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Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): June 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

विश्व मरुस्थलीकरण दिवस 2023

चर्चा में क्यों?

विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस प्रत्येक वर्ष 17 जून को मनाया जाता है।

  • इस वर्ष की थीम है “उसकी भूमि। उसके अधिकार (Her Land. Her Rights)” जो महिलाओं के भूमि अधिकारों पर केंद्रित है तथा वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता और भूमि क्षरण तटस्थता के परस्पर वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने एवं कई अन्य सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) की उन्नति में योगदान देने हेतु आवश्यक है।

विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस

  • पृष्ठभूमि:
    • मरुस्थलीकरण को जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के क्षति के साथ ही वर्ष 1992 के रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान सतत् विकास हेतु सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप में पहचाना गया।
    • दो वर्ष बाद वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक् राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) की स्थापना की, जो पर्यावरण एवं विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता था तथा 17 जून को "विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवसघोषित किया गया।
    • बाद में वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2010-2020 को UNCCD सचिवालय के नेतृत्व में भूमि क्षरण रोकथाम हेतु वैश्विक कार्रवाई को गति देने के लिये मरुस्थलीकरण हेतु संयुक्त राष्ट्र दशक एवं मरुस्थलीकरण रोकथाम की घोषणा की।
  • संबोधित मुद्दे
    • भूमि पर महिलाओं का नियंत्रण महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि उनके पास अक्सर अधिकारों की कमी होती है एवं उन्हें विश्व भर में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। यह उनकी भलाई एवं समृद्धि को सीमित करता है, विशेषकर जब भूमि क्षरण तथा जल की कमी होती है।
      • भूमि तक महिलाओं की पहुँच सुनिश्चित करने का अर्थ है कि यह भविष्य के लिये महिलाओं और मानवता के हित में है
    • महिलाओं और बालिकाओं के पास अक्सर भूमि संसाधनों तक पहुँच और नियंत्रण नहीं होने के कारण मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण एवं सूखा का उन पर असमान रूप से प्रभाव पड़ता है। कम कृषीय उपज और जल की कमी सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाले कारक हैं।
    • अधिकांश देशों में महिलाएँ भूमि तक असमान और सीमित पहुँच एवं नियंत्रण की समस्या से जूझ रही हैं। कई जगहों पर महिलाएँ भेदभावपूर्ण कानूनों तथा प्रथाओं के अधीन हैं, जो विरासत के उनके अधिकार के साथ-साथ सेवाओं और संसाधनों तक उनकी पहुँच को बाधित करते हैं।
  • लैंगिक समानताएक अपूर्ण लक्ष्य
    • UNCCD के एक प्रमुख अध्ययन " डिफरेंशिएटेड इम्पैक्ट्स ऑफ डेज़र्टिफिकेशनलैंड डिग्रेडेशन एंड ड्रॉट ऑन वीमेन एंड मेन" के अनुसार, विश्व के लगभग हर हिस्से में लैंगिक समानता का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है।
      • वर्तमान में वैश्विक कृषि कार्यबल का लगभग आधा हिस्सा महिलाएँ हैं, फिर भी विश्व भर में पाँच भूमिधारकों में महिलाओं की संख्या एक से भी कम है।
    • प्रथागत, धार्मिक, या पारंपरिक नियमों और प्रथाओं के तहत 100 से भी अधिक ऐसे देश हैं जहाँ महिलाएँ अपने पति की संपत्ति को प्राप्त करने के अधिकार से वंचित हैं
    • विश्व स्तर पर महिलाएँ प्रतिदिन सामूहिक रूप से 200 मिलियन घंटे जल का प्रबंध करने में लगाती हैं। कुछ देशों में एक बार जल लाने के लिये आने-जाने में एक घंटे से भी अधिक समय लग जाता है।

शुरू की गई पहलें और सुझाव

  • वैश्विक अभियान
    • भागीदारों, प्रभावशाली व्यक्तित्वों के साथ मिलकर UNCCD ने महिलाओं और बालिकाओं द्वारा स्थायी भूमि प्रबंधन में उत्कृष्टता, उनके नेतृत्व और प्रयासों को मान्यता देने के लिये एक वैश्विक अभियान की शुरुआत की है।
  • सुझाव
    • सरकारें भेदभाव को समाप्त करने और भूमि तथा संसाधनों पर महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने वाले कानूनों, नीतियों एवं प्रथाओं को बढ़ावा दे सकती हैं।
    • व्यवसाय क्षेत्र महिलाओं और लड़कियों को अपने निवेश में प्राथमिकता दे कर वित्त एवं प्रौद्योगिकी तक पहुँच की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
    • भूमि को पुनर्स्थापित करने वाली महिला-नेतृत्व वाली पहलों का समर्थन किया जा सकता है।

मरुस्थलीकरण में कमी के लिये संबंधित पहल

भारतीय पहल

  • एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम, 2009-10:
    • यह भूमि संसाधन विभागग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण परिवेश में रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण एवं विकास करके पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना है।
  • मरुस्थल विकास कार्यक्रम:
    • इसे वर्ष 1995 में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और चिह्नित रेगिस्तानी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आधार को पुनः जीवंत करने हेतु शुरू किया गया था।
  • राष्ट्रीय हरित भारत मिशन:
    • इसे वर्ष 2014 में अनुमोदित किया गया था तथा 10 वर्ष की समय-सीमा के साथ भारत के घटते वन आवरण के संरक्षण, बहाली एवं वृद्धि के उद्देश्य से पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत लागू किया गया था।

वैश्विक पहल:

  • बॉन चैलेंज:
    • बॉन चुनौती एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया की 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर वर्ष 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 2030 तक वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
    • पेरिस में UNFCCC कॉन्फ्रेंस ऑफ  पार्टीज़ (COP) 2015 में भारत भी वर्ष 2030 तक 21 मिलियन हेक्टेयर बंजर और वनों की कटाई वाली भूमि को बहाल करने के लिये स्वैच्छिक बॉन चैलेंज प्रतिज्ञा में शामिल हुआ।
      • वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर और वनों की कटाई वाली भूमि को बहाल करने के लिये अब लक्ष्य को संशोधित किया गया है।

सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) की एक प्रयोगशाला, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (Indian Institute of Petroleum- IIP) ने बोइंगइंडिगोस्पाइसजेट और तीन टाटा एयरलाइंसएयर इंडियाविस्तारा और एयरएशिया इंडिया के साथ सतत् विमानन ईंधन के उत्पादन के लिये साझेदारी की है।

सतत् विमानन ईंधन/सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल

  • परिचय:
    • इसे बायो-जेट फ्यूल भी कहा जाता है, इसके उत्पादन राष्ट्रीय स्तर पर विकसित तकनीकों का उपयोग करके किया जाता है जिसमें खाना पकाने के तेल और उच्च तेल वाले पौधों के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
    • ASTM इंटरनेशनल द्वारा ASTM D4054 प्रमाणीकरण के लिये आवश्यक मानकों को पूरा करने हेतु संस्थानों द्वारा उत्पादित इस ईंधन के नमूनों का संयुक्त राष्ट्र फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन क्लीयरिंग हाउस में सख्त परीक्षण किया जा रहा है
  • उत्पादन का स्रोत:
    • CSIR-IIP ने गैर-खाद्य और खाद्य तेलों के साथ-साथ खाना पकाने के लिये उपयोग में लाए जाने वाले तेल जैसे विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके ईंधन तैयार किया है।
    • उन्होंने पाम स्टीयरिनसैपियम ऑयलपाम फैटी एसिड डिस्टिलेट्सशैवाल तेलकरंजा और जेट्रोफा सहित विभिन्न स्रोतों का इस्तेमाल किया।
  • भारत में सतत् विमानन ईंधनउत्पादन के लाभ:
    • भारत में SAF के उत्पादन और उपयोग को बढ़ाने से GHG उत्सर्जन को कम करनेवायु गुणवत्ता में सुधारऊर्जा सुरक्षा में वृद्धिनवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार सृजित करने तथा संधारणीय विकास को बढ़ावा देने सहित कई लाभ मिल सकते हैं।
    • यह विमानन उद्योग को अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में योगदान करने में भी मदद कर सकता है।
    • विमानन के लिये जैव ईंधन को नियमित जेट ईंधन के साथ मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। पारंपरिक ईंधन की तुलना में इसमें सल्फर की मात्रा कम होती है जो वायु प्रदूषण को कम कर सकता है और शुद्ध शून्य उत्सर्जन को प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य में योगदान दे सकता है।
    • विमानन हेतु जैव ईंधन को नियमित जेट ईंधन के साथ मिलाकर एक साथ उपयोग किया जा सकता है। पारंपरिक ईंधन की तुलना में इसमें सल्फर की मात्रा कम होती है, जो वायु प्रदूषण को कम कर सकता है एवं नेट ज़ीरो (शुद्ध शून्यउत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य का समर्थन कर सकता है।

विश्व में SAF को बढ़ावा देने हेतु पहल

  • CORSIA प्रोग्राम: अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) ने विमानन उत्सर्जन को उजागर करने हेतु कार्बन ऑफसेटिंग एंड रिडक्शन स्कीम फॉर इंटरनेशनल एविएशन (CORSIA) की स्थापना की है।
    • CORSIA एयरलाइनों को वर्ष 2020 के स्तर से ऊपर किसी भी उत्सर्जन को ऑफसेट करने की आवश्यकता है और यह प्राथमिक रूप से उत्सर्जन को कम करने हेतु SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • क्लीन स्काई फॉर टुमारो पहल: विश्व आर्थिक मंच ने क्लीन स्काई फॉर टुमारो पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य SAF के उत्पादन और उपयोग में तेज़ी लाना है।
    • यह पहल SAF उत्पादन को विकसित करने और बढ़ाने में सहयोग करने हेतु विमाननईंधन एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के हितधारकों को एक साथ लाती है।
  • SAF सम्मिश्रण लक्ष्य:
    • यूरोपीय संघ ने विमानन से GHG उत्सर्जन को कम करने हेतु स्थायी विमानन ईंधन हेतु सम्मिश्रण लक्ष्य स्थापित किये हैं जिसका उद्देश्य समय के साथ विमानन ईंधन में SAF के उपयोग को बढ़ाना है।
      • वर्ष 2025 से गैसोलीन और मिट्टी तेल से बने पारंपरिक जेट ईंधन के साथ SAF का सम्मिश्रण प्रतिशत से शुरू होगा
        • वर्ष 2050 में 63 प्रतिशत SAF सम्मिश्रण तक पहुँचने के लक्ष्य के साथ सम्मिश्रण लक्ष्य प्रत्येक पाँच साल में बढ़ेगा
  • सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट और SAF उत्पादन प्रोत्साहन:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में सतत् विमानन ईंधन (SAF) के उपयोग और उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये अमेरिकी कॉन्ग्रेस ने मई 2021 में सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट पेश किया।
    • सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट अमेरिका में SAF-उत्पादक सुविधाओं की संख्या बढ़ाने के लिये पाँच वर्षों में 1 बिलियन डॉलर का अनुदान प्रदान करता है।
  • नोटईंधन के कुछ अन्य स्थायी स्रोत जिन पर भारत काम कर रहा हैमें शामिल हैं:
    • बायोडीज़ल
    • पारंपरिक ईंधन में इथेनॉल सम्मिश्रण
    • हाइड्रोजन ईंधन सेल
  • SAF से जुड़ी चुनौतियाँ:
    • उच्च लागत: SAF के उत्पादन की लागत वर्तमान में पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में अधिक है, जिससे एयरलाइनों के लिये SAF उत्पादन और उपयोग में निवेश करना आर्थिक रूप से कम व्यवहार्य हो जाता है।
    • संसाधन उपलब्धता: SAF के उत्पादनभंडारण और वितरण के लिये सीमित बुनियादी ढाँचा है, जिससे SAF के उत्पादन एवं आपूर्ति को बढ़ाना मुश्किल हो जाता है।
    • फीडस्टॉक उपलब्धता: SAF उत्पादन के लिये फीडस्टॉक की उपलब्धता सीमित है और खाद्य तथा कृषि क्षेत्रों जैसे अन्य उद्योगों के बीच संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा है।
    • प्रमाणन: SAF के लिये प्रमाणन प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली है तथा SAF उत्पादन के लिये विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों की कमी है।
    • जन जागरूकतासार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और SAF के लाभों की समझ बढ़ाने तथा नीति निर्माताओं एवं निवेशकों से अधिक समर्थन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • निवेश में वृद्धि: सरकारों, एयरलाइंस और निवेशकों को लागत कम करने तथा उपलब्धता बढ़ाने के लिये SAF उत्पादन एवं बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। इसमें R&D के वित्तपोषण के साथ-साथ नई सुविधाओं का निर्माण करना और SAF के उत्पादन हेतु मौजूदा सुविधाओं को जारी रखना शामिल है।
  • समर्थन नीति और नियामक ढाँचे: सरकारें SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करने वाली नीति और नियामक ढाँचे को लागू कर सकती हैं, जैसे- कर प्रोत्साहन, सब्सिडी और SAF के एक निश्चित प्रतिशत का उपयोग करने के लिये एयरलाइनों हेतु आदेश
  • सहयोग को प्रोत्साहित करना: एयरलाइंस, ईंधन उत्पादकों और अनुसंधान संस्थानों सहित हितधारकों के बीच सहयोग से अधिक एकीकृत और कुशल SAF आपूर्ति शृंखला बनाने में मदद मिल सकती है।
  • जन जागरूकता को बढ़ावा देना: यह SAF के लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता और टिकाऊ विमानन की आवश्यकता की मांग बढ़ाने तथा नीति निर्माताओं एवं निवेशकों को अधिक समर्थन के लिये प्रोत्साहित कर सकता है
  • नए फीडस्टॉक स्रोत विकसित करना: SAF उत्पादन के लिये नए फीडस्टॉक स्रोत विकसित करने हेतु अनुसंधान में निवेश, जैसे- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और कृषि अपशिष्ट, फीडस्टॉक उपलब्धता बढ़ाने तथा अन्य उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को कम करने में मदद कर सकता है।

बॉन जलवायु सत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पेरिस समझौते के प्रतिनिधियों ने जर्मनी स्थित बॉन में एक सत्र का आयोजन किया, इसमें वर्ष 2023 में दुबई में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP 28) को लेकर कुछ प्रमुख निर्णय लिये गए।

  • दुबई में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP 28) को बॉन सत्र के अंत में साझा किये गए "अनौपचारिक नोट" द्वारा निर्देशित किया जाएगा।

सत्र के प्रमुख बिंदु

  • ग्लोबल स्टॉकटेक:
    • ग्लोबल स्टॉकटेक पर तकनीकी चर्चा में स्टॉकटेक अभ्यास में शामिल किये जाने वाले तत्त्वों की एक संक्षिप्त रूपरेखा तैयार की गई।
    • ग्लोबल स्टॉकटेक वर्ष 2015 के पेरिस समझौते द्वारा अनिवार्य की गई एक प्रक्रिया है, यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने हेतु उपायों का मूल्यांकन करती है और फंडिंग गैप/वित्तीयन अंतर को भरने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को मज़बूत करने हेतु रणनीतियाँ तैयार करती है।
      • पेरिस समझौते के अनुसार, वर्ष 2023 से GST की बैठक प्रत्येक पाँच वर्ष में होनी चाहिये। GST को लेकर वास्तविक बैठक COP28 में होगी।
  • वर्ष 2030 के बाद की महत्त्वाकांक्षा को आगे बढ़ाना:
    • पार्टियों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने बैठक का उपयोग वर्ष 2030 के बाद की महत्त्वाकांक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिये किया है जो विशेष रूप से ग्लोबल स्टॉकटेक पर काम को आगे बढ़ाने पर केंद्रित थी।
    • यह विकासशील देशों के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अपनाने तथा वित्तीय एवं तकनीकी संसाधन जुटाने के प्रयासों को सुदृढ़ करना चाहता है।
  • हानि और क्षति के लिये धन की व्यवस्था:
    • जलवायु परिवर्तन से होने वाली हानि और क्षति (L&D) को संबोधित करने हेतु संतुलित वित्तपोषण व्यवस्था को लागू करने पर चर्चा हुई विशेष रूप से कमज़ोर समुदायों के लिये।
    • सैंटियागो नेटवर्क के परिचालन में हानि और क्षति के बावजूद नेटवर्क होस्ट का मुद्दा अनसुलझा रहा।
      • सैंटियागो नेटवर्क का उद्देश्य प्रासंगिक संगठनोंनिकायोंनेटवर्क और विशेषज्ञों की तकनीकी सहायता को उत्प्रेरित करना है जो विकासशील देशों में स्थानीय, राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर हानि तथा क्षति को टालनेकम करने तथा संबोधित करने में प्रासंगिक दृष्टिकोणों के कार्यान्वयन हेतु विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव के कारण कमज़ोर हैं।
  • जलवायु वित्त संरेखण:
    • यूरोपीय संघ पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ वैश्विक वित्तीय प्रवाहों को संरेखित करने की आवश्यकता पर बल देता है।
    • इसमें दाताओं के पूल की जाँच करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि वित्तीय सहायता का पैमाना जलवायु संकट को दूर करने की आवश्यकताओं से मेल खाता हो।
    • यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों ने COP28 में जलवायु वित्त को संबोधित करने के महत्त्व पर बल दिया।
  • वर्ष 2025 के बाद का जलवायु वित्त लक्ष्य और धन की व्यवस्था:
    • वर्ष 2025 के बाद के जलवायु वित्त लक्ष्य में हानि और क्षति के लिये फंड सहित धन की व्यवस्था के संबंध में तकनीकी विशेषज्ञ संवादों में रचनात्मक एवं ठोस चर्चा हुई।
  • अनुकूलन की तत्परता:
    • यूरोपीय संघ सहित विकसित देश अनुकूलन आवश्यकताओं को संबोधित करने को तात्कालिक रूप से स्वीकार करते हैं।
    • वे कमज़ोर समुदायों की सहायता करने में प्रमाणित अनुभव और विशेषज्ञता के साथ वर्तमान व्यवस्थाओं एवं संस्थानों को मज़बूत करके समर्थन बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।

अंतर-सरकारी वार्ता समिति: UNEP

संदर्भ

पांचवीं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रकृति के लिए कार्यों को मजबूत करने के 14 प्रस्तावों के साथ नैरोबी में संपन्न हुई।

  • असेंबली 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से बनी है और वैश्विक पर्यावरण प्रशासन को आगे बढ़ाने के लिए हर दो साल में बुलाई जाती है 
  • पर्यावरण के लिए दुनिया के मंत्री प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता बनाने के लिए एक अंतर सरकारी वार्ता समिति स्थापित करने पर सहमत हुए ।
  • दूसरा प्रमुख संकल्प रसायनों और अपशिष्टों के ठोस प्रबंधन और प्रदूषण को रोकने पर एक व्यापक और महत्वाकांक्षी विज्ञान नीति पैनल की स्थापना करना था।
  • पारिस्थितिकी तंत्र बहाली के लिए संयुक्त राष्ट्र दशक की भावना में , तीसरा प्रमुख संकल्प प्रकृति-आधारित समाधानों पर केंद्रित है : पारिस्थितिकी प्रणालियों की रक्षा, संरक्षण, पुनर्स्थापन, सतत उपयोग और प्रबंधन के लिए कार्रवाई। यह यूएनईपी से समुदायों और स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा करने का आह्वान करता है।

अपनाए गए संकल्प हैं

  • खनिजों और धातुओं पर एक प्रस्ताव उनके पूर्ण जीवनचक्र के साथ उनकी पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाने के लिए प्रस्तावों के विकास का आह्वान करता है
  • स्थायी झील प्रबंधन पर एक प्रस्ताव सदस्य राज्यों से झीलों की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्स्थापन के साथ-साथ झीलों को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विकास योजनाओं में एकीकृत करते हुए स्थायी रूप से उपयोग करने का आह्वान करता है।
  • टिकाऊ और लचीले बुनियादी ढांचे पर एक प्रस्ताव सदस्य देशों को अपनी सभी बुनियादी ढांचा योजनाओं में पर्यावरणीय विचारों को एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • पशु कल्याण पर एक प्रस्ताव सदस्य राज्यों से जानवरों की रक्षा करने, उनके आवासों की रक्षा करने और उनकी कल्याण आवश्यकताओं को पूरा करने का आह्वान करता है।
  • जैव विविधता और स्वास्थ्य पर एक प्रस्ताव सदस्य देशों से विनियमन और स्वच्छता नियंत्रण के माध्यम से भोजन, बंदी प्रजनन, दवाओं और पालतू जानवरों के व्यापार के लिए पकड़े गए जीवित वन्यजीवों के व्यापार से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने का आह्वान करता है।
  • सभी स्रोतों से नाइट्रोजन अपशिष्ट को उल्लेखनीय रूप से कम करने के लिए कार्यों में तेजी लाने का संकल्प , विशेष रूप से कृषि पद्धतियों के माध्यम सेऔर सालाना 100 अरब डॉलर की बचत।
  • टिकाऊ, लचीले और समावेशी वैश्विक रिकवरी को प्राप्त करने के उपायों को मजबूत करने के लिए "कोविड-19 के बाद रिकवरी के पर्यावरणीय आयाम पर एक संकल्प "

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के बारे में

  • यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर पर्यावरणीय मुद्दों पर प्रतिक्रियाओं के समन्वय के लिए जिम्मेदार है ।
  • इसकी स्थापना जून में स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद की गई थी
  • इसका अधिदेश नेतृत्व प्रदान करनाविज्ञान प्रदान करना और जलवायु परिवर्तनसमुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन और हरित आर्थिक विकास सहित कई मुद्दों पर समाधान विकसित करना है।
  • संगठन अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण समझौते भी विकसित करता हैपर्यावरण विज्ञान को प्रकाशित और बढ़ावा देता है और राष्ट्रीय सरकारों को पर्यावरणीय लक्ष्य हासिल करने में मदद करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास समूह के सदस्य के रूप में , यूएनईपी का लक्ष्य दुनिया को 17 सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करना है।
  • यूएनईपी कई बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों और अनुसंधान निकायों के सचिवालय की मेजबानी करता है जिसमें जैविक विविधता पर कन्वेंशन (सीबीडी), बुध पर मिनामाटा कन्वेंशनप्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन और वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (सीआईटीईएसशामिल हैं।
  • यूएनईपी वैश्विक पर्यावरण सुविधा (जीईएफके लिए कार्यान्वयन एजेंसियों और मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के लिए बहुपक्षीय कोष में से एक है।

एयरलाइंस की ग्रीनवॉशिंग और कार्बन प्रदूषण में योगदान

चर्चा में क्यों?

अमेरिका में डेल्टा एयरलाइंस के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया गया है, जिसमें कंपनी पर अपने धारणीय प्रयासों और "हरित" एवं कार्बन-तटस्थ एयरलाइन होने के संदर्भ में झूठे व भ्रामक दावे करके ग्रीनवॉशिंग में शामिल होने का आरोप लगाया गया है।

  • एयरलाइन ने मार्च 2020 से कार्बन तटस्थ होने का दावा किया और यात्री उड़ानों/जहाज़ों से कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करने की पेशकश की।
  • हालाँकि मीडिया रिपोर्टों और जाँचों ने डेल्टा की कार्बन उत्सर्जन कम करने की प्रक्रिया में खामियों और अशुद्धियों को उजागर किया है।

ग्रीनवॉशिंग

  • ग्रीनवॉशिंग शब्द का प्रयोग पहली बार वर्ष 1986 में एक अमेरिकी पर्यावरणविद् और शोधकर्त्ता जे वेस्टरवेल्ड द्वारा किया गया था।
  • ग्रीनवॉशिंग कंपनियों और सरकारों की गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला को पर्यावरण के अनुकूल के रूप में चित्रित करने का एक अभ्यास है, जिसके परिणामस्वरूप उत्सर्जन से बचा या इसे कम किया जा सकता है।
    • इनमें से कई दावे असत्यापितभ्रामक या संदिग्ध होते हैं।
    • हालाँकि यह संस्था की छवि को बेहतर बनाने में मदद करता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में किसी प्रकार का विशेष सहयोग नहीं करता है।
    • शेल और BP जैसे तेल दिग्गजों तथा कोका कोला सहित कई बहुराष्ट्रीय निगमों को ग्रीनवॉशिंग के आरोपों का सामना करना पड़ा है।

पर्यावरणीय गतिविधियों की एक पूरी शृंखला में ग्रीनवॉशिंग सामान्य बात है।

  • अक्सर विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में वित्तीय प्रवाह के जलवायु सह-लाभों का सहारा लिया जाता है, जो कि कभी-कभी बहुत कम तर्कसंगत होते हैं, इन विकसित देशों के इस प्रकार के व्यवसाय निवेशों पर ग्रीनवॉशिंग का आरोप लगता रहता है।
  • भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत ग्रीनवॉशिंग को एक अनुचित व्यापार विधि माना जाता हैजो भ्रामक दावों पर रोक लगाता है लेकिन इन नियमों का कार्यान्वयन चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

कार्बन प्रदूषण में एयरलाइंस से संबंधित चिंताएँ

  • प्रमुख एयरलाइंस ग्रीनवॉशिंग में शामिल:
    • गार्जियन जाँच और ग्रीनपीस रिपोर्ट के अध्ययन से प्रमुख एयरलाइंस के कार्बन ऑफसेट प्रणाली में खामियाँ और धोखाधड़ी का पता चला है जिससे कार्बन उद्योगों की तटस्थता के दावे पर संदेह उत्पन्न हो गया है।
      • KLM (नीदरलैंड स्थित एयरलाइन) और रयान एयर (यूरोप), एयर कनाडा तथा स्विस एयरलाइंस सहित अन्य एयरलाइंस को पर्यावरण के अनुकूल होने के दावों के साथ ग्रीनवॉशिंग एवं ग्राहकों को गुमराह करने के आरोपों का सामना करना पड़ा है।
    • ये निष्कर्ष इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य प्रतिज्ञा की विश्वसनीयता के बारे में चिंताएँ बढ़ाते हैं जिसकी विशेषज्ञों ने ग्रीनवाशिंग अधिनियम के रूप में आलोचना की है।
  • कार्बन प्रदूषण में एयरलाइंस का महत्त्वपूर्ण योगदान:
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2021 में वैश्विक ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन में विमानन का हिस्सा 2% से अधिक था।
    • एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक विमानन उत्सर्जन 300-700% तक बढ़ सकता है।
      • मुंबई से लॉस एंजिल्स की एक यात्रा में 4.8 टन CO2 उत्पन्न होती है (6,00,000 स्मार्टफोन चार्ज करने के बराबर)
  • ऑफसेट प्रणाली में ब्लाइंड स्पॉट:
    • कार्बन ऑफसेट की गणना के लिये सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त मानकों और ट्रैकिंग तंत्र की कमी है जिससे उत्सर्जन में कमी सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है जो अन्यथा नहीं होता।
    • प्रमाणन संगठन कार्बन क्रेडिट के खरीदारों एवं विक्रेताओं को मिलाने में भूमिका निभाते हैं लेकिन भ्रामक परियोजनाओं और फैंटम क्रेडिट की अनुमति देने के लिये निरीक्षण एवं सत्यापन प्रक्रियाओं की आलोचना की गई है।
  • कार्बन क्रेडिट:
    • कार्बन क्रेडिट (कार्बन ऑफसेट) कंपनियों को तब प्राप्त होता है जब वे पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा दक्षता या नवीकरणीय ऊर्जा जैसी ऑफसेट परियोजनाओं में निवेश करते हैं जो वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करते हैं या हटाते हैं।
    • ये क्रेडिट कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे इन पहलों के माध्यम से वायुमंडल से हटा दिया गया हो। 
    • प्रत्येक क्रेडिट एक मीट्रिक टन CO2 के बराबर है, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है।
    • कंपनियाँ इन क्रेडिट का उपयोग हवाई जहाज़ यात्रा जैसे एक क्षेत्र में अपने कार्बन उत्सर्जन को ऑफसेट करने के लिये करती हैं, यह दावा करके कि वे कहीं और जैसे कि दूर के वर्षावनों में उत्सर्जन को कम कर रहे हैं।
      • वर्ष 2023 में मॉर्गन स्टेनली की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्वैच्छिक कार्बन-ऑफसेट बाज़ार के वर्ष 2020 के 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2050 तक लगभग 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।

ग्रीनवॉशिंग कार्बन क्रेडिट को कैसे प्रभावित करती है?

  • अनौपचारिक बाज़ार:
    • सभी प्रकार की गतिविधियों के लिये क्रेडिट उपलब्ध हैं जैसे- पेड़ उगाने, एक निश्चित प्रकार की फसल उगाने, कार्यालय भवनों में ऊर्जा-कुशल उपकरण स्थापित करने के लिये।
    • ऐसी गतिविधियों के क्रेडिट अक्सर अनौपचारिक तृतीय-पक्ष कंपनियों द्वारा प्रमाणित किये जाते हैं और दूसरों को बेचे जाते हैं।
    • ऐसे लेन-देन को सत्यनिष्ठा की कमी और दोहरी गिनती के रूप में चिह्नित किया गया है।
  • विश्वसनीयता:
    • भारत या ब्राज़ील जैसे देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल के तहत भारी मात्रा में कार्बन क्रेडिट जमा किया था और वे चाहते थे कि इन्हें पेरिस समझौते के तहत स्थापित किये जा रहे नए बाज़ार में स्थानांतरित किया जाए।
    • लेकिन कई विकसित देशों ने इसका विरोध किया, क्रेडिट की अखंडता पर सवाल उठाया और दावा किया कि वे उत्सर्जन में कटौती का सटीक प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
  • पारदर्शिता की कमी का कारण:
    • ग्रीनवॉशिंग से कार्बन ऑफसेट बाज़ार में पारदर्शिता की कमी हो सकती है।
    • कंपनियाँ उन परियोजनाओं के बारे में सीमित जानकारी प्रदान कर सकती हैं जिनका वे समर्थन करती हैं, जिससे उनके दावों को सत्यापित करना और वास्तविक पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना मुश्किल हो जाता है।
    • पारदर्शिता की यह कमी कार्बन क्रेडिट प्रणाली की विश्वसनीयता को कमज़ोर करती है।
  • वास्तविक उत्सर्जन कटौती से विचलन
    • ग्रीनवॉशिंग प्रथाएँ कार्बन उत्सर्जन को कम करने के वास्तविक प्रयासों से ध्यान भटका सकती हैं।
    • ऐसी कंपनियाँ जो अपने उत्सर्जन को कम करना चाहती हैं लेकिन परिचालन संबंधी बड़े बदलाव नहीं करना चाहती हैं अथवा अधिक पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाना नहीं चाहती हैं, वे सिर्फ कार्बन क्रेडिट पर निर्भर रहने में भरोसा करती हैं।
    • यह वास्तविक उत्सर्जन कटौती और निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की दिशा में प्रगति को बाधित कर सकता है।

आगे की राह

  • कार्बन ऑफसेटिंग की जटिल प्रकृति और प्रभावी मानकों पर आम सहमति की कमी नियमों को लागू करने में चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है। इसलिये कार्बन ऑफसेट कार्यक्रमों के बेहतर विनियमन, पारदर्शिता और समझ की आवश्यकता है।
  • इन विकल्पों के सामने आने वाली बाधाओं के बावजूद सतत् विमानन ईंधन, हाइड्रोजन और पूर्ण-इलेक्ट्रिक प्रणोदन तकनीकों के माध्यम से वाणिज्यिक विमानन को डीकार्बोनीकृत करने की ओर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • पर्यावरणीय धारणीयता की ओर बढ़ते हुए विमानन के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये बेहतर विनियमनजाँच प्रणाली और अधिक प्रभावशाली रणनीतियाँ विकसित करने की आवश्यकता है।
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