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Short Question Answers - उपभोक्तावाद की संस्कृति | Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij) PDF Download

प्रश्न 1: संस्कृति की नियंत्रक शक्तियाँ कौन-सी हैं। आज उनकी स्थिति क्या है?
उत्तर:
संस्कृति की नियंत्रक शक्तियाँ धर्म, परंपराएँ, मान्यताएँ, रीति-रिवाज, आस्थाएँ और पूजा-पाठ हैं। आजकल की उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से ये नियंत्रक शक्तियाँ कमजोर हो रही हैं और परंपराएँ तथा धार्मिक आस्थाएँ में कमी आई है।

प्रश्न 2: लोग उपभोक्तावादी संस्कृति अपनाते जा रहे हैं। इसका क्या परिणाम हो रहा है?
उत्तर:
नई संस्कृति के प्रभाव स्वरूप लोगों द्वारा उपभोग को ही सबकुछ मान लिया गया है। विशिष्ट जन सुख साधनों का खूब उपयोग कर रहे हैं जबकि सामान्य जन इसे ललचाई नजरों से देख रहे हैं। इस कारण सामाजिक दूरियाँ बढ़ रही हैं तथा सुख शांति नष्ट हो रही है।

प्रश्न 3: ‘सांस्कृतिक अस्मिता’ क्या है? 'उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के इस पर क्या असर पड़ा है?
उत्तर: 
‘सांस्कृतिक अस्मिता’ का अर्थ है-हमारी सांस्कृतिक पहचान अर्थात् हमारे जीने, खान-पान, रहन-सहन, सोचने-विचारने आदि के तौर-तरीके जो हमें दूसरों से अलग करते हैं तथा जिनसे हमारी विशिष्ट पहचान बनी है। उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण सांस्कृतिक अस्मिता कमजोर होती जा रही है।
Short Question Answers - उपभोक्तावाद की संस्कृति | Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij)
प्रश्न 4: विज्ञापन हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है?
उत्तर:
विज्ञापनों की भाषा बड़ी ही आकर्षक और भ्रामक होती है। आज उत्पाद को बेचने के लिए हमारे चारों ओर विज्ञापनों का जाल फैला है। इसके प्रभाव में आकर हम विज्ञापित वस्तुओं का उपयोग करने लगे हैं। अब वस्तुओं के चयन में गुणवत्ता पर ध्यान न देकर विज्ञापनों को आधार बनाया जाता है।

प्रश्न 5: समाज में बढ़ती अशांति और आक्रोश का मूलकारण आप की दृष्टि में क्या है? 'उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज में बढ़ती अशांति और आक्रोश का मूल कारण उपभोक्तावादी संस्कृति को अपनाना है। पश्चिमी जीवन शैली को बढ़ावा देने वाली तथा दिखावा प्रधान होने के कारण विशिष्ट जन इसे अपनाते हैं और महँगी वस्तुओं के उपयोग को प्रतिष्ठा का प्रतीक मानते हैं, जबकि कमजोर वर्ग इसे ललचाई नजरों से देखता है।

प्रश्न 6: 'सुख की व्याख्या बदल गई है' के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
पहले लोगों को त्याग, परोपकार तथा अच्छे कार्यों से मिलने वाली सुख-शांति की परिप्रेक्ष्य में यह कहा जाता था कि आजकल लोग विभिन्न वस्तुओं और भौतिक साधनों के उपयोग से ही सुख की परिभाषा को बदलकर उन्हें प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।

प्रश्न 7: ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के आधार पर बताइए कि कौन-सी बात सुख बनकर रह गई है?
उत्तर: 
हम जाने-अनजाने उत्पादों के प्रति समर्पित होते जा रहे हैं' के माध्यम से यह दिखाना चाहता है कि व्यक्तियों की नई जीवन शैली ने उन्हें ऐसी भावना दी है कि वे बिना किसी विचार-विमर्श के उपभोग के उत्पादों के प्रति समर्पित होने के लिए उपयोग कर रहे हैं। यह उपभोक्तावाद की संस्कृति की प्रकृति को दर्शाता है।

प्रश्न 8: नई जीवन शैली का बाजार पर क्या प्रभाव पड़ा है? उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
नई जीवन शैली के प्रभाव से बाजार में विभिन्न नई वस्तुएँ आई हैं और लोगों की खरीदारी के तरीके में भी परिवर्तन आया है। लोग अधिकाधिक वस्तुएं खरीदने लगे हैं और उनका उपयोग करके अपनी नई जीवन शैली को प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं।

प्रश्न 9: पुरुषों का झुकाव सौंदर्य प्रसाधनों की ओर बढ़ा है। 'उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 
पुरुषों के झुकाव में सौंदर्य प्रसाधनों की ओर बढ़ने का कारण उपभोक्तावादी संस्कृति है, जिसके कारण वे विभिन्न शौचालय सामग्री, कोलोन और आफ्टर शेव का प्रयोग करके अपनी बाल-शृंगारी में नया रूप अपनाने लगे हैं।

प्रश्न 10: ‘व्यक्तियों की केंद्रिकता’ से क्या तात्पर्य है? 'उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
'व्यक्तियों की केंद्रिकता' का तात्पर्य यहाँ उस नई जीवन शैली से है, जिसमें लोग खुद को पहले रखते हैं और अपने सुख-दुख को महत्व देते हैं। वे अधिकाधिक अपनी खुशियों के लिए वस्तुओं को खरीदने में जुट गए हैं, जो उपभोक्तावादी संस्कृति की प्रकृति को प्रकट करता है।

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FAQs on Short Question Answers - उपभोक्तावाद की संस्कृति - Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij)

1. उपभोक्तावाद क्या है?
Ans. उपभोक्तावाद एक ऐसा विचारधारा है जिसमें उपभोक्ता वस्त्रों, सेवाओं और अन्य उत्पादों की अत्यधिक खपत को प्रोत्साहित किया जाता है। यह संस्कृति उपभोक्ताओं को सामग्री सुख और भौतिक संपत्ति की ओर आकर्षित करती है, जिससे वे अधिक से अधिक खरीदारी करने के लिए प्रेरित होते हैं।
2. उपभोक्तावाद की संस्कृति के क्या नुकसान हैं?
Ans. उपभोक्तावाद की संस्कृति के कई नुकसान हैं, जैसे कि पर्यावरणीय प्रभाव, जैसे प्राकृतिक संसाधनों की अत्यधिक खपत और प्रदूषण। यह मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि अवसाद और चिंता, क्योंकि लोग अपनी भौतिक संपत्ति के आधार पर अपनी पहचान और आत्म मूल्य की भावना बनाने की कोशिश करते हैं।
3. उपभोक्तावाद को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
Ans. उपभोक्तावाद को नियंत्रित करने के लिए जागरूकता बढ़ाना, शिक्षा देना और सतत उपभोग के सिद्धांतों को अपनाना महत्वपूर्ण है। लोगों को यह समझाना होगा कि खुशी भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि अनुभवों और संबंधों में है। इसके अलावा, पुनर्चक्रण और स्थायी उत्पादों का चयन करना भी मदद कर सकता है।
4. उपभोक्तावाद का समाज पर क्या प्रभाव है?
Ans. उपभोक्तावाद का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह सामाजिक असमानता को बढ़ा सकता है क्योंकि कुछ लोग अधिक उपभोग करने में सक्षम होते हैं जबकि अन्य नहीं। इसके अलावा, यह उपभोक्ता संस्कृति का निर्माण करता है, जिसमें लोग भौतिक वस्तुओं के पीछे भागते हैं और असली मूल्यों को नजरअंदाज करते हैं।
5. उपभोक्तावाद और संस्कृति के बीच का संबंध क्या है?
Ans. उपभोक्तावाद और संस्कृति के बीच एक जटिल संबंध है। उपभोक्तावाद संस्कृति के तत्वों को प्रभावित करता है, जैसे कि फैशन, संगीत और जीवनशैली। लोग अपने सामाजिक स्थिति को दिखाने के लिए उपभोक्ता वस्तुओं का उपयोग करते हैं, जिससे उपभोक्तावाद संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है।
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