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Economic Development (आर्थिक विकास): May 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सूचना के स्वचालित आदान-प्रदान (एईओआई) ढांचे का दायरा 

चर्चा में क्यों?  

भारत OECD देशों के बीच सूचना के स्वत: आदान-प्रदान (AEOI) के तहत गैर-वित्तीय संपत्ति जैसे अचल संपत्ति संपत्तियों को शामिल करने के लिए G20 में सामान्य रिपोर्टिंग मानक (CRS) के दायरे का विस्तार करने का दबाव बना रहा है ।

भारत की मांग के पीछे तर्क 

  • ओईसीडी की टैक्स ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान भू-राजनीतिक और ऋण संकट के बीच, कर चोरी और अवैध वित्तीय प्रवाह की जांच करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से एशियाई देशों द्वारा, जो अनुमान लगाया गया है कि 2016 में राजस्व में €25 बिलियन का नुकसान हुआ है।
    • वर्तमान वैश्विक परिदृश्य कर चोरी और अन्य अवैध वित्तीय प्रवाह (IFFs) के खिलाफ लड़ाई को और भी कठिन बना देता है: COVID-19 महामारी के बाद और भू-राजनीतिक संकट के परिणामस्वरूप धीमी आर्थिक वृद्धि हुई
    • कर चोरी और आईएफएफ के अन्य रूप एक वैश्विक समस्या है जो घरेलू राजस्व जुटाने में बाधा डालती है। 
  • इसलिए, एईओआई के दायरे को व्यापक बनाने की आवश्यकता है ताकि सूचना का उपयोग न केवल कर चोरी की जांच के लिए किया जा सके बल्कि अन्य गैर-कर कानून प्रवर्तन उद्देश्यों के लिए भी किया जा सके।
  • सीआरएस को वित्तीय से नए गैर-वित्तीय खातों और संपत्तियों तक विस्तारित करने की भी आवश्यकता है क्योंकि जोखिम केवल वित्तीय संपत्तियों में ही नहीं हैं, गैर-वित्तीय और वास्तविक संपत्तियों, संपत्तियों आदि में कर चोरी का जोखिम है

सूचना के स्वचालित आदान-प्रदान (AEOI) ढांचे के बारे में

  • यह कर अधिकारियों के बीच सूचनाओं के पूर्वनिर्धारित सेट के स्वत: आदान-प्रदान के लिए प्रदान करता है। 
  • एईओआई मानक को पूर्व-निर्धारित प्रारूप में अनिवासी व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा रखे गए वित्तीय खातों पर जानकारी के वार्षिक आदान-प्रदान की आवश्यकता होती है।
    • आदान-प्रदान की गई जानकारी में वित्तीय खाते के बारे में विवरण शामिल है (उदाहरण के लिए इसे बनाए रखने वाली वित्तीय संस्था, खाता संख्या और खाता शेष) और खाता धारक के बारे में विवरण (जैसे उनका नाम, पता, जन्म तिथि और करदाता पहचान संख्या)।
  • महत्व: एईओआई ढांचे के तहत, हस्ताक्षरकर्ता देश एक सीआरएस का पालन करते हैं और अपने वित्तीय संस्थानों से जानकारी प्राप्त करते हैं और स्वचालित रूप से वार्षिक आधार पर अन्य न्यायालयों के साथ उस सूचना का आदान-प्रदान करते हैं।
    • एईओआई मानक विदेशों में वित्तीय संपत्तियां रखने के माध्यम से अपतटीय कर चोरी को रोकने और पहचानने में मदद करने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण प्रदान करता है। 
    • यह कर चोरी की जांच करने के उद्देश्य से हस्ताक्षरकर्ता देशों के बीच वित्तीय खाता विवरण साझा करने का प्रावधान करता है। 
  • विकास:  अगस्त 2022 में, OECD ने क्रिप्टो-एसेट रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क (CARF) को भी मंजूरी दे दी, जो ऐसी सूचनाओं का स्वचालित रूप से आदान-प्रदान करने की दृष्टि से एक मानकीकृत तरीके से क्रिप्टो संपत्ति में लेनदेन पर कर जानकारी की रिपोर्टिंग प्रदान करता है।
  • भारतीय परिदृश्य:  भारत में वर्तमान में वित्तीय जानकारी प्राप्त करने के लिए 108 अधिकार क्षेत्रों के साथ एईओआई है और स्वचालित रूप से सूचना भेजने के लिए 79 अधिकार क्षेत्र हैं।

सामान्य रिपोर्टिंग मानक (सीआरएस)

  •  इसे G20 अनुरोध के जवाब में विकसित किया गया था और 2014 में OECD परिषद द्वारा अनुमोदित किया गया था।
  • यह न्यायालयों को अपने वित्तीय संस्थानों से जानकारी प्राप्त करने और वार्षिक आधार पर अन्य न्यायालयों के साथ स्वचालित रूप से उस जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिए कहता है।

गैर-वित्तीय संपत्ति

  • परिवारों द्वारा धारित गैर-वित्तीय संपत्तियों में सैद्धांतिक रूप से उत्पादित और गैर-उत्पादित दोनों प्रकार की गैर-वित्तीय संपत्तियां शामिल हैं और इसलिए आवास और अन्य भवन और संरचनाएं और भूमि सुधार शामिल हैं; पशुधन सहित मशीनरी और उपकरण; और यहां तक कि बौद्धिक संपदा उत्पाद, जैसे सॉफ्टवेयर और साहित्यिक मूल, और गैर-उत्पादित संपत्ति जैसे भूमि और टैक्सी-लाइसेंस।
  • व्यवहार में आवास अब तक का सबसे महत्वपूर्ण घटक है।
  • घरों को छोड़कर, केवल वे संपत्तियां जो घरेलू अनिगमित उद्यमों के स्वामित्व में हैं, और उत्पादन में उपयोग की जाती हैं, गैर-वित्तीय संपत्तियों के रूप में शामिल हैं। 
    • उदाहरण के लिए एक परिवार द्वारा पूरी तरह से घरेलू परिवहन के लिए उपयोग की जाने वाली कार एक गैर-वित्तीय संपत्ति नहीं है, जबकि एक स्व-नियोजित टैक्सी चालक द्वारा उपयोग की जाने वाली कार है।

क्या आप जानते हैं?

  • टैक्स उद्देश्यों के लिए पारदर्शिता और सूचना के आदान-प्रदान पर ग्लोबल फोरम की एशिया पहल की बैठक में 'टैक्स ट्रांसपेरेंसी इन एशिया 2023' रिपोर्ट लॉन्च की गई।
    • वर्तमान में, 167 क्षेत्राधिकार ग्लोबल फोरम के सदस्य हैं जिनमें सभी G20 देश शामिल हैं।
  • रिपोर्ट बाली घोषणा का एक प्रमुख आउटपुट है। 
    • इसका उद्देश्य पिछले दशक में एशियाई देशों की प्रगति को दिखाना और एशिया पहल के भविष्य के कार्यों का मार्गदर्शन करना है।

केंद्रीय प्रतिपक्ष 

चर्चा में क्यों?

यूरोपीय संघ के वित्तीय बाज़ार नियामक, यूरोपीय प्रतिभूति और बाज़ार प्राधिकरण (ESMA) ने यूरोपीय बाज़ार अवसंरचना विनियमन (EMIR) के अनुसार, 30 अप्रैल, 2023 से छह भारतीय केंद्रीय प्रतिपक्षों (CCP) की मान्यता रद्द कर दी है।

  • ये छह CCPs भारतीय समाशोधन निगम (Clearing Corporation of India- CCIL), भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (Indian Clearing Corporation Ltd- ICCL), NSE समाशोधन लिमिटेड (NSE Clearing Ltd- NSCCL), मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज क्लियरिंग (MCX CCL), इंडिया इंटरनेशनल क्लियरिंग कॉर्पोरेशन (India International Clearing Corporation-IFSC) लिमिटेड (IICC) और NSE IFSC समाशोधन निगम लिमिटेड (NSE IFSC Clearing Corporation Ltd- NICCL) हैं।

भारतीय केंद्रीय प्रतिपक्ष (CCP)

  • परिचय:
    • CCP एक वित्तीय संस्थान है जो विभिन्न डेरिवेटिव और इक्विटी बाज़ारों में खरीदारों एवं विक्रेताओं के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। CCPs ऐसी संरचनाएँ हैं जो वित्तीय बाज़ारों में समाशोधन और निपटान प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने में सहायता करती हैं।
    • CCP का प्राथमिक लक्ष्य वित्तीय बाज़ारों में दक्षता और स्थिरता को बढ़ाना है।
    • CCP प्रतिपक्ष, परिचालन, निपटान, बाज़ार, कानूनी और डिफॉल्ट मुद्दों से जुड़े जोखिमों को कम करता हैं।
    • CCP एक व्यापार में खरीदारों और विक्रेताओं दोनों के प्रतिपक्ष के रूप में कार्य करता है, इसमें शामिल प्रत्येक पक्ष से धन एकत्र करता है और व्यापार की शर्तों की गारंटी देता है।
  • कार्यप्रणाली:
    • समाशोधन और निपटान CCP के दो मुख्य कार्य हैं।
      • समाशोधन में व्यापार के विवरण को मान्य करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि लेन-देन को पूरा करने के लिये दोनों पक्षों के पास पर्याप्त धन है।
    • निपटान में विक्रेता से खरीदार को व्यापार में सम्मिलित परिसंपत्ति या प्रतिभूति के स्वामित्त्व का हस्तांतरण शामिल है।
  • भारत में विनियामक:
    • मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और फॉरेन एक्सचेंज डेरिवेटिव्स के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)।
      • CCP को भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत भारत में संचालन के लिये RBI द्वारा अधिकृत किया गया है।
    • CCPs समाशोधन प्रतिभूतियों और कमोडिटी डेरिवेटिव के लिये भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)।

ESMA द्वारा भारतीय CCP की मान्यता समाप्त

  • कारण:
    • ESMA ने सभी EMIR आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहने के कारण भारतीय CCP की मान्यता समाप्त कर दी।
    • ESMA और भारतीय नियामकों- RBI, SEBI और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centres Authority- IFSCA) के बीच 'किसी प्रकार की सहयोग संबंधी व्यवस्था की अनुपलब्धता' के कारण यह निर्णय लिया गया।
      • ESMA इन छह CCPs की निगरानी करना चाहता है, भारतीय नियामकों का मानना है कि चूँकि ये घरेलू CCPs भारत में कार्यरत हैं, यूरोपीय संघ में नहीं, इसलिये इन संस्थाओं को ESMA नियमों के अधीन नहीं लाया जा सकता है। भारतीय नियामकों को लगता है कि इन छह CCP के पास ठोस जोखिम प्रबंधन व्यवस्था है, इसलिये किसी विदेशी नियामक को उनका निरीक्षण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • प्रभाव:
    • निकासी के निर्णयों के लागू होने की तिथि के अनुसार, ये CCPs अब यूरोपीय संघ में स्थापित समाशोधन सदस्यों और व्यापारिक केंद्रों को सेवाएँ प्रदान नहीं करेंगे।
    • इस निर्णय का भारत में यूरोपीय बैंकों पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि भारतीय केंद्रीय प्रतिपक्षों से जुड़े लेन-देन के लिये या तो उन्हें अपनी पूंजी आवश्यकताओं को 50 गुना तक बढ़ाने की आवश्यकता होगी या उन्हें अगले 6 से 9 महीने के दौरान उन प्रतिपक्षों के साथ अपनी होल्डिंग को समाप्त करना होगा।

यूरोपीय प्रतिभूति और बाज़ार प्राधिकरण (ESMA)

  • ESMA स्वतंत्र यूरोपीय संघ प्राधिकरण है।
  • ESMA निवेशकों की सुरक्षा और स्थिर एवं व्यवस्थित वित्तीय बाज़ारों को बढ़ावा देता है।
  • ESMA विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं जैसे- क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, प्रतिभूतिकरण रिपॉज़िटरी एवं ट्रेड रिपॉज़िटरी का प्रत्यक्ष पर्यवेक्षक है।

यूरोपीय बाज़ार अवसंरचना विनियमन (EMIR)

  • EMIR अगस्त 2012 में अपनाया गया एक यूरोपीय संघ विनियमन है।
  • इसका उद्देश्य OTC डेरिवेटिव बाज़ार में प्रणालीगत, प्रतिपक्ष और परिचालन जोखिम को कम करना है।
  • यह CCPs और ट्रेड रिपॉज़िटरी हेतु उच्च विवेकपूर्ण मानक निर्धारित करता है।
  • EMIR गैर-निकासी डेरिवेटिव जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों में सुधार करता है।
  • यह तीसरे देश के CCP की पहचान और पर्यवेक्षण हेतु एक ढाँचा स्थापित करता है।

बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-रोधी अभ्यास 

चर्चा में क्यों?

कुछ स्टार्ट-अप्स ने इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) पर छोटी कंपनियों की तुलना में बिग टेक कंपनियों का पक्ष लेने का आरोप लगाया है, जो बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-रोधी अभ्यास के मुद्दे पर प्रकाश डालती है।

  • IAMAI सोसायटी अधिनियम, 1896 के तहत पंजीकृत एक गैर-लाभकारी औद्योगिक निकाय है। इसका जनादेश ऑनलाइन और मोबाइल मूल्यवर्द्धित सेवा क्षेत्र का विस्तार एवं वृद्धि करना है।

बिग टेक (Big Tech)

  • ‘बिग टेक’ शब्द का उपयोग वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण कुछ चुनिंदा प्रौद्योगिकी कंपनियों, जैसे- गूगल, फेसबुक, अमेज़न, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट के लिये किया जाता है।
  • कंपनियों के एक स्थिर समुच्चय के बजाय बिग टेक को एक अवधारणा के रूप में बेहतर समझा जाता है। नई कंपनियाँ इस श्रेणी में उसी तरह प्रवेश कर सकती हैं जैसे मौजूदा कंपनियाँ इससे बाहर हो सकती हैं।

पृष्ठभूमि

  • वित्त पर संसदीय स्थायी समिति ने बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-रोधी अभ्यास को रोकने के लिये नए नियमों को प्रस्तावित किया।
    • इनमें पूर्व नियम शामिल थे जिसमें कंपनियों को कुछ अभ्यासों में संलग्न होने और बिग टेक कंपनियों को व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण डिजिटल मध्यस्थों (SIDI) के रूप में नामित करने से पहले अभ्यास के कुछ मानकों का पालन करने की आवश्यकता होती है।
    • SIDI अपने राजस्व, बाज़ार पूंजीकरण और सक्रिय उपयोगकर्त्ताओं की संख्या के आधार पर डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिस्पर्द्धा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता वाली अग्रणी संस्था होगी।
  • हालाँकि IAMAI ने तर्क दिया कि ये नियम नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को रोक सकते हैं।
    • इसके सदस्यों में मेटा, एप्पल, अमेज़ॅन, ट्विटर और गूगल जैसी अन्य बिग टेक कंपनियों ने भी इसी तरह की टिप्पणियाँ प्रस्तुत कीं।
  • इस कदम ने कुछ भारतीय स्टार्ट-अप्स की आलोचना की है, जिन्होंने IAMAI पर विदेशी बड़ी टेक कंपनियों के पक्ष में विचारों को बढ़ावा देने और डिजिटल इकोसिस्टम में प्रतिस्पर्द्धी आचरण को प्रभावित करने का आरोप लगाया है।

भारत के डिजिटल स्पेस में बिग टेक की भूमिका

  • राजस्व स्रोत: वे फिनटेक बाज़ार में, जो राजस्व का एक आकर्षक स्रोत है (विशेष रूप से भारत में प्रति उपयोगकर्त्ता विज्ञापन राजस्व कम होने के कारण), एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • साक्षरता से जुड़ी बाधाओं को दूर करना: बिग टेक कंपनियों द्वारा नए उपयोगकर्त्ताओं तक पहुँच बनाने और साक्षरता से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिये वॉइस-बेस्ड और क्षेत्रीय भाषा इंटरफेस की पेशकश की जा रही है।
  • अवसंरचनात्मक और रोज़गार अंतराल को दूर करना: नए कारोबार के कार्यक्षेत्र वेयरहाउसिंग, वितरण सुविधाएँ और रोज़गार अवसर प्रदान करने के रूप में मौजूदा अवसंरचनात्मक एवं रोज़गार अंतराल को दूर करते हुए भारत को अपने घरेलू बाज़ारों की बेहतर सेवा करने में मदद कर रहे हैं।
  • सामाजिक और राजनीतिक प्रगति: अधिकांश भारतीय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता सूचनाओं तक पहुँच बनाने, संवाद करने और राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में भागीदारी करने के लिये एक या एक से अधिक बिग टेक प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं।
    • यह मुक्त भाषण के संवैधानिक अधिकार के प्रयोग का भी लोकतंत्रीकरण कर रहा है।

बिग टेक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मक आचरण का प्रभाव

  • अधिग्रहण और विलय:
    • विलय नियंत्रण नियमों के अधीन हुए बिना अत्यधिक मूल्यवान स्टार्ट-अप खरीदने वाली बड़ी फर्में डिजिटल बाज़ारों में एक समस्या है।
    • इस समिति ने कहा कि CCI (भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग) कुछ विलय और अधिग्रहण पर कब्ज़ा करने में सक्षम नहीं है क्योंकि वह संयोजन के लिये आवश्यक संपत्ति एवं टर्नओवर की सीमा को पूरा नहीं करता है।
  • स्व-अधिमान:
    • स्व-अधिमान तब होता है जब कोई कंपनी अपनी सेवाओं या अपनी सहायक कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर बढ़ावा देती है, जबकि उसी प्लेटफॉर्म पर अन्य सेवा प्रदाताओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा भी करती है।
      • उदाहरण के लिये कोई कंपनी किसी एप स्टोर में अपने स्वयं के एप्लीकेशन को रैंकिंग में प्राथमिकता दे सकती है। तटस्थता की यह कमी अन्य व्यवसायों को नुकसान पहुँचा सकती है और उनके लाभ को कम कर सकती है।
  • प्रयुक्त आँकड़े:
    • डिजिटल कंपनियाँ ग्राहकों के ऐसे आँकड़ों को एकत्र करती हैं जो उन्हें लाभ प्रदान करते हैं, जिससे नई कंपनियों के लिये प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो सकता है।
    • हालाँकि ग्राहकों को ट्रैक करने के लिये इन आँकड़ों का दुरुपयोग भी किया जा सकता है।
  • तृतीय-पक्ष को प्रतिबंधित करना:
    • कुछ कंपनियाँ अपने प्लेटफॉर्म पर थर्ड-पार्टी एप्लीकेशन के उपयोग को प्रतिबंधित करती हैं, जो उपयोगकर्त्ता की पसंद को सीमित कर सकती हैं।
      • उदाहरण के लिये एक ऑपरेटिंग सिस्टम उपयोगकर्त्ताओं को अपने स्वयं के अतिरिक्त किसी एप्लीकेशन की सेवाओं का उपयोग करने से रोक सकता है, जैसे कि Apple किसी भी तृतीय-पक्ष एप्लीकेशन को आई-फोन पर स्थापित करने की अनुमति नहीं देता है।
  • संलग्नता:
    • डिजिटल फर्म कभी-कभी ग्राहकों को उनके मुख्य उत्पाद से संबंधित अतिरिक्त सेवाओं को क्रय करने के लिये मजबूर करती हैं, जो प्रतिस्पर्द्धा को न्यूनतम रखने के साथ साथ मूल्य निर्धारण विषमता उत्पन्न करती है।
  • एंटी-स्टीयरिंग:
    • व्यापार उपयोगकर्त्ताओं को अन्य विकल्पों का उपयोग करने से रोकने के लिये संस्थाओं द्वारा एंटी-स्टीयरिंग प्रावधानों का उपयोग किया जाता है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा में कमी आती है।
      • उदाहरण के लिये एप्लीकेशन स्टोर अपने स्वयं के भुगतान सिस्टम के उपयोग को अनिवार्य करते हैं। इन क्रियाओं का परिणाम प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी बहिष्करण जैसी क्रियाओं के रूप में होता है।

बिग टेक को विनियमित करने हेतु भारत का वर्तमान दृष्टिकोण

  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002: भारत में अविश्वास संबंधी मुद्दे प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 द्वारा शासित होते हैं, जबकि CCI एकाधिकार प्रथाओं पर जाँच करता है।
    • वर्ष 2022 में CCI ने 'प्रतिस्पर्द्धात्मक विरोधी प्रथाओं' हेतु कई बाज़ारों में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने के लिये Google पर 1,337.76 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया।
  • प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022: सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022 में प्रतिस्पर्द्धा कानून में संशोधन प्रस्तावित किया है। विधेयक को अप्रैल 2023 में राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई है।
    • CCI यह आकलन करने हेतु आवश्यकताओं को निर्धारित करने के लिये विनियम तैयार करेगा कि क्या किसी उद्यम का भारत में पर्याप्त व्यावसायिक संचालन है।
    • यह आयोग की मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार करेगा, विशेष रूप से डिजिटल और बुनियादी ढाँचा क्षेत्रों में जहाँ अधिकांश मामलों का पहले खुलासा नहीं किया गया था क्योंकि संपत्ति या टर्नओवर राशि मूल्य क्षेत्राधिकार सीमा आवश्यकताओं से कम हो गई थी।

आगे की राह

  • वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति बिना टर्नओवर वाले डिजिटल मार्केटप्लेस की विशेषताओं को समायोजित करने के लिये सौदे के मूल्य पर आधारित एक प्रणाली का सुझाव देती है।
  • वह यह भी अनुशंसा करती है कि डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने वाली अथवा डेटा एकत्र करने वाली संस्थाओं से संबंधित किसी भी संकेंद्रण को कार्यान्वयन से पहले CCI को सूचित किया जाना चाहिये, चाहे वह अधिसूचना के निर्दिष्ट सीमा के अनुरूप हो अथवा न हो।
  • सरकार को इंटरनेट जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये पर्याप्त कदम उठाने की आवश्यकता है, जैसे किसी भी लेन-देन से पहले वेबसाइटों की प्रामाणिकता की जाँच करना और अनधिकृत अनुप्रयोगों तक पहुँच प्रदान न करना।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर वृद्धि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.75 प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी की , जो कि महंगाई पर काबू पाने के लिए 28 वर्षों में सबसे अधिक दर वृद्धि है।

यूनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिजर्व के बारे में

  • सेंट्रल बैंक: अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और फेड सबसे बड़ा केंद्रीय बैंक है।
  • फेडरल रिजर्व की भूमिका:
    • अधिकतम रोजगार और स्थिर कीमतों को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी मौद्रिक नीति का संचालन करना ;
    • वित्तीय प्रणाली की स्थिरता को बढ़ावा देना और अमेरिका और विदेशों में सक्रिय निगरानी और जुड़ाव के माध्यम से प्रणालीगत जोखिमों को कम करने और नियंत्रित करने की मांग करना;
    • अलग-अलग वित्तीय संस्थानों की सुरक्षा और सुदृढ़ता को बढ़ावा देना और समग्र रूप से वित्तीय प्रणाली पर उनके प्रभाव की निगरानी करना;
    • बैंकों और संघीय सरकार को सेवाओं के माध्यम से भुगतान और निपटान प्रणाली में सुरक्षा और दक्षता को बढ़ावा देना जो यूएस-डॉलर के लेनदेन और भुगतान की सुविधा प्रदान करता है;
    • उपभोक्ता केंद्रित पर्यवेक्षण और परीक्षा, उभरते उपभोक्ता मुद्दों और प्रवृत्तियों के अनुसंधान और विश्लेषण और उपभोक्ता कानूनों और विनियमों के प्रशासन के माध्यम से उपभोक्ता संरक्षण और सामुदायिक विकास को बढ़ावा देना ।
  • मौद्रिक नीति: फेडरल रिजर्व मौद्रिक नीति के तीन उपकरणों को नियंत्रित करता है:
    • खुला बाजार परिचालन
    • छूट की दर
    • आरक्षित आवश्यकतायें।

बढ़ोतरी का कारण

  • अमेरिका में उच्च मुद्रास्फीति : यह अनियंत्रित मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है क्योंकि अमेरिका में कीमतें 40 वर्षों में सबसे तेज दर से बढ़ी हैं।
    • अमेरिकी मुद्रास्फीति बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई है जो 1981 के बाद सबसे तेज गति है।

वैश्विक बाजार और उनकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • विस्तारवादी मौद्रिक नीति को उल्टा करें: नए अनुमानों को कोविड-19 के प्रकोप के बीच अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए 2020 की शुरुआत में केंद्रीय बैंक की विस्तारवादी मौद्रिक नीति को उलटने के कदम के रूप में देखा जा रहा है।
  • इस कदम का उद्देश्य लंबी अवधि की ब्याज दरों को कम करना और उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों द्वारा अधिक उधारी और खर्च को उत्प्रेरित करना है।
  • जब किसी अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें बढ़ जाती हैं: उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है, इसलिए घरों में वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने की इच्छा कम होती है, और व्यवसायों को विस्तार करने, उपकरण खरीदने या नई परियोजनाओं में निवेश करने के लिए धन उधार लेने के लिए हतोत्साहित किया जाता है।
    • वस्तुओं और सेवाओं की मांग में बाद में कमी से मजदूरी और अन्य लागतों में गिरावट आती है, जिससे मुद्रास्फीति नियंत्रण में आ जाती है ।
  • फेड द्वारा एक उच्च दर संकेत का मतलब अमेरिका में विकास के लिए कम प्रोत्साहन भी होगा: जो अभी तक वैश्विक विकास के लिए नकारात्मक समाचार हो सकता है, खासकर जब चीन एक रियल एस्टेट संकट के प्रभाव से जूझ रहा है।
  • मुद्रा बाजार: धन के बहिर्प्रवाह से उत्पन्न मुद्रा बाजारों पर भी संभावित प्रभाव पड़ता है।

भारत विशिष्ट प्रभाव

  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक: भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति अधिक होती है और इसलिए, विकसित देशों की तुलना में उच्च ब्याज दरें।
    • इस प्रकार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों सहित निवेशक डॉलर के संदर्भ में अमेरिका में कम ब्याज दरों पर उधार लेते हैं, और ब्याज की उच्च दर अर्जित करने के लिए रुपये के संदर्भ में भारत जैसे देशों के बॉन्ड में उस पैसे का निवेश करते हैं।
  • करेंसी कैरी ट्रेड: जब फेड अपनी नीतिगत दरें बढ़ाता है, तो दोनों देशों की ब्याज दरों के बीच अंतर कम हो जाता है, इस प्रकार भारत जैसे देश करेंसी कैरी ट्रेड के लिए कम आकर्षक हो जाते हैं।
  • आरबीआई की मौद्रिक नीति: फेड के दरों में बढ़ोतरी के फैसले का असर भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति पर भी पड़ेगा।
  • रुपये पर दबाव: भारतीय अर्थव्यवस्था में, दर में वृद्धि घरेलू मुद्रा को और कमजोर कर सकती है, जो पहले ही मूल्यह्रास कर चुकी है।
  • आयातित मुद्रास्फीति: चूंकि भारत सोने, कच्चे तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स का एक बड़ा आयातक है, आयात की बढ़ती लागत से चालू खाता घाटा (सीएडी) और बढ़ने की संभावना है।

प्रमुख चिंताएं/चुनौतियां

  • युद्ध और कोविड: कीमतों में आंशिक रूप से बाहरी कारकों के कारण वृद्धि हुई है जिसमें यूक्रेन में युद्ध और चीन के प्रमुख विनिर्माण केंद्रों में जारी कोविड-19 शटडाउन शामिल हैं।
  • गैस और किराने का सामान की कीमत: फेड की दर में वृद्धि उधार लेने की लागत को और अधिक महंगा बना सकती है और उपभोक्ताओं और व्यवसायों को खर्च कम करने के लिए मजबूर कर अर्थव्यवस्था में मांग को कम कर सकती है।
    • हालाँकि, आपूर्ति के झटकों पर इसका कोई नियंत्रण नहीं है, जो वर्तमान में चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण हो रहा है।
  • सोने की कीमतें बढ़ सकती हैं: सोने की कीमतें बढ़ सकती हैं क्योंकि अधिक लोग अपने पैसे को डायवर्सिफाई करना चाहते हैं और अपना पैसा बैंक डिपॉजिट में नहीं लगाना चाहते हैं।
  • उधार लेने की लागत: जब फेड लक्षित ब्याज दर बढ़ाता है, तो उधार लेने की लागत बढ़ जाती है।
  • नौकरी में कटौती: बढ़ती दरें भी धीमी आर्थिक वृद्धि की अवधि को बढ़ा देंगी, जिसके परिणामस्वरूप छंटनी हो सकती है।

अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा बढ़ोतरी

  • उम्मीद की जाती है कि बैंक ऑफ इंग्लैंड दिसंबर के बाद से अपनी पांचवीं दर वृद्धि की घोषणा करेगा, 2009 के बाद पहली बार अपनी बेंचमार्क दर को 1 प्रतिशत से ऊपर धकेल देगा।
  • ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और कनाडा ने भी दरें बढ़ाई हैं।
  • यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने संकेत दिया है कि यह अगले कुछ महीनों में बढ़ सकता है।

आगे का रास्ता/सुझाव

  • मात्रात्मक सहजता: बांड खरीद कार्यक्रम, जिसे मात्रात्मक सहजता के रूप में भी जाना जाता है, को 2020 में वित्तीय बाजारों और अर्थव्यवस्था को महामारी के प्रभाव का मुकाबला करने में मदद करने के लिए एक असाधारण उपाय के रूप में रखा गया था।
    • यहां, केंद्रीय बैंक पैसे की आपूर्ति बढ़ाने और ऋण देने और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए खुले बाजार से लंबी अवधि की प्रतिभूतियां खरीदता है ।
  • फेड ने अमेरिकी सरकार के ऋण बाजार में परिपक्व ट्रेजरी के प्रारंभिक $15 बिलियन की आय को वापस करने की प्रक्रिया को रोक दिया।

थोक मूल्य सूचकांक

चर्चा में क्यों? 

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किये गए नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) अप्रैल में (-) 0.92 प्रतिशत की अवस्फीति दर के साथ तीन साल के निचले स्तर पर आ गया है जो 33 महीने के बाद नकारात्मकता की ओर इंगित करता है।   

  • अप्रैल 2023 में मुद्रास्फीति की दर में गिरावट मुख्य रूप से बुनियादी धातुओं, खाद्य उत्पादों, खनिज तेलों, कपड़ा, गैर-खाद्य वस्तुओं, रासायनिक एवं रासायनिक उत्पादों, रबर तथा प्लास्टिक उत्पादों एवं कागज़ तथा कागज़ उत्पादों की कीमतों में गिरावट के कारण हुई है।

थोक मूल्य सूचकांक

  • परिचय: 
    • यह थोक व्यवसायों द्वारा अन्य व्यवसायों को थोक में बेची और व्यापार की जाने वाली वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
    • इसे आर्थिक सलाहकार कार्यालय, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
    • यह भारत में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति सूचक है।
    • इस सूचकांक की प्रमुख आलोचना यह की जाती है कि आम जनता उत्पादों को थोक मूल्य पर नहीं खरीदती है।
    • अखिल भारतीय थोक मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष को 2004-05 से वर्ष 2017 में 2011-12 के रूप में संशोधित किया गया है।
  • WPI का भाराँक:
    Economic Development (आर्थिक विकास): May 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi
  • WPI मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले कारक: 
  • उच्च आधार प्रभाव:  
    • विशेषज्ञों का सुझाव है कि उच्च आधार प्रभाव के कारण WPI मुद्रास्फीति के सामान्य रहने की संभावना है।
  • वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में कमी:  
    • वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में गिरावट से विनिर्मित उत्पादों से मुद्रास्फीति को निचले स्तर पर रखने में मदद मिलने का अनुमान है।
  • खाद्य मुद्रास्फीति और मानसून की संभावनाएँ:  
    • बाज़ार की स्थितियों से प्रभावित गेहूँ की कीमतों पर निगरानी रखने की ज़रूरत है।
    • इस बात को लेकर भी चिंता जताई गई है कि मानसून खरीफ फसलों की कीमत को कैसे प्रभावित कर सकता है।

WPI एवं CPI में अंतर

  • WPI उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति का आकलन करता है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) उपभोक्ता स्तर पर कीमतों के स्तर में बदलाव का आकलन करता है।
    • दोनों बास्केट व्यापक अर्थव्यवस्था के भीतर मुद्रास्फीति के रुझान (मूल्य में उतार-चढ़ाव) को मापते हैं, हालाँकि दोनों सूचकांक में भोजन, ईंधन और निर्मित वस्तुओं को अलग-अलग भार दिया जाता है।
  • WPI में सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन का मापन नहीं किया जाता है, जबकि CPI में किया जाता है।
  • WPI में विनिर्मित वस्तुओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है, जबकि CPI में खाद्य पदार्थों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • WPI का आधार वर्ष 2011-2012 है, जबकि CPI का आधार वर्ष 2012 है।

आरबीआई 2000 रुपए के नोट को सर्कुलेशन से हटाएगा 

चर्चा में क्यों? 

19 मई, 2023 को, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने घोषणा की कि वह 2000 रुपये के मूल्यवर्ग के नोटों को प्रचलन से वापस ले लेगा।

  • जबकि मौजूदा नोट लीगल टेंडर बने रहेंगे। आरबीआई ने एक उदार समय सीमा प्रदान की है, जिससे व्यक्ति 30 सितंबर, 2023 तक नोट जमा या विनिमय कर सकते हैं।
  • यह कदम आरबीआई की स्वच्छ नोट नीति का हिस्सा है , जिसका उद्देश्य जनता को बेहतर सुरक्षा सुविधाओं के साथ उच्च गुणवत्ता वाले करेंसी नोट और सिक्के प्रदान करना है।

RBI ने 2000 रुपये के नोट क्यों वापस लिए?

  • 2000 रुपए के नोट की निकासी:
    • आरबीआई ने कहा कि 2000 रुपए के नोटों को वापस लेना उसके मुद्रा प्रबंधन कार्यों का हिस्सा है।
    • विमुद्रीकरण अभ्यास के दौरान 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को वापस लेने के बाद तत्काल मुद्रा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 2016 में 2000 रुपये के नोट पेश किए गए थे ।
      • उपलब्ध अन्य मूल्यवर्ग की पर्याप्त आपूर्ति के साथ, 2018-19 में 2000 रुपये के नोटों की छपाई बंद कर दी गई थी , क्योंकि मुद्रा की आवश्यकता में तेजी लाने का प्रारंभिक उद्देश्य प्राप्त किया गया था।
    • 31 मार्च, 2023 तक , संचलन में 2000 रुपये के नोटों का मूल्य घटकर 3.62 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो प्रचलन में कुल नोटों का केवल 10.8% था।
      • आखिरी बार भारत ने नवंबर 2016 में नोटबंदी की थी , जब सरकार ने जाली नोटों को चलन से हटाने के प्रयास में 500 और 1000 रुपये के नोट वापस ले लिए थे।
      • इस कदम ने अर्थव्यवस्था की 86% मुद्रा को प्रचलन में रातोंरात मूल्य से हटा दिया ।
    • 2000 रुपये के नोटों को बदलना और जमा करना:
      • 2000 रुपये के नोटों की विनिमय सीमा एक समय में 20,000 रुपये निर्धारित की गई है। गैर-खाताधारक भी इन बैंक नोटों को किसी भी बैंक शाखा में बदल सकते हैं।
      • अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) मानदंडों और अन्य लागू नियमों के अनुपालन के अधीन , बैंक खातों में जमा बिना किसी सीमा के किए जा सकते हैं ।
  • प्रभाव:
    • आरबीआई गवर्नर ने कहा कि 2000 रुपये के नोटों को वापस लेने का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर "बहुत मामूली" होगा क्योंकि प्रचलन में मुद्रा का केवल 10.8% हिस्सा है।
      • निकासी से "या तो सामान्य जीवन में या अर्थव्यवस्था में" व्यवधान नहीं होगा क्योंकि अन्य संप्रदायों में बैंक नोटों का पर्याप्त भंडार है।
    • कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा कि उच्च मूल्य के नोट को वापस लेना "विमुद्रीकरण का एक समझदार रूप" है और उच्च ऋण वृद्धि के समय बैंक जमा को बढ़ावा दे सकता है।
      • निकासी से जमा दर में वृद्धि पर दबाव कम हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप अल्पकालिक ब्याज दरों में कमी आ सकती है और इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

क्या है आरबीआई की क्लीन नोट पॉलिसी?

  • स्वच्छ नोट नीति जनता को करेंसी नोट और सिक्के प्रदान करने पर केंद्रित है , जिसमें संचलन से गंदे या पुराने नोटों को वापस लेते समय सुरक्षा सुविधाओं को बढ़ाया गया है ।
    • एक ' मिट्टी नोट' का मतलब एक ऐसा नोट है जो सामान्य टूट-फूट के कारण गंदा हो गया है और इसमें एक साथ चिपका हुआ दो पीस वाला नोट भी शामिल है जिसमें प्रस्तुत किए गए दोनों टुकड़े एक ही नोट के हैं और बिना किसी आवश्यक विशेषता के पूरे नोट को बनाते हैं।
  • 2005 के बाद छपे बैंक नोटों की तुलना में कम सुरक्षा सुविधाओं के कारण 2005 से पहले जारी किए गए सभी बैंक नोटों को आरबीआई ने वापस ले लिया था। हालाँकि , ये पुराने नोट अभी भी कानूनी निविदा हैं और अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के साथ संरेखित करने के लिए वापस ले लिए गए हैं।

भारत में विमुद्रीकरण क्या है?

  • के बारे में:
    • विमुद्रीकरण कानूनी मुद्रा के रूप में अपनी स्थिति की एक मुद्रा इकाई को छीनने का कार्य है । धन के वर्तमान रूप या रूपों को संचलन से खींच लिया जाता है और सेवानिवृत्त कर दिया जाता है, जिसे अक्सर नए नोटों या सिक्कों से बदल दिया जाता है।
  • भारत में वैधता:
    • भारत में विमुद्रीकरण का कानूनी आधार भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26(2) है, जो सिफारिश पर केंद्र सरकार को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बैंक नोटों की किसी भी श्रृंखला को कानूनी निविदा नहीं घोषित करने का अधिकार देती है। आरबीआई का।
    • भारत भर की विभिन्न अदालतों में दायर कई याचिकाओं में विमुद्रीकरण की वैधता को चुनौती दी गई थी
      • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने विमुद्रीकरण को वैध ठहराया और कहा कि 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों का विमुद्रीकरण आनुपातिकता के परीक्षण को संतुष्ट करता है।
        • आनुपातिकता का परीक्षण यह दर्शाता है कि क्या विमुद्रीकरण के लाभ लागत से अधिक हैं।
        • आनुपातिकता के परीक्षण को संतुष्ट करने के लिए, विमुद्रीकरण के लाभ पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण होने चाहिए जो इसके कारण होने वाली लागतों और व्यवधानों को उचित ठहरा सकें।
  • लाभ:
    • मुद्रा का स्थिरीकरण: विमुद्रीकरण का उपयोग मुद्रा को स्थिर करने और मुद्रास्फीति से लड़ने, व्यापार को सुविधाजनक बनाने, जालसाजी पर अंकुश लगाने और बाजारों तक पहुंच बनाने और अनौपचारिक आर्थिक गतिविधियों को अधिक पारदर्शिता और काले और ग्रे बाजारों से दूर करने के लिए एक उपकरण के रूप में किया गया है।
    • काले धन पर अंकुश लगाना: सरकार ने तर्क दिया कि विमुद्रीकरण कर चोरी करने वालों, भ्रष्ट अधिकारियों, अपराधियों और आतंकवादियों द्वारा नकद में रखे गए काले धन या बेहिसाब आय को बाहर निकाल देगा।
      • इससे सरकार का कर आधार और राजस्व बढ़ेगा और देश में भ्रष्टाचार और अपराध कम होंगे।
    • डिजिटलीकरण को बढ़ावा देता है: यह वाणिज्यिक लेनदेन के डिजिटलीकरण को भी प्रोत्साहित करता है , अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाता है और इसलिए, सरकार के कर राजस्व को बढ़ाता है। यह भुगतान प्रणाली में पारदर्शिता, दक्षता और सुविधा में भी सुधार करता है और मुद्रा की छपाई और प्रबंधन की लागत को कम करता है।
      • अर्थव्यवस्था के औपचारिककरण का अर्थ है कंपनियों को सरकार के नियामक शासन के तहत लाना और विनिर्माण और आयकर से संबंधित कानूनों के अधीन।
  • नुकसान:
    • अस्थायी मंदी: विमुद्रीकरण के दौरान रूपांतरण प्रक्रिया आर्थिक गतिविधियों में अस्थायी मंदी का कारण बन सकती है।
      • पुरानी मुद्रा की अचानक वापसी और नई मुद्रा की सीमित उपलब्धता के कारण होने वाला व्यवधान व्यापार लेनदेन, उपभोक्ता खर्च और समग्र आर्थिक उत्पादकता में बाधा उत्पन्न कर सकता है ।
    • प्रशासनिक लागत: विमुद्रीकरण को लागू करने में पर्याप्त प्रशासनिक लागतें शामिल हैं। नए करेंसी नोटों की छपाई , एटीएम को रीकैलिब्रेट करना और परिवर्तनों के बारे में जानकारी का प्रसार करना महंगा हो सकता है।
      • ये लागत आम तौर पर सरकार द्वारा वहन की जाती है, जो सार्वजनिक वित्त को प्रभावित कर सकती है और संसाधनों को अन्य आवश्यक क्षेत्रों या सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रमों से हटा सकती है।
    • नकदी संचालित क्षेत्रों पर प्रभाव : खुदरा, आतिथ्य और छोटे व्यवसायों जैसे नकद संचालित क्षेत्रों को विमुद्रीकरण के दौरान काफी नुकसान हो सकता है।
      • छोटे व्यवसाय, विशेष रूप से कम लाभ मार्जिन पर काम करने वाले , नई भुगतान प्रणालियों के अनुकूल होने के लिए संघर्ष कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बिक्री कम हो सकती है, छंटनी हो सकती है और चरम मामलों में व्यापार बंद हो सकता है।

भारत में कानूनी निविदा क्या है?

  • के बारे में:
    • एक कानूनी निविदा मुद्रा का एक रूप है जिसे कानून द्वारा ऋण या दायित्वों को निपटाने के लिए स्वीकार्य साधन के रूप में मान्यता प्राप्त है।
      • आरबीआई यह निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार है कि लेनदेन के लिए मुद्रा के किस रूप को वैध माना जाता है।
    • इसमें सिक्का अधिनियम, 2011 की धारा 6 के तहत भारत सरकार द्वारा जारी किए गए सिक्के और आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 26 के तहत भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए बैंक नोट शामिल हैं।
      • सरकार 1,000 रुपये तक के सभी सिक्के और 1 रुपये का नोट जारी करती है।
      • आरबीआई ₹ 1 नोट के अलावा अन्य करेंसी नोट जारी करता है।
  • प्रकार:
    • कानूनी निविदा प्रकृति में सीमित या असीमित हो सकती है।
      • भारत में, सिक्के सीमित वैध मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं। एक रुपये के बराबर या उससे अधिक मूल्यवर्ग के सिक्कों को एक हजार रुपये तक की राशि के लिए कानूनी निविदा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
        • इसके अतिरिक्त, पचास पैसे (आधा रुपये) के सिक्कों को दस रुपये तक की राशि के लिए कानूनी निविदा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है ।
    • बैंकनोट उन पर बताई गई किसी भी राशि के लिए असीमित कानूनी निविदा के रूप में कार्य करते हैं।
      • हालांकि, काले धन पर अंकुश लगाने के लिए वित्त अधिनियम 2017 द्वारा किए गए उपायों के परिणामस्वरूप आयकर अधिनियम में एक नई धारा 269ST जोड़ी गई थी ।
      • एक नकद लेनदेन धारा 269ST द्वारा प्रतिबंधित था और केवल रुपये तक के मूल्य की अनुमति थी। 2 लाख प्रति दिन।

खाद्य तेल की कीमतें एवं भारत के लिये महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

खाद्य तेलों के संदर्भ में पिछले 2-3 वर्षों में गंभीर मूल्य अस्थिरता का अनुभव किया गया है।

  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (UN Food and Agriculture Organization) के वैश्विक वनस्पति तेल मूल्य सूचकांक ने मई 2020 में वैश्विक कोविड लॉकडाउन के चरम के दौरान 77.8 अंक (वर्ष 2014-16 आधार अवधि मूल्य = 100) की गंभीर गिरावट का अनुभव किया। हालाँकि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद मार्च 2022 में यह 251.8 अंकों के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया है।

खाद्य तेल की कीमत में अस्थिरता के कारक

  • यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष के दौरान काला सागर बंदरगाह के बंद होने के कारण विश्व भर में इस तिलहन की आपूर्ति बाधित हुई थी।
    • वर्ष 2021-22 में यूक्रेन और रूस का वैश्विक उत्पादन में लगभग 58% हिस्सा था, अतः संघर्ष के परिणामस्वरूप कीमतों में व्यापक वृद्धि देखी गई।
  • संयुक्त राष्ट्र और तुर्किये की मध्यस्थता से रूस एवं यूक्रेन के बीच ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव समझौते के साथ स्थिति में बदलाव आया। इस समझौते ने यूक्रेनी बंदरगाहों से अनाज एवं खाद्य पदार्थों को ले जाने वाले जहाज़ों के सुरक्षित नेविगेशन की सुविधा प्रदान की।
  • इससे यूक्रेन से संचित सूरजमुखी तेल, भोजन और बीज का निर्यात किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय वनस्पति तेल की कीमतें युद्ध-पूर्व स्तरों से नीचे गिर गईं।

भारत के संदर्भ में इसका प्रभाव

  • लागत में कमी: 
    • भारत में सूरजमुखी के तेल के आयात से देश में खाद्य तेलों की कीमतों में काफी कमी आने की संभावना है। सूरजमुखी के तेल का आयात, जिसकी आयातित लागत लगभग 950 अमेरिकी डॉलर प्रति टन है, कर भारत में खाद्य तेलों की कुल लागत को कम किया जा सकता है। 
  • उपभोक्ताओं पर प्रभाव: 
    • जब कीमतें बढ़ गईं तो कई घरों और संस्थागत उपभोक्ताओं जैसे- रेस्तराँ एवं कैंटीन में सूरजमुखी के तेल से सोयाबीन तेल या स्थानीय तेलों जैसे अपेक्षाकृत सस्ते विकल्पों की ओर संक्रमण किया।
    • हालाँकि आयात प्रवाह और मूल्य समानता पूर्व की स्थिति में बहाल हो गई है, जिससे उपभोक्ता सूरजमुखी तेल के उपयोग पर ज़ोर दे रहे हैं।
  • बाज़ार विस्तार: 
    • सूरजमुखी परंपरागत रूप से कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में उगाया जाता है।
      • देश के सूरजमुखी तेल की कुल खपत का लगभग 70% की आपूर्ति दक्षिण भारत की जाती है, शेष खपत महाराष्ट्र (10-15%) और अन्य राज्यों में होती है।
    • यह क्षेत्रीय संकेद्रता सूरजमुखी तेल के उत्पादों हेतु पर्याप्त बाज़ार प्रस्तुत करती है।
  • मांग को पूरा करना: 
    • पिछले एक दशक में सूरजमुखी के तेल का घरेलू उत्पादन स्तर बहुत अधिक गिर गया है। यह गिरावट देश में सूरजमुखी तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये आयात के अवसर प्रदान करती है।
    • घरेलू उत्पादन में गिरावट और कुछ क्षेत्रों में सूरजमुखी तेल को प्राथमिकता देना सूरजमुखी तेल के आयात की संभावना को बढ़ाती है। ब्रांडेड सूरजमुखी तेल के लिये बाज़ार की मांग को पूरा करने में आयातक और विक्रेता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

भारत में खाद्य तेल की खपत का परिदृश्य

  • भारत सालाना 23.5-24 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत करता है, जिसमें से 13.5-14 मिलियन टन आयात किया जाता है और शेष 9.5-10 मिलियन टन का घरेलू उत्पादन करता है।
  • सरसों का तेल (3-3.5 मिलियन टन), सोयाबीन तेल (4.5-5 मिलियन टन) और ताड़ का तेल (8-8.5 मिलियन टन) के बाद सूरजमुखी तेल (2-2.5 मिलियन टन) चौथा सबसे बड़ा खपत वाला खाद्य तेल है।
    • सूरजमुखी और ताड़ के तेल दोनों का लगभग पूर्ण रूप से आयात किया जाता है, जिनका घरेलू उत्पादन मुश्किल से क्रमशः 50,000 टन और 0.3 मिलियन टन है।
    • यह सरसों और सोयाबीन के विपरीत है, जहाँ घरेलू उत्पादन का हिस्सा क्रमशः 100% और 30-32% के करीब है।

Economic Development (आर्थिक विकास): May 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

भारत में कुकिंग ऑयल से संबंधित पहल

  • सरकार ने केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में खाद्य तेलों-ऑयल पाम पर राष्ट्रीय मिशन शुरू किया, जिसे पूर्वोत्तर क्षेत्र और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में विशेष ध्यान देने के साथ केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • वर्ष 2025-26 तक ताड़ के तेल के लिये अतिरिक्त 6.5 लाख हेक्टेयर का प्रस्ताव है।
  • वनस्पति तेल क्षेत्र में डेटा प्रबंधन प्रणाली को बेहतर बनाने और व्यवस्थित करने के लिये खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के तहत चीनी तथा वनस्पति तेल निदेशालय ने मासिक आधार पर वनस्पति तेल उत्पादकों द्वारा ऑनलाइन इनपुट जमा करने हेतु एक वेब-आधारित प्लेटफॉर्म (evegoils.nic.in) विकसित किया है।
    • पोर्टल ऑनलाइन पंजीकरण और मासिक उत्पादन रिटर्न जमा करने के लिये एक विंडो भी प्रदान करता है।
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