UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य पर गांधी का रुख

चर्चा में क्यों? 

महात्मा गांधी फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य की स्थापना का विचारिक रूप से विरोध करते थेइज़रायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष एवं तनाव के संदर्भ में उनके विचार काफी चर्चा में है।

गांधी द्वारा फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य के विरोध का कारण

  • यूरोप में यहूदी लोगों की दुर्दशा:
    • 1930 और 1940 के दशक में एडॉल्फ हिटलर के नेतृत्त्व वाले नाज़ी शासन के तहत यूरोप में यहूदियों को अत्यधिक उत्पीड़न एवं भेदभाव का सामना करना पड़ा
    • नाज़ियों के शासन के दौरान व्यवस्थित रूप से लगभग छह मिलियन यहूदियों का नरसंहार किया गया, उन्हें नज़रबंदी शिविरों में रहने या निर्वासित होने को मज़बूर होना पड़ा।
  • यहूदियों के प्रति गांधी की सहानुभूति:
    • गांधीजी को यहूदी लोगों के प्रति अपार सहानुभूति थी, इन लोगों को ऐतिहासिक रूप से उनके धर्म के कारण प्रताड़ित किया गया था।
    • गांधीजी ने पाया कि यूरोप में यहूदियों और भारत में अछूतों के साथ होने वाले व्यवहार में काफी समानताएँ हैं तथा उन्होंने दोनों समुदायों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार की काफी आलोचनाएँ भी कीं।
    • गांधी जर्मनी द्वारा यहूदियों के उत्पीड़न को लेकर बहुत चिंतित थे और उनका मानना था कि इस तरह के उत्पीड़न को रोकने के लिये अगर जर्मनी के साथ युद्ध करना पड़े तो यह उचित होगा।
  • ज़ायोनी आंदोलन और उसके लक्ष्य:
    • 19वीं सदी के अंत में फिलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिये एक राष्ट्रीय मातृभूमि की स्थापना के लक्ष्य के साथ ज़ायोनी आंदोलन की शुरुआत हुई।
    • प्रथम विश्व युद्ध के बाद इस आंदोलन को और बल मिला, साथ ही इसे वर्ष 1917 की बाल्फोर घोषणा (जिसके द्वारा फिलिस्तीन में एक यहूदी राष्ट्र-राज्य की स्थापना हेतु समर्थन किया गया था) का प्रोत्साहन भी प्राप्त हुआ।
    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने वाली एक विभाजन योजना का प्रस्ताव रखा, जिसके अनुसार यरुशलम एक अंतर्राष्ट्रीय शहर होगा।
    • यहूदी नेताओं ने इस योजना को स्वीकार कर लिया किंतु अरब द्वारा इसे अस्वीकार कर दिया गया, जिससे हिंसा भड़की।
    • 14 मई, 1948 को इज़रायल को आधिकारिक तौर पर एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया।
  • यहूदी राष्ट्र-राज्य के प्रति गांधी का विरोध:
    • गांधीजी ने फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य को गलत और अमानवीय मानते हुए इसका विरोध किया। उनका मानना था कि यहूदी मातृभूमि की स्थापना के लिये मूल अरब आबादी को विस्थापित करना मानवता के खिलाफ अपराध कृत्य होगा।
    • गांधीजी को लगा कि यहूदी केवल "अरबों की सद्भावना से" फिलिस्तीन में बस सकते हैं और इसके लिये उन्हें "ब्रिटिशों के साथ जुड़ाव को कम करना होगा"
    • उनका मानना था कि कोई भी धार्मिक कृत्य, जैसे यहूदियों का फिलिस्तीन लौटना, गंभीरता से नहीं बल्कि अरबों की सद्भावना के साथ लागू होना चाहिये।
    • गांधी का मानना था कि फिलिस्तीन में यहूदी मातृभूमि की अवधारणा दुनिया भर में यहूदी अधिकारों की लड़ाई का खंडन करती है। उन्होंने सवाल किया कि यदि फिलिस्तीन यहूदियों का एकमात्र घर है तो क्या वे दुनिया के उन हिस्सों को छोड़ेंगे, जहाँ पर वे पहले से बसे हुए हैं।

गांधी के रुख का भारत की इज़राइल-फिलिस्तीन नीति पर प्रभाव

  • गांधीजी की राय और उनके स्वयं के साम्राज्यवाद-विरोध का भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे दशकों तक उभरते राष्ट्र की विदेश नीति को आकार देने के लिये ज़िम्मेदार थे, जिसके कारण भारत ने फिलिस्तीन को विभाजित करने वाले संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 181 के खिलाफ वोट किया।
  • 17 सितंबर 1950 को, भारत ने आधिकारिक तौर पर इज़राइल राज्य को मान्यता दी, लेकिन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के द्वारा वर्ष 1992 में आधिकारिक राजनयिक संबंध स्थापित किये।
  • भारत, फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को एकमात्र फिलिस्तीनी प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करने वाले पहले गैर-अरब देशों में से एक था। वर्ष 1988 में भारत ने फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता दी।
  • हालाँकि समय के साथ भारत की नीति में भी कुछ बदलाव आए, जो उसके रणनीतिक और आर्थिक हितों को दर्शाते हैं।
    • हाल ही में भारत इज़राइल और फिलिस्तीन दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए, दो-राज्य समाधान या ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ (Two-State Solution) को प्राथमिकता देने और शांतिपूर्ण तरीके से दोनों देशों के लिये आत्मनिर्णय के अधिकार के साथ डी-हाईफनेशन (Dehyphenation) नीति स्थापित करने की ओर बढ़ गया है।

श्रीलंका को चीन की सहायता

चर्चा में क्यों?

श्रीलंका के आर्थिक संकट में फँसने के एक वर्ष से अधिक समय बाद, उसने अपने बकाया ऋण के लगभग 4.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर को कवर करने के लिये चीन के निर्यात-आयात (EXIM) बैंक के साथ एक समझौता किया है।

  • भारत के लिये श्रीलंका को चीन की सहायता को एक अन्य साधन के रूप में देखा जाएगा जिसके माध्यम से वह द्वीप राष्ट्र के साथ अपने संबंधों को बेहतर करने में निवेश कर रहा है।

श्रीलंका को चीन की वर्तमान सहायता का संदर्भ

  • श्रीलंका के आर्थिक संकट के कारण और उसकी प्रतिक्रिया:
    • श्रीलंका के 83 बिलियन अमरीकी डालर के आधे से अधिक ऋण विदेशी ऋणदाताओं के कारण थे, जब श्रीलंका ने अप्रैल 2022 में कहा था कि इसे चुकाना असंभव होगा।
    • संकट में योगदान देने वाले कारकों में वर्ष 2019 में बड़ी कर कटौती, पर्यटन उद्योग पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव और यूक्रेन में युद्ध के कारण ईंधन की कमी शामिल है।
    • श्रीलंका ने चीन और भारत से सहायता मांगी, जहाँ भारत ने ईंधन के लिये 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिये 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन दी।
  • ऋण वार्ता में चिंताएँ एवं चुनौतियाँ: IMF की शर्तों को पूरा करने के लिये श्रीलंका ने चीन, जापान और भारत सहित बॉण्डधारकों तथा प्रमुख द्विपक्षीय ऋणदाताओं के साथ चर्चा शुरू की।
    • श्रीलंका को 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की IMF विस्तारित निधि सुविधा प्राप्त हुई, लेकिन ऋण पुनर्गठन के माध्यम से अपने लेनदारों से ऋण स्थिरता के लिये वित्तपोषण आश्वासन सुरक्षित करना पड़ा।
    • उदाहरण के लिये, श्रीलंका ने विदेशी निवेशकों से बकाया ऋण में 30% की कमी करने के लिये कहा, जिससे उसे कुल ऋण में 16.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी का अनुमान है।
    • पेरिस समूह ने चीन और भारत को यह सुनिश्चित करते हुए समग्र रूप से समझौते में लाने का प्रयास किया है कि किसी भी देश को पक्षपातपूर्ण शर्तें न प्राप्त हों।
  • चीन परंपरागत रूप से गोपनीय शर्तों के साथ द्विपक्षीय वार्ता करता रहा है, जबकि भारत को एक साझा मंच में शामिल होने को लेकर चिंता थी क्योंकि इसका हिंद महासागर क्षेत्र में सैन्य और रणनीतिक हितों पर प्रभाव पड़ सकता है।

चीन-श्रीलंका संबंध की प्रगाढ़ता

  • श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता:
    • चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है।
    • श्रीलंका अपने विदेशी ऋण के बोझ से निपटने के लिये चीनी ऋण पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में निवेश:
    • चीन ने वर्ष 2006-19 के बीच श्रीलंका की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में लगभग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
  • हिंद महासागर में चीन की स्थिति:
    • दक्षिण-पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर की तुलना में चीन को दक्षिण एशिया एवं हिंद महासागर में मित्रतापूर्ण जल क्षेत्र प्राप्त है।
    • चीन को ताइवान के विरोध, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया में क्षेत्रीय विवादों के अतिरिक्त अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ असंख्य मतभेदों का सामना करना पड़ता है।
  • छोटे राष्ट्रों के बदलते हित:
    • श्रीलंका का आर्थिक संकट उसे अपनी नीतियों को चीन के हितों के अनुरूप बनाने के लिये और प्रेरित कर सकता है।
  • भारत की चिंताएँ:
    • SAGAR पहल का विरोध: चीन द्वारा प्रस्तावित "हिंद महासागर द्वीप देशों के विकास पर फोरम" भारत की SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) पहल के विरोध में था।
  • विकास के मुद्दे: 99 वर्षों की लीज़ के तहत श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का औपचारिक नियंत्रण है।
    • श्रीलंका ने कोलंबो बंदरगाह के चारों ओर एक विशेष आर्थिक क्षेत्र और एक नया आर्थिक आयोग स्थापित करने का निर्णय लिया है, जिसे चीन द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
    • हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना को पट्टे पर दिये जाने से चीनी नौसेना के लिये हिंद महासागर में स्थायी उपस्थिति लगभग-लगभग तय है, यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चिंता का विषय है।
    • भारत को घेरने की चीन की इस रणनीति को स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स रणनीति कहा जाता है।
  • भारत के पड़ोसी देशों पर प्रभाव: बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये चीन की ओर रुख कर रहे हैं।

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

भारत और श्रीलंका के बीच संबंध

  • ऐतिहासिक संबंध: भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक एवं व्यापारिक संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है।
    • दोनों देशों के बीच मज़बूत सांस्कृतिक संबंध हैं, कई श्रीलंकाई लोगों का मानना है कि उनकी विरासत भारत से संबंधित है। बौद्ध धर्म, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई, श्रीलंका में भी एक प्रमुख धर्म है।
  • भारत द्वारा वित्तीय सहायता: भारत ने श्रीलंका में अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौरान श्रीलंका को लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की थी।
    • भारत श्रीलंका के वित्तपोषण और ऋण पुनर्गठन के लिये अपना समर्थन पत्र सौंपने वाला पहला देश बन गया।
  • क्षेत्रीय और हिंद महासागरीय संदर्भ: दोनों देश हिंद महासागर क्षेत्र में बसे महत्त्वपूर्ण देश हैं और इन दोनों के बीच के संबंधों को व्यापक क्षेत्रीय तथा हिंद महासागरीय संदर्भ में देखा जाता है।
  • आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौता (Economic and Technology Cooperation Agreement- ETCA): दोनों देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करने तथा विकास को बढ़ावा देने के लिये आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं।
  • बहु-परियोजना पेट्रोलियम पाइपलाइन पर समझौता: भारत और श्रीलंका दोनों ने भारत के दक्षिणी भाग से श्रीलंका तक एक बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन की स्थापना पर सहमति जताई है।
  • भारत की UPI को अपनाना: श्रीलंका ने भारत की UPI सेवा को अपनाया है, जो दोनों देशों के बीच फिनटेक कनेक्टिविटी को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
    • व्यापार निपटान, अर्थात् व्यापारिक लेन-देन के लिये रुपए के उपयोग से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को काफी मदद मिली है। यह श्रीलंका की आर्थिक सुधार तथा वृद्धि में मदद करने की दिशा में एक ठोस कदम हैं।
  • आर्थिक संबंध: अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। श्रीलंका के 60% से अधिक निर्यात भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाते हैं। भारत श्रीलंका में एक प्रमुख निवेशक भी है।
  • रक्षा: भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) और नौसेना अभ्यास (SLINEX) आयोजित करते हैं।
  • समूहों में भागीदारी: श्रीलंका बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) सार्क जैसे समूहों का भी सदस्य है जिसमें भारत अग्रणी भूमिका निभाता है।

कतर में पूर्व नौसेना कर्मी को मौत की सज़ा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कतर के एक न्यायालय ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों को जासूसी के आरोप में मौत की सज़ा सुनाई है।

  • संबद्ध अधिकारियों को अगस्त 2022 में गिरफ्तार किया गया था और उन पर गोपनीय जानकारी साझा करने संबंधी आरोप लगाए गए थे।

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

मामले की पृष्ठभूमि

  • याचिका:
    • दोहा में अल दहरा ( कतर की निजी सुरक्षा कंपनी) के साथ कार्य कर रहे अभियुक्त अधिकारियों पर वर्ष 2022 में कतर में उनकी गिरफ्तारी के समय कथित तौर पर गोपनीय जानकारी साझा करने का आरोप लगाया गया था।
    • दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज़ एंड कंसल्टेंट सर्विसेज़, जिस कंपनी के लिये उन्होंने कार्य किया था, वह इतालवी मूल की उन्नत पनडुब्बियों के उत्पादन से भी जुड़ी थी, जो अपनी गुप्त युद्ध क्षमताओं के लिये भी जानी जाती हैं।
    • हालाँकि कतरी अधिकारियों द्वारा आठ भारतीय अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया गया है।

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

  • पिछला परीक्षण:
    • इस मामले में 2023 के मार्च और जून में दो परीक्षण हुए हैं। जबकि बंदियों को कई मौकों पर कांसुलर एक्सेस (Consular Access) प्रदान की गई थी, भारतीय और कतरी दोनों अधिकारियों ने मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए इस मामले में गोपनीयता को बनाए रखा है।
  • भारत की प्रतिक्रिया:
    • भारत ने अपने नागरिकों को दी गई मौत की सज़ा पर चिंता व्यक्त की है और उनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिये सभी संभावित कानूनी विकल्प तलाश रहा है।
    • विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस मामले से जुड़े बड़े महत्त्व से अवगत कराया है और हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को कांसुलर तथा कानूनी सहायता प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है।

इस मामले के कूटनीतिक निहितार्थ

  • यह निर्णय संभावित रूप से भारत और कतर के बीच संबंधों में तनाव उत्पन्न कर सकता है, जहाँ बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी आर्थिक एवं राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने में योगदान करते हैं।
  • कतर में सात लाख से अधिक भारतीय आबादी निवास करती हैं जिससे भारत सरकार पर इस बात का दबाव बढ़ जाता है कि वहाँ की जेलों में बंद कैदियों की जान बचाने हेतु उच्चतम स्तर की कार्रवाई की जाए।
    • वे अलग-अलग क्षेत्रों में अपना योगदान दे रहे हैं। कतर में भारतीयों को उनकी ईमानदारी, कड़ी मेहनत, तकनीकी विशेषज्ञता और कानून का पालन करने वाले स्वभाव के लिये बहुत सम्मान दिया जाता है।
    • कतर में भारतीय प्रवासी समुदाय द्वारा भारत को भेजी जाने वाली धनराशि प्रति वर्ष लगभग 750 मिलियन डॉलर होने का अनुमान है।
  • यह मामला भारत-कतर संबंधों में पहले बड़े संकट का प्रतिनिधित्व करता है, जो आमतौर पर स्थिर रहे हैं।
    • दोनों देशों ने वर्ष 2016 में भारत के प्रधानमंत्री के दोहा दौरे के साथ उच्च स्तरीय बैठकें कीं, जिसके बाद कतर के अमीर (Emir) के साथ भी बैठकें हुईं।
  • कतर भारत को तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है, जो भारत के LNG आयात का एक बड़ा भाग रखता है।

नौसेना कर्मियों की सज़ा को रोकने हेतु भारत के विकल्प

  • राजनयिक विकल्प:
    • भारत मामले का समाधान तलाशने के लिये कतर सरकार के साथ सीधी कूटनीतिक वार्त्ता कर सकता है। दोनों देशों के बीच संबंधों के रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व को देखते हुए राजनयिक उत्तोलन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • सरकार मृत्युदंड को रोकने के लिये राजनयिक दबाव का भी उपयोग कर सकती है।
    • जिन संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है उनमें निर्णय के खिलाफ अपील दायर करना या दोषी कैदियों के स्थानांतरण के लिये वर्ष 2015 में भारत और कतर द्वारा हस्ताक्षरित समझौते का उपयोग करना है ताकि वे अपने गृह देश में अपनी सज़ा पूरी कर सकें।
    • गैर सरकारी संगठन और नागरिक समाज इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर उठा सकते हैं तथा संयुक्त राष्ट्र का दबाव भी बनाया जा सकता है।
  • कानूनी विकल्प:
    • पहला कदम कतर में न्यायिक प्रणाली के अंतर्गत अपील करना है। मौत की सज़ा पाने वाले व्यक्ति कतर की कानूनी प्रणाली के तहत अपील दायर कर सकते हैं।
    • भारत बंदियों को कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करके यह सुनिश्चित कर सकता है कि अपील करने के उनके अधिकार का उचित रूप से पालन किया जाए।
    • यदि उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है या अपील प्रक्रिया अव्यवस्थित है, तो भारत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) क्षेत्राधिकार का उपयोग कर सकता है।
    • ICJ एक विश्व न्यायालय के रूप में कार्य करता है जिसके पास दो प्रकार के क्षेत्राधिकार हैं अर्थात् राज्यों के बीच उनके द्वारा प्रस्तुत किये गए कानूनी विवाद (विवादास्पद मामले) और संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों (सलाहकार कार्यवाही) द्वारा इसे संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकारी राय के लिये अनुरोध।

आगे की राह 

  • इस दिशा में आगे का रास्ता चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है और इसमें समय लगने एवं भारत को दृढ़ता दिखाने की आवश्यकता हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और कतर में कानूनी प्रक्रिया की जटिलताओं से निपटते हुए भारत को अपने नागरिकों के कल्याण एवं उनके कानूनी अधिकारों के लिये प्रतिबद्ध रहना आवश्यक है।
  • सफल और उचित समाधान के लिये राजनयिक प्रयासों, कानूनी कार्रवाइयों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के संयोजन की आवश्यकता हो सकती है।

दक्षिण-चीन सागर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फिलीपींस द्वारा दक्षिण चीन सागर के एक विवादित क्षेत्र में संचित तेल-भंडार पर अपना दावा जताने के बाद यहाँ चीन और फिलीपींस के बीच विवाद लगातार गंभीर होता जा रहा है।

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

प्रमुख बिन्दु

  • दक्षिण चीन सागर के जुलिना फेलिप रीफ के क्षेत्र में चीन और फिलीपींस के बीच विवाद उभरकर सामने आया है। अब यह विवाद गंभीर रूप लेता जा रहा है।
  • दरअसल चीन जुलिना फेलिप रीफ के क्षेत्र को दक्षिण चीन सागर के स्प्रैटली द्वीप समूह के व्हिटसन रीफ का हिस्सा मानता है तथा इस पर अपना दावा जताता है।
  • जुलिना फेलिप रीफ के क्षेत्र पर दशकों से फिलीपींस का नियंत्रण था, लेकिन पिछले कुछ समय से चीनी नौसेना के अंतर्गत काम करने वाली मिलिशिया की नौकाओं ने इस रीफ को घेर रखा है। चीन इस क्षेत्र में फिलीपींस की नौसेना को अब आने नहीं दे रहा है।
  • हाल ही में फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने पहली बार सार्वजनिक रूप से जुलिना फेलिप रीफ पर चीनी नौकाओं की मौजूदगी को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि फिलीपींस अपनी संप्रभुता के लिए युद्ध से पीछे भी नहीं हटेगा।
  • गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस कुछ दिनों बाद अमेरिकी सेना के साथ बालिकतन (Balikatan) नामक सैन्य युद्धाभ्यास करेगा। उल्लेखनीय है कि फिलीपींस और अमेरिका के बीच सैन्य संबद्ध काफी प्रगाढ़ हैं। फिलीपींस में अमेरिका का सैन्य अड्डा भी है।

दक्षिण चीन सागर (South China Sea)

  • दक्षिण चीन सागर एक सीमांत सागर है, जो प्रशांत महासागर का हिस्सा है, जिसमें करिमाता, फारमोसा जलडमरूमध्य और मलक्का जैसे क्षेत्र सम्मिलित हैं। यह एशिया के दक्षिण-पूर्व में और प्रशांत महासागर के पश्चिमी तट पर स्थित है।
  • दरअसल देखा जाये तो दक्षिण चीन सागर, प्रशांत महासागर में सिंगापुर से लेकर ताइवान की खाड़ी तक लगभग 3.5 मिलियन वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है।

दक्षिण चीन सागर का महत्व

  • दक्षिण चीन सागर का सामरिक महत्व काफी अधिक है। दक्षिणी चीन सागर, प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच स्थित बेहद अहम कारोबारी इलाक़ा भी है। दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 फ़ीसदी हिस्सा यहां से गुज़रता है।
  • यह क्षेत्र मत्स्य संसाधन से परिपूर्ण है, जो दक्षिण-पूर्व एशिया में लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  • माना जाता है कि इसके सीबेड के नीचे विशाल तेल और गैस का भंडार है। जो इसे आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है। दक्षिण चीन सागर में 11 बिलियन बैरेल प्राकृतिक तेल के भंडार हैं और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस के भंडार हैं , जिसके 280 ट्रिलियन क्यूबिक फीट होने की संभावना भी व्यक्त की गई है । यह क्षेत्र ऐसा है, जहां से हर वर्ष 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संभव होता है।
  • चीन का लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा आयात और चीन का कुल व्यापार का लगभग 39.5 प्रतिशत दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है। दरअसल चीन को प्राकृतिक तेल की आपूर्ति मध्य-पूर्व से होती है और यह मलक्का जलडमरुमध्य के रास्ते से होकर गुजरता है । अक्सर अमेरिका चीन को चेतावनी देता है कि वह मलक्का जलडमरुमध्य को ब्लॉक कर देगा जिससे चीन की ऊर्जा आपूर्ति रुक जाएगी । इसलिए चीन दुनिया भर के अन्य देशों में अपनी ऊर्जा सुरक्षा को लेकर सजग और आक्रामक हुआ है । यही कारण है कि चीन को दक्षिण चीन सागर में अपने भू आर्थिक और भू सामरिक हित दिखाई देते हैं ।

दक्षिण चीन सागर विवाद (South China Sea dispute)

  • दक्षिण चीन सागर विवाद, दुनिया के सबसे बड़े महासागरीय विवाद के रूप में माना जाता है ।
  • चीन व दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों(यथा- वियतनाम , इंडोनेशिया , मलेशिया, ब्रूनेई, फिलीपींस आदि ) के बीच दक्षिण चीन सागर के विभिन्न क्षेत्रों व यहाँ स्थित द्वीपों (यथा- स्पार्टले और परासेल द्वीप) को लेकर विवाद है।
  • चीन ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में अतिक्रमण कर वहां अपनी संप्रभुता के दावों के लिए नौ स्थानों पर डैश या चिन्ह लगाकर विवाद को बढ़ा दिया है, इसलिए इस विवाद को ‘नाइन डैश लाइन’ विवाद भी कहते हैं । चीन का नाइन डैश लाइन ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ द सी , 1982’ के ‘एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन’ की मान्यता का खंडन करता है ।
  • इसके अतिरिक्त, चीन की निगाह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के ईईजेड और साउथ चाइना सी के द्वीपों में पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों , प्राकृतिक तेल , गैस व मत्य संसाधनों पर भी है ।
  • दक्षिण चीन सागर में चीन ने धीरे-धीरे करके कई छोटे द्वीपों पर सैनिक अड्डे बना लिए। आज हालात यह हो गए हैं कि दक्षिणी चीन सागर पर कई देश दावेदारी कर रहे हैं।
  • उल्लेखनीय है कि चीन ने वर्ष 2016 में दक्षिण चीन सागर पर मालिकाना हक़ के एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के निर्णय को मानने से इनकार कर दिया था । हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने फैसले में कहा था कि चीन अवैधानिक तरीके से दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस के जायज अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है । चीन ने इस फैसले को सिरे से खारिज कर दिया था ।

दक्षिण चीन सागर विवाद पर भारत का मत

  • भारत, दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र व निर्बाध जल परिवहन हेतु सभी पक्षों से ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ द सी , 1982’ (United Nations Convention on the Law of the Sea) के सिद्धांतो को अपनाने का समर्थन करता है।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2016 में भारत के विदेश मंत्रालय ने भी आधिकारिक रूप से कहा था कि जिसे चीन दक्षिण चीन सागर कह रहा है ,वह फिलीपींस सागर है ।

चीन-तिब्बत मुद्दा

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में धर्मशाला में पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान दलाई लामा ने तिब्बती लोगों द्वारा चीन के भीतर अधिक स्वायत्तता की मांग के संबंध में अपना रुख स्पष्ट किया, साथ ही उन्होंने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा रहते हुए तिब्बती लोगों के स्वशासन की इच्छा पर बल दिया।

चीन-तिब्बत मुद्दा

  • तिब्बत की स्वतंत्रता:
    • यह एशिया में तिब्बती पठार पर लगभग 2.4 मिलियन वर्ग किमी. में विस्तृत क्षेत्र है जो चीन के क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई है।
    • यह तिब्बती लोगों के साथ-साथ कुछ अन्य जातीय समूहों की पारंपरिक मातृभूमि है।
    • तिब्बत पृथ्वी पर सबसे ऊँचा क्षेत्र है, जिसकी औसत ऊँचाई 4,900 मीटर है। तिब्बत में माउंट एवरेस्ट (पृथ्वी का सबसे ऊँचा पर्वत) समुद्र तल से 8,848 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
    • 13वें दलाई लामाथुबटेन ग्यात्सो ने वर्ष 1913 की शुरुआत में तिब्बती स्वतंत्रता की घोषणा की।
    • चीन ने तिब्बत की स्वतंत्रता को मान्यता न देते हुए इस क्षेत्र पर संप्रभुता के दावे को कायम रखा।

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

  • चीनी आक्रमण और सत्रह सूत्रीय समझौता:
    • वर्ष 1912 से लेकर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना (वर्ष 1949) तक किसी भी चीनी सरकार ने वर्तमान में चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region- TAR) पर नियंत्रण नहीं रखा।
    • इस क्षेत्र पर दलाई लामा की सरकार ने वर्ष 1951 तक शासन किया था। माओत्से तुंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के तिब्बत में प्रवेश करने और उस पर आक्रमण करने के पहले तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र था।
    • वर्ष 1951 में तिब्बती नेताओं को चीन द्वारा निर्धारित एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये विवश किया गया था। यह संधि ‘सत्रह सूत्री समझौते’ के नाम से जानी जाती है जो तिब्बती स्वायत्तता की गारंटी/सुनिश्चितता सहित बौद्ध धर्म का सम्मान करने का दावा करती है, किंतु साथ ही ल्हासा (तिब्बत की राजधानी) में चीनी सिविल तथा मिलिट्री (सैन्य) मुख्यालय की स्थापना की भी अनुमति देती है।
    • हालाँकि दलाई लामा सहित तिब्बती लोग इसे अमान्य करार देते हैं।
    • तिब्बती तथा अन्य लोगों द्वारा इस संधि को ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ (Cultural Genocide) के रूप में वर्णित किया जाता है।
  • 1959 का तिब्बती विद्रोह:
    • तिब्बत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण वर्ष 1959 में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया जब दलाई लामा को अपने अनुयायियों के एक समूह के साथ शरण की तलाश में भारत भागना पड़ा।
    • दलाई लामा का अनुसरण करने वाले तिब्बतियों ने भारत के धर्मशाला स्थित क्षेत्र में एक निर्वासित सरकार बनाई, जिसे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) के नाम से जाना जाता है।
  • 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह के परिणाम:
    • 1959 के विद्रोह के बाद से चीन की केंद्र सरकार लगातार तिब्बत पर अपनी पकड़ मज़बूत करती जा रही है।
    • वर्तमान में तिब्बत में भाषण, धर्म अथवा प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है एवं चीन द्वारा तिब्बती लोगों की विधि विरुद्ध गिरफ्तारी जारी है।
    • जबरन गर्भपात, तिब्बती महिलाओं का बंध्यकरण तथा निम्न आय वाले चीनी नागरिकों के तिब्बत में स्थानांतरण से तिब्बती संस्कृति के अस्तित्व को खतरा पहुँचा है।
    • हालाँकि चीन ने संबद्ध क्षेत्र, विशेषकर ल्हासा में आधारभूत अवसंरचना में सुधार हेतु निवेश किया है, जिससे हज़ारों हान समुदाय के चीनी लोगों को तिब्बत में बसने को प्रोत्साहित किया गया। जिसके परिणामस्वरूप तिब्बत में जनसांख्यिकीय बदलाव आया है।

तिब्बत और दलाई लामा का भारत-चीन संबंधों पर प्रभाव

  • तिब्बत वास्तव में सदियों से भारत का पड़ोसी रहा, क्योंकि भारत की अधिकांश सीमाएँ तथा 3500 किमी. LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ है, न कि शेष चीन के साथ।
  • वर्ष 1914 में ये तिब्बती प्रतिनिधि ही थे, जिन्होंने चीनियों के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये और जिसने सीमाओं का रेखांकन किया।
  • हालाँकि वर्ष 1950 में चीन द्वारा तिब्बत के पूर्ण विलय के बाद चीन ने उस समझौते और मैकमोहन लाइन को अस्वीकार कर दिया जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था।
  • इसके अलावा वर्ष 1954 में भारत ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें तिब्बत को ‘चीन के तिब्बत क्षेत्र’ के रूप में मान्यता देने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • भारत में दलाई लामा की मौजूदगी भारत-चीन संबंधों में लगातार कड़वाहट उत्पन्न करती रही है, क्योंकि चीन उन्हें अलगाववादी मानता है।
  • जल संसाधनों और भू-राजनीतिक विचारों के संदर्भ में तिब्बती पठार का महत्त्व भारत-चीन-तिब्बत समीकरण को जटिल बनाता है। 

तिब्बत में हाल के घटनाक्रम

  • चीन, तिब्बत में अगली पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे का निर्माण और विकास कार्य कर रहा है, जैसे कि सीमा रक्षा गाँव, बाँध, सभी मौसम के लिये तेल पाइपलाइन और इंटरनेट कनेक्टिविटी परियोजनाएँ।
  • ‘तिब्बती बौद्ध धर्म हमेशा से चीनी संस्कृति का हिस्सा रहा है’, चीन इस बात का प्रचार करके अगले दलाई लामा के चयन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है।
  • भारत सरकार वर्ष 1987 के कट-ऑफ वर्ष के बाद भारत में पैदा हुए तिब्बतियों को नागरिकता नहीं देती है।
    • इससे तिब्बती समुदाय के युवाओं में असंतोष की भावना पैदा हो गई है।
The document International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2222 docs|810 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य पर गांधी का रुख क्या था?
उत्तर: गांधी ने फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य के बनने के विरोध में खुलकर अपनी असम्मति जाहिर की थी। उन्होंने इसे अन्यायपूर्ण और अस्वीकार्य माना और इसे अर्थहीन घोषित किया।
2. श्रीलंका को चीन की सहायता क्यों चाहिए थी?
उत्तर: श्रीलंका ने चीन से सहायता मांगी थी क्योंकि वे आर्थिक सहायता और विकास के लिए चीन के साथ सशक्तीकरण करना चाहते थे। चीन ने श्रीलंका को वित्तीय सहायता, अनुप्रयोगिक ज्ञान, और अन्य विभिन्न क्षेत्रों में मदद प्रदान की थी।
3. कतर में पूर्व नौसेना कर्मी की मौत की सज़ा क्या है?
उत्तर: अक्टूबर 2023 को कतर में पूर्व नौसेना कर्मी की मौत की सज़ा थी। यह अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के अनुसार होती है और यह नौसेना कर्मी के द्वारा किये गए अपराध के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करती है।
4. फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य की स्थापना किसने की थी?
उत्तर: यहूदी राष्ट्र-राज्य की स्थापना 1948 में इजरायल नामक देश द्वारा की गई थी। इस स्थापना के पश्चात फिलिस्तीनी अरबों को अपनी जमीन से बाहर निकाला गया और इसने जो विवाद पैदा किया था, उसे बढ़ावा दिया।
5. चीन ने श्रीलंका को कैसे सहायता प्रदान की?
उत्तर: चीन ने श्रीलंका को आर्थिक सहायता, विकास के लिए ऋण, निवेश, और प्रशिक्षण के लिए अनुप्रयोगिक ज्ञान प्रदान की। इसके अलावा, चीन ने श्रीलंका के प्रशासनिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी मदद की।
2222 docs|810 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Summary

,

video lectures

,

Semester Notes

,

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Viva Questions

,

Weekly & Monthly

,

mock tests for examination

,

Free

,

Extra Questions

,

Objective type Questions

,

MCQs

,

ppt

,

practice quizzes

,

pdf

,

Exam

,

shortcuts and tricks

,

Sample Paper

,

Previous Year Questions with Solutions

,

past year papers

,

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Weekly & Monthly

,

study material

,

Weekly & Monthly

,

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Important questions

;