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The Hindi Editorial Analysis- 6th July 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

शंघाई सहयोग संगठन में ईरान की सदस्यता और 'पश्चिम-विरोधी' धारणा


सन्दर्भ:

  • हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के नौवें सदस्य के रूप में ईरान के शामिल होने से संगठन की 'पश्चिम-विरोधी' छवि को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
  • 'शंघाई फाइव' समूह से उत्पन्न SCO का उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना, सीमा पर तनाव कम करना और आतंकवाद से मुकाबला करना है।

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की पृष्ठभूमि:

  • SCO का गठन प्रारम्भ में वर्ष 1996 में रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ 'शंघाई फाइव' के रूप में किया गया था।
  • वर्ष 2001 में, उज़्बेकिस्तान इसमें शामिल हुआ और संगठन का नाम बदलकर SCO कर दिया गया। इसमें दो स्थायी निकाय शामिल हैं।
  • वर्तमान समय में एससीओ सचिवालय बीजिंग में और क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना की कार्यकारी समिति ताशकंद में स्थित है।

SCO के उद्देश्य:

  • SCO के मुख्य लक्ष्यों में सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास को मजबूत करना, राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और संस्कृति में सहयोग को बढ़ावा देना, क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखना और एक नई अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की वकालत करना आदि शामिल है।
  • एक नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करने की SCO की महत्वाकांक्षा ने पश्चिम देशों में चिंताएँ बढ़ा दी हैं, जिसके कारण संगठन को 'नाटो-विरोधी' पहचान दिया गया है।

द्विपक्षीय मुद्दे और SCO की भूमिका:

  • भारत और पाकिस्तान वर्ष 2005 में पर्यवेक्षकों के रूप में SCO में शामिल हुआ और वर्ष 2017 में पूर्ण सदस्य बन गया।
  • अपने तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के बावजूद, दोनों देश सैन्य और आतंकवाद विरोधी अभ्यासों सहित SCO बैठकों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
  • SCO ने सीमा मुद्दों पर भारत और चीन के बीच चर्चा को भी सुविधाजनक बनाया है। इस जुड़ाव ने मतभेदों के बावजूद भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत और सहयोग के लिए एक मंच प्रदान किया है।

ईरान की सदस्यता का महत्व:

  • SCO में ईरान का प्रवेश रणनीतिक महत्व रखता है। SCO का हालिया ध्यान क्षेत्रीय सम्पर्क की सुदृढ़ता की ओर स्थानांतरित हो गया है, जो ईरान के चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के माध्यम से भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं के अनुरूप है।
  • SCO में ईरान की उपस्थिति पाकिस्तान को दरकिनार करने के भारत के प्रयासों के लिए समर्थन सुनिश्चित करती है और मध्य एशियाई राज्यों के साथ व्यापार संबंधों को मजबूत करती है।
  • इसके अतिरिक्त, ईरान के शामिल होने से भारत चीन की वन बेल्ट एंड वन रोड पहल में उलझे बिना इस क्षेत्र से जुड़ने में सक्षम हो गया है।
  • इसके अलावा, भारत के साथ ईरान के ऐतिहासिक संबंध और पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आतंकवाद के बारे में इसकी साझा चिंताएं आतंक की सुरक्षित पनाहगाहों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भारत के आह्वान को बढ़ाएंगी।

चुनौतियाँ और निहितार्थ:

  • ईरान की सदस्यता SCO की 'पश्चिम-विरोधी' मंच के रूप में धारणा को गहरा कर सकती है। ईरान और रूस दोनों को गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है, और अगले साल बेलारूस के शामिल होने की उम्मीद इस छवि को और मजबूत करेगी।
  • अमेरिका ने ईरान पर रूस को हथियार सप्लाई करने का आरोप लगाया है, जिससे चिंताएं और बढ़ गई हैं। चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) के साथ भारत के बढ़ते संबंध SCO के साथ संबंध बनाए रखने में उसके संतुलन कार्य को भी जटिल बनाते हैं।

निष्कर्ष:

SCO में ईरान का शामिल होना सदस्य देशों के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों लाता है। यद्यपि यह भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं का समर्थन करता है और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को मजबूत करता है, यह SCO की 'पश्चिम-विरोधी' संगठन के रूप में धारणा को भी बढ़ाता है। अलग-अलग गतिशीलता और हितों को देखते हुए, SCO और क्वाड के साथ भारत की गतिविधियों को संतुलित करना महत्वपूर्ण हो जाता है।

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