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Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): August 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

हीट वेव्स और हीट इंडेक्स

चर्चा में क्यों

भारत में हाल के वर्षों में गर्मी से होने वाली मौतों में भारी गिरावट देखी गई है, जो हीट वेव के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के देश के प्रयासों को दर्शाता है।

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग ( India Meteorological Department- IMD) इस प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो हीटवेव सहित चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये समय पर पूर्वानुमान और चेतावनी जारी करता है।
  • हाल ही में IMD ने हीट इंडेक्स के रूप में एक मूल्यवान उपकरण पेश किया है जो तापमान पर आर्द्रता के प्रभाव के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

हीट वेव

  • परिचय:
    • हीट वेव, चरम गर्म मौसम की लंबी अवधि होती है जो मानव स्वास्थ्यपर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
    • भारत एक उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण विशेष रूप से हीट वेव के प्रति अधिक संवेदनशील है, जो हाल के वर्षों में लगातार और अधिक तीव्र हो गई है।
  • भारत में हीट वेव घोषित करने हेतु IMD के मानदंड:
    • जब तक किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस तक नहीं पहुँच जातातब तक हीट वेव की स्थिति नहीं मानी जाती है।
    • यदि किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुँच जाता है तो इसे हीट वेव की स्थिति माना जाता है।
  • सामान्य से अधिक बढ़ने के आधार पर:
    • हीट वेव/ग्रीष्म लहर: सामान्य से विचलन 4.5°C से 6.4°C है।
    • गंभीर हीट वेव (Severe Heat Wave): सामान्य से अधिक बढ़ने के >6.4°C है।
  • वास्तविक अधिकतम तापमान के आधार पर:
    • हीट वेव: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥ 45°C हो।
    • गंभीर हीट वेव: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥47°C हो।
  • हीट वेव से निपटने के लिये भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) की पहल और उपकरण:
    • जनता को सूचित करने के लिये गर्मी का पूर्वानुमान समय पर जारी करना।
    • आपदा प्रबंधन अधिकारियों को आवश्यक तैयारी के लिये सचेत करना।
    • IMD तापमान संबंधी रुझानों में अतिरिक्त अंतर्दृष्टि प्रदान करते हुए मौसमी दृष्टिकोण तथा विस्तारित सीमा पूर्वानुमान प्रदान करता है।
    • वास्तविक समय अपडेट के साथ अगले पाँच दिनों के लिये दैनिक पूर्वानुमान।
    • हीट वेव सहित चरम मौसम की घटनाओं के लिये कलर-कोडेड चेतावनियाँ (Color-Coded Warnings)
    • हीट एक्शन प्लान के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority) और स्थानीय स्वास्थ्य विभागों के साथ सहयोग।
    • गर्मी से संबंधित जोखिमों को कम करने के लिये संवेदनशील क्षेत्रों में योजनाओं का कार्यान्वयन।

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): August 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

हीट इंडेक्स

  • परिचय:
    • हीट इंडेक्स एक ऐसा पैरामीटर है जो मनुष्यों के लिये स्पष्ट तापमान या "महसूस किये जाने वालेतापमान की गणना करने हेतु तापमान और आर्द्रता दोनों पर विचार करता है।
    • यह उच्च तापमान पर आर्द्रता के प्रभाव को समझने में सहायता करता है कि यह गर्म मौसम के दौरान मानव असुविधा में कैसे योगदान देती है।
    • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) द्वारा प्रायोगिक आधार पर हीट इंडेक्स लॉन्च किया गया है।
    • इसका उद्देश्य उन उच्च स्पष्ट तापमान वाले क्षेत्रों के लिये सामान्य मार्गदर्शन प्रदान करना है, जिससे लोगों को असुविधा होती है।
  • गर्मी के तनाव का संकेत:
    • उच्च ताप सूचकांक मान गर्मी से संबंधित तनाव और स्वास्थ्य समस्याओं के अधिक जोखिम का संकेत देते हैं।
    • यह संभावित गर्मी से संबंधित बीमारियों और खतरों के लिये एक चेतावनी के रूप में कार्य करता है।
  • ऊष्मा स्तर का वर्गीकरण:
    • हीट इंडेक्स में रंगों के माध्यम से तापमान को विभिन्न स्तरों में वर्गीकृत किया गया है:
      • हरा: प्रायोगिक ताप सूचकांक 35°C से न्यूनतम।
      • पीला: प्रायोगिक ताप सूचकांक 36-45°C के मध्य।
      • नारंगी: प्रायोगिक ताप सूचकांक 46-55°C के मध्य।
      • लाल: प्रायोगिक ताप सूचकांक 55°C से अधिक।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये उपयोगी उपकरण:
    • हीट इंडेक्स को समझकर, व्यक्ति और समाज हीट वेव के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिये सक्रिय कदम उठा सकते हैं।
    • यह जनसंख्या की भलाई सुनिश्चित करने के लिये निर्णय लेने और हीट एक्शन प्लान तैयार करने में सहायक है।

प्लास्टिक ओवरशूट डे

चर्चा में क्यों

28 जुलाई, 2023 को पृथ्वी पर प्लास्टिक ओवरशूट डे (Plastic Overshoot Day) मनाया गया। यह वर्ष का वह समय होता है, जब संपूर्ण विश्व में उत्पादित प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की क्षमता से अधिक हो जाती है।

  • प्लास्टिक ओवरशूट डे पर अर्थ एक्शन (EA) (स्विस-बेस्ड रिसर्च कंसल्टेंसी) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट प्लास्टिक प्रदूषण के चिंताजनक मुद्दे और पर्यावरण पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डालती है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • परिचय
    • प्लास्टिक ओवरशूट डे का निर्धारण देश के कुप्रबंधित अपशिष्ट सूचकांक (MWI) के आधार पर किया जाता है। अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता और प्लास्टिक खपत के अंतर को MWI के नाम से जाना जाता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण संकटरिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2023 में 68,642,999 टन अतिरिक्त प्लास्टिक अपशिष्ट प्रकृति में प्रवेश करेगा, जो गंभीर प्लास्टिक प्रदूषण संकट का संकेत देता है।
    • रिपोर्ट में विश्व के 52% कुप्रबंधित प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये 12 ज़िम्मेदार देशों की पहचान की गई है। जिसमें चीनब्राज़ीलइंडोनेशियाथाईलैंडरूसमैक्सिकोसंयुक्त राज्य अमेरिकासउदी अरबकांगो लोकतांत्रिक गणराज्यईरानकज़ाखस्तान और भारत शामिल हैं।
    • सबसे अधिक कुप्रबंधित अपशिष्ट प्रतिशत वाले तीन देशों में अफ्रीका के मोज़ाम्बिक (99.8%), नाइजीरिया (99.44%) और केन्या (98.9%) शामिल हैं।
      • 98.55% अपशिष्ट के साथ भारत MWI में चौथे स्थान पर है।
  • शॉर्ट-लाइफ प्लास्टिकप्लास्टिक पैकेजिंग और एकल-उपयोग प्लास्टिक सहित शॉर्ट-लाइफ प्लास्टिक, वार्षिक उपयोग किये जाने वाले कुल प्लास्टिक का लगभग 37% है। ये श्रेणियाँ पर्यावरण में रिसाव का अधिक जोखिम उत्पन्न करती हैं।
  • भारत के मामले में प्लास्टिक ओवरशूट डेदेश में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन इसकी अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता से अधिक होने के कारण भारत के लिये जनवरी, 2023 को प्लास्टिक ओवरशूट डे (Plastic Overshoot Day) के रूप में मनाया गया।
    • भारत की प्रति व्यक्ति खपत 5.3 किलोग्राम हैजो वैश्विक औसत 20.9 किलोग्राम से अत्यधिक कम है।

प्लास्टिक का प्रमुख उपयोग

  • खाद्य संरक्षण: खाद्य पैकेजिंग में प्लास्टिक का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है जो खराब होने वाले सामानों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने, खाद्य अपव्यय (Food Waste) कम करने तथा माल का कुशल परिवहन सुनिश्चित करने में सहायता करता है।
  • चिकित्सा अनुप्रयोगआधुनिक चिकित्सा में प्लास्टिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका उपयोग सिरिंज (Syringes), कैथेटर (Catheters) और कृत्रिम संयोजी अंगों (Artificial Joints) जैसे चिकित्सा उपकरणों में किया जाता है, जो रोगी की देखभाल तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
  • परिवहन सुरक्षावाहनों के वजन को कम करने के लिये ऑटोमोटिव अनुप्रयोगों में प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है, जिससे ईंधन दक्षता में सुधार हो सकता है तथा उत्सर्जन में कमी आ सकती है, जिससे हरित वातावरण में योगदान दिया जा सकता है।
  • इन्सुलेशन: प्लास्टिक सामग्री विद्युत और तापीय प्रयोजनों के लिये उत्कृष्ट इंसुलेटर है। ये इमारतों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में ऊर्जा दक्षता में सुधार करने में सहायता करते हैं।
  • जल संरक्षणकुछ प्रकार के प्लास्टिक, जो पाइप निर्माण और सिंचाई प्रणालियों में उपयोग किये जाते हैं, रिसाव को कम करके तथा जल वितरण दक्षता में सुधार कर जल संरक्षण में सहायता करते हैं।

भारत में प्लास्टिक-अपशिष्ट संबंधी मुद्दे

  • खराब अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचनाभारत में अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना एक बड़ी समस्या है।
    • अधिकांश नगर निगम अधिकारियों के पास प्लास्टिक अपशिष्ट के पृथक्करण, संग्रह, परिवहन और पुनर्चक्रण के लिये उचित सुविधाओं का अभाव है।
    • परिणामस्वरूप प्लास्टिक अपशिष्ट का एक बड़ा हिस्सा लैंडफिल (Landfills), खुले डंपसाइट्स (Open Dumpsites) में चला जाता है या पर्यावरण में पड़ा रहता है, जो पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रदूषित करता है।
    • सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 12.3% प्लास्टिक अपशिष्ट का पुनर्चक्रण किया जाता है और 20% को जला दिया जाता है।
  • एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पाद: थैलाबोतलेंस्ट्रॉ और पैकेजिंग में एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों का व्यापक उपयोग, प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या को और बढ़ा देता है।
    • ये वस्तुएँ सुविधाजनक तो हैं परंतु एक बार उपयोग के बाद फेंक दिये जाने के कारण काफीप्लास्टिक अपशिष्ट का संचय होता है।
  • समुद्री प्रदूषण: भारत के तटीय क्षेत्रों पर प्लास्टिक अपशिष्टों का अधिक प्रभाव पड़ता है। नदियों और अन्य जल निकायों के माध्यम से प्लास्टिक अपशिष्ट महासागरों तक पहुँचता है, जिसके परिणामस्वरूप समुद्री प्रदूषण की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • यह प्रदूषण समुद्री जीवन, पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाता है और मत्स्य पालन तथा पर्यटन पर निर्भर तटीय समुदायों को आर्थिक रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: अनुचित प्लास्टिक अपशिष्ट निपटान और प्लास्टिक को जलाने से हानिकारक रसायन तथा विषाक्त पदार्थ उत्सर्जित हो सकते हैं, जिससे अपशिष्ट निपटान स्थलों के निकट रहने वाले अथवा अनौपचारिक पुनर्चक्रण गतिविधियों से जुड़े समुदायों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित सरकारी पहलें

  • एकल उपयोग प्लास्टिक के उन्मूलन और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन पर राष्ट्रीय डैशबोर्ड
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2022
  • REPLAN परियोजन 

आगे की राह

  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व(Extended Producer Responsibility- EPR): भारत को EPR जैसी अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों, जो उत्पादकों को उनके प्लास्टिक उत्पादों के पूर्ण निपटान के लिये ज़िम्मेदार ठहराने और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का कार्य करती हैं, में निवेश करना चाहिये।
  • अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र की स्थापना: भारत के लिये ज़रूरी है कि वह गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक अपशिष्ट को ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिये प्लाज़्मा गैसीकरण जैसी उन्नत तकनीकों के उपयोग वाले अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों में निवेश करे।
    • ये संयंत्र प्लास्टिक अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करते हुए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने और विद्युत उत्पादन में मदद कर सकते हैं।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, भारत में सालाना 14.2 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट (उत्पादित सभी प्राथमिक प्लास्टिक का 71%) को संसाधित करने की क्षमता है।
  • विकल्पों की अभिकल्पना: इस दिशा में पहला कदम प्लास्टिक की उन वस्तुओं की पहचान करना होगा जिन्हें गैर-प्लास्टिक, पुनर्चक्रण-योग्य या जैव-निम्नीकरणीय (बायोडिग्रेडेबल) सामग्री से बदला जा सकता है। उत्पाद डिज़ाइनरों के सहयोग से एकल-उपयोग प्लास्टिक के विकल्पों और पुन: प्रयोज्य डिज़ाइन की गई वस्तुओं का निर्माण किया जाना चाहिये।
    • ऑक्सो-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक’ (Oxo-biodegradable Plastics) के उपयोग को बढ़ावा देना, जो कि आम प्लास्टिक की तुलना में अल्ट्रा-वायलेट विकिरण और ऊष्मा से अधिक तीव्रता से विखंडित हो सकता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति हेतु संयुक्त राष्ट्र संधि का समर्थनप्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
    • यह वर्ष 2019 में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर वैश्विक प्रतिबंध का प्रस्ताव करने वाले देशों में से एक था।
    • प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिये संयुक्त राष्ट्र संधि प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ वैश्विक कार्रवाई का प्रतिनिधित्व करती है और इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिये

शहरी बाढ़ 

चर्चा में क्यों?

कम अवधि में उच्च तीव्रता वाली वर्षा की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है, जो प्रमुखतः शहरी बाढ़ का कारण बनती हैं, अनियोजित विकासप्राकृतिक जल निकायों पर दबाव और खराब जल निकासी प्रणाली के कारण स्थिति और भी जटिल हो गई है।

  • परिचय:
    • शहरी बाढ़ से तात्पर्य जलभराव के कारण एक निर्मित स्थान पर भूमि या संपत्ति के डूबने से है, यह विशेष रूप से अधिक घनी आबादी वाले शहरों में जल निकासी प्रणालियों की क्षमता से अधिक वर्षा का परिणाम है।
    • ग्रामीण बाढ़ (समतल या निचले इलाकों में भारी वर्षा) के विपरीत शहरी बाढ़ की स्थिति न केवल अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती है, बल्कि इसका कारण अनियोजित शहरीकरण भी है, इसमें:
      • बाढ़ की चरमता (Flood Peaks) को 1.8 से बढ़ाकर 8 गुना कर देता है।
      • बाढ़ की मात्रा को 6 गुना तक बढ़ा देता है।
  • कारण
    • जल निकासी प्रणालियों पर दबावभूमि की बढ़ती कीमतों और कम उपलब्धता के कारण निचले शहरी इलाकों में झीलों, आर्द्रभूमि और नदी तलों के दबाव के परिणामस्वरूप इस समस्या में वृद्धि हुई है।
      • इसके लिये सामान्यतः प्राकृतिक अपवाह तंत्र को चौड़ा करना आवश्यक है ताकि तूफानी जल के उच्च प्रवाह को समायोजित किया जा सके।
      • लेकिन वस्तुस्थिति इसके विपरीत है, इन प्राकृतिक अपवाह तंत्रों को चौड़ा करने के बजाय बड़े पैमाने पर इन पर अतिक्रमण कर लिया गया है। परिणामस्वरूप उनकी अपवाह क्षमता कम हो गई हैजिससे बाढ़ की स्थिति बनती है।
    • जलवायु परिवर्तनइसके कारण निम्न अवधि में भारी वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च जल अपवाह की स्थिति बनती है।
      • जब भी वर्षा-युक्त बादल अर्बन हीट आइलैंड के ऊपर से गुज़रते हैं तो वहाँ की गर्म हवा उन्हें ऊपर धकेल देती है, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक स्थानीयकृत वर्षा होती है जो कभी-कभी उच्च तीव्रता के साथ भी हो सकती है।
    • अनियोजित पर्यटन गतिविधियाँपर्यटन विकास के लिये आकर्षण के रूप में जल निकायों का उपयोग लंबे समय से किया जाता रहा है। धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के दौरान नदियों तथा झीलों में गैर-जैव अपघटनीय पदार्थ फेंके जाने से जल की गुणवत्ता कम हो जाती है।
      • बाढ़ की स्थिति में ये निलंबित कण और प्रदूषक शहरों में स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
      • उदाहरण के लिये केरल के कोल्लम में अष्टमुडी झील नावों से होने वाले तेल रिसाव से प्रदूषित हो गई है।
    • बिना पूर्व चेतावनी बाँधों से जल छोड़नाबाँधों और झीलों से अनियोजित तरीके से और अचानक जल छोड़े जाने से भी शहरी क्षेत्र में बाढ़ आती है, जहाँ लोगों को बचाव उपाय के लिये पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाता है।
      • उदाहरण के लिये चेंबरमबक्कम झील से जल छोड़े जाने के कारण वर्ष 2015 में चेन्नई में बाढ़ आई थी।
      • हथनीकुंड बैराज से यमुना नदी में छोड़े गए 2 लाख क्यूसेक जल के कारण जुलाई 2023 में दिल्ली में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई थी।
    • अवैध खनन: भवन निर्माण में उपयोग के लिये नदी की रेत और क्वार्टजाइट के अवैध खनन के कारण नदियों एवं झीलों का प्राकृतिक तल नष्ट हो जाता है।
      • इस कारण मृदा अपरदन होता है और यह जल प्रवाह की गति एवं पैमाने में वृद्धि करते हुए जलाशय की जलधारण क्षमता को कम करता है।
      • उदाहरणत: जयसमंद झील- जोधपुर, कावेरी नदी- तमिलनाडु।

शहरी बाढ़ के प्रभाव

  • जीवन और संपत्ति की क्षति:
    • शहरी बाढ़ प्रायः जीवन की क्षति और शारीरिक आघात का कारण बनती है। यह बाढ़ के प्रत्यक्ष प्रभाव अथवा बाढ़ की अवधि के दौरान फैलने वाले जलजनित रोगों के संक्रमण से होता है।
  • पारिस्थितिक प्रभाव:
    • बाढ़ की चरम घटनाओं के दौरान तेज़ गति से प्रवाहित बाढ़ के जल के कारण पेड़-पौधे बह जाते हैं और तटवर्ती इलाकों का कटाव होता है।
  • पशु और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • स्थानीय इलाकों में जलजमाव और पेयजल के दूषित होने से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिससे महामारी की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है।
  • घरों में और उसके आसपास सीवेज एवं ठोस अपशिष्ट के जमा होने से भी कई तरह की बीमारियाँ फैलती हैं।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव:
    • घर-बार का नुकसान और सगे-संबंधियों से बिछड़ने के कारण बाढ़ में फँसे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसी घटनाओं से उबरने की प्रक्रिया बोझिल और समय लेने वाली होती है जो प्रायः लंबे समय तक बने रहने वाले मनोवैज्ञानिक आघात की ओर ले जाती है।

आगे की राह 

  • टिकाऊ नगरीय नियोजन प्रथाओं को लागू किया जाना चाहिये जो झंझाजल (Stormwater) को अवशोषित करने और प्रबंधित करने के लिये हरे-भरे स्थानोंतालाबों और पारगम्य सतहों को प्राथमिकता दें। बाढ़ संभावित क्षेत्रों में निर्माण से बचें और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को संरक्षित करें।
  • प्राकृतिक नालियों, झंझाजल चैनल्स (Stormwater Channels) और बाढ़-नियंत्रण प्रणालियों सहित जल निकासी बुनियादी ढाँचे के उन्नयन तथा विस्तार में निवेश करना चाहिये। प्रभावी जल प्रवाह सुनिश्चित करने के लिये नालियों का नियमित रखरखाव तथा सफाई आवश्यक है।
  • बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की पहचान कर उनके मानचित्रण के साथ ही उचित बाढ़ प्रबंधन रणनीतियाँ विकसित करनी चाहिये। बाढ़ के खतरे को कम करने के लिये इन संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण एवं विकास को प्रतिबंधित करना चाहिये।
  • आसन्न बाढ़ के बारे में निवासियों को सचेत करने के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना और उसमें सुधार करना चाहिये। लोगों को स्थान खाली करने और आवश्यक सावधानी बरतने के लिये समय पर चेतावनियाँ जारी की जानी चाहिये।

विश्व हाथी दिवस 2023

चर्चा में क्यों

  • हाल ही में विश्व हाथी दिवस के अवसर पर केंद्रीय पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन तथा श्रम एवं रोज़गार मंत्री ने भारत में हाथियों के संरक्षण की दिशा में की गई विभिन्न पहलों तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।

विश्व हाथी दिवस

  • परिचय:
    • 12 अगस्त को विश्व स्तर पर मनाया जाने वाला विश्व हाथी दिवस एक विशिष्ट उत्सव है, जिसका उद्देश्य हाथियों से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनकी सुरक्षा तथा संरक्षण की दिशा में कार्य करना है।
    • यह दिवस हाथियों के आवास स्थल की क्षति, हाथी दाँत के अवैध व्यापार, मानव-हाथी संघर्ष तथा संवर्द्धित संरक्षण प्रयासों की अनिवार्यता के साथ-साथ हाथियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं के समाधान पर ज़ोर देने के लिये एक एकीकृत मंच प्रदान करता है।
  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • विश्व हाथी दिवस अभियान की शुरुआत वर्ष 2012 में अफ्रीकी और एशियाई हाथियों को लेकर चिंता उत्पन्न करने वाली स्थितियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये की गई थी।
    • इस अभियान का उद्देश्य पशुओं हेतु एक शोषणमुक्त और उचित देखभाल हेतु एक स्थायी वातावरण का निर्माण करना है।
    • विश्व हाथी दिवस की परिकल्पना एलीफेंट रीइंट्रोडक्शन फाउंडेशन और फिल्म निर्माता पेट्रीसिया सिम्स एवं माइकल क्लार्क द्वारा की गई थी तथा आधिकारिक तौर पर वर्ष 2012 में इसकी शुरुआत की गई।
    • पेट्रीसिया सिम्स ने वर्ष 2012 में वर्ल्ड एलीफेंट सोसाइटी नामक एक संगठन की स्थापना की।
    • यह संगठन हाथियों के सामने आने वाले खतरों और विश्व स्तर पर उनकी सुरक्षा की अनिवार्यता के बारे में जागरूकता पैदा करने का कार्य करता है।

हाथियों से संबंधित प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • हाथी भारत का प्राकृतिक विरासत पशु है।
    • हाथियों का संबंध "कीस्टोन प्रजाति" से है, वे वन पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन और स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • हाथियों की असाधारण बुद्धिमत्ता उनकी सबसे प्रमुख विशेषता है, इनका मस्तिष्क स्थल पर पाए जाने वाले किसी भी पशु के मस्तिष्क के आकार की तुलना में सबसे बड़ा होता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान और महत्त्व:
    • हाथी भोजन की खोज में काफी दूर तक विचरण करने के मामले में सबसे अग्रणी हैं, वे प्रतिदिन बड़ी मात्रा में वनस्पतियों को खाते हैं और इनके इस विचरण की प्रक्रिया में वनस्पतीय पादपों के बीज भी इधर-उधर फैलते जाते हैं।
      • उदाहरण के लिये हाथी जहाँ-जहाँ से गुज़रते हैं वहाँ पेड़ों के बीच साफ जगह और खाली स्थान बनता जाता है जिससे सूरज की रोशनी नए पौधों तक पहुँचती है जो पौधों के बढ़ने तथा जंगल के प्राकृतिक रूप से विकसित होने में मदद करती है।
    • एशियाई क्षेत्र की घनी वनस्पति को आकार देने में भी हाथियों का बड़ा योगदान है।
    • सतह पर जल न मिलने पर हाथी जल की तलाश में निकल पड़ते हैं, इससे उनके साथ-साथ अन्य प्राणियों के लिये भी जल की खोज आसान हो जाती है।
  • भारत में हाथी:
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट की वर्ष 2017 की गणना के अनुसार, भारत में सबसे अधिक जंगली एशियाई हाथी पाए जाते हैं, जिनकी अनुमानित संख्या 29,964 है।
      • यह इस प्रजाति की वैश्विक आबादी का लगभग 60% है।
    • कर्नाटक में हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, इसके बाद असम और केरल का स्थान है।

संरक्षण स्थिति

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट:
    • अफ्रीकी वन हाथी (लोक्सोडोंटा साइक्लोटिस)- गंभीर रूप से लुप्तप्राय
    • अफ्रीकी सवाना हाथी (लोक्सोडोंटा अफ़्रीकाना)- लुप्तप्राय
    • एशियाई हाथी (एलिफस मैक्सिमस)- लुप्तप्राय
  • प्रवासी प्रजातियों का सम्मेलन (CMS):
    • अफ्रीकी वन हाथी: परिशिष्ट II
    • एशियाई हाथी: परिशिष्ट I
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
  • वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES):
    • अफ्रीकी सवाना हाथी: परिशिष्ट II
    • एशियाई हाथी: परिशिष्ट I

हाथियों के संरक्षण की दिशा में भारत की पहलें और उपलब्धियाँ

  • हाथी-मानव संघर्ष का समाधान करना:
    • संघर्षों को कम करने के लिये 40 से अधिक हाथी गलियारों और 88 वन्यजीव क्रॉसिंग की स्थापना।
    • 17,000 वर्ग किमीसे अधिक के संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास बफर ज़ोन का निर्माण।
  • हाथी परियोजना:
    • यह परियोजना वर्ष 1992 में शुरू की गई, जिसमें संपूर्ण भारत के 23 राज्य शामिल थे।
    • इससे जंगली हाथियों की स्थिति में सुधार हुआ, इनकी संख्या वर्ष 1992 के लगभग 25,000 से बढ़कर वर्ष 2021 में लगभग 30,000 हो गई।
  • हाथी अभयारण्य:
    • लगभग 80,777 वर्ग किमी. में 33 हाथी अभयारण्य की स्थापना।
    • ये अभयारण्य जंगली हाथियों की आबादी और उनके आवासों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • मानव-हाथी संघर्ष का प्रबंधन:
    • संघर्ष की स्थितियों से निपटने के लिये विभिन्न राज्यों में त्वरित प्रतिक्रिया टीमें तैनात की गईं।
    • मानव-हाथी संघर्ष की घटनाओं में कमी लाने के लिये पर्यावरण-अनुकूल उपायों के कार्यान्वयन हेतु देश में हाथियों के निवास स्थान से गुज़रने वाले रेलवे नेटवर्क के लगभग 110 महत्त्वपूर्ण हिस्सों की पहचान की गई है।
      • इन स्थानों पर अंडरपास का निर्माण, टकराव से बचने हेतु लोको पायलटों के लिये दृश्यता बढ़ाने हेतु पटरियों के किनारे की वनस्पति को साफ करना, रैंप की व्यवस्था करना और अन्य उपाय किये जाएंगे।
  • सामुदायिक भागीदारी और सशक्तीकरण:
    • हाथी संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये गज यात्रा कार्यक्रम और गज शिल्पी पहल में लोगों को शामिल किया गया।
  • अनुकरणीय प्रयासों को मान्यता:
    • गज गौरव सम्मान हाथी संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये व्यक्तियों और संगठनों को पुरस्कृत किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौते और प्रोटोकॉल:
    • CITES के अंतर्गत कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़  जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भागीदारी।
    • हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (MIKE) कार्यक्रम- माइक कार्यक्रम की स्थापना CITES द्वारा वर्ष 1997 में पार्टियों के दसवें सम्मेलन में अपनाए गए संकल्प 10.10 द्वारा की गई थी।
  • MIKE कार्यक्रम दक्षिण एशिया में वर्ष 2003 में निम्नलिखित उद्देश्य के साथ शुरू किया गया:
    • हाथी रेंज वाले राज्यों को उचित प्रबंधन और प्रवर्तन निर्णय लेने के लिये आवश्यक जानकारी प्रदान करना तथा हाथी आबादी के दीर्घकालिक प्रबंधन के लिये रेंज राज्यों के भीतर संस्थागत क्षमता का निर्माण करना।
  • भारत में MIKE साइट्स:
    • चिरांग-रिपु हाथी अभयारण्य (असम)
    • देवमाली हाथी अभयारण्य (अरुणाचल प्रदेश)
    • दिहिंग पटकाई हाथी अभयारण्य (असम)
    • गारो हिल्स हाथी अभयारण्य (मेघालय)
    • पूर्वी डुआर्स हाथी अभयारण्य (पश्चिम बंगाल)
    • मयूरभंज हाथी अभयारण्य (ओडिशा)
    • शिवालिक हाथी अभयारण्य (उत्तराखंड)
    • मैसूर हाथी अभयारण्य (कर्नाटक)
    • नीलगिरि हाथी अभयारण्य (तमिलनाडु)
    • वायनाड हाथी अभयारण्य (केरल)

भारतीय हिमालयी क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

अपने मनोरम वातावरण और सांस्कृतिक विरासत के लिये प्रसिद्ध हिमालय क्षेत्र के स्वच्छता संबंधी मुद्दों को त्वरित रूप से हल किये जाने की आवश्यकता है, अवैध निर्माण और पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण स्थिति दिन-पर-दिन चिंतनीय होती जा रही है।

  • सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट ने एक हालिया विश्लेषण में हिमालयी राज्यों में स्वच्छता प्रणालियों की गंभीर स्थिति पर प्रकाश डाला है।

विश्लेषण के प्रमुख बिंदु

  • जल आपूर्ति और अपशिष्ट जल उत्पादन: स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रत्येक पहाड़ी शहर में प्रति व्यक्ति लगभग 150 लीटर पानी की आपूर्ति की जाती है।
    • चिंता की बात यह है कि इस जल आपूर्ति का लगभग 65-70% अपशिष्ट जल में परिवर्तित हो जाता है।
  • धूसर जल प्रबंधन चुनौतियाँ: उत्तराखंड में केवल 31.7% घर सीवरेज सिस्टम से जुड़े हैं, जिस कारण अधिकांश लोग ऑन-साइट स्वच्छता सुविधाओं (एक स्वच्छता प्रणाली जिसमें अपशिष्ट जल को उसी भू-खंड पर एकत्रित, संग्रहीत और/या उपचारित किया जाता है जहाँ वह उत्पन्न होता है) पर निर्भर हैं।
    • घरों और छोटे होटल दोनों ही द्वारा बाथरूम एवं रसोई से निकलने वाले गंदे जल के प्रबंधन के लिये अक्सर सोखने वाले गड्ढों (Soak Pits) का उपयोग किया जाता है।
    • कुछ कस्बों में खुली नालियों से गंदे जल का अनियमित प्रवाह होता है, जिससे इस जल का अधिक रिसाव ज़मीन में होने लगता है
  • मृदा और भूस्खलन पर प्रभाव: हिमालयी क्षेत्र की मृदा की संरचना, जिसमें चिकनीदोमट और रूपांतरित शिस्टफिलाइट एवं गनीस शैलें शामिल हैं, स्वाभाविक रूप से कोमल होती है।
    • विश्लेषण के अनुसारजल और अपशिष्ट जल का ज़मीन में अत्यधिक रिसाव, मृदा को नरम/कोमल बना सकता है जिससे भूस्खलन की संभावना अधिक होती है।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र से संबंधित अन्य चुनौतियाँ

  • परिचय:
    • भारतीय हिमालयी क्षेत्र 13 भारतीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीरलद्दाखउत्तराखंडहिमाचल प्रदेशअरुणाचल प्रदेशमणिपुरमेघालयमिज़ोरमनगालैंडसिक्किमत्रिपुराअसम और पश्चिम बंगाल) में 2500 किमी. तक विस्तृत है।
    • इस क्षेत्र में लगभग 50 मिलियन लोग रहते हैं, विविध जनसांख्यिकीय और बहुमुखी आर्थिकपर्यावरणीयसामाजिक तथा राजनीतिक प्रणालियाँ इन क्षेत्रों की विशेषता है।
      • ऊँची चोटियोंविशाल दृश्यभूमिसमृद्ध जैवविविधता और सांस्कृतिक विरासत के साथ भारतीय हिमालयी क्षेत्र लंबे समय से भारतीय उपमहाद्वीप एवं विश्व भर से आगंतुकों तथा तीर्थयात्रियों के लिये आकर्षण का केंद्र रहा है।
  • चुनौतियाँ
    • पर्यावरणीय क्षरण और वनों की कटाई: वनों की व्यापक कटाई भारतीय हिमालयी क्षेत्र की सबसे प्रमुख समस्या रही है, यह पारिस्थितिक संतुलन पर काफी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
      • बुनियादी ढाँचे और शहरीकरण के लिये बड़े पैमाने पर होने वाले निर्माण कार्य से निवास स्थान का नुकसान, मृदा का क्षरण और प्राकृतिक जल प्रवाह में बाधा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • जलवायु परिवर्तन और आपदाएँ: भारतीय हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। बढ़ते तापमान का हिमनदों पर अधिक बुरा असर पड़ा है जिससे निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों के लिये जल संसाधनों की उपलब्धता पैटर्न में बदलाव देखा जा रहा है।
      • अनियमित मौसम पैटर्न, वर्षा की तीव्रता में वृद्धि और दीर्घकालीन शुष्क मौसम पारिस्थितिक तंत्र स्थानीय समुदायों को और अधिक प्रभावित करते हैं।
        • यह क्षेत्र भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भी अतिसंवेदनशील है।
        • गैर-योजनाबद्ध विकास, आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे की कमी एवं अपर्याप्त प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के कारण इस प्रकार की घटनाओं के प्रभाव में और वृद्धि होती है।
    • सांस्कृतिक और स्वदेशी ज्ञान का पतन: भारतीय हिमालयी क्षेत्र पीढ़ियों से कायम रखे हुए अद्वितीय ज्ञान और प्रथाओं वाले विविध स्वदेशी समुदायों का घर है।
      • हालाँकि आधुनिकीकरण के कारण धारणीय संसाधन प्रबंधन हेतु मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने वाली इन सांस्कृतिक परंपराओं का क्षरण हो सकता है।

आगे की राह

  • प्रकृति-आधारित पर्यटन: पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए स्थानीय समुदायों के लिये आय उत्पन्न करने वाले धारणीय और ज़िम्मेदार पर्यटन प्रथाओं का विकास किया जाना चाहिये।
  • इसमें पर्यावरण संवेदी पर्यटन को बढ़ावा देना, वहन क्षमता सीमा लागू करना और पर्यटकों के बीच जागरूकता बढ़ाने जैसे कार्यों को शामिल किया जा सकता है।
  • हिमनद जल संग्रहण: गर्मी के महीनों के दौरान हिमनदों से पिघले जल को संगृहीत करने के लिये नवीन तरीकों का विकास किया जा सकता है।
  • इस संगृहीत जल उपयोग शुष्क मौसम के दौरान कृषि आवश्यकताओं और डाउनस्ट्रीम पारिस्थितिकी तंत्र के समर्थन हेतु किया जा सकता है।
  • आपदा शमन और इससे संबंधित तैयारियाँ: इसके लिये व्यापक आपदा प्रबंधन योजनाएँ विकसित की जा सकती हैं जो भूस्खलन, हिमस्खलन और हिमनद झील के विस्फोट के कारण आने वाली बाढ़ की वजह से संबद्ध क्षेत्र के लिये उत्पन्न गंभीर जोखिमों को कम करने में मदद कर सके। आपदा प्रबंधन के लिये राज्य सरकारें प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, निकासी योजनाओं तथा सामुदायिक प्रशिक्षण कार्यों में निवेश कर सकती हैं।
  • कृषि संवर्द्धन के लिये धूसर जल पुनर्चक्रण: कृषि उपयोग के लिये घरेलू धूसर जल को एकत्रित और उपचारित करने के लिये भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में एक धूसर जल पुनर्चक्रण प्रणाली लागू करने की आवश्यकता है।
  • फसल उत्पादन में वृद्धि हेतु जल और पोषक तत्त्वों का एक स्थायी स्रोत प्रदान करने के लिये इस उपचारित जल का उपयोग स्थानीय खेतों में सिंचाई हेतु किया सकता है।
  • जैव-सांस्कृतिक संरक्षण क्षेत्र: ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों, जहाँ प्राकृतिक जैवविविधता और स्वदेशी सांस्कृतिक प्रथाएँ दोनों संरक्षित हैंको जैव-सांस्कृतिक संरक्षण क्षेत्र के रूप में नामित किया जाना चाहिये। इससे स्थानीय समुदायों तथा पर्यावरण के बीच संबंध बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स, 2023

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स (State of India’s Birds- SoIB), अर्थात् भारत पक्षी स्थिति रिपोर्ट 2023 जारी की गई है, इसमें कुछ पक्षी प्रजातियों के अच्छे तरह विकसित होने और कई पक्षी प्रजातियों में पर्याप्त गिरावट को दर्शाया गया है।

  • SoIB 2023 बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS), वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) और ज़ूलॉज़िकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) सहित 13 सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों का अपनी तरह का पहला सहयोगात्मक प्रयास है। उक्त संगठनों व निकायों के साथ वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI), वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (WWF-इंडिया) आदि भारत में नियमित रूप से पाए जाने वाली पक्षी प्रजातियों की समग्र संरक्षण स्थिति का मूल्यांकन करते हैं।

रिपोर्ट में प्रयुक्त पद्धतियाँ

  • यह रिपोर्ट लगभग 30,000 पक्षी विज्ञानियों द्वारा एकत्र किये गए आँकड़ों पर आधारित है।
  • इस रिपोर्ट में पक्षियों की आबादी का आकलन करने के लिये तीन प्राथमिक सूचकांकों को आधार बनाया गया है:
    • दीर्घकालिक रुझान (30 वर्षों में परिवर्तन)
    • वर्तमान वार्षिक प्रवृत्ति (पिछले सात वर्षों में परिवर्तन)
    • भारतीय वितरण क्षेत्र का आकार
      • 942 पक्षी प्रजातियों के मूल्यांकन से पता चला है कि उनमें से कई प्रजातियों में सटीक दीर्घकालिक या अल्पकालिक रुझान निर्धारित नहीं किये जा सके हैं

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • स्थिति:
    • चिह्नित दीर्घकालिक रुझानों वाली 338 प्रजातियों में से 60% प्रजातियों में गिरावट देखी गई है, 29% प्रजातियाँ स्थिर हैं तथा 11% में वृद्धि देखी गई है।
    • निर्धारित वर्तमान वार्षिक रुझान वाली 359 प्रजातियों में से 39% घट रही हैं, 18% तेज़ी से घट रही हैं, 53% स्थिर हैं और 8% बढ़ रही हैं।
  • सकारात्मक रुझान: पक्षियों की प्रजातियों में वृद्धि:
    • सामान्य गिरावट के बावजूद कुछ पक्षी प्रजातियों में कुछ सकारात्मक रुझान देखे गए हैं।
    • उदाहरण के लिये भारतीय मोर जो भारत का राष्ट्रीय पक्षी है, बहुतायत और विस्तार दोनों मामले में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है।
      • इस प्रजाति ने अपनी सीमा को नए प्राकृतिक वास में विस्तारित किया है, जिनमें उच्च तुंग वाले हिमालयी क्षेत्र और पश्चिमी घाट के वर्षावन शामिल हैं।
    • एशियन कोयल, हाउस क्रो, रॉक पिजन और एलेक्जेंड्रिन पैराकीट (Alexandrine Parakeet) को भी उन प्रजातियों के रूप में उजागर किया गया है जिन्होंने वर्ष 2000 के बाद से उल्लेखनीय वृद्धि की है।
  • विशिष्ट पक्षी प्रजाति:
    • पक्षी प्रजातियाँ जो "विशिष्ट" हैं- आर्द्रभूमि, वर्षावनों और घास के मैदानों जैसे संकीर्ण आवासों तक ही सीमित हैं, जबकि इन प्रजातियों के विपरीत वृक्षारोपण और कृषि क्षेत्रों जैसे व्यापक आवासों में निवास करने वाली प्रजातियाँ तेज़ी से घट रही हैं।
    • सामान्य पक्षी प्रजाति” जो कई प्रकार के आवासों में रहने में सक्षम हैं, एक समूह के रूप में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
      • “हालाँकि, विशिष्ट प्रजाति के पक्षियों को सामान्य प्रजाति के पक्षियों की तुलना में अधिक खतरा है।
      • घास के मैदानों में वास करने वाले विशेष पक्षियों में 50% से अधिक की गिरावट आई है।
    • वनों में वास करने वाले पक्षियों में भी सामान्य पक्षियों की तुलना में अधिक गिरावट आई है, जो प्राकृतिक वन आवासों को संरक्षित करने की आवश्यकता को दर्शाता है ताकि वे विशिष्ट प्रजाति के पक्षियों को को आवास प्रदान कर सकें।
  • प्रवासी और निवासी पक्षी:
    • प्रवासी पक्षियों, विशेष रूप से यूरेशिया और आर्कटिक से लंबी दूरी के प्रवासी पक्षियों में 50% से अधिक की सार्थक कमी देखी गई है, साथ ही कम दूरी के प्रवासी पक्षियों की संख्या में भी कमी आई है।
    • आर्कटिक में प्रजनन करने वाले तटीय पक्षी विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, जिनमें लगभग 80% की कमी आई है।
    • इसके विपरीत एक समूह के रूप में निवासी प्रजाति पक्षी अधिक स्थिर बने हुए हैं।
  • पक्षियों के आहार और संख्या में गिरावट का पैटर्न:
    • पक्षियों की आहार संबंधी आवश्यकताओं में भी प्रचुरता देखी गई है। कशेरुक और मांसाहार खाने वाले पक्षियों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट आई है।
      • डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) से दूषित शवों को खाने से गिद्ध लगभग विलुप्त होने की अवस्था में थे।
    • सफेद पूँछ वाले गिद्धों, भारतीय गिद्धों और लाल सिर वाले गिद्धों को सबसे अधिक दीर्घकालिक गिरावट (क्रमशः 98%, 95% और 91%) का सामना करना पड़ा है।
  • स्थानिक पक्षियों और जलपक्षियों की आबादी में गिरावट:
    • पश्चिमी घाट और श्रीलंका जैवविविधता हॉटस्पॉट के लिये अद्वितीय स्थानिक प्रजातियों में तेज़ी से गिरावट आई है।
      • भारत की 232 स्थानिक प्रजातियों में से कई प्रजातियों का आवास स्थान वर्षावन हैं और उनकी गिरावट आवास संरक्षण के बारे में चिंता पैदा करती है।
    • बत्तखनिवासी और प्रवासी दोनों की संख्या कम हो रही हैबेयर पोचार्ड, कॉमन पोचार्ड और अंडमान टील जैसी कुछ प्रजातियाँ विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
    • नदियों पर कई प्रकार के दबावों के कारण नदी के किनारे रेतीले घोंसले बनाने वाले पक्षियों की संख्या में भी गिरावट आक रही है।
  • प्रमुख खतरे:
    • रिपोर्ट में वन क्षरणशहरीकरण और ऊर्जा अवसंरचना सहित कई प्रमुख खतरों पर प्रकाश डाला गया है, जिनका सामना देश भर में पक्षी प्रजातियों को करना पड़ रहा है।
    • निमेसुलाइड जैसी पशु चिकित्सा दवाओं सहित पर्यावरण प्रदूषक अभी भी भारत में गिद्ध आबादी के लिये खतरा हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव (जैसे प्रवासी प्रजातियों पर) पक्षी रोग और अवैध शिकार तथा व्यापार भी प्रमुख खतरों में से हैं।
  • अन्य प्रजातियाँ: 
    • लंबी अवधि में सारस क्रेन की आबादी में तेज़ी से गिरावट आई है और यह जारी है।
    • कठफोड़वा की 11 प्रजातियों, जिनके लिये स्पष्ट दीर्घकालिक रुझान प्राप्त किये जा सकते हैं, में से सात स्थिर दिखाई देती हैंजबकि दो की आबादी घट रही हैंऔर दो के मामले में तेज़ी से गिरावट आ रही है।
      • पीले मुकुट वाले कठफोड़वा (Yellow-Crowned Woodpecker), जो व्यापक रूप से काँटेदार और झाड़ियों वाले जंगलों में रहते हैं, की संख्या में पिछले तीन दशकों में 70% से अधिक की गिरावट आई है।
    • जबकि विश्व भर में सभी बस्टर्ड में से आधे खतरे में हैं, भारत में प्रजनन करने वाली तीन प्रजातियाँ- ग्रेट इंडियन बस्टर्डलेसर फ्लोरिकन और बंगाल फ्लोरिकन सबसे अधिक असुरक्षित पाई गई हैं।
  • सिफारिशें:
    • पक्षियों के विशिष्ट समूहों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये रिपोर्ट में पाया गया कि घास के मैदान संबंधी विशिष्ट प्रजातियों की संख्या में 50% से अधिक की गिरावट आई है, जो घास के मैदान के पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और रखरखाव के महत्त्व को दर्शाता है।
    • पक्षियों की आबादी में छोटे पैमाने पर होने वाले बदलावों को समझने के लिये लंबे समय तक पक्षियों की आबादी की व्यवस्थित निगरानी करना महत्त्वपूर्ण है।
    • गिरावट या वृद्धि के पीछे के कारणों को समझने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता स्पष्ट होती जा रही है।
    • रिपोर्ट के निष्कर्ष पक्षियों की आबादी में गिरावट को रोकने और एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने के लिये आवास संरक्षण, प्रदूषण को संबोधित करने तथा पक्षियों की आहार आवश्यकताओं को समझने के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों की व्यवहार्य आबादी सुनिश्चित करने के लिये संभावित कदम

  • पर्यावास संरक्षण और पुनरुद्धार:
    • जंगलों, आर्द्रभूमियों, घास के मैदानों और तटीय क्षेत्रों जैसे प्राकृतिक आवासों की रक्षा तथा संरक्षण करना, जो पक्षियों के घोंसले, भोजन एवं प्रजनन के लिये आवश्यक हैं।
    • देशी वनस्पति लगाकर और पक्षियों की आबादी के लिये खतरा पैदा करने वाली आक्रामक प्रजातियों को हटाकर नष्ट हुए आवासों को पुनर्स्थापित करना।
  • संरक्षित क्षेत्र और रिज़र्व:
    • संरक्षित क्षेत्रों और वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना व प्रबंधन करना जहाँ पक्षी मानवीय हस्तक्षेप के बिना रह सकें।
    • इन क्षेत्रों में आवास विनाश और गड़बड़ी को रोकने के लिये नियम और दिशा-निर्देश लागू करना।
  • प्रदूषण कम करना:
    • वायु और जल प्रदूषण सहित प्रदूषण स्रोतों को नियंत्रित करना, जो पक्षियों की आबादी को सीधे या उनके खाद्य स्रोतों के संदूषण के माध्यम से नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण को कम करने के लिये स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • जलवायु परिवर्तन को कम करना:
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके और टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन का समाधान करना।
    • आवास गलियारों का समर्थन करना जो पक्षियों को स्थानांतरित करने और बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने की अनुमति देते हैं।
  • मानवीय हस्तक्षेप को सीमित करना:
    • घोंसले बनाने और भोजन प्रदान करने वाली जगहों पर विशेष रूप से प्रजनन के मौसम के दौरान गड़बड़ी को कम करने के महत्त्व के बारे में जनता को शिक्षित करना।
    • मानवीय हस्तक्षेप को कम करने के लिये संवेदनशील पक्षी आवासों के आसपास बफर ज़ोन स्थापित करना।
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FAQs on Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): August 2023 UPSC Current Affairs - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. हीट वेव्स क्या होते हैं और कैसे उनके बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर. हीट वेव्स गर्मी की अवस्था होती है जो उच्च तापमान और उच्च आपूर्ति के कारण उत्पन्न होती है। इनका प्राथमिक उत्पादक अवस्था सूर्य का तापमान होता है, जिसमें उच्च तापमान के कारण जीवों और पर्यावरण के लिए खतरनाक हो सकता है। आप वेबसाइटों और मौसम ऐप्स के माध्यम से हीट वेव्स के बारे में नवीनतम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
2. हीट इंडेक्स क्या होता है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर. हीट इंडेक्स एक माप होता है जो तापमान और आपूर्ति के संयोग को मापता है और जीवों के लिए अनुकूलता की दिशा में एक अंक के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। यह जानना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें बताता है कि कितना खतरनाक या अस्वस्थकर हो सकता है उच्च तापमान और उच्च आपूर्ति के कारण। हीट इंडेक्स की जानकारी मौसम ऐप्स और मौसम विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध होती है।
3. प्लास्टिक ओवरशूट डे क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर. प्लास्टिक ओवरशूट डे एक ऐसा दिन है जब मानव समुदाय में प्लास्टिक का उपयोग कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास करता है। इस दिन लोग प्लास्टिक के उपयोग को रोकने के लिए समाज को जागरूक करते हैं और प्रदूषण के बढ़ते हुए खतरों के बारे में जागरूकता फैलाते हैं। प्लास्टिक ओवरशूट डे को अगस्त में मनाया जाता है।
4. शहरी बाढ़ क्या है और इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर. शहरी बाढ़ एक प्रकार का जल प्रदूषण है जो शहरी क्षेत्रों में व्याप्त होता है। इसमें भूमि की अशुद्धि, अव्यवस्थित नलसीरता और अरबों के बनावटी विकास के कारण वायुमंडलीय जलमार्गों का प्रभाव बढ़ जाता है। शहरी बाढ़ पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है जैसे कि जल प्रदूषण, मृत समुद्री जीवों का नुकसान, और बाढ़ के बाद आने वाली बीमारियों की बढ़ती हुई संख्या।
5. अगस्त 2023 में पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर शहरी बाढ़ का क्या प्रभाव हो सकता है?
उत्तर. अगस्त 2023 में शहरी बाढ़ का प्रभाव अधिक जल आपूर्ति और जल प्रदूषण के रूप में देखा जा सकता है। अधिक बारिश के कारण नदी और नालों में जलस्तर बढ़ सकता है, जो शहरी क्षेत्रों में जल-भराव और बाढ़ के निमित्त बन सकता है। यह प्रभाव मौसम विभाग के द्वारा प्रदर्शित किए जाने वाले आंकड़ों और वेबसाइटों के माध्यम से जाना जा सकता है
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