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Politics and Governance (राजनीति और शासन): July 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तिया

चर्चा में क्यों? 

  • तमिलनाडु में राज्यपाल द्वारा एक मंत्री को बर्खास्त तथा निलंबित किये जाने के हालिया निर्णय ने संवैधानिक विवाद को जन्म दिया है। हालाँकि बाद में राज्यपाल ने अपना निर्णय बदल दिया और बर्खास्तगी आदेश को निलंबित कर दिया।

मंत्रियों को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ

  • अनुच्छेद 164
    • संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
    • इस अनुच्छेद का तात्पर्य यह है कि राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार किसी मंत्री को नियुक्त नहीं कर सकता है। इसलिये राज्यपाल केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 का संदर्भ
    • भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51(1) और 51(5) के तहत राज्यपाल के पास औपनिवेशिक शासन को संचालित करने वाले मंत्रियों को चुनने और बर्खास्त करने का पूर्ण विवेक था।  
    • हालाँकि भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राज्यपाल की भूमिका एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में बदल गई, जिसका काम पूरी तरह से मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना था। 
  • राज्यपाल के विवेक पर संवैधानिक सीमाएँ
    • किसी मंत्री को चुनने अथवा बर्खास्त करने की शक्ति मुख्यमंत्री के पास होती है। 
    • संविधान सभा की बहस के दौरान बी.आर. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान के तहत राज्यपाल के पास कोई स्वतंत्र कार्यकारी कार्य नहीं है।
    • संविधान के अनुच्छेद 164 में "राज्यपाल की प्रसादपर्यंतता" का समावेश केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर बर्खास्तगी आदेश जारी करने के औपचारिक कार्य को संदर्भित करता है।

राज्यपाल की शक्तियों का न्यायिक स्पष्टीकरण

  • शमशेर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1974)
    • उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की कि राष्ट्रपति और राज्यपाल, जिनके पास संविधान के अंतर्गत कार्यकारी शक्तियाँ हैं, को कुछ असाधारण स्थितियों को छोड़कर अपनी औपचारिक संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग केवल अपने मंत्रियों की सलाह से करना चाहिये।
  • नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर (वर्ष 2015)
    • उच्चतम न्यायालय  ने फैसला सुनाया है कि राज्यपाल चुनी हुई सरकारों के पतन का कारण नहीं बन सकते। इसने शमशेर सिंह मामले में पिछले फैसले की पुष्टि की और इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ अनुच्छेद 163(1) के प्रावधानों तक सीमित हैं।
    • अनुच्छेद 163(1) के अनुसार, राज्यपाल को अपने कर्तव्यों के पालन में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद द्वारा सहायता और सलाह दी जाएगी, सिवाय इसके कि वह इस संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों या उनमें से किसी का पालन करने के लिये बाध्य है।

किसी मंत्री की बर्खास्तगी के मुद्दे से संबंधित चिंताएँ

  • संवैधानिक दुस्साहस
    • किसी मंत्री को हटाना नैतिक निर्णय का मामला है, कानूनी आवश्यकता का नहीं। मुख्यमंत्री की अनुशंसा के बिना किसी मंत्री को बर्खास्त करने का राज्यपाल का निर्णय एक संवैधानिक दुस्साहस है।
  • गलत मिसाल कायम करता है
  •  राज्य के मुख्यमंत्री की सिफारिश के बिना किसी सरकार के मंत्री को बर्खास्त करने का यह अभूतपूर्व और जान-बूझकर उकसाने वाला कृत्य एक मिसाल कायम कर सकता है, साथ ही यह संघीय व्यवस्था को खतरे में डालकर राज्य सरकारों को अस्थिर करने की क्षमता रखता है।
  • संवैधानिक व्यवस्था का पतन: 
  • यदि राज्यपालों को मुख्यमंत्री की जानकारी और अनुशंसा के बिना व्यक्तिगत तौर पर मंत्रियों को बर्खास्त करने की शक्ति का प्रयोग करने की अनुमति दी जाती है, तब पूरी संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी।
  • निष्कर्ष:
  • एक विधानमंडल को राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करने चाहिये।
  • भारत में संसदीय लोकतंत्र के रूप में संसद के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिये, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य विधानमंडल की भी समान भूमिका और महत्त्व होना चाहिये।

राष्ट्रगान के सम्मान की रक्षा

चर्चा में क्यों ?  

हाल ही में श्रीनगर में कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने एक कार्यक्रम जहाँ जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मौजूद थे ,में राष्ट्रगान के लिये खड़े नहीं होने के आरोप में 11 लोगों को हिरासत में लेने के बाद कारावास भेज दिया।

  • उन्होंने आदेश में कहा गया है कि "इस बात की पूरी संभावना है कि रिहा होने पर वे शांति भंग करने उल्लंघन करेंगे और सार्वजनिक शांति भी भंग कर सकते हैं"।
  • उन्हें CRPC की धारा 107/151 के अंतर्गत अच्छे व्यवहार के लिये बाध्य ("बाउंड डाउन") किया गया था।

CRPC की धारा 107 और धारा 151

  • धारा 107: धारा 107 के अनुसार, एक EM यह अनुरोध कर सकता है कि कोई व्यक्ति यह कारण प्रदर्शित करे कि उन्हें अधिकतम एक वर्ष के लिये शांति बनाए रखने के लिये बांड पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता क्यों नहीं होनी चाहिये, यदि EM को जानकारी है कि व्यक्ति ने अशांति फैलाई है (या इसकी संभावना है) या सार्वजनिक शांति को भंग किया है ।
    • कोई भी EM ऐसी कार्रवाई कर सकता है, बशर्ते कोई एक (यदि दोनों नहीं) उसके अधिकार क्षेत्र से संबद्द हो:
    • वह स्थान जहाँ इस प्रकार की शांति भंग होने की संभावना हो
    • वह व्यक्ति जिससे शांति भंग होने की संभावना हो
  • धारा 151:  यह संज्ञेय अपराधों को घटित होने से रोकने के लिये गिरफ्तारी का प्रावधान करता है।
    • यह एक पुलिस अधिकारी को अधिकृत करता है जिसे ऐसे किसी अपराध को करने की योजना बना रहे कुछ व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, तब उन्हें वारंट या मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना ही गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त है।
    • हालाँकि, उन्हें 24 घंटे से अधिक समय तक के लिये हिरासत में नहीं रखा जा सकता जब तक कि अगले आदेश (या किसी अन्य कानून) में ऐसा प्रावधान न किया गया हो।

राष्ट्रगान के सम्मान की रक्षा के लिये सुरक्षा उपाय

  • अनुच्छेद 51 (A)
  •  यह भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का भाग है।
  • संविधान के मूल्यों और संस्थानों के साथ-साथ राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी प्रत्येक भारतीय नागरिक की है।
  • राष्ट्रीय गौरव के अपमान की रोकथाम (PINH) अधिनियम,1971:  
  • अधिनियम में प्रावधान किया गया कि राष्ट्रगान का अपमान करने और उसके प्रतिबंधों को तोड़ने पर कठोर सजा दी जाएगी।
  • आरोपी को 3 वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
  • राष्ट्रगान आचार संहिता:  
  • इसमें यह प्रावधान है कि जब भी राष्ट्रगान गाया या बजाया जाएगा, तो दर्शक सावधान मुद्रा खड़े रहेंगे।
  • हालाँकि, जब किसी न्यूज़रील या वृत्तचित्र के दौरान फिल्म के एक भाग के रूप में राष्ट्रगान बजाया जाता है, तो दर्शकों से खड़े होने की उम्मीद नहीं की जाती है।
  • इसमें उन अवसरों को भी सूचीबद्ध किया गया है जहाँ राष्ट्रगान का संक्षिप्त या पूर्ण संस्करण ही बजाया जाएगा।

राष्ट्रगान के सम्मान के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • बिजो इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य (1986) 
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में राष्ट्रगान के कथित अनादर से संबंधित कानून निर्धारित किया गया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने ईसाई संप्रदाय के 3 बच्चों को सुरक्षा प्रदान की, न्यायालय का यह मानना था कि राष्ट्रगान गाने के लिये बच्चों को मज़बूर करना उनके धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन है।
    • उन बच्चों के माता-पिता ने केरल उच्च न्यायालय में अपील की कि ईसाई धर्म के यहोवा के साक्षी संप्रदाय में केवल यहोवा (ईश्वर का हिब्रू नाम) की आराधना की अनुमति है। उनका कहना था कि चूँकि राष्ट्रगान एक प्रार्थना है, वे सम्मान में खड़े तो हो सकते थे, लेकिन गा नहीं सकते थे।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सम्मानपूर्वक खड़ा होना और खुद न गाना न तो किसी को राष्ट्रगान गाने से रोकता है और न ही गाने के लिये एकत्रित हुए लोगों को किसी भी प्रकार की परेशान करता है। अतः यह राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम (Prevention of Insults to National Honour- PINH) अधिनियम 1971 के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
  • श्याम नारायण चौकसी बनाम भारत संघ (2018) 
    • वर्ष 2016 में इसी मामले की सुनवाई करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था जिसमें सभी भारतीय सिनेमाघरों को फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य था और हॉल में मौजूद सभी लोगों के लिये खड़े हो कर इसका सम्मान करना अनिवार्य था।
    • हालाँकि, जनवरी 2018 में मामले पर अपने अंतिम फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि सिनेमा हॉल में फीचर फिल्मों की स्क्रीनिंग से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है, बल्कि वैकल्पिक है"।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बालासोर ट्रेन हादसे को लेकर ओडिशा सरकार से कार्रवाई रिपोर्ट की मांग की है।  

  • इसके साथ ही भारत ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश एक मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें पवित्र कुरान के अपमान के कृत्य की निंदा की गई।
  • 'भेदभाव, शत्रुता या हिंसा को बढ़ावा देने वाली धार्मिक घृणा का मुकाबला” शीर्षक वाले मसौदा प्रस्ताव को बांग्लादेश, चीन, क्यूबा, मलेशिया, पाकिस्तान, कतर, यूक्रेन और संयुक्त अरब अमीरात सहित कई देशों से समर्थन प्राप्त हुआ है। यह प्रस्ताव धार्मिक घृणा के कृत्यों की निंदा पर बल देता है और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुसार, इस संदर्भ में जवाबदेही का आह्वान करता है। 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

  • परिचय
    • यह व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान से संबंधित अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 
    • भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकार और भारतीय न्यायालयों द्वारा लागू किये जाने योग्य अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध।
  • स्थापना
    • मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत 12 अक्‍तूबर, 1993 को स्थापित किया गया।
    • मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानवाधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित किया गया।
    • पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप स्थापित, मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा के लिये अपनाया गया।
  • संघटन
    • आयोग में एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य और सात मानद सदस्य होते हैं।
    • अध्यक्ष भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश होता है।
  • नियुक्ति और कार्यकाल
    • छह सदस्यीय समिति की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति की जाती है।
    • समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उपाध्यक्ष, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल हैं।
    • अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष की अवधि के लिये या 70 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहते हैं।
  • भूमिका और कार्य
    • न्यायिक कार्यवाही के साथ सिविल न्यायालय की शक्तियाँ रखता है।
    • मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच हेतु केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों या जाँच एजेंसियों की सेवाओं का उपयोग करने का अधिकार है।
    • यह घटित होने के एक वर्ष के भीतर मामलों की जाँच कर सकता है।
    • इसका कार्य मुख्यतः अनुशंसात्मक प्रकृति का होता है।
  • सीमाएँ
    • आयोग कथित मानवाधिकार उल्लंघन की तारीख से एक वर्ष के पश्चात् किसी भी मामले की जाँच नहीं कर सकता है।
    • सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में सीमित क्षेत्राधिकार।
    • निजी पक्षों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

  • परिचय
    • यह संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर-सरकारी निकाय है जो विश्व भर में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • इसे वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकार पर पूर्व संयुक्त राष्ट्र आयोग के स्थान पर स्थापित किया गया।
    • मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
  • सदस्यता
    • इसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा चुने गए 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश शामिल हैं।
    • विभिन्न क्षेत्रों को आवंटित सीटों के साथ समान भौगोलिक वितरण पर आधारित सदस्यता।
    • सदस्य तीन वर्ष  के कार्यकाल के लिये कार्य करते हैं और लगातार दो वर्ष के कार्यकाल के बाद तत्काल पुन: चुनाव के लिये पात्र नहीं होते हैं।
  • प्रक्रियाएँ और तंत्र
    • संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौमिक सामयिक समीक्षा (UPR) संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों में मानवाधिकार स्थितियों का आकलन करती है।
    • सलाहकार समिति विषयगत मानवाधिकार मुद्दों पर विशेषज्ञता और सलाह प्रदान करती है।
    • शिकायत प्रक्रिया व्यक्तियों और संगठनों के मानवाधिकार उल्लंघनों को परिषद के ध्यान में लाने की अनुमति देती है।
    • संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रक्रियाएँ देशों में मानवाधिकार की स्थिति के विशिष्ट विषयगत मुद्दों की निगरानी और रिपोर्ट करती हैं।
  • समस्याएँ
    • सदस्यता की संरचना चिंता उत्पन्न करती है, क्योंकि मानवाधिकारों के हनन के आरोपी कुछ देशों को इसमें शामिल किया गया है।
    • इज़रायल जैसे कुछ देशों पर असंगत फोकस (Disproportionate Focus) की आलोचना की गई है।
  • भारत की भागीदारी
    • वर्ष 2020 में भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूनिवर्सल पीरियोडिक रिव्यू (UPR) प्रक्रिया के तीसरे दौर के एक भाग के रूप में इसे प्रस्तुत किया।
    • भारत को 1 जनवरी, 2019 से शुरू होने वाली तीन वर्ष की अवधि हेतु परिषद के लिये चुना गया था।

संसद से सांसदों का निलंबन

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में राज्यसभा के एक सांसद (संसद सदस्य) को आसन के निर्देशों का "उल्लंघन" करने के लिये निलंबित कर दिया गया है।
  • मणिपुर मुद्दे पर राज्यसभा में विपक्ष का विरोध जारी है। वे इस मामले पर प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया की मांग कर रहे हैं और परिणामस्वरूप इसमें शामिल सांसदों में से एक को निलंबित कर दिया गया।

सांसदों के निलंबन की प्रक्रिया

  • सामान्य सिद्धांत
    • सामान्य सिद्धांत यह है कि व्यवस्था बनाए रखना पीठासीन अधिकारी- लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की भूमिका और कर्तव्य है ताकि सदन सुचारु रूप से चल सके।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि कार्यवाही उचित तरीके से संचालित हो, अध्यक्ष/सभापति को किसी सदस्य को सदन से बाहर जाने के लिये विवश करने का अधिकार है।
  • प्रक्रिया और आचरण के नियमPolitics and Governance (राजनीति और शासन): July 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi
  • निलंबन की शर्तें
    • निलंबन की अधिकतम अवधि शेष सत्र के लिये होती है।
    • निलंबित सदस्य कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकते हैं या समितियों की बैठकों में शामिल नहीं हो सकते हैं।
    • वह चर्चा अथवा किसी प्रकार के नोटिस देने हेतु पात्र नहीं होगा।
    • वह अपने प्रश्नों का उत्तर पाने का अधिकार खो देता है।
  • न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप
    • संविधान का अनुच्छेद 122 कहता है कि संसदीय कार्यवाही पर न्यायालय के समक्ष सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
    • हालाँकि न्यायालयों ने विधायिका के प्रक्रियात्मक कामकाज में हस्तक्षेप किया है, जैसे-
    • महाराष्ट्र विधानसभा ने अपने 2021 के मानसून सत्र में 12 भाजपा विधायकों को एक साल के लिये निलंबित करने का प्रस्ताव पारित किया।
    • यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया, जिसने माना कि मानसून सत्र के शेष समय के बाद भी प्रस्ताव कानून में अप्रभावी था।

आगे की राह 

  • प्रचार या राजनीतिक कारणों से नियोजित संसदीय अपराधों और जान-बूझकर गड़बड़ी से निपटना मुश्किल है।
  • इसलिये विपक्षी सदस्यों को संसद में रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिये और उन्हें अपने विचार रखने तथा सम्मानजनक तरीके से खुद को व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • जान-बूझकर व्यवधान और महत्त्वपूर्ण मुद्दे को उठाने के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत है।
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