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The Hindi Editorial Analysis- 6th November 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

जनसांख्यिकी परिवर्तन और भू-राजनीतिक चुनौतियां


संदर्भ

मानव सभ्यता के विकास को समझने के लिए जनसांख्यिकी को समझना महत्वपूर्ण है। मानवता के भविष्य के बारे में चर्चा और भविष्यवाणी हमेशा से रुचि का एक महत्वपूर्ण विषय रही हैं। 2019 मे संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की रिपोर्ट और 2023 मे इंडिया एजिंग रिपोर्ट वैश्विक और भारतीय जनसांख्यिकीय परिदृश्यों पर प्रकाश डालती हैं । ये रिपोर्टें दर्शाती हैं कि कैसे ये कारक विभिन्न देशों में भू-राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार दे सकते हैं।

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जनसांख्यिकीय लाभांश

"जनसांख्यिकीय लाभांश" शब्द उस आर्थिक लाभ को संदर्भित करता है जब कामकाजी आबादी (15 से 64 वर्ष) का अनुपात काम न करने वाले आयु वर्ग से अधिक होता है। यह घटना तब होती है जब आबादी का एक बड़ा हिस्सा उत्पादक होने में सक्षम होता है, जिससे आर्थिक विकास तीव्र होता है।

वैश्विक जनसांख्यिकी रुझानों का विश्लेषण

  • यू. एन. एफ. पी. ए. की रिपोर्ट :

    • 2019 में, यूएनएफपीए ने अनुमान लगाया कि भारत जल्द ही दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन को पीछे छोड़ देगा। 2027 से 2050 के बीच भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, इथियोपिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों मे पर्याप्त जनसंख्या वृद्धि का अनुमान है। यह सामूहिक रूप से वैश्विक वृद्धि के आधे से अधिक होगी। साथ ही, रिपोर्ट मे कहा गया कि 2050 तक उप-सहारा अफ्रीका की आबादी लगभग दुगुनी हो जाएगी ।
  • वैश्विक जनसांख्यिकी पर आईएमएफ का दृष्टिकोणः

    • आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट मे कहा है कि जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, प्रजनन दर में गिरावट और उम्र बढ़ने के कारण दुनिया की औसत आबादी की उम्र मे वृद्धि होगी । 2050 तक, किशोर और युवा आयु समूहों के वृद्ध व्यक्तियों के बराबर होने की उम्मीद है। यह 1970 के दशक की तुलना मे महत्वपूर्ण बदलाव है, जब विश्व तेजी से युवा हो रहा था। वर्तमान मे जापान मे 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या कुल आबादी का 28% से अधिक है, यह इस प्रवृत्ति का एक उदाहरण है।

भारत में जनसांख्यिकीय परिदृश्य

  • यूएनएफपीए की इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023:

    • विश्व स्तर पर 2022 में 60 वर्ष और उससे अधिक आयु की आबादी 1.1 बिलियन थी, जो कुल आबादी का 13.9% थी। इस संख्या के 2050 तक दोगुनी होकर 2.1 बिलियन होने की उम्मीद है, जो वैश्विक आबादी का 22% होगी। अगर हम भारत की बात करें तो भारत में, 2022 में 149 मिलियन लोग 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के थे, यह देश की आबादी का 10.5% था। जबकि 2050 तक, देश मे वृद्ध व्यक्तियों का अनुपात 20.8% तक होने का अनुमान है, इनकी कुल संख्या 347 मिलियन होगी। यह भारत के स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और समाज को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा ।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2022 के नतीजेः

    • उत्तर प्रदेश और बिहार को छोड़कर अधिकांश भारतीय राज्यों में प्रजनन दर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे पहुँच गई है और देश की समग्र प्रजनन दर विकसित देशों की तुलना में 1.6 है। यह प्रवृति जनसांख्यिकीय परिदृश्य को नया आकार देगी, परिणामतः भारत युवा देश से बुजुर्ग होते भारत मे तब्दील होगा ।

तुलनात्मक विश्लेषणः विकसित और विकासशील देशों में प्रजनन क्षमता में गिरावट से संबंधित चुनौतियां

  • प्रजनन क्षमता संबंधी रुझानः

    • विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में अपनी विकास यात्रा की शुरुआत में प्रजनन दर में तेजी से गिरावट देखी जा रही है। विकसित देशों में उम्र बढ़ने के दौरान प्रति व्यक्ति आय के उच्च स्तर ने आर्थिक दबावों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की , भारत जैसे विकासशील देशों मे यह सुरक्षा उपलब्ध नहीं है।
  • आर्थिक क्षमता :

    • विकसित देशों के पास अपनी बुजुर्ग आबादी का समर्थन करने के लिए एक मजबूत आर्थिक आधार है। जबकि भारत जैसे विकासशील देश अपने बुजुर्ग नागरिकों को पर्याप्त सुबधा प्रदान करने के लिए अभी से संघर्ष कर रहे हैं।
  • निर्भर जनसंख्या का अनुपात और जनसांख्यिकी बदलावः

    • यूएनएफपीए की रिपोर्ट भारत सहित विकासशील देशों में वृद्ध आबादी की तेजी से बढती निर्भरता पर प्रकाश डालती है। इसके अनुसार विकासशील देशों मे बुजुर्ग आबादी (60 वर्ष से अधिक) का 2021 और 2031 के बीच 41% तक बढ़ने का अनुमान है। यह बदलाव विकासशील देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि भारत में 2046 तक बुजुर्गों की संख्या 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से अधिक हो जाएगी।
  • बढ़ती जनसंख्या के प्रभावः

    • विकासशील देशों को जनसंख्या के बढती उम्र के गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि कम कार्यबल के साथ करदाता आधार भी कमजोर होगा परिणामतः देश की आर्थिक क्षमता सीमित होगी । इसके अतिरिक्त, बुजुर्ग आबादी की बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं के कारण स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

जनसंख्या गतिशीलता और भू-राजनीतिक बदलावः

  • चीन का उदय और गिरावटः लैंसेट (2020) में एक अध्ययन में भविष्यवाणी की गई है कि चीन 2035 तक कुल सकल घरेलू उत्पाद में संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। हालांकि, चीन की जनसंख्या में तेजी से गिरावट का एक परिणाम यह हो सकता है कि उदार आप्रवासन नीतियों से सुगम निरंतर विकास के कारण अमेरिका फिर से शीर्ष स्थान हासिल कर लेगा।
  • बहुध्रुवीय विश्व और भू-राजनीतिक शक्तिः द लैंसेट रिपोर्ट में सदी के अंत तक बहुध्रुवीय दुनिया की कल्पना की गई है, जिसमें भारत, नाइजीरिया, चीन और अमेरिका प्रमुख शक्तियों के रूप में होंगे , जो अपनी कामकाजी उम्र की आबादी के कारण तीव्र विकास करेंगे । भू-राजनीतिक शक्ति की गतिशीलता, आप्रवासन और महिलाओं के लिए मजबूत प्रजनन और यौन अधिकारों से प्रभावित होगी।
  • यूरोप और एशिया का घटता प्रभावः एशिया और यूरोप का अपनी घटती आबादी के कारण भू-राजनीति में प्रभाव कम होगा । उदाहरण के लिए, चीन की जनसंख्या 2017 में 1.4 बिलियन से घटकर 2100 में 732 मिलियन होने का अनुमान है, जो एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा। इसी तरह, इटली और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों में जनसंख्या में पर्याप्त गिरावट आएगी, जिससे उनका वैश्विक प्रभाव और कम हो जाएगा।

निष्कर्ष

वैश्विक संस्थानों ने आबादी से संबंधित विशिष्ट पैटर्न को रेखांकित किया है। हमारी उम्र बढ रही है, और संख्या कम हो रही है। सदी के अंत तक, भारत की युवा आबादी में काफी कमी आई होगी और वरिष्ठ नागरिकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई होगी। यह जनसांख्यिकीय बदलाव अनिवार्य रूप से वैश्विक व्यवस्था के भू-राजनीतिक पुनर्गठन को प्रेरित करेगा। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या भारत इस आसन्न जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लिए पर्याप्त रूप से तैयार है।

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