भारत को एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की तत्काल आवश्यकता है जो देश के कार्यबल के सभी वर्गों को शामिल करे। हाल के निराशाजनक आंकड़े बताते हैं कि कार्यबल के एक महत्वपूर्ण हिस्से में सामाजिक सुरक्षा लाभों का अभाव है, जो एक निष्पक्ष और सुरक्षित समाज सुनिश्चित करने के लिए इस अंतर को सुधारने की आवश्यकता पर बल देता है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 और कुछ अन्य रिपोर्टें उस गंभीर वास्तविकता की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं जिसमें भारत का लगभग 53% वेतनभोगी कार्यबल आवश्यक सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित है। यह एक चिंताजनक स्थिति है जो भविष्य निधि, पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल और विकलांगता बीमा जैसे महत्वपूर्ण प्रावधानों तक पहुंच के आभाव को दर्शाता है। विचारणीय बिंदु यह है कि कार्यबल के सबसे गरीब लोगों में से केवल 1.9% को ही किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा मिल पाती है, जो की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में व्याप्त भारी असमानता को और भी बढ़ाता है। यहां तक कि श्रम बल का लगभग 1.3% हिस्सा बनाने वाले गिग श्रमिक भी बड़े पैमाने पर सामाजिक सुरक्षा कवरेज से बाहर हैं। अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग भी भारत की सामाजिक सुरक्षा की खराब स्थिति को दर्शाती है,उदहारण के लिए मर्सर सीएफएस ने अपनी रिपोर्ट में भारत को 2021 में 43 देशों में से 40वें स्थान पर रखा है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 व्यापक सामाजिक सुरक्षा ढांचे की स्थापना की ओर नीति निर्माताओं द्वारा पर्याप्त ध्यान न देने की आलोचना करती है। छिटपुट नीतिगत घोषणाओं के बावजूद, आवंटित बजट लगातार कम हुआ है, जबकि वास्तविक उपयोग और भी निराशाजनक रहा है। वित्तीय वर्ष 2011 में राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कोष की स्थापना इसका एक उदाहरण है, जिसका प्रारंभिक आवंटन वास्तविक आवश्यकताओं से काफी कम है। इस सन्दर्भ में वित्त वर्ष 2017 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की ऑडिट रिपोर्ट इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा करती है कि सामाजिक सुरक्षा के लिए निर्धारित महत्वपूर्ण राशि अप्रयुक्त रह गई है, जिससे कई योजनाएं अप्रभावी हो गई हैं।
विभिन्न रिपोर्टें भारत की स्थिति को ब्राज़ील की सामान्य सामाजिक सुरक्षा योजना के साथ तुलना करती हैं, जिसमें विभिन्न आकस्मिकताओं के खिलाफ श्रमिकों और उनके परिवारों को योगदान-आधारित कवरेज प्रदान करने में इसकी सफलता पर प्रकाश डाला गया है। ब्राज़ील का व्यापक दृष्टिकोण दुर्घटनाओं, विकलांगताओं, बीमारियों, पारिवारिक बोझ और यहां तक कि कारावास से संबंधित आय हानि को भी शामिल करता है। वह सफल अंतरराष्ट्रीय मॉडलों को भारत के अनूठे संदर्भ में ढालते हुए अपनाने के महत्व पर जोर देते हैं।
अनौपचारिक क्षेत्र में भारत का लगभग 91% कार्यबल काम करता है,रिपोर्ट इस विशाल क्षेत्र को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की तात्कालिकता को रेखांकित करती । यह स्वीकार करते हुए कि भारत एक वृद्ध समाज की ओर बढ़ रहा है, उन्होंने जोर देकर कहा कि पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा के बिना, सीमित बचत वाले श्रमिकों को भविष्य में गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। यह सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) को सही दिशा में एक कदम के रूप में उजागर करती है, लेकिन ध्यान देता है कि इसका ध्यान मुख्य रूप से औपचारिक उद्यमों पर ही है, जिससे अनौपचारिक क्षेत्र काफी हद तक अछूता रहता है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 औपचारिक और अनौपचारिक श्रमिकों पर समान रूप से ध्यान केंद्रित करते हुए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज प्राप्त करने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति का प्रस्ताव करती हैं। ये औपचारिक श्रमिकों के लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के तहत योगदान का विस्तार करने और पर्याप्त आय वाले अनौपचारिक श्रमिकों से आंशिक योगदान प्राप्त करने का सुझाव देते हैं। अनौपचारिक उद्यमों को अपने संचालन को औपचारिक बनाने और सामाजिक सुरक्षा में योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करना एक और महत्वपूर्ण पहलू है। जो लोग बेरोजगार हैं उनके लिए सरकारी हस्तक्षेप जरूरी है। रिपोर्ट का अनुमान है कि सबसे गरीब 20% कार्यबल को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की लागत ₹1.37 ट्रिलियन है, जो वित्त वर्ष 2020 में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.69% के बराबर है।
रिपोर्ट अब तक किए गए प्रयासों की सराहना करती है, जैसे कि सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020), जिसका उद्देश्य विभिन्न श्रमिक श्रेणियों तक कवरेज का विस्तार करना है। हालाँकि, ये कार्यान्वयन में सीमाओं की ओर इशारा भी करते हैं, विशेष रूप से नियोक्ताओं को शामिल करने के बजाय अनौपचारिक श्रमिकों पर पंजीकरण का बोझ डालने के सन्दर्भ में। ये औपचारिकता को बढ़ावा देने और सामाजिक सुरक्षा अधिकारों को अनिवार्य बनाने के लिए नियोक्ताओं को शामिल करने का सुझाव देती हैं। इसमें निर्माण और गिग श्रमिकों से परे कवरेज का विस्तार करने के लिए वित्तीय सहायता का भी आह्वान किया गया है, जिसमें अखिल भारतीय श्रम बल कार्ड और भवन और अन्य निर्माण श्रमिक योजनाओं जैसी सफल योजनाओं के विस्तार का उल्लेख किया गया है।
रिपोर्ट घरेलू और प्रवासी श्रमिकों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों के समाधान के महत्व को रेखांकित करती हैं। घरेलू कामगारों, अक्सर महिलाओं, को अचानक नौकरी से निकाले जाने के खिलाफ सुरक्षा की आवश्यकता होती है, जबकि प्रवासी कामगारों को अपरिचित क्षेत्रों में सामाजिक सेवाओं तक विस्तारित पहुंच की आवश्यकता होती है।
रिपोर्ट बजटीय सहायता और व्यापक कवरेज के माध्यम से कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ), कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ईएसआई), और राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) जैसी योजनाओं को मजबूत करने की वकालत करती है। प्रशासनिक सुव्यवस्थितता भी महत्वपूर्ण है, जो परिभाषाओं को सरल बनाने और प्राधिकरण के अतिव्यापी क्षेत्रों को खत्म करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
व्यापक सामाजिक सुरक्षा जाल की खोज में, लेख जागरूकता अभियानों की आवश्यकता पर जोर देता है। स्व-रोज़गार महिला संघ जैसे संगठन सूचना प्रसारित करने और विशेष रूप से महिलाओं के बीच सामाजिक सुरक्षा अधिकारों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
वस्तुत: भारत के सामाजिक सुरक्षा उपायों को मजबूत करने और संपूर्ण कार्यबल के लिए सार्वभौमिक कवरेज का विस्तार करने की तात्कालिक अस्व्श्यकता है। यह पुरानी विचारधाराओं को त्यागने और समावेशी और न्यायसंगत विकास को सुविधाजनक बनाने वाली नीतियों को अपनाने के महत्व क स्पष्ट करता है। एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा जाल स्थापित करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि प्रगति का लाभ सभी को मिले, और श्रमिक उभरते नौकरी परिदृश्य में स्थिरता और सुरक्षा पा सकें।
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