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Geography (भूगोल): August 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

मानसून, अल नीनो का कृषि पर प्रभाव

चर्चा में क्यों

वर्ष 2023 में भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून का आगमन देरी से हुआ, जिससे प्रारंभिक दो सप्ताह में होने वाली वर्षा दीर्घावधि औसत (Long Period Average-LPA) से 52.6% कम हुई।

  • हालाँकि 30 जुलाई, 2023 तक कुल मिलाकर सामान्य से 6% अतिरिक्त वर्षा हुई थी। इस परिवर्तन का खरीफ़ फसल की बुवाई पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जबकि रबी फसलों पर आने वाली अल नीनो परिघटना के संभावित प्रभाव के बारे में चिंता बनी हुई है।

वर्षा का दीर्घावधि औसत (LPA)

  • IMD के अनुसार, वर्षा का LPA एक विशेष क्षेत्र में निश्चित अंतराल (जैसे- महीने या मौसम) के लिये दर्ज की गई वर्षा है, जिसकी गणना 30 वर्ष, 50 वर्ष की औसत अवधि के दौरान की जाती है। भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर वर्षा की मात्रा के आधार पर वर्षा वितरण की पाँच श्रेणियाँ (Rainfall Distribution Categories) निर्धारित की गई हैं जो इस प्रकार हैं-
    • सामान्य/सामान्य के लगभग (Normal or Near Normal): LPA के 96-104% के मध्य वर्षा।
    • सामान्य से कम (Below Normal): LPA के 90-96% के मध्य वर्षा।
    • सामान्य से अधिक (Above Normal): LPA के 104-110% के मध्य वर्षा।
    • कमी (Deficient): LPA के 90% से कम वर्षा।
    • आधिक्य (Excess): LPA के 110% से अधिक वर्षा।

भारतीय कृषि पर मानसून का प्रभाव

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • फसल उत्पादन में वृद्धिदेश के फसल क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से मानसूनी वर्षा पर निर्भर है क्योंकि वे मैन्युअल सिंचाई के तरीकों से सुसज्जित नहीं हैं।
      • मानसून के दौरान पर्याप्त वर्षा से मृदा की नमी बढ़ती है और फसलों को बढ़ावा मिलता है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन अधिक होता है।
      • जल की उपलब्धता चावलगेहूँकदन्न और दालों सहित विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती का समर्थन करती है।
    • आर्थिक प्रोत्साहनसफल मानसूनी मौसम किसानों तथा मज़दूरों को आय प्रदान करके ग्रामीण समृद्धि में योगदान देता है, जो बदले में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की मांग को बढ़ाता है।
      • इस बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधि का समग्र राष्ट्रीय विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • भूजल का पुनर्भरणमानसून भू-जल संसाधनों को पुनर्भरण करने में सहायता करता है जो उन क्षेत्रों में टिकाऊ कृषि पद्धतियों के लिये महत्त्वपूर्ण है जहाँ जल का अभाव एक मुख्य चुनौती है।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • अनियमित मानसून पैटर्न: मानसून का समय, तीव्रता और वितरण अप्रत्याशित है जिससे कृषि योजना और फसल प्रबंधन में अनिश्चितताएँ उत्पन्न होती हैं।
      • देर से या जल्दी मानसून आने से रोपण कार्यक्रम बाधित हो सकता है तथा फसल की पैदावार प्रभावित हो सकती है।
    • सूखा और बाढ़मानसून की विफलता या अधिक वर्षा के कारण क्रमशः सूखा या बाढ़ जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
      • दोनों ही परिस्थितियाँ कृषि के लिये विनाशकारी हो सकती हैं। सूखे के परिणामस्वरूप जल का अभाव, फसल की विफलता और पैदावार में कमी आती है, जबकि बाढ़ से फसलों को हानि हो सकती है, उपजाऊ ऊपरी मृदा बह सकती है तथा पशुधन की हानि हो सकती है।
    • फसल हानि: दीर्घावधि तक अत्यधिक मानसूनी वर्षा फसल के रोगों का कारण बन सकती है, जिससे फसल की गुणवत्ता व उपज कम हो सकती है। ये स्थितियाँ किसानों के कृषि कार्यों को प्रभावी ढंग से संचालित करने की क्षमता में भी बाधा डालती हैं।
    • मृदा अपरदन: भारी वर्षा से मृदा अपरदन हो सकता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है तथा लंबे समय के लिए कृषि की उत्पादकता प्रभावित होती है।
      • मृदा अपरदन जल निकायों पर भी प्रभाव डालता है तथा जलाशयों में गाद जमा हो सकता है, जिससे उनकी भंडारण क्षमता कम हो सकती है।
    • खाद्य मूल्य मुद्रास्फीतिअसंगत मानसून पैटर्न फसल उत्पादन को प्रभावित कर सकता है और कमी उत्पन्न कर सकता हैजिसके परिणामस्वरूप खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (Food Price Inflation) हो सकती है।
      • इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर कम आय वाले परिवारों पर, जो अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा भोजन पर व्यय करते हैं।

अल नीनो और कृषि क्षेत्र पर इसका प्रभाव

  • परिचय:
    • अल नीनो एक जलवायवीय परिघटना है जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में अनियमित रूप से घटित होती है, यह सागर-पृष्ठ के तापमान में वृद्धि से विशेषित होती है।
      • इसका भारत सहित विश्व भर के मौसम पर वृहत प्रभाव पड़ सकता है।
    • महासागरीय नीनो सूचकांक (Oceanic Nino Index- ONI) जून 2023 में अल नीनो सीमा 0.5 डिग्री को पार करके 0.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया।
      • वैश्विक मौसम एजेंसियों का अनुमान है कि अल नीनो वर्ष 2023-24 की सर्दियों तक मज़बूती से बना रहेगा।
  • प्रभाव:
    • चरम तापमान: अल नीनो के दौरान भारत के कुछ क्षेत्रों में अक्सर गर्म तापमान का अनुभव किया जाता है।
      • बढ़ा हुआ तापमान फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जिससे हीट स्ट्रेस बढ़ सकता है और पैदावार (खासकर फलों एवं सब्जियों जैसी संवेदनशील फसलों की) कम हो सकती है।
    • कीटों और रोग का प्रकोप: अल नीनो फसलों को प्रभावित करने वाले कुछ कीटों एवं रोगों के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकती है।
      • गर्म तापमान और परिवर्तित वर्षा पैटर्न के कारण कीटों की आबादी में वृद्धि हो सकती है, जो किसानों के लिये अतिरिक्त चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती है।
    • पशुधन पर प्रभाव: अल नीनो के दौरान चारे की उपलब्धता में कमी और जल की कमी पशुधन तथा पशुपालन को प्रभावित कर सकती है, जिससे दूध  मांस के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात और प्रशांत दशकीय दोलन

चर्चा में क्यों

भूमध्य रेखा के निकट उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवात विनाशकारी होते हुए भी हाल के दशकों में असामान्य रूप से कम हुए हैं।

  • हालाँकि नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग और प्रशांत दशकीय दोलन ( Pacific Decadal Oscillation- PDO) का संयोजन आने वाले वर्षों में ऐसे चक्रवातों की बारंबारता को और अधिक बढ़ा सकता है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात या निम्न अक्षांश चक्रवात

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात या निम्न अक्षांश चक्रवात (LLC) 5°N और 11°N के बीच उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात उच्च अक्षांशों की तुलना में आकार में बहुत छोटे होते हैं लेकिन अधिक तीव्र होते हैं।
    • भूमध्य रेखा (कम अक्षांश) के पास बनने वाले चक्रवात आमतौर पर दुर्लभ होते हैं लेकिन जब पानी गर्म होता है, तो वे अधिक नमी प्राप्त कर सकते हैं और तीव्रता में वृद्धि कर सकते हैं।
    • अधिकांश चक्रवात पश्चिमी प्रशांत महासागर में उत्पन्न होते हैं।
  • भारत के पड़ोस में इस तरह का आखिरी बड़ा चक्रवात वर्ष 2017 का चक्रवात ओखी था जिसकी तीव्रता 2000 किमी. से अधिक थी जिसने केरलतमिलनाडु और श्रीलंका में तबाही मचाई
  • मानसून के बाद का मौसम (अक्तूबर-नवंबर-दिसंबर) में उत्तर हिंद महासागर (NIO) निम्न अक्षांश चक्रवात के लिये एक बड़ा केंद्र है, जो NIO (1951 सेमें बने सभी उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का लगभग 60% है, लेकिन इस पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया गया है।

प्रशांत दशकीय दोलन

  • परिचय:
    • प्रशांत दशकीय दोलन (PDO) प्रशांत महासागर का एक दीर्घकालिक समुद्री विपर्यय है। यह एक चक्रीय घटना है जो हर 20-30 वर्षों में दोहराई जाती है और ENSO की तरह इसमें 'ठंडा' और 'गर्म' चरण होता है।
    • सकारात्मक (गर्म) PDO = ठंडा पश्चिमी प्रशांत महासागर और गर्म पूर्वी भाग (नकारात्मक PDO के लिये इसके विपरीत)।
    • PDO शब्द लगभग वर्ष 1996 में स्टीवन हेयर द्वारा गढ़ा गया था। 
  • PDO का प्रभाव:
    • वैश्विक जलवायु पर: PDO चरण का वैश्विक जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, जो प्रशांत और अटलांटिक तूफान गतिविधि, प्रशांत बेसिन के आसपास सूखा एवं बाढ़, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता तथा वैश्विक भूमि तापमान पैटर्न को प्रभावित कर सकता है।
    • चक्रवातों परएक गर्म (सकारात्मक-चरणबद्ध) PDO का तात्पर्य कम भूमध्यरेखीय चक्रवातों से है।
    • वर्ष 2019 में PDO ने ठंडे, नकारात्मक चरण में प्रवेश किया तथा यदि यह जारी रहा, तो इसका अर्थ है कि मानसून के बाद के महीनों में ऐसे और अधिक चक्रवात उत्पन्न हो सकते हैं।
  • ENSO और PDO: 
    • सकारात्मक PDO वाला ENSO आमतौर पर अच्छा नहीं होता है, हालाँकि नकारात्मक PDO वाला ENSO से भारत में अधिक बारिश होती है।
    • यदि ENSO और PDO दोनों एक ही चरण में हैं, तो ऐसा माना जाता है कि अल नीनो/ला नीना का प्रभाव बढ़ सकता है।
  • PDO बनाम ENSO: 
    • अल नीनो या ला नीना घटनाएँ प्रशांत क्षेत्र में 2-7 वर्षों में दोहराई जाती हैं, हालाँकि PDO के पास लंबे समय तक (दशकीय पैमाने पर) संकेत होते हैं।
    • PDO का 'सकारात्मक' या 'गर्म चरण' समुद्र के तापमान को मापने और वायुमंडल के साथ उनके परस्पर प्रभाव के कई वर्षों के बाद ही जाना जा सकता है (ENSO का चरण किसी भी वर्ष निर्धारित किया जा सकता है)।
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