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भारत में जैव ईंधनः स्थिरता और डीकार्बोनाइजेशन चुनौतियों का संतुलन


संदर्भ -

हाल के वर्षों में, डीकार्बोनाइजेशन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की सबसे प्रभावी रणनीतियों के बारे में छिड़ी हुई है। इस चर्चा के केंद्र बिंदु में जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन है। विशेष रूप से, जैव ईंधन को हरित परिवहन क्षेत्र की खोज में एक प्रमुख शक्ति के रूप में देखा गया है। हालांकि, यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि कोई भी डीकार्बोनाइजेशन रणनीति चुनौतियों के बिना नहीं आती है।इस चर्चा मे सबसे पहले जैव ईंधन समझते है।

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जैव ईंधन क्या हैं?

जैव ईंधन कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त हाइड्रोकार्बन ईंधन की एक श्रृंखला है। ये जैव ईंधन तीन प्राथमिक अवस्थाओं में मौजूद हो सकते हैं-

  • ठोस जैव ईंधनः इस श्रेणी में लकड़ी, सूखे पौधों और खाद जैसी सामग्री शामिल हैं। इन ठोस जैव ईंधनों में ताप और बिजली उत्पादन के लिए कोयला और लकड़ी जैसे पारंपरिक जीवाश्म ईंधन को बदलने या पूरक बनने की क्षमता है।
  • तरल जैव ईंधनः तरल जैव ईंधन में बायोइथेनॉल और बायोडीजल जैसे पदार्थ होते हैं। बायोइथेनॉल आमतौर पर गन्ना या मकई जैसी फसलों से बनाया जाता है और इसे गैसोलीन के साथ मिश्रित किया जा सकता है । परिवहन के लिए इसका एक स्वतंत्र ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। दूसरी ओर, बायोडीजल वनस्पति तेलों या पशु वसा से प्राप्त होता है और इसका उपयोग डीजल ईंधन के विकल्प के रूप में किया जा सकता है।
  • गैसीय जैव ईंधनः बायोगैस गैसीय जैव ईंधन का एक उल्लेखनीय उदाहरण है। यह सीवेज, कृषि अपशिष्ट और खाद्य स्क्रैप जैसे जैविक पदार्थों के अवायवीय पाचन के माध्यम से बनाया जाता है। जैविक गैस ताप और बिजली उत्पादन के लिए प्राकृतिक गैस की जगह ले सकती है या इसकी पूरक हो सकती है।

जैव ईंधन का महत्व

जैव ईंधन पारंपरिक जीवाश्म ईंधन के एक स्थायी विकल्प के रूप में काम करते हैं। परिवहन, बिजली उत्पादन और पोर्टेबल उपकरणों सहित विभिन्न क्षेत्रों इनका प्रयोग किया जा सकता हैं। इन ईंधनों को अपनाने के कई सम्मोहक कारण हैं-

  1. आर्थिक महत्व : जैसे-जैसे तेल जैसे पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की लागत बढ़ती जा रही है, जैव ईंधन एक लागत प्रभावी और संभावित रूप से अधिक स्थिर ऊर्जा स्रोत प्रदान करते हैं।
  2. पर्यावरणीय लाभः जैव ईंधन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में योगदान देते हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। यह जीवाश्म ईंधन के अधिक पर्यावरण अनुकूल विकल्प प्रदान करते हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है।
  3. कृषि में अतिरिक्त आय: फसक अवशिष्ट से जैव ईंधन उत्पादन कृषि की अतिरिक्त आय के स्रोत प्रदान करके किसानों को लाभान्वित कर सकती है। यह कृषि क्षेत्र में विविधता लाता है और पारंपरिक फसल बाजारों पर निर्भरता को कम करता है।

जैव ईंधन की विभिन्न श्रेणियाँ:

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भारत में जैव ईंधनः

  • भारतीय संदर्भ में, जैव ईंधन मुख्यतः पहली पीढ़ी (1जी) का इथेनॉल है, जो मुख्य रूप से खाद्य फसलों से प्राप्त होता है।
  • भारत ने 2025-26 तक पेट्रोल के साथ 20% इथेनॉल सम्मिश्रण प्राप्त करने का नीतिगत लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके गन्ना एवं खाद्यान्न जैसी फसलों से प्राप्त पहली पीढ़ी के इथेनॉल पर अधिक निर्भर होने का अनुमान है।
  • दूसरी ओर, कृषि अपशिष्ट और अवशेषों से उत्पादित दूसरी पीढ़ी (2जी) इथेनॉल को पर्याप्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो सम्मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान करने की इसकी क्षमता को सीमित करते हैं। ये चुनौतियां फीडस्टॉक आपूर्ति श्रृंखला और उत्पादन के मुद्दों से संबंधित हैं।

जैव ईंधन एक डीकार्बोनाइजेशन विकल्प के रूप में

कम उत्सर्जन के मामले में आशाजनक होने के बावजूद इलेक्ट्रिक वाहन में संक्रमण में पर्याप्त चुनौतियों है और इसके लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता है। मौजूदा आंतरिक दहन इंजन (आईसीई) वाहनों और उनके बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से बदले जाने की जरूरत पड़ेगी जो न केवल महंगा है बल्कि संसाधन-गहन भी है। इसके अलावा, ईवी बैटरियों का उत्पादन महत्वपूर्ण खनिजों पर निर्भर करता है, जो अक्सर आयात किए जाते हैं। यह खनन प्रथाओं से संबंधित पर्यावरणीय चिंताओं को बढ़ाते है। इसके विपरीत, जैव ईंधन एक विशिष्ट लाभ प्रदान करते हैं-उन्हें सम्मिश्रण दरों के आधार पर न्यूनतम संशोधनों के साथ मौजूदा आंतरिक दहन इंजनों और इसके बुनियादी ढांचे में निर्बाध रूप से एकीकृत किया जा सकता है। इसके अलावा, जैव ईंधन हेतु आयात पर निर्भरता नहीं है ।

हालांकि, यह पहचानना आवश्यक है कि "जैव ईंधन" शब्द में टिकाऊ और अस्थिर ईंधन दोनों शामिल हैं, जिससे दोनों के बीच अंतर करना महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रभावी डीकार्बोनाइजेशन के लिए, इन अंतरों की स्पष्ट समझ सर्वोपरि है।

भारत की जैव ईंधन रणनीति में चुनौतियां

  • इथेनॉल उत्पादन के लिए अधिक गन्ना उगाने से भूजल में कमी और संभावित खाद्य सुरक्षा चिंताएं पैदा होगी । कई विद्वान अधिशेष उपज को ऊर्जा की ओर मोड़ने या ऊर्जा फसलों के लिए कृषि योग्य भूमि उपयोग करने की रणनीति को एक अस्थिर मानते हैं।
  • वर्तमान मे भारत की फसल पैदावार स्थिर हो रही है, और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से इसमें कमी आने की आशंका है। इसका मतलब यह है कि सीमित कृषि योग्य भूमि को घटते कृषि उत्पादन के साथ बढ़ती आबादी का पेट भरने की आवश्यकता होगी। इस प्रकार, सम्मिश्रण लक्ष्यों को पूरा करने की भारत की रणनीति अतिरिक्त फसल उत्पादन पर निर्भर नहीं होनी चाहिए।
  • दूसरा, हाल के एक अध्ययन में बढ़ते तापमान और फसल के लिए पानी की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण भूजल में कमी की दर में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। भूजल और कृषि योग्य भूमि जैसे सीमित संसाधनों के साथ, ईंधन पर खाद्य उत्पादन को प्राथमिकता देना अनिवार्य हो जाता है।
  • तीसरा, कृषि क्षेत्र प्रत्यक्ष ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में एक प्रमुख योगदानकर्ता है। जैव ईंधन उत्पादन के लिए कृषि से जीएचजी उत्सर्जन बढ़ाना, एक अनावश्यक संतुलन पैदा करेगा ।

आगे का रास्ता

  • ऊर्जा संक्रमण आयोग ने अपनी रिपोर्ट, 'नेट-जीरो उत्सर्जन अर्थव्यवस्था के भीतर जैव संसाधन' में उन क्षेत्रों में बायोमास उपयोग की प्राथमिकता पर जोर देते हुए एक सिफारिश की है जिनमें व्यवहार्य कार्बन विकल्पों की कमी है। विशेष रूप से, लंबी दूरी के विमानन और सड़क माल ढुलाई खंड के लिए। इन क्षेत्रों में पूर्ण विद्युतीकरण की लंबे समय तक आवश्यकता होती है। यह ऐसे क्षेत्र हैं जहां बायोमास एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके विपरीत, रिपोर्ट बताती है कि पेट्रोल वाहनों में बायोमास का उपयोग (इथेनॉल सम्मिश्रण का वर्तमान फोकस) उतना प्रभावी नहीं है।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी 2050 तक वैश्विक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने में एक प्रमुख चालक के रूप में स्थायी जैव ईंधन उत्पादन के महत्व को रेखांकित करती है। यह 2030 तक स्थायी जैव ईंधन उत्पादन में तीन गुना वृद्धि की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। यद्यपि पहली पीढ़ी (1जी) इथेनॉल द्वारा इन लक्ष्यों को पूरा करने की संभावना नहीं है, जबकि दूसरी पीढ़ी (2जी) इथेनॉल एक संभावित स्थायी ईंधन के रूप में उभरा है, खासकर अगर उत्पादन विकेंद्रीकृत है। हालांकि विकेंद्रीकरण, फसल अवशेष उपयोग की स्थानीय प्रकृति के कारण चुनौतियां पेश कर सकता है।
  • लंबी दूरी पर बायोमास संग्रह और परिवहन से जुड़ी ऊर्जा आवश्यकताओं और लागतों के साथ लाभों को संतुलित करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। यहाँ वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन नवाचार और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, विशेष रूप से कुशल बायोमास आपूर्ति श्रृंखलाओं और छोटे पैमाने पर विकेंद्रीकृत जैव ईंधन उत्पादन इकाइयों के विकास में।
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FAQs on The Hindi Editorial Analysis- 28th September 2023 - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

1. भारत में जैव ईंधन क्या है?
उत्तर: जैव ईंधन एक प्रकार का ऊर्जा है जो जैविक स्रोतों से प्राप्त की जाती है, जैसे कि खाद्य अपशिष्ट, गोबर, जलमय जीवाश्म आदि। यह ऊर्जा स्रोत में से घरेलू और व्यापारिक उपयोग के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
2. भारत में जैव ईंधन का उपयोग क्यों बढ़ रहा है?
उत्तर: जैव ईंधन का उपयोग बढ़ रहा है क्योंकि इससे कई तरह के लाभ होते हैं। यह पर्यावरण को संरक्षित रखने में मदद करता है, कार्बन डाइऑक्साइड की कमी करता है और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देता है। इसके साथ ही, जैव ईंधन का उपयोग कृषि, ग्रामीण विकास, रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
3. जैव ईंधन के उत्पादन में क्या स्थिरता का महत्व है?
उत्तर: स्थिरता जैव ईंधन के उत्पादन में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कार्यकारी होने के लिए आवश्यक है। एक स्थिर और नियमित उत्पादन प्रक्रिया से, हम जैविक स्रोतों को सही ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं और उनका बेहतर उपयोग कर सकते हैं। स्थिरता उत्पादन की गुणवत्ता और प्रभावशीलता को सुनिश्चित करती है।
4. जैव ईंधन के उपयोग से डीकार्बोनाइजेशन क्या होता है?
उत्तर: जैव ईंधन के उपयोग से डीकार्बोनाइजेशन का मतलब होता है कि जब जैविक स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग होता है, तो कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होती है। इस प्रक्रिया से हम पर्यावरण को कार्बन आधारित उत्पादों से बचा सकते हैं, जो फॉसिल ईंधन के उपयोग से प्राप्त होते हैं और वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं।
5. जैव ईंधन को विकसित करने के लिए भारत सरकार ने कौन-कौन सी नीतियाँ बनाई हैं?
उत्तर: भारत सरकार ने कई नीतियाँ बनाई हैं जो जैव ईंधन को विकसित करने को प्रोत्साहित कर रही हैं। कुछ मुख्य नीतियों में शामिल हैं प्रधानमंत्री आवास योजना, मुद्रा योजना, बेरोजगारी भत्ता योजना, जन धन योजना आदि। इन नीतियों के माध्यम से सरकार ने जैव ईंधन के लिए विभिन्न प्रोत्साहन कार्यक्रम और आर्थिक सहायता प्रदान की है।
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