प्रश्न 1: सुलेमान बादशाह अन्य बादशाहों से किस तरह अलग थे?
उत्तर: सुलेमान जिन्हें बाइबिल में सोलोमन कहा गया है, वे केवल मानवजाति के ही राजा नहीं थे, बल्कि सारे छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी हाकिम थे। वह इन सबकी भाषा भी जानते थे, जबकि अन्य राजाओं के पास ऐसी संवेदनशीलता और मानवता न होने से सुलेमान अन्य बादशाहों से अलग थे।
प्रश्न 2: सुलेमान ने चींटियों का भय किस तरह दूर किया?
उत्तर: सुलेमान के लश्कर के साथ गुज़रते हुए जब चींटियों ने उनके घोड़ों के टापों की आवाजें सुनीं तो वे भयभीत हो गईं। उनका भय दूर करने के लिए सुलेमान ने कहा, “घबराओ नहीं, सुलेमान को खुदा ने सबका रखवाला बनाया है। वह सबके लिए मुहब्बत है।” ऐसा कहकर सुलेमान ने चींटियों का भय दूर किया।
प्रश्न 3: अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों पसंद करते हैं?
उत्तर: बाइबिल तथा दूसरे पावन ग्रंथों में ‘नूह’ नाम के एक पैगंबर का ज़िक्र मिलता है। उनका असली नाम लशकर था, लेकिन अरब में उनको नूह के पदसूचक नाम से याद किया जाता है। लशकर को ‘नूह’ के नाम से इसलिए याद किया जाता है कि वह सारी उम्र रोते रहे। रोने का कारण संसार का दुःख था।
प्रश्न 4: ‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का एकांत कुत्ते ने किस तरह शांत किया?
उत्तर: ‘महाभारत’ में पांडवों के जीवन का जब अंतिम समय आया तो पाँचों पांडव द्रौपदी समेत हिमालय की ओर चले। उनके साथ एक कुत्ता भी चल रहा था। ज्यों-ज्यों पांडव ऊँचाई की ओर बढ़ते जा रहे थे त्यों-त्यों एक-एक कर पांडव युधिष्ठिर साथ छोड़ते जा रहे थे। अंत में कुत्ता ही था जिसने युधिष्ठिर के अकेलेपन को दूर किया और उनके साथ चलता रहा।
प्रश्न 5: दुनिया के बारे में लेखक और आज के मनुष्य के विचारों में क्या अंतर है?
उत्तर: दुनिया के बारे में लेखक का विचार उदारतापूर्ण था। उसका मानना था कि धरती किसी एक की नहीं है। इसमें मानव के साथ-साथ पशु, नदी, पर्वत, समंदर आदि की बराबर हिस्सेदारी है पर आज के मनुष्यों में इतनी आत्मकेंद्रितता और स्वार्थपरता आ गई है कि वे समूची दुनिया पर सिर्फ अपना हक समझ बैठते हैं।
प्रश्न 6: मानव-जाति ने किस तरह अपनी बुद्धि से दीवारें खड़ी की हैं?
उत्तर: मानव-जाति ने अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण अपनी बुद्धि का प्रयोग अपने व्यक्तिगत हित के लिए किया है। उसने भेदभाव की नीति अपनाते हुए संसार को देशों में बाँट दिया। उसने स्वयं को सर्वोपरि समझते हुए सारी धरती पर अपना अधिकार करना चाहा। उसने समुद्र से ज़मीन छीनी, जंगलों का सफाया किया और पशु-पक्षियों को बेघर करके प्रकृति में दीवारें खड़ी की।
प्रश्न 7: बढ़ती आबादी पर्यावरण के लिए हानिकारक सिद्ध हो रही है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ की जाती है। आवास के लिए जमीन चाहिए इसके लिए वनों को काटा जाता है। इससे पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होता है। इसी प्रकार मुंबई के पास समुद्र के किनारे को ऊँचा बनाकर उस पर बहुमंजिली इमारतें बनाई गईं, जिससे समुद्र को सिमटने पर विवश होना पड़ा और उसका प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हो गया।
प्रश्न 8: मनुष्य के अत्याचार से क्रोधित प्रकृति किस तरह अपना भयंकर रूप दिखाती है?
उत्तर: मनुष्य अपनी लालच और स्वार्थ को पूरा करने के लिए वनों का विनाश करता है, नदियों का वेग रोकता है, समुद्र के किनारे पर कब्जा करके उसे पीछे ढकेलता है। पहले तो प्रकृति मनुष्य के अत्याचार को सहती है पर सीमा पार होने पर वह अपना भयंकर रूप अत्यधिक गरमी, बेवक्त की बरसातें, आधियाँ, तूफ़ान, बाढ़ और नए-नए रोगों के रूप में दिखाती है, जिससे जनधन की अपार हानि होती है।
प्रश्न 9: समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?
अथवा
‘अब कहाँ दूसरे के दुःख से दुखी होने वाले’ पाठ में समुद्र के क्रोध का क्या कारण बताया गया है? उसने अपना क्रोध कैसे शांत/व्यक्त किया? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: ‘अब कहाँ दूसरे के दुःख से दुखी होने वाले’ पाठ के अनुसार समुद्र के क्रोध का मुख्य कारण था – उसकी सहनशक्ति का जवाब दे देना। कई वर्षों से बड़े-बड़े बिल्डर स्वार्थवश समुद्र को पीछे धकेल कर उसकी जमीन को हथिया रहे थे। समुद्र पहले तो सिमटता रहा, सहन करता रहा, पर जब उससे सहन नहीं हुआ तो उसमें तूफान आया। समुद्र की लहरों ने बड़े-बड़े जहाज़ों को उठाकर पटक दिया और समुद्र तट पर भयानक दृश्य उपस्थित हो गया। लोग सागर की विकरालता और प्रचंडता देखकर भयभीत हो गए।
प्रश्न 10: लेखक की माँ उसे प्रकृति संबंधी उपदेश क्यों दिया करती थी?
उत्तर: लेखक की माँ प्रकृति से घनिष्ठ लगाव रखती थीं। वे दयालु स्वभाव की प्रकृति प्रेमी थीं। वे मनुष्य के साथ ही पशु-पक्षी एवं पेड़-पौधों से प्रेम करती थीं तथा मनुष्य के लिए इनकी महत्ता समझती थीं। वे प्रकृति के प्रति सम्मान भाव रखती थी। वे चाहती थी कि लेखक भी प्रकृति के प्रति आदरभाव रखे, पेड़-पौधों की महत्ता समझे, नदी के जल का सम्मान करे। और पशु-पक्षियों से प्रेम करे।
प्रश्न 11: लेखक के देखते-देखते वर्सावा में क्या-क्या बदलाव आए?
उत्तर: लेखक और उसका परिवार ग्वालियर से वर्सावा जाकर बस गया। उस समय वहाँ दूर-दूर तक जंगल था। बहुत सारे पेड़ थे जहाँ परिंदे और जानवर भी रहते थे। वर्सावा में जैसे-जैसे जनसंख्या का दबाव बढ़ता गया वैसे-वैसे उन वनों को काट दिया गया। इससे पशु-पक्षियों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो गया और वे इधर-उधर भागने पर विवश हो गए। वर्सावा में ही समुद्र के किनारे मनुष्य की लंबी-चौड़ी बस्तियाँ बसा दी गईं। इससे समुद्र के किनारे गायब हो गए। उसे पीछे हटने पर विवश होना पड़ा। समुद्र का दूर-दूर तक फैला रेतीला किनारा कहीं गायब हो गया।
प्रश्न 12: पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता में लेखक ने अपनी माँ और पत्नी के दृष्टिकोण में क्या अंतर अनुभव किया?
अथवा
लेखक की माँ और पत्नी के दृष्टिकोण में प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति क्या अंतर दिखाई देता है, अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: लेखक की माँ प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशील थीं। वे प्रकृति के प्रति आदर भाव रखती थीं। पशु-पक्षियों के प्रति उनका विशेष लगाव था। वे अपने बच्चों को भी पेड़-पौधों, नदियाँ और मुर्गे तक से प्रेम करने की सीख देती थी ताकि उनकी संतान भी ऐसा ही कार्य-व्यवहार करे। लेखक की माँ ने तो एक बार एक कबूतर का अंडा सँभालते समय टूट जाने पर दिन भर रोजा रखा और खुदा से प्रार्थना करती रही कि उसकी यह गलती माफ़ कर दें। लेखक की पत्नी का दृष्टिकोण इससे हटकर था क्योंकि एक बार जब दो कबूतरों ने उसके फ्लैट में दो अंडे दे दिए और उसमें से बच्चे निकल आए तो कबूतरों का आना-जाना बढ़ गया। इससे परेशान होकर लेखक की पत्नी ने उनके आने-जाने वाला रोशनदान बंद कर दिया, इससे कबूतर उदास होकर बाहर बैठे रहे। लेखक की माँ ऐसा कभी न कर पाती।
प्रश्न 13: ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ नामक पाठ ‘निदा फ़ाज़ली’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ का प्रतिपाद्य है-मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ निरंतर की जा रही छेड़छाड़ की ओर ध्यानाकर्षित कराना, प्रकृति के क्रोध का परिणाम दर्शाना तथा प्रकृति के गुस्से का परिणाम बताते हुए प्रकृति, सभी प्राणियों, पशु-पक्षियों समुद्र पहाड़ तथा पेड़ों के प्रति सम्मान एवं आदर का भाव प्रकट करना। इतना ही नहीं इस धरती पर अन्य जीवों की हिस्सेदारी समझते हुए इसे केवल मनुष्य की ही जागीर न समझना। लेखक यह बताना चाहता है कि मनुष्य नदी, समुद्र, पहाड़, पेड़-पौधों आदि को अपनी जागीर समझकर उनका मनचाहा उपभोग करता है। इससे प्राकृतिक असंतुलन पैदा होता है। इसके अलावा सभी जीव चाहे मनुष्य हों या कुत्ता उसी एक ईश्वर की रचनाएँ हैं। हमें इनके साथ उदार व्यवहार करना चाहिए।
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