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The Hindi Editorial Analysis- 24th October 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

हिमालय में पारिस्थितिक स्वास्थ्य को पुनर्स्थापित करना 

सन्दर्भ:

  • हिमालयी राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में गंभीर पर्यावरणीय संकट देखा गया , जिससे इन क्षेत्रों की "वहन क्षमता" पर एक महत्वपूर्ण बहस छिड़ गई है।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, एक सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में, केंद्र सरकार से कस्बों और शहरों को शामिल करते हुए भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में वहन क्षमता के मुद्दे को संबोधित करने का आग्रह किया है।

The Hindi Editorial Analysis- 24th October 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

वहन क्षमता को समझना

● तकनीकी शब्दों में, वहन क्षमता वह अधिकतम जनसंख्या आकार है जिसे एक पारिस्थितिकी तंत्र या पर्यावरण अपने प्राकृतिक संसाधनों और समग्र स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए बिना एक विशिष्ट अवधि में निरंतर समर्थन दे सकता है। यह मानवीय गतिविधियों और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हिमालय कई प्रकार की पारिस्थितिक चुनौतियों का सामना कर रहा है:

  • जलवायु परिवर्तन और हिमनदों का पिघलना: विशेषकर ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के प्रति हिमालय क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। यह घटना डाउनस्ट्रीम समुदायों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है जो कृषि, पेयजल और जलविद्युत जैसी आवश्यक जरूरतों के लिए हिमनदों के पिघले पानी पर निर्भर हैं। उदाहरण- सिक्किम जीएलओएफ 2023 घटना ।
  • ब्लैक कार्बन का संचय: हिमालय में ग्लेशियर पिघलने का एक महत्वपूर्ण कारक वायुमंडल में ब्लैक कार्बन (एरोसोल) की मात्र का बढ़ना है। ब्लैक कार्बन अधिक सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करता है और गर्मी उत्सर्जित करता है, जिससे उच्च तापमान और तेजी से ग्लेशियर पिघलते हैं। यह विशेष रूप से गंगोत्री ग्लेशियर में स्पष्ट है, जो तेजी से पीछे हट रहा है।
  • ाकृतिक आपदाएँ: हिमालय, अपेक्षाकृत युवा और विवर्तनिक रूप से सक्रिय पर्वत होने के कारण, भूस्खलन, हिमस्खलन और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त है। जलवायु परिवर्तन इन घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन की हानि, संपत्ति की क्षति और बुनियादी ढांचे में व्यवधान हो सकता है।
  • मिट्टी का कटाव और भूस्खलन: वनों की कटाई, निर्माण गतिविधियाँ और अस्थिर भूमि उपयोग प्रथाओं के कारण मिट्टी का कटाव और भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। वनस्पति का विनाश हिमालयी ढलानों को अस्थिर कर रहा है, जिससे वे भारी वर्षा या भूकंपीय घटनाओं के दौरान कटाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • आक्रामक प्रजातियों का विकास: बढ़ते तापमान से नए आवास बन रहे हैं जिनका आक्रामक प्रजातियां दोहन कर सकती हैं, जो हिमालयी क्षेत्र में देशी वनस्पतियों और जीवों को प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ सकती हैं। ये आक्रामक प्रजातियाँ नाजुक पारिस्थितिक संतुलन को बाधित करती हैं और देशी प्रजातियों के अस्तित्व के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करती हैं।
  • त्रुटिपूर्ण विकास मॉडल: हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण पर निर्माण कार्यों के प्रभाव को ध्यान में रखे बिना बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है । उदाहरण के लिए पूर्व- चारधाम महामार्ग विकास परियोजना के लिए लाखों पेड़ो व लाखों एकड़ वन भूमि के साथ हिमालय की उपजाऊ ऊपरी मिट्टी को नष्ट कर दिया गया।
  • भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सरकारी पहलें

    • केंद्र सरकार ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए कई पहलें की हैं। उनमें से उल्लेखनीय हैं हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (2010), भारतीय हिमालय जलवायु अनुकूलन कार्यक्रम, सुरक्षित हिमालय परियोजना और जनवरी 2020 में जारी "आईएचआर में वहन क्षमता" पर दिशानिर्देश।
    • पर्यावरण और वन मंत्रालय ने 19 मई, 2023 को एक अनुस्मारक जारी किया, जिसमें राज्यों से आग्रह किया गया कि यदि इस तरह के अध्ययन नहीं किए गए हैं तो वे वहन क्षमता पर कार्य योजना प्रस्तुत करें।
  • चुनौतियाँ और पिछली असफलताएँ

    • इन पहलों के बावजूद, हिमालयी राज्यों में वहन क्षमता का आकलन करने में बहुत कम प्रगति हुई है। इन विफलताओं के पीछे दो कारण हैं।
    • सबसे पहले, मूल्यांकन समूहों के गठन में मंत्रालय द्वारा की गई सिफारिशें त्रुटिपूर्ण हैं। जो लोग इस क्षेत्र में पर्यावरणीय विनाश के लिए ज़िम्मेदार हैं, उन्हें अब समाधान खोजने का काम सौंपा गया है।
    • दूसरे, जन-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ सतत विकास की ओर ध्यान केंद्रित नहीं किया गय
  • व्यापक मूल्यांकन का आह्वान

    • ● पर्यावरण मंत्रालय का सुझाव है कि जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान को तकनीकी सहायता प्रदान करने वाले अन्य संस्थानों के साथ मूल्यांकन का नेतृत्व करना चाहिए।
    • ● इनमें से प्रत्येक संस्थान अपने संबंधित डोमेन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और नीति निर्माण में समान भागीदार होना चाहिए। हालाँकि कस्बों और शहरों की वहन क्षमता का आकलन करना आवश्यक है, लेकिन पूरे क्षेत्र पर विचार किए बिना यह व्यर्थ है
    • ● ध्यान केवल शहरी केंद्रों से हटकर हिमालयी राज्यों की "स्थायी जनसंख्या" पर केंद्रित होना चाहिए। साथ ही जांच "विभिन्न हिमालयी राज्यों में स्थायी आबादी की वहन क्षमता" पर केन्द्रित होनी चाहिए।
    • ● जैविक प्रजातियों, भोजन, आवास, पानी और पारिस्थितिकी सहित पर्यावरण की समग्र टिकाऊ क्षमता का आकलन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञ समिति को संबंधित राज्यों के सामाजिक पहलुओं और जनसंख्या स्थिरता पर जोर देना चाहिए।
  • जनभागीदारी को बढ़ाना

    • ● नौकरशाही और तकनीकी अलगाव से बचने के लिए स्थानीय आबादी, पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञ समिति में कम से कम एक तिहाई नागरिक प्रतिनिधित्व शामिल होने चाहिए। पंचायतों और नगर पालिकाओं को स्थापित जनसंख्या स्थिरता मानदंडों के आधार पर सिफारिशें प्रदान करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए।
    • ● भारतीय हिमालयी क्षेत्र की वहन क्षमता निर्धारित करने के लिए स्थानीय आबादी और जमीनी स्तर के निकायों के साथ जुड़ना अनिवार्य है। यह संबंधित नागरिकों की दूरदर्शिता ही थी, जिसने आईएचआर में जलविद्युत और चार-लेन राजमार्ग परियोजनाओं के निर्माण के बारे में चिंता जताई थी, जिनकी अक्सर अनदेखी की गई है, जिससे हानिकारक परिणाम सामने आए हैं। स्थायी समाधानों के निर्माण के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय आबादी को शामिल करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

हिमालय का पारिस्थितिक स्वास्थ्य खतरे में है, और वहन क्षमता के मुद्दे को संबोधित करना पुनर्स्थापना और स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सर्वोच्च न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मूल्यांकन प्रक्रिया व्यापक, समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित हो। स्थानीय आबादी और जमीनी स्तर के निकायों को शामिल करते हुए जन-केंद्रित दृष्टिकोण, हिमालय क्षेत्र के सामने आने वाली जटिल पर्यावरणीय चुनौतियों का व्यवहार्य समाधान खोजने में सहायक होगा।

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