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International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): April 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

कोरियाई युद्ध में भारत की भूमिका

चर्चा में क्यों? 

भारत ने वर्ष 2023 की G20 अध्यक्षता के दौरान सात दशक पूर्व हुए कोरियाई युद्ध में अपनी राजनयिक भूमिका के योगदान को पुनः स्मरण किया।

  • कोरियाई युद्ध में भारत की भूमिका आंशिक रूप से सफल रही, फिर भी भारत की गणना उन देशों में की जाती है, जिन्होंने युद्ध को समाप्त करने में योगदान दिया।

कोरियाई युद्ध का घटनाक्रम

पृष्ठभूमि 

  • संघर्ष की जड़ वर्ष 1910-1945 के मध्य कोरिया पर जापानी नियंत्रण में निहित है। 
  • जब द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय हुई, तो मित्र देशों की सेना याल्टा सम्मेलन (1945) में "कोरिया पर फोर पॉवर ट्रस्टीशिप" स्थापित करने के लिये सहमत हुए।
  • हालाँकि यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (USSR) ने कोरिया पर आक्रमण किया और उत्तरी क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया, जबकि दक्षिण, बाकी सहयोगियों मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के अधीन रहा।
  • 38वीं समानांतर उत्तर के साथ दोनों क्षेत्रों का विभाजन कर दिया गया था, जो अभी भी कोरिया को दो भागों में विभाजित करने वाली आधिकारिक सीमा बनी हुई है।
  • वर्ष 1948 में कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) एवं डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (उत्तर कोरिया) की स्थापना की गई थी। 
  • दोनों देशों ने क्षेत्रीय एवं वैचारिक रूप से अपनी पहुँच बढ़ाने की कोशिश की जिससे दोनों देशों के मध्य कोरियाई संघर्ष उभर कर सामने आया।

संघर्ष का समय

  • वर्ष 1950 में USSR द्वारा समर्थित उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर हमला कर देश के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया।
  • बदले में अमेरिका के नेतृत्त्व में संयुक्त राष्ट्र बल ने जवाबी कार्रवाई की। 
  • वर्ष 1951 में डगलस मैकआर्थर के नेतृत्व में अमेरिकी सेना ने 38वीं समानांतर रेखा को पार किया और उत्तर कोरिया के समर्थन से चीन में प्रवेश करने के अपने प्रयासों को गति दी।
  • अमेरिका को आगे बढ़ने से रोकने के लिये वर्ष 1951 के अंत में शांति वार्ता शुरू हुई।
  • भारत सभी प्रमुख हितधारकों- अमेरिका, USSR और चीन सहित कोरियाई प्रायद्वीप में शांति वार्ता में सक्रिय रूप से शामिल रहा। 
  • वर्ष 1952 में कोरिया पर भारतीय संकल्प को संयुक्त राष्ट्र (UN) में अपनाया गया था।
  • वर्ष 1953 में संयुक्त राष्ट्र कमान, कोरियाई पीपुल्स आर्मी और चीनी पीपुल्स वॉलंटियर आर्मी के बीच कोरियाई संघर्ष-विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। 
  • इसने शांति संधि के बिना एक आधिकारिक संघर्ष-विराम का नेतृत्त्व किया। इस प्रकार संघर्ष आधिकारिक तौर पर कभी समाप्त नहीं हुआ।
  • इसने ‘कोरियाई असैन्यीकृत ज़ोन’ (DMZ) की स्थापना का भी नेतृत्व किया जो कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच बफर ज़ोन के रूप में कोरियाई प्रायद्वीप में भूमि की एक पट्टी है।
  • दिसंबर 1991 में उत्तर और दक्षिण कोरिया ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें आक्रामकता से बचने के लिये सहमति व्यक्त की गई थी।

कोरियाई संघर्ष में भारत की भूमिका

  • वर्ष 1950 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक और विश्व युद्ध होने से रोकने तथा इन देशों के त्वरित युद्ध-विराम पर पहुँचने हेतु एक बड़ा कूटनीतिक प्रयास किया।
  • भारत द्वारा युद्धविराम करने के कुछ प्रयास विफल रहे। हालाँकि जुलाई 1953 का युद्धविराम समझौता, जिसकी अभी 70वीं वर्षगाँठ है, वर्ष 1952 में कैदियों की अदला-बदली के प्रस्तावों से संभव हुआ है।
  • भारत ने वर्ष 1952 में संयुक्त राष्ट्र और साम्यवादी पक्षों के बीच बातचीत के दौरान युद्धबंदियों (Prisoners of War- PoWs) के मुद्दे को हल करने हेतु एक आयोग का प्रस्ताव रखा था, लेकिन शुरुआत में प्रस्ताव पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। हालाँकि जब वर्ष 1953 में वार्ता फिर से शुरू हुई तो भारत को तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन समिति की अध्यक्षता के लिये चुना गया, जिसने 90 दिनों तक PoW को सफलतापूर्वक आयोजित किया एवं अंततः 27 जुलाई, 1953 को युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  • भारत लगातार उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल परीक्षणों का विरोध करता रहा है। हालाँकि इसने प्रतिबंधों को लेकर तटस्थ रुख बनाए रखा है।
  • भारत ने 60वीं पैराशूट फील्ड एम्बुलेंस भी भेजी, जिसने वर्ष 1950 और 1954 के बीच 200,000 से अधिक लोगों का इलाज करने का उत्कृष्ट कार्य किया।

उत्तर और दक्षिण कोरिया के साथ भारत के संबंध

  • मई 2015 में दक्षिण कोरिया के साथ द्विपक्षीय संबंधों को 'विशेष रणनीतिक साझेदारी' में अद्यतन किया गया। 
  • भारत को दक्षिण कोरिया की दक्षिणी नीति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है, यह नीति देश के निकट क्षेत्र से परे द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करना चाहती है।
  • इसी तरह दक्षिण कोरिया भारत की एक्ट ईस्ट नीति में एक प्रमुख अभिकर्त्ता है जिसके तहत भारत का उद्देश्य आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना और एशिया-प्रशांत के देशों के साथ रणनीतिक संबंधों को विकसित करना है।
  • भारत और उत्तर कोरिया के बीच 47 वर्षों से अधिक समय से राजनयिक संबंध हैं, जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की विरासत का प्रतीक है।

आगे की राह

  • कोविड के बाद की भू-राजनीतिक व्यवस्था में बड़े बदलाव और वैश्विक आर्थिक स्थिति बिगड़ने के साथ उत्तर कोरिया अपनी पहले से ही कमज़ोर अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहेगा, खासकर जब इस देश पर महामारी का काफी बुरा प्रभाव पड़ा था।
  • इसके अतिरिक्त उत्तर कोरिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान और कोरियाई प्रायद्वीप पर अन्य हितधारकों के बीच बातचीत फिर से शुरुआत की जा सकेगी।
  • ऐसे में कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और सुरक्षा को प्रोत्साहित करने की दिशा में भारत की भूमिका रचनात्मक हो सकती है।
  • उत्तर कोरिया के नेतृत्त्व के साथ भारत के जुड़ाव को जारी रखना इन निकटस्थ स्थितियों में लाभकारी हो सकता है।
  • रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के वर्तमान परिदृश्य में भारतीय प्रधानमंत्री का संदेश "यह युद्ध का युग नहीं है" ने नई उम्मीद को जन्म दिया है कि भारत, जिसकी प्रस्तावित भूमिका "विश्वगुरु" की रहती है, युद्ध को समाप्त करने के लिये रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता कर सकता है।

भारत-रोमानिया रक्षा समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और रोमानिया ने रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग की स्थापना और उसका विस्तार करना है।

  • समझौते के बारे में
  • यह समझौता सैन्य उपकरणों के सह-विकास और सह-उत्पादन सहित पारस्परिक हित के विषयों पर विशेषज्ञता एवं ज्ञान के आदान-प्रदान के माध्यम से रक्षा क्षेत्र में भविष्य के सहयोग हेतु कानूनी ढाँचा प्रदान करेगा।
  • यह समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देगा तथा रक्षा चिकित्सा, वैज्ञानिक अनुसंधान, साइबर सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान एवं विकास जैसे क्षेत्रों में भारी अवसर प्रदान करेगा।

समझौते का महत्त्व

  • हिंद-प्रशांत में सहयोग हेतु यूरोपीय संघ (EU) की रणनीति इस क्षेत्र में यूरोपीय संघ-भारत के बीच  सहयोग को मज़बूत करने का एक अवसर है। रोमानिया इस रणनीतिक ढाँचे के भीतर हिंद-प्रशांत में सक्रिय भागीदारी के लिये प्रतिबद्ध है।  
  • मई 2021 में यूरोपीय संघ-भारत रणनीतिक साझेदारी रोडमैप और यूरोपीय संघ-भारत के नेताओं की बैठक की प्रतिबद्धताएँ भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने तथा क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक अच्छा आधार प्रदान करती हैं।
  • द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों स्तरों पर वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने एवं नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने हेतु हिंद-प्रशांत भागीदारों के साथ संबंधों को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।

भारत-रोमानिया संबंध

  • राजनयिक संबंध: 
    • औपचारिक रूप से वर्ष 1948 में स्थापित भारत-रोमानिया द्विपक्षीय संबंधों में लगातार वृद्धि देखी गई है।
    • दोनों देशों ने मैत्रीपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे, जिसकी परिणति वर्ष 2018 में राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगाँठ के रूप में हुई।
    • रोमानिया में वर्ष 1989 की क्रांति के बाद से साम्यवादी सरकार को समाप्त कर दिया गया, तब से दोनों देशों ने व्यापार और निवेश में लगातार वृद्धि की है।
    • भारत और रोमानिया ने संयुक्त राष्ट्र में बहुपक्षीय स्तर पर एक-दूसरे को समर्थन दिया है।
  • व्यापार और निवेश: 
    • रोमानिया ने अतीत में भारत में पेट्रोलियम, पेट्रोकेमिकल्स, विद्युत और धातुकर्म उद्योग संबंधी परियोजनाओं में सहयोग किया है। रोमानिया असम और बिहार में तेल रिफाइनरी परियोजनाओं में सहभागी रहा। 
    • रोमानिया ने सिंगरेनी में ताप विद्युत संयंत्र, मैंगलोर पेलेट प्लांट, दुर्गापुर स्टील प्लांट और हैदराबाद ट्रैक्टर प्लांट हेतु अपनी तकनीकी जानकारी भी साझा की।
    • व्यापार और आर्थिक सहयोग समझौते पर वर्ष 1993 में एक-दूसरे को पारस्परिक रूप से सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र (Most Favored Nation- MFN) का दर्जा देने पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • वर्ष 2013 से दोनों देशों के बीच लगभग 600-800 मिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ है, संभावना है कि यह आँकड़ा जल्द ही एक अरब हो जाएगा। 
  • हरित ऊर्जा: 
    • रोमानिया अपने कार्बन ब्लूप्रिंट को कम करने की दिशा में प्रयासरत है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये यूरोपीय संघ के महत्त्वाकांक्षी नए लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्ध है।
    • रोमानिया, भारत के साथ मिलकर निश्चित रूप से इस प्रमुख क्षेत्र में सहयोग कर सकता है।
    • दोनों देश कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये एक साथ काम कर सकते हैं और सौर ऊर्जा जैसे ऊर्जा के स्थायी स्रोतों के दोहन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
    • रोमानिया शीघ्र ही अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का सदस्य बनने की योजना बना रहा है, इस दिशा में सकारात्मक कदम पहले ही उठाए जा चुके हैं।
  • कनेक्टिविटी: 
    • रोमानियाई इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियाँ पूरे यूरोप और भारत में कनेक्टिविटी का विस्तार करने के लिये भारतीय भागीदारों के साथ काम कर सकती हैं।
    • इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के माध्यम से भारत एक मल्टीमोड नेटवर्क बनाने के लिये प्रतिबद्ध है जो भारत को ईरान, अज़रबैजान, अफगानिस्तान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ता है।
    • इससे उत्तर-दक्षिण में माल ढुलाई में सुधार होगा।
    • रोमानियाई सरकार ने ट्रांस-यूरोपीय परिवहन नेटवर्क का विस्तार भी किया है।
    • इन बड़े पैमाने की कनेक्टिविटी पहलों में बैठकों और सहयोग के कई अवसर प्राप्त होंगे।

आगे की राह

  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई चुनौतियाँ हैं जैसे- आपूर्ति शृंखला व्यवधान, युद्ध एवं संघर्ष तथा जलवायु परिवर्तन आदि। 
  • रोमानिया, नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) एवं यूरोपीय संघ के सदस्य तथा भारत, विश्व की पाँचवी अर्थव्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में सबसे बड़े सैनिक योगदानकर्त्ता,, इन चुनौतियों पर काबू पाने में रचनात्मक भूमिका निभा सकते हैं

यूनाइटेड किंगडम ने CPTPP पर किये हस्ताक्षर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (UK) ने व्यापक एवं प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी समझौते (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership- CPTPP) पर हस्ताक्षर किये। UK के प्रधानमंत्री ने समझौते की सफलता को "पोस्ट-ब्रेक्ज़िट फ्रीडम" के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया। इस समझौते को अब वेस्टमिंस्टर और प्रत्येक CPTPP देश द्वारा अनुसमर्थन प्रदान करने की आवश्यकता होगी।

CPTPP

  • परिचय: 
    • CPTPP ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कनाडा, चिली, जापान, मलेशिया, मैक्सिको, पेरू, न्यूज़ीलैंड, सिंगापुर और वियतनाम के बीच मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement- FTA) है।
    • CPTPP पर 11 देशों ने 8 मार्च, 2018 को सैंटियागो, चिली में हस्ताक्षर किये थे।
  • पृष्ठभूमि: 
    • ब्रुनेई, चिली, न्यूज़ीलैंड और सिंगापुर सहित पैसिफिक रिम देशों के एक छोटे समूह द्वारा वर्ष 2005 में हस्ताक्षरित व्यापार समझौते के परिणामस्वरूप ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी (Trans Pacific Partnership- TPP) का निर्माण हुआ, जिसमें अब 12 राष्ट्र-राज्य शामिल हैं।  
    • संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर निकलने के बाद, शेष ग्यारह हस्ताक्षरकर्त्ता देश जिन्हें TPP-11 के रूप में जाना जाता है, ने वार्ता जारी रखी और परिणामस्वरूप CPTPP का निर्माण हुआ।
  • महत्त्व: 
    • CPTPP मूल TPP की तरह ही वस्तुओं और सेवाओं से 99% टैरिफ हटाता है, सभी सदस्य देशों ने वन्यजीवों की तस्करी में कमी लाने पर सहमति व्यक्त की है। इससे हाथी, गैंडे और समुद्री प्रजातियाँ लाभान्वित होती हैं।
    • यह पर्यावरण के दुरुपयोग को रोकता है, जैसे कि अस्थिर लॉगिंग और मत्स्यपालन आदि। इसका अनुपालन न करने वाले देशों को व्यापार शुल्क का सामना करना पड़ेगा।

ब्रेक्ज़िट

  • परिचय: 
    • ब्रेक्ज़िट से तात्पर्य ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (EU) को छोड़ने के फैसले से है। वर्ष 2016 में एक जनमत संग्रह के बाद इस देश ने औपचारिक रूप से जनवरी 2020 में यूरोपीय संघ छोड़ दिया।
  • ब्रेक्ज़िट का ब्रिटेन पर प्रभाव: 
    • ब्रेक्ज़िट का ब्रिटेन पर काफी प्रभाव पड़ा, इनमें से कुछ इस प्रकार हैं: 
    • यूरोपीय संघ और अन्य देशों के साथ व्यापार नीतियों एवं शुल्कों में परिवर्तन।
    • ब्रिटेन के व्यवसायों की यूरोपीय संघ के बाज़ार में कम पहुँच।
    • यूरोपीय संघ के साथ व्यापार करने वाले यूनाइटेड किंगडम के व्यवसायों पर विनियामक बोझ बढ़ा।
  • यूनाइटेड किंगडम के लिये CPTPP के लाभ:
    • पनीर, कार, चॉकलेट, मशीनरी, जिन और व्हिस्की जैसे प्रमुख बाज़ारों सहित 99% से अधिक ब्रिटिश निर्यात पर शून्य टैरिफ होगा। 
    • इस सौदे से लंबे समय में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में सालाना 1.8 अरब पाउंड (2.2 अरब डॉलर) की वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे GDP में 0.08% की मामूली वृद्धि होगी। 
    • CPTPP हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये एक "प्रवेश द्वार" है, जो भविष्य में वैश्विक आर्थिक विकास के बहुमत (54%) के लिये ज़िम्मेदार कारक की भूमिका निभाएगा। 
    • CPTPP के सदस्य के रूप में यूनाइटेड किंगडम के पास समझौते में चीन के प्रवेश पर वीटो होगा। यूनाइटेड किंगडम की फर्मों को सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक स्थानीय कार्यालय बनाने या निवासी होने की आवश्यकता नहीं होगी और वे मेज़बान देशों की फर्मों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम होंगी।
  • CPTPP पर भारत का रुख:
    • भारत CPTPP में शामिल नहीं हुआ क्योंकि वह अपने अन्य भागीदारों की अपेक्षा अधिक श्रम और पर्यावरणीय मानकों को स्थान देना चाहता है। CPTPP के मसौदे में निवेश संरक्षण के लिये मानकों पर आधारित इसकी विस्तृत योग्यताएँ मेज़बान देश के विनियमन के अधिकार की रक्षा करने के प्रावधान और पारदर्शिता आवश्यकताओं को लागू करना शामिल है।

विदेशी छात्रों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को बढ़ावा

चर्चा में क्यों?  

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations- ICCR) भारत में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों के अनुभवों का उपयोग करके वैश्विक स्तर पर भारत के सांस्कृतिक पदचिह्न का विस्तार करने की योजना बना रही है।

  • इस "सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसीका उद्देश्य विदेशी छात्रों के अपने देश लौटने पर वहाँ भारत की संस्कृति के बारे में बताना है।

भारतीय सांस्कृतिक पदचिह्न के विस्तार हेतु ICCR की पहल

  • ICCR देश के विभिन्न केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों, संस्थानों एवं कृषि महाविद्यालयों में अपना पाठ्यक्रम पूरा करने से 3 से 4 महीने पहले विदेशी छात्रों के साथ E-3 या एग्जिट एंगेजमेंट इवनिंग शुरू करेगा।  
  • एंगेजमेंट इवनिंग कार्यक्रम के पश्चात् छात्रों को निश्चित रूप से वापस जाना होगा और भारतीय विरासत तथा  इसकी अनूठी संस्कृति के पहलुओं को बढ़ावा देना होगा।
  • इन कार्यक्रमों में राष्ट्रीय महत्त्व के स्थलों का दौरा भी शामिल होगा। छात्रों के साथ इन कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिये ICCR ने खादी आयोगभारतीय पर्यटन विकास निगम और आयुष विभाग को चुना है।
  • ICCR ने भारत में अध्ययन करने वाले विश्व भर के विदेशी छात्रों से जुड़ने के लिये एक मंच के रूप में अप्रैल 2022 में इंडिया एलुमनी पोर्टल नामक एक वेबसाइट भी लॉन्च की है।

भारत में नामांकित विदेशी छात्रों की वर्तमान स्थिति

  • शिक्षा मंत्रालय द्वारा किये गए उच्च शिक्षा पर नवीनतम अखिल भारतीय सर्वेक्षण (All India Survey on Higher Education-AISHE) के अनुसार, वर्ष 2020-21 में भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में नामांकित विदेशी छात्रों की संख्या 48,035 थी, जो वर्ष 2019-20 के 49,348 से मामूली अंतराल के साथ कम थी।
  • 160 से भी अधिक देशों के छात्र अध्ययन के लिये भारत आते हैं, नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, भूटान, सूडान, नाइजीरिया, तंजानिया और यमन उनमें प्रमुख हैं।

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के कार्य

  • परिचय:  
    • ICCR विदेश मंत्रालय के तहत भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1950 में विदेशों में भारतीय संस्कृति और इसके मूल्यों को बढ़ावा देने तथा भारत एवं अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
  • कार्य: 
    • भारत और विदेशों में सांस्कृतिक उत्सवों, प्रदर्शनों, प्रदर्शनियों और व्याख्यानों का आयोजन करना।
    • भारत में अध्ययन करने के लिये विदेशी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करना।
    • भारतीय संगीत, नृत्य, योग और विभिन्न भाषाओं में पाठ्यक्रम की सुविधा प्रदान करना।
    • ICCR को वर्ष 2015 से विदेशों में स्थित भारतीय मिशनों/केंद्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उत्सव को सुविधाजनक बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, सांस्कृतिक संस्थानों तथा विदेशी सरकारों के साथ सहयोग करना।
  • पुरस्कार:
    • प्रतिष्ठित भारतविद् पुरस्कार, विश्व संस्कृत पुरस्कार, विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार - प्रशस्ति पत्र और पट्टिका एवं गिसेला बॉन पुरस्कार।  

म्याँमार के वर्तमान मुद्दे

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ) ने हाल ही में म्याँमार के जुंटा की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें म्याँमार पर इंटरनेशनल जेनोसाइड कन्वेंशन (International Genocide Convention) का उल्लंघन करने के आरोप के मामले में प्रतिवाद दायर करने हेतु 10 महीने की मोहलत की मांग की गई थी।

  • यह मामला रखाइन राज्य में वर्ष 2017 में ‘क्लीयरिंग’ अभियान के दौरान म्याँमार सेना द्वारा किये गए अत्याचारों से संबंधित है, जिसके परिणामस्वरूप रोहिंग्या लोगों का विस्थापन हुआ।

म्याँमार में अस्थिरता का कारण

  • पृष्ठभूमि: म्याँमार को वर्ष 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यह वर्ष 1962 से 2011 तक सशस्त्र बलों द्वारा शासित रहा, इसके बाद यहाँ एक नई सरकार ने नागरिक शासन की शुरुआत की।
  • 2010 के दशक में सैन्य शासन ने देश में लोकतंत्र की स्थापना का फैसला किया। हालाँकि सशस्त्र बल शक्तिशाली बने रहे एवं राजनीतिक विरोधियों को मुक्त कर दिया गया, साथ ही चुनाव कराने की अनुमति दी गई।
  • देश का पहला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव वर्ष 2015 में हुआ जिसमें कई दलों ने भाग लिया, इस चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने जीत हासिल की और सरकार बनाई, साथ ही यह सुनिश्चित किया कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था सुनिश्चित हो।

सैन्य तख्तापलट: 

  • नवंबर 2020 में हुए संसदीय चुनाव में NLD ने अधिकांश सीटें हासिल कीं।
  • वर्ष 2008 के सैन्य-मसौदा संविधान के अनुसार म्याँमार की संसद में सेना के पास कुल सीटों का हिस्सा 25% है और कई प्रमुख मंत्री पद भी सैन्य नियुक्तियों के लिये आरक्षित हैं।
  • जब नव निर्वाचित म्याँमार के सांसदों द्वारा वर्ष 2021 में संसद का पहला सत्र आयोजित किया जाना था, तब सेना ने संसदीय चुनावों में भारी मतदान धोखाधड़ी का हवाला देते हुए एक वर्ष के लिये आपातकाल लागू कर दिया था।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा चिह्नित मुद्दे:  

  • यद्यपि किसी भी प्रकार के संघर्ष के दौरान नागरिकों की सुरक्षा करना सेना के लिये कानूनी रूप से आवश्यक है, फिर भी अंतर्राष्ट्रीय कानून से संबंधित सिद्धांतों का लगातार उल्लंघन किया गया।
  • म्याँमार की अर्थव्यवस्था काफी बुरी स्थिति में है जिस कारण लगभग आधी आबादी अब गरीबी रेखा के नीचे रह रही है।
  • तख्तापलट की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से सेना ने देश के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रतिनिधियों और 16,000 से अधिक अन्य लोगों को हिरासत में लिया है।

रोहिंग्या मुद्दा:  

  • 25 अगस्त, 2017 को म्याँमार के रखाइन राज्य में हुई हिंसा ने लाखों रोहिंग्या लोगों को अपने घरों से भागने पर मजबूर कर दिया।
  • म्याँमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन से रोहिंग्या समुदाय में अब कोई संबंध नहीं रह गया है।
  • वर्षों से म्याँमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जिसमें भाषण और सभा की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, मनमाने ढंग से गिरफ्तारियाँ और निरोध, सेंसरशिप और हिंसा शामिल हैं।
  • जनवरी 2020 में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत (ICJ) ने म्याँमार को अपने रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों को नरसंहार से बचाने के लिये उपाय करने का आदेश दिया।

म्याँमार मुद्दे पर भारत का रुख:

  • हाल के वर्षों में भारत ने म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है, विशेष रूप से रोहिंग्या संकट के संबंध में।
  • भारत ने इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान, मानवाधिकारों के प्रति सम्मान और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिये ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही का आह्वान किया है।
  • यद्यपि भारत ने म्याँमार में हाल के घटनाक्रमों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, लेकिन म्याँमार की सेना से दूरी बनाना एक व्यवहार्य विकल्प नहीं है क्योंकि म्याँमार और उसके पड़ोसियों से भारत के महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं रणनीतिक हित जुड़े हैं।
  • म्याँमार के मुद्दे पर भारत का रुख उसकी उभरती स्थिति और क्षेत्र में भू-राजनीतिक गतिशीलता के आधार पर विकसित हो सकता है।

रूस-भारत द्विपक्षीय व्यापार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस के उप प्रधानमंत्री ने भारत में 24वें रूस-भारत अंतर-सरकारी आयोग (IGC) की बैठक में भाग लिया

रूस ने पश्चिमी निर्मित विनिर्माण उपकरणों को बदलने के लिये भारत से मशीनरी खरीदने में रुचि दिखाई है।

प्रमुख बिंदु

  • यूक्रेन में चल रहे युद्ध के कारण डिलीवरी और भुगतान से संबंधित चुनौतियों का सामना करने हेतु दोनों देशों ने भारत-रूस के बीच रक्षा सहयोग की समीक्षा की है
  • दोनों देशों ने रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र के लिये भारत की योजनाओं पर चर्चा की जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रूस की रणनीति का एक अनिवार्य अंग है।
  • उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार को और गति प्रदान करने हेतु द्विपक्षीय व्यापार प्रयासों एवं नए औद्योगिक बिंदुओं की पहचान करने के संबंध में चर्चा की।
  • वर्तमान में व्यापार संतुलन रूस के पक्ष में है, इसलिये दोनों पक्षों ने व्यापार संबंधों में अधिक संतुलन बनाने के तरीकों पर चर्चा की है।
  • दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय व्यापार, आर्थिक और मानवीय सहयोग से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर भी चर्चा की।
  • इन चर्चाओं में प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा से संबंधित पारस्परिक हित के कई क्षेत्रों को शामिल किया गया।

भारत-रूस व्यापार संबंधों की स्थिति

  • रूस के साथ भारत का कुल द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021-22 में 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष  2020-21 में 8.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • रूस पिछले वर्ष अपने 25वें स्थान से बढ़कर अब भारत का सातवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।
  • अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इराक और इंडोनेशिया ऐसे छह देश थे जिन्होंने वर्ष 2022-23 के पहले पाँच महीनों के दौरान भारत के साथ व्यापार की उच्च मात्रा दर्ज की।

द्विपक्षीय व्यापार से संबंधित चिंताएँ

  • व्यापार असंतुलन: 
    • रूस से भारत का आयात 17.23 बिलियन अमेरिका डॉलर था, जबकि मास्को को भारत का निर्यात केवल 992.73 मिलियन अमेरिका डॉलर का था, जिसके परिणामस्वरूप 2020-21 में 16,24 बिलियन अमेरिका डॉलर का नकारात्मक व्यापार संतुलन बना रहा। 
    • भारत के कुल व्यापार में रूस की हिस्सेदारी 2021-22 के 1.27% से बढ़कर 3.54% हो गई है।
    • जबकि वर्ष 1997-98 में भारत के कुल व्यापार में रूस का हिस्सा 2.1% था, यह पिछले 25 वर्षों से 2% से नीचे रहा।
  • व्यापार असंतुलन की स्थिति पैदा करने वाले कारक:
    • वर्ष 2022 में पहले से ही रूस से मुख्य रूप से तेल और उर्वरक आयात में अचानक वृद्धि द्विपक्षीय व्यापार में इस वृद्धि के पीछे मुख्य चालक है।
    • पेट्रोलियम तेल और अन्य ईंधन वस्तुओं का रूस से भारत के कुल आयात में 84% हिस्सेदारी है, जबकि उर्वरक दूसरे स्थान पर है।
    • इस वर्ष रूस से कुल आयात में उर्वरक और ईंधन की हिस्सेदारी 91% से अधिक रही।

भारत-रूस के बीच व्यापार असंतुलन को दूर करने के उपाय

  • रूस को भारतीय निर्यात: 
    • दोनों देश भारतीय आयात में वृद्धि करना चाहते हैं, विशेष रूप से मशीनरी क्षेत्र में, जहाँ भारत के पास उन्नत उत्पादन क्षमता है। 
  • रुपया-रूबल तंत्र: 
    • व्यापार संबंधों में आने वाली चुनौतियों में से एक भुगतान, रसद और प्रमाणन है। पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव से द्विपक्षीय व्यापार को सुरक्षित रखने के लिये दोनों पक्ष रुपया-रूबल तंत्र का सहारा लेने के लिये बातचीत कर रहे हैं।
  • नए औद्योगिक बिंदु: 
    • दोनों नए औद्योगिक बिंदुओं की पहचान करना चाहते हैं जो व्यापार को अतिरिक्त प्रोत्साहन दे सकते हैं और एक मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर सकते हैं।
  • निष्कर्ष:
    • भारत और रूस के बीच व्यापार असंतुलन को बहु-आयामी रणनीति के माध्यम से कम किया जा सकता है जो विविधीकरण, निर्यात प्रोत्साहन, बेहतर व्यापार सौदे वार्ता, आर्थिक सहयोग के साथ विकास और संरचनात्मक कठिनाइयों को हल करने में मदद कर सकता है।

भारत-UAE खाद्य सुरक्षा साझेदारी

चर्चा में क्यों?  

संयुक्त अरब अमीरात (UAE), जिसकी खाद्य सुरक्षा वैश्विक बाज़ारों से होने वाले आयात पर निर्भर है, अब आपूर्ति शृंखला संकट का सामना करने के लिये खाद्य पहुँच और तत्परता के दोहरे उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।  

  • भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक है और खाद्य सुरक्षा को मज़बूती प्रदान  करने की संयुक्त अरब अमीरात की महत्त्वाकांक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है।
  • भारत-UAE खाद्य सुरक्षा साझेदारी अभिसरण के कई बिंदुओं से लाभान्वित होती है।

वैश्विक खाद्य सुरक्षा साझेदारी को मज़बूत करने की दिशा में भारत-संयुक्त अरब अमीरात  की भूमिका

भारत की क्षमता

  • कृषि-निर्यात पर मज़बूत पकड़:
    • प्रचुर कृषि योग्य भूमि, अनुकूल जलवायु और बढ़ता खाद्य उत्पादन तथा प्रसंस्करण क्षेत्र के परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर कृषि-निर्यात के प्रमुखतम स्रोत के रूप में भारत की स्थिति मज़बूत है।
  • मानवीय सहायता:
    • भारत क्षेत्रीय और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए विकासशील देशों को मानवीय खाद्य सहायता प्रदान करने में भी शामिल रहा है।
  • फूड पार्क और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन:
    • भारत ने द्विपक्षीय व्यापार समझौतों से लाभान्वित होने के लिये फूड पार्क और आधुनिक आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण निवेश किया है, जो वैश्विक खाद्य बाज़ार में उत्कृष्टता प्राप्त करने के अपने इरादे को प्रदर्शित करता है।
  • सरकारी पहल:
    • भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमसार्वजनिक वितरण प्रणाली चलाता है, लगभग 800 मिलियन नागरिकों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराता है, दैनिक भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
    • भारत का पोषण अभियान बच्चों और महिलाओं के लिये विश्व का सबसे बड़ा पोषण कार्यक्रम है, जो खाद्य सुरक्षा में पोषण के महत्त्व पर ज़ोर देता है।

UAE's का योगदान 

  • निवेश:  
    • UAE ने I2U2 शिखर सम्मेलन 2022 के दौरान भारत में फूड पार्कों के निर्माण के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।
  • खाद्य सुरक्षा कॉरिडोर:  
    • संयुक्त अरब अमीरात ने वैश्विक खाद्य मूल्य शृंखला में भारत की उपस्थिति को और अधिक बढ़ाते हुए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के साथ-साथ एक खाद्य सुरक्षा कॉरिडोर पर हस्ताक्षर किये हैं। 
  • एग्रीओटा:  
    • दुबई मल्टी कमोडिटीज़ सेंटर ने कृषि-व्यापार और कमोडिटी प्लेटफॉर्म एग्रीओटा लॉन्च किया है, जो भारतीय किसानों को UAE के खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ता है तथा अमीरात के बाज़ारों तक सीधी पहुँच में सक्षम बनाता है। 

महत्त्व

  • भारत के लिये नए बाज़ारों का प्रवेश द्वार
    • एशिया और यूरोप के बीच संयुक्त अरब अमीरात का रणनीतिक स्थान पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका के लिये भारत के खाद्य निर्यात प्रवेश द्वार के रूप में कार्य कर सकता है, जो अपने खाद्य भंडार को बनाए रखने तथा उसमें विविधता लाकर लाभ प्रदान कर सकता है।
    • भारत, संयुक्त अरब अमीरात की निजी क्षेत्र की परियोजनाओं, गैर-कृषि-रोज़गार पैदा करने और किसानों के उत्पादों का बेहतर मूल्य प्रदान कर लाभान्वित होने के लिये तत्पर है।
  • वैश्विक खाद्य सुरक्षा भागीदारी के लिये संरचना:  
    • भारत की G-20 अध्यक्षता ग्लोबल साउथ में खाद्य सुरक्षा के लिये सफल रणनीतियों और रूपरेखाओं को प्रदर्शित करने का एक उपयुक्त अवसर प्रदान करती है।
    • भारत खाद्यान्न के एक स्थायी, समावेशी, कुशल और लचीले भविष्य के निर्माण के लिये UAE के साथ समुद्री व्यापार मार्गों का लाभ उठा सकता है और स्थति को मज़बूत कर सकता है क्योंकि यह वैश्विक विकास एजेंडा निर्धारित करता है।
  • वैश्विक खाद्य सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:
    • जलवायु परिवर्तन का खतरा: संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन तथा चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ती खाद्य असुरक्षा का प्रमुख कारक बताया है।
    • बढ़ते तापमान, मौसम की परिवर्तनशीलता, आक्रामक फसलें एवं कीट तथा लगातार बढ़ते चरम मौसमी घटनाओं का खेती पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण कृषि उत्पादन में कमी तथा खेतों की उत्पादकता व पोषण गुणवत्ता कमज़ोर होती है जो अंततः किसानों की आय में कमी का कारण बनता है।
    • अस्थिर बाज़ार मूल्य: वैश्वीकरण की अवधारणा ने कृषि वाणिज्य को अधिक खुलापन प्रदान किया है, लेकिन यह अधिक स्थिर बाज़ार मूल्य निर्धारण का आश्वासन देने में असमर्थ है। 
    • अंतिम वस्तुओं हेतु लाभकारी कीमतों की कमी, संकटग्रस्त बिक्री, अनुपयुक्त बाज़ार कीमतों के साथ संयुक्त उच्च कृषि लागत खाद्य सुरक्षा के मार्ग में बाधा के रूप में कार्य करती है।
    • व्यापार व्यवधान: भू-राजनीतिक तनाव एवं व्यापार विवादों के परिणामस्वरूप व्यापार में व्यवधान आ सकता है, जिसमें व्यापार प्रतिरोध, प्रतिबंध एवं टैरिफ शामिल हैं, जो खाद्य व्यापार तथा खाद्य कीमतों एवं उपलब्धता को प्रभावित कर सकते हैं।
    • यह विशेष रूप से उन देशों को प्रभावित कर सकता है जो खाद्य आयात पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं, इससे खाद्य की कमी एवं खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है, जिससे कमज़ोर आबादी हेतु भोजन कम सुलभ हो पाता है। 

आगे की राह

  • जलवायु लचीलापन बढ़ाना: जल प्रबंधन, मृदा संरक्षण एवं जलवायु-स्मार्ट प्रौद्योगिकियों जैसे जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन उपायों में निवेश, खाद्य उत्पादन तथा खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
  • जलवायु अनुकूल फसलों को प्रोत्साहन: जलवायु-लचीली फसलों के विकास एवं वितरण के लिये निवेश की आवश्यकता है जो तापमान भिन्नता और वर्षा में उतार-चढ़ाव को सहन कर सके
  • सरकारों को जल और पोषक तत्त्व-कुशल फसलों (जैसे बाज़रा और दालें) के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के साथ ही किसानों के लिये आकर्षक न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा इनपुट सब्सिडी की घोषणा करनी चाहिये।
  • संयुक्त राष्ट्र (UN) महासभा द्वारा अपने 75वें सत्र में वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया जाना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • कृषि कूटनीति: भारत अफ्रीका और एशिया के अन्य विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी साझेदारी, सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देने में संयुक्त अनुसंधान, जलवायु स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देने के माध्यम से अपने समर्थन में वृद्धि कर सकता है जिससे भारत को वैश्विक दक्षिण के एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित होने में मदद मिल सकती है।
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