प्रश्न 1: उपभोक्तावादी संस्कृति के विभिन्न दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। आप उनका उल्लेख करते हुए इनसे बचने के उपाय बताइए।
उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति उपभोग और दिखावे की संस्कृति है। लोगों ने इसे बिना सोचे-समझे अपनाया ताकि वे आधुनिक कहला सकें। इस संस्कृति का दुष्परिणाम सामाजिक अशांति में वृधि, समरसता में कमी विषमता आदि रूपों में सामने आने लगा है। इस कारण सामाजिक मर्यादाएँ टूटने लगी हैं, नैतिक मानदंड कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं और लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति के दुष्परिणाम से बचने के लिए-
प्रश्न 2: उपभोक्तावादी संस्कृति का व्यक्ति विशेष पर क्या प्रभाव पड़ा है? उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति ने व्यक्ति विशेष को गहराई तक प्रभावित किया है। व्यक्ति इसके चमक-दमक और आकर्षण से बच नहीं पाया है। व्यक्ति चाहता है कि वह अधिकाधिक सुख-साधनों का प्रयोग करे। इसी आकांक्षा में वह वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के वश में हो गया है। इससे उसके चरित्र में बदलाव आया है। विज्ञापनों की अधिकता से व्यक्ति उन्हीं वस्तुओं को प्रयोग कर रहा है जो विज्ञापनों में बार-बार दिखाई जाती है। व्यक्ति महँगी वस्तुएँ खरीदकर अपनी हैसियत का प्रदर्शन करने लगा है।
प्रश्न 3: गांधी जी उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रति क्या विचार रखते थे? वे किस संस्कृति को श्रेयस्कर मानते थे?
उत्तर: गांधीजी भारत के लिए उपभोक्तावादी संस्कृति को अच्छा नहीं मानते थे। यह संस्कृति मानवीय गुणों का नाश करती है, लोगों में स्वार्थवृत्ति और आत्मकेंद्रिता बढ़ाती है, जिससे लोगों में परोपकार त्याग, दया, सद्भाव समरसता जैसे गुणों का अभाव होता जा रहा है। सुख-सुविधाओं का अधिकाधिक उपयोग और दिखावा करना मानो इस संस्कृति का लक्ष्य बनकर रह गया है। सुख-शांति का इससे कोई सरोकार ही नहीं है। इससे हमारी नींव कमज़ोर हो रही है जिससे भारतीय संस्कृति के लिए खतरा एवं चुनौती उत्पन्न हो गई है। गांधी जी भारतीय संस्कृति को श्रेयस्कर मानते थे जो मनुष्यता को बढ़ावा देती है।
प्रश्न 4: उपभोक्तावादी संस्कृति का अंधानुकरण हमारी संस्कृति के मूल तत्वों के लिए कितना घातक है? ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति और भारतीय संस्कृति में कोई समानता नहीं है। यह संस्कृति भोग एवं दिखावा को बढ़ावा देती है। जबकि भारतीय संस्कृति त्याग एवं परोपकार को बढ़ावा देती है। इस तरह हमारी संस्कृति के मूल तत्वों पर प्रहार हो रहा है। इसके अलावा-स्वार्थवृत्ति, आत्म केंद्रितता लाभवृत्ति को बढ़ावा उपभोक्तावादी संस्कृति की देन है। अब हम दिखावे के चक्कर में पड़कर त्योहारों और विभिन्न कार्यक्रमों में महँगे उपहार देकर अपनी हैसियत जताने लगे हैं। इसके अलावा इन उपहारों और कार्डों को खुद न देकर कोरियर आदि से भेजने लगे हैं। हमारे ये कार्य-व्यवहार भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को नष्ट करते हैं।
17 videos|159 docs|33 tests
|
17 videos|159 docs|33 tests
|
|
Explore Courses for Class 9 exam
|