प्रश्न 1: बुढ़िया को कोई भी उधार क्यों नहीं देता?
उत्तर: उस स्त्री को उधार देने वाला व्यक्ति कोई भी नहीं था क्योंकि उसके घर में कोई भी कमाने वाला अब नहीं रह गया था।
प्रश्न 2: पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर: पोशाक हमारे लिए तब बंधन और अड़चन बन जाती है जब समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूतियों को समझने और उनके सुख-दुखों को बांटने में हमारा सम्मान कम होने लगता है अथवा कम होने की संभावना होती है।
प्रश्न 3: भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
उत्तर: भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघे जमीन पर साग-सब्जी और फल उगाता था। उसी की बिक्री से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता था।
प्रश्न 4: खरबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर: खरबूजे बेचने वाली अपने मुँह को कपड़े में छुपाकर सिर को घुटनों में रखे रो रही थी इसलिए लोग उससे खरबूजे नहीं खरीद रहे थे।
प्रश्न 5: उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का क्या कारण था?
उत्तर: उस स्त्री के बेटे की मृत्यु का कारण एक साँप का डसना था। जब उस स्त्री का बेटा खरबूजे के खेत में बने हुए मेड़ पर खरबूज़े चुन रहा था, तभी किसी विषधर साँप ने उसे डस लिया था।
Short Answer Type Questions
प्रश्न 1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?
उत्तरः
(i) उसकी पोशाक ही समाज में उसका दर्जा तय करती है।
(ii) पोशाक ही मनुष्य की उन्नति के बन्द दरवाजे खोल देती है।
(iii) पोशाक व्यक्तियों को समाज की विभिन्न श्रेणियों में बाँटती है।
प्रश्न 2. पोशाक हमारे लिए कब बन्धन और अड़चन बन जाती है?
उत्तरः जब हम जरा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं।
प्रश्न 3. लेखक को कब लगा कि उसकी पोशाक उसके लिए व्यवधान बन गई ?
उत्तरः लेखक वृद्धा की दशा देखकर व्यथित था। वह फुटपाथ पर बैठकर बुढ़िया के प्रति सहानुभूति प्रकट करना चाहता था। परन्तु ऐसा करने में उसकी पोशाक ही व्यवधान बन गई, क्योंकि लेखक ने आधुनिक ढंग के स्वच्छ वस्त्र पहने हुए थे, जो उसके कुलीन वर्ग से संबंधित होने का प्रमाण दे रहे थे। उसकी पोशाक ने उसमें बड़प्पन का अभिमान जगा दिया। जिसके कारण वह सबके सामने गरीब बुढ़िया का दर्द न बाँट सका।
प्रश्न 4. ‘दुःख का अधिकार’ कहानी में खरबूजे बेचने वाली के खरबूजे क्यों नहीं बिक रहे थे?
अथवा
खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तरः खरबूजे तो बेचने के लिए रखे थे, परन्तु बेचने वाली का मुँह ढ़का हुआ था और वह फफक-फफक कर रो रही थी।
Long Answer Type Questions
प्रश्न 1. इस कहानी में लेखक ने हमारी किन कुरीतियों और कुसंस्कारों की ओर संकेत किया है?
उत्तरः लेखक ने इस कहानी में समाज की कुछ कुरीतियों की ओर संकेत किया है। जैसे-यदि किसी के यहाँ मृत्यु का सूतक (पातक) हो तो उसे काम नहीं करना चाहिए। उसके हाथ से चीज भी नहीं खरीदनी चाहिए क्योंकि उसके स्पर्श से वस्तु दूषित हो जाती है, और खाने वाले का ईमान-धर्म नष्ट हो जाता है।
लेखक ने समाज के इस कुसंस्कार का भी संकेत किया है कि झाड़-फूँक करने वाले ओझा को पूजा के नाम पर बहुत दान-दक्षिणा दे दी जाती है, भले ही घर में कुछ भी शेष न रहे।
इसी प्रकार हाथ के गहने तक बेचकर मुर्दे के लिए कफन खरीदना पडे़ इसे भी लखेक कुरीति मानता है वेसै गरीब विवश लोगों के प्रति घृणा की भावना और उन्हें नीच या कमीना कहना स्वयं में एक बहुत बड़ा कुसंस्कार है। इसका संकेत भी लेखक ने दिया है।
प्रश्न 2. बुढ़िया के दुःख तथा संभ्रांत महिला के दुःख में क्या अंतर है?
अथवा
पुत्र-वियोगिनी बुढ़िया माँ और संभ्रांत महिला के दुःखों की तुलना कीजिए।
अथवा
भगवाना की माँ और संभ्रांत महिला के दुःखों की तुलना कीजिए।
उत्तरः भगवाना की माँ अत्यंत गरीब एवं मेहनतकश महिला है। रोज कमाने और रोज खाने वाली भगवाना की माँ का परिवार आर्थिक तंगी के दौर से निरंतर गुजरता रहता है। उसके बेटे भगवाना की आकस्मिक मौत ने उसे पूरी तरह हिलाकर रख दिया। अंधविश्वास के कारण आधुनिक चिकित्सा के अभाव ने उसके बेटे भगवाना की जान ले ली, लेकिन इकलौते बेटे की मृत्यु से जड़-सी बन चुकी भगवाना की माँ के सामने और भी दायित्व खड़े थे।
घर में अनाज का दाना नहीं होने से भूख से बिलबिलाते बच्चे एवं बुखार से तपती बहू की जान की परवाह उसे ही करनी थी। इसलिए उसके पास अपने इकलौते बेटे की मृत्यु का दुःख मनाने का अवसर नहीं है। वह अंदर से कलपती है, लेकिन उसे स्वयं पर नियंत्रण रखकर घर की जिम्मेदारी निभानी है।
दूसरी तरफ अपने बेटे की मृत्यु के बाद एक संभ्रांत महिला महीनों तक बिस्तर पकड़े रहती है। बेटे की मृत्यु ने उसे शोक संतप्त कर दिया है और वह अपने होश को सँभाल नहीं पा रही है, उसकी तीमारदारी में दो-दो डाॅक्टर लगे हुए हैं। ध्यान देने की बात यह है कि हर माँ का दिल अपने बेटे के प्रति पे्रेम एवं ममता लिए एक जैसा ही होता है, लेकिन इससे ज्यादा कड़वी सच्चाई यह भी है कि समय एवं परिस्थिति मनुष्य को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सिखा देती है। संभ्रांत महिला के सामने भगवाना की माँ की तरह अपने परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी नहीं है। उसके घर में भूख से बिलबिलाते बच्चे एवं बुखार से तपती बहू नहीं है और वह घर की जिम्मेदारी उठाने वाली एकमात्र सदस्या नहीं है। इसलिए उसे अपना दुःख मनाने का अवसर प्राप्त हो जाता है, जिसका भगवाना की माँ के पास घोर अभाव है।
प्रश्न 3. यशपाल जी की कहानी ‘दुःख का अधिकार’ में दुख मनाने का अधिकार सबको क्यों नहीं है
अथवा
‘दुःख मनाने का भी एक अधिकार होता है।’ टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः दुःख मनाने का अधिकर केवल अमीर व्यक्तियों को है। गरीब आदमी दुःखी होकर भी दुःख मनाने का अवसर नहीं पाता क्योंकि उसे विवशतः मजदूरी करनी पड़ती है। दुःखों को सहन करना पड़ जाता है।
प्रश्न 4. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और....दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा? पाठ ‘दुःख का अधिकार’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आशय स्पष्ट कीजिए-शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और....दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तरः लेखक के अनुसार दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है। उसका इस तरह से कहना उचित ही है। बुढ़िया और संभ्रात महिला का दुःख समान है। दोनों के पुत्र की मृत्यु हुई है परंतु बुढ़िया की बहू तेज बुखार से पीड़ित है। बच्चे भूख से बिलख रहे हैं और पैसों की कमी है। इन सब कारणों से उसे शोक करने, गम मनाने का भी अवसर नहीं मिला और वह अपने बेटे की मृत्यु के दूसरे दिन ही अपने शोक को भूलकर खरबूजे बेचने चल दी। जबकि संभ्रात महिला को उसके बेटे की मृत्यु के बाद दुःख मनाने के लिए सभी सहूलियत मिली। शोक संतप्त होने पर वह अपने होश नहीं संभाल पा रही थी। इसलिए दो-दो डाक्टर उसकी तीमारदारी में लगे हुए थे। वह महीनों बिस्तर पर पड़ी रहती है, क्योंकि उसके सामने परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी नहीं थी।
यहाँ हम समझ सकते हैं कि हर माँ के दिल में अपने बेटे के प्रति प्रेम, ममता समान होती है, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण गरीब बुढ़िया को शोकग्रस्त होने के बावजूद भी दुःखी होने का अधिकार नहीं मिल पाया, जबकि संभ्रात महिला को अपनी सहूलियतों के कारण दुःख मनाने का अधिकार मिल गया। कड़वी सच्चाई यह है कि समय और परिस्थिति के अनुसार मनुष्य को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना ही पड़ता है।
प्रश्न 5. इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः इस पा. का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ सटीक एवं सार्थक है। लेखक यह कहना चाहता है कि यद्यपि दुःख प्रकट करना हर व्यक्ति का अधिकार है। परन्तु हर कोई ऐसा कर नहीं सकता। एक ओर सम्पन्न महिला है और उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं है। उसके पास पुत्र-शोक मनाने के लिए डाॅक्टर हैं, सेवा-कर्मी हैं, साधन हैं, धन है, समय है। परन्तु गरीब लोग अभागे हैं, वे चाहे तो भी शोक प्रकट करने के लिए आराम से दो आँसू नह° बहा सकते। उनके सामने खड़ी भूख, गरीबी और बीमारी नंगा नाच करने लगती है। अतः दुःख प्रकट करने का अधिकार गरीबों को नहीं है।
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