UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Essays (निबंध): April 2023 UPSC Current Affairs

Essays (निबंध): April 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

साक्षरता द्वारा महिलाओं के लिये समानता

‘‘बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन 
थोड़ी-थोड़ी सी सब में
दिल भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी-जैसी माँ’’
उपर्युक्त पंक्तियाँ क्या कहना चाहती हैं और वो किस सामाजिक स्थिति की ओर हमारा ध्यान ले जाना चाह रही हैं? माँ याद करने पर दिनभर घर में काम करने वाली माँ ही याद आती है। चाहे वह बीवी, बेटी, बहन या पड़ोसन की ही भूमिका क्यों न निभा रही हो।
अवलोकन एवं तत्त्व चिंतन से यह पता चलता है कि प्रकृति ने महिला एवं पुरुष का निर्माण परस्पर पूरक के रूप में किया है। स्त्री एवं पुरुष के बीच का शाश्वत, मूल, प्राकृतिक या वास्तविक संबंध समानता का होता है, न कि एक गौण और दूसरा प्रधान हो। किंतु विडंबना है कि आज स्त्री और पुरुष के मध्य असमानता की खाई व्याप्त हो गई है जो उपर्युक्त पंक्तियों में स्पष्ट नजर आती है। हमें यह देखना होगा कि इस असमानता का स्वरूप क्या है, अर्थात् नारी को आज किन-किन रूपों में अन्याय, अत्याचार एवं अपमान सहना पड़ रहा है और किन विधियों द्वारा महिलाओं की स्थिति में समानता की पुर्नस्थापना की जा सकती है।
साक्षरता के अर्थ पर अगर गौर करें तो इसका शब्दार्थ होता है अक्षर ज्ञान से युक्त होने की स्थिति। इस स्थिति में व्यक्तिगत स्तर पर साक्षरता को वयैक्तिक साक्षरता एवं सामूहिक स्तर पर सामाजिक साक्षरता कहते हैं। उसी प्रकार साक्षरता का व्यापक अर्थ होता है पढ़ा-लिखा या विद्वान परंतु यदि साक्षरता के व्यावहारिक अर्थ को देखते हैं तो इन दोनों के मध्य भी एक मध्यममार्गी अर्थ है जो अधिक उपयोगी तथा व्यवहार्य है।
महिला समानता से तात्पर्य है महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में पुरुषों के समान अधिकार की प्राप्ति व उनका उपभोग। महिलाओं की असमानता के स्वरूप पर अगर बात की जाए तो सिर्फ पिछड़े ग्रामीण समाज में ही नहीं अपितु शहरी प्रगतिशील आधुनिक समाज में भी महिलाओं को विभिन्न स्थानों पर असमानता का सामना करना पड़ता है। लेकिन महिलाओं की यह स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब वे निरक्षर होती हैं।
महिलाओं के साथ असमानता की स्थिति उनके जन्म लेने के पूर्व से ही शुरू हो जाती है। लड़की की तुलना लड़के के जन्म की इच्छा एक प्रगतिशील समाज के लिये श्राप के समान होता है, परंतु आज भी कई स्थानों पर बेटी के जन्म लेने के पूर्व ही उसे मार दिया जाता है। जन्म लेने के उपरांत भी पालन-पोषण में असमानता दिखाई देती है। खान-पान एवं वस्त्रों के चयन में यह निश्चित रूप दिखाई देता है। शिक्षा के संदर्भ में बात की जाए तो आज भी पुरुष  साक्षरता दर, महिला साक्षरता दर की अपेक्षा ज्यादा है जो समाज की हकीकत को बयाँ करता है।
नौकरी में अवसर के संदर्भ में देखा जाए तो वहाँ भी पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षा अधिक वरीयता प्राप्त है। अधिक शारीरिक श्रमवाली नौकरियों में पुरुषों का एकाधिकार स्थापित है एवं बच्चों के जन्म से लेकर लालन-पालन की जिम्मेदारी उठाने के कारण भी महिलाओं को कई जगह नौकरी में प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में भी महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा पीछे ही पाई गई हैं। न उन्हें इच्छानुसार खर्च करने की स्वतंत्रता होती है और न ही घर की अर्थव्यवस्था पर अधिकार। खेलकूद से लेकर स्वास्थ्य स्थिति तक में पाया गया है कि इन सब क्षेत्रों में भी महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा निम्न है।
इन सभी को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि समाज द्वारा इन असमानताओं को दूर करने के प्रयास किये जाएं। लेकिन इससे पहले यह भी जरूरी है कि महिलाएँ अपने अधिकार की रक्षा हेतु स्वयं सामने आएँ और समाज का कर्त्तव्य है कि उन्हें इस कार्य में सहयोग करे।
‘‘किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो।’’
समाज में नारी के प्रति व्याप्त असमानताओं को दूर करने के लिये नए एवं समान कानूनी व्यवस्थाओं और उनका क्रियान्वयन आवश्यक है। गर्भ परीक्षण, पोषण, उत्तराधिकार एवं नौकरी जैसे अनेक क्षेत्रों में अब भी कानूनी व्यवस्थाएँ अपूर्ण एवं विसंगतिपूर्ण है। समान कानून बनाना एवं सुधारना ही पर्याप्त नहीं, उनका सही रूप से क्रियान्वयन भी हो, ऐसी व्यवस्था स्थापित करना आवश्यक है।
समाज में बुद्धिजीवी लोगों को एकत्रित कर नारी की सामाजिक स्थिति में सुधार एवं उत्थान के संबंध में अनेक कानूनी प्रयास किये जाने चाहिये।
कानूनी समानता संबंधी तमाम उपायों के बावजूद आज देश की काफी कम महिलाएँ राजनीतिक पदों पर पहुँच सकी हैं। राजनीतिक स्तर पर इस विषमता को दूर करने के लिये जनसंख्या के अनुपात में राजनीतिक पदों पर महिलाओं के लिये आरक्षण सुनिश्चित करना चाहिये। वर्तमान में महिलाओं को आर्थिक मामलों में वांछित स्तर की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। संपत्ति में समान भागीदारी देकर एवं आर्थिक अनुबंधों में लगी पाबंदियाँ हटाकर महिलाओं के आर्थिक अधिकार को संरक्षण प्रदान किया जा सकता है।
नारी समानता की पक्षधर धार्मिक व्यवस्थाएँ भी पुन: प्रखरता से लागू की जानी चाहिये। अन्य लोगों को भी इन व्यवस्थाओं का अनुकरण कर नारी को महत्ता देने का आग्रह करना चाहिये।
खेलकूद के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये विशेष आर्थिक प्रावधान, विशेष खेल के मैदान, महिला क्रीड़ा शिक्षिकाओं की नियुक्तियाँ, महिला खेल छात्रवृत्तियाँ एवं साथ ही पृथक खेल टूर्नामेंट आयोजित कराने चाहिये।
साक्षरता से महिलाओं में नवीन चेतना का संचार होगा। चेतना या जागृति आने से तमाम प्रकार की असमानताएँ, अन्याय, अत्याचार जैसी स्थिति दूर हो जाती है। साक्षर समाज राजनीतिक, कानूनी एवं व्यवस्था संबंधी तथा परंपरागत उपाय करके लिंग समानता की स्थिति का निर्माण कर लेता है। महिलाओं का वर्तमान पिछड़ापन दूर करके उन्हें समानता के वास्तविक स्तर पर लाने का एकमात्र उपाय ‘साक्षरता’ है। उनका वास्तविक उत्थान एवं असली समानता उनकी साक्षरता में है।

ग्रामीण विकास में महिला जनप्रतिनिधि

जब भी सब्र का बाण टूटे तो सब पर भारी नारी।
फूल जैसी कोमल नारी, काँटों जितनी कठोर नारी।।

भारतीय संस्कृति में नारी की महत्ता से कौन परिचित नहीं है। भारतीय संस्कृति में भगवान शिव का नाम अर्द्धनारीश्वर बताया गया है। यह पौराणिक प्रतिपादन समग्र समाज में महिलाओं की पुरुषों के साथ बराबरी की भागीदारी की मान्यता, भावना एवं सिद्धांत की पुष्टि करता है। श्रेष्ठ कार्य के समय महिला को पुरुष के दाहिनी ओर बैठाने की परंपरा के पीछे भी महिलाओं को श्रेष्ठ कार्यों में प्राथमिकता देने का विचार ही निहित है। समग्र विकास में महिलाओं की अनिवार्य भागीदारी की आवश्यकता पर ये तथ्य बल देते हैं। एक-दूसरे के पूरक होते हुए नर एवं नारी की समाज में महत्त्वपूर्ण भागीदारी है। इसी संकल्पना पर विचार करते हुए ग्रामीण विकास में भी महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी की आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
भारत को गाँवों का देश माना जाता है। अत: भारत के विकास हेतु आवश्यक है कि गाँवों का भी विकास हो। ग्रामीण विकास की परिधि में ग्रामों में शिक्षा, संस्कृति, कला-कौशल, चिकित्सा, सामुदायिक विकास, कृषि, सामाजिक सुधार, पशु-पालन, उद्योग-धंधे, रोजगार का विस्तार, पेयजल, विद्युत की सुविधा संचार व्यवस्था का विस्तार आदि चीजे आती हैं।
महिला जनप्रतिनिधि का अर्थ है समस्त वर्गों एवं स्तरों से प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी गई या नामांकित महिला जो ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा आदि में पंच, सरपंच, पार्षद या जिला पंचायत प्रतिनिधि, विधायक, सांसद आदि की हैसियत से कार्य करने हेतु अधिकृत है।
महिला जनप्रतिनिधि द्वारा ही ग्रामीण विकास की बात करने के पीछे यह तर्क है कि भारत में महिलाओं की संख्या भी काफी है, अत: इतनी बड़ी जनशक्ति के लिये उन्हें जनप्रतिनिधि बनाना आवश्यक है। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से उनकी झिझक और घबराहट दूर होगी तथा उनमें आत्मनिर्भरता का विकास होगा, साथ ही आत्मबल में वृद्धि होगी। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण सरल होगा एवं टकराव तथा अहम तुष्टि की भावना विकसित नहीं होगी। इससे विकास कार्यों में बाधा नहीं आएगी एवं ग्रामीण विकास तेजी से हो सकेगा।
यह सत्य है कि अभी भी महिलाएँ सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी हुई है। अत: उनकी उन्नति हेतु उन्हें आगे लाकर उन पर जिम्मेदारी डालना आवश्यक है।
इस पहलू से विकास के तर्क पर प्रकाश डाले तो हम पाते हैं कि महिलाएँ स्वयं कई दृष्टियों से पिछड़ी एवं लज्जाशील होती हैं, अत: विकास संबंधी जागरूकता को लेकर लोग उन्हें संशय की दृष्टि से देखते हैं। ग्रामीण विकास के लिये विकास कार्यों की योजना बनाना, कार्यस्थल का दौरा करना, भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों से निपटना तथा विकास कार्यों की तकनीकी जानकारी रखना आदि महिलाओं हेतु उचित एवं योग्य कार्य नहीं माने जाते। राजनीति एवं विकास संबंधी कार्यों की जिम्मेदारी लेने से उनकी स्वयं की जिम्मेदारियाँ जैसे- बच्चे का पालन एवं पारिवारिक दायित्व संभालने आदि में बाधा आएगी।
देश में महिलाओं की बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद अगर उनकी भागीदारी देश के विकास में न ही तो इस जनसंख्या को उचित अवसर नहीं प्राप्त होगा। इस विशाल जनशक्ति की भागीदारी के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये ग्रामीण विकास के लिये महिलाओं की भागीदारी महत्त्वपूर्ण मानी गई है।
महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्रों में मौलिक विकास के नए-नए आयाम खुल रहे हैं। चूंकि महिला जनप्रतिनिधि होने के नाते वे महिलाओं की कठिनाइयों को भली-भाँति समझेगी, अत: विकास करना आसान होगा। उदाहरणस्वरूप पेयजल स्रोतों का विकास, पनघट के मार्गों का विकास, प्रसूति सुविधाएँ, महिला शिक्षा, बाल विकास, मनोरंजन आदि कार्यों में विशेष रुचि लेते हुए इन क्षेत्रों का संपूर्ण विकास होगा। इन विकास कार्यों की आज ग्रामीण क्षेत्रों में नितांत आवश्यकता है।
महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक वातावरण की भी उन्नति होती है। इसके अतिरिक्त महिलाओं के मनोबल में वृद्धि, महिला शिक्षा, महिला स्वास्थ्य, महिला प्रतिष्ठा आदि में भी वृद्धि होगी। महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से महिलाओं में व्याप्त पर्दा प्रथा, झिझक एवं घबराहट दूर होती है तथा सही निर्णय करने की क्षमता का विकास होता है।
पुरुष प्रतिनिधि अक्सर निजी शत्रुता, ईष्या एवं प्रतिष्ठा को प्रश्न बनाकर एक-दूसरे को नीचा दिखाते रहते हैं, इससे उनकी सकारात्मकता शून्य ही जाती है। किंतु महिलाओं के जनप्रतिनिधि होने पर वैसी राजनीतिक उठापटक नहीं होती।

महिलाएँ प्राय: भ्रष्टाचार से दूर रहती है, फलत: विकास कार्यों का पूरा पैसा विकास कार्यों में लगने से विकास में वृद्धि होती है।
हालाँकि महिला जनप्रतिनिधियों की यह कह कर भी आलोचना की जाती है कि महिला ----- के कारण पंच एवं सरपंच महिलाएँ अपने घर के पुरुष सदस्यों पर निर्भर हो जाती है और गाँव सामाजिक रूप से विकसित नहीं हो पाते। लेकिन वह भी सत्य है कि ग्रामीण विकास में महिला जनप्रतिनिधियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
सारी आलोचनाओं के बावजूद महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। महिलाओं के प्रतिनिधित्व से विकास कार्यों में बढ़ोतरी हो रही है। वस्तुत: महिला जनप्रतिनिधि सभी -----, सभी अधिकार और सभी विकास कार्यक्रम तभी लागू कर सकती है जब वह इन तत्त्वों से भली-भाँति परिचित होती है। किसी भी त्रुटि, कमी या आलोचना की परवाह किये बिना महिला जनप्रतिनिधित्व द्वारा विकास की प्रक्रिया जारी रखनी चाहिये तभी सही अर्थों में ग्रामीण विकास सुनिश्चित हो पाएगा।

The document Essays (निबंध): April 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2328 docs|814 tests

Top Courses for UPSC

Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

MCQs

,

video lectures

,

Weekly & Monthly

,

ppt

,

study material

,

pdf

,

past year papers

,

practice quizzes

,

shortcuts and tricks

,

Essays (निबंध): April 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Exam

,

Extra Questions

,

Essays (निबंध): April 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

mock tests for examination

,

Summary

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Viva Questions

,

Weekly & Monthly

,

Important questions

,

Semester Notes

,

Objective type Questions

,

Free

,

Weekly & Monthly

,

Sample Paper

,

Essays (निबंध): April 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

;