‘‘बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसनउपर्युक्त पंक्तियाँ क्या कहना चाहती हैं और वो किस सामाजिक स्थिति की ओर हमारा ध्यान ले जाना चाह रही हैं? माँ याद करने पर दिनभर घर में काम करने वाली माँ ही याद आती है। चाहे वह बीवी, बेटी, बहन या पड़ोसन की ही भूमिका क्यों न निभा रही हो।
थोड़ी-थोड़ी सी सब में
दिल भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी-जैसी माँ’’
‘‘किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैंसमाज में नारी के प्रति व्याप्त असमानताओं को दूर करने के लिये नए एवं समान कानूनी व्यवस्थाओं और उनका क्रियान्वयन आवश्यक है। गर्भ परीक्षण, पोषण, उत्तराधिकार एवं नौकरी जैसे अनेक क्षेत्रों में अब भी कानूनी व्यवस्थाएँ अपूर्ण एवं विसंगतिपूर्ण है। समान कानून बनाना एवं सुधारना ही पर्याप्त नहीं, उनका सही रूप से क्रियान्वयन भी हो, ऐसी व्यवस्था स्थापित करना आवश्यक है।
तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो।’’
जब भी सब्र का बाण टूटे तो सब पर भारी नारी।
फूल जैसी कोमल नारी, काँटों जितनी कठोर नारी।।
भारतीय संस्कृति में नारी की महत्ता से कौन परिचित नहीं है। भारतीय संस्कृति में भगवान शिव का नाम अर्द्धनारीश्वर बताया गया है। यह पौराणिक प्रतिपादन समग्र समाज में महिलाओं की पुरुषों के साथ बराबरी की भागीदारी की मान्यता, भावना एवं सिद्धांत की पुष्टि करता है। श्रेष्ठ कार्य के समय महिला को पुरुष के दाहिनी ओर बैठाने की परंपरा के पीछे भी महिलाओं को श्रेष्ठ कार्यों में प्राथमिकता देने का विचार ही निहित है। समग्र विकास में महिलाओं की अनिवार्य भागीदारी की आवश्यकता पर ये तथ्य बल देते हैं। एक-दूसरे के पूरक होते हुए नर एवं नारी की समाज में महत्त्वपूर्ण भागीदारी है। इसी संकल्पना पर विचार करते हुए ग्रामीण विकास में भी महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी की आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
भारत को गाँवों का देश माना जाता है। अत: भारत के विकास हेतु आवश्यक है कि गाँवों का भी विकास हो। ग्रामीण विकास की परिधि में ग्रामों में शिक्षा, संस्कृति, कला-कौशल, चिकित्सा, सामुदायिक विकास, कृषि, सामाजिक सुधार, पशु-पालन, उद्योग-धंधे, रोजगार का विस्तार, पेयजल, विद्युत की सुविधा संचार व्यवस्था का विस्तार आदि चीजे आती हैं।
महिला जनप्रतिनिधि का अर्थ है समस्त वर्गों एवं स्तरों से प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी गई या नामांकित महिला जो ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा आदि में पंच, सरपंच, पार्षद या जिला पंचायत प्रतिनिधि, विधायक, सांसद आदि की हैसियत से कार्य करने हेतु अधिकृत है।
महिला जनप्रतिनिधि द्वारा ही ग्रामीण विकास की बात करने के पीछे यह तर्क है कि भारत में महिलाओं की संख्या भी काफी है, अत: इतनी बड़ी जनशक्ति के लिये उन्हें जनप्रतिनिधि बनाना आवश्यक है। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से उनकी झिझक और घबराहट दूर होगी तथा उनमें आत्मनिर्भरता का विकास होगा, साथ ही आत्मबल में वृद्धि होगी। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण सरल होगा एवं टकराव तथा अहम तुष्टि की भावना विकसित नहीं होगी। इससे विकास कार्यों में बाधा नहीं आएगी एवं ग्रामीण विकास तेजी से हो सकेगा।
यह सत्य है कि अभी भी महिलाएँ सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी हुई है। अत: उनकी उन्नति हेतु उन्हें आगे लाकर उन पर जिम्मेदारी डालना आवश्यक है।
इस पहलू से विकास के तर्क पर प्रकाश डाले तो हम पाते हैं कि महिलाएँ स्वयं कई दृष्टियों से पिछड़ी एवं लज्जाशील होती हैं, अत: विकास संबंधी जागरूकता को लेकर लोग उन्हें संशय की दृष्टि से देखते हैं। ग्रामीण विकास के लिये विकास कार्यों की योजना बनाना, कार्यस्थल का दौरा करना, भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों से निपटना तथा विकास कार्यों की तकनीकी जानकारी रखना आदि महिलाओं हेतु उचित एवं योग्य कार्य नहीं माने जाते। राजनीति एवं विकास संबंधी कार्यों की जिम्मेदारी लेने से उनकी स्वयं की जिम्मेदारियाँ जैसे- बच्चे का पालन एवं पारिवारिक दायित्व संभालने आदि में बाधा आएगी।
देश में महिलाओं की बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद अगर उनकी भागीदारी देश के विकास में न ही तो इस जनसंख्या को उचित अवसर नहीं प्राप्त होगा। इस विशाल जनशक्ति की भागीदारी के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये ग्रामीण विकास के लिये महिलाओं की भागीदारी महत्त्वपूर्ण मानी गई है।
महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्रों में मौलिक विकास के नए-नए आयाम खुल रहे हैं। चूंकि महिला जनप्रतिनिधि होने के नाते वे महिलाओं की कठिनाइयों को भली-भाँति समझेगी, अत: विकास करना आसान होगा। उदाहरणस्वरूप पेयजल स्रोतों का विकास, पनघट के मार्गों का विकास, प्रसूति सुविधाएँ, महिला शिक्षा, बाल विकास, मनोरंजन आदि कार्यों में विशेष रुचि लेते हुए इन क्षेत्रों का संपूर्ण विकास होगा। इन विकास कार्यों की आज ग्रामीण क्षेत्रों में नितांत आवश्यकता है।
महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक वातावरण की भी उन्नति होती है। इसके अतिरिक्त महिलाओं के मनोबल में वृद्धि, महिला शिक्षा, महिला स्वास्थ्य, महिला प्रतिष्ठा आदि में भी वृद्धि होगी। महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से महिलाओं में व्याप्त पर्दा प्रथा, झिझक एवं घबराहट दूर होती है तथा सही निर्णय करने की क्षमता का विकास होता है।
पुरुष प्रतिनिधि अक्सर निजी शत्रुता, ईष्या एवं प्रतिष्ठा को प्रश्न बनाकर एक-दूसरे को नीचा दिखाते रहते हैं, इससे उनकी सकारात्मकता शून्य ही जाती है। किंतु महिलाओं के जनप्रतिनिधि होने पर वैसी राजनीतिक उठापटक नहीं होती।
महिलाएँ प्राय: भ्रष्टाचार से दूर रहती है, फलत: विकास कार्यों का पूरा पैसा विकास कार्यों में लगने से विकास में वृद्धि होती है।
हालाँकि महिला जनप्रतिनिधियों की यह कह कर भी आलोचना की जाती है कि महिला ----- के कारण पंच एवं सरपंच महिलाएँ अपने घर के पुरुष सदस्यों पर निर्भर हो जाती है और गाँव सामाजिक रूप से विकसित नहीं हो पाते। लेकिन वह भी सत्य है कि ग्रामीण विकास में महिला जनप्रतिनिधियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
सारी आलोचनाओं के बावजूद महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। महिलाओं के प्रतिनिधित्व से विकास कार्यों में बढ़ोतरी हो रही है। वस्तुत: महिला जनप्रतिनिधि सभी -----, सभी अधिकार और सभी विकास कार्यक्रम तभी लागू कर सकती है जब वह इन तत्त्वों से भली-भाँति परिचित होती है। किसी भी त्रुटि, कमी या आलोचना की परवाह किये बिना महिला जनप्रतिनिधित्व द्वारा विकास की प्रक्रिया जारी रखनी चाहिये तभी सही अर्थों में ग्रामीण विकास सुनिश्चित हो पाएगा।
2325 docs|814 tests
|
2325 docs|814 tests
|
|
Explore Courses for UPSC exam
|