UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  The Hindi Editorial Analysis- 11th August 2023

The Hindi Editorial Analysis- 11th August 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

चुनाव आयोग की स्वायत्तता 


सन्दर्भ:

  • एक महत्वपूर्ण कदम में, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्तियां, सेवा की शर्तें, कार्यालय की अवधि) विधेयक को मानसून सत्र के अंतिम दिन राज्यसभा में पेश किया गया।
  • यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के मार्च के फैसले का अनुसरण करता है, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के प्रावधान प्रस्तुत किए गये । जबकि प्रस्तावित विधेयक में ऐसे बदलाव शामिल हैं जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को बदलते हैं, इसमें सकारात्मक तत्व भी शामिल हैं जो संभावित रूप से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और निष्पक्षता को बढ़ा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में परिवर्तन

  • मार्च में, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ के एक सर्वसम्मत निर्णय में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के एक कॉलेजियम के गठन का निर्देश दिया था । इसका उद्देश्य चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना था। पीठ ने निष्पक्षता बनाए रखने और नियुक्तियों को कार्यकारी प्रभाव से बचाने के लिए मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति की आवश्यकता पर प्रकाश डाला था।
  • केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नया विधेयक मुख्य न्यायाधीश की जगह प्रधानमंत्री द्वारा नामित कैबिनेट मंत्री को शामिल करता है जो की सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश से अलग है।हालाँकि, इसमें एक स्वागत योग्य पहल शामिल है जिसमे चयन समिति के विचार के लिए संभावित सदस्यों का एक पैनल कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में गठित किया जायेगा जिसमें उच्च सरकारी रैंक के दो अन्य सदस्यों को भी शामिल किया जायेगा ।

भारत निर्वाचन आयोग


  • भारत निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ एवं राज्य निर्वाचन प्रक्रियाओं का संचालन करने के लिए उत्तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्य सभा, राज्य विधान सभाओं, देश में राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है।
  • भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आया। तब से संविधान, चुनावी कानूनों और प्रणाली में निहित सिद्धांतों के अनुसार नियमित अंतराल पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते रहे हैं।
  • भारत का चुनाव आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी। आयोग ने 2001 में अपनी स्वर्ण जयंती मनाई।
  • मूलतः आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त था। इसमें वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त शामिल हैं।
  • पहली बार 16 अक्टूबर 1989 को दो अतिरिक्त आयुक्त नियुक्त किये गये लेकिन उनका कार्यकाल 1 जनवरी 1990 तक बहुत छोटा था। बाद में 1 अक्टूबर 1993 को दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त नियुक्त किये गये। बहु-सदस्यीय आयोग की अवधारणा तभी से चलन में है, जिसमें बहुमत से निर्णय लेने की शक्ति होती है।

पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देना


  • विधेयक का एक उत्साहजनक पहलू इसकी इसकी यह शर्त है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों का चयन ऐसे व्यक्तियों में से किया जाना चाहिए जो सचिव के पद के समकक्ष पद धारण करते हों या कर चुके हों। इसके अतिरिक्त, उनके पास चुनाव प्रबंधन, आचरण में सत्यनिष्ठा, ज्ञान और अनुभव होना चाहिए। यह प्रावधान एक महत्वपूर्ण चिंता का समाधान करता है जिसका पहले कोई स्पष्ट समाधान नहीं था इससे गैर-प्रासंगिक नियुक्तियों का जोखिम लगभग समाप्त हो जायेगा ।
  • सर्वोच्च न्यायालय के मार्च के निर्णय का महत्व पक्षपात से निपटने और संस्थागत स्वायत्तता की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने में निहित है। प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल की सलाह के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा संचालित पारंपरिक चयन प्रक्रिया में पूर्वाग्रह की धारणाओं के लिए स्थान शेष रह जाता है । कॉलेजियम की शुरूआत का उद्देश्य चुनाव आयोग की तटस्थता और स्वतंत्रता को बढ़ाना है, जो चुनावी प्रक्रियाओं में नागरिकों का विश्वास बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

तत्काल अनिवार्यताएं और वैश्विक संदर्भ


  • चुनावी संस्थानों में विश्वास कम होने के वैश्विक परिदृश्य में, चुनाव आयोग की संस्थागत स्वायत्तता को बनाए रखना अनिवार्य हो जाता है। गैलप वर्ल्ड पोल रिपोर्टें, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत जैसे देशों में भी चुनावी ईमानदारी में कम होते विश्वास को दर्शाती हैं।
  • हाल की घटनाओं ने पक्षपात और अनियमितताओं के आरोपों के साथ भारत में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। प्रस्तावित परिवर्तनों का उद्देश्य इन चिंताओं को दूर करना और आयोग की स्वायत्तता में वृद्धि करना है।
  • वी-डेम इंस्टीट्यूट की लोकतंत्र पर हालिया रिपोर्ट चुनाव आयोग की स्वायत्तता सहित भारत में लोकतंत्र के घटते संकेतकों पर प्रकाश डालती है। इन चर्चाओं के बीच, यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि कॉलेजियम मॉडल में भी खामियाँ हैं। उदाहरण के लिए, सीबीआई निदेशकों की नियुक्ति कॉलेजियम के माध्यम से की जातीं हैं परन्तु इसमें भी कुछ नियुक्तियाँ विवादों से घिरी रही हैं। कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को शामिल किए जाने को लेकर संदेह जताया गया है,यद्यपि सीजेआई निस्संदेह एक कानूनी विशेषज्ञ हैं, तदापि उम्मीदवारों के साथ उनका परिचय सीमित हो सकता है। इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलने पर नियुक्तियों पर निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने की उनकी क्षमता पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकता है ।

कॉलेजियम मॉडल को पूर्ण करना


  • यद्यपि प्रस्तावित विधेयक पर्याप्त सुधार प्रदान करता है परन्तु, कॉलेजियम मॉडल की प्रभावशीलता, चाहे वह सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों से प्राप्त हुई हो या नए विधेयक से, इसकी विश्वसनीयता पर निर्भर करती है।
  • इसे सुनिश्चित करने के लिए, कॉलेजियम के भीतर एक सर्वसम्मत फैसला इसकी वैधता को मजबूत कर सकता है। ऐसी आवश्यकता सार्वजनिक धारणा को बढ़ा सकती है और नियुक्तियों को अनुचित प्रभाव से बचा सकती है।

निष्कर्ष

प्रस्तुत विधेयक संस्थागत स्वायत्तता की सुरक्षा और विविध दृष्टिकोणों को संतुलित करने के बीच एक जटिल क्रिया का प्रतिनिधित्व करता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से सकारात्मक तत्वों को शामिल करके और अतिरिक्त सुधार पेश करके, सरकार का लक्ष्य लोकतंत्र के प्रकाश स्तंभ के रूप में चुनाव आयोग की भूमिका को सशक्त करना है। सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने और आयोग की अखंडता को बनाए रखने के लिए इन प्रावधानों को अनुकूलित करने में महत्वपूर्ण चुनौती निहित है।

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