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Moral Integrity (नैतिकता अखंडता): September 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

Case Study 1


प्रश्न : एक भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी को किसी देश में भारत के राजदूत के रूप में तैनात किया जाता है। इसे भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करने और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया है। हालांकि संबंधित देश का मानवाधिकार रिकॉर्ड खराब होने के साथ यहाँ की सरकार पर जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार करने का आरोप लगाया गया है।

इन अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों ने इस IFS अधिकारी से संपर्क किया है और इस संदर्भ में इसने भारत सरकार से सहायता एवं समर्थन का अनुरोध किया है। इन प्रतिनिधियों ने अधिकारी को मानवाधिकार हनन के साक्ष्य भी उपलब्ध कराए हैं। हालांकि इस अधिकारी को विदेश मंत्रालय द्वारा संबंधित देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा संबंधित सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की सलाह दी गई है।

अगर आप IFS अधिकारी के पद पर होते तो इस स्थिति में आप क्या करते?

उत्तर:

परिचय

उपरोक्त मामला एक IFS अधिकारी के इर्द-गिर्द घूमता है, जो एक मेजबान देश में राजदूत के रूप में तैनात है। संबंधित देश का मानवाधिकार रिकॉर्ड खराब होने के साथ यहाँ की सरकार पर जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार करने का आरोप लगाया जाता है। सरकारी दुविधा का अनुभव तब करता है जब उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों का एक प्रतिनिधि समर्थन मांगने के लिये उसके पास आता है।

विदेश मंत्रालय अधिकारी को मेजबान देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने और मेजबान सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की सलाह देता है। इसलिये, अधिकारी को इस नाजुक स्थिति को नेविगेट करने और अल्पसंख्यकों की जरूरतों, भारत के हितों और मंत्रालय की सलाह को संतुलित करने वाला निर्णय लेने की आवश्यकता है।

मुख्य भाग

  • शामिल हितधारक
    • मैं एक IFS अधिकारी के रूप में।
    • भारत के विदेश मंत्रालय।
    • जिस देश में IFS तैनात हैं वहां के अल्पसंख्यक।
    • मानवाधिकार NGO
    • बड़े पैमाने पर मानव जाति
  • शामिल नैतिक मुद्दे:
    • पारदर्शिता और जवाबदेही: अधिकारी को पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों को लेकर नैतिक सवालों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि मानव अधिकारों के हनन के बारे में जानकारी सार्वजनिक हित और महत्व की हो सकती हैं, लेकिन फिर भी अधिकारी को इस जानकारी को गुप्त रखना पद सकता है तथा उसे सार्वजनिक नहीं करना होगा या अभियुक्तों की मदद करने से भी बचना होगा।
    • पेशेवर नैतिकता: मानवाधिकार के मुद्दों से निपटने के दौरान अधिकारी को व्यावसायिकता और निष्पक्षता के उच्चतम मानकों को बनाए रखने की नैतिक चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन: मेजबान देश का खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड और जातीय तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित अत्याचार मानवाधिकारों की रक्षा और सम्मान की ज़िम्मेदारी के बारे में नैतिक सवाल उठाते हैं।
    • मानवाधिकार: मानवाधिकारों का सम्मान करना और उन्हें बढ़ावा देना IFS अधिकारी की नैतिक ज़िम्मेदारी है। इसमें मानवाधिकारों के हनन के संदर्भ में आँख नहीं मूंदना और उन्हें संबोधित करने के लिये उचित कार्रवाई करना शामिल है।
    • सहानुभूति: IFS अधिकारी आरोपी देश के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति महसूस करेगा।
  • शामिल नैतिक दुविधा:
    • भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करना बनाम अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना: अधिकारी को भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करने और मेजबान देश के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया है, लेकिन वह जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का समर्थन तथा सुरक्षा करने की नैतिक ज़िम्मेदारी भी महसूस कर सकता है जिनके पास मानवाधिकार हनन के शिकार हुए हैं।
    • मेजबान देश की संप्रभुता का सम्मान करने का कर्तव्य बनाम जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों की रक्षा करने का कर्तव्य: अधिकारी को मेजबान देश की संप्रभुता का सम्मान करने और उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा जबान सरकार द्वारा सताए जा रहे जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार की रक्षा करने के कर्तव्य के बीच दुविधा का सामना करना पड़ेगा।
    • विदेश मंत्रालय के मार्गदर्शन का पालन बनाम व्यक्तिगत निर्णय का उपयोग करना: अधिकारी विदेश मंत्रालय के मार्गदर्शन का पालन करने और स्थिति को संभालने हेतु लिये जाने वाले स्वयं के व्यक्तिगत निर्णय के बीच द्वंद्व में फँस सकता है।
  • कार्रवाई:
    • एक IFS अधिकारी के रूप में मेरी कार्रवाई कूटनीति और सिद्धांत के संतुलन के साथ इस मुद्दे को हल करने की होगी।
    • सबसे पहले, मैं कोई भी कार्रवाई करने से पहले अधिक जानकारी एकत्र करने का प्रयास करूँगा, मेजबान देश में मानवाधिकारों की स्थिति के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करना महत्वपूर्ण है।
    • इसमें जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ अन्य स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और मानवाधिकार संगठनों के साथ बैठक शामिल हो सकती है और इन समूहों द्वारा प्रदान किये गए साक्ष्य की समीक्षा भी कर सकते हैं और इसकी विश्वसनीयता का आकलन कर सकते हैं।
    • इस बीच, मैं फिर से विदेश मंत्रालय से कहूँगा कि स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है और उन्हें नवीनतम साक्ष्य भी प्रदान करें तथा इन सबके बावजूद मंत्रालय मेरी सहायता प्रदान करने की योजना को फिर से खारिज कर देता है तो मैं विदेश से पत्र लिखूँगा और भारत सरकार के भीतर मंत्री और अन्य संबंधित अधिकारियों से मार्गदर्शन लूँगा उनके लिये मेजबान देश में मानवाधिकारों की स्थिति पर आधिकारिक रुख निर्धारित करना आसान हो जाए।
    • जैसा कि वे किसी भी कार्रवाई के संभावित प्रभाव पर भी विचार करेंगे, वे मेजबान देश के साथ भारत के संबंधों के साथ-साथ प्रभावित अल्पसंख्यकों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी विचार करेंगे।
    • इसके अलावा, मैं जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों को विभिन्न वैश्विक NGO से जोड़ने की कोशिश करूँगा क्योंकि वे उन्हें बुनियादी आवश्यकताएँ प्रदान कर सकते हैं और वैश्विक मंच पर उनकी आवाज उठाने में और मदद कर सकते हैं।
    • अगर ये NGO उनकी उपेक्षा करते हैं, तो मैं एक राजदूत के रूप में अपनी स्थिति का लाभ उठाउँगा और अपने संपर्कों का उपयोग उन्हें पीने के पानी, भोजन और कपड़े आदि जैसी बुनियादी आवश्यकताएँ प्रदान करने के लिये करूँगा ।
    • अंत में, मैं भारत में सताए गए अल्पसंख्यकों के कानूनी और त्वरित प्रवासन की सुविधा प्रदान करूँगा ।

निष्कर्ष

IFS अधिकारी के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों और सम्मेलनों के अनुसार कार्य करना तथा मेजबान देश की सरकार के साथ मानवाधिकारों के हनन के बारे में चिंता जताने के लिये कूटनीतिक साधनों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, अधिकारी को मेजबान सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने और भारत के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता के साथ इस ज़िम्मेदारी को संतुलित करना चाहिये।

Case Study 2

प्रश्न : शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं को हल करने के क्रम में तर्कसंगत दृष्टिकोण की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

उत्तर :

परिचय
तर्कसंगत सोच समस्या-समाधान के लिये एक व्यवस्थित और तार्किक दृष्टिकोण है जिसमें स्थिति का विश्लेषण करना, शामिल नैतिक सिद्धांतों की पहचान करना और विभिन्न कार्यों के संभावित परिणामों का मूल्यांकन करना शामिल है।

मुख्य भाग:

  • शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधा एक सामान्य घटना है, और कई बार उन्हें हल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

उदाहरण:

  • भारत में शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं के उदाहरणों में शामिल हैं:
    • भेदभाव: शिक्षा तक पहुँच में बाधाएँ और शिक्षक कदाचार या हाशिए में स्थित समुदायों के छात्रों तक शिक्षा न पहुँचना ।
      • उदाहरण के लिये, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव शिक्षकों और प्रशासकों के लिये नैतिक दुविधा पैदा कर सकता है।
      • इसी तरह, शिक्षक दुराचार जैसे यौन उत्पीड़न या छात्रों के साथ दुर्व्यवहार
    • शारीरिक दंड: भारत सरकार ने 2010 में स्कूलों में शारीरिक दंड पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन अभी भी कई स्कूलों में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
    • सामाजिक असमानता: स्कूलों का सामना करने वाले सबसे बड़े नैतिक मुद्दों में से एक सामाजिक असमानता है। शिक्षा संस्थान अक्सर उन समस्याओं का समाधान करने में विफल रहते हैं जो विभिन्न बच्चों के बीच उनकी आर्थिक, जातीय और अन्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण असमानताओं के कारण उत्पन्न होती हैं।
      • उदाहरण के लिये, एक गरीब पृष्ठभूमि का बच्चा, जिसके पास पर्याप्त आवास या भोजन की व्यवस्था नहीं है, वह अन्य बच्चों की तुलना म इन स्कूल में कम सक्रिय रहेगा
      • इसके अलावा, स्कूल प्रशासक वैकल्पिक रूप से सहायता की पेशकश करने के बजाय अक्सर इन बच्चों को खराब शैक्षणिक प्रदर्शन के लिये दंडित करते हैं।
  • इसलिये, अहिंसा के नैतिक सिद्धांतों और मानवीय गरिमा के सम्मान पर विचार करके इन दुविधाओं को हल करने के लिये शिक्षा प्रणाली में तर्कसंगत सोच विकसित करने की आवश्यकता है।

तर्कसंगत सोच का उपयोग करके नैतिक दुविधाओं को हल करने के उपाय इस प्रकार हैं:

  • नैतिक संवेदनशीलता: शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं को हल करने का एक तरीका नैतिक संवेदनशीलता (आरआईएमएस) के लिये तर्कसंगत बातचीत का उपयोग है।
    • इस रणनीति में स्थिति का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना और एक सुविचारित निर्णय लेने के लिये विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करना शामिल है। इसे शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक और व्यक्तिगत नैतिक दुविधाओं दोनों पर लागू किया जा सकता है।
  • दयालुता: शिक्षा में दयालुता एक सकारात्मक और समावेशी कक्षा वातावरण बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह छात्रों को महत्त्वपूर्ण सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद कर सकती है,
    • यह एक सकारात्मक और समावेशी कक्षा के माहौल को बढ़ावा देने, भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देने और छात्रों में महत्त्वपूर्ण सामाजिक एवं भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • कृतज्ञता: विभिन्न अध्ययनों ने कृतज्ञता को प्रसन्नता में वृद्धि, मजबूत रिश्तों और बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य से जोड़ा है तथा हाल के वर्षों में, युवाओं के बीच कृतज्ञता पर किये गए अध्ययनों से पता चलता है कि यह लंबी अवधि में उन्हें अधिक सकारात्मक भावनाओं और स्कूल तथा दुनिया के प्रति बेहतर दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।
  • भावनात्मक बुद्धिमत्ता (ईआई): यह स्वयं की भावनाओं के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं को पहचानने, समझने और प्रबंधित करने की क्षमता है। इसे शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना जाता है, क्योंकि यह तय करने में भूमिका निभाता है कि छात्र अपने साथियों और शिक्षकों के साथ कैसे बातचीत करते हैं तथा यह कक्षा में उनके समग्र प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है।
  • करुणा का विकास: शिक्षा में करुणा का विकास दूसरों की पीड़ा के प्रति एक सतत्, परोपकारी रवैया विकसित करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। इसमें न केवल दूसरों की भावनाओं को पहचानना और समझना शामिल है, बल्कि उनकी पीड़ा को कम करने के लिये कार्रवाई करना भी शामिल है।
  • यह छात्रों को अपनी भावनाओं को समझने और नियंत्रित करने में की कला सीखने में भी मदद कर सकता है, क्योंकि स्वयं की भावनाओं के बारे में आत्म-जागरूकता समानुभूति का एक प्रमुख घटक है।
  • नैतिक मूल्य: शिक्षा में नैतिक मूल्यों को शामिल करना शिक्षण की प्रक्रिया को संदर्भित करता है और नैतिक सिद्धांतों को स्थापित करता है तथा छात्रों में भाईचारे और टीम वर्क मानकों को बढ़ावा देता है।
  • सहानुभूति: शिक्षा में सहानुभूति दूसरों की भावनाओं को समझने और साझा करने की क्षमता को संदर्भित करती है और इसे सकारात्मक तथा सीखने हेतु समावेशी वातावरण बनाने के लिये एक आवश्यक कौशल माना जाता है।
  • शिक्षा में सहानुभूति के लाभ, जिनमें शामिल हैं:
    • साथियों और शिक्षकों के साथ बेहतर संबंध
    • विविध दृष्टिकोणों की समझ में वृद्धि
    • दूसरों पर अपने कार्यों के प्रभाव के बारे में अधिक जागरूकता।

निष्कर्ष

शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं को हल करने में तर्कसंगत सोच महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। निर्णय लेने के लिये स्पष्ट ढाँचों और दिशा-निर्देशों का उपयोग करके, शिक्षक और प्रशासक अच्छी तरह से सूचित निर्णय ले सकते हैं जो सभी हितधारकों की भलाई को बढ़ावा देते हैं।

Case Study 3

प्रश्न : आपके ज़िले में हुई एक घटना में अपनी छोटी बहन के साथ स्कूल जा रही एक 17 वर्षीय लड़की पर उसके घर के पास मोटरसाइकिल सवार दो लोगों द्वारा एसिड से हमला किये जाने पर आक्रोश फैल गया। इस हमले से उसका चेहरा, गर्दन और आँखें बुरी तरह प्रभावित हुए एवं उसका अस्पताल में इलाज चल रहा है। वह लड़की बहुत ही सामान्य परिवार से संबंधित है
इसके अलावा इस घटना से एक बार फिर एसिड हमलों जैसे जघन्य अपराध और इस प्रकार के पदार्थों की सुलभ उपलब्धता पर लोगों का ध्यान गया है। लोग इस घटना से काफी आक्रोशित हैं और इन्होंने दोषियों के लिये मौत की सजा की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन भी शुरू कर दिया है।
ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में आप इस स्थिति के समाधान हेतु क्या करेंगे? इस प्रकार के खतरनाक पदार्थों की सुलभ उपलब्धता को रोकने के लिये आप क्या कदम उठाएंगे?

उत्तर :

परिचय

उपरोक्त मामले में एक महिला पर उस समय तेजाब से हमला करने का मामला शामिल है, जब वह स्कूल से लौट रही थी। इसलिये मौत की सजा की मांग को लेकर इलाके में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इसलिये ज़िलाधिकारी को स्थिति संभालनी होगी।

मुख्य भाग

शामिल नैतिक मुद्दे:

  • पीड़िता और उसके परिवार के प्रति वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की संवेदना।
  • नियम पुस्तिका का पालन करने की पेशेवर ज़िम्मेदारी।
  • वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की संवैधानिक नैतिकता।
  • निष्पक्षता
  • संकट प्रबंधन।

शामिल हितधारक:

  • तेजाब से हमला करने वाली युवती
  • युवती के परिजन
  • हमले के अपराधी
  • ज़िलाधिकारी के रूप में स्वयं मैं
  • मामले की जाँच करने वाले पुलिस अधिकारी
  • बडे पैमाने पर समाज

कार्रवाई

  • ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में, इस स्थिति में पहली प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना होगा कि पीड़ित को आवश्यक चिकित्सा उपचार और सहायता मिले। इसमें यह सुनिश्चित करने के लिये अस्पताल और चिकित्सा पेशेवरों के साथ समन्वय करना शामिल होगा कि पीड़ित को सर्वोत्तम संभव देखभाल मिले तथा पीड़ित के परिवार को आवश्यक वित्तीय या अन्य सहायता भी प्रदान की जाए।
  • तब तक मैं पूरे ज़िले में पुलिस गश्त बढ़ाऊँगा ताकि लोग और खासकर लड़कियाँ सुरक्षित महसूस करें।
  • एक बार जब पीड़ित की चिकित्सकीय ज़रूरतों को पूरा कर लिया जाता है, तो अगला कदम प्रदर्शनकारियों को यह समझाकर शांत करना होगा कि पुलिस ने हमले के अपराधियों की पहचान करने और उन्हें पकड़ने के लिये कार्रवाई की है और इसके अलावा, वे अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। मैं सबूत इकट्ठा कराऊँगा, लीड को ट्रैक करने को कहूँगा और अपराधियों को सजा दिलाऊँगा।
  • अगर, प्रदर्शनकारी हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं, तो मैं उनके खिलाफ पुलिस बल का प्रयोग करूँगा।
  • इसके अलावा, खतरनाक पदार्थों की आसानी से उपलब्धता के मुद्दे को हल करने के लिये, मैं कई कदम उठाऊँगा, जिनमें शामिल हैं:
    • संक्षारक पदार्थों की बिक्री और वितरण पर कड़े नियमों को लागू करना: इसमें ऐसे पदार्थों की बिक्री और वितरण पर सख्त नियंत्रण लगाना, विक्रेताओं को लाइसेंस या परमिट प्राप्त करने की आवश्यकता और ऐसे पदार्थों की अवैध बिक्री के लिये कठोर दंड लगाना शामिल हो सकता है।
    • वैकल्पिक उत्पादों को बढ़ावा देना: मैं वैकल्पिक उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये निर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं के साथ काम करूँगा जो कम खतरनाक हैं और जिनकी हमलों में इस्तेमाल होने की संभावना कम है।
    • एसिड हमलों के शिकार लोगों का समर्थन: अंत में, मैं एसिड हमलों के पीड़ितों को चिकित्सा उपचार, परामर्श और कानूनी सहायता सहित समर्थन और सहायता प्रदान करने के लिये स्थानीय संगठनों तथा धर्मार्थ संस्थाओं के साथ काम करूँगा।
    • संक्षारक पदार्थों के खतरों के बारे में जनता को शिक्षित करना: संक्षारक पदार्थों के खतरों और उचित संचालन तथा भंडारण के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये स्कूलों, सामुदायिक संगठनों और अन्य हितधारकों के साथ काम करके पहल करना।

निष्कर्ष

बहरहाल खतरनाक पदार्थों की आसान उपलब्धता और भविष्य में एसिड हमलों को रोकने के मुद्दे को संबोधित करने की कुंजी सख्त नियमों, शिक्षा और पीड़ितों के समर्थन का संयोजन होगा। इन कदमों को उठाकर ज़िला मजिस्ट्रेट एक सुरक्षित और अधिक न्यायपूर्ण समुदाय बनाने में मदद कर सकते हैं।

Case Study 4

प्रश्न : आपका मित्र ऋत्विक एक ऐसे गाँव से है जिसके आस-पास के इलाके विगत वर्ष के मानसून के दौरान बाढ़ के कारण जलमग्न हो गए थे। इससे सरकार ने प्रभावित लोगों को घरेलू सामान खरीदने के लिये नकद राशि, फसल को दोबारा उत्पादित करने के लिये बीज और खड़ी फसल के नुकसान की भरपाई के लिये धन देकर सहायता प्रदान की। ऋत्विक का घर ऊँचे स्थान पर होने के कारण उसका कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं हुआ था। सौभाग्य से उसकी कृषि भूमि भी बाढ़ वाली नदी से अपेक्षाकृत दूर होने के कारण बाढ़ के नुकसान से बच गई। आमतौर पर सरकारी तंत्र ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति के हुए नुकसान का पूरी तरह से आकलन करने में असमर्थ होता है। इसके परिणामस्वरूप लोग अनावश्यक और काल्पनिक दावे करके लाभ प्राप्त करने हेतु प्रयासरत रहते हैं। इस क्रम में ऋत्विक ने लाभ प्राप्त करने हेतु गाँव के अन्य लोगों की तरह गलत जानकारी प्रस्तुत की हैं।

ऋत्विक के एक करीबी दोस्त के रूप में, उसके इस कृत्य के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या यह सही कार्य है? ऋत्विक के आचरण पर आपकी उचित प्रतिक्रिया क्या होगी?

उत्तर:

परिचय:
उपर्युक्त मामले में गाँव के निवासी ऋत्विक द्वारा बाढ़ आने से अपनी फसल का नुकसान न होने पर भी सरकारी सहायता स्वीकार करना शामिल है।

मुख्य भाग:

  • इसमें शामिल नैतिक मुद्दे:
    • ईमानदारी: इसे वित्तीय मामलों में सच्चाई के रुप में समझा जा सकता है।
    • सत्यनिष्ठा: इसका तात्पर्य आंतरिक नैतिक विश्वासों के अनुसार नैतिक कार्य को प्राथमिकता देना है।
    • लालच: इसका तात्पर्य आवश्यकता से अधिक रखने की इच्छा है इसमें शक्ति और भौतिक संपत्ति शामिल हो सकती है।
    • अन्याय: इसके तहत अन्यायपूर्ण और अनुचित कृत्य शामिल होते हैं।
  • इस मामले में शामिल हितधारक:
    • सरकारी सहायता के लाभार्थी के रूप में ऋत्विक।
    • मैं स्वयं,ऋत्विक के दोस्त के रूप में।
    • सरकारी एजेंसियाँ
    • समाज

कार्रवाई का क्रम :

  • ऋत्विक के समक्ष उपलब्ध विकल्प:
    • दूसरों का अनुसरण करते हुए काल्पनिक दावे करे। क्योंकि यह सुनिश्चित करना सरकारी एजेंसियों का काम है कि झूठे दावों पर विचार न किया जाए।
      • जाने या अनजाने में ऋत्विक यह गलत धारणा रख सकता है कि इस संदर्भ में उसकी नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती है क्योंकि सरकारी अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे इससे संबंधित विवरण सत्यापित करें और सत्यापन के बाद ही भुगतान का आदेश पारित करें। यदि अधिकारियों ने अपना काम ध्यान से नहीं किया है, तो वे जिम्मेदार हैं न कि स्वयं ऋत्विक। लेकिन यह विकल्प चुनना सही नहीं है।
    • जब हर कोई सरकार को धोखा दे रहा है, तो ऐसे में ऋत्विक अकेला कुछ नहीं कर सकता है और उसे भीड़ का अनुसरण करना चाहिये।
      • ऋत्विक अपने अनुचित आचरण को इस आधार पर सही नहीं ठहरा सकता है कि उसके गाँव में समान स्थिति वाले हर किसी ने ऐसा ही किया है।
      • यह दूसरों की नकल करने का आचरण है - चाहे वह आचरण अपने आप में सही हो या गलत।
      • लोकलुभावनवाद, सामाजिक विपथन का कारण बनता है और यह हमारे देश में सामान्य हो गया है जैसे- हर कोई सरकारी योजनाओं का लाभ लेना चाहता है, चाहे उसके लिये पात्रता की शर्तें लागू हों या नहीं।
      • कन्फ्यूशियस ने इसका बहुत अच्छी तरह से वर्णन किया है कि "यदि मैं दो अन्य पुरुषों के साथ चल रहा हूँ, तो उनमें से प्रत्येक मेरे शिक्षक की तरह होता है। मैं एक की अच्छी बातों को चुनूँगा और उनका अनुसरण करूँगा और दूसरे की बुरी बातों के आधार पर अपने अंदर सुधार करूँगा।
    • यह सरकार की भी समस्या है क्योंकि जब भी प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं तो लोकप्रियता हासिल करने के लिये सरकार अधिक से अधिक राहत प्रदान करती है, जबकि उसे राहत को सीमित रखना चाहिये।
      • वस्तुतः सरकारें उदार पैमाने पर राहत प्रदान करती हैं, ऐसी राहत के दुरुपयोग के लिये कोई तर्क नहीं है।
    • ऋत्विक के मित्र के रूप में मैं उसे बताऊँगा कि जिस तरह से उसने अपनी फसल की अच्छी स्थिति होने के बावजूद राहत प्राप्त करने का विकल्प चुना है, वह गलत है और कोशिश करूँगा कि उपर्युक्त विकल्पों का प्रयोग ऋत्विक द्वारा नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि ये सही नहीं हैं। इसलिये मैं उसको सुझाव दूँगा कि उसे केवल वास्तविक दावे करने चाहिए, ताकि जरूरतमंदों को इसका लाभ मिल सके।
    • ऋत्विक को केवल वास्तविक दावे करने चाहिये:
      • यह विकल्प सही है। दरअसल, नैतिक उत्तरदायित्व की प्रेरणा व्यक्ति के अंदर से उत्पन्न होती है। विवेक, नैतिक मूल्यों का स्रोत है। प्रत्येक व्यक्ति की अंतरात्मा, उसे निर्देश देती है कि क्या सही है और क्या गलत है। नैतिकता की कसौटी पर खरा नहीं उतरने वाला कार्य गलत होता है।
        • इस मामले में ऋत्विक या और लोग लाभ के हकदार तभी हैं यदि उन्हें बाढ़ के कारण विशिष्ट नुकसान हुआ हो। यदि फसल नष्ट हो गई है तो फसल हानि के लिये दावा किया जाना नैतिक रूप से सही है। यदि कोई नुकसान नहीं हुआ है तो कोई भी दावा करना नैतिक नहीं है। सरकार झूठे दावे को मंजूरी देती है या नहीं,इस आधार पर झूठे दावे करना प्रासंगिक नहीं है।
        • इसी प्रकार की गहन संवेदनशीलता के संदर्भ में महान दार्शनिक इमैनुएल कांट ने लिखा था कि "दो चीजें मुझे सबसे ज्यादा अचंभित करती हैं- मेरे ऊपर तारों वाला आकाश और मेरे अंदर का नैतिक कानून"। किसी व्यक्ति को अंतरात्मा के निर्देशों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिये।

निष्कर्ष:
गलत दावा न करने के साथ नैतिक विकल्प चुनना ही उपर्युक्त मामले का सबसे अच्छा विकल्प है, क्योंकि इससे समाज के बीच ऋत्विक के नैतिक प्रतिमानों को मजबूती मिलेगी।

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