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Economic Development (आर्थिक विकास): October 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023

चर्चा में क्यों?

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023 के अनुसार, भारत ने 40वें स्थान को प्राप्त किया है।

  • साल 2023 का सूचकांक इस वर्ष विश्वभर में 132 अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे नवीन अर्थव्यवस्थाओं को रैंकिंग प्रदान करता है, और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शीर्ष 100 नवाचार समूहों की पहचान करता है। 

सूचकांक की मुख्य विशेषताएँ

  • वर्ष 2023 में सर्वाधिक नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाएँ:
    • वर्ष 2023 में स्विट्ज़रलैंड सबसे नवोन्मेषी अर्थव्यवस्था है, इसके बाद स्वीडन, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर हैं।
    • सिंगापुर ने शीर्ष पाँच में प्रवेश किया है और दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया एवं ओशिनिया (SEAO) क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी स्थान हासिल किया है।
  • विश्व में शीर्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) क्लस्टर:
    • वर्ष 2023 में विश्व के शीर्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचार क्लस्टर टोक्यो-योकोहामा हैं, इसके बाद शेन्ज़ेन-हांगकांग-गुआंगज़ौ, सियोल, बीजिंग व शंघाई-सूज़ौ हैं।
    • S&T क्लस्टर विश्व के वे क्षेत्र हैं जहाँ आविष्कारकों और वैज्ञानिक लेखकों का घनत्व सबसे अधिक है।
    • चीन के पास अब संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व में सबसे अधिक संख्या में क्लस्टर हैं।

भारत से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ

  • समग्र रैंकिंग और विकास:
    • भारत ने नवीनतम GII वर्ष 2023 में 40वाँ स्थान हासिल किया, जो वर्ष 2015 में 81वें स्थान के बाद से उल्लेखनीय बढ़त को दर्शाता है।
    • यह बढ़त पिछले आठ वर्षों में नवाचार में भारत की निरंतर और पर्याप्त वृद्धि को उजागर करती है।
    • भारत ने 37 निम्न-मध्यम आय वाले देशों में शीर्ष स्थान हासिल किया और मध्य एवं दक्षिण अमेरिका की 10 अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी स्थान हासिल किया।
    • प्रमुख संकेतकों ने भारत के मज़बूत नवाचार परिदृश्य की पुष्टि की, जिसमें ICT सेवाओं के निर्यात में महत्त्वपूर्ण रैंकिंग प्राप्त उद्यम पूंजी, विज्ञान और इंजीनियरिंग में स्नातक एवं वैश्विक कॉर्पोरेट R&D  निवेशक शामिल हैं।
  • S&T क्लस्टर:
    • चीन के 24 और अमेरिका के 21 क्लस्टर की तुलना में भारत में विश्व के शीर्ष 100 में केवल 4 S&T क्लस्टर हैं। ये चेन्नई, बंगलूरू, मुंबई और दिल्ली हैं।
  • भारत की प्रगति: 
    • भारत की प्रगति का श्रेय भारत में बुद्धिजीवियों की प्रचुरता और एक संपन्न स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ सार्वजनिक एवं निजी अनुसंधान संगठनों के सराहनीय प्रयासों को दिया जाता है।
    • कोविड-19 महामारी ने देश के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप चुनौतियों से निपटने में नवाचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया।
  • सुधार की आवश्यकता:
    • कुछ क्षेत्रों में विशेषकर बुनियादी ढाँचे, व्यावसायिक परिष्कार और संस्थानों में सुधार की आवश्यकता है।
    • इन अंतरालों को कम करने के लिये नीति आयोग (NITI Aayog) इलेक्ट्रिक वाहनों, जैव प्रौद्योगिकी, नैनो प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नीति-आधारित नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सक्रिय रूप से कार्यरत है।

भारत में अवैध व्यापार

चर्चा में क्यों?

फिक्की कैस्केड (FICCI CASCADE) ने "हिडन स्ट्रीम्स: इलिसिट मार्केट्स, फाइनेंशियल फ्लो, ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड टेरेरिज़्म" शीर्षक से जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अवैध अर्थव्यवस्था का समृद्धि स्तर 1 से 10 के पैमाने पर 6.3 है, जो दुनियाभर के 122 देशों में से 5 के औसत स्कोर से अधिक है, जिससे सुझाव होता है कि यहां एक बड़ी अवैध अर्थव्यवस्था की स्थिति है।

अवैध व्यापार

  • अवैध व्यापार का तात्पर्य वस्तुओं एवं सेवाओं के अवैध आदान-प्रदान से है जो सरकारों या अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा स्थापित कानूनों, विनियमों या नियंत्रणों का अनुपालन नहीं करता है।
  • ये गतिविधियाँ कानूनी ढाँचे के बाहर होती हैं और इनमें अक्सर विभिन्न प्रकार की प्रतिबंधित सामग्री, जालसाज़ी, चोरी, तस्करी, कर चोरी, धन शोधन एवं अन्य अवैध गतिविधियाँ शामिल होती हैं।

रिपोर्ट के मुख्य तथ्य

  • भारत में अवैध व्यापार का अवलोकन: 
    • 2022-23 के वित्तीय वर्ष में 3.5 टन सोना, 18 करोड़ सिगरेट स्टिक्स, 140 मीट्रिक टन रेड सैंडर्स और 90 टन हेरोइन ज़ब्त की गई। 122 देशों के औसत स्कोर 5.2 की तुलना में भारत का स्कोर 4.3 काफी कम है, जो संगठित अपराध अभिकर्त्ताओं की कम भागीदारी लेकिन आपराधिक नेटवर्क के महत्त्वपूर्ण प्रभाव का सुझाव देता है।
  • भारत में अवैध वित्तीय प्रवाह:
    • वैल्यू गैप इंडिया (2009-2018): वर्ष 2009-2018 के दौरान अवैध आयात और निर्यात चालान के परिणामस्वरूप भारत को संभावित राजस्व में कुल 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। असंगृहीत मूल्य वर्धित कर (VAT) की राशि कुल 3.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो राजस्व अंतर में योगदान करती है।

Economic Development (आर्थिक विकास): October 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

  • भारत में आतंक और अपराध:
    • आतंकवाद और अपराध से निपटने में भारत ने वर्ष 2021 में क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity- PPP) पर लगभग 1170 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये, जो देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का लगभग 6% है।
    • PPP वृहत आर्थिक विश्लेषण द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक मीट्रिक है जो "बास्केट ऑफ गुड्स" दृष्टिकोण के माध्यम से विभिन्न देशों की मुद्राओं की तुलना करता है, जिससे उन्हें देशों के बीच आर्थिक उत्पादकता और जीवन स्तर की तुलना करने की अनुमति मिलती है।

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  • भारत में ड्रग अर्थव्यवस्था:
    • स्वर्णिम त्रिकोण/गोल्डन ट्रायंगल (म्याँमार, लाओस व थाईलैंड) और स्वर्णिम अर्द्धचंद्र/गोल्डन क्रिसेंट(अफगानिस्तान, पाकिस्तान व ईरान) सहित प्रमुख ड्रग उत्पादक क्षेत्रों के पास का भारतीय क्षेत्र उन गतिविधियों से जुड़ा हुआ है जहाँ निषेध पदार्थों का आवागमन तथा वितरण शामिल हो सकता है।
    • भारत में अवैध नशीले ड्रग के व्यापार में वृद्धि देखी गई है, वर्ष 2006-2013 के दौरान 1,257 मामलों की तुलना में वर्ष 2014-2022 के दौरान नशीले ड्रग की ज़ब्ती के 3,172 मामले दर्ज़ किये गए।
    • बेंचमार्क औसत 5.4 की तुलना में 7.5 स्कोर के साथ कैनबिस की भारत में व्यापक उपस्थिति है। सिंथेटिक ड्रग व्यापार और हेरोइन व्यापार भी 6.5 के स्कोर के साथ बेंचमार्क औसत से अधिक है।

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  • भारत में संगठित अपराध और अवैध अर्थव्यवस्था:
    • भारत में संगठित अपराध करने वालों का कुल स्कोर 122 देशों के औसत बेंचमार्क 5.2 की तुलना में 4.3 है।

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  • हालाँकि 6 अंक के साथ आपराधिक नेटवर्क का भारत में बड़ा प्रभाव है, जो 122 देशों के औसत अंक 5.8 से अधिक है।
  • भारत में अवैध अर्थव्यवस्था का कुल स्कोर 6.3 है, जो 122 देशों में से 5 के औसत स्कोर से अधिक है।
    • इससे पता चलता है कि यद्यपि आपराधिक तत्त्व संख्या में कम किन्तु व्यापक हैं और विभिन्न प्रकार की गैरकानूनी गतिविधियों में संलग्न हैं, जिनमें नशीली दवाओं की बिक्री तथा मानव तस्करी के आलावा वन्यजीव उत्पादों में अवैध व्यापार शामिल हैं।
    • यह स्पष्ट विरोधाभास भारत में आपराधिक नेटवर्क की प्रभावशीलता के लिये ज़िम्मेदार हो सकता है, जो उनकी कम संख्या के बावजूद पर्याप्त अवैध वित्तीय प्रवाह करने में सक्षम बनाता है।

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भारत का विमानन उद्योग

चर्चा में क्यों? 

भारत के विमानन उद्योग में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। हालाँकि इस द्रुत विस्तार ने अनुभवी पायलटों की गंभीर कमी सहित महत्त्वपूर्ण मुद्दों को भी उजागर किया है।

भारत में विमानन उद्योग की स्थिति

  • परिचय: भारत का विमानन उद्योग एक सामूहिक क्षेत्र है जो देश के भीतर नागरिक उड्डयन के सभी पहलुओं को शामिल करता है।
    • इसमें विभिन्न घटक शामिल हैं, जैसे एयरलाइंस, विमान पत्तन, विमान निर्माण, विमानन सेवाएँ और नियामक प्राधिकरण।
  • स्थिति:
    • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार बन गया है। भारत के विमान पत्तन की क्षमता के आधार पर वर्ष 2023 तक सालाना 1 अरब यात्राओं के परिचालन की उम्मीद है।
    • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, भारत के हवाई परिवहन क्षेत्र (हवाई माल ढुलाई समेत) में FDI प्रवाह अप्रैल 2000 से दिसंबर 2022 के दौरान 3.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।

संबद्ध चुनौतियाँ: 

  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ:
    • हवाई अड्डों पर भीड़भाड़: मुंबई और दिल्ली सहित भारत के कई प्रमुख हवाई अड्डों को व्यापक भीड़ का सामना करना पड़ता है, जिससे विलंब एवं परिचालन अक्षमता जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
    • सीमित क्षेत्रीय कनेक्टिविटी: हालाँकि प्रमुख शहर अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, छोटे शहरों और क्षेत्रों में प्रायः पर्याप्त हवाई अड्डा बुनियादी ढाँचे और हवाई कनेक्टिविटी का अभाव होता है।
  • उच्च परिचालन लागत:
    • विमानन टर्बाइन ईंधन (ATF) और हवाई अड्डे के शुल्क पर उच्च कर परिचालन, लागत में वृद्धि में योगदान करते हैं।
    • कुछ भारतीय राज्य जेट ईंधन पर 30% तक कर वसूलते हैं, जिससे छोटे उड़ान मार्ग छोटी एयरलाइन्स के लिये अलाभकारी हो जाते हैं।
  • पायलट की कमी:
    • भारत में एयरलाइंस प्रायः अनुभवी पायलटों की भर्ती करने और उन्हें बनाए रखने के लिये संघर्षरत रहते हैं, जिससे व्यवधान उत्पन्न होता है और श्रम लागत में वृद्धि होती है।
    • विमान ऑर्डरों में बढ़ोतरी, कुल 1,100 से अधिक नए विमानों के कारण उड़ान चालक दल के हज़ारों सदस्यों की आवश्यकता है।
    • हालाँकि भारत में पायलट प्रशिक्षण की औसत लागत लगभग 1 करोड़ रुपए है।
    • एयरलाइंस प्रायः विभिन्न बहाने से कैडेट पायलटों से अतिरिक्त शुल्क वसूलते हैं, जिससे वित्तीय बोझ काफी बढ़ जाता है।
  • सुरक्षा खतरे: आतंकवाद और अपहरण से परे विमानन बुनियादी ढाँचे को अब साइबर खतरों का सामना करना पड़ रहा है जो संचालन को बाधित कर सकता है और यात्री डेटा को उजागर कर सकता है।
  • अन्य चुनौतियाँ: आलोचकों का तर्क है कि भारतीय वायु सेना के डॉक्टरों द्वारा चिकित्सा मानकों के प्रबंधन के कारण बड़ी संख्या में नागरिक पायलटों को नौकरी से निकाल दिया गया है।
    • इसके अलावा उड़ान प्रशिक्षण केंद्र के संचालन से जुड़ी कई चुनौतियाँ हैं, जो स्वतंत्रता-पूर्व समय के नियमों को लागू करने वाले अधिकारियों के बीच भ्रष्टाचार के कारण और भी बढ़ गई हैं।
  • संबंधित सरकारी पहल: 
    • घरेलू रख-रखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) सेवाओं के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दर 18% से घटाकर 5% कर दी गई।
    • क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करने और नागरिकों को सस्ती हवाई यात्रा प्रदान करने के लिये टियर-II एवं टियर-III शहरों में असेवित तथा कम सेवित हवाई अड्डों के हवाई कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिये RCS-UDAN को लॉन्च किया गया था।
    • राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति, 2016  

भारत में विमानन क्षेत्र को पुनः सक्रिय करने के उपाय

  • पर्यावरण-अनुकूल पहल: उत्सर्जन एवं परिचालन लागत को कम करने, कम दूरी की उड़ानों के लिये इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड विमानों के विकास और प्रयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • साथ ही उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये सतत् विमानन ईंधन (SAF) और कार्बन ऑफसेट कार्यक्रमों के प्रयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • जून 2021 में स्पाइसजेट ने विश्व आर्थिक मंच (WEF) के तत्वावधान में वर्ष 2030 तक 100 मिलियन घरेलू यात्रियों के लिये SAF ब्लेंड आधारित उड़ान के अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा की।
  • रख-रखाव हेतु डिजिटल ट्विन्स:
    • विमान की आभासी प्रतिकृतियाँ बनाने, पूर्वानुमानित रख-रखाव को सक्षम करने और डाउनटाइम को कम करने के लिये डिजिटल ट्विन तकनीक को लागू करने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):
    • विश्वस्तरीय सुविधाएँ सुनिश्चित करते हुए हवाई अड्डे के बुनियादी ढाँचे के विकास में सह-निवेश हेतु सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • भारत में PPP हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 के 5 से बढ़कर वर्ष 2024 में 24 हो जाने की संभावना है।
  • पायलट की कमी का समाधान:
    • विमानन स्कूलों और अकादमियों के सहयोग से सब्सिडी आधारित पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • यह इच्छुक एविएटर्स के लिये पायलट प्रशिक्षण को और अधिक किफायती बना सकता है।
  • विमानन पर्यटन पैकेज: भारत को विमानन पर्यटन का केंद्र बनाने के लिये विमानन उद्योग को पर्यटन उद्योग के साथ मिलकर अभिनव विमानन-आधारित पर्यटन पैकेज तैयार करने की आवश्यकता है, जो सुरम्य उड़ानें, साहसिक अनुभव और हवाई फोटोग्राफी पर्यटन की पेशकश कर सकें।

न्यूनतम समर्थन मूल्य 

चर्चा में क्यों?

फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये केंद्र सरकार ने धान, दलहन और तिलहन (सभी अनिवार्य खरीफ फसलों के लिये) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि करने की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वह दर है जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है और यह किसानों की उत्पादन लागत के कम-से-कम डेढ़ गुना अधिक होती है।
    • ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ किसी भी फसल के लिये वह ‘न्यूनतम मूल्य’ है, जिसे सरकार किसानों के लिये लाभकारी मानती है और इसलिये इसके माध्यम से किसानों का ‘समर्थन’ करती है।
  • MSP के तहत फसलें
    • ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ द्वारा सरकार को 22 अधिदिष्ट फसलों (Mandated Crops) के लिये ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) तथा गन्ने के लिये 'उचित और लाभकारी मूल्य' (FRP) की सिफारिश की जाती है।
    • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है।
    • अधिदिष्ट फसलों में 14 खरीफ फसलें, 6 रबी फसलें और दो अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं।
    • इसके अलावा लाही और नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSPs) का निर्धारण क्रमशः सरसों और सूखे नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSPs) के आधार पर किया जाता है।
  • MSP की सिफारिश संबंधी कारक
    • किसी भी फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ द्वारा कृषि लागत समेत विभिन्न कारकों पर विचार किया जाता है।
    • यह फसल के लिये आपूर्ति एवं मांग की स्थिति, बाज़ार मूल्य प्रवृत्तियों (घरेलू और वैश्विक), उपभोक्ताओं के लिये निहितार्थ (मुद्रास्फीति), पर्यावरण (मिट्टी तथा पानी के उपयोग) और कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच व्यापार की शर्तों जैसे कारकों पर भी विचार करता है।
  • तीन प्रकार की उत्पादन लागत
    • CACP द्वारा राज्य और अखिल भारतीय दोनों स्तरों पर प्रत्येक फसल के लिये तीन प्रकार की उत्पादन लागतों का अनुमान लगाया जाता है।
  • ‘A2’
    • इसके तहत किसान द्वारा बीज, उर्वरकों, कीटनाशकों, श्रम, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर किये गए प्रत्यक्ष व्यय को शामिल किया जाता है।
  • ‘A2+FL’
    • इसके तहत ‘A2’ के साथ-साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक अधिरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
  • ‘C2’
    • यह एक अधिक व्यापक लागत है, क्योंकि इसके अंतर्गत ‘A2+FL’ में किसान की स्वामित्त्व वाली भूमि और अचल संपत्ति के किराए तथा ब्याज को भी शामिल किया जाता है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय CACP द्वारा ‘A2+FL’ और ‘C2’ दोनों लागतों पर विचार किया जाता है।
    • CACP द्वारा ‘A2+FL’ लागत की ही गणना प्रतिफल के लिये की जाती है।
    • जबकि ‘C2’ लागत का उपयोग CACP द्वारा मुख्य रूप से बेंचमार्क लागत के रूप में किया जाता है, यह देखने के लिये कि क्या उनके द्वारा अनुशंसित MSP कम-से-कम कुछ प्रमुख उत्पादक राज्यों में इन लागतों को कवर करते हैं।
    • केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा MSP के स्तर और CACP द्वारा की गई अन्य सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेती है।
  • MSP में वृद्धि का महत्त्व
    • इस वृद्धि के माध्यम से पोषक तत्त्वों से भरपूर पोषक-अनाज पर अतिरिक्त ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे उन क्षेत्रों में इसके उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सकेगा, जहाँ भूजल तालिका के लिये दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव के बिना चावल-गेहूँ आदि को उगाया जाना संभव नहीं है।
    • पिछले कुछ वर्षों में तिलहन, दलहन और मोटे अनाज के पक्ष में MSP को फिर से संगठित करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण प्रयास किये गए हैं, जिनका उद्देश्य मांग-आपूर्ति के असंतुलन को ठीक करने हेतु किसानों को सर्वोत्तम तकनीकों और कृषि पद्धतियों को अपनाकर इन फसलों की उपज को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • बढ़ोतरी से संबंधित मुद्दे
    • यह वृद्धि कृषि लागत को ध्यान में रखते हुए मामूली प्रतीत होती है - विशेष रूप से ट्रैक्टरों, सिंचाई पंपों और हार्वेस्टर कंबाइनों के लिये इस्तेमाल होने वाले डीज़ल की कीमत में हो रही बढ़ोतरी के कारण। 
    • कुछ फसलों की कीमतों में की गई वृद्धि, विशेष रूप से मक्का की कीमतों में की गई बढ़ोतरी मुद्रास्फीति के साथ संतुलित नहीं है।
    • इसके अलावा सुनिश्चित खरीद की अनुपस्थिति के कारण किसानों के पास इन फसलों की खेती के लिये कोई प्रोत्साहन नहीं है।
    • यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब किसान संघ किसानों के लिये सभी फसलों हेतु MSP की गारंटी देने और तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
  • MSP संबंधी मुद्दे
    • MSP के साथ प्रमुख समस्या गेहूँ और चावल को छोड़कर सभी फसलों की खरीद के लिये सरकारी मशीनरी की कमी है। गेहूँ और चावल को भारतीय खाद्य निगम PDS के तहत सक्रिय रूप से खरीदता है।
    • चूँकि कई राज्य सरकारें संपूर्ण अनाज की खरीद करती हैं, ऐसे राज्यों में किसानों को अधिकतम लाभ होता है, जबकि कम खरीद करने वाले राज्यों के किसान प्रायः प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं।
    • MSP आधारित खरीद प्रणाली बिचौलियों, कमीशन एजेंटों और AMPC अधिकारियों पर भी निर्भर है, जिससे छोटे किसानों तक पहुँचना मुश्किल हो जाता है।

समाधान

  • CACP ने वर्ष 2018-19 के खरीफ विपणन सत्र के लिये अपनी मूल्य नीति रिपोर्ट में किसानों को 'MSP पर बेचने का अधिकार' प्रदान करने वाला एक कानून बनाने का सुझाव दिया था। ऐसा किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु आवश्यक है।
  • सरकार को कृषि और पशुपालन को बढ़ावा देना चाहिये, जिससे लोगों द्वारा प्रोटीन, विटामिन, खनिज और फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन किया जा सके।
  • ऐसा करने का सही तरीका यह है कि धान और गेंहूँ के MSP को फ्रीज कर दिया जाए, इसके अलावा उनकी खरीद को प्रति किसान 10-15 क्विंटल प्रति एकड़ पर सीमित कर दिया जाए।

नीली अर्थव्यवस्था में परिवर्तन का प्रारूप

चर्चा में क्यों

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने मुंबई में ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट 2023 का उद्घाटन करते हुए भारतीय समुद्री नीली अर्थव्यवस्था के लिये दीर्घकालिक प्रारूप 'अमृत काल विज़न 2047' का अनावरण किया।

  • इसमें उन्नत मेगा पोर्ट, एक इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट, द्वीप विकास, विस्तारित अंतर्देशीय जलमार्ग एवं कुशल व्यापार के लिये मल्टी-मॉडल हब जैसी पहल शामिल हैं।
  • प्रधानमंत्री ने समुद्री क्षेत्र के लिये सरकार के दृष्टिकोण पर भी प्रकाश डाला, जो ‘समृद्धि के लिये बंदरगाह एवं प्रगति के लिये बंदरगाह' वाक्यांश में समाहित है।

ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट 2023

  • परिचय:
    • ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट (GMIS) 2023 एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य वैश्विक एवं क्षेत्रीय साझेदारी को बढ़ावा देने और निवेश की सुविधा प्रदान करके भारतीय समुद्री अर्थव्यवस्था/मैरीटाइम इकोनॉमी को आगे बढ़ाना है।
    • यह उद्योग से जुड़े प्रमुख मुद्दों को संबोधित करने और क्षेत्र को आगे लाने के लिये विचारों का आदान-प्रदान करने हेतु भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री समुदाय की एक वार्षिक बैठक है।
  • आयोजनकर्त्ता:
    • पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय
    • भारतीय पत्तन संघ
    • भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI)

नीली अर्थव्यवस्था

  • परिचय:
    • " विश्व बैंक के अनुसार, नीली अर्थव्यवस्था "समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और नौकरियों के लिये समुद्री संसाधनों का संधारणीय उपयोग है।"
  • नीली अर्थव्यवस्था का महत्त्व:
    • खाद्य सुरक्षा: मत्स्यपालन और जलीय कृषि नीली अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग हैं, जो विश्व के प्रोटीन स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा प्रदान करते हैं। वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये इन क्षेत्रों में धारणीय प्रथाएँ आवश्यक हैं।
    • पर्यावरण संरक्षण: ज़िम्मेदार संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देकर, नीली अर्थव्यवस्था सागरीय जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण का समर्थन करती है।
    • स्वस्थ महासागर जलवायु विनियमन और कार्बन पृथक्करण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • पर्यटन और मनोरंजन: तटीय और समुद्री पर्यटन का वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
    • नीली अर्थव्यवस्था पर्यटन और मनोरंजन के अवसरों को बढ़ाती है, तटीय क्षेत्रों में पर्यटकों को आकर्षित करती है और संरक्षण के लिये जागरूकता को बढ़ावा देती है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा: यह अपतटीय पवन, ज्वारीय और तरंग ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास को प्रोत्साहित करती है, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करती है और जलवायु परिवर्तन को कम करती है।
    • परिवहन और व्यापार: समुद्री नौवहन वैश्विक व्यापार के लिये एक जीवन रेखा है। कुशल और टिकाऊ समुद्री परिवहन वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।

भारत में नीली अर्थव्यवस्था से संबंधित चुनौतियाँ

  • असंबद्ध मत्स्यपालन क्षेत्र: भारतीय मत्स्य उद्योग अत्यधिक विखंडित है, जिसमें मुख्य रूप से छोटे मछुआरे शामिल हैं जिनके पास ऋण तथा आधुनिक तकनीक तक पहुँच नहीं है, जो उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा उत्पन्न करता है।
    • इसके अतिरिक्त विनियमन की कमी के कारण अत्यधिक मछली पकड़ने से उद्योग की स्थिरता को और अधिक खतरा उत्पन्न होता है।
  • जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाएँ: जलवायु परिवर्तन समुद्र के स्तर में वृद्धि, समुद्र की अम्लता में वृद्धि के साथ ही चरम मौसमी घटनाओं के माध्यम से नीली अर्थव्यवस्था के लिये एक गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
    • दीर्घकालिक स्थिरता के लिये इन प्रभावों के लिये तैयारी करना और इन्हें कम करना आवश्यक है।
  • अपशिष्ट एवं प्रदूषण: समुद्री कचरा, रासायनिक प्रदूषकों तथा अनुपचारित सीवेज सहित प्रदूषण, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के लिये खतरा है।
    • तेल रिसाव में गैर-देशी, आक्रामक प्रजातियों को शामिल करके समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को असंतुलित करने की क्षमता होती है, साथ ही यह देशी प्रजातियों एवं अर्थव्यवस्थाओं को हानि भी पहुँचता है।
  • बंदरगाहों में भीड़: कई भारतीय बंदरगाह अपर्याप्त रखरखाव बुनियादी ढाँचे, अकुशल संचालन के साथ अधिक कार्गो संख्या के चलते भीड़भाड़ का अनुभव करते हैं, जिससे देरी होती है एवं लागत में वृद्धि होती है।

आगे की राह

  • नीति सुधार और विनियमन: नीली अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के लिये एक व्यापक और स्थिर नियामक ढाँचा विकसित करना, विखंडन एवं विसंगतियों को संबोधित करना तथा प्रभावी प्रवर्तन व प्रोत्साहन के माध्यम से ज़िम्मेदार और धारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।
    • बंदरगाहों में कार्गो निकासी में तेज़ी लाने के लिये सीमा शुल्क और दस्तावेज़ीकरण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: बढ़ती कार्गो मात्रा को कुशलतापूर्वक समायोजित करने के लिये बर्थ, टर्मिनल और उपकरण सहित बंदरगाह बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण और विस्तार में निवेश करना।
    • भीतरी इलाकों से माल की निर्बाध आवाजाही के लिये बंदरगाहों तक सड़क और रेल कनेक्टिविटी में सुधार करना।
  • सतत् मत्स्यपालन: अत्यधिक मछली पकड़ने और पर्यावरणीय क्षरण को संबोधित करते हुए शिक्षा, प्रोत्साहन और विनियमन के माध्यम से मत्स्यन तथा जलीय कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना।
    • समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा के लिये सख्त प्रदूषण नियंत्रण उपाय और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू करना।
  • निवेश और वित्तपोषण: सार्वजनिक-निजी भागीदारी, प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता के माध्यम से नीली अर्थव्यवस्था क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करना।
    • नीली अर्थव्यवस्था में छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (SME) के विकास को बढ़ावा देने के लिये उन्हें ऋण और वित्त तक पहुँच की सुविधा प्रदान करना।
  • जहाज़ निर्माण उद्योग को बढ़ाना: जहाज़ निर्माण और मरम्मत में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये भारत को उन्नत सामग्रियों एवं हरित प्रौद्योगिकियों पर विशेष ध्यान देने के साथ निजी क्षेत्र के सहयोग से अनुसंधान तथा विकास केंद्र स्थापित करना चाहिये।

दूरसंचार कंपनियों पर पूंजी कराधान

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना है कि टेलीकॉम कंपनियों द्वारा प्रवेश शुल्क के साथ-साथ परिवर्तनीय वार्षिक लाइसेंस शुल्क के भुगतान को राजस्व व्यय न मानकर पूंजीगत व्यय माना जाएगा और इस पर तद्नुसार कर लगाया जाएगा।

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से टेलीकॉम लाइसेंस शुल्क पर प्रभाव

  • निर्णय:
    • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया है कि (नई दूरसंचार) नीति 1999 के तहत प्रवेश शुल्क और वार्षिक लाइसेंस शुल्क के रूप में दूरसंचार कंपनियों द्वारा दूरसंचार विभाग को किये गए भुगतान को अब पूंजीगत व्यय के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा इसे (आयकर) अधिनियम की धारा 35ABB के अनुसार परिशोधित किया जा सकता है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि पूरे खर्च में एक साथ कटौती करने के बजाय कंपनी को कर उद्देश्यों के लिये प्रत्येक वर्ष कुल शुल्क के एक हिस्से में कटौती करने की आवश्यकता होगी।
  • प्रभाव: 
    • लेखांकन व्यवहार में परिवर्तन: दूरसंचार कंपनियों ने परंपरागत रूप से लाइसेंस शुल्क को खर्च के रूप में माना है, जिससे उन्हें कर (Tax) गणना के लिये वर्ष-दर-वर्ष आधार पर कटौती का दावा करने की अनुमति मिलती है।
    • हालाँकि यह निर्णय लेखांकन व्यवहार में बदलाव को अनिवार्य करता है, जिसके लिये लाइसेंस शुल्क को पूंजीगत व्यय के रूप में माना जाना आवश्यक है।
    • इन खर्चों का परिशोधन लाइसेंस की धारण अवधि के दौरान किया जाना चाहिये।
  • नकदी प्रवाह पर प्रारंभिक प्रभाव: लेखांकन व्यवहार में बदलाव के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में दूरसंचार कंपनियों को नकदी प्रवाह में अस्थायी कमी का अनुभव हो सकता है।
    • उच्च EBITDA (ब्याज, कर, मूल्यह्रास व परिशोधन से पहले की आमदनी) और PBT (कर से पहले लाभ) इस बदलाव के परिणामस्वरूप हो सकते हैं, लेकिन लाइसेंस की अवधि के दौरान इसकी भरपाई होने की संभावना है।
  • वित्तीय तनाव (Financial Strain): इस फैसले से उन कंपनियों पर प्रभाव पड़ने का अनुमान है जिन्होंने दूरसंचार लाइसेंस प्राप्त करने के लिये पर्याप्त खर्च व्यय किया है, खासकर वे कंपनियाँ जो पहले से ही वित्तीय घाटे का सामना कर रही हैं।
  • पूर्वव्यापी अनुप्रयोग के बारे में अनिश्चितता: सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि नई लेखांकन संरचना को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जाना चाहिये अथवा नहीं
    • इससे दूरसंचार उद्योग में चिंताएँ बढ़ गई हैं, साथ ही पिछली अवधि की कर देनदारियों को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं।

पूंजीगत और राजस्व व्यय के बीच अंतर

Economic Development (आर्थिक विकास): October 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

ग्लोबल टैक्स इवैशन रिपोर्ट, 2024

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपियन यूनियन टैक्स ऑब्ज़र्वेटरी (European Union Tax Observatory) ने 'ग्लोबल टैक्स इवैशन रिपोर्ट, 2024' (Global Tax Evasion Report 2024) जारी की है जिसमें अरबपतियों पर वैश्विक न्यूनतम कर (Global Minimum Tax- GMT) और कर चोरी से निपटने के उपायों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है। 

  • यह रिपोर्ट पिछले 10 वर्षों में अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय सुधारों (जैसे कि बैंक जानकारी का स्वचालित अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) के लिये वैश्विक न्यूनतम कर पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता तथा अन्य मुद्दों के बीच) के प्रभावों की जाँच करती है।

कर चोरी से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सुधार 

  • वैश्विक न्यूनतम कर (GMT):
    • GMT पूरे विश्व में परिभाषित कॉर्पोरेट आय के आधार पर एक मानक न्यूनतम कर दर लागू करता है।
    • OECD ने बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विदेशी मुनाफे पर 15% का कॉर्पोरेट न्यूनतम कर प्रस्तावित किया है, जिससे देशों को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक कर राजस्व प्राप्त हो सकेगा।
    • अक्तूबर 2021 में भारत सहित 136 देशों के एक समूह ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये न्यूनतम वैश्विक कर दर 15% निर्धारित की और उनके लिये इस कराधान से बचने की प्रक्रिया को कठिन बनाने की मांग की है।
    • GMT की रूपरेखा का उद्देश्य निम्न कर दरों के माध्यम से देशों को कर प्रतिस्पर्धा से हतोत्साहित करना है जिसके परिणामस्वरूप कॉर्पोरेट लाभ में बदलाव और कर आधार का क्षरण होता है।
  • सूचना का स्वचालित आदान-प्रदान:
    • धनी व्यक्तियों द्वारा अपतटीय कर चोरी से निपटने के लिये  सूचनाओं का स्वचालित आदान-प्रदान वर्ष 2017 में शुरू किया गया था।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • अपतटीय कर चोरी को रोकने में चुनौतियाँ:
    • पिछले एक दशक में अपतटीय कर चोरी में कमी आई है। वर्ष 2013 में विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 10% हिस्सा वैश्विक टैक्स हैवन में संगृहीत किया गया था, लेकिन अब इस धनराशि का केवल 25% भाग ही कर मुक्त रह गया है।
    • हालाँकि इसमें चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें अपतटीय वित्तीय संस्थानों द्वारा गैर-अनुपालन और बैंक सूचनाओं के स्वचालित आदान-प्रदान में सीमाएँ शामिल हैं।
  • 0% के बराबर कर दरें:
    • शेल कंपनियों का उपयोग प्राय आयकर से बचने के लिये किया जाता है, इस कारण वैश्विक स्तर पर अरबपतियों की संपत्ति पर प्रभावी कर दरें 0% से 0.5% हैं।
    • अमेरिकी अरबपतियों के लिये प्रभावी कर दर उनकी संपत्ति के 0.5% के बराबर है और फ्राँसीसी अरबपतियों के लिये कर की दर शून्य है।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा लाभ स्थानांतरण:
    • बहुराष्ट्रीय निगमों (MNCs) ने वर्ष 2022 में लगभग 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर टैक्स हैवन में स्थानांतरित कर दिया है, जो उनके मुख्यालय वाले देशों के बाहर अर्जित मुनाफे के 35% के बराबर है।
    • रिपोर्ट ने "ग्रीनवॉशिंग द ग्लोबल मिनिमम टैक्स" की प्रवृत्ति को लाल झंडी दिखा दी है, जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कम कार्बन संक्रमण के लिये 'ग्रीन' टैक्स क्रेडिट का उपयोग कर अपनी कर दरों को 15% से कम कर सकती हैं।
  • नीति विकल्पों का महत्त्व:
    • कर चोरी, धन छिपाना और लाभ को टैक्स हैवन में स्थानांतरित करना प्राकृतिक घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि नीति विकल्पों या आवश्यक विकल्प चुनने में विफलता के परिणाम हैं।
    • कर नीतियों के परिणामों का मूल्यांकन करने और टिकाऊ कर प्रणालियों के लिये सुधार करने की आवश्यकता है।
  • अनुशंसाएँ:
    • रिपोर्ट अरबपतियों पर वैश्विक न्यूनतम कर का समर्थन करती है, जिसमें उनकी संपत्ति पर 2% की दर का प्रस्ताव है। ऐसे धनी लोगों पर कर लगाने के लिये तंत्र स्थापित करना जो किसी देश में लंबे समय से निवासी हैं और कम कर वाले देशों में निवेश का विकल्प चुनते हैं।
    • इस उपाय को विश्व भर की सरकारों के लिये अपना राजस्व बढ़ाने, धन असमानता को दूर करने और शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं बुनियादी ढाँचे जैसी महत्त्वपूर्ण सेवाओं को वित्तपोषित करने के लिये आवश्यक माना जाता है।
    • 25% की दर लागू करने के लिये न्यूनतम कॉर्पोरेट कराधान पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते में सुधार किया जाना चाहिये और इसमें कर प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने वाली कमियों को दूर करना चाहिये।
    • इन मुद्दों पर वैश्विक समझौते विफल होने की स्थिति में बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अरबपतियों के कुछ कर घाटे को एकत्रित करने के लिये एकतरफा उपाय लागू करने की आवश्यकता है।
    • कर चोरी से बेहतर ढंग से निपटने के लिये ग्लोबल एसेट रजिस्ट्री के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
    • आर्थिक वस्तुओं तथा दुरुपयोग विरोधी नियमों के अनुप्रयोग को बेहतर करने की आवश्यकता है।
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FAQs on Economic Development (आर्थिक विकास): October 2023 UPSC Current Affairs - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023 क्या है?
उत्तर. वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023 एक मापक है जो दुनिया भर में विभिन्न देशों के व्यापारिक और आर्थिक नवाचार को मापने के लिए उपयोग होता है। इसका उद्देश्य वैश्विक नवाचार की समझ, अध्ययन और विश्लेषण को बढ़ावा देना है।
2. भारत में अवैध व्यापार क्या है?
उत्तर. भारत में अवैध व्यापार सम्बंधित सामग्री, सेवाएं या वस्तुएं हैं जो भारतीय कानूनों और नियमों के अनुसार गैरकानूनी होती हैं। इस तरह के व्यापार में उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाया जाता है और यह कानूनी कार्रवाई के तहत दंडनीय होता है।
3. भारत का विमानन उद्योग किस प्रकार में विकसित है?
उत्तर. भारत का विमानन उद्योग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित है। भारत में एक व्यापक हवाई यातायात नेटवर्क है जिसमें कई विमानन कंपनियाँ और हवाई अड्डे शामिल हैं। भारतीय विमानन उद्योग ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के माध्यम से भी विकास किया है।
4. न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या होता है?
उत्तर. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) एक मौजूदा विधि है जिसके तहत कृषि उत्पादों की न्यूनतम बिक्री मूल्यों को स्थापित किया जाता है। यह किसानों को उचित मूल्य प्राप्त करने में मदद करता है और उत्पादकों को न्यूनतम आय सुनिश्चित करने में मदद करता है।
5. दूरसंचार कंपनियों पर पूंजी कराधान का मतलब क्या है?
उत्तर. दूरसंचार कंपनियों पर पूंजी कराधान एक आर्थिक नीति है जिसके तहत कंपनियों को निवेशकों से पूंजी प्राप्त करने की अनुमति होती है। इसका उद्देश्य उन्हें अपने व्यापार को विस्तारित करने, नई सुविधाओं की शुरुआत करने, और सेवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए आवश्यक धन को प्राप्त करना होता है।
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