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The Hindi Editorial Analysis- 21st August 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

कुपोषण से निपटने के लिए भूख एक चुनौती


सन्दर्भ:

  • भारत के 77 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) द्वारा मापी गयी वर्ष 2015-16 और वर्ष 2019-21 के बीच 135 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की महत्वपूर्ण उपलब्धि पर चर्चा की।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने पहले अनुमान लगाया था कि 2005-06 से 2019-21 तक लगभग 415 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया, जो स्वतंत्रता के बाद के भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। गरीबी के स्तर में यह कमी गरीबी, भूख और कुपोषण को कम करने के लिए क्रमिक सरकार के निरंतर प्रयासों को उजागर करती है।

ऐतिहासिक संदर्भ और आर्थिक बदलाव:

  • राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, एक निर्वाचित सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी गरीबी, भूख और कुपोषण के मुद्दों का समाधान करना है।
  • स्वतंत्रता के प्रारंभिक दिनों में, 80% से अधिक आबादी अत्यधिक गरीबी में रहती थी, यह आंकड़ा MPI के अनुसार अभी लगभग 15% और आय मानदंड ($2.15 पीपीपी) के आधार पर लगभग 11% रह गया है।
  • इस उल्लेखनीय प्रगति का श्रेय 1991 का बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था में परिवर्तन जैसे नीतिगत बदलावों को दिया जा सकता है।
  • इस परिवर्तन से विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में पर्याप्त लाभांश प्राप्त हुआ,जो अब लगभग 600 अरब डॉलर का है, जो बाह्य कारकों के खिलाफ भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को मजबूत करता है।

सतत चुनौतियां: कुपोषण और भूख

  • अन्य उपलब्धियों के बावजूद कुपोषण और भुखमरी आज एक मुख्य चुनौती बनी हुई है। वर्ष 2019 और 2021 के बीच किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आंकड़ों के अनुसार पांच वर्ष से कम उम्र के 32% बच्चे कम वजन के थे, 35% अविकसित थे, और 19% कमजोर थे।
  • वर्तमान समय में भारत ने शिशु मृत्यु दर को 2005-06 में 57% से घटाकर 2019-21 में 35% करने में सराहनीय प्रगति की है यद्यपि, अन्य कुपोषण संकेतकों में यह प्रगति धीमी रही है।

कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा:

  • हरित क्रांति ने देश को "ship to mouth" अर्थव्यवस्था से चावल के दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त, भारत के प्रयासों से श्वेत क्रांति हुई, जिससे यह विश्व स्तर पर दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया।
  • बीटी कपास की शुरुआत ने कपास उत्पादन में जीन क्रांति को जन्म दिया परिणामस्वरूप, कपास उत्पादन में भारत को शीर्ष स्थान पर पहुंचा। हालांकि, इन सफलताओं के बावजूद, कुपोषण एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है, विशेषकर पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में।

जलवायु परिवर्तन:

  • जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति भारत के लिए खाद्य प्रणाली और गरीबी उन्मूलन सम्बन्धी दोहरी चुनौती उत्पन्न करती है।

लिंग-संवेदनशील विकास: चुनौतियों की कुंजी

  • लिंग-संवेदनशील विकास पर प्रधानमंत्री का प्रयास इन जटिल चुनौतियों के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक महिला पायलट होने की भारत की उपलब्धि पर प्रकाश डालते हुए और कृषि ड्रोन संचालित करने के लिए स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं के प्रशिक्षण को बढ़ावा देकर, वह परिवर्तन लाने में महिलाओं की अप्रयुक्त क्षमता को पहचान दिलाने का प्रयास करते हैं।

महिलाओं को सशक्त बनाना: शिक्षा और भागीदारी

  • हालांकि, 2021-22 तक श्रम बल (आयु समूह 15-59 वर्ष) में महिलाओं की भागीदारी दर मात्र 30% है। इसके स्थायी प्रभाव बनाये रखने के लिए, साक्षरता दर में सुधार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने और युवा महिलाओं के लिए कौशल विकास पर ध्यान देना आवश्यक है। एक शोध से पता चला है कि 12वीं कक्षा के बाद महिलाओं की शिक्षा बच्चों के पोषण पर व्यापक प्रभाव डालती है। बेहतर स्वच्छता और पौष्टिक भोजन तक पहुंच भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

व्यापक समाधान के लिए अनुशंसाएँ:

इन बहुआयामी चुनौतियों से निपटने के लिए नीति निर्माताओं को समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए:

  1. महिला शिक्षा को बढ़ावा देना: 10वीं कक्षा से स्नातकोत्तर स्तर तक उदार छात्रवृत्ति की पेशकश करते हुए, महिलाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच को प्रोत्साहित करना और सुधारना आवश्यक है। यह निवेश परिवार के आकार की सीमा के संदर्भ में अति उच्च रिटर्न देता है और देश की वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  2. कृषि उत्पादकता: भोजन के पोषण मूल्य और जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करते हुए कृषि उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसमें प्रचुर और प्रतिस्पर्धी मूल्य वाली खाद्य आपूर्ति बनाए रखने के लिए कृषि में अनुसंधान और विकास व्यय बढ़ाना भी शामिल है।
  3. कृषि पद्धतियों का आधुनिकीकरण: हरित और श्वेत क्रांतियों की सफलताओं के आधार पर सतत विकास और पौष्टिक खाद्य उत्पादन में एक नई क्रांति लाने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के साथ सहयोग किया जा सकता है।

निष्कर्ष

  • आज भारत अपनी विभिन्न उपलब्धियों और शेष चुनौतियों पर विचार कर रहा है। हालांकि गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में प्रभावशाली प्रगति हुई है, फिर भी कुपोषण और भूख, विशेषकर बच्चों में, बनी हुई है। जलवायु परिवर्तन इन मुद्दों को जटिल बनाता है और नवीन समाधानों की आवश्यकता पर बल देता है।
  • शिक्षा और भागीदारी के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना इन चुनौतियों से निपटने का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है। महिलाओं को उच्च शिक्षा और कौशल विकास के अवसर प्रदान करके, भारत गरीबी उन्मूलन, शून्य-भूख और कुपोषण के शमन में महत्वपूर्ण प्रगति कर सकता है। इसके साथ ही, कृषि उत्पादकता और आधुनिकीकरण पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से देश की खाद्य सुरक्षा और जलवायु संबंधी खतरों के प्रति लचीलापन बढ़ सकता है।
  • आगे के रास्ते के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है जो इन दृष्टिकोणों को एकीकृत करें, जिससे भारत के नागरिकों के लिए एक उज्जवल और अधिक पोषित भविष्य का निर्माण हो सके। अतीत के सबक का लाभ उठाकर और नवीन समाधान अपनाकर, भारत सभी के लिए समृद्धि और कल्याण की दिशा में अपनी परिवर्तनकारी यात्रा जारी रख सकता है।
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