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The Hindi Editorial Analysis- 14th June 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

GDP की अपर्याप्त रिकवरी

  • भारत के नवीनतम सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुमानों ने सबसे आशावादी अनुमानों को भी पार कर लिया है, जिससे चालू वित्तीय वर्ष के लिये आर्थिक विकास अनुमानों में ऊर्ध्वगामी संशोधन किये गए हैं। भारत के जी.डी.पी. अनुमान महामारी के दौरान अनुभव किये गए गिरावटों से उबरने का संकेत दे रहे हैं।
  • हालाँकि ग्रामीण मांग, विनिर्माण प्रदर्शन, अनौपचारिक क्षेत्र के विकास, निवेश पैटर्न, उदासीन घरेलू व्यय आदि में व्याप्त चुनौतियों के साथ रिकवरी पर्याप्त नहीं है और आर्थिक हानि देश की विकास संभावनाओं के लिये चुनौतियाँ पेश कर रही है। सतत् एवं संतुलित आर्थिक विकास प्राप्त करने के लिये इन विरोधाभासों को सुलझाना अत्यंत आवश्यक है।

जी.डी.पी. रिकवरी चुनौतीपूर्ण क्यों है?

  • कृषि विकास के बावजूद ग्रामीण मांग में कमी:
    • ग्रामीण बाज़ारों का पिछड़ापन:
      • कृषि क्षेत्र में मज़बूत वृद्धि के बावजूद ग्रामीण मांग कमज़ोर बनी हुई है, जहाँ ग्रामीण बाज़ारों में ‘वॉल्यूम ग्रोथ’ (volume growth) सुस्त बनी हुई है।
    • प्रति व्यक्ति आय में गिरावट:
      • कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की बढ़ती भागीदारी के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में कमी आई है।
    • गैर-कृषि क्षेत्र का कमज़ोर प्रदर्शन:
      • गैर-कृषि क्षेत्र, जो ग्रामीण घरेलू आय में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, संभवतः कमज़ोर प्रदर्शन कर रहा है।
      • मनरेगा (MGNREGA) के तहत परिवारों द्वारा कार्य की मांग में हालाँकि कोविड वर्षों के दौरान गिरावट देखी गई थी, यह महामारी-पूर्व स्तरों से पर्याप्त ऊपर बनी हुई है।
      • वर्ष 2022-23 में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 8.76 करोड़ व्यक्तियों को काम मिला (वर्ष 2019-20 में 7.88 करोड़ और वर्ष 2018-19 में 7.77 करोड़ व्यक्तियों की तुलना में)।
  • औद्योगिक क्षेत्र में मंदी और विनिर्माण प्रदर्शन:
    • औद्योगिक क्षेत्र में मंदी:
      • औद्योगिक क्षेत्र, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में उल्लेखनीय मंदी आई है।
      • चौथी तिमाही में टर्न-अराउंड (turnaround) के बावजूद पूरे वर्ष के लिये विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि मात्र 1.3% रही।
  • गैर-कृषि क्षेत्र के अंतर्गत अनौपचारिक क्षेत्र रोज़गार में वृद्धि:
    • अनौपचारिक क्षेत्र रोज़गार:
      • गैर-कृषि क्षेत्र के अंतर्गत स्वामित्व और साझेदारी उद्यमों (अनौपचारिक क्षेत्र की फर्में) में संलग्न श्रमिकों की हिस्सेदारी 68.2% (वर्ष 2017-18) से बढ़कर 71.8% (वर्ष 2021-22) हो गई।
      • अनौपचारिक क्षेत्र रोज़गार में वृद्धि अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने और रोज़गार अवसरों को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयासों से भिन्न तस्वीर पेश करती है।
  • निवेश गतिविधि और चालू खाता गतिशीलता:
    • स्वस्थ निवेश वृद्धि:
      • निवेश-जी.डी.पी. अनुपात के 29.2% (2022-23) तक पहुँचने के साथ निवेश गतिविधि में स्वस्थ प्रवृत्ति नज़र आई।
    • घरेलू क्षेत्र द्वारा प्रेरित विकास:
      • निवेश अनुपात में दो-तिहाई वृद्धि घरेलू क्षेत्र द्वारा संचालित थी, जिसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की फर्मों का योगदान रहा।
    • चालू खाता अधिशेष की संभावना:
      • हाल के जी.डी.पी. आँकड़े चालू खाता अधिशेष (current account surplus) या न्यूनतम घाटे की संभावना प्रकट करते हैं, जो बचत के सापेक्ष कमज़ोर निवेश मांग का संकेत देते हैं।
  • कमज़ोर घरेलू व्यय और मुद्रास्फीति का प्रभाव:
    • हाई-एंड खर्च बनाम समग्र घरेलू व्यय:
      • हाई-एंड वस्तुओं एवं सेवाओं पर खर्च बढ़ा है, जबकि निम्न एवं मध्यम आय वाले परिवारों द्वारा कम खर्च करने के कारण समग्र घरेलू व्यय में गिरावट बनी हुई है।
    • निम्न आय वृद्धि:
      • उत्पादक रोज़गार के सीमित अवसर और निम्न आय वृद्धि ने कमज़ोर घरेलू व्यय में योगदान दिया है।
    • मुद्रास्फीति द्वारा क्रय शक्ति का क्षरण:
      • स्थिर मुद्रास्फीति परिवारों की क्रय शक्ति को कम करती है और उपभोग को संकुचित करती है।
  • आर्थिक हानि और असमान रिकवरी:
    • वास्तविक विकास की कमी:
      • महामारी से पहले की वृद्धि की तुलना में, भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक वृद्धि वर्तमान स्तरों से कम बनी हुई है, जो आर्थिक हानि को दर्शाती है।

संभावित समाधान

  • ग्रामीण मांग को बढ़ावा देना:
    • विकास एवं रोज़गार के अवसरों को प्रोत्साहित करने के लिये लक्षित नीतियों एवं पहलों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना।
    • निवेश आकर्षित करने और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में अवसंरचना एवं कनेक्टिविटी में सुधार करना।
    • उद्यमशीलता और लघु व्यवसाय विकास को प्रोत्साहित करने के लिये ग्रामीण परिवारों एवं उद्यमियों के लिये ऋण और वित्तीय सेवाओं तक पहुँच को बढ़ाना।
    • आर्थिक लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करते हुए कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच आय के अंतर को दूर करने के उपाय करना।
  • विनिर्माण क्षेत्र का पुनरुद्धार:
    • विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये क्षेत्र-विशिष्ट नीतियों को लागू करना, जैसे कर प्रोत्साहन, सरलीकृत विनियमन और कारोबार सुगमता संबंधी सुधार।
    • उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार, अनुसंधान एवं विकास और प्रौद्योगिकी अंगीकरण को प्रोत्साहित करना।
    • श्रम बल में व्याप्त कौशल अंतराल को दूर करने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों को सशक्त करना और इसे विनिर्माण उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करना।
    • निवेश आकर्षित करने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी एवं सहयोग को सुगम बनाना।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारीकरण:
    • अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों की औपचारिकता को बढ़ावा देने के लिये नीतियाँ और कार्यक्रम पेश करना, जैसे कि वित्त तक पहुँच प्रदान करना, पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाना तथा अनुपालन के लिये प्रोत्साहन (incentives) की पेशकश करना।
    • अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की आय सुरक्षा और समग्र कल्याण में सुधार के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल को बढ़ाना।
    • व्यापार विकास सहायता, प्रशिक्षण और बाज़ारों तक पहुँच प्रदान कर औपचारिक क्षेत्र की ओर संक्रमण हेतु अनौपचारिक उद्यमों के लिये एक सक्षमकारी माहौल का संपोषण करना।
  • आय असमानता को संबोधित करना और घरेलू व्यय को बढ़ावा देना:
    • आय के पुनर्वितरण और धन असमानताओं को कम करने के लिये प्रगतिशील कराधान नीतियों को लागू करना।
    • निम्न आय वाले परिवारों और कमज़ोर समूहों को सहायता प्रदान करने के लिये सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और सुरक्षा तंत्रों को बढ़ाना।
    • व्यक्तियों को सशक्त बनाने और उनकी रोज़गार क्षमता में सुधार के लिये शिक्षा एवं कौशल विकास में निवेश बढ़ाना।
    • परिवारों की क्रय शक्ति की रक्षा के लिये प्रभावी मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों के माध्यम से मुद्रास्फीति के दबावों का सामना करना।
  • निगरानी एवं मूल्यांकन:
    • कार्यान्वित नीतियों एवं हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता की निगरानी एवं मूल्यांकन के लिये सुदृढ़ तंत्र स्थापित करना।
    • प्रमुख आर्थिक संकेतकों पर नीतिगत उपायों के प्रभाव का नियमित रूप से आकलन करना और वांछित परिणाम सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक समायोजन करना।
    • नीति निर्माण और कार्यान्वयन को सूचना-संपन्न बनाने के लिये अनुसंधान एवं डेटा-संचालित निर्णयन को प्रोत्साहित करना।
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