प्रश्न 1: पी०टी० अध्यापक कैसे स्वभाव के व्यक्ति थे? विद्यालय के कार्यक्रमों में उनकी कैसी रुचि थी? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: पी०टी० साहब बहुत ही सख़्त व अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे । विद्यालय में वे ज़रा-सी गलती होने पर विद्यार्थियों की चमड़ी उधेड़ देते थे । विद्यालय की प्रार्थना सभा में वे बच्चों को पंक्तिबद्ध खड़ा करते थे और यदि कोई बच्चा थोड़ी-सी भी शरारत करता, तो उसकी खाल खींच लेते थे । स्काउट परेड के आयोजन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती थी। बच्चों को अपने मार्गदर्शन में कुशलतापूर्वक परेड करवाते थे और परेड के समय बच्चों को 'शाबाशी' भी दे देते थे इसलिए बच्चों को उनकी यही 'शाबाशी' फ़ौज के तमगों-सी लगती थी और कुछ समय के लिए उनके मन में पी०टी० साहब के प्रति आदर का भाव जाग जाता था ।
प्रश्न 2: 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर लिखिए कि बच्चों की रुचि पढ़ाई में क्यों नहीं थी? माँ-बाप को उनकी पढ़ाई व्यर्थ क्यों लगती थी?
उत्तर: 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर बच्चों की रुचि पढ़ाई-लिखाई में इसलिए नहीं थी क्योंकि विद्यालय में उन्हें बुरी तरह दंडित किया जाता था। ज़रा-सी गलती होने पर उनकी चमड़ी उधेड़ दी जाती थी तथा उन्हें नई कक्षा में जाने पर भी पुरानी पुस्तकें व कॉपियाँ दी जाती थीं, जिनसे आती गंध नई कक्षा की सारी उमंग दूर कर देती थी। माँ-बाप पढ़ाई के प्रति जागरूक नहीं थे और सोचते थे कि वे छह महीने में पंडित घनश्याम दास से बच्चे को दुकान का हिसाब रखने की लिपि सिखवा देंगे, इसी कारण उन्हें बच्चों की पढ़ाई व्यर्थ लगती थी ।
प्रश्न 3: पी०टी० साहब की चारित्रिक विशेषताओं और कमियों का उल्लेख अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तर: ‘सपनों के से दिन' पाठ में पी०टी० साहब अनुशासनप्रिय, पक्षी प्रेमी, निश्चित व बेहद सख़्त अध्यापक के रूप में पाठकों के सामने आते हैं। वे अनुशासनप्रिय थे और चाहते थे कि स्कूल का प्रत्येक बच्चा अनुशासित रहे। वे पक्षियों से बहुत प्रेम करते थे, उन्होंने तोते पाले हुए थे और पूरा दिन वे तोतों को बादाम की गिरियाँ भिगो-भिगोकर खिलाते तथा उनसे बातें करते रहते थे। मुअत्तल होने के बाद भी उनके चेहरे पर ज़रा-सी भी चिंता नहीं दिखाई दी थी। इन सब विशेषताओं के अतिरिक्त उनके चरित्र में बच्चों के प्रति बेहद सख्ती की भावना रखने की कमी दिखाई देती है । वे ज़रा सी ग़लती हो जाने पर बच्चों की चमड़ी उधेड़ देते थे तथा कई बार बच्चों को ठुड्डों तथा बैल्ट के बिल्ले से मारा करते थे ।
प्रश्न 4: मास्टर प्रीतमचंद का विद्यार्थियों को अनुशासित रखने के लिए जो तरीका था, वह आज की शिक्षा-व्यवस्था के जीवन-मूल्यों के अनुसार उचित है या अनुचित ? तर्कसहित स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर: मास्टर प्रीतमचंद का विद्यार्थियों को अनुशासित रखने के लिए बुरी तरह शारीरिक दंड देने का तरीका था, यह तरीका आज की शिक्षा-व्यवस्था के जीवन मूल्यों के अनुसार बिल्कुल भी उचित नहीं है। इससे पुराने ज़माने के समान आज के बच्चों के मन में भी स्कूल के प्रति भय तथा पढ़ाई के प्रति अरुचि का भाव आ सकता है । आज की शिक्षा-व्यवस्था में विद्यार्थियों को अनुशासन जैसा जीवन-मूल्य सिखाने के लिए मनोवैज्ञानिक युक्तियों को अपनाने की व्यवस्था है। आज अध्यापक बच्चों को प्यार-दुलार के सहारे ही अनुशासित बनाने का प्रयास करते हैं ।
प्रश्न 5: 'सपनों के से दिन' कहानी के आधार पर लिखिए कि पी०टी० साहब की 'शाबाश' बच्चों को फौज़ के तमगों-सी क्यों लगती थी?
उत्तर: पी०टी० साहब की शाबाश बच्चों को फ़ौज के तमगों-सी इसलिए लगती थी क्योंकि बच्चे इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानते थे । वस्तुतः पी०टी० साहब बड़े क्रोधी स्वभाव के थे और थोड़ी सी ग़लती पर भी वे चमड़ी उधेड़ने की कहावत को सच करके दिखा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पी०टी० साहब जब बच्चों को शाबाश कहते थे, तो बच्चों को ऐसा लगता था मानो उन्होंने फ़ौज के सारे लोग तमगे जीत लिए हों ।
प्रश्न 6: लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें अधिकांश तो स्कूल जाते ही न थे और जो कभी गए भी वे पढ़ाई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बस्ता तालाब में फेंककर आ गए और फिर स्कूल गए ही नहीं। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।
प्रश्न 7: 'सपनों के से दिन' पाठ के लेखक का मन पुरानी किताबों से क्यों उदास हो जाता है ?
उत्तर: लेखक का मूल पुरानी किताबों से इसलिए उदास हो जाता है क्योंकि लेखक को पुरानी किताबों से आती विशेष गंध उसे परेशान करती थी। आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर होने के कारण लेखक नई किताब नहीं खरीद पाता था । अन्य विद्यार्थियों की तरह लेखक में भी नई किताबों से पढ़ने की उमंग और उत्साह होता था, परंतु पुरानी किताबों को देखकर वह उदास हो जाता था।
प्रश्न 8: ख़ुशी से जाने की जगह न होने पर भी, लेखक को कब और क्यों स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ?
उत्तर: लेखक खुशी से स्कूल जाना नहीं चाहता था । लेखक के लिए वह खुशी से जाने वाला स्थान नहीं था क्योंकि शिक्षकों की डाँट फटकार और पिटाई के कारण लेखक के मन में एक भय सा बैठ गया था इसके बावजूद जब उनके पी०टी० सर स्काउटिंग का अभ्यास करवाते थे, विद्यार्थियों को पढ़ाने-लिखने के बदले उनके हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा देते थे और विद्यार्थियों से परेड करवाते थे । पी०टी० साहब के संचालन में विद्यार्थी लेफ्ट राइट परेड करते हुए अपने आपको किसी फ़ौजी से कम नहीं समझते। इस दौरान लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगता था ।
प्रश्न 9: 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति बच्चों की क्या धारणा बन जाती है?
उत्तर: यह सत्य है कि मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति बच्चों के मन में एक भय बैठ जाता है। बच्चों के मन में विद्यालय के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है और पढ़ाई छोड़ देने की भावना भी पनपने लगती है। उनके मन में शिक्षक के प्रति घृणा का भाव भी उत्पन्न होने लगता।
प्रश्न 10: 'सपनो के से दिन' पाठ के लेखक गुरुदयाल सिंह एवं उनके साथियों को पीटी साहब की 'शाबाश' फ़ौज के तमग़ों जैसी क्यों लगती थी ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: पी०टी० साहब की शाबाश बच्चों को फ़ौज की तमगों-सी इसलिए लगती थी कि बच्चे इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानते थे। वस्तुतः पी०टी० साहब बड़े क्रोधी स्वभाव के थे और थोड़ी-सी गलती पर भी वे चमड़ी उधेड़ने की कहावत को सच करके दिखा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पी०टी० साहब जब बच्चों को शाबाश कहते थे तो बच्चों को ऐसा लगता था मानो उन्होंने फ़ौज के सारे तमगे जीत लिए हों ।
प्रश्न 11: 'सपनों के से दिन' कहानी के आधार पर लिखिए कि स्काउट परेड करते समय लेखक स्वयं को 'महत्त्वपूर्ण आदमी' फ़ौजी जवान क्यों समझता था?
उत्तर: परेड करना बच्चों को बहुत अच्छा लगता था । मास्टर प्रीतमचंद लेखक जैसे स्काउटों को परेड करवाते थे तो इन बच्चों को बहुत अच्छा लगता था । जब प्रीतमचंद सीटी बजाते हुए बच्चों को मार्च करवाते थे, राइट टर्न, लेफ्ट टर्न या अबाउट टर्न कहते थे। तब बच्चे छोटे-छोटे बूटों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ करते हुए ठक-ठककर अकड़कर चलते थे, तो उन्हें ऐसा लगता था मानो वे विद्यार्थी नहीं, बल्कि फ़ौजी जवान हों । धुली वर्दी, पॉलिश किए बूट और जुर्राबों को पहनकर बच्चे फ़ौजी जैसा महसूस करते थे।
प्रश्न 12: गरमी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?
उत्तर: लेखक ने बताया है कि तब गरमी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने की हुआ करती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद किया करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।
प्रश्न 13: फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे डर से क्यों काँप उठते थे? 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर: चौथी श्रेणी में मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को फ़ारसी पढ़ाते थे । वे स्वभाव से काफ़ी सख्त थे। अगर बच्चे उनकी आशाओं पर पूरे नहीं उतरते थे, तो वे बच्चों को कड़ी सजा देते थे। बच्चों के मन में जो उनका भय समाया हुआ था उसके कारण फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे काँप उठते थे। फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे डर से इसलिए काँप उठते थे क्योंकि मास्टर प्रीतमचंद ने फ़ारसी का शब्द रूप याद करके न लाने पर उनकी बुरी तरह पिटाई की थी, जबकि यह देखकर हेडमास्टर शर्मा जी ने उन्हें मुअत्तल भी कर दिया था, फिर भी बच्चों के मन में डर होने के कारण वे सोचते थे कि मुअत्तल होने के बावजूद कहीं मास्टर प्रीतमचंद उन्हें पढ़ाने के लिए न आ जाएँ। उनका यह डर तब समाप्त होता था जब मास्टर नौहरिया राम जी या फिर हेडमास्टर जी कक्षा में आ जाते थे।
प्रश्न 14: 'सपनों के से दिन' कहानी के आधार पर मास्टर प्रीतमचंद के व्यवहार की उन बातों का उल्लेख कीजिए, जिनके कारण विद्यार्थी उनसे नफ़रत करते थे।
उत्तर: पी०टी० साहब की शाबाश बच्चों को फ़ौज की तमगों सी इसलिए लगती थी कि बच्चे इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानते थे । वस्तुतः पी०टी० साहब बड़े क्रोधी स्वभाव के थे और थोड़ी-सी गलती पर भी वे चमड़ी उधेड़ने की कहावत को सच करके दिखा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पी०टी० साहब जब बच्चों को शाबाश कहते थे, तो बच्चों को ऐसा लगता था मानो उन्होंने किसी फ़ौज के सारे तमगे जीत लिए हैं ।
प्रश्न 15: 'सपनों के से दिन' कहानी के आधार पर लिखिए कि छुट्टियों में लेखक कहाँ जाया करता था और वहाँ उसकी दिनचर्या क्या रहती थी।
उत्तर: अपने स्कूल की छुट्टियों में लेखक अपनी नानी के घर जाया करता था । लेखक की नानी उसे बहुत प्यार करती थी। वह ननिहाल के छोटे से तालाब में जाकर दोपहर तक नहाया करता था । नानी के घर दूध, घी खूब खाने को मिलता था। वहाँ दिन भर खेलना, खाना और नहाने के सिवा और कोई काम मक्खन, न होता था ।
प्रश्न 16: छात्रों के नेता ओमा के सिर की क्या विशेषता थी? 'सपनों के से दिन' के आधार पर बताइए ।
उत्तर: ओमा लेखक के बचपन का मित्र था । वे दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे । ओमा बहुत शरारती छात्र था। वह दूसरे विद्यार्थियों को मारता पीटता था और वह गंदी-गंदी गालियाँ भी दिया करता था । वह अत्यंत अनुशासनहीन छात्र था। वह बहुत ताकतवर भी था । वह चंचल स्वभाव का बालक था, जिसे पढ़ना-लिखना अच्छा नहीं लगता था। कक्षा में शिक्षक द्वारा दिए गए काम को ओमा कभी पूरा नहीं कर पाता था । शिक्षक के द्वारा पिटाई खाने को वह आसान समझता था । उनकी पिटाई का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था क्योंकि उसका शरीर बहुत मज़बूत था, उसका 'सिर' भी बहुत बड़ा था । वह लड़ाई में 'सिर' से ही वार करता था इसलिए बच्चे 'ओमा' को 'रेल - बंबा' कहकर पुकारते थे।
प्रश्न 17: पीटी मास्टर प्रीतमचंद को देखकर बच्चे क्यों डरते थे?
उत्तर: पीटी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुसकराते या हँसते न देखा था। उनका ठिगना कद, दुबला पतला परंतु गठीला शरीर, माता के दागों से भरा चेहरा और बाज-सी तेज आँखें, खाकी वरदी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट-सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता। उनका ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के मन में भय पैदा करता और वे डरते थे।
प्रश्न 18: हेडमास्टर ने प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?
उत्तर: हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि प्रीतमचंद ने छात्रों को मुरगा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद के निलंबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहाँ के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था। तब तक प्रीतमचंद स्कूल नहीं आ सकते थे।
प्रश्न 19: हेडमास्टर शर्मा जी का छात्रों के साथ कैसा व्यवहार था?
उत्तर: हेडमास्टर शर्मा जी अनुशासन प्रिय परंतु विनम्र व्यक्ति थे। वे बच्चों को मारने-पीटने में विश्वास नहीं रखते थे। वे बहुत प्रेम से छात्रों को पढ़ाते थे और नाराज़गी भी आँखों से ही प्रकट करते थे। बहुत गुस्सा होने पर गाल पर हल्की-सी चपत लगाकर बच्चों को सुधार देते थे । वे क्रूरता से कोसों दूर थे और इसी कारण मास्टर प्रीतमचंद की बर्बरता वे सहन नहीं कर सके और उन्होंने तुरंत प्रभाव से विद्यालय से निकलवा दिया। वे एक अच्छे प्रशासक, गुरु तथा उदारमना थे।
प्रश्न 20: ग़रीब घरों के लड़कों का स्कूल जाना क्यों कठिन था ? 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: ग़रीब घरों के लड़कों का स्कूल जाना इसलिए कठिन था क्योंकि एक तो निर्धनता ही सबसे बड़ी बाधा थी। शुल्क, गणवेश आदि खरीदने के लिए ऐसे परिवार पैसे व्यय नहीं करते थे। दूसरे बच्चों को ही पढ़ाई में रुचि नहीं थी और न ही परिवार वाले पढ़ाई की अनिवार्यता मानते और समझते थे। बच्चों के थोड़ा बड़ा होने पर उन्हें किसी पारिवारिक व्यवसाय, कहीं हिसाब-किताब लिखने आदि में झोंक दिया जाता था।
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