UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi  >  Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

MSME के लिये आत्मनिर्भर भारत कोष


चर्चा में क्यों? 

  • हाल ही में सूक्ष्मलघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर के दौरान आत्मनिर्भर भारत कोष के संबंध में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की।

आत्मनिर्भर भारत कोष

  • परिचय:
    • आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India- SRI) कोष के माध्यम से MSME में इक्विटी निवेश के लिये 50,000 करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की है।
    • SRI फंड, इक्विटी या अर्द्ध-इक्विटी निवेश के लिये मदर-फंड (Mother-Fund) और डॉटर-फंड (Daughter-Fund) स्ट्रक्चर के माध्यम से संचालित होता है।
    • राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम वेंचर कैपिटल फंड लिमिटेड (NSIC Venture Capital Fund Limited- NVCFL) को SRI कोष के कार्यान्वयन के लिये मदर फंड के रूप में नामित किया गया था।
    • इसे SEBI के साथ श्रेणी- II वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Fund- AIF) के रूप में पंजीकृत किया गया था।
  • SRI कोष के उद्देश्य
    • व्यवहार्य और उच्च क्षमता वाले MSME को इक्विटी फंड प्रदान करना तथा उनके विकास एवं बड़े उद्यमों में परिवर्तन को बढ़ावा देना।
    • नवाचारउद्यमिता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देकर भारतीय अर्थव्यवस्था में MSME क्षेत्र के योगदान को बढ़ाना।
    • तकनीकी उन्नयन, अनुसंधान एवं विकास और MSME के लिये बाज़ार पहुँच बढ़ाने के लिये अनुकूल वातावरण बनाना।
  • SRI कोष की संरचना:
    • SRI कोष में 50,000 करोड़ रुपए शामिल हैं:
    • विशिष्ट MSME में इक्विटी निवेश शुरू करने के लिये भारत सरकार की ओर से 10,000 करोड़ रुपए।
    • निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता तथा निवेश का लाभ उठाते हुए निजी इक्विटी (Private Equity- PE) और वेंचर कैपिटल (Venture Capital- VC) फंड के माध्यम से 40,000 करोड़ रुपए एकत्र किये गए।

भारत में MSME क्षेत्र की स्थिति

  • परिचय
    • MSME से तात्पर्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम से है। भारत का MSME क्षेत्र देश की कुल GDP में लगभग 33% का योगदान देता है, हालाँकि वर्ष 2028 तक इसका भारत के कुल निर्यात में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान करने का अनुमान है।
  • महत्त्व
    • रोज़गार सृजनMSME लगभग 110 मिलियन रोज़गार अवसर प्रदान करते हैं जो भारत में कुल रोज़गार का 22-23% है।
    • यह बेरोज़गारी और अल्प-रोज़गार को कम करने, समावेशी विकास के साथ ही निर्धनता में कमी लाने में योगदान करता है।
    • उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावाMSME क्षेत्र उद्यमिता और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देता है।
    • यह व्यक्तियों को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिये प्रोत्साहित करता है, स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देता है, साथ ही नवीन उत्पादों और सेवाओं के विकास में भी योगदान करता है।
    • ग्रामीण विकास के लिये वरदानवृहद् स्तर की कंपनियों की तुलना में MSME ने न्यूनतम पूंजी लागत पर ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगीकरण में सहायता की है।
  • चुनौतियाँ
    • बुनियादी ढाँचा और प्रौद्योगिकीसीमित वित्त एवं विशेषज्ञता के कारण पुराना बुनियादी ढाँचा और आधुनिक तकनीक तक सीमित पहुँच MSME की वृद्धि तथा दक्षता में बाधा बन सकती है।
    • उचित परिवहनविद्युत आपूर्ति और संचार नेटवर्क की कमी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करती है।
    • जटिल विनियामक वातावरणबोझिल और जटिल विनियम लघु व्यवसायों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
    • कराधानश्रमपर्यावरण मानदंड आदि से संबंधित विभिन्न कानूनों के अनुपालन के लिये समयप्रयास और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
    • अपर्याप्त कार्यशील पूंजी प्रबंधन: कई MSME अपनी कार्यशील पूंजी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में संघर्ष करते हैं।
    • ग्राहकों से होने वाले भुगतान में विलंब और आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ लंबे भुगतान चक्र से नकदी प्रवाह संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलताMSME क्षेत्र विशेष रूप से आर्थिक मंदी के प्रति संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उनके पास चुनौतीपूर्ण आर्थिक परिस्थितियों का सामना करने के लिये उपयुक्त वित्तीय स्तर नहीं होता है
  • MSME क्षेत्र के लिये सरकारी पहलें:
    • MSME चैंपियंस (CHAMPIONS) स्कीम: MSME-सस्टेनेबल (ZED), MSME-कंपटीटिव (Lean) और MSME-इनोवेटिव [इनक्यूबेशनडिजाइन, IPR (बौद्धिक संपदा अधिकारऔर डिज़िटल MSME] के समायोजन से यह योजना MSME को उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता और नवाचार क्षमताओं को बढ़ाने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • क्रेडिट गारंटी फंड में निवेशवर्ष 2023-24 के बजट के एक भाग के रूप में सरकार ने सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के कोष में 9,000 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की है।
    • MSME के प्रदर्शन को बढ़ाने और तीव्र करने के लिये (RAMP): यह पहल केंद्र तथा राज्य दोनों स्तरों पर MSME कार्यक्रम के तहत संस्थानों और प्रशासन को दृढ़ता प्रदान करने पर केंद्रित है।
    • आयकर अधिनियम में संशोधनवित्त अधिनियम, 2023 द्वारा आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 43B को बदल दिया गया है ताकि MSME हेतु अधिक अनुकूल कर संबंधी प्रावधान किये जा सकें।

आगे की राह 

  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेसMSMEs के लिये 'व्यापार सुगमता(Ease of Doing Business) को बेहतर बनाने, नौकरशाही, लालफीताशाही को कम करने और नियामक अनुपालन को सरल बनाने की दिशा में लगातार काम करने की आवश्यकता है।
  • मोबाइल इनोवेशन लैब्स: MSME को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों, प्रशिक्षण और परामर्श तक पहुँच प्रदान करने के लिये मोबाइल इनोवेशन लैब स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों को कवर किया जा सके।
  • यह पहल प्रौद्योगिकी अंतर को पाटने और दूरदराज़ के क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
  • सरकारी-निजी क्षेत्र सह-नवाचार निधि: यह सह-निवेश निधि सृजन का समय हैजबकि सरकार निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ साझेदारी कर MSME नवाचारों में निवेश करेगी।
  • यह सहयोग न केवल नवीन व्यवसायों के विकास का समर्थन करेगा बल्कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी को भी बढ़ाएगा।
  • नवप्रवर्तन प्रभाव आकलन: एक मानकीकृत प्रभाव मूल्यांकन ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है जो MSME क्षेत्र में हुए नवाचारों के सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को माप सके।
  • ऐसे व्यवसाय जो नवाचारों के माध्यम से सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करते हैं उन्हें मान्यता और अतिरिक्त समर्थन प्राप्त हो सकता है।

चीन में अत्यधिक अपस्फीति की चिंता

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने बताया कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) में जुलाई 2023 में एक वर्ष पहले की तुलना में 0.3% की गिरावट आई, जिससे देश में अपस्फीति (Deflation) की स्थिति उत्पन्न हुई।

अपस्फीति

  • परिचय:
    • अपस्फीति मुद्रास्फीति के विपरीत स्थिति है। यह अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के समग्र मूल्य स्तर में निरंतर और सामान्य कमी को संदर्भित करती है।
    • अपस्फीति के माहौल में उपभोक्ता समय के साथ समान राशि के लिये अधिक वस्तुएँ एवं सेवाएँ खरीद सकते हैं।
    • हालाँकि अपस्फीति विभिन्न कारणों से हो सकती है, जैसे- उपभोक्ता मांग में कमी, माल की अधिक आपूर्ति, तकनीकी प्रगति जो उत्पादन लागत को कम करती है या केंद्रीय बैंकों द्वारा सख्त मौद्रिक नीतियाँ।
    • चीन के मामले में उपभोक्ता मांग में कमी और आर्थिक मंदी इसका कारण है।

प्रभाव

  • सकारात्मक:
    • कम ब्याज दरअपस्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक उधार लेने तथा व्यय के लिये प्रोत्साहित करने हेतु ब्याज दरें कम कर सकते हैं। कम ब्याज दरों से व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिये उधार लेने की लागत कम हो सकती है, संभावित रूप से निवेश, उपभोग तथा आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है।
    • बेहतर बचत प्रोत्साहन: अपस्फीति बचत को प्रोत्साहित कर सकती है क्योंकि समय के साथ पैसे का मूल्य बढ़ता है। बचतकर्ताओं के पैसे के मूल्य में वृद्धि की अधिक संभावना होती है, जो उन्हें भविष्य के लिये और अधिक बचत करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है तथा दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता में योगदान कर सकता है।
    • आर्थिक दक्षताअपस्फीति व्यवसायों को अधिक कुशल बनने और उनके संचालन को सुव्यवस्थित करने के लिये प्रेरित कर सकती है। गिरती कीमतें कंपनियों को लाभप्रदता को बनाए रखने के लिये लागत कम करनेनवाचार करने और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं। दक्षता के चलते उत्पादकता में लाभ और दीर्घकालिक आर्थिक विकास हो सकता है।
    • निश्चित-आय लाभार्थियों के लिये अनुकूलजो लोग निश्चित-आय हेतु निवेश पर भरोसा करते हैं, जैसे कि पेंशन योजना या निश्चित वार्षिकी वाले सेवानिवृत्त लोग, अपस्फीति से लाभान्वित हो सकते हैं। चूँकि पैसे का मूल्य बढ़ता है, जिससे उनकी निश्चित आय में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि होती है, जिससे उन्हें आय का एक स्थिर और विश्वसनीय स्रोत मिलता है।
  • नकारात्मक:
    • आर्थिक संकुचन का नीचे की ओर बढ़ना: जब उपभोक्ताओं को कीमतों में और गिरावट की आशंका होती हैतो वे खरीदारी में देरी करते हैं, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो जाती है। मांग में कमी से उत्पादन में गिरावट की स्थिति देखी जा सकती है, व्यापार राजस्व कम हो सकता है और यहाँ तक कि कर्मियों की छंटनी भी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता खर्च में कमी आ सकती है।
    • यह चक्र आर्थिक संकुचननौकरी छूटने और वित्तीय अस्थिरता का एक निचला चक्र (Downward Spiral) उत्पन्न कर सकता है।
    • व्यावसायिक राजस्व में कमी लानाकम कीमतें व्यवसाय के राजस्व को कम कर देती हैं, जिससे मुनाफा और निवेश कम हो जाता है तथा संभावित रूप से अधिक बेरोज़गारी होती है क्योंकि मांग में कमी के कारण कंपनियाँ उत्पादन कम कर देती हैं।
    • महँगा सेवा ऋणअपस्फीति से ऋण का वास्तविक बोझ बढ़ सकता है। जैसे-जैसे कीमतें गिरती हैं, ऋण का मूल्य स्थिर रहता है या वास्तविक रूप से बढ़ भी जाता है। इससे व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों के लिये अपने ऋण दायित्वों का प्रबंधन करना अधिक कठिन हो सकता है।
    • अपस्फीति के समय ऋण चुकौती पर खर्च किये गए प्रत्येक डॉलर की सापेक्ष क्रय शक्ति कीमतों में गिरावट के पहले की तुलना में अधिक होती है।
    • हालाँकि आर्थिक परिस्थितियाँ जटिल हो सकती हैं और अपस्फीति के वास्तविक प्रभाव किसी अर्थव्यवस्था की विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं

चीन में अपस्फीति के कारण

  • ज़ीरो-कोविड पॉलिसी :
    • चीनी अर्थव्यवस्था एक साल से अधिक समय से संघर्ष कर रही है। सबसे प्रमुख कारण उसकी भारी-भरकम ज़ीरो-कोविड पॉलिसी थी, जिसमें कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के प्रयास में पूरे शहरों को कभी-कभी हफ्तों के लिये बंद कर दिया गया था।
  • प्रॉपर्टी और बैंकिंग सेक्टर में मंदी:
    • संपत्ति क्षेत्र, जिसका हाल के वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 20% से 30% के बीच योगदान रहा है, को गंभीर मंदी का सामना करना पड़ा है, कई प्रमुख डेवलपर्स अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हैं और कई परियोजनाएँ अधूरी रह गई हैं।
    • बैंकिंग क्षेत्र पर कई स्थानीय सरकारी एजेंसियों (जिनके राजस्व में भारी गिरावट आई) को दिये गए बुरे ऋणों के कारण भी काफी दबाव है।
  • बेरोज़गारी:
    • युवा श्रमिकों के बीच बढ़ती बेरोज़गारी भी एक अन्य समस्या है, 16 से 24 वर्ष की आयु के लोगों के लिये आधिकारिक बेरोज़गारी दर 21% है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि वास्तविक आँकड़ा इससे काफी अधिक है।

चीन की अवस्फीति का भारत और विश्व पर प्रभाव

  • भारत:
    • सकारात्मक प्रभाव: यदि चीनी अर्थव्यवस्था की धीमी दर (जिसे वर्तमान में अपस्फीति माना जा रहा है) के कारण उसकी अर्थव्यवस्था में निवेश में कमी आती है, तो भारत विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिये संभावित विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर सकता है।
    • यदि भारत के आर्थिक सुधारों में तेज़ी लाई जाए तो आने वाले समय में भारत एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र बन सकता है।
    • नकारात्मक प्रभाव: चीन, भारत से लौह अयस्क के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। पूर्वी एशियाई देश लगभग 70% लौह-अयस्क भारत से आयात करते हैं
    • अतः चीन की अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने का मतलब होगा कि चीन के आयात की मात्रा घटने से इसका प्रभाव कुछ हद तक भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
  • विश्व स्तर पर:
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाकई वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ चीन के साथ जटिल रूप से जुड़ी हुई हैं। यदि अपस्फीति और कमज़ोर मांग के कारण चीन के निर्यात क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो आपूर्ति शृंखला में उत्पन्न होने वाला व्यवधान विश्व भर के उद्योगों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें भारत (चीन से मध्यवर्ती वस्तुओं पर निर्भर) भी शामिल है।
    • वैश्विक विकासचीन, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा इसकी आर्थिक स्थिति का वैश्विक विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
    • अपस्फीति के कारण चीन की आर्थिक गतिविधियों में भारी गिरावट से विश्व में वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम हो सकती है, जो वैश्विक आर्थिक विकास की मंदी में योगदान कर सकती है।
  • केंद्रीय बैंक एवं मौद्रिक नीति
    • चीन की अपस्फीति के जवाब में विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों को मौद्रिक नीति के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
    • वैश्विक मांग कम होने से मुद्रास्फीति का दबाव कम हो सकता है, साथ ही यह ब्याज दर नीतियों को प्रभावित कर सकती है।

आगे की राह

  • भारत सहित दुनिया भर के नीति निर्माताओं को इन विकासों पर अति-सूक्ष्म दृष्टि रखने तथा संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये रणनीति बनाने की आवश्यकता होगी।
  • अपस्फीति के प्रभावों में बढ़ा हुआ ऋण बोझ, परिवर्तित उपभोक्ता व्यवहार, कम व्यावसायिक निवेश तथा मौद्रिक नीति के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
  • अपस्फीति को संबोधित करने के लिये मांग को बढ़ावा देने तथा आर्थिक विकास को फिर से गति प्रदान करने के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन एवं मौद्रिक नीति उपायों के संयोजन की आवश्यकता होगी।

फ्लोटिंग रेट ऋण

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पारदर्शिता बढ़ाने और फ्लोटिंग रेट ऋणों के लिये समान मासिक किस्तों (Equated Monthly Installments- EMI) को पुनर्व्यवस्थित करने के लिये उचित नियम स्थापित करने हेतु एक व्यापक ढाँचा प्रस्तुत किया है।
  • इसका उद्देश्य उधारकर्त्ताओं की चिंताओं को दूर करना तथा वित्तीय संस्थानों के उचित व्यवहार को सुनिश्चित करना है।

फ्लोटिंग रेट ऋण

  • फ्लोटिंग रेट ऋण ऐसे ऋण होते हैं जिनकी ब्याज दर बेंचमार्क दर या आधार दर/बेस रेट के आधार पर समय-समय पर बदलती रहती है।
    • आधार दर/बेस रेट वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक वित्तीय संस्थानों को पैसा उधार देता है, यह दर बाज़ार द्वारा प्रभावित होती है और रेपो रेट इसका सबसे सामान्य उदाहरण है।
  • फ्लोटिंग रेट ऋण को परिवर्तनीय अथवा समायोज्य-दर ऋण के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि ये ऋण की अवधि के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
  • क्रेडिट कार्डबंधक/गिरवी रखी वस्तुओं और अन्य उपभोक्ता ऋणों के लिये फ्लोटिंग रेट ऋण बहुत आम हैं।
  • यदि भविष्य में ब्याज दरों में गिरावट का अनुमान है तो उधारकर्त्ताओं को फ्लोटिंग रेट ऋण से लाभ होता है।
    • इसके विपरीत एक निश्चित ब्याज दर वाले ऋण के लिये उधारकर्त्ता को ऋण अवधि के दौरान निर्धारित किश्तों का भुगतान करना पड़ता है। यह अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव के समय अधिक सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करता है।

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

  • नए पारदर्शी ढाँचे की आवश्यकता:
    • मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के प्रयास में RBI रेपो दरें बढ़ाता रहा है। रेपो दरों में वृद्धि के साथ फ्लोटिंग दरें भी बढ़ जाती हैं। इसका आशय है कि उधारकर्त्ताओं को अधिक EMI भुगतान करना पड़ सकता है।
    • यह पाया गया है कि अधिक EMI मांगने के बजाय कुछ बैंक उधारकर्त्ता को सूचित किये बिना ऋण की अवधि बढ़ा रहे हैं।
    • इससे ऋण के पुनर्भुगतान में अनावश्यक रूप से अधिक समय लग रहा है तथा यह उधारकर्त्ताओं की उचित सहमति के बिना हो रहा है।
    • उधारकर्त्ताओं को इंटरनल बेंचमार्क रेट (Internal Benchmark Rate) में बदलाव और ऋण की अवधि के दौरान होने वाली क्षति से बचाना।
    • उधारकर्त्ताओं द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दों जैसे- फोरक्लोज़र चार्ज (Foreclosure Charges), स्विचिंग ऑप्शन (Switching Options) और प्रमुख नियमों एवं शर्तों के बारे में जानकारी की कमी का समाधान करना।
  • RBI द्वारा प्रस्तावित ढाँचे की विशेषताएँ:
    • ऋणदाताओं को अवधि और/या EMI के पुनः निर्धारण हेतु उधारकर्त्ताओं के साथ स्पष्ट रूप से संवाद करना चाहिये।
    • RBI ने ऋणदाताओं से कहा है कि वे जब भी चाहें उधारकर्त्ताओं को फिक्स्ड-रेट होम लोन (Fixed-Rate Home Loans) पर स्विच करने या ऋण को फोरक्‍लोज़र (Foreclosure) करने का विकल्प प्रदान कर सकते हैं।
    • बैंकों को इन विकल्पों के प्रयोग से जुड़े विभिन्न शुल्कों के बारे में पहले से ही उधारकर्त्ताओं को बताना होगा और उन्हें महत्त्वपूर्ण जानकारी देनी होगी।
    • इसके परिणामस्वरूप उधारकर्त्ता अपने गृह ऋण का भुगतान करते समय अधिक जानकारीपूर्ण निर्णय ले सकेंगे।
    • ऋणदाताओं को उत्पीड़नधमकी या गोपनीयता का उल्लंघन जैसी अनैतिक या ज़बरदस्ती ऋण वसूली प्रथाओं में शामिल नहीं होना चाहिये।
  • प्रस्तावित ढाँचे से उधारकर्त्ताओं और ऋणदाताओं को लाभ:
    • इससे उधारकर्त्ताओं के पास अपने फ्लोटिंग रेट ऋणों के संबंध में अधिक स्पष्टतापारदर्शिता एवं विकल्प होंगे और वे बिना किसी दंड या परेशानी के उनसे बाहर निकलने या स्विच करने में सक्षम होंगे।
    • इसके चलते उधारकर्त्ता ऋणदाताओं द्वारा ब्याज दरों या EMI में अनुचित या मनमाने ढंग से किये गए परिवर्तन से सुरक्षित रहेंगे और अपने वित्त की बेहतर योजना बनाने में सक्षम होंगे।
    • इसके कारण उधारकर्त्ताओं के साथ ऋणदाता सम्मानपूर्वक व्यवहार करेंगे और ऋण वसूली के दौरान उन्हें उत्पीड़न या दुर्व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ेगा।
    • इसके द्वारा ऋणदाता अच्छे ग्राहक संबंध और विश्वास बनाए रखने में सक्षम होंगे एवं अनुचित ऋण आचरण के कारण प्रतिष्ठा को जोखिम या कानूनी कार्रवाई से बच सकेंगे।
    • इससे ऋणदाता अपनी परिसंपत्ति गुणवत्ता और जोखिम प्रबंधन में सुधार एवं नियामक मानदंडों व अपेक्षाओं का अनुपालन सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे।

MPC के हालिया निर्णय: रेपो, मुद्रास्फीति अनुमान, आई-सीआरआर

चर्चा में क्यों

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने हाल ही में चालू वित्त वर्ष (2023-24) में खुदरा मुद्रास्फीति के लिये अपने अनुमान को संशोधित करते हुए नीति रेपो दर को 6.5% पर बनाए रखने का विकल्प चुना है।

  • इसके अलावा अतिरिक्त तरलता को कम करने के लिये बैंकों के लिये अस्थायी 10% वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR) बनाए रखना आवश्यक है।

MPC के प्रमुख निर्णय

  • रेपो दर को अपरिवर्तित रखनाRBI ने आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति नियंत्रण को संतुलित करने के लिये नीतिगत रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया।
  • मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ाना: चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान 30 आधार अंक बढ़ाकर 5.4% कर दिया गया है।
    • यह समायोजन सब्जियों की बढ़ती कीमतों के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति को स्वीकार करता है।
    • जबकि सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी अस्थायी होने की अपेक्षा होती है, संभावित अल नीनो (El Nino) मौसम की स्थिति तथा वैश्विक खाद्य कीमतें जैसे बाहरी कारक संभावित जोखिम उत्पन्न करते हैं।
  • अनुमानित GDP वृद्धि: MPC ने वर्ष 2023-24 में वास्तविक GDP वृद्धि के अपने अनुमान को 6.5% पर बनाए रखा है।
  • वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR): 12 अगस्त, 2023 से प्रभावी, अनुसूचित बैंकों को 19 मई, 2023 तथा 28 जुलाई, 2023 के बीच अपनी मांग और समय देनदारियों में शुद्ध वृद्धि पर 10% का I-CRR बनाए रखना आवश्यक है। 
    • इस कदम का उद्देश्य अधिशेष तरलता को कम करना है, विशेष रूप से हाल ही में 2000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण के कारण।
    • RBI ने बैंकों को उनकी वर्तमान जमा राशि के लिये दंडित करने से रोकने तथा क्रेडिट वृद्धि और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को सीमित करने के लिये सामान्य CRR (Cash Reserve Ratio) वृद्धि के बजाय I-CRR का विकल्प चुना।
    • CRR वृद्धि से ऋण निधि सीमित हो जाएगी तथा उधार लेने की लागत बढ़ जाएगी। I-CRR नियमित बैंकिंग परिचालन को बाधित किये बिना विमुद्रीकरण से अतिरिक्त तरलता को लक्षित करता है।
    • मौजूदा CRR 4.5% पर अपरिवर्तित है।
    • साथ ही RBI ने स्पष्ट किया कि I-CRR एक अस्थायी उपाय है। वर्ष 2016 में विमुद्रीकरण के समय 100% I-CRR नियोजित किया गया था।

HDFC लिमिटेड-HDFC बैंक विलय एवं RBI का हालिया कदम

  • अनुमान: इस अतिरिक्त CRR को शुरू करने का RBI का निर्णय विलय के बाद अनुग्रह अवधि के दौरान HDFC बैंक द्वारा प्राप्त किसी भी संभावित लाभ की भरपाई करने का एक प्रयास हो सकता है।
  • पृष्ठभूमि: HDFC लिमिटेड एक बैंक नहीं थालेकिन यह जमा राशि ही एकत्रित कर सकता था। हालाँकि यह CRR नियम के अधीन नहीं था। इसके बाद HDFC लिमिटेड का HDFC बैंक में विलय हो गयाजिससे बैंकिंग प्रणाली में बड़ी मात्रा में जमा राशि आ गई।
    • विलय के बाद HDFC बैंक को एक छूट अवधि दी गई थी, जिसके दौरान उसे अपनी नई जमा राशि पर सामान्य 4.5% CRR जमा नहीं करना था।
    • इस अनुग्रह अवधि ने बैंक को संभावित रूप से इन महत्त्वपूर्ण जमाओं को कहीं और निवेश करने के साथ ही इन निवेशों से लाभ कमाने की अनुमति दी।
    • RBI के वृद्धिशील CRR के हालिया कदम का तात्पर्य है कि HDFC बैंक समेत बैंकों को इन जमाओं का अतिरिक्त 10% RBI के पास रखना होगा।

अतिरिक्त तरलता को कम करने हेतु RBI के अन्य उपाय

  • रिवर्स रेपो परिचालन: RBI रिवर्स रेपो परिचालन संचालित कर सकता है, जहाँ यह बैंकों को धन के बदले में सरकारी प्रतिभूतियों को प्रस्तुत करके अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करता है।
    • हालाँकि हाल ही में RBI ने रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने के बजाय I-CRR का उपयोग करने का विकल्प चुना क्योंकि रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने से रेपो रेट भी बढ़ जाता जिससे कठोर मौद्रिक नीति की स्थिति के साथ ही आर्थिक सुधार में बाधा उत्पन्न होती है।
  • विदेशी मुद्रा परिचालन: विदेशी मुद्रा भंडार बेचने से घरेलू मुद्रा बाज़ार में तरलता कम हो सकती है।
    • इस दृष्टिकोण का उपयोग सावधानी से किया जा सकता है, क्योंकि यह विनिमय दर तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित कर सकता है।
  • नैतिक प्रेरणा RBI बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ संवाद करके उन्हें स्वेच्छा से अपनी तरलता की स्थिति का प्रबंधन करने और अत्यधिक उधार देने पर अंकुश लगाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • नोट
    • CRR: नकद आरक्षित अनुपात, शुद्ध मांग और समय देनदारियों का एक प्रतिशतबैंकों को तरलता को नियंत्रित करने के लिये केंद्रीय बैंक (RBI) के पास रखना चाहिये।
    • वृद्धिशील CRR: अतिरिक्त तरलता का प्रबंधन एवं अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये RBI द्वारा बैंकों की CRR अधिक करने आवश्यकता है।
    • रेपो दर: यह वाणिज्यिक बैंकों हेतु अल्पकालिक ऋण के लिये RBI द्वारा निर्धारित ब्याज दर है। यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने एवं आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण है।
    • मुद्रास्फीति: यह एक समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में निरंतर वृद्धि को संदर्भित करता है, जिससे रुपए की क्रय शक्ति में कमी आती है।
    • हेडलाइन मुद्रास्फीतियह उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं की एक टोकरी शामिल होती है।
      • खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति भारत में हेडलाइन मुद्रास्फीति के घटकों में से एक है।
    • कोर मुद्रास्फीति: यह हेडलाइन मुद्रास्फीति पर नज़र रखने वाली वस्तुओं की टोकरी से अस्थिर वस्तुओं को बाहर करती है। इन अस्थिर वस्तुओं में मुख्य रूप से भोजन और पेय पदार्थ (सब्जियों सहित) तथा ईंधन एवं प्रकाश (कच्चा तेल) सम्मिलित है।
      • कोर मुद्रास्फीति = हेडलाइन मुद्रास्फीति - (खाद्य और ईंधन) मुद्रास्फीति।
    • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण: यह एक मौद्रिक नीति ढाँचा है जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति के लिये एक विशिष्ट लक्ष्य सीमा बनाए रखना है।
    • उर्जित पटेल समिति (Urjit Patel Committee) ने मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के उपाय के रूप में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) की सिफारिश की।
      • वर्तमान मुद्रास्फीति लक्ष्य भी 4% की लक्ष्य मुद्रास्फीति दर स्थापित करने की समिति की सिफारिश के साथ संरेखित है, जिसमें विचलन की स्वीकार्य सीमा +/- 2% है।
      • केंद्र सरकार, RBI के परामर्श से खुदरा मुद्रास्फीति के लिये मुद्रास्फीति लक्ष्य तथा ऊपरी और निचली छूट का स्तर निर्धारित करती है।
    • तरलता से तात्पर्य उस सुविधा से है जिसके साथ किसी परिसंपत्ति या सुरक्षा को उसकी कीमत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाले बिना बाज़ार में जल्दी से खरीदा या बेचा जा सकता है।
      • यह वित्तीय दायित्वों को पूरा करने या निवेश के लिये नकदी या तरल संपत्ति की उपलब्धता को दर्शाता है। सरल शब्दों में तरलता का अर्थ है जब भी आपको ज़रूरत हो अपना पैसा प्राप्त करना।

भारत में अतिरिक्त तरलता के प्रभाव

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • कम ब्याज दरें: अतिरिक्त तरलता से अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम हो सकती हैं।
    • जब धन की प्रचुरता होती है, तो बैंक तथा वित्तीय संस्थान उधारकर्त्ताओं को आकर्षित करने के लिये अपनी उधार दरें कम कर देते हैं।
    • यह उधार लेने और निवेश गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकता है तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
    • निवेश को प्रोत्साहित करनाकम ब्याज दरों के साथ व्यवसायों को अपने परिचालन का विस्तार करनेनई परियोजनाएँ शुरू करने और नौकरियाँ प्रदान करने के लिये उधार लेना और निवेश करना सस्ता पड़ सकता है।
    • इसका आर्थिक गतिविधि और रोज़गार सृजन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • मुद्रास्फीति का दबावअतिरिक्त तरलता, अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव में योगदान कर सकती है।
    • जब वस्तुओं और सेवाओं की सीमित आपूर्ति के पीछे बहुत अधिक पैसा व्यय होता है, तो कीमतें बढ़ सकती हैं।
    • इससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति नष्ट हो सकती है तथा उनके समग्र जीवन स्तर में कमी आ सकती है।
    • विनिमय दर में अस्थिरताविदेशी पूंजी के अचानक प्रवाह से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि हो सकती है, जिससे निर्यात अधिक महँगा हो जाएगा तथा आयात सस्ता हो जाएगा।
    • दूसरी ओर, बहिर्प्रवाह से मुद्रा का अवमूल्यन हो सकता हैजो व्यापार संतुलन और बाहरी ऋण को प्रभावित कर सकता है।
    • एसेट प्राइस बबल्स: अतिरिक्त तरलता द्वारा परिसंपत्ति की कीमतों में वृद्धि होने से स्पेकुलेटिव बबल्स (परिसंपत्तियों की कीमतों में तीव्र वृद्धि) की स्थिति भी हो सकती है।
    • परिसंपत्तियों की कीमतों में वृद्धि को बुनियादी सिद्धांतों द्वारा समर्थित नहीं किये जाने के परिणामस्वरूप कीमतों में अचानक गिरावट  सकती हैजिससे वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।
    • इससे अर्थव्यवस्था में आय असमानता में वृद्धि हो सकती है।
    • आय असमानता: जिन अमीरों का परिसंपत्तियों में अधिक निवेश है, वे अतिरिक्त तरलता के लाभों, जैसे कि उच्च परिसंपत्ति मूल्यों से असंगत रूप से लाभ कमा सकते हैं।

उच्च मुद्रास्फीति और उच्च तरलता का एक साथ प्रबंधन

  • ब्याज दर समायोजन: RBI ब्याज दरों के समायोजन के लिये सतर्कतावादी दृष्टिकोण का सहारा ले सकता है।
    • उच्च तरलता ब्याज दरों को कम करने की मांग कर सकती है, लेकिन मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना भी आवश्यक है।
    • तरलता और मुद्रास्फीति दोनों को प्रबंधित करने के लिये वृद्धिशील ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना एक संतुलित मार्ग हो सकता है।
  • ओपन मार्केट ऑपरेशंस: RBI नियंत्रित ओपन मार्केट ऑपरेशंस का भी उपयोग कर सकता है, इसके तहत मौद्रिक व्यवस्था में निवेश हेतु तरलता को संतुलित करने के लिये सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री की जाती है।
    • इससे अति तरलता के मुद्रास्फीतिकारी प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • लक्षित राजकोषीय उपाय: भारत सरकार मुद्रास्फीति उत्पन्न करने वाले व्यवसायों से निपटने के लिये केंद्रित राजकोषीय रणनीतियों को लागू कर सकती है।
    • उदाहरण के लिये कृषि संबंधी बुनियादी ढाँचे और आपूर्ति शृंखला में सुधार हेतु निवेश से खाद्य कीमतों को स्थिर करने में मदद मिल सकती है, यह भारत में मुद्रास्फीति का वर्तमान प्रमुख कारक है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण योजना, प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) की प्रभावशीलता को लेकर विवाद खड़ा हो गया, इस संबंध में कहा गया है कि यह विनिर्माण और आर्थिक विकास में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के बजाय इम्पोर्ट बेस्ड असेंबली जॉब्स (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को तैयार करने में आयात पर निर्भरता वाले रोज़गार) उत्पन्न करती है।

उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI):

  • परिचय:
    • PLI योजना की कल्पना घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ उच्च आयात प्रतिस्थापन और रोज़गार सृजन के लिये की गई थी।
    • मार्च 2020 में शुरू की गई इस योजना ने आरंभ में तीन उद्योगों को लक्षित किया:
      • मोबाइल और संबद्ध घटक विनिर्माण
      • विद्युत घटक विनिर्माण
      • चिकित्सा उपकरण
    • बाद में इसे 14 क्षेत्रों तक बढ़ा दिया गया।
    • PLI योजना में घरेलू और विदेशी कंपनियों को भारत में विनिर्माण के लिये पाँच वर्षों तक उनके राजस्व के प्रतिशत के आधार पर वित्तीय लाभ प्राप्त होता है।
  • लक्षित क्षेत्र:
    • ये 14 क्षेत्र हैं; मोबाइल विनिर्माण, चिकित्सा उपकरणों का विनिर्माण, ऑटोमोबाइल और इसके घटक, फार्मास्यूटिकल्स, दवाएँ, विशेष इस्पात, दूरसंचार एवं नेटवर्किंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, घरेलू उपकरण (ACs व LEDs), खाद्य उत्पाद, कपड़ा उत्पाद, सौर पीवी मॉड्यूल, उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी तथा ड्रोन एवं इसके घटक
  • योजना के तहत प्रोत्साहन:
    • दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि की गणना वृद्धिशील बिक्री के आधार पर की जाती है।
      • उन्नत रसायन विज्ञान सेल बैटरी, कपड़ा उत्पाद और ड्रोन उद्योग जैसे कुछ क्षेत्रों में दिये जाने वाले प्रोत्साहन की गणना पाँच वर्षों की अवधि में की गई बिक्रीप्रदर्शन एवं स्थानीय मूल्यवर्द्धन के आधार पर की जाएगी।
    • अनुसंधान एवं विकास निवेश (R&D investment) पर ज़ोर देने से उद्योग को वैश्विक रुझानों के साथ बने रहने और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने में भी मदद मिलेगी।
  • स्मार्टफोन निर्माण में प्रगति:
    • वित्त वर्ष 2017-18 में मोबाइल फोन का आयात 3.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि निर्यात मात्र 334 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसके परिणामस्वरूप 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा हुआ।
    • वित्त वर्ष 2022-23 तक आयात घटकर 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का, जबकि निर्यात बढ़कर लगभग 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जिससे 9.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सकारात्मक निवल निर्यात हो पाया।

PLI योजना से संबंधित मुद्दे

  • असेंबली बनाम मूल्यवर्द्धन:
    • मोबाइल और संबद्ध घटक/पुर्जों की विनिर्माण योजना में सब्सिडी का भुगतान केवल भारत में फोन के विनिर्माण के लिये किया जाता है; यह इस पर निर्भर नहीं करता कि भारत में विनिर्माण से कितना वर्द्धित मूल्य उत्पन्न होता है, ऐसे में सब्सिडी का मूल्य काफी कम हो जाता है।
    • इसलिये भारत अभी भी मोबाइल फोन के अधिकांश पुर्जों का आयात करता है।
      • मोबाइल फोन के पुर्जों का आयात, जिसमें डिस्प्ले स्क्रीन, कैमरा, बैटरी, मुद्रित सर्किट बोर्ड शामिल हैं, में वित्त वर्ष 2021 और 2023 के बीच वृद्धि हुई है।
      • व्यावहारिक रूप से देखें तो ये वही दो वर्ष हैं जब मोबाइल फोन निर्यात में सबसे ज़्यादा उछाल देखा गया।

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

  • WTO के नियम और सीमित मूल्यवर्द्धन:
    • WTO के नियम भारत को PLI सब्सिडी को घरेलू मूल्यवर्द्धन से जोड़ने से रोकते हैं।
    • हालाँकि भारत इलेक्ट्रॉनिक चिप्स विनिर्माण की आकांक्षा रखता है, किंतु धरातल पर देखें तो चिप्स जटिल घटक/कंपोनेंट हैं।
    • ये प्रतिबंध संभवतः घरेलू मूल्यवर्द्धन में उल्लेखनीय कमी का कारण हैं।
  • प्रोत्साहन राशि का अस्पष्ट वितरण:
    • योजना की देख-रेख और विभिन्न क्षेत्रों के लिये धन वितरण को प्रबंधित करने के लिये एक अधिकार प्राप्त समिति के गठन के बावजूद प्रोत्साहन देने की प्रक्रिया में स्पष्टता का अभाव है।
    • एक अच्छी तरह से परिभाषित ऐसा कोई मानदंड या मानकीकृत पैरामीटर नहीं हैं जिसका उपयोग मंत्रालय तथा विभाग इन प्रोत्साहनों के आवंटन को निर्धारित करने के लिये कर सकें, जिस कारण योजना की निष्पक्षता व प्रभावशीलता संबंधी चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
  • केंद्रीकृत डेटाबेस की कमी:
    • केंद्रीकृत डेटाबेस (जो उत्पादन अथवा निर्यात में वृद्धिसृजित नई नौकरियों की संख्या आदि जैसे आँकड़े दर्ज करता है) की कमी के कारण प्रशासनिक समीक्षा करना मुश्किल होता है।
    • सूचना की अस्पष्टता (Information Ambiguity) पारदर्शिता को प्रभावित करती है तथा अपराध की भावना उत्पन्न कर सकती हैसाथ ही दोषों में और अधिक वृद्धि कर नीति संरचना को कमज़ोर कर सकती है।

आगे की राह

  • सरकार को रोज़गार सृजन, प्रति नौकरी लागत तथा सीमित सफलता के कारणों पर विचार करते हुए PLI की प्रभावशीलता का आकलन करना चाहिये।
  • इस योजना को नए क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिये इसकी सीमाओं को समझने तथा अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।

भारत का वृद्ध कार्यबल

चर्चा में क्यों?

विश्व स्तर पर सबसे बड़ी युवा आबादी होने के बावजूद CMIE (सेंटर फॉर माॅनीटरिंग इंडियन इकॉनमीके आर्थिक आउटलुक डेटा के उपयोग से कार्यबल के विश्लेषण के अनुसार भारत के कार्यबल में ज़्यादा उम्र वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है, यह एक चिंताजनक रुझान है।

  • वृद्ध कार्यबल का मूल रूप से मतलब यह है कि यदि भारत में सभी नियोजित लोगों को देखा जाए, तो युवा लोगों की हिस्सेदारी में कमी आई है, जबकि 60 वर्ष के करीब की उम्र वाले लोगों की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई है।

विश्लेषण के प्रमुख बिंदु

  • आयु समूह और कार्यबल संरचना:
    • वृद्ध कार्यबल की प्रवृत्ति को बेहतर ढंग से समझने के लिये यह विश्लेषण कार्यबल को तीन अलग-अलग आयु समूहों में वर्गीकृत करता है:
      • 15-29 वर्ष की आयु: कुल कार्यबल में इस आयु वर्ग की हिस्सेदारी वर्ष 2016-17 के 25% से घटकर वित्तीय वर्ष 2022-23 में 17% हो गई है।
      • 30-44 वर्ष की आयु: इसी अवधि में इस आयु वर्ग के व्यक्तियों की हिस्सेदारी भी 38% से घटकर 33% हो गई है।
      • 45 वर्ष और उससे अधिक आयु: इस आयु वर्ग की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो 37% से बढ़कर 49% हो गई है।

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

  • युवाओं के बीच गिरती रोज़गार दर:
    • जबकि युवा आबादी 2.64 करोड़ (वर्ष 2016-17 में 35.49 करोड़ से वर्ष 2022-23 में 38.13 करोड़) बढ़ी है, इस समूह में नियोजित व्यक्तियों की संख्या में 3.24 करोड़ की भारी गिरावट आई है।
    • परिणामस्वरुप इस आयु वर्ग के लिये रोज़गार दर सात वर्षों में 29% से गिरकर 19% हो गई है।

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

  • विभिन्न आयु समूहों पर भिन्न प्रभाव:
    • जबकि रोज़गार दर में गिरावट युवाओं के मामले में सबसे अधिक देखी गई है, यह प्रवृत्ति कुछ हद तक अन्य आयु समूहों तक भी विस्तृत है।
    • विशेष रूप से सबसे अधिक आयु वर्ग (45 वर्ष तथा उससे अधिक) में रोज़गार दर में अपेक्षाकृत कम गिरावट देखी गई है तथा वास्तव में नियोजित व्यक्तियों की पूर्ण संख्या में वृद्धि देखी गई है।

कार्यबल की आयु बढ़ाने में योगदान देने वाले कारक

  • पर्याप्त नौकरी के अवसरों का अभाव:
    • युवाओं के रोज़गार में गिरावट का एक प्रमुख कारण पर्याप्त नौकरी के अवसरों की कमी है।
    • युवा आबादी की तीव्र वृद्धि उपलब्ध नौकरियों में आनुपातिक वृद्धि के अनुरूप नहीं है, जिससे सीमित पदों के लिये तीव्र प्रतिस्पर्द्धा देखी जा रही है।
  • अनुपयुक्त कौशल:
    • युवाओं के पास मौजूद कौशल और रोज़गार बाज़ार के लिये आवश्यक कौशल के बीच अनुपयुक्तता के परिणामस्वरूप बेरोज़गारी की उच्च दर हो सकती है।
    • शिक्षा प्रणाली युवा व्यक्तियों को उभरते रोज़गार परिदृश्य के लिये पर्याप्त रूप से तैयार नहीं कर पा रही हैजिससे अल्परोज़गार या बेरोज़गारी की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व:
    • भारत के कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में लगा हुआ है, जिसमें अक्सर स्थिर रोज़गार के अवसरों और सामाजिक सुरक्षा लाभों का अभाव होता है।
    • नौकरी बाज़ार में प्रवेश करने वाले युवाओं को स्थिर और औपचारिक रोज़गार सुरक्षित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे अस्थिरता तथा कौशल का कम उपयोग हो सकता है।
  • शैक्षिक उपलब्धि और आकांक्षाएँ:
    • जबकि युवाओं के बीच शैक्षिक उपलब्धि बढ़ रही है, शिक्षा के माध्यम से प्राप्त कौशल और नौकरी बाज़ार द्वारा मांगे जाने वाले कौशल के बीच एक अंतर हो सकता है।
    • उच्च-स्तरीय नौकरियों की आकांक्षा ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है जहाँ युवा उपयुक्त पदों के लिये इंतज़ार करने को तैयार हैं, इससे युवाओं के रोज़गार में गिरावट आएगी।

वृद्ध भारतीय कार्यबल की चिंताएँ और निहितार्थ

  • उत्पादकता:
    • स्वास्थ्य समस्याओं और घटती शारीरिक क्षमताओं के कारण पुराने कर्मचारियों की उत्पादकता में कमी का अनुभव हो सकता है। इसका असर समग्र आर्थिक उत्पादन पर पड़ सकता है।
    • स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में वृद्धि हो सकती है, जो स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव डाल सकती है और सार्वजनिक एवं निजी दोनों खर्चों को प्रभावित कर सकती है।
  • नवाचार
    • युवा कर्मचारी अक्सर नए दृष्टिकोण और तकनीकी समझ लेकर आते हैं, जो उद्योगों में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
    • वृद्ध कार्यबल में इस गतिशीलता का अभाव है।
  • आर्थिक विकास
    • घटता कार्यबल आर्थिक विकास क्षमता को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि छोटी कामकाज़ी उम्र की आबादी उत्पादन और खपत में कम योगदान देती है।
    • जो क्षेत्र शारीरिक श्रम पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जैसे कि निर्माण और विनिर्माणयदि पुराने श्रमिकों के स्थान पर युवा श्रमिक उपलब्ध नहीं होंगे, तो उन्हें श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
  • कौशल की कमी:
    • उम्रदराज़ कार्यबल कौशल की कमी पैदा कर सकता है, खासकर उन उद्योगों में जिनमें विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है।
    • इससे तकनीकी प्रगति और नवप्रवर्तन में बाधा आ सकती है।
  • उपभोग के तरीके:
    • वृद्ध व्यक्तियों के उपभोग के तरीके अधिकतर अलग होते हैं, वे बचत और आवश्यक वस्तुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जो उपभोक्ता मांग और लक्ज़री वस्तुओं की ओर अग्रसर उद्योगों को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह 

  • ऐसी नीतियाँ जो जल्दी सेवानिवृत्ति को हतोत्साहित करती हैं और वृद्ध व्यक्तियों को कार्यबल में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, उनके उत्पादक वर्षों को बढ़ाने में सहायता कर सकती हैं।
  • इसमें लचीली सेवानिवृत्ति की आयु, काम के कम घंटे और वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हो सकते हैं।
  • कंपनियाँ आयु-समावेशी कार्यस्थल नीतियों को अपना सकती हैं जो पुराने श्रमिकों की ज़रूरतों को पूरा करती हैं और श्रम-दक्षता संबंधी सुविधाएँ, स्वास्थ्य सहायता तथा कौशल बढ़ाने के अवसर प्रदान करती हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और मुद्रा

चर्चा में क्यों?

  • जुलाई 2023 में खुदरा मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 7.44% तक पहुँच गई, जिससे भारत के लिये गोल्डीलॉक्स परिदृश्य तैयार हुआ जो निवेशकों एवं बचतकर्ताओं की आर्थिक स्थिति के बारे में अनिश्चितताओं को दर्शाता है।
  • गोल्डीलॉक्स परिदृश्य एक अर्थव्यवस्था के लिये आदर्श स्थिति का वर्णन करता है जहाँ अर्थव्यवस्था बहुत अधिक विस्तार या संकुचन नहीं कर रही है। गोल्डीलॉक्स अर्थव्यवस्था में स्थिर आर्थिक विकास होता है, जिससे मंदी को रोका जा सकता है, लेकिन इतनी अधिक वृद्धि नहीं होती कि मुद्रास्फीति बहुत अधिक बढ़ जाए।

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

भारत का वर्तमान आर्थिक परिदृश्य और अनुमान

  • GDP अनुमान:
    • वर्ष 2023-24 के लिये अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि 6.5% है, जबकि बेंचमार्क सेंसेक्स सूचकांक वर्तमान में 65,000 अंक पर है।
    • दूसरी ओर आगामी महीनों में सोने और बैंक जमा दरों के स्थिर रहने की उम्मीद है।
  • मुद्रास्फीति का अनुमान:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) का अनुमान है कि वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही तक मुद्रास्फीति 5% से ऊपर रहेगी और संभावित रूप से वर्तमान तिमाही (जुलाई-सितंबर) 2023 में 6.2% तक पहुँच जाएगी जो RBI के 4% के कम्फर्ट लेवल (Comfort Level) से अधिक होगी।
  • खाद्य मूल्य दबाव:
    • अगले कुछ महीनों तक खाद्य पदार्थों की कीमतें ऊँची रहने की आशंका है। जुलाई के आँकड़ों के अनुसार अनाज व दालों (दोनों में कुल 13%), मसालों (21.6%), दूध (8.3%) के साथ-साथ सब्जियों की कीमतों (37.3%) में वृद्धि देखी गई है।
    • सरकारी हस्तक्षेप और नई फसल की आवक से अंततः इस दबाव के कम होने की उम्मीद है।
  • ब्याज दरें और मौद्रिक नीति:
    • उच्च मुद्रास्फीति अनुमानों को देखते हुए ब्याज दर में किसी प्रकार की कटौती की संभावना अगले वित्तीय वर्ष (2024-25) तक के लिये टाल दी गई है
    • मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) द्वारा आगामी बैठक में नीतिगत दरों को बनाए रखने की संभावना है जिसमें संभावित रूप से ब्याज दर में पहली कटौती अगले वित्तीय वर्ष में होगी।
  • बाज़ार दृष्टिकोण:
    • महँगाई और ऊँची ब्याज दरों के बावजूद भारतीय बाज़ार ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
    • दृढ़ आय की संभावनाओं और स्टेबल मैक्रो कंडीशन के समर्थन से भारत ने अन्य बाज़ारों से बेहतर प्रदर्शन किया है।

बढ़ती महँगाई का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • बाज़ारों पर प्रभाव:
    • जब मुद्रास्फीति अधिक होती है तो स्टॉक की कीमतें कम आँकी जाती हैं और सोने का मूल्य बढ़ जाता है। बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण क्रय शक्ति कम हो जाती है जिससे वास्तविक आय कम हो जाती है।
    • इसके अतिरिक्त उच्च मुद्रास्फीति के परिणामस्वरूप ब्याज दरें उच्च होती हैं, जिससे इक्विटी की लागत प्रभावित होती है।
    • अप्रैल 2022 से भरतीय रिज़र्व बैंक की रेपो रेट में लगातार बढ़ोतरी के कारण उधार दरों में समग्र वृद्धि हुई है, जिससे विभिन्न प्रकार के ऋणों का काफी प्रभाव पड़ा है।
  • आय पुनर्वितरण:
    • मुद्रास्फीति का समाज के विभिन्न समूहों पर असमान प्रभाव पड़ सकता है। देनदारों से प्राप्त धन का मूल्य घटने से लेनदारों को नुकसान हो सकता है।
    • इसके विपरीत देनदारों को उन पैसों से ऋण चुकाने से लाभ हो सकता है जिनकी कीमत उनके उधार लेने के समय की कीमत से कम है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
    • किसी देश में उच्च मुद्रास्फीति उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर सकती है। यदि घरेलू कीमतें व्यापारिक साझेदार देशों की तुलना में तेज़ी से बढ़ें तो देश का निर्यात वैश्विक बाज़ार में कम आकर्षक हो सकता है।
  • पारिश्रमिक-मूल्य चक्र:
    • मुद्रास्फीति के कारण कभी-कभी बढ़ी हुई पारिश्रमिकी और मूल्य चक्र की शुरुआत हो सकती है। बढ़ती लागत के साथ समन्वय बनाने के लिये श्रमिक उच्च मज़दूरी की मांग करते हैं और व्यवसायों में लगने वाली उच्च लागतों के कारण कीमतें उच्च होती हैं जिनका दबाव उपभोक्ताओं पर पड़ता है। इस चक्र के परिणामतः मुद्रास्फीति की स्थिति लगातार बनी रह सकती है।

आगे की राह

  • मुद्रास्फीति की बढ़ती चिंताओं को देखते हुए सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को मुद्रास्फीति के दबाव को प्रबंधित करने के लिये मिलकर काम करने की आवश्यकता है। इसमें खाद्य कीमतों को स्थिर करनेआपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार करने और सुरक्षात्मक मौद्रिक नीति बनाए रखने जैसे लक्षित उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • सरकार को संतुलित बजट बनाए रखने, अनावश्यक व्यय को कम करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले सुधारों एवं उपायों के माध्यम से राजस्व अर्जन को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिये।
  • RBI को सतर्क और डेटा-संचालित मौद्रिक नीति दृष्टिकोण अपनाना जारी रखना चाहिये। इसमें आर्थिक विकास संबंधी प्रभाव पर विचार करते हुए मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने के लिये ब्याज दरों को समायोजित करना शामिल हो सकता है।
The document Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
245 videos|240 docs|115 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. आत्मनिर्भर भारत कोष क्या है?
उत्तर: आत्मनिर्भर भारत कोष एक वित्तीय योजना है जिसका उद्देश्य भारतीय उद्योगों को स्वतंत्र और स्थायी बनाना है। इस कोष के माध्यम से छोटे और मध्यम उद्यमों को वित्तीय सहायता दी जाएगी ताकि वे विकास कर सकें और अपने व्यापार को बढ़ा सकें।
2. चीन में अत्यधिक अपस्फीति की चिंता क्यों है?
उत्तर: चीन में अत्यधिक अपस्फीति की चिंता है क्योंकि वह विदेशी विनिर्यात बाजारों के लिए प्रमुख आपूर्ति देश है। यदि वह अपने उत्पादों की अपूर्ति कम कर देता है, तो इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
3. फ्लोटिंग रेट ऋण क्या है?
उत्तर: फ्लोटिंग रेट ऋण एक वित्तीय उत्पाद है जिसमें ब्याज दर बाजार के बदलते मूल्यों के आधार पर बदलती है। इसका मतलब है कि यदि ब्याज दरों में किसी बदलाव का संकेत मिलता है, तो ऋण की ब्याज दर भी उसी अनुपात में बदल जाएगी।
4. MPC के हालिया निर्णय में क्या है?
उत्तर: MPC के हालिया निर्णय में रेपो दर, मुद्रास्फीति अनुमान और आई-सीआरआर जैसे वित्तीय मुद्दों पर निर्णय लिए गए हैं। रेपो दर ब्याज दरों का निर्धारण करती है, मुद्रास्फीति अनुमान मुद्रा के मूल्य की अनुमानित बदलाव करती है और आई-सीआरआर आर्थिक नीति में सुधार करने के लिए निर्णय लेता है।
5. उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना क्या है?
उत्तर: उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना एक सरकारी योजना है जो उत्पादन क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करती है। इसके तहत, सरकार उद्यमों को वित्तीय सहायता, सब्सिडी, टैक्स छूट और अन्य आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करती है ताकि उन्हें उत्पादन वृद्धि करने के लिए संबंधित वस्तुओं के निर्माण में मदद मिल सके।
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Important questions

,

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

,

Exam

,

ppt

,

Free

,

Previous Year Questions with Solutions

,

practice quizzes

,

Semester Notes

,

past year papers

,

Objective type Questions

,

mock tests for examination

,

Sample Paper

,

study material

,

video lectures

,

MCQs

,

Summary

,

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

,

pdf

,

shortcuts and tricks

,

Extra Questions

,

Viva Questions

,

Economic Development (आर्थिक विकास): August 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

;