर्माण करने की आवश्यकता है। सोडियम के अत्यधिक सेवन के कारण होने वाले उच्च रक्तचाप की समस्या से निपटने के लिये राज्य और केंद्र सरकारों के बीच सहयोग आवश्यक है।
    • विश्व भर में गैर-संचारी रोगों (NCD) के कारण होने वाली अधिकांश मौतों की संख्या को सीमित करने और इस रोग की रोकथाम के लिये सोडियम की खपत को कम करना एक लागत प्रभावी रणनीति है।
    • एक रिपोर्ट के अनुसार, सोडियम की खपत को कम करने के लिये नीतियों को लागू करने से वर्ष 2030 तक विश्व स्तर पर अनुमानित सात मिलियन लोगों की जान बचाई जा सकती है।
    • NCD से होने वाली मौतों को कम करना सतत् विकास लक्ष्यों में से एक है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सोडियम की खपत में कटौती संबंधी नीति काफी महत्त्वपूर्ण है।

वैकोम सत्याग्रह

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2024 में वैकोम सत्याग्रह के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में केरल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने संयुक्त रूप से इसके शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। 

वैकोम सत्याग्रह

  • पृष्ठभूमि: 
    • त्रावणकोर में कुछ सबसे कठोर, परिष्कृत और निर्दयी सामाजिक मानक एवं रीति-रिवाज़ थे जो एक सामंती, सैन्यवादी और क्रूर सरकार की रियासत थी।
    • एझावा और पुलाय जैसी निचली जातियों को अपवित्र माना जाता था तथा उन्हें उच्च जातियों से दूर रखने के लिये विभिन्न नियम बनाए गए थे।
    • इनमें केवल मंदिर में प्रवेश पर ही नहीं बल्कि मंदिरों के आसपास की सड़कों पर चलने पर भी प्रतिबंध था।
  • नेतागणों का योगदान: 
    • वर्ष 1923 में माधवन ने अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस समिति की काकीनाडा बैठक में इस मुद्दे को एक प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत किया। इसके बाद जनवरी 1924 में केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस समिति द्वारा गठित कॉन्ग्रेस अस्पृश्यता समिति ने इसे आगे बढ़ाया।
    • माधवन, के.पी. केशव मेनन जो केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस समिति के तत्कालीन सचिव थे और कॉन्ग्रेस नेता एवं शिक्षाविद के. केलप्पन (जिन्हें केरल के गांधी के नाम से भी जाना जाता है) को वैकोम सत्याग्रह आंदोलन का अग्रदूत माना जाता है।
  • सत्याग्रह के अग्रणी कारक:
    • ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा समर्थित ईसाई मिशनरियों ने अपनी पहुँच का विस्तार किया था और एक दमनकारी व्यवस्था के चंगुल से बचने के लिये कई निम्न जातियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था।
    • महाराजा अयिल्यम थिरुनाल ने कई प्रगतिशील सुधार किये।
    • इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण सभी के लिये मुफ्त प्राथमिक शिक्षा के साथ एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली की शुरुआत थी, यहाँ तक कि यह शिक्षा निम्न जातियों के लिये भी उपलब्ध थी। 
  • सत्याग्रह की शुरुआत:
    • 30 मार्च, 1924 को सत्याग्रहियों ने वर्जित सार्वजनिक सड़कों पर जुलूस निकाला। जुलूस को उस जगह से 50 गज की दूरी पर रोक दिया गया था जहाँ सड़कों पर (वैकोम महादेव मंदिर के आसपास) चलने के खिलाफ उत्पीड़ित समुदायों को चेतावनी देने वाला बोर्ड लगाया गया था।
    • गोविंद पणिक्कर (नायर)बाहुलेयान (एझवा) और कुंजप्पु (पुलैया) ने खादी वस्त्र एवं खादी की टोपी पहनकर निषेधात्मक आदेशों का उल्लंघन किया।   
    • पुलिस के रोकने पर तीनों लोग विरोध में सड़क पर बैठ गए जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। 
    • इसके बाद प्रतिदिन तीन अलग-अलग समुदायों के तीन स्वयंसेवकों को निषिद्ध सड़कों पर चलने के लिये भेजा गया। 
    • इस प्रकार एक सप्ताह के भीतर आंदोलन के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • महिलाओं की भूमिका:
    • पेरियार की पत्नी नागम्मई और बहन कन्नमल ने लड़ाई में अभूतपूर्व भूमिका निभाई।  
  • गांधीजी का आगमन:
    • गांधीजी ने मार्च 1925 में वैकोम जाकर विभिन्न जाति समूहों के नेताओं के साथ कई चर्चाएँ कीं तथा महारानी रीजेंट से उसके वर्कला शिविर में मुलाकात की। 
    • गांधीजी और डब्ल्यू.एच. पिट (त्रावणकोर के पुलिस आयुक्त) के बीच परामर्श के बाद 30 नवंबर, 1925 को वैकोम सत्याग्रह को आधिकारिक तौर पर वापस ले लिया गया। 
    • सभी कैदियों की रिहाई तथा सड़कों तक पहुँच प्रदान करने के लिये एक समझौता हुआ।
  • मंदिर प्रवेश उद्घोषणा:
    • वर्ष 1936 में त्रावणकोर के महाराजा द्वारा ऐतिहासिक मंदिर प्रवेश उद्घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए, जिसने मंदिरों में प्रवेश पर सदियों पुराने प्रतिबंध को हटा दिया।
  • महत्त्व: 
    • देश भर में बढ़ती राष्ट्रवादी भावनाओं और आंदोलनों के बीच इसने सामाजिक सुधार के कार्यों को आगे बढ़ाया।
    • यह त्रावणकोर में गांधीवादी अहिंसक विरोध का तरीका अपनाने वाला पहला आंदोलन था।
    • सामाजिक दबाव, पुलिस कार्रवाई और यहाँ तक कि वर्ष 1924 में प्राकृतिक आपदा के दौरान भी 600 से अधिक दिनों तक बिना रुके यह आंदोलन जारी रहा।
    • वैकोम सत्याग्रह के दौरान जातिगत बंधन टूट गए, जो अभूतपूर्व कार्य था।
  • निष्कर्ष: 
    • वर्ष 1917 तक भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने सामाजिक सुधार करने से इनकार कर दिया लेकिन गांधी के उदय और निम्न जाति समुदायों एवं अछूतों की बढ़ती सक्रियता के चलते सामाजिक सुधार जल्द ही कॉन्ग्रेस और गांधी की राजनीति का केंद्रबिंदु बन गया।
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